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Wednesday, October 22, 2025

October 22, 2025

अन्नकूट गोवर्धन पूजा कब हैं? जानें अन्नकूट पूजा विधि, कथा और महत्व (When is Annakut Govardhan Puja? Know Annakoot Puja vidhi, katha and Importance)

अन्नकूट गोवर्धन पूजा कब हैं? जानें अन्नकूट पूजा विधि, कथा और महत्व (When is Annakut Govardhan Puja?  Know Annakoot Puja vidhi, katha and Importance):-हिन्दू धर्म में कार्तिक मास में दिवाली पूजन के दूसरे दिन के पर्व को अन्नकूट पूजा या गोवर्धन पूजा और बाली प्रतिपदा का पर्व को कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन मनाया जाता हैं। कार्तिक शुक्लपक्ष की प्रतिपदा को अन्नकूट का उत्सव भी मनाया जाता है।




अन्When is Annakoot Puja?  Know Annakoot Puja vidhi, katha and Importance



अन्नकूट का अर्थ:-जिनमें तरह-तरह के अन्न को इकट्ठा करके तरह-तरह की सब्जियों के साथ में मिलाकर एक किया जाता हैं, उसे अन्नकूट कहते हैं। इस तरह अन्नकूट के शब्दों को अलग करने पर दो शब्द प्राप्त होते है, जिनमें एक होता है अन्न एवं दूसरा शब्द कूट होता हैं।


अन्न का अर्थ समस्त तरह के धान्य पर्दाथ होता हैं।


कूट का अर्थ सभी को इक्कठा करके एक समूह बना होता हैं।


इस दिन खरीफ फसलों से प्राप्त अनाज एवं नई सब्जियों को बनाकर भगवान विष्णु का भोग लगाया जाता हैं। ऐसा करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते है:



कार्तिकस्य सिते पक्षे अन्नकूटं समाचरेत्।


गोवर्धनोत्सवं चैव श्रीविष्णुः प्रिवनामिति।।



अन्नकूट पूजा विधि:-इस दिन की पूजा विधि इस तरह हैं।


◆प्रातःकाल घर के द्वार पर गौ के गोबर का गोवर्धन बनाये तथा उसे शिखर युक्त बनाकर वृक्ष शंखादि से संयुक्त और पुष्पों से सुशोभित करें। 



◆इस दिन यथा सामर्थ्य छप्पन प्रकार के व्यंजन बनाकर गोवर्धन रूप श्री भगवान को भोग लगाया जाता है। इसको प्रसाद रूप में भक्तों में वितरीत किया जाता हैं। 



◆रात में गौ से गोवर्धन का उपमर्दन करवाया जाता हैं। 



◆मन्दिरों में विविध प्रकार के पकवान, मिठाईयां, नमकीन और अनेक प्रकार की सब्जियां, मेवे, फल आदि भगवान के समक्ष भोग के लिए सजाये जाते हैं तथा सभी अन्नकूट का दर्शन कर भोग लगाकर आरती करते हैं। 



◆फिर भक्तों को प्रसाद रूप में अन्नकूट वितरण करते हैं। ब्रज में इसकी विशेष विशेषता हैं। 



◆काशी, मथुरा, वृन्दावन, गोकुल, बरसाना, नाथद्वारा आदि भारत के प्रमुख मन्दिरों में लड्डुओं तथा पकवानों के पहाड़ या कूट बनाये जाते हैं। जिनके दर्शन के लिए विभिन्न स्थानों से यात्री पधारते हैं। 



◆एक-एक करके सभी मन्दिरों में अन्नकूट महोत्सव का आयोजन किया जाता है और दीपावली से कार्तिक पूर्णिमा तक सभी मन्दिरों में ये महोत्त्सव चलता रहता हैं।





अन्नकूट पूजा की पौराणिक कथा:-द्वापर में ब्रज में अन्नकूट के दिन इन्द्र की पूजा होती थी। एक दिन श्रीकृष्ण ने गोप-ग्वालों को समझाया कि गायें व गोवर्धन प्रत्यक्ष देवता हैं। अतः तुन्हें इनकी पूजा करनी चाहिए। क्योंकी इन्द्र तो कभी यहां दिखाई भी नहीं देते। अब तक उन्होंने कभी आप लोगों के बनाये हुए पकवान ग्रहण भी नहीं किये। फलस्वरूप उनकी प्रेरणा से सभी ब्रजवासियों ने इंद्र की पूजा न करके गोवर्धन की पूजा की। स्वयं भगवान श्री कृष्णजी ने गोवर्धन का रूप धारण करके सभी पकवानों या अन्नकूट को ग्रहण किया। जब इन्द्र को यह बात पता चली तो वे अत्यन्त क्रोधित होकर प्रलयकाल के सदृश मूसलाधार वर्षा करने लगे। यह देखकर श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी चिटुडी अंगुली पर धारण किया। उसके नीचे सब ब्रजवासी ग्वाल-बाल, गायें-बछड़े आदि आ गये। लगातार सात दिन की वर्षा से जब ब्रजवासी पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा तो इन्द्र को बड़ी ग्लानि हुई। ब्रह्माजी ने इन्द्र को श्री कृष्ण के परमब्रह्म परमात्मा होने की बात बतायी तो लज्जित होकर इन्द्र ने ब्रज में आकर श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी। इस अवसर पर ऐरावत ने आकाश गंगा के जल से और कामधेनु ने अपने दुग्ध से भगवान श्री कृष्ण का अभिषेक किया। जिससे वे गोविन्द कहे जाने लगे। इस प्रकार गोवर्धन पूजन स्वयं श्री भगवान का पूजन हैं। "गोविन्द मेरो हैं, गोपाल मेरो हैं, श्री बांके बिहारी नन्दलाल मेरो हैं।"





अन्नकूट पूजा की पौराणिक कथा:-भगवान की प्रेरणा से शाल्गलीद्वीप में द्रोणाचल की पत्नी से गोवर्धन का जन्म हुआ। भगवान के जाग रूप से वृन्दावन और उनके बावन स्कन्ध से यमुना प्रकट हुई। गोवर्धन को भगवद् रूप जानकर ही सुमेरु हिमालय आदि पर्वतों ने उसकी पूजा की और उसे गिरिराज बनाकर उसका स्तवन भी किया। एक समय तीर्थ यात्रा के प्रसंग में पुलस्त्यजी वहां आये। वे गिरिराज गोवर्धन को देख कर मुग्ध हो उठे और द्रोण के पास जाकर उन्होंने कहा कि मैं काशी निवासी हूँ। एक याचना लेकर आपके पास आया हूँ। आप अपने इस पुत्र को मुझे दे दो। मैं इसे काशी में स्थापित कर वहीं तप करूंगा। इस पर द्रोण पुत्र के स्नेह से कातर तो हो उठे, पर वे ऋषि मांग को ठुकरा न सके। तब गोवर्धन ने मुनि से कहा। "मैं दो योजन ऊँचा और पाँच योजन चौड़ा हूँ। आप मुझे कैसे ले चलेंगे।" मुनि ने कहा-मैं तुम्हें हाथ पर उठाये ले चलूंगा। गोवर्धन ने कहा-महाराज एक शर्त हैं। यदि आप मार्ग में मुझे कहीं रख देंगे तो मैं उठ नहीं सकूंगा। मुनि ने यह शर्त स्वीकार कर ली। ततपश्चात पुलस्त्यजी मुनि ने हाथ पर गोवर्धन उठा कर काशी के लिए प्रस्थान किया। मार्ग में ब्रजभूमि मिली। जिस पर गोवर्धन की पूर्व स्मृतियां जाग उठी। वह सोचने लगा कि भगवान श्री कृष्ण राधा के साथ यही अवतीर्ण होकर बाल्य और किशोर आदि की बहुत सी मधुर लीलाऐं करेंगे। उस अनुपम रस के बिना मैं न रह सकूंगा। ऐसे विचार उत्पन्न होते ही वह भारी होने लगा। जिससे मुनि थक गये। इधर लघुशंका की भी प्रवृत्ति हुई। स्नान आदि से निवृत्त होकर जब वे गोवर्धन को पुनः उठाने लगे। तब वह न उठा। गोवर्धन ने मुनि को अपनी शर्त की याद दिलवाई और कहा-अब मैं यहां से नहीं हटूंगा। इस पर मुनि को क्रोध आया और वे शाप दे बैठे। तुमने मेरे मनोरथ पूर्ण नहीं किया। इसलिए तुम प्रतिदिन तिल-तिल घटते जाओगे। उसी शाप से गिरिराज गोवर्धन आज भी तिल-तिल घटता जा रहा हैं।




