बटुक भैरव स्तोत्र अर्थ सहित और महत्त्व (Batuk Bhairav Stotra with meaning and importance)
बटुक भैरव स्तोत्र अर्थ सहित और महत्त्व (Batuk Bhairav Stotra with meaning and importance):-श्रीबटुक भैरवजी को ही शिवजी के रूप में समस्त जगत में जाना जाता हैं, श्रीबटुक भैरवजी की पूजा-अर्चना एवं गुणगान करके भगवान शंकरजी को खुश किया जा सकता हैं। इसलिए मनुष्य को नियमित रूप से श्रीबटुक भैरव स्तोत्रं का वांचन करना चाहिए, जिससे भगवान शिवजी का आशीर्वाद श्रीबटुक भैरवजी की पूजा के रूप में मिल सके।
भैरव का अर्थ:-जो जीवनकाल में समस्त तरह के डरावनें डर से मुक्त कराने के कारण भैरव कहलाते हैं।
वट्यते वेष्टयते सर्व जगत् प्रलयेअनेनेति वटुकः'
अर्थात्:-जब समस्त संसार को चारों तरफ से घेरते हुए समस्त तरह से संसार को नाश करने के कारण अथवा सभी जगहों पर अपनी नजर दृष्टि रखते हुए अपना वर्चस्व से युक्त होने से भैरव 'बटुक' कहलाते हैं।
'बटून् ब्रह्मचारिणः कार्यमुपदिशनीति बटुको गुरूरूपः'
अर्थात:-ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए एवं सात्विक जीवन को जीने से सम्बंधित ज्ञान देने वाले गुरु के रूप में होने से भैरव 'बटुक' कहे जाते हैं।
श्रीबटुक भैरव स्तोत्रम् अर्थ सहित:-मनुष्य को श्रीबटुक भैरव स्तोत्रम् का वांचन करने से पूर्व निम्नलिखित तरीके से पूजा करते हुए इस स्तोत्रं का वांचन करना चाहिए, जो इस तरह हैं- अर्थ सहित
श्रीबटुक भैरव ध्यान:-श्रीबटुक भैरव स्तोत्रं के वांचन से पूर्व श्रीबटुक भैरवजी को मन में मन रखते हुए उनको आंखे मूंदकर उनका ध्यान करना चाहिए।
वन्दे बालं स्फटिक-सदृशम्, कुन्तलोल्लासि-वक्त्रम्।
दिव्याकल्पैर्नव-मणि-मयैः, किंकिणी-नूपुराढ्यैः।।
दीप्ताकारं विशद-वदनं, सुप्रसन्नं त्रि-नेत्रम्।
हस्ताब्जाभ्यां बटुकमनिशं, शूल-दण्डौ दधानम्।।
श्रीबटुक भैरव स्तोत्रं से पूर्व भैरव मानस पूजन:-श्रीबटुक भैरव स्तोत्रं के पूर्व भैरवजी का मानस पूजन करना चाहिए, जो निम्नलिखित प्रकार से करनी चाहिए।
ऊँ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीतये समर्पयामि नमः।
ऊँ हं आकाश-तत्त्वात्मक पुष्पं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीतये समर्पयामि नमः।
ऊँ यं वायु-तत्त्वात्मक धूपं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीतये समर्पयामि नमः।
ऊँ रं अग्नि-तत्त्वात्मक दीपं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीतये समर्पयामि नमः।
ऊँ सं सर्व-तत्त्वात्मक ताम्बूलं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीतये समर्पयामि नमः।
