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Monday, March 17, 2025

March 17, 2025

विवाह में देरी (विलम्ब) कराने में ग्रहों की भूमिका, कारण एवं उपाय(Role of planets in delaying marriage, reasons and remedies)

विवाह में देरी (विलम्ब) कराने में ग्रहों की भूमिका, कारण एवं उपाय(Role of planets in delaying marriage, reasons and remedies):-ईश्वर के द्वारा बनाई हुई सृष्टि में प्रत्येक जीव अकेला नहीं रह सकता हैं। सभी जीवों में सबसे अच्छा जीव मानव को माना गया है। मानव की जब से उत्पत्ति हुई हैं, वह अपने जीवन को चलाने के लिए उसे किसी न किसी के सहारे की जरूरत पड़ती हैं। समस्त सृष्टि में वह अपने जीवन को अकेला नहीं व्यतीत कर सकता हैं, इसलिए उसके जन्म से लेकर मरण तक वह किसी न किसी का साथ चाहता हैं। जैसे-अपने बाल्यकाल में माता-पिता, भाई-बहिन का साथ, फिर नये-नए दोस्तों का साथ चाहता हैं। जब वह बारह से अठारह वर्ष की उम्र में प्रवेश करता हैं, तब उसका झुकाव अपने से विपरीत देह वालों का साथ, जब वह जवानी में प्रवेश करता हैं, तब उसकी सोच होती हैं कि उसका जीवन भर कोई उसका साथ निभाने वाले विपरीत देह की तरफ बढ़ता जाता हैं। जैसे ही यौवन अवस्था में प्रवेश होता हैं, तब से उसके माता-पिता उसकी शादी के बारे में विचारने लग जाते है। उस लड़के या लड़की की जन्मकुण्डली को लेकर किसी जानकार ज्योतिषी के पहुंच जाते हैं।




Role of planets in delaying marriage, reasons and remedies





विवाह का अर्थ:-जब दो विपरीत बिना जान-पहचान वाले जोड़े लड़के या लड़की पति-पत्नी के संबंध में जुड़कर अपने नवीन जीवन की शुरुआत करते हैं, तब उसे विवाह कहा जाता हैं।



विवाह कब होगा:-लड़के या लड़की का विवाह कब होगा इस विषय पर प्राचीन काल के मनीषियों ने ग्रहों की चाल की गणना के आधार पर, दशा एवं ज्ञान के द्वारा ज्योतिषीय योगों का निर्माण किया था। उन ज्योतिषीय योगों के द्वारा जाना जा सकता हैं, की लड़के या लड़की का विवाह कब तक होगा। लेकिन कभी-कभी विवाह के योग, दशा एवं अनुकूल ग्रहों की चाल में विवाह का समय तय करने पर भी विवाह नहीं हो पाता हैं। क्योंकि लड़के या लड़की की जन्मकुण्डली विवाह में बाधक या विलम्ब कारक या देरी के योग होते हैं, जिसके कारण विवाह में देरी या होता ही नहीं हैं।




विवाह बाधा योग का अर्थ:-जब जन्मकुण्डली में ग्रहों की स्थिति, योग, दशा और ग्रहों की मेल खाने वाली चाल होते हुए भी विवाह में देरी या विवाह समय पर नहीं हो पाता हैं, तब उसे विवाह बाधा योग कहा जाता हैं।




विवाह को सफल बनाने में भावों की भूमिका:-सबसे पहले विवाह करवाने में भावों की भूमिका क्या होती हैं और कौनसे-कौनसे भाव विवाहं करवाने में सहायक होते हैं, उनको जानना भी जरूरी हैं। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार निम्नलिखित भावों के द्वारा विवाह के बारे में जानकारी मिलती हैं।



1.दूसरा घर:-दूसरे घर परिवार-कुटम्ब का होता है तथा लड़का या लड़की शादी करने के बाद में उस परिवार के हिस्से बन जाते हैं। सातवें घर से आठवां होने विवाह के आरम्भ और आखिरी की जानकारी करवाता हैं, इसलिए यह दूसरा घर बहुत ही जरूरी हो गया हैं। दूसरे घर से बुरे ग्रह, दूसरे घर का मालिक और दूसरे घर पर पापी ग्रहों के द्वारा पड़ने वाली दृष्टियां विवाह बाधा या देरी या विलम्ब कारण बनती हैं।




2.पांचवा घर:-पांचवां घर भी सुखी वैवाहिक जीवन के लिए आवश्यक होता हैं, क्योंकि वैवाहिक जीवन को सफल बनाने के लिए प्रेम एवं संतान की आवश्यकता होती हैं, जो कि पांचवें घर से ही मिल सकती हैं। इसलिए पांचवें घर की जाँच कर लेनी जरूरी होती हैं।




3.सातवां घर:-सातवें घर से लड़के एवं लड़की को सामाजिक एवं धार्मिक रूप पति-पत्नी के रुप में मान्यता एवं शारीरिक सुख आदि से सम्बन्धित सभी तरह के भावों की वास्तविकता सामने आती हैं। 




4.बारहवां घर:-बारहवें घर से स्त्री या पुरुष को पति-पत्नी के रूप में मिलने वाले शारीरिक सुख के बारे में जानकारी मिलती हैं।




5.आठवां घर:-आठवें घर से औरत की अच्छी किस्मत के बारे में जानकारी मिलती हैं, इसलिए आठवें घर की गहराई जांच जरूरी होती हैं।




विवाह कारक ग्रहों की जांच:-प्राचीन काल के विद्वानों ने लड़की या स्त्री और लड़के या पुरुष के विवाह के लिए अलग-अलग कारक ग्रह ज्योतिष शास्त्र में बताएं गए हैं, जो निम्नलिखित हैं।




लड़के या पुरुष के लिए विवाह कारक ग्रह:-शुक्र ग्रह को बताया गया हैं।



लड़की या स्त्री के लिए विवाह कारक ग्रह:-गुरु ग्रह को बताया गया हैं। प्रश्नकुंडली के विषय में लड़की या स्त्रियों के लिए विवाह कारक ग्रह शनि को बताया गया हैं।




सातवें घर की भूमिका:-विवाह के बारे में सही जानकारी सातवें घर, सातवें घर के मालिक, कारक ग्रह एवं इन पर पड़ने वाली दृष्टि से होता हैं।



शादी-विवाह में देरी कराने में ग्रहों की भूमिका एवं शादी में देरी या विलम्ब के कारण एवं कुंडली में बनने वाले विवाह प्रतिबंधक ज्योतिषीय योग:-लड़के या पुरुष और लड़की या स्त्री के शादी-विवाह में देरी या विलम्ब के बहुत सारे कारण हो सकते हैं। यदि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शादी में देरी कराने में ग्रहों की भूमिका होती हैं, जो निम्नलिखित ग्रह होते हैं। शादी-विवाह में विलम्ब या देरी कराने में सूर्य, चन्द्र, गुरु, शुक्र, शनि और राहु-केतु मुख्य रुप से अपनी भूमिका निभाते हैं। लड़के या पुरुष और स्त्री या लड़की जन्मकुण्डली में ज्योतिष शास्त्र में वर्णित ग्रहों से बनने वाले एक या एक से अधिक ज्योतिषीय योगों के होने से विवाह में विलम्ब या देरी की संभावना हो सकती हैं। विवाह में विलम्ब के लिए कौन-कौन से ग्रह बाधक और योग बनते हैं, वे निम्नलिखित हैं।




1.विलम्ब विवाह में शनि ग्रह की भूमिका:-विलम्ब विवाह में सबसे पहले शनि ग्रह को देखना चाहिए, क्योंकि शनि ग्रह अपने गति से चलते हुए एक राशि को दो वर्ष छः माह में चक्कर पूर्ण करता हैं और बारह राशियों को पार करने में तीस वर्ष का समय लेता हैं, इसलिए शादी में देरी होने में शनि की सबसे अधिक महत्वपूर्ण भूमिका होती हैं।



1.जब जन्मकुण्डली के पहले घर और चन्द्र कुण्डली के पहले घर से मंद ग्रह पहले, तीसरे, पांचवें, सातवें या दशवें घर में स्थित होता हैं, तब लड़के या लड़की की शादी बहुत देरी से होती हैं। 



2.जब जन्मकुण्डली के पहले घर का स्वामी भृगु ग्रह के साथ बैठे होता हैं और मंद ग्रह आठवें घर में बैठा होता हैं, तब विवाहं में देरी होती हैं।



3.जब जन्मकुण्डली में मंद ग्रह सातवें घर में अपनी राशि (मकर, कुंभ राशि) में बैठा होता हैं और रवि ग्रह से सातवें घर में बैठा होता हैं, तब विवाह में रुकावट जरूर आती हैं।



4.जब जन्मकुण्डली के पहले घर में रवि एवं मंद ग्रह एक साथ संयोग करके बैठे होते हैं, तब लड़की या लड़के का विवाह देरी से होगा।



5.जब लड़के या लड़की की जन्मकुंडली के पहले घर में मंद और सातवें घर में सोम ग्रह बैठे हो अथवा सातवें घर में मंद एवं सोम दोनों एक साथ बैठे होते हैं, तब लड़के या लड़की के विवाह में जरूर देरी होगी।



6.जब लड़के या लड़की की जन्मकुंडली के छठे घर में मंद ग्रह, रवि ग्रह आठवें घर में होता हो और आठवें घर का मालिक पापी ग्रहों के प्रभाव से कमजोर हो तो विवाह होता ही नहीं हैं अथवा ज्यादा समय निकलने बाद विवाह होगा।



7.जब लड़के या लड़की की जन्मकुंडली के सातवें घर में रवि ग्रह बैठा होता हैं और मंद ग्रह अपनी पूर्ण दृष्टि से देखता हो अर्थात् पहले घर में, पांचवें घर में या दशवें घर में मंद ग्रह बैठा हो तो तब विवाह में देरी संभव होती हैं। 



8.यदि जन्मकुण्डली का सातवां घर या सातवें घर का मालिक मंद ग्रह के पाप प्रभाव से कमजोर होता हैं, तब विवाह में देरी होती हैं। 



9.यदि जन्मकुण्डली के किसी भी घर में रवि व मंद ग्रह के साथ भृगु ग्रह भी साथ में बैठा होता हैं, तब शादी में अवश्य देरी होगी। 



2.विलम्ब विवाह में शुक्र, सोम एवं रवि ग्रह की भूमिका:-भोग कारक शुक्र विवाह किस प्रकार से अपनी भूमिका निभाते हुए विवाह में विलम्ब करता हैं। 



1.ज्योतिष शास्त्र में भृगु ग्रह एवं सोम ग्रह को एक-दूसरे का दुश्मन माना गया है। सोम ग्रह की तरह रवि ग्रह भी भृगु ग्रह का दुश्मन ग्रह माना गया हैं, इसलिए जब लड़के या लड़की की जन्मकुण्डली के सातवें घर में रवि या सोम के साथ भृगु ग्रह का एक साथ बैठना की दशा पर बहुत ध्यान देने योग्य शोचनीय बात हैं।




2.जब लड़के या लड़की की जन्मकुंडली के सातवें घर में भौम एवं मंद ग्रह एक साथ बैठे होते हैं, तब अवश्य ही शादी के उचित समय से अधिक समय लगता हैं।



3.जब लड़के या लड़की की जन्मकुंडली के चौथे घर में सैंहिकीय ग्रह और पांचवें घर में भृगु बैठा होता हैं, तब विवाह विलम्ब से होता हैं।



4.जब लड़के या लड़की की जन्मकुंडली के सातवें घर में सौम्य एवं भृगु ग्रह एक साथ बैठे होते हैं, तब विवाह की बातें होती रहती है, लेकिन विवाह की उम्र काफी बीतने के बाद ही विवाहं हो पाता हैं।  



5.जब जन्मकुण्डली में जीव या भृगु ग्रह पहले, सातवें, नवें घर में और दशवें घर में योगकारक नहीं होते हैं और सोम ग्रह भी पाप ग्रहों के प्रभाव में होता हैं, तब लड़के या लड़की के विवाह में अड़चनें आती हैं।