अन्नकूट पूजा का महत्त्व:-अन्नकूट पूजा करने से भगवान श्री कृष्णजी की अनुकृपा प्राप्त होती हैं।


1.अन्नकूट व्रत करने से मनुष्य के जीवनकाल के समस्त संकटों का निवारण हो जाता हैं।


2.मनुष्य के पारिवारिक जीवन में अन्न भण्डार भरा रहता हैं।


Wednesday, August 20, 2025

August 20, 2025

बटुक भैरव स्तोत्रं अर्थ सहित और महत्त्व(Batuk Bhairav ​​Stotra with meaning and importance)

बटुक भैरव स्तोत्र अर्थ सहित और महत्त्व (Batuk Bhairav ​​Stotra with meaning and importance):-श्रीबटुक भैरवजी को ही शिवजी के रूप में समस्त जगत में जाना जाता हैं, श्रीबटुक भैरवजी की पूजा-अर्चना एवं गुणगान करके भगवान शंकरजी को खुश किया जा सकता हैं। इसलिए मनुष्य को नियमित रूप से श्रीबटुक भैरव स्तोत्रं का वांचन करना चाहिए, जिससे भगवान शिवजी का आशीर्वाद श्रीबटुक भैरवजी की पूजा के रूप में मिल सके। 



Batuk Bhairav ​​Stotra with meaning and importance



बटुक भैरव स्तोत्र अर्थ सहित और महत्त्व (Batuk Bhairav ​​Stotra with meaning and importance):-श्रीबटुक भैरवजी को ही शिवजी के रूप में समस्त जगत में जाना जाता हैं, श्रीबटुक भैरवजी की पूजा-अर्चना एवं गुणगान करके भगवान शंकरजी को खुश किया जा सकता हैं। इसलिए मनुष्य को नियमित रूप से श्रीबटुक भैरव स्तोत्रं का वांचन करना चाहिए, जिससे भगवान शिवजी का आशीर्वाद श्रीबटुक भैरवजी की पूजा के रूप में मिल सके।





भैरव का अर्थ:-जो जीवनकाल में समस्त तरह के डरावनें डर से मुक्त कराने के कारण भैरव कहलाते हैं।


वट्यते वेष्टयते सर्व जगत् प्रलयेअनेनेति वटुकः' 

अर्थात्:-जब समस्त संसार को चारों तरफ से घेरते हुए समस्त तरह से संसार को नाश करने के कारण अथवा सभी जगहों पर अपनी नजर दृष्टि रखते हुए अपना वर्चस्व से युक्त होने से भैरव 'बटुक' कहलाते हैं।



'बटून् ब्रह्मचारिणः कार्यमुपदिशनीति बटुको गुरूरूपः'


अर्थात:-ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए एवं सात्विक जीवन को जीने से सम्बंधित ज्ञान देने वाले गुरु के रूप में होने से भैरव 'बटुक' कहे जाते हैं।



श्रीबटुक भैरव स्तोत्रम् अर्थ सहित:-मनुष्य को श्रीबटुक भैरव स्तोत्रम् का वांचन करने से पूर्व निम्नलिखित तरीके से पूजा करते हुए इस स्तोत्रं का वांचन करना चाहिए, जो इस तरह हैं- अर्थ सहित



श्रीबटुक भैरव ध्यान:-श्रीबटुक भैरव स्तोत्रं के वांचन से पूर्व श्रीबटुक भैरवजी को मन में मन रखते हुए उनको आंखे मूंदकर उनका ध्यान करना चाहिए।


वन्दे बालं स्फटिक-सदृशम्, कुन्तलोल्लासि-वक्त्रम्।


दिव्याकल्पैर्नव-मणि-मयैः, किंकिणी-नूपुराढ्यैः।।


दीप्ताकारं विशद-वदनं, सुप्रसन्नं त्रि-नेत्रम्।


हस्ताब्जाभ्यां बटुकमनिशं, शूल-दण्डौ दधानम्।।



श्रीबटुक भैरव स्तोत्रं से पूर्व भैरव मानस पूजन:-श्रीबटुक भैरव स्तोत्रं के पूर्व भैरवजी का मानस पूजन करना चाहिए, जो निम्नलिखित प्रकार से करनी चाहिए।


ऊँ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीतये समर्पयामि नमः।


ऊँ हं आकाश-तत्त्वात्मक पुष्पं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीतये समर्पयामि नमः।


ऊँ यं वायु-तत्त्वात्मक धूपं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीतये समर्पयामि नमः।


ऊँ रं अग्नि-तत्त्वात्मक दीपं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीतये समर्पयामि नमः।


ऊँ सं सर्व-तत्त्वात्मक ताम्बूलं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीतये समर्पयामि नमः।



बटुक भैरव मूल स्तोत्रं:-बटुक भैरव मूल स्तोत्रं का वांचन करने से पहले बटुक भैरव के मूल स्तोत्रं के श्लोकों में वर्णित मन्त्रों के अर्थ को जानना चाहिए, जिससे स्तोत्रं में जो वर्णित देव के बारे में बताया हैं, उनके स्वरूप एवं गुणों के बारे में जानकारी मिल सके। बटुक भैरव के मूल स्तोत्रं का अर्थ इस तरह हैं-


ऊँ भैरवो भूत-नाथश्च, भूतात्मा भूत-भावनः।


क्षेत्रज्ञः क्षेत्र-पालश्च, क्षेत्रदः क्षत्रियो विराट्।।


श्मशान-वासी मासांशी, खर्पराशी स्मरान्त-कृत्।


रक्तपः पानपः सिद्धः, सिद्धिदः सिद्धि-सेवितः।।


कंकालः कालः शमनः, कला-काष्ठा-तनुः कविः।


त्रि-नेत्रो बहु-नेत्रश्च, तथा पिंगल-लोचनः।।


शूलपाणि खड्गपाणि, कंकाली धूम्र-लोचनः।


अभीरुर्भैरवीनाथो, भूतपो योगिनीपतिः।


धनदोsधनहारी च, धनवान् प्रतिभागवान्।


नागहारो नागकेशो, व्योमकेशः कपालभृत्।।


कालः कपालमाली च, कमनीयः कलानिधिः।


त्रिनेत्रो ज्वलन्नेत्रस्त्रिशिखी च त्रिलोकभृत्।।


त्रिवृत्ततनयो डिम्भः शान्तः शान्तजनप्रिय।


बटुको बटुवेषश्च, खट्वांगवरधारकः।।


भुताध्यक्षः पशुपतिर्भिक्षुकः परिचारकः।


धूर्तो दिगम्बरः शौरीर्हरिणः पाण्डुलोचनः।


प्रशान्तः शान्तिदः शुद्धः शंकरप्रियबान्धवः।।


अष्टमूर्तिर्निधीशश्च, ज्ञानचक्षुस्तपोमयः।


अष्टाधारः षडाधारः, सर्पयुक्तः शिखीसखः।।


भूधरो भूधराधीशो, भूपतिर्भुधरात्मजः।।


कपालधारी मुण्डी च, नागयज्ञोपवीतवान्।


जृम्भणो मोहनः स्तम्भ, मारणः क्षोभणस्तथा।।


शुद्द नीलाञ्जनप्रख्यदेहः मुण्डविभूषणः।


बलिभुग्बलिभुङ्नाथो, बालोबालपराक्रम।।


सर्वापत्-तारणो दुर्गों, दुष्टभूतनिषेवितः।


कामीकलानिधिः कान्त, कामिनी वशकृद्वशी।।


जगद्-रक्षाकरोsनन्तो, मायामन्त्रौषधीमयः।


सर्वसिद्धिप्रदो वैद्य, प्रभविष्णुरितीव हि।।



फलश्रुति का अर्थ:-फलश्रुति में समस्य तरह के रचित श्लोक या किसी भी तरह के स्तोत्रम् के बारे में मिलने वाले नतीजों को बताया जाता हैं, जिससे मनुष्य उन स्तोत्रम् को पाठन करके उन नतीजों को प्राप्त कर सके। फलश्रुति का अर्थ सत्कर्म विशेष का फल देने का भाव होता हैं।


अष्टोत्तरशतं नाम्नां, भैरवस्य महात्मनः।


मया ते कथितं देवि, रहस्य सर्वकामदम्।।


अर्थात्:-

य इदं पठते स्तोत्रं, नामाष्टशतमुत्तमम्।


न तस्य दुरितं किंञ्चिन्न च भूतभयं तथा।


न शत्रुभ्यो भयं किञ्चित्, प्राप्नुयान्मानवः क्वचिद्।


पातकेभ्यो भयं नैव, पठेत् स्तोत्रमतः सुधीः।।


मारीभये राजभये, तथा चौराग्निजे भये।


औत्पातिके भये चैव, तथा दुःस्वप्नजे भये।।


बन्धने च महाघोरे, पठेत् स्तोत्रमनन्यधीः।


सर्वं प्रशममायाति, भयं भैरवकीर्तनात।।


क्षमा प्रार्थना:-देवी-देवता के मन्त्रों के उच्चारण में किसी भी तरह के उच्चारण में भूल के लिए क्षमा करनी चाहिए, जिससे मन्त्रों का फल मिल सके, इसे ही क्षमा प्रार्थना कहते हैं।


