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Wednesday, November 10, 2021

तुलसी विवाह कब हैं? जानें पूजा विधि, कथा, शुभ मुहूर्त और महत्त्व(When is Tulsi Vivah? Know puja vidhi, katha, shubh muhurat and importance)





तुलसी विवाह कब हैं? जानें पूजा विधि, कथा, शुभ मुहूर्त और महत्त्व(When is Tulsi Vivah? Know puja vidhi, katha, shubh muhurat and importance):-कार्तिक शुक्ल एकादशी को तुलसी विवाह का उत्सव मनाया जाता है। इस दिन तुलसी जी एवं शालिग्राम जी का विवाह किया जाता हैं। तुलसी के वृक्ष एवं उसके गमलों को विविध प्रकार से सजाया जाता हैं और तुलसी का सुहागिन की तरह श्रृंगार किया जाता हैं, तदुपरान्त शालग्रामजी का पूजन किया जाता हैं और शालग्रामजी को सिंहासन सहित हाथ में लेकर तुलसी की सात परिक्रमा करवायी जाती हैं। अन्त में आरती की जाती हैं। विवाह के मंगल गीत गाए जाते हैं।

हर साल कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि को भगवान विष्णु जी शालिग्राम स्वरूप और माता तुलसी का विवाह किया जाता है। इस दिन को देवउठनी एकादशी कहा जाता है। देवउठनी एकादशी के दिन ही भगवान श्रीविष्णुजी चार महीने बाद योगनिद्रा से जागते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीहरि विष्णुजी जब योगनिद्रा से जागते हैं, तब सबसे पहले तुलसी अर्थात् हरिवल्लभा की पुकार को सुनते हैं। फिर तुलसी विवाह के साथ ही विवाह के शुभ मुहूर्त भी शुरू हो जाते हैं।




तुलसी विवाह पूजा विधि:-तुलसी जी एवं शालिग्रामजी पूजा विधि इस तरह हैं:

◆व्रत करने वाले व्रती को एकादशी तिथि के प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त की शुभ वेला में जल्दी उठना चाहिए।

◆फिर उठकर अपनी दैनिकचर्या जैसे-स्नानादि को पूरा करना चाहिए।

◆फिर स्वच्छ वस्त्रों को पहनना चाहिए।

◆उसके बाद में भगवान श्रीहरि विष्णुजी को मन ही मन में स्मरण करना चाहिए।

◆भगवान श्रीहरि विष्णुजी की आराधना करनी चाहिए।

◆भगवान श्रीहरि विष्णुजी की षोडशोपचार कर्म से पूजा करनी चाहिए।

◆जिनमें भगवान विष्णुजी को पूजा में आने का निमंत्रण देना चाहिए।

◆फिर भगवान श्रीहरि विष्णुजी के सम्मुख दीपक को प्रज्वलित करके धूप को जलाना चाहिए।

◆ततपश्चात भगवान को पुष्प, पुष्पमाला अर्पण करते हुए ऋतुनुसार फल एवं अपने सामर्थ्य के अनुसार लाई या घर की बनी हुई मिठाई का भोग लगाना चाहिए।

◆भगवान श्रीहरि विष्णुजी को तुलसी को विशेषकर अर्पण करना चाहिए, क्योंकि श्रीविष्णुजी को तुलसी बहुत प्रिय होती है। ऐसी मान्यता शास्त्रानुसार बताई गई हैं।

◆भगवान श्रीविष्णुजी की आराधना सायंकाल करनी चाहिए।

◆विष्णुसहस्त्रनाम स्तोत्रं का पाठ भी करना चाहिए।

◆व्रती को अपना व्रत जब छोड़ना होता हैं, तब उनको सात्विक आहार को ग्रहण करते हुए व्रत को पूर्ण करना चाहिए।

◆अन्न का सेवन एकादशी तिथि के दिन ग्रहण करना शास्त्रों में निषेध हैं।

◆चावल को भी एकादशी तिथि के दिन नहीं घर पर बनाना चाहिए एवं नहीं चावल को खाना चाहिए।

◆व्रती को व्रत को छोड़ने के बाद ब्राह्मणों को अपने सामर्थ्यनुसार दान के रूप में फल एवं वस्त्रों आदि और रुपये-पैसों को दक्षिणा के रूप में देना चाहिए।

◆फिर उनसे आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए।


शुभ मुहूर्त तुलसी विवाह का:-देवउठनी एकादशी तिथि के दिन तुलसी विवाह श्रीविष्णुजी के साथ किया जाता हैं। इस तरह इस विवाह के साथ ही समस्त तरह के शुभ मांगलिक कार्यों की शुरुआत होती हैं। 

एकादशी तिथि का समय:-एकादशी तिथि 14 नवम्बर को प्रातःकाल 05 बजकर 47 मिनिट 36 सेकण्ड पर शुरू होकर 15 नवंबर को प्रातःकाल 06 बजकर 39 मिनिट 03 सेकण्ड पर समाप्त होगी।

