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Sunday, July 31, 2022

July 31, 2022

श्री गीता जी की आरती अर्थ सहित(Shri Gita ji ki Aarti With Meaning)

                    Shri Gita ji ki Aarti With Meaning



श्री गीता जी की आरती अर्थ सहित(Shri Gita ji ki Aarti With Meaning):-बहुत समय पूर्व जब महाभारत का समय था उस समय पांडवों और कौरवों के बीच में युद्ध का बिगुल बज गया था। इस तरह एक पाण्डव और दूसरी तरफ उनके सगे रिश्तेदारों के बीच में युद्ध होना था। इस तरह युद्ध का समय नजदीक आ गया था। युद्ध का शंख नाद हो गया था। एक तरफ युद्ध में पाण्डव अपने तरफ से कौरवों भाइयों की सेना पर अपने अस्त्र-शस्त्रों का प्रहार कर रहे थे। उसी तरह ही कौरवों भी अपने भाइयों के विरुद्ध अस्त्र-शस्त्रों से प्रहार कर रहे थे। इस तरह रण में भयंकर ताण्डव हो रहा था। जब उस युद्ध में पांडवों में से अर्जुन की बारी आई उसके सामने उसके भाइयों की और उनकी सेना की मृत्यु हो रही थी तो अर्जुन ने अस्त्र-शस्त्रों को त्याग दिया था। इस तरह अपने अस्त्र-शस्त्र को त्याग देने पर भगवान श्रीकृष्णजी ने देखा तो वे अर्जुन को समझाने लगे। तब अर्जुन ने कहा कि हे वासुदेवजी आप तो जानते है कि यह सब मेरे कुटुम्ब के लोग है इनके खिलाफ मैं कैसे हथियार उठा सकता हूँ, यह मेरे से नहीं होगा तब श्रीकृष्ण जी उनको समझाया अपना विराट रूप को अर्जुन के सामने प्रकट किया था। उस समय श्रीकृष्णजी जो उपदेश दिए थे, उन उपदेशों से गीताजी की उत्पात्ति हुई थी। उन्होंने कहा मनुष्य को कर्म को करते रहना चाहिए, फल की इच्छा नहीं रखनी चाहिए। इस तरह से गीताजी के संदेश मनुष्य के लिए दिए थे जिनके फलस्वरूप अर्जुन ने युद्ध करने के लिए तैयार हुआ था। इसलिए इस पवित्र ग्रन्थ के जो उपदेश है उनके अनुसार मनुष्य को गीताजी की आरती नियमित रूप से करते रहना चाहिए। 



श्री गीता जी आरती का अर्थ:-श्री गीताजी की आरती को करने से पूर्व मनुष्य को उसको भावों को पहले जानकारी लेनी चाहिए, उसके बाद ही आरती को करना चाहिए। जो इस तरह है:


करो आरती गीता जी की।


अर्थात्:-मनुष्य को गीताजी की आरती को करते रहना चाहिए। अपने जीवन की मुक्ति प्राप्त करनी है तो नियमित रूप से गीता जी की आरती करके अपना उद्धार करना चाहिए।


जग की तारन हार त्रिवेणी,

स्वर्गधाम की सुगम नसेनी।


अर्थात्:-गीताजी के उपदेश से ज्ञान मिलता हैं कि इस समस्त जगत का पालन-पोषण और उसको सुचारू रूप चलाने वाली होती है। मुक्तिधाम अर्थात् स्वर्गलोक को सुगमता से प्राप्त करने वाली त्रिवेणी की आरती को नियमित करना चाहिए।


अपरमार शक्ति की देनी,

जय हो सदा पुनिता की।।


अर्थात्:-जिनमें बहुत ही ज्यादा शक्तियों का संचार होता है, जिनमें बहुत ही शक्तियों का भंडार भरा हुआ है, उन पुनिता की हमेशा जय हो।


ज्ञानदीप की दिव्य ज्योति मां,

सकल लगत की तुम विभूति मां।


अर्थात्:-हे विभूति माता! आप ज्ञान की देवी है आपमें बहुत ही ज्ञान की उज्ज्वल ज्योति भरी हुई है, जो आप के ज्ञान का उपयोग करता हैं तो आप उसकी नैया को पार लगा देती हो।