आवाहन न जानामि, न जानामि विसर्जनम्।


पूजाकर्म न जानामि, क्षमस्व परमेश्वर।।


मन्त्रहीनं क्रियाहीनं, भक्तिहीनं सुरेश्वर।


मया यत्-पूजितं देव परिपूर्णं तदस्तु में।


अर्थात्:-हे इष्टदेव या इष्टदेवी! मैं न तो आपको मन्त्रों के द्वारा बुलाना जानता हूँ, न तो ही मैं आपको पूजा आदि के बाद आपकी मूर्ति को जलाशय में प्रवाहित करना जानता हूँ। हे परमेश्वर! मैं आपकी विधिवत पूजा-अर्चना नहीं जानता हूँ, परमेश्वर आप मुझे क्षमा करें।


हे सुरेश्वर! वैदिक रीति से करने वाले कार्यों के मन्त्रों के रहित, नित्य कर्म नियम और विधि से होने वाले कार्यों से रहित और आस्था से रहित हूँ। हे देव! मैं जिस तरह से आपकी भक्ति के रूप में पूजा-उपासना करता हूँ आप उस पूजा को पूर्ण मानते हुए, मेरी पूजा को स्वीकार करते हुए मेरी पूजा को पूर्ण कीजिए।



बटुक भैरव स्तोत्रं वांचन करने की विधि (Method of reciting Batuk Bhairav ​​Stotra):-बटुक भैरव स्तोत्रं वांचन को करते समय विधिपूर्वक भैरवजी को अपने मन मन्दिर में स्थापित करते हुए स्तोत्रं का वांचन करना चाहिए, बटुक भैरव स्तोत्रं के वांचन की इस तरह हैं-


◆लकड़ी का एक बाजोट लेकर उसको शुद्ध करके स्वच्छ काले रंग के कपड़े को उस पर बिछाना चाहिए।



◆शुभ अवसरों पर पूजन के लिए आटा आदि से बनाया गया छोटा चौकोर स्थान जहाँ शादियों और अन्य खुशी के अवसरों पर मिठाई रखी जाती है जो पूजा के बाद लोगों में बाँटी जाती हैं। या जमीन पर चित्रांकन करना या बनाना को चौक पूरें करना कहते हैं।



◆फिर एक सरसों के तेल के दिये में बाती डालकर उसको प्रज्वलित करना चाहिए।



◆फिर कालभैरवजी को पूजा में बुलाने के लिए हाथ में हल्दी से मिश्रित अक्षत को उनको मन ही मन में याद करते हुए उनका आह्वान करना चाहिए।



◆इक्कीस बार ॐ भैरवायः नमः मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।


◆फिर उनका षोडशोपचार कर्म से पूजन करना चाहिए।


◆स्नान, अर्ध्य के लिए जल को अर्पण करना, चन्दन, फूल, अगरबत्ती, फल, नीबू, लौंग, उड़द, मिठाई, धूप, दिप आदि को अर्पण करना चाहिए।


◆सायंकाल के समय मनुष्य को साबुत माष या धान्यवीर से बड़े  एवं ग्यारहा कचौरी बनानी चाहिए।


◆फिर उनके साथ में रक्तवर्ण के पुष्पों के साथ, रक्ताभ वर्ण की बनी हुई मिठाई भी होनी चाहिए।


◆ततपश्चात एक मिट्टी का बना हुआ कुल्हड़ लेकर उसमें जल को भरें एवं एक हरे रंग या पिले रंग का अम्लसार आदि को साथ लेना चाहिए।


◆फिर सायंकाल के समय भैरवजी के मन्दिर जाकर "ऊँ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ऊँ" मंत्रों का उच्चारण करते हुए पूजन में उपर्युक्त समस्त वस्तुओं को अर्पण करना चाहिए। 


◆फिर अपने घर आते समय पीछे की तरफ नहीं देखे।



श्री बटुक भैरव स्तोत्रं के वांचन से होने वाले महत्त्व:-श्रीबटुक भैरव स्तोत्रम् का वांचन मनुष्य हमेशा करना चाहिए, जिससे मनुष्य को स्तोत्रम् के वांचन से निम्नलिखित लाभ मिल सके। 


उम्र में बढ़ोतरी हेतु:-जो मनुष्य के द्वारा हमेशा श्री बटुक भैरव स्तोत्रम् का वांचन करने से बिना पूर्ण उम्र के भोगने से पहले होने वाली मृत्यु से रक्षा होती हैं।


व्याधियों से मुक्ति पाने के लिए:-जिन मनुष्य का शरीर बीमारियों के द्वारा घिरे रहने पर इलाज करने पर भी ठीक नहीं हो रही बीमारियों से मुक्ति का उपाय यह स्तोत्रं हैं। 


जन्मकुंडली में ग्रहों के बुरे हालात में होने से मुक्ति हेतु:-जन्मकुंडली या ग्रह गोचर में बुरे ग्रह जैसे-सेंहिकीय एवं शिखी ग्रह के द्वारा अच्छे ग्रहों के साथ बैठकर अच्छे ग्रहों के फलों को कमजोर कर देते हैं, उन शुभ ग्रहों के शुभ फल को पाने हेतु श्रीबटुक भैरव स्तोत्रं का वांचन हमेशा करना चाहिए, जिससे शुभ ग्रहों का उचित फल मिल जाता हैं। 


न्यायालय के मामलों से राहत पाने हेतु:-मनुष्य को अपने जीवनकाल में बिना मतलब या किसी भी कारण से न्यायालय में किसी के द्वारा फसाने पर उसको न्यायालय के चक्कर काटने पड़ते हैं, इस तरह फसे न्यायालय के मामले से राहत दिलाने यह स्तोत्रं सहायक होता हैं।


भूत-प्रेत से सम्बंधित डर से राहत पाने हेतु:-मनुष्य को अपने रात्रिकाल भूत-प्रेत से सम्बंधित नकारात्मक शक्तियों का डर रहता हैं, उस डर से राहत के लिए मनुष्य को नियमित रूप से श्रीबटुक भैरव स्तोत्रम् का वांचन शुरू कर देने पर राहत मिल जाती हैं।


खुद पर विश्वास बढ़ाने हेतु:-मनुष्य को अपनी काबिलियत पर विश्वास नहीं रहता हैं, जिससे मनुष्य को अपने जीवन में सफलता नहीं मिल पाती हैं, इसलिए मनुष्य को अपने जीवन में सफलता पाने के लिए नियमित रूप से श्रीबटुक भैरव स्तोत्रं का वांचन करना चाहिए।

 

निवास स्थान पर नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करने हेतु:-मनुष्य को अपने निवास स्थान में नकारात्मक ऊर्जा के कारण निवास स्थान में निवास करने के वाले सदस्यों के बीच में होने वाले झगड़ो से मुक्ति दिलवाकर सुख-शांति बढ़ाने में यह स्तोत्रं सहायक होता हैं।


तंत्र-मंत्र के द्वारा मनुष्य के जीवन पर पड़ने वाले बुरे असर से मुक्ति पाने हेतु:-मनुष्य की तरक्की को देखकर दूसरे मनुष्य को ईर्ष्या के भाव उत्पन्न होने से मनुष्य दूसरे मनुष्य को हर तरह से गिराने के लिए तंत्र-मंत्र शक्तियों का सहारा लेते हैं, उन शक्तियों से मुक्ति दिलाने में यह स्तोत्रं सहायक होता हैं।


रुपयों-पैसों से सम्बंधित परेशानी से मुक्ति हेतु:-मनुष्य को अपने जीवनकाल में रुपयों-पैसों की हर जगह पर आवश्यकता होती हैं, वह दिन-रात मेहनत करते रहते हैं, लेकिन उनको रुपयों-पैसों की तंगी का सामना करना पड़ता हैं, उस तंगी से मुक्ति हेतु नियमित रूप से श्रीबटुक भैरव स्तोत्रं का वांचन करना चाहिए।










Sunday, June 29, 2025

June 29, 2025

बटुक भैरव स्तोत्र अर्थ सहित और महत्त्व (Batuk Bhairav ​​Stotra with meaning and importance)