तुलसी विवाह 15 नवम्बर 2021, सोमवार किया जायेगा।

द्वादशी तिथि का समय:-द्वादशी तिथि 15 नवम्बर, सोमवार को प्रातःकाल 06 बजकर 39 मिनिट 03 सेकण्ड पर शुरू होगी।

द्वादशी तिथि 16 नवम्बर, मंगलवार को प्रातःकाल 08 बजकर 01 मिनिट 11 सेकण्ड पर समाप्त होगी।

 

तुलसी विवाह की प्रक्रिया:-कार्तिक में तुलसी विवाह कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन ही लोग तुलसी विवाह का आयोजन करते हैं। 

◆कार्तिक मास में स्नान करने वाली स्त्रियां इस एकादशी को शालग्रामजी और तुलसी विवाह की तैयारी करके पूर्ण विधि विधान से गाजे-बाजे के साथ तुलसी विवाह करती हैं। 

◆लड़की के विवाह की तरह पूरे नेकाचार किये जाते हैं। 

◆बारात स्वागत, दूल्हा ठाकुर शालग्रामजी के साथ तुलसी का विवाह लड़की की तरह करके साज-साधन के साथ विदाई देते हैं।

◆साधारणतया लोग तुलसीजी के पौधे का गमला, गेरू आदि से सजाकर उसके चारों ओर ईख का मण्डप बनाकर उसके ऊपर ओढ़नी या सुहाग की प्रतीक चुन्दड़ी ओढ़ाते हैं। 

◆गमले को साड़ी में लपेटकर तुलसी को पहनाकर उनका श्रृंगार करते हैं। 

◆गणात्यादि देवताओं का तथा श्री शालिग्रामजी का विधिवत पूजा करके श्री तुलसीजी की षोड़शोपचार पूजा "तुलस्यै नमः" नाम से मंत्र से करते हैं। 

◆ततपश्चात एक नारियल दक्षिणा के साथ टिका के रूप में रखते हैं।

◆भगवान शालग्रामजी की मूर्ति का सिंहासन हाथ में लेकर तुलसीजी की सात परिक्रमा करवाये।

आरती के पश्चात विवाहोत्सव पूर्ण करें। 

◆विवाह के समान ही अन्य कार्य करते हैं तथा विवाह के मंगल गीत भी गाये जाते हैं।

◆विवाह में स्त्रियां गीत व भजन गाती हैं। 


कार्तिक में तुलसी माता की कहानी:-एक डोकरी थी। वह तुलसी, पीपल सींचती थी और कहती कि तुलसी माता सबकी दाता गड़वों दीजे, लड़वों दीजे, खीर खाण्ड का भोजन दीजे, दाल-भात का जीमण दीजे, पाट-पीताम्बर पहनने को दीजे, चटके की चाल दीजे, पटके की मौत दीजे, एकादशी का दिन दीजे। श्रीकृष्ण भगवान की कांध दीजे, बैकुण्ठा का वास दीजे। वह रोज तुलसी माता को यही प्रार्थना करती थी। तुलसी माता सुक-सुक कर दुबली-पतली हो गयी। भगवान ने पूछा कि अभी तो कार्तिक का महीना हैं। माता-बहिनें आपको खूब दूध, दही, पानी से सींचते हैं। जब तुलसी माता ने कहा-एक डोकरी रोज मुझसे इतने वास मांगती हैं। मैं उसको सब कुछ दे दूं, लेकिन आपकी कांध कहां से दूं। भगवान ने कहा-मैं डोकरी को कांध दे दूंगा। आप चिन्ता मत करो। डोकरी को कह देना की आज से सातवें दिन तुम्हारी मौत है। तुलसी वापिस हरि-भरी हो गयी।

तुलसी माता ने डोकरी से कहा कि आज से सातवें दिन तेरी मौत हैं। डोकरी ने घर जाकर बेटे-पौते को कहा कि आज से सातवें दिन मेरी मौत हैं। डोकरी ने स्नान किया। पीताम्बर पहनें, केसर-तिलक किया, गंगा जल लिया और रेणका बिछा कर सो गयी। बहू-बेटा, अस-पड़ौसी कहने लगे कि डोकरी को पहले ही पता चल गया हैं। जो अपना सभी मरण सुधार लिया। सभी डोकरी को उठाने लगे तो वह हील भी नहीं रही थी, किसी के भी कहने से उठ भी नहीं रही थी। सब कहने लगे कि डोकरी इतने पूजा-पाठ करती, नित्य-कर्म, धर्म करती, आज तो इतनी भारी हो गयी कि किसी से भी उठे ही नहीं। इतने में एक दस-बारह साल का लड़का आया और कहा कि यहां क्या हुआ हैं? सब कहने लगे कि डोकरी इतना नेम-धर्म करती, लेकिन आज किसी से भी उठे भी नहीं। 