बटुक भैरव मूल स्तोत्रं:-बटुक भैरव मूल स्तोत्रं का वांचन करने से पहले बटुक भैरव के मूल स्तोत्रं के श्लोकों में वर्णित मन्त्रों के अर्थ को जानना चाहिए, जिससे स्तोत्रं में जो वर्णित देव के बारे में बताया हैं, उनके स्वरूप एवं गुणों के बारे में जानकारी मिल सके। बटुक भैरव के मूल स्तोत्रं का अर्थ इस तरह हैं-
ऊँ भैरवो भूत-नाथश्च, भूतात्मा भूत-भावनः।
क्षेत्रज्ञः क्षेत्र-पालश्च, क्षेत्रदः क्षत्रियो विराट्।।
श्मशान-वासी मासांशी, खर्पराशी स्मरान्त-कृत्।
रक्तपः पानपः सिद्धः, सिद्धिदः सिद्धि-सेवितः।।
कंकालः कालः शमनः, कला-काष्ठा-तनुः कविः।
त्रि-नेत्रो बहु-नेत्रश्च, तथा पिंगल-लोचनः।।
शूलपाणि खड्गपाणि, कंकाली धूम्र-लोचनः।
अभीरुर्भैरवीनाथो, भूतपो योगिनीपतिः।
धनदोsधनहारी च, धनवान् प्रतिभागवान्।
नागहारो नागकेशो, व्योमकेशः कपालभृत्।।
कालः कपालमाली च, कमनीयः कलानिधिः।
त्रिनेत्रो ज्वलन्नेत्रस्त्रिशिखी च त्रिलोकभृत्।।
त्रिवृत्ततनयो डिम्भः शान्तः शान्तजनप्रिय।
बटुको बटुवेषश्च, खट्वांगवरधारकः।।
भुताध्यक्षः पशुपतिर्भिक्षुकः परिचारकः।
धूर्तो दिगम्बरः शौरीर्हरिणः पाण्डुलोचनः।
प्रशान्तः शान्तिदः शुद्धः शंकरप्रियबान्धवः।।
अष्टमूर्तिर्निधीशश्च, ज्ञानचक्षुस्तपोमयः।
अष्टाधारः षडाधारः, सर्पयुक्तः शिखीसखः।।
भूधरो भूधराधीशो, भूपतिर्भुधरात्मजः।।
कपालधारी मुण्डी च, नागयज्ञोपवीतवान्।
जृम्भणो मोहनः स्तम्भ, मारणः क्षोभणस्तथा।।
शुद्द नीलाञ्जनप्रख्यदेहः मुण्डविभूषणः।
बलिभुग्बलिभुङ्नाथो, बालोबालपराक्रम।।
सर्वापत्-तारणो दुर्गों, दुष्टभूतनिषेवितः।
कामीकलानिधिः कान्त, कामिनी वशकृद्वशी।।
जगद्-रक्षाकरोsनन्तो, मायामन्त्रौषधीमयः।
सर्वसिद्धिप्रदो वैद्य, प्रभविष्णुरितीव हि।।
फलश्रुति का अर्थ:-फलश्रुति में समस्य तरह के रचित श्लोक या किसी भी तरह के स्तोत्रम् के बारे में मिलने वाले नतीजों को बताया जाता हैं, जिससे मनुष्य उन स्तोत्रम् को पाठन करके उन नतीजों को प्राप्त कर सके। फलश्रुति का अर्थ सत्कर्म विशेष का फल देने का भाव होता हैं।
अष्टोत्तरशतं नाम्नां, भैरवस्य महात्मनः।
मया ते कथितं देवि, रहस्य सर्वकामदम्।।
अर्थात्:-
य इदं पठते स्तोत्रं, नामाष्टशतमुत्तमम्।
न तस्य दुरितं किंञ्चिन्न च भूतभयं तथा।
न शत्रुभ्यो भयं किञ्चित्, प्राप्नुयान्मानवः क्वचिद्।
पातकेभ्यो भयं नैव, पठेत् स्तोत्रमतः सुधीः।।
मारीभये राजभये, तथा चौराग्निजे भये।
औत्पातिके भये चैव, तथा दुःस्वप्नजे भये।।
बन्धने च महाघोरे, पठेत् स्तोत्रमनन्यधीः।
सर्वं प्रशममायाति, भयं भैरवकीर्तनात।।
क्षमा प्रार्थना:-देवी-देवता के मन्त्रों के उच्चारण में किसी भी तरह के उच्चारण में भूल के लिए क्षमा करनी चाहिए, जिससे मन्त्रों का फल मिल सके, इसे ही क्षमा प्रार्थना कहते हैं।
आवाहन न जानामि, न जानामि विसर्जनम्।
पूजाकर्म न जानामि, क्षमस्व परमेश्वर।।
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं, भक्तिहीनं सुरेश्वर।