बटुक भैरव स्तोत्र अर्थ सहित और महत्त्व (Batuk Bhairav ​​Stotra with meaning and importance):-श्रीबटुक भैरवजी को ही शिवजी के रूप में समस्त जगत में जाना जाता हैं, श्रीबटुक भैरवजी की पूजा-अर्चना एवं गुणगान करके भगवान शंकरजी को खुश किया जा सकता हैं। इसलिए मनुष्य को नियमित रूप से श्रीबटुक भैरव स्तोत्रं का वांचन करना चाहिए, जिससे भगवान शिवजी का आशीर्वाद श्रीबटुक भैरवजी की पूजा के रूप में मिल सके।




Batuk Bhairav ​​Stotra with meaning and importance






भैरव का अर्थ:-जो जीवनकाल में समस्त तरह के डरावनें डर से मुक्त कराने के कारण भैरव कहलाते हैं।


वट्यते वेष्टयते सर्व जगत् प्रलयेअनेनेति वटुकः' 

अर्थात्:-जब समस्त संसार को चारों तरफ से घेरते हुए समस्त तरह से संसार को नाश करने के कारण अथवा सभी जगहों पर अपनी नजर दृष्टि रखते हुए अपना वर्चस्व से युक्त होने से भैरव 'बटुक' कहलाते हैं।



'बटून् ब्रह्मचारिणः कार्यमुपदिशनीति बटुको गुरूरूपः'


अर्थात:-ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए एवं सात्विक जीवन को जीने से सम्बंधित ज्ञान देने वाले गुरु के रूप में होने से भैरव 'बटुक' कहे जाते हैं।



श्रीबटुक भैरव स्तोत्रम् अर्थ सहित:-मनुष्य को श्रीबटुक भैरव स्तोत्रम् का वांचन करने से पूर्व निम्नलिखित तरीके से पूजा करते हुए इस स्तोत्रं का वांचन करना चाहिए, जो इस तरह हैं- अर्थ सहित



श्रीबटुक भैरव ध्यान:-श्रीबटुक भैरव स्तोत्रं के वांचन से पूर्व श्रीबटुक भैरवजी को मन में मन रखते हुए उनको आंखे मूंदकर उनका ध्यान करना चाहिए।


वन्दे बालं स्फटिक-सदृशम्, कुन्तलोल्लासि-वक्त्रम्।


दिव्याकल्पैर्नव-मणि-मयैः, किंकिणी-नूपुराढ्यैः।।


दीप्ताकारं विशद-वदनं, सुप्रसन्नं त्रि-नेत्रम्।


हस्ताब्जाभ्यां बटुकमनिशं, शूल-दण्डौ दधानम्।।


श्रीबटुक भैरव स्तोत्रं से पूर्व भैरव मानस पूजन:-श्रीबटुक भैरव स्तोत्रं के पूर्व भैरवजी का मानस पूजन करना चाहिए, जो निम्नलिखित प्रकार से करनी चाहिए।


ऊँ लं पृथ्वी-तत्त्वात्मकं गन्धं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीतये समर्पयामि नमः।


ऊँ हं आकाश-तत्त्वात्मक पुष्पं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीतये समर्पयामि नमः।


ऊँ यं वायु-तत्त्वात्मक धूपं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीतये समर्पयामि नमः।


ऊँ रं अग्नि-तत्त्वात्मक दीपं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीतये समर्पयामि नमः।


ऊँ सं सर्व-तत्त्वात्मक ताम्बूलं श्रीमद् आपदुद्धारण-बटुक-भैरव-प्रीतये समर्पयामि नमः।



बटुक भैरव मूल स्तोत्रं:-बटुक भैरव मूल स्तोत्रं का वांचन करने से पहले बटुक भैरव के मूल स्तोत्रं के श्लोकों में वर्णित मन्त्रों के अर्थ को जानना चाहिए, जिससे स्तोत्रं में जो वर्णित देव के बारे में बताया हैं, उनके स्वरूप एवं गुणों के बारे में जानकारी मिल सके। बटुक भैरव के मूल स्तोत्रं का अर्थ इस तरह हैं-


ऊँ भैरवो भूत-नाथश्च, भूतात्मा भूत-भावनः।


क्षेत्रज्ञः क्षेत्र-पालश्च, क्षेत्रदः क्षत्रियो विराट्।।


श्मशान-वासी मासांशी, खर्पराशी स्मरान्त-कृत्।


रक्तपः पानपः सिद्धः, सिद्धिदः सिद्धि-सेवितः।।


कंकालः कालः शमनः, कला-काष्ठा-तनुः कविः।


त्रि-नेत्रो बहु-नेत्रश्च, तथा पिंगल-लोचनः।।


शूलपाणि खड्गपाणि, कंकाली धूम्र-लोचनः।


अभीरुर्भैरवीनाथो, भूतपो योगिनीपतिः।


धनदोsधनहारी च, धनवान् प्रतिभागवान्।


नागहारो नागकेशो, व्योमकेशः कपालभृत्।।


कालः कपालमाली च, कमनीयः कलानिधिः।


त्रिनेत्रो ज्वलन्नेत्रस्त्रिशिखी च त्रिलोकभृत्।।


त्रिवृत्ततनयो डिम्भः शान्तः शान्तजनप्रिय।


बटुको बटुवेषश्च, खट्वांगवरधारकः।।


भुताध्यक्षः पशुपतिर्भिक्षुकः परिचारकः।


धूर्तो दिगम्बरः शौरीर्हरिणः पाण्डुलोचनः।


प्रशान्तः शान्तिदः शुद्धः शंकरप्रियबान्धवः।।


अष्टमूर्तिर्निधीशश्च, ज्ञानचक्षुस्तपोमयः।


अष्टाधारः षडाधारः, सर्पयुक्तः शिखीसखः।।


भूधरो भूधराधीशो, भूपतिर्भुधरात्मजः।।


कपालधारी मुण्डी च, नागयज्ञोपवीतवान्।


जृम्भणो मोहनः स्तम्भ, मारणः क्षोभणस्तथा।।


शुद्द नीलाञ्जनप्रख्यदेहः मुण्डविभूषणः।


बलिभुग्बलिभुङ्नाथो, बालोबालपराक्रम।।


सर्वापत्-तारणो दुर्गों, दुष्टभूतनिषेवितः।


कामीकलानिधिः कान्त, कामिनी वशकृद्वशी।।


जगद्-रक्षाकरोsनन्तो, मायामन्त्रौषधीमयः।


सर्वसिद्धिप्रदो वैद्य, प्रभविष्णुरितीव हि।।



फलश्रुति का अर्थ:-फलश्रुति में समस्य तरह के रचित श्लोक या किसी भी तरह के स्तोत्रम् के बारे में मिलने वाले नतीजों को बताया जाता हैं, जिससे मनुष्य उन स्तोत्रम् को पाठन करके उन नतीजों को प्राप्त कर सके। फलश्रुति का अर्थ सत्कर्म विशेष का फल देने का भाव होता हैं।


अष्टोत्तरशतं नाम्नां, भैरवस्य महात्मनः।


मया ते कथितं देवि, रहस्य सर्वकामदम्।।


अर्थात्:-

य इदं पठते स्तोत्रं, नामाष्टशतमुत्तमम्।


न तस्य दुरितं किंञ्चिन्न च भूतभयं तथा।


न शत्रुभ्यो भयं किञ्चित्, प्राप्नुयान्मानवः क्वचिद्।


पातकेभ्यो भयं नैव, पठेत् स्तोत्रमतः सुधीः।।


मारीभये राजभये, तथा चौराग्निजे भये।


औत्पातिके भये चैव, तथा दुःस्वप्नजे भये।।


बन्धने च महाघोरे, पठेत् स्तोत्रमनन्यधीः।


सर्वं प्रशममायाति, भयं भैरवकीर्तनात।।


क्षमा प्रार्थना:-देवी-देवता के मन्त्रों के उच्चारण में किसी भी तरह के उच्चारण में भूल के लिए क्षमा करनी चाहिए, जिससे मन्त्रों का फल मिल सके, इसे ही क्षमा प्रार्थना कहते हैं।


आवाहन न जानामि, न जानामि विसर्जनम्।


पूजाकर्म न जानामि, क्षमस्व परमेश्वर।।


मन्त्रहीनं क्रियाहीनं, भक्तिहीनं सुरेश्वर।


मया यत्-पूजितं देव परिपूर्णं तदस्तु में।


अर्थात्:-हे इष्टदेव या इष्टदेवी! मैं न तो आपको मन्त्रों के द्वारा बुलाना जानता हूँ, न तो ही मैं आपको पूजा आदि के बाद आपकी मूर्ति को जलाशय में प्रवाहित करना जानता हूँ। हे परमेश्वर! मैं आपकी विधिवत पूजा-अर्चना नहीं जानता हूँ, परमेश्वर आप मुझे क्षमा करें।


