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Wednesday, April 30, 2025

April 30, 2025

राहु की महादशा का फल एवं प्रभाव (Results and remedies of Rahu’s Mahadasha)

राहु की महादशा का फल एवं प्रभाव(Results and remedies of Rahu’s Mahadasha):-राहु की महादशा का समय 18 वर्ष होता हैं, जिसके परिणामस्वरूप मनुष्य को सभी तरह अच्छे स्थिति में राहु के होने पर अच्छे एवं खराब स्थिति में राहु के होने पर बुरे फल की प्राप्ति होती हैं।




Results and remedies of Rahu’s Mahadasha




◆जब मनुष्य के जन्म के समय बनने वाली जन्मकुण्डली में राहु आर्द्रा, स्वाति तथा शततारका होता तो जन्म से 18 वर्ष तक राहु की महादशा रहती हैं।
  
◆जब मनुष्य के जन्म के समय बनने वाली जन्मकुण्डली में राहु मृगशीर्ष, चित्रा, घनिष्ठा जन्म नक्षत्र होवे तो 18 से 36 वर्ष तक राहु की महादशा रहती हैं।



◆जब मनुष्य के जन्म के समय बनने वाली जन्मकुण्डली में राहु कृत्तिका, उत्तराषाढ़ा, उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में होता हैं, तो 23 से 41 वर्ष तक राहु की महादशा रहती हैं।


◆जब मनुष्य के जन्म के समय बनने वाली जन्मकुण्डली में राहु भरणी, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में होता हैं, तो 43 से 61 वर्ष तक राहु की महादशा रहती है।


मनुष्य राहु के नाम मात्र से डरते हैं, जब जन्मकुण्डली में राहु की महादशा, अंतर्दशा या प्रत्यंतदशा दशा आती हैं, तब मनुष्य घबराने लग जाते हैं। लेकिन मनुष्य को यह भी जानना जरूरी होता हैं कि राहु की दशा सभी के लिए खराब नहीं होती हैं और सभी को नुकसान नहीं पहुंचाती हैं


यदि मनुष्य की जनकुण्डली में राहु शुभ घरों में, अपने मित्र ग्रह के साथ बैठा होता है और शुभ स्थिति में होता हैं तब राहु की दशा के फलस्वरूप मनुष्य को सभी क्षेत्रों में अपने नाम का झंडा गड़वा देता है और चारों तरफ प्रसिद्धि प्रदान करवाता हैं।


उदाहरणस्वरूप:-विश्वविख्यात व्यावसायिक क्षेत्र के धीरूभाई अंबानी की जन्मकुण्डली में जब राहु की अच्छी दशा आई तो उनको बहुत ही प्रगति के क्षेत्र में बुलंदी पर पहुंचा दिया।धीरुभाई की जन्मकुण्डली में तीजे घर में कुंभ का राहु बैठे होने के कारण राहु की महादशा के कारण विश्व में अपना नाम सम्मान स्थापित करके सभी जगहों पर प्रसिद्धि प्राप्त की थी।


विश्वविख्यात व्यावसायिक क्षेत्र के हर्षद मेहता की जन्मकुण्डली में जब राहु की खराब दशा आई तो उनको बहुत ही ऊँचाई से गिराकर रोड़ पर ला पटका।हर्षद मेहता के चतुर्थ घर में नीच धनु राशि में राहु- मंगल योग के कारण कारावास तक यात्रा का सफर करना पड़ा। 


 

 
द्वादश भाव में राहु दशा का शुभ-अशुभ फल:-निम्नलिखित हैं।


1.लग्न स्थान:-जब जन्मकुण्डली के लग्न घर में वृषभ, कर्क, सिंह, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन आदि राशि में राहु किसी शुभ योग में होता हैं और राहु की दशा शुभ मानी जाती हैं, तब निम्नलिखित शुभ फल मिलता हैं। 



◆मनुष्य के बचपन के समय में राहु की दशा आती हैं तब सेहत ठीक रहती हैं।




◆मनुष्य पुस्तक या शिक्षक के द्वारा अपनी विद्या को पूर्ण रूप से प्राप्त करता हैं और किसी तरह की बाधाएँ नहीं आती हैं, जिससे उच्च तालीम को हासिल करते हैं।



◆मनुष्य के माता-पिता के हालात अच्छे रहते हैं।




◆मनुष्य को न्यायालय के मुकदमों में जीत हासिल होती हैं।


◆मनुष्य के विवाह होने के बाद पहली संतान के रूप में पुत्र रत्न की प्राप्ति होती हैं।



◆मनुष्य पुस्तक तालीम के द्वारा बी.ए., एम.ए. या किसी विश्वविद्यालय से उपाधि को प्राप्त करता है।



◆मनुष्य जिस जगह पर नौकरी की सेवा देते हैं, उस जगह पर शीघ्रता से प्रगति करते हैं।


◆मनुष्य अपने समाज के समुदाय में, अपने गाँव और शहर आदि जगहों पर अपने नाम को ऊंचा करते हुए मान-सम्मान और ख्याति प्राप्त करते हैं।




◆जब जन्मकुण्डली के लग्न घर में मेष, मिथुन, तुला, धनु, कुंभ आदि राशि में राहु हो तो और राहु की दशा शुरू होने पर निम्नलिखित अशुभ योग फल मिलता हैं। 


◆मनुष्य के बचपन के समय में राहु की दशा आती हैं तब सेहत ठीक नहीं रहती हैं और व्याधि से ग्रसित होना पड़ता हैं।



◆बचपन में किसी की कुदृष्टि के कारण परेशानी होती हैं।


◆बाल्यकाल में जब दांत निकलते हैं, तब बहुत ही सेहत खराब होती हैं।



◆बाल्यकाल में किसी तरह के गिरने या किसी तरह की चोट के फलस्वरूप मस्तिष्क में चोट लग सकती हैं।



◆बचपन में उम्र बढ़ने के बाद भी बोलने में देरी होती हैं।



◆मनुष्य पुस्तक या शिक्षक के द्वारा अपनी विद्या को पूर्ण करने में बार-बार रुकावटें आती हैं और एक बार परीक्षा में फैल होने की संभावना बनती हैं।
 

 
◆जब जन्मकुण्डली के लग्न घर में मेष, मिथुन, तुला, धनु, कुंभ आदि राशि में राहु के साथ सूर्य, मंगल, शनि आदि ग्रह हो तो और राहु की दशा शुरू होने पर निम्नलिखित अशुभ योग फल मिलता हैं। 



◆मनुष्य की उम्र बढ़ने लगती हैं और विवाह में देरी होती हैं। विवाह में बहुत सारे विघ्न आते हैं।



◆विवाह होने के बाद मनुष्य के सन्तान के रूप में पहली  पुत्री होती हैं।


◆मनुष्य के चेहरे की बनावट ठीक नहीं होने से देखने में अच्छा नहीं लगता हैं।


◆मनुष्य जिस जगह पर नौकरी के रूप में सेवा देता हैं, उस स्थान में उसको नुकसान भोगना पड़ता हैं।


◆मनुष्य के जीविकोपार्जन के पेशे में नुकसान होता हैं।


◆किसी दूसरे मनुष्य के साथ मिलकर जीविकोपार्जन के पेशा करने पर साझेदार द्वारा आश्वासन देकर मुकर जाता हैं, जिससे उसके साथ छल या दगा होता हैं।
 

 
◆मनुष्य अपने आप में दूसरों से ज्यादा अक्लमंद समझने लगता हैं।


◆जिससे मनुष्य को जीविकोपार्जन के धंधे में हानि होने लगती हैं।


◆मनुष्य किसी भी तरह के नशीले द्रव्यों के सेवन का आदि हो जाता हैं।


◆मनुष्य की बेइज्जती होती हैं और दूसरों से फटकार मिलती हैं।


◆मनुष्य दूसरों नजदीकी रिश्तेदार की ज्ञता गुप्त बातें को जानने के बाद उन बातों को बाजार में करके अपने आप के मन में खुशी मनाता है।
 


2.धन भाव:-जब जन्मकुण्डली के धन-कुटुम्ब घर में वृषभ, कर्क, सिंह, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन आदि राशि में राहु किसी शुभ योग में होता हैं और राहु की दशा शुभ मानी जाती हैं, तब निम्नलिखित शुभ फल मिलता हैं। 