मया यत्-पूजितं देव परिपूर्णं तदस्तु में।
अर्थात्:-हे इष्टदेव या इष्टदेवी! मैं न तो आपको मन्त्रों के द्वारा बुलाना जानता हूँ, न तो ही मैं आपको पूजा आदि के बाद आपकी मूर्ति को जलाशय में प्रवाहित करना जानता हूँ। हे परमेश्वर! मैं आपकी विधिवत पूजा-अर्चना नहीं जानता हूँ, परमेश्वर आप मुझे क्षमा करें।
हे सुरेश्वर! वैदिक रीति से करने वाले कार्यों के मन्त्रों के रहित, नित्य कर्म नियम और विधि से होने वाले कार्यों से रहित और आस्था से रहित हूँ। हे देव! मैं जिस तरह से आपकी भक्ति के रूप में पूजा-उपासना करता हूँ आप उस पूजा को पूर्ण मानते हुए, मेरी पूजा को स्वीकार करते हुए मेरी पूजा को पूर्ण कीजिए।
बटुक भैरव स्तोत्रं वांचन करने की विधि (Method of reciting Batuk Bhairav Stotra):-बटुक भैरव स्तोत्रं वांचन को करते समय विधिपूर्वक भैरवजी को अपने मन मन्दिर में स्थापित करते हुए स्तोत्रं का वांचन करना चाहिए, बटुक भैरव स्तोत्रं के वांचन की इस तरह हैं-
◆लकड़ी का एक बाजोट लेकर उसको शुद्ध करके स्वच्छ काले रंग के कपड़े को उस पर बिछाना चाहिए।
◆शुभ अवसरों पर पूजन के लिए आटा आदि से बनाया गया छोटा चौकोर स्थान जहाँ शादियों और अन्य खुशी के अवसरों पर मिठाई रखी जाती है जो पूजा के बाद लोगों में बाँटी जाती हैं। या जमीन पर चित्रांकन करना या बनाना को चौक पूरें करना कहते हैं।
◆फिर एक सरसों के तेल के दिये में बाती डालकर उसको प्रज्वलित करना चाहिए।
◆फिर कालभैरवजी को पूजा में बुलाने के लिए हाथ में हल्दी से मिश्रित अक्षत को उनको मन ही मन में याद करते हुए उनका आह्वान करना चाहिए।
◆इक्कीस बार ॐ भैरवायः नमः मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।
◆फिर उनका षोडशोपचार कर्म से पूजन करना चाहिए।
◆स्नान, अर्ध्य के लिए जल को अर्पण करना, चन्दन, फूल, अगरबत्ती, फल, नीबू, लौंग, उड़द, मिठाई, धूप, दिप आदि को अर्पण करना चाहिए।
◆सायंकाल के समय मनुष्य को साबुत माष या धान्यवीर से बड़े एवं ग्यारहा कचौरी बनानी चाहिए।
◆फिर उनके साथ में रक्तवर्ण के पुष्पों के साथ, रक्ताभ वर्ण की बनी हुई मिठाई भी होनी चाहिए।
◆ततपश्चात एक मिट्टी का बना हुआ कुल्हड़ लेकर उसमें जल को भरें एवं एक हरे रंग या पिले रंग का अम्लसार आदि को साथ लेना चाहिए।
◆फिर सायंकाल के समय भैरवजी के मन्दिर जाकर "ऊँ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ऊँ" मंत्रों का उच्चारण करते हुए पूजन में उपर्युक्त समस्त वस्तुओं को अर्पण करना चाहिए।
◆फिर अपने घर आते समय पीछे की तरफ नहीं देखे।
श्री बटुक भैरव स्तोत्रं के वांचन से होने वाले महत्त्व:-श्रीबटुक भैरव स्तोत्रम् का वांचन मनुष्य हमेशा करना चाहिए, जिससे मनुष्य को स्तोत्रम् के वांचन से निम्नलिखित लाभ मिल सके।