6.जब जन्मकुण्डली के सातवें घर में भृगु अपने शत्रु की राशि में बैठा होता हैं, तब लड़के या लड़की के विवाह में अड़चनें आती हैं, जिससे विवाह में देरी जरूर होगी।



3.विलम्ब विवाह में सोम ग्रह की भूमिका:-मन को एक जगह पर स्थिर रखने का कारक सोम विवाह में किस प्रकार से अपनी भूमिका निभाते हुए विवाह में विलम्ब करता हैं।



1.जब जन्मकुण्डली में सातवें घर का स्वामी भृगु होता हैं एवं भृगु ग्रह के साथ रवि व सोम ग्रह बैठे होते हैं, तब विवाह में बाधाएं आती हैं या विवाह नहीं होता हैं। यदि जब सातवें घर में बैठे हुए ग्रहों पर जीव ग्रह अपनी पूर्ण दृष्टि से देखता हैं, तब जीवन में एक बार विवाहं जरूर होता हैं। उस वैवाहिक जीवन में लड़के-लड़की के सम्बन्धों में मधुरता नहीं रहती हैं।



2.जब जन्मकुण्डली के सातवें घर में रवि, भौम, मंद, राहु या केतु में से किसी पापी ग्रह के साथ यदि पहले घर का स्वामी और सोम ग्रह बैठा होता हैं और बारहवें घर में सातवें घर का मालिक बैठा होता हैं, तब शादी में देरी होगी।



3.जब जन्मकुण्डली में सोम ग्रह बैठा होता हैं, उससे गिनने पर जीव ग्रह सातवें आता हैं, तब शादी में विलंब होता हैं।




4.आचार्य आनन्द जालान के मतानुसार:-जब जन्मकुण्डली में सोम ग्रह की कर्क स्वराशि से गिनने पर जीव ग्रह सातवें घर में बैठा होता हैं, तब विवाह में अड़चनें आती रहती हैं। 




4.विलम्ब विवाह में रवि, भौम, मंद, राहु या केतु पापी ग्रहों की भूमिका:-मन को एक जगह पर स्थिर रखने का कारक सोम विवाह में किस प्रकार से अपनी भूमिका निभाते हुए विवाह में विलम्ब करता हैं।



◆जब जन्मकुण्डली में सोम एवं भृगु ग्रह के स्थित घर से गिनने पर सातवें घर में भौम और मंद ग्रह बैठा होता हैं, तब शादी में देरी होती हैं।



◆जब जन्मकुण्डली के सातवें भाव के दोनों तरफ पापी ग्रह जैसे-सूर्य, मंगल, शनि, राहु या केतु में से दो ग्रह से पापकर्तरी योग बन रहा होता हैं, तब शादी में देरी निश्चित रुप से होती हैं।



◆जब जन्मकुण्डली के पहले, सातवें घर में जीव ग्रह मंद ग्रह के साथ बैठा होता हैं, तब शादी में निश्चित रुप से देरी होती हैं।



◆जब लड़के या लड़की जन्मकुण्डली के पहले, चौथे, सातवें या बारहवें भाव में मंगल बैठा होता हैं, तब भी विवाह में देरी होती हैं।



◆जब जन्मकुण्डली के सातवें घर में सूर्य, मंगल, शनि, राहु, केतु में से कोई भी पापी ग्रह बैठा हो और आठवें घर पर पाप प्रभाव में गुरु ग्रह कमजोर होकर अपनी पूर्ण दृष्टि से देखता हैं, तब शादी में देरी होती हैं।

 


◆जब जन्मकुण्डली के सातवें घर में राहु और आठवें घर में मंगल ग्रह बैठा होता हैं, तब बहुत कोशिश करने पर शादी हो पाती हैं।



◆जब जन्मकुण्डली में भौम ग्रह पहले घर या चौथे घर बैठा होता हैं और मंद ग्रह सातवें घर में बैठा होता हैं, तब लड़का या लड़की की इच्छा शादी करने में नहीं होती हैं।



◆जब जन्मकुण्डली के पांचवें घर, सातवें घर या नवें घर में भौम तथा भृगु ग्रह एक साथ बैठे होते हैं और पाप प्रभाव में गुरु ग्रह कमजोर होकर अपनी पूर्ण दृष्टि से देखता हैं, तब शादी में देरी होती हैं।



◆जब जन्मकुण्डली के पहले, दूसरे, सातवें या बारहवें घर में चन्द्र तथा शनि एक साथ बैठा होता हैं, तब विवाह में बाधाएँ आती हैं।



◆जब जन्मकुण्डली के पांचवें घर में शुक्र ग्रह और ग्यारहवें घर में राहु ग्रह बैठा होता हैं, तब विवाहं में विलम्ब होता हैं।



◆जब जन्मकुण्डली के छठे, आठवें, बारहवें घर में रवि, मंगल, शनि, राहु, केतु में से कोई भी पापी ग्रह बैठे हो तो शादी में देरी होती हैं।



◆जब जन्मकुण्डली के छठे, आठवें, बारहवें घर में सातवें घर का स्वामी ग्रह बैठा हो तो शादी में देरी होती हैं।



◆जब जन्मकुण्डली के छठे, आठवें, बारहवें घर का स्वामी ग्रह सातवें घर का स्वामी ग्रह हो, तो कोई भी शुभ ग्रह जैसे-चन्द्र, बुध, गुरु, शुक्र में से पहले, पांचवें, नवें घर में योगकारक नही होता हैं, तो लड़की या लड़के की शादी में देरी होती हैं।



◆जब जन्मकुण्डली के पहले घर या पहले घर के स्वामी को सूर्य, मंगल या बुध अपनी पूर्ण दृष्टि के द्वारा देखते हो और बारहवें घर में गुरु ग्रह स्थित होता हैं, तब लड़का या लड़की की ज्यादा रुचि परमात्मा और आत्मा के पारस्परिक संबंध के बारे में गहराई से सोचने में डूबे रहने की होने से विवाह में विलंब करवाती हैं।


इस तरह से जन्मकुण्डली में बहुत सारे कारण या योग बनते हैं, जिसके कारण लड़के या पुरुष और लड़की या स्त्री का विवाह समय पर नहीं हो पाता हैं और विवाह में देरी के कारण बनते हैं।



विवाह में विलम्ब या देरी अथवा विवाह बाधा निवारण उपाय:-निम्नलिखित हैं, जिनको करने से विवाह हो देरी में राहत मिलती हैं।



◆जन्मकुण्डली में जो ग्रह कमजोर होते हैं, उनकी शांति यन्त्र, तंत्र और मन्त्र के उपायों को किसी योग्य विद्वान से कराना चाहिए।



◆अपने कुलदेवी-देवता और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए उनकी जो मन्नत रखी होती हैं, उनको पूरा करना चाहिए।



◆लड़के या लड़की को किसी योग्य विद्वान से कात्यायनी यन्त्र को मन्त्रों के द्वारा सिद्ध करवाकर उसका नियमित रुप से पूजन करना चाहिए। कात्यायनी मन्त्र का वांचन एक सौ आठ बार करना चाहिए।



◆जिन लड़के या लड़की का विवाह होने देरी हो रही हैं, उनको नौ दिन तक संकल्प लेकर लगातार नौ दिनों तक भगवान रामजी को खुश करने के लिए 'श्री रामरक्षा स्तोत्र' का वांचन करना चाहिए।



◆भगवान शिवजी को खुश करने के लिए सोमवार का व्रत करना चाहिए, क्योंकि भगवान शिवजी जल्दी अपनी भक्त पुकार सुनते हैं।



◆लड़की या स्त्री के विवाह देरी होने पर उनको माता महागौरी पार्वती को खुश करने के लिए उनका नवरात्रि में नौ दिनों तक व्रत एवं पूजन करना चाहिए।



◆भगवान सूर्य सभी ग्रहों के राजा होने से उनको खुश करने के लिए नियमित रुप से लाल मिर्च का एक दाना या इलायची का एक दाना ताम्र धातु से बने लोटे में जल से परिपूर्ण करके उस जल से सूर्यदेव को अर्घ्य देना चाहिए। 



◆माता पुष्पसारा का नियमित रूप पूजन करना चाहिए और पूजन करने के बाद उनकी ग्यारह परिक्रमा करें।



◆लड़की या स्त्री को ग्यारह, इक्कीस या इक्यावन गुरुवार के व्रत का संकल्प लेकर व्रत करना चाहिए।



◆लड़के या पुरुष को ग्यारह, इक्कीस या इक्यावन शुक्रवार के व्रत का संकल्प लेकर व्रत करना चाहिए।



◆लड़के या पुरुष को शुक्र ग्रह के रत्न हीरा को किसी योग्य पण्डित के द्वारा उनके बताए हुए मार्गदर्शन के अनुसार मन्त्रों से सिद्ध कराके शुक्रवार को पहनना चाहिए। 



◆लड़की या स्त्री को गुरु ग्रह के रत्न पुखराज या सौनेला या टोपाज को किसी योग्य पण्डित के द्वारा उनके बताए हुए मार्गदर्शन के अनुसार मन्त्रों से सिद्ध कराके गुरुवार को पहनना चाहिए। 



◆लड़की या स्त्री को शुद्ध दो मुखी रुद्राक्ष को किसी योग्य पण्डित के द्वारा उनके बताए हुए मार्गदर्शन के अनुसार मन्त्रों से सिद्ध कराके बाँयी भुजा में धारण करना चाहिए। 



◆लड़की या स्त्री को केले की मूल को पीत वर्ण के कपड़े में बांधकर किसी योग्य पण्डित के द्वारा उनके बताए हुए मार्गदर्शन के अनुसार मन्त्रों से सिद्ध कराके के बाँयी भुजा में धारण करना चाहिए।



◆लड़की या स्त्री को कदली वृक्ष का पूजन करना चाहिए। 



◆लड़की या स्त्री को प्रत्येक गुरुवार के दिन अन्न और रामरस को ग्रहण नहीं करना चाहिए। केवल फलों और दूध का सेवन करते हुए व्रत को पूर्ण करना चाहिए।



◆लड़की या स्त्री और लड़के या पुरुष के मांगलिक योग जन्मकुण्डली में बनने पर प्रत्येक मंगलवार 'मंगल चण्डिका स्तोत्र' का वांचन करना शुरू करें। 








Thursday, February 20, 2025

February 20, 2025

शुक्र ग्रह को मजबूत करें, सुख व ऐश्वर्य पाएं (Strengthen the planet Venus, get happiness and prosperity)

शुक्र ग्रह को मजबूत करें, सुख व ऐश्वर्य पाएं (Strengthen the planet Venus, get happiness and prosperity):-आकाशीय नवग्रहों में से शुक्र की दीप्ति रूपी चमचमाहट और दबदबा सबसे जुदा और अद्वितीय हैं। इस तरह की मनोहरता के लिए शुक्र मशहूर हैं। अतः जब किसी भी जातक की देह की खूबसूरती और उसके मुखड़े की ताजगी और शोभा को देखना हैं तो जन्मकुण्डली में जन्म समय में शुक्र के हालात को देखना जरूरी होता हैं। यदि जन्मकुण्डली में शुक्र बुरे व क्रूर ग्रहों के साथ बैठा हो, दृष्टि संयोग के असर से कमजोर हैं और शुभ ग्रहों के साथ युति, दृष्टि से रहित हैं, तो स्त्री सुख या सुख-सुविधाओं एवं रहने के तरीके में सबसे पिछड़ा ही रहेगा। शुक्र का असर आधुनिक समय बहुत अधिक ही देखने को मिलता है। औरत का कारक ग्रह शुक्र ग्रह होता हैं। मन को अपनी तरफ आकर्षित करने, खूबसूरती का कारक शुक्र कारक ग्रह हैं। आधुनिक समय में अपनी सुंदरता में चार-चाँद लगाने के लिए बहुत सारी जगहों पर अलग-अलग ब्यूटी पार्लर खुल गए हैं, जहाँ पर आदमी या औरतें जाकर सबसे सुंदर देखने के लिए प्रयास करते हैं। खूबसूरती सभी को अपनी तरफ खींचने की क्षमता रखती हैं, इस खूबसूरती का प्रतीक शुक्र हैं। इसलिए संसार में बनी हुई हरेक वस्तु, चीज, जीव-जंतु, पेड़-पौधे आदि जो सबसे बढ़िया होती हैं, वह खूबसूरत हैं, भली-भाँति संस्कारित हैं, उसका रिश्ता शुक्र से हैं। इसलिए खूबसूरती हमेशा सभी को अपने मोह में खींचने के भाव रखती हैं। अतः जिनका शुक्र ग्रह जन्मकुण्डली में मजबूती दशा में होता हैं वह हमेशा अपने आप में दूसरों को अपनी तरफ खींचने का मुख्य बिंदु होते हैं। इस तरह जब भी शुक्र ग्रह जन्मकुण्डली में कमजोर हालात में होता हैं, तब शुक्र ग्रह से सम्बंधित उपायों को अपनाते हुए, कमजोर शुक्र ग्रह को बलवान करके, सुख व ऐश्वर्य को पाया जा सकता हैं। इसलिए शुक्र को बलवान करें, सुख व ऐश्वर्य पाएं।