◆मनुष्य संस्था या कार्यालय की जगह पर अपनी सेवा को छोड़कर अपने बलबूते पर जीविकोपार्जन के पेशे की बिना किसी के अधीन रहते हुए स्वयं करता हैं।



◆मनुष्य के प्रत्येक क्षेत्र के कामों में कामयाबी मिलती हैं।



◆मनुष्य अपनी खुद की कठोर एवं कड़ी मेहनत से रुपये-पैसों को कमाते हुए संचय करता हैं।



◆मनुष्य को न्यायालय के मामलों में जीत हासिल होती हैं।

 

जब जन्मकुण्डली के दूजे घर में मेष, मिथुन, तुला, धनु, कुंभ आदि राशि में राहु हो तो और राहु की दशा शुरू होने पर निम्नलिखित अशुभ योग फल मिलता हैं। 



◆मनुष्य पुस्तक या शिक्षक के द्वारा अपनी विद्या को पूर्ण  करने में बाधाएँ आती हैं।
 

◆जब दूसरे घर में राहु सिंह राशि में होता हैं, तब मनुष्य को पुराने समय के रुपये-पैसे एवं सोना-चाँदी आदि खुदाई करने प्राप्त होते हैं।


◆मनुष्य के जीविकोपार्जन के पेशे में नुकसान होने से कर्जा बढ़ने से दिवालिया या कंगाल हो जाता हैं।



◆मनुष्य की भार्या की सेहत खराब रहती हैं।



◆मनुष्य के दाम्पत्य जीवन में पति-पत्नी के बीच बिना मतलब के टकराव होते हैं, जिससे एक-दूसरे के प्रति बुरी भावना उत्पन्न हो जाती हैं।



◆मनुष्य के भाई-बन्धुओं के बीच बिना मतलब की कहासुनी के कारण मनमुटाव होता हैं।



◆मनुष्य को न्यायालय के मामलों में हार हासिल होती हैं।



◆मनुष्य विषयभोग में आसक्त होकर नशीले द्रव्यों का सेवन करने का आदि हो जाता हैं।


◆मनुष्य को सन्तान के रूप में पुत्रियाँ अधिक होती हैं।



◆मनुष्य को अपने जीवन के अंतिम पड़ाव बुढापा में बहुत ही मुश्किलें आती हैं, जिसके के कारण वह किसी विष को खाकर या किसी पाश में अपने गले को फंसा कर अपनी जीवन लीला को खत्म कर देता हैं।





3.तृतीय स्थान:-जब जन्मकुण्डली के तीजे घर में वृषभ, कर्क, सिंह, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन आदि राशि में राहु किसी शुभ-ग्रह की युति या दृष्टि होने से शुभ योग में होता हैं और राहु की दशा शुभ मानी जाती हैं, तब निम्नलिखित शुभ फल मिलता हैं। 



◆मनुष्य पुस्तक या शिक्षक के द्वारा अपनी विद्या को पूर्ण रूप से प्राप्त करता हैं।


◆मनुष्य अपने जीवनकाल के प्रत्येक क्षेत्र में अत्यधिक श्रम करने वाला होता हैं, जिससे वह दिन-प्रतिदिन ऊंचाइयों की सीढ़ियों को चढ़ता जाता हैं। 



◆मनुष्य अपने जीविकोपार्जन के पेशे में दिन-प्रतिदिन ऊंचाइयों को छूता हैं।



◆निश्चित वेतन के रूप में संस्था या कार्यालय में अपनी सेवा देते हुए अपने बड़े अधिकारी को भी अपने कार्य के द्वारा खुश रखता हैं।



◆मनुष्य अपने प्रवास काल में दूसरे देशों का सफर करने वाला होता हैं।


◆मनुष्य को सुशील-सुंदर भार्या मिलती हैं।



◆मनुष्य को पहली संतान के रूप में बेटी और बेटी के बाद में बेटा का सुख मिलता हैं।




◆जब जन्मकुण्डली के तीजे घर में मेष, मिथुन, तुला, धनु, कुंभ आदि राशि में राहु हो तो और राहु की दशा शुरू होने पर निम्नलिखित अशुभ योग फल मिलता हैं। 



◆जब तीजे घर में राहु के होने से राहु की दशा शुरू होती हैं, तब मनुष्य के भाइयों के लिए बहुत खराब समय व्यतीत होता हैं।



◆राहु दशा के कारण जल्द ही भाई अपने संयुक्त परिवार को तोड़कर अलग होने का विचार करने लग जाते हैं, जिससे बाद में मनुष्य के जीवन क्षेत्र में गिरावट आने लगती हैं।



◆मनुष्य के सगे भाई-बन्धु वस्तुओं के क्रय-विक्रय करने की निश्चित जगह पर उसकी बुराई करते हुए उसकी बदनामी करने लगते हैं।



◆मनुष्य की किसी बहिन के पति के स्वर्गवास होने से विधवा योग को भोगना पड़ता हैं।



◆मनुष्य की माता को भी मृत्यु या मृत्यु तुल्य कष्ट के समान दुःख प्राप्त होता हैं।


 
◆मनुष्य के किसी भाई-बहन की भी मृत्यु होने की संभावना बनती हैं।




4.चतुर्थ भाव:-जब जन्मकुण्डली के चौथे घर में वृषभ, कर्क, सिंह, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन आदि राशि में राहु किसी अन्य शुभ ग्रहों की युति-प्रतियुति के द्वारा शुभ योग में होता हैं और राहु की दशा शुभ मानी जाती हैं, तब निम्नलिखित शुभ फल मिलता हैं। 



चतुर्थ राशिस्थित राहु दाये मातुविनाशं त्वथवा तदियम।

क्षेत्रार्थनाशं नृपतः प्रकोप भर्यादिपातित्यमनेकदुः स्वम।।100।।

अर्थात्:-जब मनुष्य की जन्मकुण्डली के चौथे घर में स्थित राहु होता हैं और राहु की दशा चलती होती हैं, तब निम्नलिखित शुभ-अशुभ फल मिलते हैं।


◆मनुष्य के जन्मकुण्डली में चौथे घर में राहु के स्थित होने एवं राहु की दशा के कारण मनुष्य की माता को बहुत ही कष्ट होता हैं।


◆मनुष्य को जमीन सम्बंधित मामलों में नुकसान होता हैं।



◆मनुष्य को अपनी जीविका निर्वाह के पेशे में भी नुकसान सहन करना पड़ता हैं।


◆मनुष्य को अपनी भार्या को बहुत कष्ट होता हैं।



◆मनुष्य को बिना कारण ही न्यायालय के चक्कर काटने पड़ते हैं, निरपराधी होते हुए भी कारावास की सजा भोगनी पड़ सकती हैं।


◆मनुष्य के माता-पिता को बहुत कष्ट भोगना पड़ सकता हैं।



चोराग्नि बन्धार्ति मनोविकारं दासत्म-जानामपि रोग पीड़ाय।

चतुर्थ-राशिस्थ राहुदाये प्रभान-संसार कालत्र युत्रम।।101।।

अर्थात्:-मनुष्य के द्वारा किसी दूसरे की वस्तु या धन को छिपकर हथिया लेना, मन की कल्पना से उत्पन्न विकार, अग्नि, कारावास, भार्या-पुत्रों को व्याधि आदि तरह की तकलीफों के होने की संभावना बनती हैं।



◆मनुष्य जब छात्रवृत्तिधारी होता हैं, तब उसकी उम्र 18 से 20 वर्ष की होने पर उसे कारावास की यात्रा निश्चित रूप से करनी पड़ सकती हैं। 


◆परन्तु चतुर्थ राहु एवं राहु की दशा होनी चाहिये।


◆मनुष्य की माता एवं भार्या को कष्ट होता हैं।



◆मनुष्य को अपने जीविकोपार्जन के धंधे में बिना मतलब के नुकसान होता हैं।


◆मनुष्य के एक भाई पर विशेष रूप से शारीरिक या मानसिक कष्ट आते हैं।



◆मनुष्य वेतन के रूप में जिस जगह पर नौकरी करता हैं, उस स्थान से बिना कारण ही उसका तबादला हो जाता हैं।