महा निशातीत प्रभा पूर्णिमा,

प्रबल शक्ति भय गीता की।।


अर्थात्:-हे माता गीता!आप तो बहुत आभा युक्त हो जिस तरह पूर्णिमा की चांदनी में आभा होती है उसी तरह ही आप चारों तरफ प्रकाश को फैलाने वाली हो, आप तो प्रबल शक्ति वाली होकर डर को भगाने वाली ही।


अर्जुन की तुम सदा दुलारी,

सखा कृष्ण की प्राण प्यारी।


अर्थात्:-हे माता गीता! आप तो अर्जुन का हमेशा लाड़ अर्थात् उंसके प्रति स्नेह रखने वाली हो, अपने मित्र कृष्ण को बहुत ही प्राणों से प्यारी हो।


षोडश कला पूर्ण विस्तारी,

छाया नम्र विनिताकी।।


अर्थात्:-हे माता गीता! आप तो षोडश कलाओं से परिपूर्ण हो, आप तो बहुत ही नम्र स्वभाव वाली हो, आपकी छाया मात्र से अगले को ठंडाई की प्राप्ति होती हैं।


श्याम का हित करने वाली, 

मन का सब मैल हरने वाली।


अर्थात्:-हे माता गीता! आप तो सबका भला करने वाली हो, सबके पापों को हरण करके उनको एकदम स्वच्छ करने वाली हो।


नव उमंग नित भरने वाली,

परम प्रेमिका कान्हा की।।


अर्थात्:-हे माता गीता! आप तो सबको नया उत्साह देने वाली और निराश में जोश को देने वाली हो। आप तो कान्हा की बहुत ही प्यारी प्रीमिका हो।


करो आरती गीता जी की।।


अर्थात्:-हे माता गीता! जो आपकी आरती करता है, उसकी भी जय हो और आपकी भी जय हो।


।।इति श्री गीताजी की आरती।।



।।अथ श्री गीताजी की आरती।।

करो आरती गीता जी की।


जग की तारन हार त्रिवेणी,


स्वर्गधाम की सुगम नसेनी।


करो आरती गीता जी की।।


अपरमार शक्ति की देनी,


जय हो सदा पुनिता की।।


करो आरती गीता जी की।।


ज्ञानदीप की दिव्य ज्योति मां,


सकल लगत की तुम विभूति मां।


करो आरती गीता जी की।।


महा निशातीत प्रभा पूर्णिमा,


प्रबल शक्ति भय गीता की।।


करो आरती गीता जी की।।


अर्जुन की तुम सदा दुलारी,


सखा कृष्ण की प्राण प्यारी।।


करो आरती गीता जी की।।


षोडश कला पूर्ण विस्तारी,


छाया नम्र विनिताकी।।


करो आरती गीता जी की।।


श्याम का हित करने वाली, 


मन का सब मैल हरने वाली।।


करो आरती गीता जी की।।


नव उमंग नित भरने वाली,


परम प्रेमिका कान्हा की।।


करो आरती गीता जी की।।


।।इति श्री गीताजी की आरती।।


।।जय बोलो गीताजी की जय हो।।


Wednesday, August 4, 2021

August 04, 2021

श्री रामचन्द्रजी की आरती अर्थ सहित(Aarti of Shri Ramchandraji With Meaning)




श्री रामचन्द्रजी की आरती अर्थ सहित(Aarti of Shri Ramchandraji With Meaning):-भगवान राम जी श्री विष्णुजी के अवतार के रूप में पृथ्वीलोक पर जन्म लिया था। राजा दशरथजी एवं कौशल्या माता के घर पर जन्म लिया था। जो कि पृथ्वीलोक पर बढ़ रहे दैत्यों के अत्याचार से मुक्त करने एवं मानव जाति का उद्धार करने के लिए लिया था। 

भगवान राम स्वयं ईश्वर का रूप होते हुए भी मानव जाति में रहते हुए अपने मर्यादा का ध्यान रखा था। 