Strengthen the planet Venus, get happiness and prosperity




जन्मकुण्डली में शुक्र ग्रह का प्रभाव:-जन्मकुण्डली में शुक्र ग्रह की स्थिति के आधार पर शुभ या अशुभ प्रभाव मिलते हैं। इन प्रभावों को जानने से पूर्व शुक्र ग्रह के बारे में जानकारी जानना भी जरूरी होता हैं, जिससे शुक्र की स्थिति का पता चल सकें।



◆आकाश में छोटे-छोटे तारों के समूह में नवग्रह होते हैं, उन नवग्रहों में से शुक्र ग्रह चमकीले रूप में अपनी गति से घूमते हुए अपनी परिक्रमा को पूर्ण करता हैं। इस तरह से शुक्र को आकाशगंगा में ग्रह के रूप में स्थान मिला हैं। बारह राशियों में से दो राशियों जैसे-वृषभ और तुला राशि का स्वामी होता हैं और महादशाओं में शुक्र ग्रह की महादशा बीस वर्ष की होती हैं।



◆शुक्र अपनी गति से घूमते हुए एक राशि का चक्कर पूर्ण लगाकर दूसरी राशि में प्रवेश करने में डेढ़ महीना का समय लेते हैं या सत्ताईस दिन का समय लेते हैं। 



◆सताईस नक्षत्रों में से तीन नक्षत्रों जैसे-भरणी, पूर्वाफाल्गुनी और पूर्वाषाढ़ा आदि पर अपना स्वामित्व रखते हैं। 



◆शुक्र ग्रह शीघ ही आवेश में आने वाला, ऊर्जा से परिपूर्ण, दूसरों पर रौब जमाने वाले, अपने आपको ही सबकुछ मानने वाला, सभी तरह की सुख-सुविधाओं, बहुत सारी चाहत वाला, अपना मतलब साधने वाले आदि राजसिक गुणों वाले होते हैं।



◆शुक्र ग्रह गुरु की राशियाँ जैसे-धनु व मीन के साथ सम, एवं शनि की राशियाँ जैसे-मकर, कुंभ, मंगल की राशियाँ जैसे-मेष, वृश्चिक के साथ सम, बुध की राशियाँ जैसे-मिथुन, कन्या के साथ मित्रता का सलूक करते हैं।




◆शुक्र ग्रह चन्द्रमा की राशि कर्क और सूर्य की राशि सिंह के साथ दुश्मन की तरह सलूक करते हैं। 




◆शुक्र ग्रह की उच्च राशि मीन होती हैं, जिससे मीन राशि में अपनी उच्चता रखते हुए अच्छा फल प्रदान करते हैं।



◆शुक्र ग्रह की नीच राशि कन्या होती हैं, जिससे कन्या राशि में अपनी नीचता के भाव रखते हुए बुरे फल प्रदान करते हैं।




◆सौम्य या बुध ग्रह के साथ पवित्र, निर्मल, सत्यनिष्ठा शुक्र ग्रह रखते हुए सलूक करते हैं।



◆मंद एवं सैंहिकय ग्रह के साथ अपने हठधर्मिता, सम्मान नहीं देते हुए औए असभ्य सलूक शुक्र करते हैं।



◆शुक्र ग्रह रवि, सोम और भौम के साथ दुश्मनी भाव रखते हुए दुश्मन की तरह सलूक करता हैं।



◆शुक्र ग्रह जिस स्थान पर भी बैठा होता हैं, उस स्थान से अपनी सातवीं पूर्ण दृष्टि से सातवें घर को देखतहें।



◆शुक्र ग्रह दक्षिण-पूर्व दिशा (आग्नेय कोण) पर स्वामीत्व रखते है। जब किसी भी जातक का जन्म दिन के समय हुआ होता हैं, तब उसकी जन्मकुण्डली में शुक्र ग्रह के द्वारा माता की कुंडली का भी अध्ययन किया जाता हैं।



 

◆जब किसी भी जातक की जन्मकुण्डली के पहले घर से सातवें घर में शुक्र ग्रह बैठा होता हैं, तब वह बुरा व अमंगलकारी नतीजे ही प्रदान करता हैं। ग्रह गति के आधार पर जब दो सौ सताइस वर्ष का समय शुक्र ग्रह घूमते हुए पूर्ण करता हैं, तब शुक्र ग्रह वापस जिस तिथि, मास, दिन व समय में उसी अंशादी में वापस आ जाता हैं।




◆जब किसी भी जातक के पाणिग्रहण, दाम्पत्य जीवन सुख, निवास स्थान के बनाने के लिए, अपने जन्म स्थान से परदेश में जाने, पद की तरक्की, जीविका निर्वाह के साधन के शुरू करने में, शुभ कार्यक्रम या उत्सव आदि के मुहूर्त को निकालते समय जातक की जन्मकुण्डली में स्थित शुक्र की स्थिति को ध्यान में रखते हुए किया जाता हैं।

 


◆मनुष्य के जीवनकाल में सभी तरह के आराम को प्रदान करने का नियामक शुक्र ग्रह को माना जाता हैं। इसलिए जो मनुष्य अपने जीवनकाल में सभी तरह के आराम, धन-संपत्ति व सफलता की कामना रखते हैं, उन मनुष्य की जन्मकुण्डली में शुक्र ग्रह का मजबूत या बलवान होना बहुत जरूरी होता हैं।






◆शुक्र खूबसूरती, सभी तरह के सुख को भोगते हुए जैसे-शारीरिक सुख, प्रणयक्रिड़ा आदि से हँसी-खुशी का जीवन जीना, दूसरों को अपने मनमोहक भावों से अपनी तरफ खींचने का, लगाव, स्नेह, किसी भी काम को सही तरीके से करने में दक्षता, चित्रकारी, मधुर विशष्ट ध्वनियों के साथ गाने वाले संगीत, जीवन को सभी तरह के आरामदायक वस्तु आदि से बहुत सरल और घनिष्ठ रिश्ता हैं। शुक्र सभी तरह के आराम या मौज का कारक ग्रह है। आधुनिक युग में प्रत्येक मनुष्य अपनी योग्यता, आर्थिक सामर्थ्य और सामाजिक मान-मर्यादा को दूसरों की देखा-देखी में अपनी आवक से सुख-सुविधाओं की वस्तुओं पर ज्यादा खर्च कर रहे हैं।




शुक्र का द्वादश घर या भावगत प्रभाव:-निम्नलिखित होता हैं।




प्रथम भाव:-जिस मनुष्य की जन्मकुण्डली के पहले घर में शुक्र स्थित हो, वह देखने व मन को भाने वाला खूबसूरत होता हैं, जो अपनी वाणी में मिठास के शब्दों को लिये हो, हर समय खुश व आराम से रहने वाला, राजकीय कार्य को अपने अनुभव व अभ्यास के द्वारा सही तरीके से करने वाला, लंबी उम्र वाला, बहुत अधिक लोग जानते हो, आदर पाने वाला, शिष्टता से बातचीत करने वाला, अपने जन्म स्थान से दूर जाने की कामना रखने वाला, किसी भी चीज या किसी भी तरह से प्रत्येक को पाने की चाहत रखने वाला, जो अपने से विपरीत की लिंग वाले कि तरफ आकर्षण रखने वाला, राजकीय विभाग में ऊंचे पद को पाने वाला, अपने खूबसूरत मुख और देह से आकर्षण देने वाला, रहने का तरीका सबसे जुदा एवं अनूठापन लिये हो और उम्र से कम उम्र का दिखने वाला सदा जवान हो आदि।





द्वितीय भाव:-जिस मनुष्य की जन्मकुण्डली के दूसरे घर में शुक्र स्थित हो, वह मनुष्य खूब धन वाला, जानकर, औरत हो तो अपने रूप से अपनी तरफ खींचने वाली, बोली से बहुत मधुर वचन बोलने वाला, सबको साथ लेकर चलने की सोच वाला, मीठी वस्तु जैसे-मावा, चॉक्लेट आदि का चाव रखने वाला, मशहूर, किस्मत का साथ पाने वाले, नामचीन कुटुंब से युक्त, बहुमूल्य नग आदि वाणिज्य से अपनी जीविका निर्वाह करने वाला होता हैं।




तृतीय भाव:-जिस मनुष्य की जन्मकुण्डली के तीसरे घर में शुक्र स्थित हो, तो जातक किसी भी काम को टालने वाला सुस्त प्रवृत्ति का, जरूरत के समय भी धन को खर्च न करने वाला, सभी तरह से आराम से सुख भोगने वाला, बहुत रुपये-पैसों वाला, बहुत सारी बातों का जानकारी रखने वाला, किस्मत का साथ प्राप्त करने वाला, भाइयों से ज्यादा बहिनें, कला से अपनी निपुणता से जीवका चलाने वाला,  बात को अक्षरों में कागज आदि पर लिपिबद्ध करने का चाव रखने वाला और एक स्थान से दूसरे स्थान का सफर करने का शौक रखने वाला होता हैं।





चतुर्थ भाव:-जिस मनुष्य की जन्मकुण्डली के चौथे घर में शुक्र स्थित हो, तो जातक का निवास स्थान बहुत ही खूबसूरत, बढ़िया दोस्तों से दोस्ती करने वाला, रुपये-पैसे सहित खूब जमीन-जायदाद वाला, दूसरों से मन ही मन में जलन रखने वाला, दूसरों से आगे बढ़ने की होड़ की सोच वाला, दिखने में आकर्षक, शरीर से मजबूत कद-काठी, दूसरों की मदद करने के लिए तत्पर, उदार हृदय, होशियार, अपने सुख की चाहत वाला, किस्मतवाला, सन्तान-सुख से युक्त, लंबी उम्र वाला और सवारी सुख को प्राप्त करने वाला होता हैं।




पंचम भाव:-जिस मनुष्य की जन्मकुण्डली के पांचवें घर में शुक्र स्थित हो, तो जातक कम मेहनत करने पर भी फायदा पाने वाला, सोचने-समझने वाला जज्बाती, विलासप्रिय, दूसरों में गुण देखने वाला, प्रेम मिजाज वाला, सभी तरह से सुख-सुविधाओं से आराम से रहने वाला, सबके साथ समान दृष्टि व सोच रखने वाला, सबका भरोसा रखने वाला, सभी तरह की बातों का जानकार, मशहूर व किसी भी विषय को सही तरीके से सही कहने वाला, सन्तान-सुख युत, प्रेम-प्रसंग वाला, कविता रचने वाला और औरत-आदमी अपने सहयोगी से संतुष्ट रहने वाले होते हैं। यदि शुक्र के साथ चन्द्रमा भी पांचवें भाव में बैठा होने पर प्रेम-विवाह के योग भी बन सकते हैं।