◆मनुष्य को रुपये-पैसों की प्राप्ति होती हैं।




◆जब जन्मकुण्डली के चौथे घर में मेष, मिथुन, तुला, धनु, कुंभ आदि राशि में राहु हो तो और राहु की दशा शुरू होने पर निम्नलिखित अशुभ योग फल मिलता हैं। 




◆मनुष्य के द्वारा अपनी मेहनत के द्वारा पहले इकट्ठा किये हुए रुपये-पैसे की बढ़ोतरी होती हैं।


◆मनुष्य बाद में किसी भी तरह का मेहनत नहीं करता हैं, तब भी उसे रुपये-पैसों की प्राप्ति होती हैं।



◆मनुष्य के जीवन में दोदो विवाह के योग बन सकते है।



◆मनुष्य संतान के रूप पुत्र नहीं होता हैं, यदि पुत्र सन्तान होता हैं, तो भी उसे अपने पुत्र से सुख नहीं प्राप्त होता हैं।




◆मनुष्य को अपने माता-पिता का सुख कम मिलता हैं या माता-पिता से अलगाव भी सहन करना पड़ता हैं।



दूसरी राशि में राहु होने से:-


◆मनुष्य को मन की कल्पना से उत्पन्न बातों के कारण बहुत पीड़ा होती हैं। 


◆मनुष्य को जीविका निर्वाह के साधन में बार-बार बदलना पड़ता हैं।


◆मनुष्य जिस संस्था या कार्यालय में निश्चित समय पर निश्चित वेतन पर कार्य करने की जगह पर बहुत परेशानियों को भोगता हैं।





5.पांचवा स्थान:-जब जन्मकुण्डली के पंचवें घर में वृषभ, कर्क, सिंह, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन आदि राशि में राहु के साथ शुभ ग्रहों की युति-प्रतियुति के द्वारा शुभ योग में होता हैं और राहु की दशा शुभ मानी जाती हैं, तब निम्नलिखित शुभ फल मिलता हैं। 


बुद्धिभ्रमं भोजन सौख्यनांश विधाविवादं कलहं च दुःखम्।


कोयं नरेप्द्रस्थ सुतस्य नाशं राहोंः सुतस्थस्य दशावियाके।।102।।


अर्थात्:-जब पांचवें घर में राहु होने के कारण राहु की दशा में मनुष्य को फायदा में कमी, औलाद संबंधित परेशानी एवं पुत्र को बहुत तकलीफ होती हैं। 




◆जब राहु की दशा मनुष्य के बचपन में आती हैं तब मनुष्य दिमागी काम करने वाला होता हैं।



◆मनुष्य का यश चारों ओर फैला होता हैं।



◆मनुष्य एक तरह के मनुष्यों के समुदाय के बीच में और पाठशाला में तालीम ग्रहण करते समय अपना नाम कमाने वाला होता हैं।




◆मनुष्य किसी एक विषय में बहुत रुचि रखने वाला होता हैं, जिससे वह उस विषय में होशियार हो जाता हैं।



◆मनुष्य महाविद्यालय और विश्वविद्यालय में अपनी प्रसिद्धि को प्राप्त करता हैं।



◆मनुष्य की शादी जल्दी होती हैं, शादी होने के बाद संतान के रूप में कन्या संतान की बढ़ोतरी होती हैं।



◆जब मनुष्य सामाजिक जीवन में जब तक जीवन जीता रहता हैं, तब तक उसका नाम चारो तरफ फैला रहता हैं, जब मनुष्य की मृत्यु हो जाती हैं, तब उसका नाम सामाजिक जीवन में मनुष्यों के द्वारा भुला दिया जाता हैं।





◆जब जन्मकुण्डली के पांचवें घर में मेष, मिथुन, तुला, धनु, कुंभ आदि राशि में राहु हो तो और राहु की दशा शुरू होने पर निम्नलिखित अशुभ योग फल मिलता हैं। 


◆मनुष्य को सन्तान सुख नहीं मिलता हैं, यदि सन्तान सुख मिलता हैं, संतान छोटी उम्र तक ही जीवन जीती हैं।


◆मनुष्य को दूसरे मनुष्य नासमझ समझते हैं, जिससे मन में खिन्नता के भाव उत्पन्न हो जाते हैं और जो प्राप्त हो सुख को भी समाप्त कर बैठते हैं।



◆मनुष्य किसी एक विषय में बहुत लगन से उस विषय की त्रुटि या दोषों को दूर करने वाला होता हैं।



◆मनुष्य को अपने जीवन में दूसरों के द्वारा उपहास का पात्र बनना पड़ता हैं और उसकी खिल्ली या मजाक बनाया जाता हैं। जिससे मनुष्य को बदनामी भी सहन करनी पड़ती हैं।




◆मनुष्य को मुसीबतों का सामना करना पड़ता है और बहुत गरीबी से जीवन व्यतीत करना पड़ता हैं।


 
◆मनुष्य सम्मानित मनुष्यों के परिचय, देवी द्रष्टान्त, स्वप्न और तंत्रविद्या के प्रयोग करने वाले के चक्कर में पड़कर अपना एवं अपने परिवार का बेड़ा गर्क करता है अर्थात् अपना सबकुछ खत्म कर बैठते हैं।



◆मनुष्य के दाम्पत्य जीवन में जीवनसाथी के साथ वैचारिक मतभेद होने से उनके बीच के संबंधों में दरार पड़ने लगती हैं।



◆मनुष्य के दाम्पत्य जीवन में कहासुनी के फलस्वरूप पति-पत्नी एक-दूसरे को छोड़ देते हैं या एक-दूसरे से अलग रहने लग जाते हैं।




◆पति-पत्नी की सेहत जीवन भर के लिए मांदगी से ग्रसित रहती हैं।



6.छठा भाव:-जब जन्मकुण्डली के छठे घर में वृषभ, कर्क, सिंह, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन आदि राशि में राहु किसी शुभ योग में होता हैं और राहु की दशा शुभ मानी जाती हैं, तब निम्नलिखित शुभ फल मिलता हैं। 



◆मनुष्य का दूसरे मनुष्यों के बीच किसी बात को लेकर कहासुनी होने से विवाद हो सकता हैं, उस कहासुनी के विवाद में मनुष्य की विजय होती हैं।



◆मनुष्य की सेहत ठीक नहीं रहती हैं।



◆मनुष्य के शरीर में ताजगी नहीं रहने पर किसी काम करने में मन नहीं लगता हैं।



◆मनुष्य अपने कार्य क्षेत्र की जगह के बड़े अधिकारी उसको मान-सम्मान देते हैं और उसके कहे अनुसार मार्गदर्शन लेने वाले होते हैं।


 


◆जब जन्मकुण्डली के दशम घर में मेष, मिथुन, तुला, धनु, कुंभ आदि राशि में राहु हो तो और राहु की दशा शुरू होने पर निम्नलिखित अशुभ योग फल मिलता हैं। 



◆मनुष्य की तंदुरुस्ती में विकार उत्पन्न हो जाते हैं, जिससे मन नहीं लगता हैं।



◆मनुष्य को जहरीले एवं मांसाहारी बिलों रहने वाले जीव जैसे-सर्पजन्य या वनेले जानवर से भी काटने का डर हर समय सताता रहता है।




◆मनुष्य को एक ही जगह पर रहने मनुष्यों के समुदाय और पक्के मकानों की बड़ी बस्ती के मनुष्यों के बीच में रहते हुए उन मनुष्यों के द्वारा बदनामी होती हैं।




◆मनुष्य को लाइलाज व्याधि, राजयक्ष्मा, मधुमेह, उच्चरक्तचाप आदि रोग को झेलना पड़ता हैं।


◆मनुष्य को अपने मामा, मौसी एवं किसी एक भाई के द्वारा सबसे अधिक पीड़ा या तकलीफ को सहन करना पड़ता हैं।


◆लेकिन इन सब तरह के अशुभों के साथ भी राहु की दशा ठीक-ठाक ही बीतती हैं।


 

7.सप्तम भाव:-जब जन्मकुण्डली के दशम घर में वृषभ, कर्क, सिंह, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन आदि राशि में राहु किसी अन्य शुभ ग्रह के योग में होता हैं और राहु की दशा शुभ मानी जाती हैं, तब निम्नलिखित शुभ फल मिलता हैं। 