उम्र में बढ़ोतरी हेतु:-जो मनुष्य के द्वारा हमेशा श्री बटुक भैरव स्तोत्रम् का वांचन करने से बिना पूर्ण उम्र के भोगने से पहले होने वाली मृत्यु से रक्षा होती हैं।
व्याधियों से मुक्ति पाने के लिए:-जिन मनुष्य का शरीर बीमारियों के द्वारा घिरे रहने पर इलाज करने पर भी ठीक नहीं हो रही बीमारियों से मुक्ति का उपाय यह स्तोत्रं हैं।
जन्मकुंडली में ग्रहों के बुरे हालात में होने से मुक्ति हेतु:-जन्मकुंडली या ग्रह गोचर में बुरे ग्रह जैसे-सेंहिकीय एवं शिखी ग्रह के द्वारा अच्छे ग्रहों के साथ बैठकर अच्छे ग्रहों के फलों को कमजोर कर देते हैं, उन शुभ ग्रहों के शुभ फल को पाने हेतु श्रीबटुक भैरव स्तोत्रं का वांचन हमेशा करना चाहिए, जिससे शुभ ग्रहों का उचित फल मिल जाता हैं।
न्यायालय के मामलों से राहत पाने हेतु:-मनुष्य को अपने जीवनकाल में बिना मतलब या किसी भी कारण से न्यायालय में किसी के द्वारा फसाने पर उसको न्यायालय के चक्कर काटने पड़ते हैं, इस तरह फसे न्यायालय के मामले से राहत दिलाने यह स्तोत्रं सहायक होता हैं।
भूत-प्रेत से सम्बंधित डर से राहत पाने हेतु:-मनुष्य को अपने रात्रिकाल भूत-प्रेत से सम्बंधित नकारात्मक शक्तियों का डर रहता हैं, उस डर से राहत के लिए मनुष्य को नियमित रूप से श्रीबटुक भैरव स्तोत्रम् का वांचन शुरू कर देने पर राहत मिल जाती हैं।
खुद पर विश्वास बढ़ाने हेतु:-मनुष्य को अपनी काबिलियत पर विश्वास नहीं रहता हैं, जिससे मनुष्य को अपने जीवन में सफलता नहीं मिल पाती हैं, इसलिए मनुष्य को अपने जीवन में सफलता पाने के लिए नियमित रूप से श्रीबटुक भैरव स्तोत्रं का वांचन करना चाहिए।
निवास स्थान पर नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करने हेतु:-मनुष्य को अपने निवास स्थान में नकारात्मक ऊर्जा के कारण निवास स्थान में निवास करने के वाले सदस्यों के बीच में होने वाले झगड़ो से मुक्ति दिलवाकर सुख-शांति बढ़ाने में यह स्तोत्रं सहायक होता हैं।
तंत्र-मंत्र के द्वारा मनुष्य के जीवन पर पड़ने वाले बुरे असर से मुक्ति पाने हेतु:-मनुष्य की तरक्की को देखकर दूसरे मनुष्य को ईर्ष्या के भाव उत्पन्न होने से मनुष्य दूसरे मनुष्य को हर तरह से गिराने के लिए तंत्र-मंत्र शक्तियों का सहारा लेते हैं, उन शक्तियों से मुक्ति दिलाने में यह स्तोत्रं सहायक होता हैं।
रुपयों-पैसों से सम्बंधित परेशानी से मुक्ति हेतु:-मनुष्य को अपने जीवनकाल में रुपयों-पैसों की हर जगह पर आवश्यकता होती हैं, वह दिन-रात मेहनत करते रहते हैं, लेकिन उनको रुपयों-पैसों की तंगी का सामना करना पड़ता हैं, उस तंगी से मुक्ति हेतु नियमित रूप से श्रीबटुक भैरव स्तोत्रं का वांचन करना चाहिए।