हे सुरेश्वर! वैदिक रीति से करने वाले कार्यों के मन्त्रों के रहित, नित्य कर्म नियम और विधि से होने वाले कार्यों से रहित और आस्था से रहित हूँ। हे देव! मैं जिस तरह से आपकी भक्ति के रूप में पूजा-उपासना करता हूँ आप उस पूजा को पूर्ण मानते हुए, मेरी पूजा को स्वीकार करते हुए मेरी पूजा को पूर्ण कीजिए।



बटुक भैरव स्तोत्रं वांचन करने की विधि (Method of reciting Batuk Bhairav ​​Stotra):-बटुक भैरव स्तोत्रं वांचन को करते समय विधिपूर्वक भैरवजी को अपने मन मन्दिर में स्थापित करते हुए स्तोत्रं का वांचन करना चाहिए, बटुक भैरव स्तोत्रं के वांचन की इस तरह हैं-


◆लकड़ी का एक बाजोट लेकर उसको शुद्ध करके स्वच्छ काले रंग के कपड़े को उस पर बिछाना चाहिए।



◆शुभ अवसरों पर पूजन के लिए आटा आदि से बनाया गया छोटा चौकोर स्थान जहाँ शादियों और अन्य खुशी के अवसरों पर मिठाई रखी जाती है जो पूजा के बाद लोगों में बाँटी जाती हैं। या जमीन पर चित्रांकन करना या बनाना को चौक पूरें करना कहते हैं।



◆फिर एक सरसों के तेल के दिये में बाती डालकर उसको प्रज्वलित करना चाहिए।



◆फिर कालभैरवजी को पूजा में बुलाने के लिए हाथ में हल्दी से मिश्रित अक्षत को उनको मन ही मन में याद करते हुए उनका आह्वान करना चाहिए।



◆इक्कीस बार ॐ भैरवायः नमः मंत्र का उच्चारण करना चाहिए।


◆फिर उनका षोडशोपचार कर्म से पूजन करना चाहिए।


◆स्नान, अर्ध्य के लिए जल को अर्पण करना, चन्दन, फूल, अगरबत्ती, फल, नीबू, लौंग, उड़द, मिठाई, धूप, दिप आदि को अर्पण करना चाहिए।


◆सायंकाल के समय मनुष्य को साबुत माष या धान्यवीर से बड़े  एवं ग्यारहा कचौरी बनानी चाहिए।


◆फिर उनके साथ में रक्तवर्ण के पुष्पों के साथ, रक्ताभ वर्ण की बनी हुई मिठाई भी होनी चाहिए।


◆ततपश्चात एक मिट्टी का बना हुआ कुल्हड़ लेकर उसमें जल को भरें एवं एक हरे रंग या पिले रंग का अम्लसार आदि को साथ लेना चाहिए।


◆फिर सायंकाल के समय भैरवजी के मन्दिर जाकर "ऊँ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरु कुरु बटुकाय ह्रीं ऊँ" मंत्रों का उच्चारण करते हुए पूजन में उपर्युक्त समस्त वस्तुओं को अर्पण करना चाहिए। 


◆फिर अपने घर आते समय पीछे की तरफ नहीं देखे।



श्री बटुक भैरव स्तोत्रं के वांचन से होने वाले महत्त्व:-श्रीबटुक भैरव स्तोत्रम् का वांचन मनुष्य हमेशा करना चाहिए, जिससे मनुष्य को स्तोत्रम् के वांचन से निम्नलिखित लाभ मिल सके। 


उम्र में बढ़ोतरी हेतु:-जो मनुष्य के द्वारा हमेशा श्री बटुक भैरव स्तोत्रम् का वांचन करने से बिना पूर्ण उम्र के भोगने से पहले होने वाली मृत्यु से रक्षा होती हैं।


व्याधियों से मुक्ति पाने के लिए:-जिन मनुष्य का शरीर बीमारियों के द्वारा घिरे रहने पर इलाज करने पर भी ठीक नहीं हो रही बीमारियों से मुक्ति का उपाय यह स्तोत्रं हैं। 


जन्मकुंडली में ग्रहों के बुरे हालात में होने से मुक्ति हेतु:-जन्मकुंडली या ग्रह गोचर में बुरे ग्रह जैसे-सेंहिकीय एवं शिखी ग्रह के द्वारा अच्छे ग्रहों के साथ बैठकर अच्छे ग्रहों के फलों को कमजोर कर देते हैं, उन शुभ ग्रहों के शुभ फल को पाने हेतु श्रीबटुक भैरव स्तोत्रं का वांचन हमेशा करना चाहिए, जिससे शुभ ग्रहों का उचित फल मिल जाता हैं। 


न्यायालय के मामलों से राहत पाने हेतु:-मनुष्य को अपने जीवनकाल में बिना मतलब या किसी भी कारण से न्यायालय में किसी के द्वारा फसाने पर उसको न्यायालय के चक्कर काटने पड़ते हैं, इस तरह फसे न्यायालय के मामले से राहत दिलाने यह स्तोत्रं सहायक होता हैं।


भूत-प्रेत से सम्बंधित डर से राहत पाने हेतु:-मनुष्य को अपने रात्रिकाल भूत-प्रेत से सम्बंधित नकारात्मक शक्तियों का डर रहता हैं, उस डर से राहत के लिए मनुष्य को नियमित रूप से श्रीबटुक भैरव स्तोत्रम् का वांचन शुरू कर देने पर राहत मिल जाती हैं।


खुद पर विश्वास बढ़ाने हेतु:-मनुष्य को अपनी काबिलियत पर विश्वास नहीं रहता हैं, जिससे मनुष्य को अपने जीवन में सफलता नहीं मिल पाती हैं, इसलिए मनुष्य को अपने जीवन में सफलता पाने के लिए नियमित रूप से श्रीबटुक भैरव स्तोत्रं का वांचन करना चाहिए।

 

निवास स्थान पर नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करने हेतु:-मनुष्य को अपने निवास स्थान में नकारात्मक ऊर्जा के कारण निवास स्थान में निवास करने के वाले सदस्यों के बीच में होने वाले झगड़ो से मुक्ति दिलवाकर सुख-शांति बढ़ाने में यह स्तोत्रं सहायक होता हैं।


तंत्र-मंत्र के द्वारा मनुष्य के जीवन पर पड़ने वाले बुरे असर से मुक्ति पाने हेतु:-मनुष्य की तरक्की को देखकर दूसरे मनुष्य को ईर्ष्या के भाव उत्पन्न होने से मनुष्य दूसरे मनुष्य को हर तरह से गिराने के लिए तंत्र-मंत्र शक्तियों का सहारा लेते हैं, उन शक्तियों से मुक्ति दिलाने में यह स्तोत्रं सहायक होता हैं।


रुपयों-पैसों से सम्बंधित परेशानी से मुक्ति हेतु:-मनुष्य को अपने जीवनकाल में रुपयों-पैसों की हर जगह पर आवश्यकता होती हैं, वह दिन-रात मेहनत करते रहते हैं, लेकिन उनको रुपयों-पैसों की तंगी का सामना करना पड़ता हैं, उस तंगी से मुक्ति हेतु नियमित रूप से श्रीबटुक भैरव स्तोत्रं का वांचन करना चाहिए।










Wednesday, April 30, 2025

April 30, 2025

राहु की महादशा का फल एवं प्रभाव (Results and remedies of Rahu’s Mahadasha)

राहु की महादशा का फल एवं प्रभाव(Results and remedies of Rahu’s Mahadasha):-राहु की महादशा का समय 18 वर्ष होता हैं, जिसके परिणामस्वरूप मनुष्य को सभी तरह अच्छे स्थिति में राहु के होने पर अच्छे एवं खराब स्थिति में राहु के होने पर बुरे फल की प्राप्ति होती हैं।




Results and remedies of Rahu’s Mahadasha




◆जब मनुष्य के जन्म के समय बनने वाली जन्मकुण्डली में राहु आर्द्रा, स्वाति तथा शततारका होता तो जन्म से 18 वर्ष तक राहु की महादशा रहती हैं।
  
◆जब मनुष्य के जन्म के समय बनने वाली जन्मकुण्डली में राहु मृगशीर्ष, चित्रा, घनिष्ठा जन्म नक्षत्र होवे तो 18 से 36 वर्ष तक राहु की महादशा रहती हैं।



◆जब मनुष्य के जन्म के समय बनने वाली जन्मकुण्डली में राहु कृत्तिका, उत्तराषाढ़ा, उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में होता हैं, तो 23 से 41 वर्ष तक राहु की महादशा रहती हैं।