◆मनुष्य पुस्तक या शिक्षक के द्वारा तालीम को पूरी तरह से ग्रहण करते हैं, लेकिन इस तालीम का जीवन में किसी भी तरह आवश्यकता नहीं रहती हैं। 


◆मनुष्य दो विवाह करते हैं या एक साइड में रखते हुए दोहरे रूप से दाम्पत्य जीवन को व्यतीत करने वाले होते हैं।

 


◆यदि मनुष्य राजनीतिक दल का प्रमुख होकर दूसरों का मार्गदर्शन करने वाला बनकर खूब ऊँचे स्थान पहुँचकर अपना नाम कमाता हैं।



◆मनुष्य के धंधे में उतार-चढ़ाव बहुत अधिक होने लगता हैं, जिससे उसका दिमाग सही तरह से कार्य नहीं कर पाता हैं और मन में बुरे विकार उत्पन्न होने लगते हैं।




◆जब जन्मकुण्डली के दशम घर में मेष, मिथुन, तुला, धनु, कुंभ आदि राशि में राहु हो तो और राहु की दशा शुरू होने पर निम्नलिखित ज्यादा अशुभ योग फल मिलता हैं। 



◆मनुष्य की उम्र बढ़ती जाती हैं, जिससे विवाह में बाधाएँ आती हैं।


◆मनुष्य के द्वारा दूसरों से रुपये-पैसों को उधार लेना पड़ता हैं, जिससे उस पर कर्ज का भार दिनोंदिन बढ़ता जाता हैं।




◆मनुष्य का किसी हादसे में मृत्यु की संभावना बन सकती हैं।



◆इस तरह सप्तम भाव में राहु की दशा बहुत ही वेदना और तकलीफ देने वाली होती हैं।





8.अष्टम भाव:-जब जन्मकुण्डली के अष्टम घर में वृषभ, कर्क, सिंह, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन आदि राशि में राहु किसी दूसरे शुभ ग्रहों की युति-प्रतियुति के शुभ योग में होता हैं और राहु की दशा शुभ मानी जाती हैं, तब निम्नलिखित शुभ फल मिलता हैं। 



◆मनुष्य की सेहत अच्छी रहती हैं, जिससे उसका मन प्रत्येक कार्य में करने को लगता हैं।



◆मनुष्य को सन्तान के रूप में बेटे अधिक होते हैं।



◆मनुष्य की किस्मत का साथ प्रत्येक जगह पर प्राप्त होता हैं, जिससे कामयाबी कदम चूमती हैं।



◆मनुष्य अपने जीवन काल उच्च शिक्षा को प्राप्त करके किसी स्थान पर नौकरी करता हैं। यदि नौकरी नहीं करता हैं तो वह जीविका निर्वाह के पेशे में बहुत प्रगति करता हैं।




◆जब जन्मकुण्डली के अष्टम घर में मेष, मिथुन, तुला, धनु, कुंभ आदि राशि में राहु पापग्रहों से पीड़ित हो तो और राहु की दशा शुरू होने पर निम्नलिखित अशुभ योग फल मिलता हैं। 



◆मनुष्य को किसी अनहोनी आफत को झेलना पड़ता हैं, जिससे जन-धन का नुकसान हो सकता हैं।


◆मनुष्य के जीविका निर्वाह के साधन में हानि होती हैं।



◆मनुष्य जिस संस्था या कार्यालय में निश्चित वेतन के रूप में कार्य करता हैं, उस स्थान को छोड़ना पड़ता हैं।




◆मनुष्य अपने जीवनकाल में लालच में आकर कई बार जातक रेस,बाजार की तेजी-मंदी के अनुमान के आधार पर अधिक फायदे के लिए शेयर बाजार में सट्टा लगा देते हैं, जिससे उनको नुकसान भोगना पड़ता हैं, जिसके कारण मनुष्य अपने निवास स्थान के सुख-शांति को बरबाद करता है।



◆मनुष्य को अपनी सन्तान में से किसी एक कन्या को भी बहुत तकलीफ को भोगना पड़ता हैं।



◆जहरीला और मांसाहारी जीव जो बिलों आदि में रहते हैं, जैसे-भुजंग, बिच्छू आदि के काट खाते हैं, जिससे पीड़ा होती हैं।



9.नवम भाव:-जब जन्मकुण्डली के नवम घर में वृषभ, कर्क, सिंह, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन आदि राशि में राहु  किसी शुभ ग्रहों या शुभ योग में होता हैं और राहु की दशा शुभ मानी जाती हैं, तब निम्नलिखित शुभ फल मिलता हैं। 



◆जब मनुष्य अपनी संतान को अध्ययन और शिक्षा से प्राप्त ज्ञान के लिए पाठशाला में अच्छे मुहूर्त में बच्चे को भेजते हैं, उस समय उस बच्चे की जन्मकुंडली में राहु की दशा चलती हैं, तब उस बच्चे को पुस्तक या शिक्षक के द्वारा प्राप्त होने वाले चारित्रिक और मानसिक शक्तियों के विकास की दक्षता में बाधाएँ आती हैं।  



◆इस तरह राहु की शुभ होते हुए भी शिक्षा में बच्चे के बाधाएँ आती हैं, इसलिए इस दशा में ध्यान रखना चाहिए।



◆वृषभ, कर्क, सिंह, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन आदि राशियों में राहु होवे तो शुभ परिणाम मिलते हैं।



जब जन्मकुण्डली के नवम घर में मेष, मिथुन, तुला, धनु, कुंभ आदि राशि में राहु हो तो और राहु की दशा शुरू होने पर निम्नलिखित अशुभ योग फल मिलता हैं। 



◆मनुष्य के जीवन में बहुत ही तकलीफे आती हैं।



◆मनुष्य को अपने जीविका निर्वाह के धंधे में नाकामयाबी मिलती हैं।



◆रोजगार के साधन को बार-बार बदलना पड़ता हैं।



◆मनुष्य के जीवनकाल के प्रत्येक क्षेत्र के प्रत्येक कार्य में बाधाएँ आती रहती हैं।



◆मनुष्य को अपनी भार्या एवं सन्तान पुत्र-पुत्री से दूर रहना पड़ता हैं।



◆मनुष्य को बिना मतलब के खर्चों को सहन करना पड़ता हैं।

 

◆मनुष्य को किसी संस्था या कार्यालय में निश्चित कार्य के लिए निश्चित वेतन या राशि मिलने की जगह को बार-बार बदलना पड़ता हैं, जिससे मानसिक वेदना होती हैं।



◆मनुष्य को पिता का सुख अल्प मिलता हैं और अंत में पिता की मृत्यु के दुःख को भोगना पड़ता हैं।





10.दशम भाव:-जब जन्मकुण्डली के दशम घर में वृषभ, कर्क, सिंह, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन आदि राशि में राहु किसी शुभ योग में होता हैं और राहु की दशा शुभ मानी जाती हैं, तब निम्नलिखित शुभ फल मिलता हैं। 



◆मनुष्य को रुपये-पैसे सहित भौतिक सुख-सुविधा आदि को पाने वाले होते हैं। 



◆मनुष्य अपनी जीविकोपार्जन के लिए कमाने के लिए बड़ा धन्धा करते हैं।


◆मनुष्य राजनीतिक दल का प्रमुख कार्यकर्ता या मनोभावों को व्यक्त करने के लिए आंगिक चेष्टाएँ और उनका कलात्मक प्रदर्शन करने वाले अदाकार और उच्च पद पर नियुक्ति को पाने वाले होते हैं। 



◆मनुष्य को कचहरी के मामलों में जीत हासिल होती हैं। 



◆मनुष्य समाज से संबंध रखने वाले या राजनैतिक कार्य में बहुत नाम कमाते हुए शोहरत को हासिल करने वाले होते हैं।
 


◆मनुष्य कई बार अपना सबकुछ त्याग कर संन्यास आश्रम का पालन करने वाले बनते देखे हैं।



◆मनुष्य अगर किसी कारण शादी करके अपने बाल-बच्चे के साथ जीवन यापन करते रहने पर भी ईश्वर, परलोक आदि के संबंध में श्रद्धा और विश्वास के साथ भक्ति भाव रखते हुए आचरण को करते हुए बहुत आगे बढ़ जाते हैं।