भगवान राम के द्वारा मर्यादा में रहते हुए समस्त मानव जाति को मर्यादा का पाठ भी पढ़ाया। मर्यादा में रहते हुए उन्होंने अपने भुजबल से दैत्यों का संहार किया और इस पृथ्वीलोक, आकाशलोक और पाताललोक से दैत्यों से मुक्त करवाया था। 


भगवान राम जी की आरती में उनके द्वारा अपनी मर्यादा में रहते हुए किये हुए कार्यों का आखयान मिलता है जिससे मनुष्य जाति के लोगों को सीख मिल सके कि अच्छे कर्मों को करके सभी तरह की मुसीबत को अपने कर्म फल से समाधान किया जा सकता हैं और अपने जीवन को एक सही दिशा की ओर ले जाया जा सकता हैं।



आरती का भावार्थ्:-भगवान रामजी की आरती को पांच रूपो में मानते हुए ही जीवनकाल में करते रहना चाहिए। जो व्यक्ति भगवान रामजी की आरती को उनके पांच स्वरूपों के रूप में करता हैं उस मनुष्य को अपने जीवनकाल के अंत में विष्णुलोक की प्राप्ति हो जाती हैं और उसका मोह-माया से मुक्ति मिल जाती हैं जिससे उसको बार-बार जन्म लेने एवं मरण के भय से मुक्ति मिल कर अंत में देवधाम मिल जाता हैं। जिससे भगवान के चरणों की सेवा का अवसर प्राप्त होता हैं।भगवान रामजी की आरती के पांच चरणों को बताया गया है, उन पांच चरणों से भगवान की आरती करनी चाहिए। जो कि इस तरह हैं-


पहली आरती पुष्पन की माला।

काली नाग नाथ लाये गोपाला।।

प्रथम चरण:-प्रथम चरण में भगवान रामजी की आरती फूलों की माला से करनी चाहिए।  फूलों की मालाओं से करने पर भगवान रामजी खुश होते हैं। जब भगवान श्री कृष्णजी ने कालिया नाग से सरोवर को मुक्त करवाया था और उसके फन पर विराजमान होकर सरोवर को उसके विष मुक्त किया था। इसके साथ ही फूलों की मालाओं से काले नाग के रूप में शेषनाग भी भगवान की आराधना फूलो को लाकर करते हैं।


दूसरी आरती देवकी नन्दन।

सन्त उबारन कंस निकन्दन।।

दूसरे चरण:-दूसरी चरण में आरती माता देवकी के पुत्र के रूप में करनी चाहिए। जिस तरह भगवान कृष्णजी ने सन्तों की रक्षा दैत्यराज कंस से की थी। उसी तरह मनुष्य को उनके पद चिन्हों पर चलते हुए समस्त मानव जाति को नहीं सताना चाहिए। उस रूप को मानकर श्रीरामजी की आरती करनी चाहिए।


तीसरी आरती त्रिभुवन मन मोहे।

रत्न सिंहासन सीता रामजी सोहे।।

तीसरे चरण:-तीसरे चरण में आरती में त्रिभुन अर्थात् तीनो लोक के स्वामी के रूप में करना चाहिए। जिनमें भगवान का गुणगान करते हुए अपने मन को भगवान को समर्पित करत हुए करना चाहिए। भगवान रामजी को माता सीताजी के साथ रत्नों से जड़ित सिंहासन पर अर्थात् अपने हृदय रूपी मन में बिठाकर करनी चाहिए।


चौथी आरती चहुं युग पूजा।

देव निरंजन स्वामी और न दूजा।।

चतुर्थ चरण:-चतुर्थ चरण की पूजा में भगवान चारों युग में मानकर करनी चाहिए। जिनमें भगवान श्रीराम जी को उनको ही सर्वोपरि मानते हुए करने चाहिए उनके अलावा कोई भी देव नहीं हैं ऐसा मानकर उनकी आरती करनी चाहिए।