◆जब मनुष्य के जन्म के समय बनने वाली जन्मकुण्डली में राहु भरणी, पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में होता हैं, तो 43 से 61 वर्ष तक राहु की महादशा रहती है।


मनुष्य राहु के नाम मात्र से डरते हैं, जब जन्मकुण्डली में राहु की महादशा, अंतर्दशा या प्रत्यंतदशा दशा आती हैं, तब मनुष्य घबराने लग जाते हैं। लेकिन मनुष्य को यह भी जानना जरूरी होता हैं कि राहु की दशा सभी के लिए खराब नहीं होती हैं और सभी को नुकसान नहीं पहुंचाती हैं


यदि मनुष्य की जनकुण्डली में राहु शुभ घरों में, अपने मित्र ग्रह के साथ बैठा होता है और शुभ स्थिति में होता हैं तब राहु की दशा के फलस्वरूप मनुष्य को सभी क्षेत्रों में अपने नाम का झंडा गड़वा देता है और चारों तरफ प्रसिद्धि प्रदान करवाता हैं।


उदाहरणस्वरूप:-विश्वविख्यात व्यावसायिक क्षेत्र के धीरूभाई अंबानी की जन्मकुण्डली में जब राहु की अच्छी दशा आई तो उनको बहुत ही प्रगति के क्षेत्र में बुलंदी पर पहुंचा दिया।धीरुभाई की जन्मकुण्डली में तीजे घर में कुंभ का राहु बैठे होने के कारण राहु की महादशा के कारण विश्व में अपना नाम सम्मान स्थापित करके सभी जगहों पर प्रसिद्धि प्राप्त की थी।


विश्वविख्यात व्यावसायिक क्षेत्र के हर्षद मेहता की जन्मकुण्डली में जब राहु की खराब दशा आई तो उनको बहुत ही ऊँचाई से गिराकर रोड़ पर ला पटका।हर्षद मेहता के चतुर्थ घर में नीच धनु राशि में राहु- मंगल योग के कारण कारावास तक यात्रा का सफर करना पड़ा। 


 

 
द्वादश भाव में राहु दशा का शुभ-अशुभ फल:-निम्नलिखित हैं।


1.लग्न स्थान:-जब जन्मकुण्डली के लग्न घर में वृषभ, कर्क, सिंह, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन आदि राशि में राहु किसी शुभ योग में होता हैं और राहु की दशा शुभ मानी जाती हैं, तब निम्नलिखित शुभ फल मिलता हैं। 



◆मनुष्य के बचपन के समय में राहु की दशा आती हैं तब सेहत ठीक रहती हैं।




◆मनुष्य पुस्तक या शिक्षक के द्वारा अपनी विद्या को पूर्ण रूप से प्राप्त करता हैं और किसी तरह की बाधाएँ नहीं आती हैं, जिससे उच्च तालीम को हासिल करते हैं।



◆मनुष्य के माता-पिता के हालात अच्छे रहते हैं।




◆मनुष्य को न्यायालय के मुकदमों में जीत हासिल होती हैं।


◆मनुष्य के विवाह होने के बाद पहली संतान के रूप में पुत्र रत्न की प्राप्ति होती हैं।



◆मनुष्य पुस्तक तालीम के द्वारा बी.ए., एम.ए. या किसी विश्वविद्यालय से उपाधि को प्राप्त करता है।



◆मनुष्य जिस जगह पर नौकरी की सेवा देते हैं, उस जगह पर शीघ्रता से प्रगति करते हैं।


◆मनुष्य अपने समाज के समुदाय में, अपने गाँव और शहर आदि जगहों पर अपने नाम को ऊंचा करते हुए मान-सम्मान और ख्याति प्राप्त करते हैं।




◆जब जन्मकुण्डली के लग्न घर में मेष, मिथुन, तुला, धनु, कुंभ आदि राशि में राहु हो तो और राहु की दशा शुरू होने पर निम्नलिखित अशुभ योग फल मिलता हैं। 


◆मनुष्य के बचपन के समय में राहु की दशा आती हैं तब सेहत ठीक नहीं रहती हैं और व्याधि से ग्रसित होना पड़ता हैं।



◆बचपन में किसी की कुदृष्टि के कारण परेशानी होती हैं।


◆बाल्यकाल में जब दांत निकलते हैं, तब बहुत ही सेहत खराब होती हैं।



◆बाल्यकाल में किसी तरह के गिरने या किसी तरह की चोट के फलस्वरूप मस्तिष्क में चोट लग सकती हैं।



◆बचपन में उम्र बढ़ने के बाद भी बोलने में देरी होती हैं।



◆मनुष्य पुस्तक या शिक्षक के द्वारा अपनी विद्या को पूर्ण करने में बार-बार रुकावटें आती हैं और एक बार परीक्षा में फैल होने की संभावना बनती हैं।
 

 
◆जब जन्मकुण्डली के लग्न घर में मेष, मिथुन, तुला, धनु, कुंभ आदि राशि में राहु के साथ सूर्य, मंगल, शनि आदि ग्रह हो तो और राहु की दशा शुरू होने पर निम्नलिखित अशुभ योग फल मिलता हैं। 



◆मनुष्य की उम्र बढ़ने लगती हैं और विवाह में देरी होती हैं। विवाह में बहुत सारे विघ्न आते हैं।



◆विवाह होने के बाद मनुष्य के सन्तान के रूप में पहली  पुत्री होती हैं।


◆मनुष्य के चेहरे की बनावट ठीक नहीं होने से देखने में अच्छा नहीं लगता हैं।


◆मनुष्य जिस जगह पर नौकरी के रूप में सेवा देता हैं, उस स्थान में उसको नुकसान भोगना पड़ता हैं।


◆मनुष्य के जीविकोपार्जन के पेशे में नुकसान होता हैं।


◆किसी दूसरे मनुष्य के साथ मिलकर जीविकोपार्जन के पेशा करने पर साझेदार द्वारा आश्वासन देकर मुकर जाता हैं, जिससे उसके साथ छल या दगा होता हैं।
 

 
◆मनुष्य अपने आप में दूसरों से ज्यादा अक्लमंद समझने लगता हैं।


◆जिससे मनुष्य को जीविकोपार्जन के धंधे में हानि होने लगती हैं।


◆मनुष्य किसी भी तरह के नशीले द्रव्यों के सेवन का आदि हो जाता हैं।


◆मनुष्य की बेइज्जती होती हैं और दूसरों से फटकार मिलती हैं।


◆मनुष्य दूसरों नजदीकी रिश्तेदार की ज्ञता गुप्त बातें को जानने के बाद उन बातों को बाजार में करके अपने आप के मन में खुशी मनाता है।
 


2.धन भाव:-जब जन्मकुण्डली के धन-कुटुम्ब घर में वृषभ, कर्क, सिंह, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन आदि राशि में राहु किसी शुभ योग में होता हैं और राहु की दशा शुभ मानी जाती हैं, तब निम्नलिखित शुभ फल मिलता हैं। 



◆मनुष्य संस्था या कार्यालय की जगह पर अपनी सेवा को छोड़कर अपने बलबूते पर जीविकोपार्जन के पेशे की बिना किसी के अधीन रहते हुए स्वयं करता हैं।



◆मनुष्य के प्रत्येक क्षेत्र के कामों में कामयाबी मिलती हैं।



◆मनुष्य अपनी खुद की कठोर एवं कड़ी मेहनत से रुपये-पैसों को कमाते हुए संचय करता हैं।



◆मनुष्य को न्यायालय के मामलों में जीत हासिल होती हैं।

 

जब जन्मकुण्डली के दूजे घर में मेष, मिथुन, तुला, धनु, कुंभ आदि राशि में राहु हो तो और राहु की दशा शुरू होने पर निम्नलिखित अशुभ योग फल मिलता हैं। 



◆मनुष्य पुस्तक या शिक्षक के द्वारा अपनी विद्या को पूर्ण  करने में बाधाएँ आती हैं।
 

◆जब दूसरे घर में राहु सिंह राशि में होता हैं, तब मनुष्य को पुराने समय के रुपये-पैसे एवं सोना-चाँदी आदि खुदाई करने प्राप्त होते हैं।


◆मनुष्य के जीविकोपार्जन के पेशे में नुकसान होने से कर्जा बढ़ने से दिवालिया या कंगाल हो जाता हैं।



◆मनुष्य की भार्या की सेहत खराब रहती हैं।



◆मनुष्य के दाम्पत्य जीवन में पति-पत्नी के बीच बिना मतलब के टकराव होते हैं, जिससे एक-दूसरे के प्रति बुरी भावना उत्पन्न हो जाती हैं।