जब जन्मकुण्डली के दशम घर में मेष, मिथुन, तुला, धनु, कुंभ आदि राशि में राहु हो तो और राहु की दशा शुरू होने पर निम्नलिखित अशुभ योग फल मिलता हैं। 

◆मनुष्य को अपने माता-पिता में किसी की मरण के दुःख को सहन करना पड़ता हैं।



◆मनुष्य के द्वारा पहले से इकट्ठा के रुपये-पैसे बिना वजह ही नष्ट हो जाता है।


◆मनुष्य को जीविकोपार्जन के पेशे में नुकसान की संभावना बनती हैं।


◆मनुष्य को अपने पुत्रों के आपसी अनबन को सहन करना पड़ता है एवं बहुत तकलीफ को भोगना पड़ता हैं, जिससे मनुष्य अपने मन में बहुत विधि विरुद्ध या अनैतिक कार्य रूपी कसूर करने की अवस्था में बढ़ोतरी होती हैं। 



11.एकादश भाव:-जब जन्मकुण्डली के एकादश घर में वृषभ, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन आदि स्त्री राशि में राहु किसी शुभ या अशुभ ग्रह के साथ योग में होता हैं, तब निम्नलिखित शुभ फल मिलता हैं। 



◆मनुष्य जनता के द्वारा चुनाव से चयनित होकर संसद के निचले सदन एवं जनप्रतिनिधियों की सभा के रूप में सदस्य बनता है।



◆मनुष्य पुस्तक या शिक्षक के माध्यम से चारित्रिक और मानसिक शक्तियों के विकास से सम्बंधित ज्ञान को  प्राप्त करके उच्च शिक्षण संस्था या महाविद्यालय, विभिन्न विषयों का अध्ययन-अनुसंधान करके एवं परीक्षा देकर उपाधि को ग्रहण उस विश्वविद्यालय में प्रेसिडेण्ट बनता हैं।


◆मनुष्य को अचानक ही फायदा मिलता हैं, जो उसने सोचा भी नहीं होता हैं।



◆मनुष्य के द्वारा दूसरों को दिया गए रुपये-पैसे नहीं मिलने वाले भी प्राप्त हो जाते हैं।



◆मनुष्य शोहरत रूपी कार्य  को करने वाले होते हैं।



◆संतान की प्राप्ति के योग शादी के बहुत समय बाद होता हैं। 


जब जन्मकुण्डली के एकादश घर में मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु, कुंभ आदि पुरुष राशि में राहु हो तो निम्नलिखित अशुभ योग फल मिलता हैं। 


◆मनुष्य के पुत्रों के लिए बुरा फल प्रदान करने के योग होता हैं।


◆मनुष्य की किसी एक संतान के साथ हादसा के योग बन सकते हैं। 


◆संतान की उन्नति में रुकावट के ऊपर रकावट आने लगती हैं, जिससे उसको कामयाबी नही मिल पाती हैं।


 
◆मित्रों के द्वारा मनुष्य के साथ में स्वार्थ के वश आश्वासन देकर अपनी बात से मुकरने के सम्बंधित अनैतिक आचरण कक सहन करना पड़ता हैं।


 
◆मनुष्य के दोस्त भी छोटी या निम्न जाति वाला ही होता है या कोई दाढ़ी वाले या मुस्लिम धर्म के मनुष्य साथ दोस्ती होती हैं। 



◆मनुष्य को अपने करीबी दोस्तों से दूर रहना चाहिए।



◆मनुष्य को अपने जीविकोपार्जन के साधन में नुकसान की प्राप्ति होती हैं।



◆मनुष्य के द्वारा जीविका निर्वाह के साधन में किसी के साथ मिलकर कार्य या धंधा करने के कारण रुपये-पैसे डूब जाते हैं, जिसके कारण रुपये-पैसे का ऋण बढ़ जाता हैं और ऋण उतार नहीं पाने के कारण कंगाल हो जाता हैं। 



12.व्यय भाव:-जब जन्मकुण्डली के बारहवें घर में वृषभ, कर्क, सिंह, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन राशि में राहु शुभ होने की अवस्था में होता हैं, तब निम्नलिखित शुभ फल मिलता हैं। 




◆मनुष्य को अपनी जीविका निर्वाह के साधन के स्वरूप में अपने जन्म स्थान को छोड़कर दूसरे देश को जाना एवं दूसरे देश में रहते हुए खूब अपने जन्म स्थान एवं अपना नाम की प्रसिद्धि को प्राप्त करते हैं साथ बहुत रुपये-पैसे एवं सुख-संपदा को भी प्राप्त करने वाले होते हैं।


 
◆जीविका निर्वाह के पेशे के साथ-साथ किसी ट्रस्ट में औपचारिक रूप से नियुक्ति को प्राप्त करके उसका स्वामी बन कर अपनी शोहरत की बढ़ोतरी प्राप्त करने वाले होते हैं।


 
◆जीवन के प्रत्येक क्षेत्र के कार्यों में कामयाबी को हासिल करते हैं।


जब जन्मकुण्डली के बारहवें घर में मेष, मिथुन, तुला, कुंभ राशि में राहु होने की अवस्था में होता हैं और राहु की दशा चलने लगती हैं, तब निम्नलिखित अशुभ फल मिलता हैं। 



◆मनुष्य के उपयोग या व्यवहार में आने वाले कार्य में रुकावट आने लगती हैं।



◆मनुष्य को बेकार ही खर्चा होने लगता हैं।


 
◆मनुष्य के रुपये-पैसे जो सही या ठीक जगह नहीं होती हैं, उन जगहों पर खर्च होने लगते हैं।


 
◆मनुष्य को बार-बार निश्चित कार्य करने पर मिलने वाली निश्चित राशि की जगह को बदलना पड़ता हैं। 



◆मनुष्य को कई जीविका निर्वाह के साधन बदलने के कारण रुपये-पैसे डूब जाते हैं, जिसके कारण रुपये-पैसे को दूसरे से उधार लेने पड़ते हैं और ऋण के रुपये-पैसे नहीं चुका पाने से कंगाल हो जाता हैं।  




महान ज्योतिषाचार्य पाराशर के अनुसार ने राहु की महादशा:-को तीन भागों में बदलाव करके लिखित रूप से बताया हैं, जो इस तरह हैं।


 
दशादौ दुःखमाप्नोति दशामध्ये सुंख यशः।

दशान्ते स्थाननांश च गुरुपुत्रादिनाशम्।।

विनश्येद दारपुत्राणां कृत्सितान्नं य भोजनम्।

दशादौ देहपीड़ा च धनधान्यविनाशकृत्।

दशान्ते कष्टमाप्नोति स्थानम्रंशो मनोव्यथा।।103।।


अर्थात्:-राहु की दशा मनुष्य के जीवन काल में तीन चरण की आती हैं, जो इस तरह होती हैं।


प्रथम चरण:-जब राहु की दशा पहले चरण में शुरू होती हैं, तब मनुष्य के जीवनकाल को दुःख देने वाली होती हैं और जीवन में पीड़ा प्राप्त होती हैं।


मध्यमा चरण:-जब राहु की दशा मध्यमा चरण में शुरू होती हैं, तब मनुष्य के जीवनकाल में सभी तरह के सुख और प्रसिद्धि देने वाली होती हैं।


अंतिम चरण:-जब राहु की दशा अंतिम चरण में शुरू होती हैं, तब मनुष्य के जीवनकाल में स्थान का नाश करने वाली होती हैं।

राहु की दशा का प्रभाव मेरे जीवन में:-राहु की दशा का प्रभाव भी इसी तरह हुआ था।


प्रथम चरण:-जब राहु की दशा पहले चरण में शुरू होती हैं, तब मेरे जीवनकाल को दुःख एवं अच्छा भोजन तक नहीं मिला।


◆कोर्ट-कचहरी के बिना मतलब के चक्कर काटते-काटते मेरे जूते घिस गए। मुझे राहत नहीं मिली।



◆मुझे शारीरिक रूप से बहुत ही कष्ट हुआ और रुपये-पैसे कज बहुत बर्बादी हुई।



मध्यमा चरण:-जब राहु की दशा मध्यमा चरण में शुरू हुई तब मैंने बहुत ही अपनी मेहनत के बल पर रुपये-पैसे को कमाया था।