पांचवी आरती राम को भावे।

राम जी की यश नाम देव जी गावे।।

पंचम चरण:-पंचम चरण में भगवान रामजी को समस्त जगह पर मानते हुए करनी चाहिए, जो कोई भी मनुष्य भगवान रामजी को समस्त जगह पर मानकर आरती को करता हैं उस आरती करने वाले को भगवान श्रीरामजी की अनुकृपा प्राप्ति हो जाती हैं। भगवान रामजी के यशोगान को समस्त देवगण भी गुणगान करते हैं। इसलिए मनुष्य को भगवान श्री पुरुषोत्तम रामजी की आरती को पांच चरणों में करना चाहिए।


।।अथ श्री रामचन्द्रजी की आरती।।

आरती कीजै रामचन्द्र जी की।

हरे हरि दुष्ट दलन सीतापति जी की।।

आरती कीजै रामचन्द्र जी की।

हरे हरि दुष्ट दलन सीतापति जी की।।

पहली आरती पुष्पन की माला।

काली नाग नाथ लाये गोपाला।।

आरती कीजै रामचन्द्र जी की।

हरे हरि दुष्ट दलन सीतापति जी की।।

दूसरी आरती देवकी नन्दन।

सन्त उबारन कंस निकन्दन।।

आरती कीजै रामचन्द्र जी की।

हरे हरि दुष्ट दलन सीतापति जी की।।

तीसरी आरती त्रिभुवन मन मोहे।

रत्न सिंहासन सीता रामजी सोहे।।

आरती कीजै रामचन्द्र जी की।

हरे हरि दुष्ट दलन सीतापति जी की।।

चौथी आरती चहुं युग पूजा।

देव निरंजन स्वामी और न दूजा।।

आरती कीजै रामचन्द्र जी की।

हरे हरि दुष्ट दलन सीतापति जी की।।

पांचवी आरती राम को भावे।

राम जी की यश नाम देव जी गावे।।

आरती कीजै रामचन्द्र जी की।

हरे हरि दुष्ट दलन सीतापति जी की।।

।।इति श्री रामचन्द्रजी की आरती।।

।।जय बोलो सियावर रामचन्द्रजी की जय।।

।।जय बोलो पुरुषोत्तम दशरथनन्दन की जय।।


Tuesday, August 3, 2021

August 03, 2021

शीतला माता की आरती(Sheetla Mata ki Aarti)

                 


श्री शीतला माता की आरती(Shri Sheetla Mata ki Aarti):-माता शीतला को चेचक की देवी के रूप में जाना जाता हैं। चेचक एक तरह का रोग होता हैं, जिसमें शरीर पर फलोले हो जाते है, उन फफोले में पानी की तरह द्रव भरा रहता हैं, उन फलोलो को फोड़ने पर शरीर पर बहुत ही तीव्र जलन होती हैं एवं शरीर ताप से पीड़ित हो जाता हैं। शरीर पर काले धब्बे हो जाते है। इस तरह की बीमारी से बचने के लिए मनुष्य को माता शीतला की अरदास करनी चाहिए, जिनमें माता शीतला की आरती विशेषरूप से करना चाहिए, ◆आरती करने से माता शीतला की कृपा दृष्टि बनी रहती हैं और आशीर्वाद के रूप में चेचक बीमारी से मुक्ति मिल जाती हैं।

◆माता शीतला की आरती करने से मनुष्य को सन्तति से  सम्बंधित किसी तरह की परेशानी होने पर मुक्ति मिल जाती हैं सन्तति की प्राप्ति होती हैं।


◆मनुष्य को ज्वर की तरह गर्मी के रोगों से छुटकारा मिल जाता हैं।

◆मनुष्य को शीतलता की अनुभूति होती है। इसलिए मनुष्य को अपने घर के सदस्यों की चेचक जैसी बीमारियों से रक्षा के लिए माता शीतला की आरती करते रहना चाहिए।

◆शीतला माता की आरती करते रहने पर सभी तरह के कष्टों से मुक्ति मिल जाती हैं।

◆शीतला माता का गुणगान करने मनुष्य की गरीबी मिट जाती हैं और धन-धान्य की प्राप्ति होती हैं।

◆शीतला माता की स्तुति करते रहने से जिन मनुष्य को कोढ़ का रोग होवा हुआ हैं उनका कोढ़ रोग ठीक हो जाता हैं।