◆मनुष्य के भाई-बन्धुओं के बीच बिना मतलब की कहासुनी के कारण मनमुटाव होता हैं।



◆मनुष्य को न्यायालय के मामलों में हार हासिल होती हैं।



◆मनुष्य विषयभोग में आसक्त होकर नशीले द्रव्यों का सेवन करने का आदि हो जाता हैं।


◆मनुष्य को सन्तान के रूप में पुत्रियाँ अधिक होती हैं।



◆मनुष्य को अपने जीवन के अंतिम पड़ाव बुढापा में बहुत ही मुश्किलें आती हैं, जिसके के कारण वह किसी विष को खाकर या किसी पाश में अपने गले को फंसा कर अपनी जीवन लीला को खत्म कर देता हैं।





3.तृतीय स्थान:-जब जन्मकुण्डली के तीजे घर में वृषभ, कर्क, सिंह, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन आदि राशि में राहु किसी शुभ-ग्रह की युति या दृष्टि होने से शुभ योग में होता हैं और राहु की दशा शुभ मानी जाती हैं, तब निम्नलिखित शुभ फल मिलता हैं। 



◆मनुष्य पुस्तक या शिक्षक के द्वारा अपनी विद्या को पूर्ण रूप से प्राप्त करता हैं।


◆मनुष्य अपने जीवनकाल के प्रत्येक क्षेत्र में अत्यधिक श्रम करने वाला होता हैं, जिससे वह दिन-प्रतिदिन ऊंचाइयों की सीढ़ियों को चढ़ता जाता हैं। 



◆मनुष्य अपने जीविकोपार्जन के पेशे में दिन-प्रतिदिन ऊंचाइयों को छूता हैं।



◆निश्चित वेतन के रूप में संस्था या कार्यालय में अपनी सेवा देते हुए अपने बड़े अधिकारी को भी अपने कार्य के द्वारा खुश रखता हैं।



◆मनुष्य अपने प्रवास काल में दूसरे देशों का सफर करने वाला होता हैं।


◆मनुष्य को सुशील-सुंदर भार्या मिलती हैं।



◆मनुष्य को पहली संतान के रूप में बेटी और बेटी के बाद में बेटा का सुख मिलता हैं।




◆जब जन्मकुण्डली के तीजे घर में मेष, मिथुन, तुला, धनु, कुंभ आदि राशि में राहु हो तो और राहु की दशा शुरू होने पर निम्नलिखित अशुभ योग फल मिलता हैं। 



◆जब तीजे घर में राहु के होने से राहु की दशा शुरू होती हैं, तब मनुष्य के भाइयों के लिए बहुत खराब समय व्यतीत होता हैं।



◆राहु दशा के कारण जल्द ही भाई अपने संयुक्त परिवार को तोड़कर अलग होने का विचार करने लग जाते हैं, जिससे बाद में मनुष्य के जीवन क्षेत्र में गिरावट आने लगती हैं।



◆मनुष्य के सगे भाई-बन्धु वस्तुओं के क्रय-विक्रय करने की निश्चित जगह पर उसकी बुराई करते हुए उसकी बदनामी करने लगते हैं।



◆मनुष्य की किसी बहिन के पति के स्वर्गवास होने से विधवा योग को भोगना पड़ता हैं।



◆मनुष्य की माता को भी मृत्यु या मृत्यु तुल्य कष्ट के समान दुःख प्राप्त होता हैं।


 
◆मनुष्य के किसी भाई-बहन की भी मृत्यु होने की संभावना बनती हैं।




4.चतुर्थ भाव:-जब जन्मकुण्डली के चौथे घर में वृषभ, कर्क, सिंह, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन आदि राशि में राहु किसी अन्य शुभ ग्रहों की युति-प्रतियुति के द्वारा शुभ योग में होता हैं और राहु की दशा शुभ मानी जाती हैं, तब निम्नलिखित शुभ फल मिलता हैं। 



चतुर्थ राशिस्थित राहु दाये मातुविनाशं त्वथवा तदियम।

क्षेत्रार्थनाशं नृपतः प्रकोप भर्यादिपातित्यमनेकदुः स्वम।।100।।

अर्थात्:-जब मनुष्य की जन्मकुण्डली के चौथे घर में स्थित राहु होता हैं और राहु की दशा चलती होती हैं, तब निम्नलिखित शुभ-अशुभ फल मिलते हैं।


◆मनुष्य के जन्मकुण्डली में चौथे घर में राहु के स्थित होने एवं राहु की दशा के कारण मनुष्य की माता को बहुत ही कष्ट होता हैं।


◆मनुष्य को जमीन सम्बंधित मामलों में नुकसान होता हैं।



◆मनुष्य को अपनी जीविका निर्वाह के पेशे में भी नुकसान सहन करना पड़ता हैं।


◆मनुष्य को अपनी भार्या को बहुत कष्ट होता हैं।



◆मनुष्य को बिना कारण ही न्यायालय के चक्कर काटने पड़ते हैं, निरपराधी होते हुए भी कारावास की सजा भोगनी पड़ सकती हैं।


◆मनुष्य के माता-पिता को बहुत कष्ट भोगना पड़ सकता हैं।



चोराग्नि बन्धार्ति मनोविकारं दासत्म-जानामपि रोग पीड़ाय।

चतुर्थ-राशिस्थ राहुदाये प्रभान-संसार कालत्र युत्रम।।101।।

अर्थात्:-मनुष्य के द्वारा किसी दूसरे की वस्तु या धन को छिपकर हथिया लेना, मन की कल्पना से उत्पन्न विकार, अग्नि, कारावास, भार्या-पुत्रों को व्याधि आदि तरह की तकलीफों के होने की संभावना बनती हैं।



◆मनुष्य जब छात्रवृत्तिधारी होता हैं, तब उसकी उम्र 18 से 20 वर्ष की होने पर उसे कारावास की यात्रा निश्चित रूप से करनी पड़ सकती हैं। 


◆परन्तु चतुर्थ राहु एवं राहु की दशा होनी चाहिये।


◆मनुष्य की माता एवं भार्या को कष्ट होता हैं।



◆मनुष्य को अपने जीविकोपार्जन के धंधे में बिना मतलब के नुकसान होता हैं।


◆मनुष्य के एक भाई पर विशेष रूप से शारीरिक या मानसिक कष्ट आते हैं।



◆मनुष्य वेतन के रूप में जिस जगह पर नौकरी करता हैं, उस स्थान से बिना कारण ही उसका तबादला हो जाता हैं।



◆मनुष्य को रुपये-पैसों की प्राप्ति होती हैं।




◆जब जन्मकुण्डली के चौथे घर में मेष, मिथुन, तुला, धनु, कुंभ आदि राशि में राहु हो तो और राहु की दशा शुरू होने पर निम्नलिखित अशुभ योग फल मिलता हैं। 




◆मनुष्य के द्वारा अपनी मेहनत के द्वारा पहले इकट्ठा किये हुए रुपये-पैसे की बढ़ोतरी होती हैं।


◆मनुष्य बाद में किसी भी तरह का मेहनत नहीं करता हैं, तब भी उसे रुपये-पैसों की प्राप्ति होती हैं।



◆मनुष्य के जीवन में दोदो विवाह के योग बन सकते है।



◆मनुष्य संतान के रूप पुत्र नहीं होता हैं, यदि पुत्र सन्तान होता हैं, तो भी उसे अपने पुत्र से सुख नहीं प्राप्त होता हैं।




◆मनुष्य को अपने माता-पिता का सुख कम मिलता हैं या माता-पिता से अलगाव भी सहन करना पड़ता हैं।



दूसरी राशि में राहु होने से:-


◆मनुष्य को मन की कल्पना से उत्पन्न बातों के कारण बहुत पीड़ा होती हैं। 


◆मनुष्य को जीविका निर्वाह के साधन में बार-बार बदलना पड़ता हैं।


◆मनुष्य जिस संस्था या कार्यालय में निश्चित समय पर निश्चित वेतन पर कार्य करने की जगह पर बहुत परेशानियों को भोगता हैं।





5.पांचवा स्थान:-जब जन्मकुण्डली के पंचवें घर में वृषभ, कर्क, सिंह, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन आदि राशि में राहु के साथ शुभ ग्रहों की युति-प्रतियुति के द्वारा शुभ योग में होता हैं और राहु की दशा शुभ मानी जाती हैं, तब निम्नलिखित शुभ फल मिलता हैं। 


बुद्धिभ्रमं भोजन सौख्यनांश विधाविवादं कलहं च दुःखम्।


कोयं नरेप्द्रस्थ सुतस्य नाशं राहोंः सुतस्थस्य दशावियाके।।102।।


अर्थात्:-जब पांचवें घर में राहु होने के कारण राहु की दशा में मनुष्य को फायदा में कमी, औलाद संबंधित परेशानी एवं पुत्र को बहुत तकलीफ होती हैं। 