◆मैंने जिस भी जीविकोपार्जन के धंधे में रुपये-पैसे डाले, उस जीविका निर्वाह के पेशे में बहुत ही प्रगति प्राप्त की थी


अंतिम चरण:-जब राहु की दशा अंतिम चरण में शुरू हुई तब मुझे बहुत ही संघर्ष करना पड़ा और मेरे प्रत्येक कार्य में किसी भी तरह से फायदा नहीं हुआ बल्कि मुझे नुकसान ही उठाना पड़ा।


◆मुझे अपने निवास स्थान को छोड़कर दूर देश में जाना पड़ा।


◆मुझे राहु की अंतिम चरण में रुपये-पैसों की बहुत हानि उठानी पड़ी।

 
◆राहु की दशा में मनुष्य के नजदीकी रिश्तेदार जैसे-मां-पिता-पत्नी-भाई बन्धुओं आदि का साथ नहीं मिलता हैं एवं मनुष्य निराश हो जाता हैं और मेहनत करने पर भी फल नहीं मिलता हैं।


◆अपने नजदीक के सदस्य भी पराए के तरह बर्ताव करते हैं, जिससे किसी भी कार्य को करने में उत्साह खत्म हो जाता हैं।




◆जब तक राहु की दशा शुरू होती हैं, यदि राहु की दशा स्थायी रूप से एक जगह पर टिकी नहीं रहती हैं, तब मनुष्य को जीविकोपार्जन के साधन को बार-बार बदलना पड़ता हैं और जीविकोपार्जन के साधन में स्थिरता नहीं रख पाते हैं।
 

◆मनुष्य के पहले अपनी मेहनत से इकट्ठा किये हुए रुपये-पैसे को खत्म करवा देता हैं, जिससे दूसरों के आगे हाथ फैलाना पड़ता हैं और कर्जा दिनों-दिन मस्तिष्क पर बढ़ता जाता हैं


◆मनुष्य के जीवनकाल में राहु अपना प्रभाव 36 से 42 वर्ष की उम्र पर मुख्य रूप से बुरा परिणाम देता हैं।
 
'अस्तु'
धन्यवाद्

Monday, March 17, 2025

March 17, 2025

विवाह में देरी (विलम्ब) कराने में ग्रहों की भूमिका, कारण एवं उपाय(Role of planets in delaying marriage, reasons and remedies)

विवाह में देरी (विलम्ब) कराने में ग्रहों की भूमिका, कारण एवं उपाय(Role of planets in delaying marriage, reasons and remedies):-ईश्वर के द्वारा बनाई हुई सृष्टि में प्रत्येक जीव अकेला नहीं रह सकता हैं। सभी जीवों में सबसे अच्छा जीव मानव को माना गया है। मानव की जब से उत्पत्ति हुई हैं, वह अपने जीवन को चलाने के लिए उसे किसी न किसी के सहारे की जरूरत पड़ती हैं। समस्त सृष्टि में वह अपने जीवन को अकेला नहीं व्यतीत कर सकता हैं, इसलिए उसके जन्म से लेकर मरण तक वह किसी न किसी का साथ चाहता हैं। जैसे-अपने बाल्यकाल में माता-पिता, भाई-बहिन का साथ, फिर नये-नए दोस्तों का साथ चाहता हैं। जब वह बारह से अठारह वर्ष की उम्र में प्रवेश करता हैं, तब उसका झुकाव अपने से विपरीत देह वालों का साथ, जब वह जवानी में प्रवेश करता हैं, तब उसकी सोच होती हैं कि उसका जीवन भर कोई उसका साथ निभाने वाले विपरीत देह की तरफ बढ़ता जाता हैं। जैसे ही यौवन अवस्था में प्रवेश होता हैं, तब से उसके माता-पिता उसकी शादी के बारे में विचारने लग जाते है। उस लड़के या लड़की की जन्मकुण्डली को लेकर किसी जानकार ज्योतिषी के पहुंच जाते हैं।




Role of planets in delaying marriage, reasons and remedies





विवाह का अर्थ:-जब दो विपरीत बिना जान-पहचान वाले जोड़े लड़के या लड़की पति-पत्नी के संबंध में जुड़कर अपने नवीन जीवन की शुरुआत करते हैं, तब उसे विवाह कहा जाता हैं।



विवाह कब होगा:-लड़के या लड़की का विवाह कब होगा इस विषय पर प्राचीन काल के मनीषियों ने ग्रहों की चाल की गणना के आधार पर, दशा एवं ज्ञान के द्वारा ज्योतिषीय योगों का निर्माण किया था। उन ज्योतिषीय योगों के द्वारा जाना जा सकता हैं, की लड़के या लड़की का विवाह कब तक होगा। लेकिन कभी-कभी विवाह के योग, दशा एवं अनुकूल ग्रहों की चाल में विवाह का समय तय करने पर भी विवाह नहीं हो पाता हैं। क्योंकि लड़के या लड़की की जन्मकुण्डली विवाह में बाधक या विलम्ब कारक या देरी के योग होते हैं, जिसके कारण विवाह में देरी या होता ही नहीं हैं।




विवाह बाधा योग का अर्थ:-जब जन्मकुण्डली में ग्रहों की स्थिति, योग, दशा और ग्रहों की मेल खाने वाली चाल होते हुए भी विवाह में देरी या विवाह समय पर नहीं हो पाता हैं, तब उसे विवाह बाधा योग कहा जाता हैं।




विवाह को सफल बनाने में भावों की भूमिका:-सबसे पहले विवाह करवाने में भावों की भूमिका क्या होती हैं और कौनसे-कौनसे भाव विवाहं करवाने में सहायक होते हैं, उनको जानना भी जरूरी हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार निम्नलिखित भावों के द्वारा विवाह के बारे में जानकारी मिलती हैं।



1.दूसरा घर:-दूसरे घर परिवार-कुटम्ब का होता है तथा लड़का या लड़की शादी करने के बाद में उस परिवार के हिस्से बन जाते हैं। सातवें घर से आठवां होने विवाह के आरम्भ और आखिरी की जानकारी करवाता हैं, इसलिए यह दूसरा घर बहुत ही जरूरी हो गया हैं। दूसरे घर से बुरे ग्रह, दूसरे घर का मालिक और दूसरे घर पर पापी ग्रहों के द्वारा पड़ने वाली दृष्टियां विवाह बाधा या देरी या विलम्ब कारण बनती हैं।




2.पांचवा घर:-पांचवां घर भी सुखी वैवाहिक जीवन के लिए आवश्यक होता हैं, क्योंकि वैवाहिक जीवन को सफल बनाने के लिए प्रेम एवं संतान की आवश्यकता होती हैं, जो कि पांचवें घर से ही मिल सकती हैं। इसलिए पांचवें घर की जाँच कर लेनी जरूरी होती हैं।




3.सातवां घर:-सातवें घर से लड़के एवं लड़की को सामाजिक एवं धार्मिक रूप पति-पत्नी के रुप में मान्यता एवं शारीरिक सुख आदि से सम्बन्धित सभी तरह के भावों की वास्तविकता सामने आती हैं। 




4.बारहवां घर:-बारहवें घर से स्त्री या पुरुष को पति-पत्नी के रूप में मिलने वाले शारीरिक सुख के बारे में जानकारी मिलती हैं।




5.आठवां घर:-आठवें घर से औरत की अच्छी किस्मत के बारे में जानकारी मिलती हैं, इसलिए आठवें घर की गहराई जांच जरूरी होती हैं।




विवाह कारक ग्रहों की जांच:-प्राचीन काल के विद्वानों ने लड़की या स्त्री और लड़के या पुरुष के विवाह के लिए अलग-अलग कारक ग्रह ज्योतिष शास्त्र में बताएं गए हैं, जो निम्नलिखित हैं।




लड़के या पुरुष के लिए विवाह कारक ग्रह:-शुक्र ग्रह को बताया गया हैं।



लड़की या स्त्री के लिए विवाह कारक ग्रह:-गुरु ग्रह को बताया गया हैं। प्रश्नकुंडली के विषय में लड़की या स्त्रियों के लिए विवाह कारक ग्रह शनि को बताया गया हैं।