षष्ठम भाव:-जिस मनुष्य की जन्मकुण्डली के षष्ठम घर में शुक्र स्थित हो, तो जातक बहुत कठिन मेहनत करने पर उस मेहनत का उचित नतीजा नहीं मिलता, बहुत सारे मित्रों से युक्त, जातक के दुश्मन बहुत कम, रुपये-पैसों से कंगाल, दूसरों से रुपये-पैसों को उधार लेकर ऋण करने वाला, आवक से ज्यादा खर्च करने के मिजाज वाला, नीति के विरुद्ध कार्य करने वाला, मूत्र संबंधी विकार, जननेंद्रिय अंगों में व्याधि से ग्रसित रहने वाले होते है।




सप्तम भाव:-जिस मनुष्य की जन्मकुण्डली के सप्तम घर में शुक्र स्थित हो, तो जातक मौज-मस्ती में समय बिताने वाला, मर्यादा के विरुद्ध दूसरों के साथ कामक्रीड़ा के सुख के लिए रिश्ता बनाने वाला, दाम्पत्य जीवन में सुख पाने वाला, किसी चीज को पाने की तीव्र कामना वाला, रुपये-पैसों से युक्त, शादी के बाद जीवन में प्रगति करने वाला, किस्मत का साथ मिलना, दुसरों की मदद करने वाला, पति या पत्नी सुंदर पाने वाले, जीविकोपार्जन के पेशे को श्रेष्ठ तरीके से करने वाला, नृत्य और वाद्य के साथ गाने की कला में लगाव और शर्मीले मिजाज वाला।




अष्ठम भाव:-जिस मनुष्य की जन्मकुण्डली के अष्ठम घर में शुक्र स्थित हो, तो जातक को सवारी सुख मिलता हैं, लंबी उम्र पाने वाला, मन को खुश करने या दिखाने के लिए बहुत सुख-सुविधाओं की वस्तुओं का उपयोग करने वाला, सुख-सुविधाओं के लिए रुपये-पैसे खर्च करने वाला, खराब चाल-चलन के मार्ग पर चलते हुए समाज विरोधी कार्य को करने वाला लेकिन दोषहीन होशियार बनाता है। अपने जन्म स्थान को छोड़कर परदेश को जाने वाले, बीमारियों से ग्रसित, दूसरों को कष्ट देकर आनन्द लेने वाले, छोटी-छोटी बातों पर जल्दी रोष करने वाले, गुप्त विधाओं के प्रति लगाव रखने वाले, पढ़ने-लिखने में रुचि रखने वाले, बैचेन व दुख से भरा हो, अपने लिंग से विपरीत लिंग के प्रति झुकाव व उसके साथ नीति व मर्यादा के विरुद्ध कामक्रीड़ा का रिश्ता बनाने वाले होते हैं।




नवम भाव:-जिस मनुष्य की जन्मकुण्डली के नवम घर में शुक्र स्थित हो, तो जातक खूब धन-संपदा वाला, समाज में शोहरत पाने वाला, अपने नजदीक के लोगों का बहुत अच्छा सहयोग व मार्गदर्शन मिलता हैं। ईश्वर, परलोक आदि के संबंध में आस्था एवं पूजा विधि करने में रुचि रखने वाला, सोच-समझकर एवं सलीके से काम को करने वाला, किसी भी तरह की चिंता नहीं रखने वाला, गृहस्थी जीवन में सुख, पिता के साथ सुखपूर्वक एवं कहना मानने वाले, लड़ाई करने में रुचि वाले, दूसरों पर दया भाव रखने वाला, देवी-देवता के पूजा-पाठ एवं दर्शन के लिए सफर में रुचि रखने वाले और राजकीय विभाग से सम्मान प्राप्त करने वाले होते हैं।





दशम भाव:-जिस मनुष्य की जन्मकुण्डली के दशव घर में शुक्र स्थित हो, तो जातक ज्यादा की चाहत रखने वाला, रुपये-पैसे होने पर भी जरूरत पर खर्च नहीं करने वाले, दूसरों पर दया करने वाले, किस्मतवान, रुपये-पैसों एवं हीरे-जवाहरात अथवा खूबसूरती के श्रृंगार के व्यवसाय में रुचि रखने वाला होता हैं।



  

एकादश भाव:-जिस मनुष्य की जन्मकुण्डली के एकादश घर में शुक्र स्थित हो, तो जातक को भाई-बहनों से फायदा व सुख देने वाला, समान की खरीद-बिक्री से जीवका निर्वाह के पेशे को करने वाले, रुपये-पैसे एवं ऐश्वर्य-वैभव से युत, दूसरों की मदद करने वाले, सवारी सुख एवं संतान सुख से युत, स्थायी रूप से एक ही बात पर अडिग रहने वाला, बहुत की चाहत रखने वाले, कामसुख की रुचि वाले और रत्नादि के व्यापारी होते हैं।




द्वादश भाव:-जिस मनुष्य की जन्मकुण्डली के द्वादश घर में शुक्र स्थित हो, तो जातक अध्ययन और शिक्षा से प्राप्त ज्ञान में लगाव वाले, हुनरमंद वाले दूसरे मनुष्यों का कद्र करने वाले विद्या प्रेमी एवं गुणी जनों का आदर करने वाला होता है। सबके साथ एक समान इंसाफपसंद मिजाज के, दूसरे लिंग के प्रति झुकाव रखते हुए उनसे रिश्ता बनाने के शौकीन, ज्यादा रुपये-पैसों को खर्च करने वाले, ज्यादा खाने-पीने में रुचि वाले, बहुत रुपये-पैसों वाले, काम को कल पर टालने वाले, धर्म और नीति के विरुद्ध गुनाह करने वाले और पुरुषत्व शक्ति संबंधी विकासर से ग्रसित होते हैं।




◆जब शुक्र बारहवें घर में हो, तो जातक को बहुत धन प्रदान करता हैं।



◆जब शुक्र ग्रह सूर्य, चन्द्र व गुरु से बारहवें घर में होता हैं, तब जातक को सुख-सुविधाओं की प्राप्ति होती हैं।



◆जब शुक्र ग्रह सूर्य व लग्न में एवं बारहवें घर में हो, तो बहुत ही अच्छा रहता हैं अर्थात् सोने पर सुहागा वाली कहावत चरितार्थ करता है। 





उदाहरणार्थ:-महारानी विक्टोरिया के तीनों लग्नों जैसे-लग्न कुंडली, चन्द्रकुंडली व सूर्य कुंडली से बारहवें घर में शुक्र है। उनको इस बारहवें घर के शुक्र ने जीवन के तीस वर्षों तक राज्य एवं ऐश्वर्य सुख प्रदान किया।




शुक्र ग्रह को मजबूत या बलवान करने के सरल तरीके या शुक्र ग्रह के दोष निवारण के उपाय (Simple ways to strengthen or strengthen the planet Venus or remedies for the defects of the planet Venus):-निम्नलिखित हैं।



◆जब शुक्र ग्रह कमजोर हो, तो जातक को सबसे प्रातःकाल उठते ही किसी से भी बोले बिना ही अपनी माता के चरण को छूना चाहिए।



◆शुक्र ग्रह को मजबूत करने के लिए हमेशा शुक्रवार के दिन काक को तंदुल को दुग्ध में मिलाकर बनाई हुई खीर (खुरा) को खिलाना चाहिए।



◆शुक्र ग्रह को बलवान करने के लिए शुक्र ग्रह के देवता अर्थात् माता लक्ष्मी जी की पूजा-अर्चना उनके मन्त्रों-स्तुति या स्तोत्र आदि से करके उनको खुश करना चाहिए। जिससे उनका आशीर्वाद प्राप्त हो सकें।



◆मनुष्य को अपने देह की साफ-सफाई का ध्यान रखना चाहिए।



◆मनुष्य को अपने कपड़े साफ-सुथरे व अच्छी तरह बिना मैल के धुले हुए पहनने चाहिए।



◆शुक्रवार के दिन को धेनु को हरा चारा जैसे-रिजका आदि देना चाहिए।



◆शुक्र ग्रह की शांति के लिए गौ माता की पूजा जैसे-कंकु, पुष्प आदि से करनी चाहिए।



◆जब मनुष्य खाना खाने लगे तब उसके सजी हुई खाने की थाली में से कुछ खाने का हिस्सा गौ माता के नाम का निकाल लेना चाहिए। फिर उस निकाले गए खाने को गौ माता को खिलाना चाहिए।



◆शुक्र ग्रह को बलवान करने के लिए गाय का दान किसी गरीब या पंडित ब्राह्मण को करना चाहिए।



◆शुक्रवार के दिन विशेषकर साफ-सुथरे सफेद रंग के कपड़े पहने से कमजोर शुक्र ग्रह को बल मिलता हैं।

 


◆शुक्र ग्रह की अशुभता होने पर घृत, दधि, घनसार, श्वेत मुक्ता, श्वेत कपड़े आदि का किसी असहाय या ब्राह्मण को देना चाहिए।



◆शुक्रवार के दिन सफेद बर्फी को किसी एक आंख वाले या काने ब्राह्मण को खिलाना चाहिए।



◆शुक्रवार के दिन घृत, दधि, घनसार, श्वेत मुक्ता, श्वेत कपड़े आदि को शुक्र ग्रह से पीड़ित मनुष्य के ऊपर सात बार उसार कर बहते हुए जल में प्रवाहित करना चाहिए।




◆शुक्रवार के दिन सरपंखा की जड़ को स्वर्ण धातु से बने ताबीज में रखकर उसको सफेद सूती धागे के द्वारा बांधकर गले या हाथ की भुजा में धारण करना चाहिए।




◆शुक्रवार के दिन सुबह पहले से बनाई हुई प्लेटिनम की अंगूठी को धेनु के दुग्ध एवं मधु के द्वारा स्नान कराकर अनामिका अंगुली में पहनना चाहिए। 



◆शुक्र ग्रह के कमजोर होने पर शुक्रवार के दिन जरकन या डायमंड या हीरा रत्न को धारण करना चाहिए।



◆शुक्र ग्रह के लिए परफ्यूम का प्रयोग करने पर भी शुक्र ग्रह बलवान होता है।



◆मनुष्य को अपनी पत्नी का मान-सम्मान करते हुए उसे खुश रखना चाहिए।





◆जो औरतें गरीब हो उनकी मदद करनी चाहिए जैसे-उनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं होने पर उनको भोजन सामग्री, बीमारी में दवाइयां, उनके पालन-पोषण के लिए अपने सामर्थ्य के अनुसार मदद करना और उनको खाना खिलाना।  





◆जिन औरतों के पति का स्वर्गवास हो चुका हैं, उन औरतों की मदद करते हुए अपनी क्षमता के अनुसार देखभाल करने पर शुक्र ग्रह मजबूत होते हैं।




◆शुक्र ग्रह को मजबूत या बलवान करने के लिए मनुष्य को अपने शरीर पर सफेद कपड़े जैसे-बनियान, अंडरगारमेंट्स या हाथ या मुँह पौंछने के लिए रुमाल का प्रयोग करना चाहिए।




विशेष:-जब किसी भी जातक की जन्मकुण्डली में शुक्र ग्रह बलवान होता हैं, तब जातक को सभी तरह के सांसारिक आराम, धन-वैभव, शारीरिक व मानसिक सुविधाएं आदि प्राप्त होती हैं और निवास स्थान में रहने वाले खानदान के सभी लोगों से मधुरता से संबंध, लगाव, मदद आदि की प्राप्ति होती हैं। जातक अपने निवास स्थान की साज-सज्जा का मुख्य रूप ध्यान रखते हैं। जातक को बहुत गुणवती, मन को अपनी तरफ खींचने वाली, मधुरभाषी भार्या मिलती हैं और उसका दाम्पत्य जीवन सुख-शान्ति से बिना किसी मतभेद-क्लेश से व्यतीत होता हैं। इसलिए जातक के जीवन में सभी तरह के सुखों के लिए शुक्र ग्रह का अच्छा होना जरूरी होता हैं 




