कालिका अष्टकम् अर्थ सहित और लाभ (Kalika Ashtakam With Meaning And Benefits)
कालिका अष्टकम् अर्थ सहित और लाभ (Kalika Ashtakam With Meaning And Benefits):-श्रीशंकराचार्य जी के द्वारा माता काली को प्रसन्न करने के लिए श्रीकालिकाष्टकं की रचना की थी। इस स्तोत्रं के मन्त्रों के द्वारा माता काली के स्वरूप के बारे में बताया गया हैं, माता काली के स्वरूप का पूर्ण रूप से आख्यान एवं गुणगान किया गया हैं, जिसका वांचन करने से मनुष्य को समस्त तरह से शुभ फलों की प्राप्ति होती हैं। इसके मन्त्रों का उच्चारण करने से मनुष्य को माता काली का आशीर्वाद प्राप्त हो जाता हैं।
ध्यानम्:-माता काली के श्रीकालिकाष्टकं के मन्त्रों के उच्चारण से पूर्व अपने मन को एक जगह पर केंद्रीत करते हुए मन ही मन में माता काली को स्मरण करने के लिए उनकी छवि को अपने मन में ग्रहण करते हुए उनका ध्यान करना चाहिए।
गलदररक्तमुण्डावलीकण्ठमाला महाघोररावा सुदंष्ट्रा कराला।
विवस्त्रा श्मशानालया मुक्तकेशी महाकाल कामाकुला कालिकेयम्।।१।।
भावार्थ्:-हे भगवती कालिका! बहुत सारे मुण्डो की बनी हुई माला को गले में पहने हुए हो, इन मुण्डो से शोणित की धारा स्रावित हो रही हैं, आप बहुत तीव्र गहरे डरावनी आवाज कर रही हैं, आपका जबड़ा हैं तथा स्वरूप बहुत ही डरावना हैं, बिना वस्त्रों को धारण किये हुए हो, रहने का स्थान श्मशान है, आपके कुन्तल बिखरे हुए हैं और कामक्रीड़ा को महाकाल के साथ करने में लीन हैं।
भुजे वामयुग्मे शिरोSसिं दधाना वरं दक्षयुग्मेSभयं वै तथैव।
सुमध्याSपि तुंगस्तनाभारनम्रा लसदरक्तसृक्कद्वया सुस्मितास्या।।२।।
भावार्थ्:-हे भगवती काली माता! आप अपने दोनों बाएं हाथों में नरमुण्ड एवं खड्ग को धारण किए हो और अपने दोनों दाएं हाथों में वर और अभयमुद्रा धारण किए हुई हो, आपके कटिप्रदेश बहुत ही आकर्षक दिखाई पड़ते हैं, आपके उठे हुए चंचुको के भार से आप झुकी हुई प्रतीत होती हो, आपके ओष्ठ द्वय का प्रान्त भाग रक्त से अत्यंत शोभायमान हैं और मधुर मुस्कराहट से युक्त आपका मुखमण्डल चमकता हैं।
शवद्वन्द्वकर्णावतंसा सुकेशी लसत्प्रेतपाणिं प्रयुक्तैककाञ्ची
शवाकारमञ्चाधिरूढा़ शिवाभि श्चतुर्दिक्षु शब्दाय मानाSभिरेजे।।३।।
भावार्थ्:-हे भगवती काली माता! आपके दोनों श्रवणों में दो शवरूपी अलंकार को धारण किये हुए हो, आपके आकर्षक कुन्तल हैं, शवों के हाथों से बनी हुई अत्यन्त शोभायमान कमरबंद हैं, कमर में पहने हुए हो, शवों के ढ़ेर से बने सिंहासन पर बैठी हुई हो और डरावनी आवाज को करने से चारों दिशाओं में आपकी आवाज ही सुनाई पड़ती हैं और शृंगालियो से घिरी हुई अत्यंत शोभायमान हो।
स्तुतिः-माता काली के इस स्तोत्रं के मन्त्रों के उच्चारण करने से पूर्व काली माता से अरदास करते हुए उनके गुणों का बखान करते हुए उनकी स्तुति करनी चाहिए।
विरञ्च्यादिदेवास्त्रयस्ते गुणांस्त्रीन् समाराध्य कालीं प्रधाना बभूवुः।
अनादिं सुरादिं मखादिं भवादिं स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः।।४।।