◆जो औरते बांझ रोग से पीड़ित होती हैं उनको सन्तान प्राप्ति का कोई उपाय नहीं दिखाई देने पर उनको माता शीतला की शरण में जाना चाहिए और उनकी स्तुति व आरती को करते रहने पर निश्चित ही सन्तान की प्राप्ति हो जाती हैं।


।।अथ श्री शीतला माता जी की आरती।।

जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता।

आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता।।

जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता।

आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता।।

रत्न सिहांसन शोभित, श्वेत छत्र भ्राता।

ऋषिसिद्धि चंवर डोलावें, जगमग छवि छाता।।

जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता।

आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता।।

विष्णु सेवत ठाढ़े, सेवें शिव धाता।

वेद पुराण बरणत पार नहीं पाता।।

जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता।

आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता।।

इंद्र मृदंग बजावत चन्द्र वीणा हाथा।

सूरज ताल बजाते नारद मुनि गाता।।

जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता।

आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता।।

घंटा शंख शहनाई बाजै मन भाता। 

करै भक्त जन आरती लखि लखि हरहाता।।

जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता।

आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता।।

ब्रह्म रूप वरदानी तुहि तीन काल ज्ञाता।

भक्तन को सुख देनौ मातु पिता भ्राता।।

जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता।

आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता।।

जो भी ध्यान लगावैं प्रेम भक्ति लाता।

सकल मनोरथ पावे भवनिधि तर जाता।।

जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता।

आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता।।

रोगन से जो पीड़ित कोई शरण तेरी आता।

कोढ़ी पावे निर्मल काया अन्ध नेत्र पाता।।

जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता।

आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता।।

बांझ पुत्र को पावे दारिद कट जाता।

ताको भजै जो नाहीं सिर धुनि पछिताता।।

जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता।

आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता।।

शीतल करती जननी तुहि है जग त्राता।

उत्पत्ति व्याधि विनाशत तू सब की घाता।।

जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता।

आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता।।

दास विचित्र कर जोड़े सुन मेरी माता।

भक्ति आपनी दीजै और न कुछ भाता।।

जय शीतला माता, मैया जय शीतला माता।

आदि ज्योति महारानी सब फल की दाता।।

।।इति श्री शीतला माता की आरती।।

।।जय बोलो गदर्भवाहिनी की जय।।

।।जय बोलो महामाया शीतले की जय।।



Saturday, July 31, 2021

July 31, 2021

आरती श्री साईं बाबा की(Aarti of Shri Sai Baba)

                  


आरती श्री साईं बाबा की(Aarti of Shri Sai Baba):-साईं बाबा के बारे बहुत कुछ वर्णन मिलता है, कोई इनको हिन्दू धर्म का मानते है, तो कोई इनको मुस्लिम धर्म का मानते है। साईं बाबा ने सभी धर्म के लोगो को एक समान मानते थे। वे न तो धर्म एवं जात-पात में विश्वास करते थे। उनका कहना था सभी जीवों को एक ईश्वर या अल्लाह ने ही बनाया हैं। सबका पालनहार एक ही है। उन्होंने अपने जीवनकाल में बहुत सारी ज्ञान बातों से मनुष्य को जाग्रत किया था। उन्होंने अपने चमत्कारों से सबको आश्चर्यचकित भी किया था। उन्होंने हिंदुओं एवं मुस्लिम लोगों को एक साथ रखना प्रयत्न भी किया था। उन्होंने ईश्वर को एक मानते हुए उनकी पूजा करने को कहा था। आज के युग में उनको ईश्वर की पदवी दी गई हैं। जिन व्यक्ति को साईं बाबा पर पूर्ण विश्वास होता हैं वे उनको अपना इष्ट मानते हुए उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। जो व्यक्ति नियमित रूप उनको खुश करने के लिए उनकी आरती करता है उन पर साईं बाबा अपनी अनुकृपा की बारिश को करके उस मनुष्य का जीवन खुशहाली से भर देते है। इसलिए मैंने व्यक्तियों को उन पर सम्पूर्ण आस्था के साथ उन विश्वास रखते उनकी आराधना के रूप में आरती करते रहना चाहिए।