जन्मकुण्डली से कैसे पता करें शुक्र मजबूत या कमजोर हैं?:-जब जन्मकुण्डली का विश्लेषण किसी योग्य पंडित से करवाते हैं या मनुष्य के जीवन में सभी तरह के शारीरिक, मानसिक और सांसारिक सुख-सुविधाओं में कमी या प्राप्ति नहीं होती हैं, तब मनुष्य को समझना चाहिए कि उसका शुक्र ग्रह कमजोर हैं और जब सभी तरह की सुख-सुविधाएं बिना प्रयास के ही मिलती हैं, तब समझना चाहिए कि शुक्र मजबूत स्थिति में हैं।





















Sunday, January 26, 2025

January 26, 2025

कालिका अष्टकम् अर्थ सहित और लाभ (Kalika Ashtakam With Meaning And Benefits)

कालिका अष्टकम् अर्थ सहित और लाभ (Kalika Ashtakam With Meaning And Benefits):-श्रीशंकराचार्य जी के द्वारा माता काली को प्रसन्न करने के लिए श्रीकालिकाष्टकं की रचना की थी। इस स्तोत्रं के मन्त्रों के द्वारा माता काली के स्वरूप के बारे में बताया गया हैं, माता काली के स्वरूप का पूर्ण रूप से आख्यान एवं गुणगान किया गया हैं, जिसका वांचन करने से मनुष्य को समस्त तरह से शुभ फलों की प्राप्ति होती हैं। इसके मन्त्रों का उच्चारण करने से मनुष्य को माता काली का आशीर्वाद प्राप्त हो जाता हैं।






Kalika Ashtakam With Meaning And Benefits





ध्यानम्:-माता काली के श्रीकालिकाष्टकं के मन्त्रों के उच्चारण से पूर्व अपने मन को एक जगह पर केंद्रीत करते हुए मन ही मन में माता काली को स्मरण करने के लिए उनकी छवि को अपने मन में ग्रहण करते हुए उनका ध्यान करना चाहिए।




गलदररक्तमुण्डावलीकण्ठमाला महाघोररावा सुदंष्ट्रा कराला।


विवस्त्रा श्मशानालया मुक्तकेशी महाकाल कामाकुला कालिकेयम्।।१।।




भावार्थ्:-हे भगवती कालिका! बहुत सारे मुण्डो की बनी हुई माला को गले में पहने हुए हो, इन मुण्डो से शोणित की धारा स्रावित हो रही हैं, आप बहुत तीव्र गहरे डरावनी आवाज कर रही हैं, आपका जबड़ा हैं तथा स्वरूप बहुत ही डरावना हैं, बिना वस्त्रों को धारण किये हुए हो, रहने का स्थान श्मशान है, आपके कुन्तल बिखरे हुए हैं और कामक्रीड़ा को महाकाल के साथ करने में लीन हैं।




भुजे वामयुग्मे शिरोSसिं दधाना वरं दक्षयुग्मेSभयं वै तथैव।


सुमध्याSपि तुंगस्तनाभारनम्रा लसदरक्तसृक्कद्वया सुस्मितास्या।।२।।


भावार्थ्:-हे भगवती काली माता! आप अपने दोनों बाएं हाथों में नरमुण्ड एवं खड्ग को धारण किए हो और अपने दोनों दाएं हाथों में वर और अभयमुद्रा धारण किए हुई हो, आपके कटिप्रदेश बहुत ही आकर्षक दिखाई पड़ते हैं, आपके उठे हुए चंचुको के भार से आप झुकी हुई प्रतीत होती हो, आपके ओष्ठ द्वय का प्रान्त भाग रक्त से अत्यंत शोभायमान हैं और मधुर मुस्कराहट से युक्त आपका मुखमण्डल चमकता हैं।




शवद्वन्द्वकर्णावतंसा सुकेशी लसत्प्रेतपाणिं प्रयुक्तैककाञ्ची


शवाकारमञ्चाधिरूढा़ शिवाभि श्चतुर्दिक्षु शब्दाय मानाSभिरेजे।।३।।


भावार्थ्:-हे भगवती काली माता! आपके दोनों श्रवणों में दो शवरूपी अलंकार को धारण किये हुए हो, आपके आकर्षक कुन्तल हैं, शवों के हाथों से बनी हुई अत्यन्त शोभायमान कमरबंद हैं, कमर में पहने हुए हो, शवों के ढ़ेर से बने सिंहासन पर बैठी हुई हो और डरावनी आवाज को करने से चारों दिशाओं में आपकी आवाज ही सुनाई पड़ती हैं और शृंगालियो से घिरी हुई अत्यंत शोभायमान हो।




स्तुतिः-माता काली के इस स्तोत्रं के मन्त्रों के उच्चारण करने से पूर्व काली माता से अरदास करते हुए उनके गुणों का बखान करते हुए उनकी स्तुति करनी चाहिए।



विरञ्च्यादिदेवास्त्रयस्ते गुणांस्त्रीन् समाराध्य कालीं प्रधाना बभूवुः।


अनादिं सुरादिं मखादिं भवादिं स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः।।४।।


भावार्थ्:-हे भगवती काली माता! आपके गुणों एवं स्वरूप की प्रशंसा तीनों देव करते रहते हैं, जिससे आपके तीनों गुणों के माध्यम से ब्रह्माजी, शिवजी एवं विष्णुजी आपकी अरदास एवं आपको सन्तुष्ट व अपने अनुकूल करने के लिए आपकी उपासना करते हुए मुख्य हुए हैं। आपका स्वरूप आरम्भ के बगैर हैं, और समस्त देवताओं में आप पहले हो, यज्ञ के स्वरूप में भी पहले हो और संसार में भी मौलिक हो, देवताओं को भी आपके इस बनावट के बारे में नहीं जानकारी हैं।




जगन्मोहनीयं तु वाग्वादिनीयं सुहृत्पोषिणी शत्रुसंहारणीयम्।


वचस्तम्भनीयं किमुच्चाटनीयं स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः।।५।।


भावार्थ्:-हे भगवती काली माता! समस्त संसार को अपनी तरफ आकर्षित करने वाला आपका स्वरूप हैं, आपकी प्रशंसा वाणी के द्वारा करने योग्य हैं, आप अपने मित्र या सखा रूप को निभाने वाली हो, दुश्मनों को नष्ट करके दुश्मनों से मुक्त करने वाली हो, बुरे शब्दों को वाणी से बोलने पर वाणी के शब्दों को रोकने वाली हो, आप खींच कर हटानी वाली हो और देवताओं को भी आपके इस बनावट के बारे में नहीं जानकारी हैं।


इयं स्वर्गदात्री पुनः कल्पवल्ली मनोजांस्तु कामान यथार्थं प्रकुर्यात।


तथा ते कृतार्था भवन्तीति नित्यं स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः।।६।।


भावार्थ्:-हे भगवती काली माता! आप देवलोक को प्रदान करने वाली हो और नयी बात को उत्पन्न करने की तरह कल्पता हो। आपके प्रति सच्ची आस्था भाव रखने वाले एवं आप पर विश्वास रखने वाले अपने भक्तों के मन की समस्त तरह की इच्छाओं की पूर्ति करती हो और जिससे आपके भक्त आपके प्रति हमेशा आपके के द्वारा की गई इच्छा पूर्ति के कारण आपका की भक्ति को नहीं भूल पाते हैं और आपके इस तरह के स्वरूप के बारे में देवताओं को भी जानकारी नहीं हैं। 



सुरापानमत्ता सुभक्तानुरक्ता लसत्पूतचित्ते सदाविर्भवत्ते।


जपध्यानपूजासुधाधौतपंका स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः।।७।।


भावार्थ्:-हे भगवती काली माता! आप हमेशा मद्य का सेवन करके मस्त रहने वाली हो और आप पर श्रद्धाभाव व विश्वास रखने वाले भक्तों पर हमेशा अपने स्नेह की छत्रछाया रखने वाली हो। भक्तों के मन को हरने वाले एवं पावन हृदय में हमेशा आप निवास करती हो। भक्त के द्वारा आपका ध्यान, जप और पूजा करने पर आप अपने भक्तों के मन एवं हृदय में बुरे विकारों रूपी कीचड़ या मैल को आप अपने अमृत से स्वच्छ कर देती हो और भक्त को एकदम बुरे विकारों से मुक्त कर देती हो और आपके इस तरह के स्वरूप के बारे में देवताओं को भी जानकारी नहीं हैं।




चिदानन्दकन्दं हसन् मन्दमन्दं शरच्चन्द्र कोटिप्रभापुञ्जबिम्बम्।


मुनीनां कवीनां हृदि द्योतयन्तं स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः।।८।।


भावार्थ्:-हे भगवती काली माता! आपका स्वभाव भगवान शिव या चेतन मन की कुल आनन्द में डूबे बादल या घनसार की तरह हैं, धीरे-धीरे मुस्कराहट से भली-भाँति युक्त हो, शरद काल से सम्बंधित करोड़ों सोम के अत्यन्त चमकदार आभा से युक्त समूह के प्रतिच्छाया के समान और कवियों एवं मुनियों के हृदय को प्रकाशयुक्त करने वाला है, देवताओं को भी आपके इस बनावट के बारे में नहीं जानकारी हैं।




महामेघकाली सुरक्तापि शुभ्रा कदाचिद् विचित्रा कृतिर्योगमाया।


न बाला न वृद्धा न कामातुरापि स्वरुपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः।।९।।


भावार्थ्:-हे महाकाली माता! आपका का वर्ण काले रंग का है, जिस तरह आकाश में उमड़े या छाए हुए घने बादलों के समान वर्ण का होता हैं, जो अपने प्रचण्ड वेग से नाश करने वाला होता हैं, उसी तरह आपका कला रंग दिखाई पड़ता हैं, आपका रंग किसी समय लाल रंग के समान जैसे शोणित वर्ण की तरह और किसी समय आपका रंग एकदम स्वच्छ भी हैं। आपका आकार रंग बिरंगा या अजीब तरह का हैं और आपमें दार्शनिक एवं धार्मिक क्षेत्र में ईश्वर की सृष्टि मूलक शक्ति के स्वरूप वाली हो। आप न बाला, न वृद्धा और ना ही कामातुरा युवती ही हैं, देवताओं को भी आपके इस बनावट के बारे में नहीं जानकारी हैं।




क्षमस्वापराधं महागुप्तभावं मया लोकमध्ये प्रकाशीकृतं यत्।


तव ध्यानपूतेन चापल्यभावात् स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः।।१०।।


भावार्थ्:-हे कालिकां माता! मेरे चित्त की एकाग्रता निश्छल या निर्मल होने से एवं मेरे मन की अस्थिरता के कारण आपके इस नितांत अपरिचित या छिपी हुई चेष्टा को मैनें अपने मन में उत्पन्न होने वाले विचार या ख्याल के कारण इस संसार में जगजाहिर कर दिया हैं, इसलिए आपसे मैं अरदास करता हूँ, की मेरी इस गलती को आप माफ कीजिए, देवताओं को भी आपके इस बनावट के बारे में नहीं जानकारी हैं।






फलश्रुति:-फलश्रुति में श्रीकालिकाष्टकं मन्त्रों के वांचन के महत्व के बारे बताया गया है


यदि ध्यानयुक्तं पठेद् यो मनुष्यस्तदा सर्वलोके विशालो भवेच्च।


गृहे चाष्टसिद्धिर्मृते चापि मुक्तिः स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः।११।।


भावार्थ्:-हे कालिकां माता! जब कोई भी मनुष्य अपने मन को नियंत्रित करके अपने मन को एक जगह पर स्थिर करते हुए श्रीकालिकाष्टकं मन्त्रों का वांचन करते हैं, तो वह मनुष्य तीनों लोकों में उच्चकोटि का हो जाता हैं, उस मनुष्य को अपने निवास स्थान पर ही आठों सिद्धियों को बिना किसी तरह की तप-साधना किये ही मिल जाती हैं और मनुष्य अपने पूर्ण जीवनकाल को व्यतीत करने के बाद में अन्त में जीवन-मरण के बन्धन से मुक्त होकर मोक्ष पद को प्राप्त करता हैं, देवताओं को भी आपके इस बनावट के बारे में नहीं जानकारी हैं।




।।इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितं श्रीकालिकाष्टकं सम्पूर्णम्।।