भावार्थ्:-हे भगवती काली माता! आपके गुणों एवं स्वरूप की प्रशंसा तीनों देव करते रहते हैं, जिससे आपके तीनों गुणों के माध्यम से ब्रह्माजी, शिवजी एवं विष्णुजी आपकी अरदास एवं आपको सन्तुष्ट व अपने अनुकूल करने के लिए आपकी उपासना करते हुए मुख्य हुए हैं। आपका स्वरूप आरम्भ के बगैर हैं, और समस्त देवताओं में आप पहले हो, यज्ञ के स्वरूप में भी पहले हो और संसार में भी मौलिक हो, देवताओं को भी आपके इस बनावट के बारे में नहीं जानकारी हैं।
जगन्मोहनीयं तु वाग्वादिनीयं सुहृत्पोषिणी शत्रुसंहारणीयम्।
वचस्तम्भनीयं किमुच्चाटनीयं स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः।।५।।
भावार्थ्:-हे भगवती काली माता! समस्त संसार को अपनी तरफ आकर्षित करने वाला आपका स्वरूप हैं, आपकी प्रशंसा वाणी के द्वारा करने योग्य हैं, आप अपने मित्र या सखा रूप को निभाने वाली हो, दुश्मनों को नष्ट करके दुश्मनों से मुक्त करने वाली हो, बुरे शब्दों को वाणी से बोलने पर वाणी के शब्दों को रोकने वाली हो, आप खींच कर हटानी वाली हो और देवताओं को भी आपके इस बनावट के बारे में नहीं जानकारी हैं।
इयं स्वर्गदात्री पुनः कल्पवल्ली मनोजांस्तु कामान यथार्थं प्रकुर्यात।
तथा ते कृतार्था भवन्तीति नित्यं स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः।।६।।
भावार्थ्:-हे भगवती काली माता! आप देवलोक को प्रदान करने वाली हो और नयी बात को उत्पन्न करने की तरह कल्पता हो। आपके प्रति सच्ची आस्था भाव रखने वाले एवं आप पर विश्वास रखने वाले अपने भक्तों के मन की समस्त तरह की इच्छाओं की पूर्ति करती हो और जिससे आपके भक्त आपके प्रति हमेशा आपके के द्वारा की गई इच्छा पूर्ति के कारण आपका की भक्ति को नहीं भूल पाते हैं और आपके इस तरह के स्वरूप के बारे में देवताओं को भी जानकारी नहीं हैं।
सुरापानमत्ता सुभक्तानुरक्ता लसत्पूतचित्ते सदाविर्भवत्ते।
जपध्यानपूजासुधाधौतपंका स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः।।७।।
भावार्थ्:-हे भगवती काली माता! आप हमेशा मद्य का सेवन करके मस्त रहने वाली हो और आप पर श्रद्धाभाव व विश्वास रखने वाले भक्तों पर हमेशा अपने स्नेह की छत्रछाया रखने वाली हो। भक्तों के मन को हरने वाले एवं पावन हृदय में हमेशा आप निवास करती हो। भक्त के द्वारा आपका ध्यान, जप और पूजा करने पर आप अपने भक्तों के मन एवं हृदय में बुरे विकारों रूपी कीचड़ या मैल को आप अपने अमृत से स्वच्छ कर देती हो और भक्त को एकदम बुरे विकारों से मुक्त कर देती हो और आपके इस तरह के स्वरूप के बारे में देवताओं को भी जानकारी नहीं हैं।
चिदानन्दकन्दं हसन् मन्दमन्दं शरच्चन्द्र कोटिप्रभापुञ्जबिम्बम्।
मुनीनां कवीनां हृदि द्योतयन्तं स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः।।८।।
भावार्थ्:-हे भगवती काली माता! आपका स्वभाव भगवान शिव या चेतन मन की कुल आनन्द में डूबे बादल या घनसार की तरह हैं, धीरे-धीरे मुस्कराहट से भली-भाँति युक्त हो, शरद काल से सम्बंधित करोड़ों सोम के अत्यन्त चमकदार आभा से युक्त समूह के प्रतिच्छाया के समान और कवियों एवं मुनियों के हृदय को प्रकाशयुक्त करने वाला है, देवताओं को भी आपके इस बनावट के बारे में नहीं जानकारी हैं।