जब उस लड़के ने कहा कि सब दूर हो जाओ, मुझे उठाकर देखने दो। जब सब लोगों ने कहा कि इतने लोग भी नहीं उठा सके तो तुम तो बालक हो। तुम क्या उठाओगे। मुझे देखने दो, दर्शन करने दो। वह जाकर डोकरी के कान में कहा कि डोकरी गड़वा ले, लड़वा ले, खीर-खाण्ड का भोजन ले, पाट-पीताम्बर पहनने को ले, बैकुण्ठा का वास ले, डोकरी के चिटुड़ी अंगुली लगाई, ऊपर से विमान आया, डोकरी सीधे स्वर्गलोक में गई। लोगों ने देखा कि लड़का तो दिखाई भी नहीं दे रहा हैं। सब कहने लगे कि यह तो भगवान हैं। डोकरी को सीधा बैकुण्ठा में ले गये। बोलो तुलसी माता की जय।।


तुलसी विवाह की दूसरी व्रत कथा:-एक परिवार में ननद-भाभी रहती थी। ननद अभी कुंआरी थी। वह तुलसी की बड़ी सेवा करती थी। लेकिन भाभी को यह सब फूटी आंख भी अच्छा नहीं लगता था। कभी-कभी तो वह गुस्से में कहती कि जब तेरा विवाह होगा तो तुलसी ही खाने को दूंगी तथा तुलसी ही तेरे दहेज में दूंगी। यथा समय जब ननद की शादी हुई तो उसकी भाभी ने बारातियों के सामने तुलसी का गमला तोड़कर रख दिया। भगवान की कृपा से वह गमला स्वादिष्ट व्यंजनों में बदल गया। गहनों के बदले भाभी ने ननद को तुलसी की मंजरी पहना दी तो वह सोने के आभूषणों में बदल गये। ससुराल में उसके दहेज आदि के बारे में बहुत बढ़ाई हुई। इस पर भाभी को बड़ा आश्चर्य हुआ और तुलसीजी की पूजा का महत्त्व उसकी समझ में आ गया। भाभी की एक लड़की थी। वह अपनी लड़की से कहती कि तुम भी तुलसी की सेवा किया करो। तुझे भी तेरी भुआ की तरह फल मिलेगा। 

लेकिन लड़की का मन तुलसी की सेवा में नहीं लगता था। लड़की के विवाह का समय आया तो भाभी ने सोचा कि जैसा व्यवहार मैंने अपनी ननद से किया, उसी कारण उसे इतनी इज्जत मिली। क्यों नहीं मैं भी अपनी लड़की के साथ ऐसा ही व्यवहार करूं। उसने तुलसी का गमला तोड़कर बारातियों के सामने रख दिया। परन्तु इस बार मिट्टी ही मिट्टी रही। मंजरी के पत्ते भी अपने पूर्व रूप में ही रहे तथा जनेऊ जनेऊ ही रहा। सभी बाराती भाभी की बुराई करने लगे। भाई ने सोचा की मैं भी बहिन में मिल जाऊं। भाभी ननद को कभी भी घर नहीं बुलाती थी। भाई ने सोचा कि मैं ही बहिन से मिल आऊं। उसने अपनी इच्छा पत्नी को बतायी तथा सौगात ले जाने के लिए कुछ मांगा। भाभी ने थैले में ज्वार भरकर कहा और तो कुछ नहीं हैं। यही ले जाओ। 

वह दुःखी मन से चल दिया। भला बहिन के घर कोई ज्वार लेकर जाता हैं। बहिन के नगर के पास पहुँच कर उसने एक गौशाला में गाय के सामने ज्वार का थैला उलट दिया। तब गोपालक ने कहा-हे भाई! सोना-मोती गाय के आगे क्यों डाल रहे हो? भाई ने उसको सारी बात बता दी तथा सोना-मोती लेकर प्रसन्न मन से बहिन के घर गया। बहिन बड़ी प्रसन्न हुई। तुलसीजी की पूजा का जैसा फल बहिन को मिला, वैसा ही सभी को मिलना।


तुलसीजी एवं शालिग्रामजी के विवाह का महत्व:-तुलसी के साथ श्रीविष्णुजी के विवाह का बहुत महत्व हिन्दू धर्म में बताया गया है। 

◆हिन्दू धर्म शास्त्र में श्रीविष्णुजी के साथ तुलसी का विवाह विधिपूर्वक करने पर भगवान श्रीविष्णुजी का आशीर्वाद मिल जाता है और उनकी अनुकृपा मिल जाती हैं।

◆शास्त्रों के अवधारणायों में तुलसी विवाह को उस तरह करते हैं, जिस तरह एक पिता अपनी पुत्री का विवाह करता हैं, उसी तरह ही समस्त वैवाहिक कार्यक्रम तुलसीजी के विवाह में सम्पन्न किये जाते हैं। 

◆तुलसीजी का विवाह जो भी दम्पत्ति करते है, उनको कन्यादान की तरह पुण्य फल की प्राप्ति होती हैं।

◆जो भी दम्पत्ति तुलसी माता एवं शालिग्रामजी का विवाह करवाते है, तो उन दम्पति का दाम्पत्य जीवन खुशहाली एवं शांतिपूर्वक व्यतीत होता है।

◆जिन औरतों को अपने दाम्पत्य जीवन में खुशहाली एवं सुख-समृद्धि को पाना होता हैं, वे औरतें इस विवाह को पूर्णविधि-विधान से समस्त विवाह के कार्यक्रम के साथ सम्पन्न करती हैं।