श्रीकालिकाष्टकं के वांचन के लाभ:-श्रीकालिकाष्टकं के स्तोत्रं के मन्त्रों के पाठ करने के निम्नलिखित लाभ मिलते हैं:


◆जो मनुष्य नियमित रूप से श्रीकालिकाष्टकं स्तोत्रं के मन्त्रों का पाठ करते हैं, उनको जीवनकाल में समस्त तरह की मुसीबतों से मुक्ति मिल जाती हैं।



◆इस स्तोत्रं के मन्त्रों के पाठ करते रहने से मनुष्य को स्वर्गलोक की प्राप्ति होती हैं।



◆मनुष्य को जीवन में आने-जाने के बन्धन से मुक्ति मिल जाती हैं, अन्त में माता काली के चरणों की सेवा करने का अवसर मिलता है।



◆मनुष्य पर किसी भी तरह की बुरी ताकतों का असर नहीं हो पाता हैं।

Saturday, December 7, 2024

December 07, 2024

गार्डन लगाने के वास्तु नियम व वास्तु टिप्स से लगाये घर के गार्डन में पेड़-पौधे (Plant trees and plants in your home garden using Vastu rules and Vastu tips)

गार्डन लगाने के वास्तु नियम व वास्तु टिप्स से लगाये घर के गार्डन में पेड़-पौधे (Plant trees and plants in your home garden using Vastu rules and Vastu tips):-मनुष्य के जीवन को सभी तरह के सुख-आराम को प्रदान करने वाला उसका निवास स्थान होता हैं, जिसमें वह अपने पूरे दिन की थकावट से राहत पाता हैं। निवास स्थान की अंदरूनी साज-सज्जा एवं रंग-रोगन के अलावा पेड़-पौधों एवं गृहवाटिका का भी महत्वपूर्ण स्थान होता है। गृहवाटिका (गार्डन) लगाने से उसमें लगे हुए विभिन्न पेड़-पौधों से आवास स्थान की खूबसूरती में बढ़ोतरी, मन की सभी तरह परेशानियों से मुक्ति एवं आनंद की प्राप्ति, थकावट से राहत, उत्साह में बढ़ोतरी, कुदरती खूबसूरती, वातावरण की स्वच्छता और वास्तुदोषों के नाश आदि के फल मिलते हैं। मनुष्य की आंखों को हरियाली से भरे हुए पेड़-पौधे राहत एवं तन्दुरुस्ती के हिसाब से भी बहुत फायदेमंद प्रदान करते हैं। जिस तरह बहुत सारे भलाई कार्य करने, बहुत अधिक लोकहित सोच से हवन-पूजन करवाने अथवा तड़ाग खुदवाने या फिर देवताओं की पूजा-अर्चना से प्राप्त नहीं होते हैं, वह भलाई केवल एक पौधे को लगाने से सरलता से मिल जाती हैं। इस तरह एक वृक्ष लगाकर जीवधारी प्राणियों को नया जीवन मिलता हैं। वास्तुशास्त्र में भी वृक्षों का मनुष्य से गहरे संबंध के बारे में व्याख्या की गई हैं। जब भी अपने निवास स्थान की जगह पर पेड़-पौधों को लगाते समय वास्तु का भी ख्याल रखना चाहिए अन्यथा ये प्रदूषण दूर करने की अपेक्षा वास्तुदोष भी उत्पन्न करते हैं।




Plant trees and plants in your home garden using Vastu rules and Vastu tips




गृह वाटिका या बगीचा में पौधरोपण के नक्षत्र (Constellations for planting saplings in the home garden or garden):-जब भी गृहवाटिका में पेड़-पौधों को लगाने का ख्याल आने पर  नक्षत्रों का विचार अवश्य करना चाहिए जैसे- उत्तराभाद्रपद, उत्तराषाढ़ा, स्वाति, हस्त, रोहिणी और मूल आदि नक्षत्र पेड़-पौधों को लगाने में अच्छे होते हैं। इन नक्षत्रों के समय में लगाएं गए पेड़-पौधे जल्दी बढ़ोतरी करते हैं। 





घर में बगीचा या गार्डन कहां होना चाहिए और कौन दिशा सबसे अच्छी रहती हैं? (Where should be the garden or garden in the house and which direction is best?):-आवास में से गार्डन के लिए स्थान को निकालते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए।



१.आवास स्थान के बायीं ओर की जगह में ही बगीचा लगाना चाहिए।



२.जो मनुष्य अपने निवास की जगह से पूर्व, उत्तर, पश्चिम या ईशान दिशा में फूल-फल आदि के पेड़ से युक्त फुलबगिया बनाता है, वह मनुष्य हमेशा गायत्री से युक्त, धर्म एवं श्रद्धा से दोनों हाथों से देने वाला और लोकहित के विचार से हवन-पूजन युक्त शुभ काम को करने वाला होता हैं।



3.लेकिन जो मनुष्य अपने निवास की जगह से आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य या वायव्य में फूल-फल आदि के पेड़ से युक्त गार्डन बनाता है, वह मनुष्य हमेशा रुपये-पैसे की तंगी एवं नुकसान भोगने वाले, सन्तान के रूप में पुत्र उसके मान-सम्मान को ठेस पहुँचाने वाले तथा परलोक में निंदनीय लोकचर्चा प्राप्त होती है। वह मृत्यु को प्राप्त होता है। वह वंश-परम्परा आदि समाज में खराब चाल-चलन वाला और ओछा-दूसरे की बुराई करने वाला होता हैं। इसलिए निवास स्थान के नैऋत्यकोण अथवा अग्निकोण में गृहवाटिका नहीं लगानी चाहिए।




गार्डन में दिशा-विशेष में स्थित होने पर शुभ अथवा अशुभ फल:-कई वृक्ष ऐसे हैं, जो दिशा-विशेष में लगे होने पर शुभ अथवा अशुभ फल देने वाले हो जाते हैं, जैसे-



फसलों के लिए दिशाओं हेतु चुनाव:-जब भी कोई किसान या गृहवाटिका में अनाज और फल या फसलों या पेड़-पौधे को लगाना हो, तो उनको निम्नलिखित दिशाओं का चुनाव करके लगाने पर फायदा होता हैं।


 

1.नैर्ऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम दिशा) में:-जब बहुत वजन वाले बड़े फल या दाने वाली, गूढ़ बलदायक गुण वाले फसलों या पेड़-पौधे को लगाना हो, तो उनको नैर्ऋत्य कोण में लगाना चाहिए।



2.वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम दिशा) में:-जब लम्बे कद, लम्बाकार दानों या फलों, कम शाखाओं के फैलाव वाले, वायवीय गुणों वाले अनाज और फल या फसलों या पेड़-पौधे को लगाना हो, तो उनको वायव्य कोण में लगाना चाहिए।



3.आग्नेय कोण (दक्षिण-पूर्व दिशा):-जब गर्म, चरपरे, कम जल वाले, कड़वे, कटु भूख को बढ़ाने वाले मिर्च, अदरक आदि फसलों या पेड़-पौधे को लगाना हो, तो उनको आग्नेय कोण में लगाना चाहिए।



4.ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) में:-जब जलीय गुणों वाले (जल के अंश से युक्त रसवाले स्वादिष्ट) रसदार फल या फसलों या पेड़-पौधे को लगाना हो, तो उनको ईशान कोण में लगाना चाहिए।


 


गार्डन के लिए फल-फूल वाले पेड़-वृक्षों की दिशा का चुनाव:-शास्त्रों में पेड़-पौधों या वृक्षों को सही दिशा में लगाने को बहुत जरूरी बताया हैं, जिससे सही दिशा में लगे पेड़-पौधों का फायदा मिल सके। इसलिए निम्नलिखित तरह के अनाज और फल या फसलों या पेड़-पौधे को या वृक्षों को जब भी कोई किसान या गार्डन में लगाने वाला हो, तो उनकी आकृति को ध्यान रखते हुए सही दिशाओं का चुनाव करके लगाने पर फायदा होता हैं। 



1.पूर्व दिशा:-जब मनुष्य के निवास स्थान की पूर्व दिशा में पीपल का वृक्ष लगा होता हैं या लगाया जाता हैं, तब उससे मनुष्य के आवास में रहने वाले सदस्यों को हर समय खौफ सतता रहता हैं और समाज में निम्न आर्थिक जीवन स्तर से जीवन को जीने वाले होते हैं। लेकिन पूर्व दिशा में बरगद का वृक्ष लगा हुआ होता हैं, तो सभी तरह की मन की इच्छाओं की पूर्ति होती हैं।



2.पश्चिम दिशा:-जब मनुष्य के निवास स्थान की पश्चिम दिशा में वट का वृक्ष लगा होता हैं या लगाया जाता हैं, तब उससे मनुष्य के आवास में रहने वाले सदस्यों को राजकीय शासित सत्ता से संकट एवं तकलीफे औरत और खानदान की बरबादी होती हैं और आम, कैथ, अगस्त्य तथा निर्गुण्डी रुपये-पैसों एवं जमीन-जायदाद की बरबादी करवाते हैं। लेकिन पश्चिम दिशा में पीपल का वृक्ष लगा हुआ होता हैं, तो सभी तरह हितकारी और फलदायक होता हैं।




3.उत्तर दिशा:-जब मनुष्य के निवास स्थान की उत्तर दिशा में गूलर का वृक्ष लगा होता हैं या लगाया जाता हैं, तब उससे मनुष्य के आवास में रहने वाले सदस्यों को मन की कल्पना से उत्पन्न विचारों से कष्ट व झंझट और ऑंखों में होने वाले रोग से कष्ट होता हैं। लेकिन उत्तर दिशा में कैथ और पाकर (पाकड़) का वृक्ष लगा हुआ होता हैं, तो सभी तरह हितकारी और फलदायक होता हैं।




4.दक्षिण दिशा:-जब मनुष्य के निवास स्थान की दक्षिण दिशा में पाकर (पाकड़) का वृक्ष लगा होता हैं या लगाया जाता हैं, तब उससे मनुष्य के आवास में रहने वाले सदस्यों को व्याधि और सभी तरह से नाकामयाबी मिलती हैं। लेकिन उत्तर दिशा में गूलर और गुलाब का वृक्ष लगा हुआ होता हैं, तो सभी तरह हितकारी और फलदायक होता हैं।



5.आग्नेय कोण (दक्षिण-पूर्व दिशा):-जब मनुष्य के निवास स्थान की आग्नेय कोण (दक्षिण-पूर्व दिशा) में वट, पीपल, सेमल, पाकर तथा गूलर का वृक्ष लगा होता हैं या लगाया जाता हैं, तब उससे मनुष्य के आवास में रहने वाले सदस्यों को कष्ट और मरण के समान कष्ट होता हैं। लेकिन आग्नेय कोण में अनार का वृक्ष लगा हुआ होता हैं, तो सभी तरह हितकारी और फलदायक होता हैं।



6.नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम दिशा) में:-जब मनुष्य के निवास स्थान की नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम दिशा) में जामुन, कदम्ब और इमली वृक्ष लगा हुआ होता हैं, तो सभी तरह हितकारी और फलदायक होता हैं।



7.वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम दिशा) में:-जब मनुष्य के निवास स्थान की वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम दिशा) में बेल (बिल्व) वृक्ष लगा हुआ होता हैं, तो सभी तरह हितकारी और फलदायक होता हैं।



8.ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) में:-जब मनुष्य के निवास स्थान की ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) में आँवला, कटहल एवं आम वृक्ष लगा हुआ होता हैं, तो सभी तरह हितकारी और फलदायक होता हैं।



घर में बगीचा या गार्डन लगाते समय विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए:- 



1.यदि निवास स्थान की जगह के पास में कोई अनिष्टकारी पेड़-वृक्ष लगे हो और उन पेड़-वृक्ष को वहां से काटने में बाधा आ रही हो, तो उन अनिष्टकारी पेड़-वृक्ष और निवास स्थान की जगह के बीच में हितकारी या मंगलकारी पेड़-वृक्ष को लगा देना चाहिए।