       ।।अथ आरती श्री साईं बाबा की।।


आरती श्री साईं गुरुवर की, परमानन्द सदा सुरवर की।

जा की कृपा विपुल सुखकारी, दुःख, शोक, संकट, भयकारी।

आरती श्री साईं गुरुवर की, परमानन्द सदा सुरवर की।

शिरडी में अवतार रचाया, चमत्कार से तत्त्व दिखाया।

आरती श्री साईं गुरुवर की, परमानन्द सदा सुरवर की।

कितने भक्त चरण पर आये, वे सुख शान्ति चिरंतन पाये।

आरती श्री साईं गुरुवर की, परमानन्द सदा सुरवर की।

भाव धरै जो मन में जैसा, पावत अनुभव वो ही वैसा।

आरती श्री साईं गुरुवर की, परमानन्द सदा सुरवर की।

गुरु की उदी लगावे तान को, समाधान लाभत उस मन को।

आरती श्री साईं गुरुवर की, परमानन्द सदा सुरवर की।

साईं नाम सदजो गावे, सो फल जग में शाश्वत पावे।

आरती श्री साईं गुरुवर की, परमानन्द सदा सुरवर की।

गुरूवासर करि पूजा-सेवा, उस पर कृपा करत गुरुदेवा।

आरती श्री साईं गुरुवर की, परमानन्द सदा सुरवर की।

राम, कृष्ण, हनुमान रूप में, दे दर्शन, जानत जो मन में।

आरती श्री साईं गुरुवर की, परमानन्द सदा सुरवर की।

विविध धर्म के सेवक आते, दर्शन इच्छित फल पावे।

आरती श्री साईं गुरुवर की, परमानन्द सदा सुरवर की।

जै बोलो साईं बाबा की, जै बोलो अवधूत गुरु की।

आरती श्री साईं गुरुवर की, परमानन्द सदा सुरवर की।

'साईंदास' आरती को गावै, घर में बसि सुख, मंगल पावे।

आरती श्री साईं गुरुवर की, परमानन्द सदा सुरवर की।


           ।।इति श्री साईं बाबा आरती।।

        ।।जय बोलो साईं बाबा की जय हो।।

        ।।जय बोलो साईं पीर की जय हो।।

।।जसाईं पीरहो।

        

       ।।आरती श्री साईं बाबा की।।

आरती साईंबाबा।

सौख्यदातार जीवा। चरणरजातलीं।

द्यावा दासां विसावां, भक्तां विसावां।।

आ.घ्रु.।। जालुनियां

अनंग। स्वस्वरुप राहे दंग।

मुमुक्षुजनां दावी। निज डोलां श्रीरंग

आ●।।१।।

जया मनीं जैसा भाव। तयातैसां अनुभव।

दाविसी दयाघना। ऐसी तुझी ही माव।।

आ●।।२।।

तुमचें नाम ध्यातां हरे संसृतिव्यथा।

अगाध तव करणी। मार्ग दाविसी अनाथा।।

आ●।।३।।

कलियुगीं अवतार। सगुणब्रह्म साचार।

अवतीर्ण झालासे। स्वामी दत्त दिगंबर द●

आ●।।४।। 

आठां दिवसां गुरूवारीं। भक्त करिती वारी।

प्रभुपद पहावया। भयभय निवारी 

आ●।।५।।

माझा निजद्रव्यठेवा। तव चरणरजसेवा मागर्णे

हेंचि आतां। तुम्हां देवाधिदेवा 

आ●।।६।।

इच्छित दीन चातक। निर्मल तोयसूख।

पाजावें माधवा या। साभाल आपुली भाक।।

आ●।।७।।

ऊँ साईं श्री साईं जय जय साईं।

ऊँ साईं श्री साईं जय जय साईं।।


    ।।इति श्री साईं बाबा आरती।।

    ।।जय बोलो साईं बाबा की जय हो।।

     ।।जय बोलो साईं पीर की जय हो।।