महामेघकाली सुरक्तापि शुभ्रा कदाचिद् विचित्रा कृतिर्योगमाया।
न बाला न वृद्धा न कामातुरापि स्वरुपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः।।९।।
भावार्थ्:-हे महाकाली माता! आपका का वर्ण काले रंग का है, जिस तरह आकाश में उमड़े या छाए हुए घने बादलों के समान वर्ण का होता हैं, जो अपने प्रचण्ड वेग से नाश करने वाला होता हैं, उसी तरह आपका कला रंग दिखाई पड़ता हैं, आपका रंग किसी समय लाल रंग के समान जैसे शोणित वर्ण की तरह और किसी समय आपका रंग एकदम स्वच्छ भी हैं। आपका आकार रंग बिरंगा या अजीब तरह का हैं और आपमें दार्शनिक एवं धार्मिक क्षेत्र में ईश्वर की सृष्टि मूलक शक्ति के स्वरूप वाली हो। आप न बाला, न वृद्धा और ना ही कामातुरा युवती ही हैं, देवताओं को भी आपके इस बनावट के बारे में नहीं जानकारी हैं।
क्षमस्वापराधं महागुप्तभावं मया लोकमध्ये प्रकाशीकृतं यत्।
तव ध्यानपूतेन चापल्यभावात् स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः।।१०।।
भावार्थ्:-हे कालिकां माता! मेरे चित्त की एकाग्रता निश्छल या निर्मल होने से एवं मेरे मन की अस्थिरता के कारण आपके इस नितांत अपरिचित या छिपी हुई चेष्टा को मैनें अपने मन में उत्पन्न होने वाले विचार या ख्याल के कारण इस संसार में जगजाहिर कर दिया हैं, इसलिए आपसे मैं अरदास करता हूँ, की मेरी इस गलती को आप माफ कीजिए, देवताओं को भी आपके इस बनावट के बारे में नहीं जानकारी हैं।
फलश्रुति:-फलश्रुति में श्रीकालिकाष्टकं मन्त्रों के वांचन के महत्व के बारे बताया गया है
यदि ध्यानयुक्तं पठेद् यो मनुष्यस्तदा सर्वलोके विशालो भवेच्च।
गृहे चाष्टसिद्धिर्मृते चापि मुक्तिः स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः।११।।
भावार्थ्:-हे कालिकां माता! जब कोई भी मनुष्य अपने मन को नियंत्रित करके अपने मन को एक जगह पर स्थिर करते हुए श्रीकालिकाष्टकं मन्त्रों का वांचन करते हैं, तो वह मनुष्य तीनों लोकों में उच्चकोटि का हो जाता हैं, उस मनुष्य को अपने निवास स्थान पर ही आठों सिद्धियों को बिना किसी तरह की तप-साधना किये ही मिल जाती हैं और मनुष्य अपने पूर्ण जीवनकाल को व्यतीत करने के बाद में अन्त में जीवन-मरण के बन्धन से मुक्त होकर मोक्ष पद को प्राप्त करता हैं, देवताओं को भी आपके इस बनावट के बारे में नहीं जानकारी हैं।
।।इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितं श्रीकालिकाष्टकं सम्पूर्णम्।।
श्रीकालिकाष्टकं के वांचन के लाभ:-श्रीकालिकाष्टकं के स्तोत्रं के मन्त्रों के पाठ करने के निम्नलिखित लाभ मिलते हैं:
◆जो मनुष्य नियमित रूप से श्रीकालिकाष्टकं स्तोत्रं के मन्त्रों का पाठ करते हैं, उनको जीवनकाल में समस्त तरह की मुसीबतों से मुक्ति मिल जाती हैं।
◆इस स्तोत्रं के मन्त्रों के पाठ करते रहने से मनुष्य को स्वर्गलोक की प्राप्ति होती हैं।
◆मनुष्य को जीवन में आने-जाने के बन्धन से मुक्ति मिल जाती हैं, अन्त में माता काली के चरणों की सेवा करने का अवसर मिलता है।
◆मनुष्य पर किसी भी तरह की बुरी ताकतों का असर नहीं हो पाता हैं।