2.यदि मनुष्य के आवास के नजदीक पीपल का वृक्ष लगा हो, तो उस पीपल के वृक्ष की नियमित रूप से विनय, श्रद्धा और समपर्ण की सोच से जल, फूल, फल, अक्षत आदि चढाकर पूजा एवं देखभाल करते रहना चाहिए।



3.यदि किसी वृक्ष, मन्दिर आदि की अनुकरण रूपी प्रतिकृति दिन के दूसरे और तीसरे पहर (सूर्योदय से लेकर तीन-तीन घण्टे का एक पहर) में निवास स्थान पर पड़ती हैं, तो उस निवास स्थान के सदस्य हमेशा तकलीफ और व्याधि से पीड़ित रहते हैं।




4.अक्सर नगरों में जमीन का भाग कम होता हैं, अतः आवास स्थान में वट, पीपल, गूलर, आम, नारियल आदि बड़े वृक्षों का लगाना अच्छा नहीं होता है। यह वृक्ष आकार में बहुत बड़े और फैलने वाले होते हैं एवं इसी कारण इनकी जड़ें भी जमीन के बहुत गहराई तक जाती हैं।



5.जमीन के छोटे भाग पर जब इन बड़े आकार एवं गहराई तक फैलने वाले वृक्ष को लगाया जाता हैं, तो इनके जड़ें गहराई में जाने पर आवास की दीवारों में दरज उत्पन्न होने लगती हैं, जिससे आवास को नुकसान की संभावना हो सकती हैं। इस तरह उपरोक्त सभी तरह बड़े आकार वाले वृक्ष अमंगलकारी होते हैं, लेकिन भूमि का टुकड़ा ज्यादा होने पर या जोतने-बोने की जमीन वाले कृषिक्षेत्र आदि में इन्हें लगाया जा सकता हैं।



6.बहुत सारे मनुष्य अपने आवास में किचन गार्डन लगाने लग गए हैं, इस तरह आवास में किचन गार्डन लगाने में किसी विशेष वास्तु सहमति के कायदे नहीं हैं।



7.निवास स्थान की छत पर भी यदि पौधे लगाए जा रहे हैं, तो कोई विशेष नियम नहीं है। बस यह ध्यान रखना चाहिए कि काँटेदार पौधे नहीं हों।



8.जब आवास स्थान में कैक्टस जैसे रेतीली भूमि में उगने वाले रेगिस्तानी पौधे उगाये जाते हैं, तब उस आवास के सदस्यों में बेचैनी, दुश्मनों के द्वारा परेशानी और रुपये-पैसों का नुकसान होता रहता हैं।



9.लॉन या दूब लगाना:-जब निवास स्थान की जगह में खुला घासयुक्त मैदान वाला लॉन या दूब को लगाना हो, तो आवास के पूर्वी अथवा उत्तरी दिशा में हितकारी रहता हैं।



10.यदि आवास के पूर्व दिशा में बड़े एवं फैलाव वाले वृक्षों का न होना या कम होना हितकारी होता हैं। यदि उन वृक्षों को नहीं काट पाने की स्थिति में आवास के उत्तर दिशा की ओर उनके बुरे प्रभावों को ठीक तरह करने के लिए आंवला, अमलतास, हरश्रृंगार, तुलसी, वन तुलसी आदि पौधों में से कोई भी एक पौधों को लगाया जा सकता है।



11.जब वृक्षों में किसी भी कारण से कम फल लगे या नहीं लगते हो, तब उड़द, मूंग, यव, तिल और कुलथी को एक साथ मिलाकर उनको पानी में डालकर उस पानी से उन वृक्षों को जल देना चाहिए।



12.शयनागार में:-मनुष्य अपने दिन भर की थकावट से अपने शरीर को राहत देने के लिए अपने निवास स्थान में  सोने के कक्ष का सहारा लेता है, जिससे उसके शरीर में पूरे दिन की नष्ट हुई ऊर्जा सोकर मिल सके। उस जगह पर भी पौधे लगाने की राह नहीं दे सकते हैं, क्योंकि रात्रिकाल में पेड़-पौधे या वृक्ष अपनी क्रियाविधि को चलाने के लिए कार्बनडाई ऑक्साइड को छोड़ते हैं और स्वयं ऑक्सीजन को उपयोग करते हैं, जिससे शयनागार के पास रहने से मनुष्य को शुद्ध ऑक्सीजन नहीं मिल पाती हैं और कार्बनडाई ऑक्साइड को ग्रहण करना पड़ता हैं जिससे मनुष्य की तन्दुरुस्ती बिगड़ने लगती है और कई रोगों का घर मनुष्य शरीर बन जाता हैं।



13.पुष्प वाले पौधे:-आवास में पुष्प वाले पौधे, मनीप्लान्ट अथवा तड़क-भड़कदार वाले शोभाकारी सजावटी, दीवार, पेड़ आदि पर फैलने वाले बिना तने की लता या बेलों को लगाना भी फलदायक होता है। मनी प्लान्ट अर्थात् रुपयों-पैसों को अपनी तरफ खींचकर धनवान वाला पौधा को हमेशा ईशान कोण या उत्तर दिशा में ही लगाना चाहिए।



14.कंटीले एवं दूध वाले वृक्ष:-वास्तु के अनुसार कंटीले एवं दूध वाले वृक्ष आवास के गार्डन में नहीं लगाने चाहिए।



आसन्नाः कन्टकिनो रिपू भयदाः क्षीरिणोSर्थनाशाय।


फलिनः प्रजाक्षय करा दारूण्यपि वर्जये देषाम्।। 


(बृहत्संहिता 53/86)


अर्थात्:-


काँटें वाले वृक्ष:-आवास के नजदीक टहनियों में सुई के आकार कंटक वाले वृक्ष जैसे-बेर, बबूल, गुलाब, कैक्टस को लगाने से आवास के लोगों हर समय दुश्मनों के द्वारा नुकसान पहुँचाने का डर सताता रहता हैं।




15.सफेद गाढ़े तरल युक्त दूध वाले वृक्ष या पेड़:-पत्तियों या डंठलों में स्थित सफेद तरल वाले पेड़ या वृक्ष को भी अपने आशियाना में नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि इन पेड़ या वृक्ष की टहनियों या डंठलों या पत्तियों से निकलने वाला सफेद तरल पदार्थ बहुत ही विष से युक्त होता हैं और नेत्रों के लिए हानिकारक होते हुए जलन सहित पीड़ा देने वाला होता हैं। जो वृक्ष ज्यादा सफेद गाढ़े तरल युक्त दूध वाले हो, उनको लगाने से आवास वाले लोगों को रुपये-पैसों का नुकसान करवाते हैं, जिससे हर समय आर्थिक तंगी के हालात बने रहते हैं।




16.फलदार वृक्षों:-फलदार वृक्षों को अपने निवास स्थान में खुली रखी हुई जगह जिसका उपयोग अपने निवास स्थान के कामों में किया जाता हैं, उस जगह पर फलदार वृक्षों को लगाना अनिष्टकारी शास्त्रों में वर्णित किया गया हैं। क्योंकि इस स्थान में लगे हुए फलदार वृक्षों के फल को तोड़ने के लिए बच्चे वृक्ष पर चढ़कर गिरने का डर रहता हैं जिससे उनको चोट लग सकती हैं और फल तोड़ने के चक्कर में शिला का प्रयोग कर सकते हैं, जिससे निवास स्थान के दरवाजों या खिड़की आदि की जगहों पर लगे दर्पण या आईना को शिला मारकर तोड़ सकते हैं। जो वृक्ष फल वाले हो, उनको लगाने से आवास के लोगों को सन्तान और स्त्री सुख का नुकसान होता हैं। इन फल वाले वृक्षों की काष्ठ को आवास में नहीं लगाना चाहिए। यदि उपरोक्त वृक्षों को काटना संभव नहीं हो, तो इन वृक्षों और आवास के बीच में हितकारी वृक्ष को लगा देना चाहिए।



17.बेल बिना तना वाली लताएं:-जो जमीन, दीवार, पेड़ आदि पर फैलकर बिना तने की लताओं को अपने निवास स्थान के नजदीक नहीं लगाने की राय दी जाती हैं, क्योंकि ये लताएं जब फैलती हुई निवास स्थान की कई जगहों को अपना सहारा बनाकर निवास स्थान पर मकड़ी के झाले की तरह छा जाती हैं, जिससे इन फैली हुई लताओं के शेयर भुजंग, वृश्चिक, मूषक और जो पूरे शरीर को जमीन पर टेढ़ा-मेढ़ा करते हुए खिसकने वाले सरीसृपों या कीड़े-मकोड़े आदि विष से युक्त जीवात्मा निवास स्थान में प्रवेश कर जाते हैं, जिससे उनके स्पर्श से खाने-पीने की चीजों की दूषित हो जाती है और उनके द्वारा काटने से मानव शरीर में विष के संचार से मृत्यु तक का डर रहता हैं, इसलिए अपने निवास स्थान की जगह पर बेल को नहीं लगाना चाहिए।





18.बड़े और बहुत विस्तृत वृक्षों को:-बड़े-ऊँचे और बहुत फैलाव वाले वृक्षों को लगाने के विषय में शास्त्रों में वर्णन मिलता हैं कि इस तरह के वृक्षों को सदैव दक्षिण दिशा या पश्चिम दिशा या दक्षिण-पश्चिम दिशा में से कोई भी दिशा जो आशियाने में फैले हुए जगह के अनुसार लगाना चाहिए। जिससे कि इन वृक्षों के द्वारा मनुष्य निवास स्थान पर मध्याह्न के समय पड़ने वाली सूर्य की तेज अग्नि के समान गर्मी और नुकसानदायक रश्मियों का प्रभाव मानव शरीर पर नहीं पड़ सके। क्योंकि जब पूर्व दिशा में बड़े पेड़ होंगे तो पौ फटने के समय सूर्य की आने वाली किरणें जो जोश एवं बल देने वाली, निश्चत एवं स्थिर स्वरूप और वास्तुदोषों को दूर करने वाली होती है, वे ठीक से नहीं आ पावेगी। जबकि पश्चिम दिशा में बड़े पेड़ होने पर संध्या के समय की नकारात्मक ऊर्जा एवं बुरे असर से रक्षा करेगी।




19.छोटे वृक्षों या पेड़-पौधों:-छोटे पेड़-पौधों या वृक्षों को हमेशा उत्तर दिशा या पूर्व दिशा या उत्तर-पूर्व या ईशान कोण में लगाने की राह शास्त्रों में वर्णित किया गया हैं, जिससे निवास स्थान पर सूर्य की किरणें सही तरीके से बिना किसी व्यधान से प्रवेश कर सके और सूर्य की गर्मी के द्वारा संचलन करने की शक्ति मानव को मिल सके और शरीर को आवश्यक सोलह विटामिनों में से विटामिन ए व विटामिन डी आदि की उचित मात्रा मिल सके और मनुष्य के शरीर की पुष्टि बनी रह सकें।  




लेकिन कुछ आचार्यों के अनुसार:-वास्तुशास्त्र के कुछ वास्तुशास्त्रियों के अनुसार गुलाब एवं सफेद आक लगाना नुकसान दायक नहीं होता हैं, बल्कि इनको लगाना फायदेमन्द होता हैं।




शास्त्रानुसार भवन के नजदीक वृक्ष होने का शुभाशुभ निर्णय:-निम्नलिखित रूप से लेना चाहिए।



कौनसे अशुभ पेड़ या वृक्ष नहीं लगाये:-मनुष्य को अपने घर के पास निम्नलिखित वृक्ष या पेड़ जैसे-पाकर, गूलर, आम, नीम, बहेड़ा, पीपल, अगस्त्य, बेर, निर्गुण्डी, इमली, कदम्ब, केला, नींबू, अनार, खजूर, बेल आदि को नहीं लगाना चाहिए, अन्यथा अमंगलकारी और नुकसान होता हैं।


 