सातवें घर की भूमिका:-विवाह के बारे में सही जानकारी सातवें घर, सातवें घर के मालिक, कारक ग्रह एवं इन पर पड़ने वाली दृष्टि से होता हैं।



शादी-विवाह में देरी कराने में ग्रहों की भूमिका एवं शादी में देरी या विलम्ब के कारण एवं कुंडली में बनने वाले विवाह प्रतिबंधक ज्योतिषीय योग:-लड़के या पुरुष और लड़की या स्त्री के शादी-विवाह में देरी या विलम्ब के बहुत सारे कारण हो सकते हैं। यदि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शादी में देरी कराने में ग्रहों की भूमिका होती हैं, जो निम्नलिखित ग्रह होते हैं। शादी-विवाह में विलम्ब या देरी कराने में सूर्य, चन्द्र, गुरु, शुक्र, शनि और राहु-केतु मुख्य रुप से अपनी भूमिका निभाते हैं। लड़के या पुरुष और स्त्री या लड़की जन्मकुण्डली में ज्योतिष शास्त्र में वर्णित ग्रहों से बनने वाले एक या एक से अधिक ज्योतिषीय योगों के होने से विवाह में विलम्ब या देरी की संभावना हो सकती हैं। विवाह में विलम्ब के लिए कौन-कौन से ग्रह बाधक और योग बनते हैं, वे निम्नलिखित हैं।




1.विलम्ब विवाह में शनि ग्रह की भूमिका:-विलम्ब विवाह में सबसे पहले शनि ग्रह को देखना चाहिए, क्योंकि शनि ग्रह अपने गति से चलते हुए एक राशि को दो वर्ष छः माह में चक्कर पूर्ण करता हैं और बारह राशियों को पार करने में तीस वर्ष का समय लेता हैं, इसलिए शादी में देरी होने में शनि की सबसे अधिक महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं।



1.जब जन्मकुण्डली के पहले घर और चन्द्र कुण्डली के पहले घर से मंद ग्रह पहले, तीसरे, पांचवें, सातवें या दशवें घर में स्थित होता हैं, तब लड़के या लड़की की शादी बहुत देरी से होती हैं। 



2.जब जन्मकुण्डली के पहले घर का स्वामी भृगु ग्रह के साथ बैठे होता हैं और मंद ग्रह आठवें घर में बैठा होता हैं, तब विवाहं में देरी होती हैं।



3.जब जन्मकुण्डली में मंद ग्रह सातवें घर में अपनी राशि (मकर, कुंभ राशि) में बैठा होता हैं और रवि ग्रह से सातवें घर में बैठा होता हैं, तब विवाह में रुकावट जरूर आती हैं।



4.जब जन्मकुण्डली के पहले घर में रवि एवं मंद ग्रह एक साथ संयोग करके बैठे होते हैं, तब लड़की या लड़के का विवाह देरी से होगा।



5.जब लड़के या लड़की की जन्मकुंडली के पहले घर में मंद और सातवें घर में सोम ग्रह बैठे हो अथवा सातवें घर में मंद एवं सोम दोनों एक साथ बैठे होते हैं, तब लड़के या लड़की के विवाह में जरूर देरी होगी।



6.जब लड़के या लड़की की जन्मकुंडली के छठे घर में मंद ग्रह, रवि ग्रह आठवें घर में होता हो और आठवें घर का मालिक पापी ग्रहों के प्रभाव से कमजोर हो तो विवाह होता ही नहीं हैं अथवा ज्यादा समय निकलने बाद विवाह होगा।



7.जब लड़के या लड़की की जन्मकुंडली के सातवें घर में रवि ग्रह बैठा होता हैं और मंद ग्रह अपनी पूर्ण दृष्टि से देखता हो अर्थात् पहले घर में, पांचवें घर में या दशवें घर में मंद ग्रह बैठा हो तो तब विवाह में देरी संभव होती हैं। 



8.यदि जन्मकुण्डली का सातवां घर या सातवें घर का मालिक मंद ग्रह के पाप प्रभाव से कमजोर होता हैं, तब विवाह में देरी होती हैं। 



9.यदि जन्मकुण्डली के किसी भी घर में रवि व मंद ग्रह के साथ भृगु ग्रह भी साथ में बैठा होता हैं, तब शादी में अवश्य देरी होगी। 



2.विलम्ब विवाह में शुक्र, सोम एवं रवि ग्रह की भूमिका:-भोग कारक शुक्र विवाह किस प्रकार से अपनी भूमिका निभाते हुए विवाह में विलम्ब करता हैं। 



1.ज्योतिष शास्त्र में भृगु ग्रह एवं सोम ग्रह को एक-दूसरे का दुश्मन माना गया है। सोम ग्रह की तरह रवि ग्रह भी भृगु ग्रह का दुश्मन ग्रह माना गया हैं, इसलिए जब लड़के या लड़की की जन्मकुण्डली के सातवें घर में रवि या सोम के साथ भृगु ग्रह का एक साथ बैठना की दशा पर बहुत ध्यान देने योग्य शोचनीय बात हैं।




2.जब लड़के या लड़की की जन्मकुंडली के सातवें घर में भौम एवं मंद ग्रह एक साथ बैठे होते हैं, तब अवश्य ही शादी के उचित समय से अधिक समय लगता हैं।



3.जब लड़के या लड़की की जन्मकुंडली के चौथे घर में सैंहिकीय ग्रह और पांचवें घर में भृगु बैठा होता हैं, तब विवाह विलम्ब से होता हैं।



4.जब लड़के या लड़की की जन्मकुंडली के सातवें घर में सौम्य एवं भृगु ग्रह एक साथ बैठे होते हैं, तब विवाह की बातें होती रहती है, लेकिन विवाह की उम्र काफी बीतने के बाद ही विवाहं हो पाता हैं।  



5.जब जन्मकुण्डली में जीव या भृगु ग्रह पहले, सातवें, नवें घर में और दशवें घर में योगकारक नहीं होते हैं और सोम ग्रह भी पाप ग्रहों के प्रभाव में होता हैं, तब लड़के या लड़की के विवाह में अड़चनें आती हैं।



6.जब जन्मकुण्डली के सातवें घर में भृगु अपने शत्रु की राशि में बैठा होता हैं, तब लड़के या लड़की के विवाह में अड़चनें आती हैं, जिससे विवाह में देरी जरूर होगी।



3.विलम्ब विवाह में सोम ग्रह की भूमिका:-मन को एक जगह पर स्थिर रखने का कारक सोम विवाह में किस प्रकार से अपनी भूमिका निभाते हुए विवाह में विलम्ब करता हैं।



1.जब जन्मकुण्डली में सातवें घर का स्वामी भृगु होता हैं एवं भृगु ग्रह के साथ रवि व सोम ग्रह बैठे होते हैं, तब विवाह में बाधाएं आती हैं या विवाह नहीं होता हैं। यदि जब सातवें घर में बैठे हुए ग्रहों पर जीव ग्रह अपनी पूर्ण दृष्टि से देखता हैं, तब जीवन में एक बार विवाहं जरूर होता हैं। उस वैवाहिक जीवन में लड़के-लड़की के सम्बन्धों में मधुरता नहीं रहती हैं।



2.जब जन्मकुण्डली के सातवें घर में रवि, भौम, मंद, राहु या केतु में से किसी पापी ग्रह के साथ यदि पहले घर का स्वामी और सोम ग्रह बैठा होता हैं और बारहवें घर में सातवें घर का मालिक बैठा होता हैं, तब शादी में देरी होगी।



3.जब जन्मकुण्डली में सोम ग्रह बैठा होता हैं, उससे गिनने पर जीव ग्रह सातवें आता हैं, तब शादी में विलंब होता हैं।




4.आचार्य आनन्द जालान के मतानुसार:-जब जन्मकुण्डली में सोम ग्रह की कर्क स्वराशि से गिनने पर जीव ग्रह सातवें घर में बैठा होता हैं, तब विवाह में अड़चनें आती रहती हैं। 




4.विलम्ब विवाह में रवि, भौम, मंद, राहु या केतु पापी ग्रहों की भूमिका:-मन को एक जगह पर स्थिर रखने का कारक सोम विवाह में किस प्रकार से अपनी भूमिका निभाते हुए विवाह में विलम्ब करता हैं।