वास्तु सौख्यम् 39 के अनुसार:-


मालती मल्लिकां मोचां चिच्चां श्वेतां पराजिताम्।


वास्तुन्यां रोपयेद्यस्तु स शस्त्रेण निहन्यते।।



1.अर्थात्:-जब अपने आवास के गार्डन की जमीन में मालती, मल्लिका, मोचा (कपास), इमली, श्वेता (विष्णुक्रान्ता) और अपराजिता आदि पेड़-पौधों को लगाता हैं, वह मनुष्य किसी हथियार के आघात से मृत्यु को प्राप्त करता हैं। 




बदरी कदली चैव दाड़िमी बीजपूरिका।


प्ररोहन्ति गृहे यत्र तद्गृहं न प्ररोहति।। (समरांगण सूत्रधार 38/131)


2.अर्थात्:-जब किसी भी निवास स्थान की जगह पर जब कदली (केला), बदरी (बेर) एवं बांझ अनार आदि बिना बोये उग जाते हैं या बोये जाते हैं, जिससे उस निवास स्थान में रहने वाले सदस्यों के जीवन में बढ़ोतरी नहीं होती हैं। आवास की सरहद में कदली (केला), बदरी (बेर) एवं बांझ अनार के वृक्ष पड़ता है। बेर का वृक्ष ज्यादा दुश्मनी करवाता हैं। 



अश्वत्थं च कदम्बं च कदली बीज पूरकम्।


गृहे यस्य प्ररोहन्ति सगृही न प्ररोहति।। (बृहद्दैवज्ञ.87/9)



3.अर्थात्:-जब किसी भी निवास स्थान की जगह पर जब पीपल, कदम्ब, केला, बीजू नींबू आदि बिना बोये उग जाते हैं या बोये जाते हैं, जिससे उस निवास स्थान में रहने वाले सदस्यों की बढ़ोतरी नहीं होती हैं। 




4.जब आवास स्थान की हद में पलाश, कंचन, अर्जुन, करंज और लश्वेमांतक नामक वृक्षों में से कोई भी वृक्ष होता है, उस आवास स्थान में हमेशा बेचैनी बनी रहती है।




5.पीपल का वृक्ष:-जब आवास स्थान के पास या हद में पीपल का वृक्ष उगा हो, तो उस निवास स्थान के लोगों का वंश आगे नहीं बढ़ता हैं, क्योंकि पीपल के वृक्ष पर पितृगणों, साँपों और आत्माओं का निवास होता है। 



6.शमी का वृक्ष:-जब आवास स्थान के पास या हद में शमी का वृक्ष उगा हो, तो उस निवास स्थान के लोगों पर बुरी शक्तियों का असर होने लगता हैं। 



7.कीकर का वृक्ष:-जब आवास स्थान के पास या हद में कीकर के वृक्ष उगा हो, तो उस निवास स्थान के लोगों पर नकारात्मक शक्ति अपने असर में ले लेती हैं।



8.इमली का वृक्ष:-जब आवास स्थान के पास या हद में पीपल के वृक्ष उगा हो, तो उस निवास स्थान के लोगों का वंश आगे नहीं बढ़ता और शारीरिक व मानसिक व्याधि से ग्रसित रहते हैं, क्योंकि शमी, कीकर और इमली के वृक्षों में भी बुरी आत्माओं का निवास माना जाता है, अतः इन्हें घर में नहीं लगाना चाहिए।


9.चंदन का पेड़:-जब आवास स्थान के पास या हद में चंदन का पेड़ उगा हो, तो उस निवास स्थान के लोगों को हर समय भय बना रहता हैं। क्योंकि चंदन के वृक्ष से सर्प आकर्षित होते हैं। अतः इन्हें घर में नहीं लगाना चाहिए।



10.नीम का वृक्ष:-जब आवास स्थान के पास या हद में नीम का वृक्ष उगा हो, तो उस निवास स्थान के लोगों को हर समय बिना मतलब के क्लेश बना रहता और आवास को नुकसान हो सकता हैं। क्योंकि नीम की जड़े जमीन में गहराई तक जाती हैं, अतः इन्हें घर में नहीं लगाना चाहिए।



11.नारियल के वृक्ष:-जब आवास स्थान के पास या हद में नारियल का वृक्ष उगा हो, तो उस निवास स्थान के लोगों में बिना मतलब एक-दूसरे से श्रेष्ठ होने की और दूसरों को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति बनती हैं। क्योंकि नारियल का वृक्ष की ऊँचाई बहुत ज्यादा होती हैं और हितकारी भी नहीं होते हैं, अतः इन्हें शहरी घर में नहीं लगाना चाहिए।



कौनसे शुभ पेड़ या वृक्ष गार्डन में लगाये:-मनुष्य को अपने आवास में पेड़-वृक्ष जैसे-अशोक, पुन्नाग, मौलसिरी, शमी, चम्पा, अर्जुन, कटहल, केतकी, चमेली, पाटल, नारियल, नागकेशर, अड़हुल, महुआ, वट, सेमल, बकुल, शाल आदि को लगाना हितकारी रहता हैं।



1.अशोक का वृक्ष:-मनुष्य को अपने आवास में अशोक का वृक्ष लगाने पर सभी तरह के आत्मीय दुःख से उपजी वेदना से मुक्ति मिलती हैं और तकदीर का साथ मिलता हैं। यदि आवास स्थान की जमीन का भाग छोटा हैं, तो उसे घर के बाहर भी इसे लगाया जा सकता है।



2.वट या बरगद के वृक्षों:-जो मनुष्य को अपने निवास स्थान से खुली जगह में दो बड़ के वृक्षों का लगाना चाहिए, उस मनुष्य के सभी तरह के धर्म व नीति के खिलाफ किये बुरे अपराधों की माफी मिल जाती हैं। 



3.पलाश या ढाक के वृक्षों:-जो मनुष्य अपने आवास की हद से दूर पलाश के वृक्षों का लगाता है, उन दम्पत्तियों को कहना मानने वाला, सुंदर, सुशील और सभी तरह से आराम प्रदान करने वाला गुणवान पुत्र की प्राप्ति होती हैं। 




4.पारस का वृक्ष:-जो मनुष्य अपने आवास में पीपल से थोड़ा भिन्न छोटा पारस के वृक्ष का लगाता है, उन मनुष्य को जमीन-जायदाद की प्राप्ति होती हैं।



5.पीपल का वृक्ष:-जो मनुष्य अपने आवास की हद से दूर पीपल के वृक्ष को लगाता है, उन मनुष्य को सभी तरह आराम सहित वैभव की प्राप्ति होती हैं।



6.बिल्ब का वृक्ष:-जो मनुष्य को अपने निवास स्थान से खुली जगह में बिल्ब का एक वृक्ष लगाते हैं, उस मनुष्य को धन-संपत्ति की प्राप्ति होती हैं, क्योंकि बिल्व वृक्ष में लक्ष्मी जी का वास्तविक रूप से वास रहता हैं।



7.आँवला का पेड़:-जो मनुष्य अपने आवास की हद से दूर या किसी भी जगह पर आमलक के पेड़ को लगाता है, उस मनुष्य को जमीन-जायदाद, दौलत और सभी तरह की परेशानियों से मुक्ति मिल जाती हैं।



8.श्वेतार्क का पेड़:-जो मनुष्य अपने आवास की हद से दूर या किसी भी जगह पर श्वेतार्क के पेड़ को लगाता है, उस मनुष्य को गणेश एवं शिवजी की अनुकृपा से सोना-चाँदी और अन्य बहुमूल्य धातुएँ सहित द्रव्य की प्राप्ति होती हैं। 



9.केले का पेड़:-जो मनुष्य अपने आवास में या किसी भी जगह पर केले के पेड़ को लगाता है, उस मनुष्य पर भगवान सत्यनारायण जी की अनुकृपा सहित लक्ष्मीजी की कृपा भी मिल जाती हैं। 



10.गूलर का पौधा:-जो मनुष्य अपने आवास में या किसी भी जगह पर गूलर का पौधा को लगाता है, उस मनुष्य को चन्द्रमा ग्रह से मिलने वाली पीड़ा से मुक्ति मिल जाती हैं। ।



11.निर्गुडी का पौधा:-जिस आवास की हद में निर्गुडी का पौधा का लगा होता हैं, उस आवास में हमेशा वैयक्तिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती हैं।


 

12.दूसरे पौधे:-मनुष्य को आवास की हद से दूर अंगूर, पनस, पाकड़ तथा महुआ के पौधों को लगाना भी हितकारी होता हैं।

 


13.पुष्पदार पौधों में:-मनुष्य को आवास की हद से दूर या आवास स्थान में चंपा, गुलाब, चमेली, केतकी पुष्पदार के पौधों को लगाना भी हितकारी होता हैं।



14.नीम का वृक्ष:-जो मनुष्य अपने आवास की हद से दूर या किसी भी जगह पर अर्थात् सड़क के किनारे या जहां पर वह पनप सके उस स्थान पर नीम का वृक्ष को लगाता है, उस मनुष्य को मंगल ग्रह से मिलने वाले कष्टों से मुक्ति, बढ़े हुए कर्ज और खून की बीमारियों से मुक्ति मिल जाती हैं। लेकिन कुछ आचार्यों ने कुछ दूसरे पेड़ जैसे-नीम, चंदन एवं नारियल को लगाना भी हितकारी बताया है।



15.तुलसी का पौधा:-मनुष्य को अपने निवास की जगह के ईशान या ब्रह्म स्थान तुलसी का पौधा लगाना चाहिए, जिससे मनुष्य को सुबह दर्शन करने से सोने के दान की तरह फल मिल जावें, रुपये-पैसों, पुत्र सन्तान की प्राप्ति, सभी तरह परोपकार के कार्यों का फल, ईश्वर भक्ति में रुचि और कल्याण की प्राप्ति हो सकें। लेकिन तुलसी के पौधे को दक्षिण दिशा में में नहीं लगाना चाहिए, अन्यथा मरने के समय यम दूतों के द्वारा दी जाने वाले कष्टों को झेलना पड़ता हैं।

 


विशेष:-जब परिस्थिति वश किसी वृक्ष को काटना पड़े, तो उस स्थिति में दूसरे दश वृक्षों को कहीं पर लगाना चाहिए और उनकी देखभाल सभी तरह जैसे-पानी, खाद, जानवरों आदि से करनी चाहिए। इस तरह से वृक्षों की सेवा करने से जो वृक्षों को काटने से हुए बुरे कर्मों के दोष से मुक्त हो जाता हैं। मनुष्य को बिना वजह वृक्षों को काटना और उनकी डालों, पल्लवों को तोड़ना अनुचित एवं निंदनीय कर्म माना गया है, क्योंकि वृक्षों में भी जीवनी शक्ति होती हैं, क्योंकि यह बात को वैज्ञानिकों ने भी वास्तविक रूप से बिना विवाद के सिद्ध कर चुके हैं कि सुख-दुख और गर्मी, सर्दी व बरसात जैसी सभी चारों तरफ के हालातों से वृक्षों पर असर होता हैं और वे भी सही तरह से अहसास करते हैं। इसी कारण से वृक्षों को काटने और उनको नुकसान पहुँचाने के बारे में भर्त्सना की गई हैं। यही कारण है कि धर्मशास्त्रों में वृक्षों को नष्ट करने की निंदा की गई हैं।



ऋग्वेद के अनुसार:-वृक्षों को दुःख, काटने आदि करने के बारे में निम्नलिखित रूप से ऋग्वेद में कहा गया है-


मा काकम्बीरमुद्वृहो वनस्पतिम् शस्तीर्वि हि नीनशः।


मोत सूरो अह एवा चन ग्रीवा अदद्यते वेः।।


अर्थात्:-जिस तरह अपनी ताकत के बल द्वारा कुटिल मनोवृत्ति वाला बाज पक्षी दूसरे कमजोर पक्षियों की गर्दन को मरोड़कर उन्हें तकलीफ सहित पीड़ा देता हैं, तुम भी उसी तरह मत बनो। इन वृक्षों को पीड़ा मत दो, उनको जड़ से उखाड़-पछाड़ मत करो। ये सभी संसार के पशु-पक्षियों और जीव-जंतुओं को शरण देते हैं।