◆जब जन्मकुण्डली में सोम एवं भृगु ग्रह के स्थित घर से गिनने पर सातवें घर में भौम और मंद ग्रह बैठा होता हैं, तब शादी में देरी होती हैं।



◆जब जन्मकुण्डली के सातवें भाव के दोनों तरफ पापी ग्रह जैसे-सूर्य, मंगल, शनि, राहु या केतु में से दो ग्रह से पापकर्तरी योग बन रहा होता हैं, तब शादी में देरी निश्चित रुप से होती हैं।



◆जब जन्मकुण्डली के पहले, सातवें घर में जीव ग्रह मंद ग्रह के साथ बैठा होता हैं, तब शादी में निश्चित रुप से देरी होती हैं।



◆जब लड़के या लड़की जन्मकुण्डली के पहले, चौथे, सातवें या बारहवें भाव में मंगल बैठा होता हैं, तब भी विवाह में देरी होती हैं।



◆जब जन्मकुण्डली के सातवें घर में सूर्य, मंगल, शनि, राहु, केतु में से कोई भी पापी ग्रह बैठा हो और आठवें घर पर पाप प्रभाव में गुरु ग्रह कमजोर होकर अपनी पूर्ण दृष्टि से देखता हैं, तब शादी में देरी होती हैं।

 


◆जब जन्मकुण्डली के सातवें घर में राहु और आठवें घर में मंगल ग्रह बैठा होता हैं, तब बहुत कोशिश करने पर शादी हो पाती हैं।



◆जब जन्मकुण्डली में भौम ग्रह पहले घर या चौथे घर बैठा होता हैं और मंद ग्रह सातवें घर में बैठा होता हैं, तब लड़का या लड़की की इच्छा शादी करने में नहीं होती हैं।



◆जब जन्मकुण्डली के पांचवें घर, सातवें घर या नवें घर में भौम तथा भृगु ग्रह एक साथ बैठे होते हैं और पाप प्रभाव में गुरु ग्रह कमजोर होकर अपनी पूर्ण दृष्टि से देखता हैं, तब शादी में देरी होती हैं।



◆जब जन्मकुण्डली के पहले, दूसरे, सातवें या बारहवें घर में चन्द्र तथा शनि एक साथ बैठा होता हैं, तब विवाह में बाधाएँ आती हैं।



◆जब जन्मकुण्डली के पांचवें घर में शुक्र ग्रह और ग्यारहवें घर में राहु ग्रह बैठा होता हैं, तब विवाहं में विलम्ब होता हैं।



◆जब जन्मकुण्डली के छठे, आठवें, बारहवें घर में रवि, मंगल, शनि, राहु, केतु में से कोई भी पापी ग्रह बैठे हो तो शादी में देरी होती हैं।



◆जब जन्मकुण्डली के छठे, आठवें, बारहवें घर में सातवें घर का स्वामी ग्रह बैठा हो तो शादी में देरी होती हैं।



◆जब जन्मकुण्डली के छठे, आठवें, बारहवें घर का स्वामी ग्रह सातवें घर का स्वामी ग्रह हो, तो कोई भी शुभ ग्रह जैसे-चन्द्र, बुध, गुरु, शुक्र में से पहले, पांचवें, नवें घर में योगकारक नही होता हैं, तो लड़की या लड़के की शादी में देरी होती हैं।



◆जब जन्मकुण्डली के पहले घर या पहले घर के स्वामी को सूर्य, मंगल या बुध अपनी पूर्ण दृष्टि के द्वारा देखते हो और बारहवें घर में गुरु ग्रह स्थित होता हैं, तब लड़का या लड़की की ज्यादा रुचि परमात्मा और आत्मा के पारस्परिक संबंध के बारे में गहराई से सोचने में डूबे रहने की होने से विवाह में विलंब करवाती हैं।


इस तरह से जन्मकुण्डली में बहुत सारे कारण या योग बनते हैं, जिसके कारण लड़के या पुरुष और लड़की या स्त्री का विवाह समय पर नहीं हो पाता हैं और विवाह में देरी के कारण बनते हैं।



विवाह में विलम्ब या देरी अथवा विवाह बाधा निवारण उपाय:-निम्नलिखित हैं, जिनको करने से विवाह हो देरी में राहत मिलती हैं।



◆जन्मकुण्डली में जो ग्रह कमजोर होते हैं, उनकी शांति यन्त्र, तंत्र और मन्त्र के उपायों को किसी योग्य विद्वान से कराना चाहिए।



◆अपने कुलदेवी-देवता और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उनकी जो मन्नत रखी होती हैं, उनको पूरा करना चाहिए।



◆लड़के या लड़की को किसी योग्य विद्वान से कात्यायनी यन्त्र को मन्त्रों के द्वारा सिद्ध करवाकर उसका नियमित रुप से पूजन करना चाहिए। कात्यायनी मन्त्र का वांचन एक सौ आठ बार करना चाहिए।



◆जिन लड़के या लड़की का विवाह होने देरी हो रही हैं, उनको नौ दिन तक संकल्प लेकर लगातार नौ दिनों तक भगवान रामजी को खुश करने के लिए 'श्री रामरक्षा स्तोत्र' का वांचन करना चाहिए।



◆भगवान शिवजी को खुश करने के लिए सोमवार का व्रत करना चाहिए, क्योंकि भगवान शिवजी जल्दी अपनी भक्त पुकार सुनते हैं।



◆लड़की या स्त्री के विवाह देरी होने पर उनको माता महागौरी पार्वती को खुश करने के लिए उनका नवरात्रि में नौ दिनों तक व्रत एवं पूजन करना चाहिए।



◆भगवान सूर्य सभी ग्रहों के राजा होने से उनको खुश करने के लिए नियमित रुप से लाल मिर्च का एक दाना या इलायची का एक दाना ताम्र धातु से बने लोटे में जल से परिपूर्ण करके उस जल से सूर्यदेव को अर्घ्य देना चाहिए। 



◆माता पुष्पसारा का नियमित रूप पूजन करना चाहिए और पूजन करने के बाद उनकी ग्यारह परिक्रमा करें।



◆लड़की या स्त्री को ग्यारह, इक्कीस या इक्यावन गुरुवार के व्रत का संकल्प लेकर व्रत करना चाहिए।



◆लड़के या पुरुष को ग्यारह, इक्कीस या इक्यावन शुक्रवार के व्रत का संकल्प लेकर व्रत करना चाहिए।



◆लड़के या पुरुष को शुक्र ग्रह के रत्न हीरा को किसी योग्य पण्डित के द्वारा उनके बताए हुए मार्गदर्शन के अनुसार मन्त्रों से सिद्ध कराके शुक्रवार को पहनना चाहिए। 



◆लड़की या स्त्री को गुरु ग्रह के रत्न पुखराज या सौनेला या टोपाज को किसी योग्य पण्डित के द्वारा उनके बताए हुए मार्गदर्शन के अनुसार मन्त्रों से सिद्ध कराके गुरुवार को पहनना चाहिए। 



◆लड़की या स्त्री को शुद्ध दो मुखी रुद्राक्ष को किसी योग्य पण्डित के द्वारा उनके बताए हुए मार्गदर्शन के अनुसार मन्त्रों से सिद्ध कराके बाँयी भुजा में धारण करना चाहिए। 



◆लड़की या स्त्री को केले की मूल को पीत वर्ण के कपड़े में बांधकर किसी योग्य पण्डित के द्वारा उनके बताए हुए मार्गदर्शन के अनुसार मन्त्रों से सिद्ध कराके के बाँयी भुजा में धारण करना चाहिए।



◆लड़की या स्त्री को कदली वृक्ष का पूजन करना चाहिए। 



◆लड़की या स्त्री को प्रत्येक गुरुवार के दिन अन्न और रामरस को ग्रहण नहीं करना चाहिए। केवल फलों और दूध का सेवन करते हुए व्रत को पूर्ण करना चाहिए।



◆लड़की या स्त्री और लड़के या पुरुष के मांगलिक योग जन्मकुण्डली में बनने पर प्रत्येक मंगलवार 'मंगल चण्डिका स्तोत्र' का वांचन करना शुरू करें।