◆जब राहु की दशा मनुष्य के बचपन में आती हैं तब मनुष्य दिमागी काम करने वाला होता हैं।



◆मनुष्य का यश चारों ओर फैला होता हैं।



◆मनुष्य एक तरह के मनुष्यों के समुदाय के बीच में और पाठशाला में तालीम ग्रहण करते समय अपना नाम कमाने वाला होता हैं।




◆मनुष्य किसी एक विषय में बहुत रुचि रखने वाला होता हैं, जिससे वह उस विषय में होशियार हो जाता हैं।



◆मनुष्य महाविद्यालय और विश्वविद्यालय में अपनी प्रसिद्धि को प्राप्त करता हैं।



◆मनुष्य की शादी जल्दी होती हैं, शादी होने के बाद संतान के रूप में कन्या संतान की बढ़ोतरी होती हैं।



◆जब मनुष्य सामाजिक जीवन में जब तक जीवन जीता रहता हैं, तब तक उसका नाम चारो तरफ फैला रहता हैं, जब मनुष्य की मृत्यु हो जाती हैं, तब उसका नाम सामाजिक जीवन में मनुष्यों के द्वारा भुला दिया जाता हैं।





◆जब जन्मकुण्डली के पांचवें घर में मेष, मिथुन, तुला, धनु, कुंभ आदि राशि में राहु हो तो और राहु की दशा शुरू होने पर निम्नलिखित अशुभ योग फल मिलता हैं। 


◆मनुष्य को सन्तान सुख नहीं मिलता हैं, यदि सन्तान सुख मिलता हैं, संतान छोटी उम्र तक ही जीवन जीती हैं।


◆मनुष्य को दूसरे मनुष्य नासमझ समझते हैं, जिससे मन में खिन्नता के भाव उत्पन्न हो जाते हैं और जो प्राप्त हो सुख को भी समाप्त कर बैठते हैं।



◆मनुष्य किसी एक विषय में बहुत लगन से उस विषय की त्रुटि या दोषों को दूर करने वाला होता हैं।



◆मनुष्य को अपने जीवन में दूसरों के द्वारा उपहास का पात्र बनना पड़ता हैं और उसकी खिल्ली या मजाक बनाया जाता हैं। जिससे मनुष्य को बदनामी भी सहन करनी पड़ती हैं।




◆मनुष्य को मुसीबतों का सामना करना पड़ता है और बहुत गरीबी से जीवन व्यतीत करना पड़ता हैं।


 
◆मनुष्य सम्मानित मनुष्यों के परिचय, देवी द्रष्टान्त, स्वप्न और तंत्रविद्या के प्रयोग करने वाले के चक्कर में पड़कर अपना एवं अपने परिवार का बेड़ा गर्क करता है अर्थात् अपना सबकुछ खत्म कर बैठते हैं।



◆मनुष्य के दाम्पत्य जीवन में जीवनसाथी के साथ वैचारिक मतभेद होने से उनके बीच के संबंधों में दरार पड़ने लगती हैं।



◆मनुष्य के दाम्पत्य जीवन में कहासुनी के फलस्वरूप पति-पत्नी एक-दूसरे को छोड़ देते हैं या एक-दूसरे से अलग रहने लग जाते हैं।




◆पति-पत्नी की सेहत जीवन भर के लिए मांदगी से ग्रसित रहती हैं।



6.छठा भाव:-जब जन्मकुण्डली के छठे घर में वृषभ, कर्क, सिंह, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन आदि राशि में राहु किसी शुभ योग में होता हैं और राहु की दशा शुभ मानी जाती हैं, तब निम्नलिखित शुभ फल मिलता हैं। 



◆मनुष्य का दूसरे मनुष्यों के बीच किसी बात को लेकर कहासुनी होने से विवाद हो सकता हैं, उस कहासुनी के विवाद में मनुष्य की विजय होती हैं।



◆मनुष्य की सेहत ठीक नहीं रहती हैं।



◆मनुष्य के शरीर में ताजगी नहीं रहने पर किसी काम करने में मन नहीं लगता हैं।



◆मनुष्य अपने कार्य क्षेत्र की जगह के बड़े अधिकारी उसको मान-सम्मान देते हैं और उसके कहे अनुसार मार्गदर्शन लेने वाले होते हैं।


 


◆जब जन्मकुण्डली के दशम घर में मेष, मिथुन, तुला, धनु, कुंभ आदि राशि में राहु हो तो और राहु की दशा शुरू होने पर निम्नलिखित अशुभ योग फल मिलता हैं। 



◆मनुष्य की तंदुरुस्ती में विकार उत्पन्न हो जाते हैं, जिससे मन नहीं लगता हैं।



◆मनुष्य को जहरीले एवं मांसाहारी बिलों रहने वाले जीव जैसे-सर्पजन्य या वनेले जानवर से भी काटने का डर हर समय सताता रहता है।




◆मनुष्य को एक ही जगह पर रहने मनुष्यों के समुदाय और पक्के मकानों की बड़ी बस्ती के मनुष्यों के बीच में रहते हुए उन मनुष्यों के द्वारा बदनामी होती हैं।




◆मनुष्य को लाइलाज व्याधि, राजयक्ष्मा, मधुमेह, उच्चरक्तचाप आदि रोग को झेलना पड़ता हैं।


◆मनुष्य को अपने मामा, मौसी एवं किसी एक भाई के द्वारा सबसे अधिक पीड़ा या तकलीफ को सहन करना पड़ता हैं।


◆लेकिन इन सब तरह के अशुभों के साथ भी राहु की दशा ठीक-ठाक ही बीतती हैं।


 

7.सप्तम भाव:-जब जन्मकुण्डली के दशम घर में वृषभ, कर्क, सिंह, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन आदि राशि में राहु किसी अन्य शुभ ग्रह के योग में होता हैं और राहु की दशा शुभ मानी जाती हैं, तब निम्नलिखित शुभ फल मिलता हैं। 


◆मनुष्य पुस्तक या शिक्षक के द्वारा तालीम को पूरी तरह से ग्रहण करते हैं, लेकिन इस तालीम का जीवन में किसी भी तरह आवश्यकता नहीं रहती हैं। 


◆मनुष्य दो विवाह करते हैं या एक साइड में रखते हुए दोहरे रूप से दाम्पत्य जीवन को व्यतीत करने वाले होते हैं।

 


◆यदि मनुष्य राजनीतिक दल का प्रमुख होकर दूसरों का मार्गदर्शन करने वाला बनकर खूब ऊँचे स्थान पहुँचकर अपना नाम कमाता हैं।



◆मनुष्य के धंधे में उतार-चढ़ाव बहुत अधिक होने लगता हैं, जिससे उसका दिमाग सही तरह से कार्य नहीं कर पाता हैं और मन में बुरे विकार उत्पन्न होने लगते हैं।




◆जब जन्मकुण्डली के दशम घर में मेष, मिथुन, तुला, धनु, कुंभ आदि राशि में राहु हो तो और राहु की दशा शुरू होने पर निम्नलिखित ज्यादा अशुभ योग फल मिलता हैं। 



◆मनुष्य की उम्र बढ़ती जाती हैं, जिससे विवाह में बाधाएँ आती हैं।


◆मनुष्य के द्वारा दूसरों से रुपये-पैसों को उधार लेना पड़ता हैं, जिससे उस पर कर्ज का भार दिनोंदिन बढ़ता जाता हैं।




◆मनुष्य का किसी हादसे में मृत्यु की संभावना बन सकती हैं।



◆इस तरह सप्तम भाव में राहु की दशा बहुत ही वेदना और तकलीफ देने वाली होती हैं।





8.अष्टम भाव:-जब जन्मकुण्डली के अष्टम घर में वृषभ, कर्क, सिंह, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन आदि राशि में राहु किसी दूसरे शुभ ग्रहों की युति-प्रतियुति के शुभ योग में होता हैं और राहु की दशा शुभ मानी जाती हैं, तब निम्नलिखित शुभ फल मिलता हैं। 



◆मनुष्य की सेहत अच्छी रहती हैं, जिससे उसका मन प्रत्येक कार्य में करने को लगता हैं।



◆मनुष्य को सन्तान के रूप में बेटे अधिक होते हैं।



◆मनुष्य की किस्मत का साथ प्रत्येक जगह पर प्राप्त होता हैं, जिससे कामयाबी कदम चूमती हैं।



◆मनुष्य अपने जीवन काल उच्च शिक्षा को प्राप्त करके किसी स्थान पर नौकरी करता हैं। यदि नौकरी नहीं करता हैं तो वह जीविका निर्वाह के पेशे में बहुत प्रगति करता हैं।




◆जब जन्मकुण्डली के अष्टम घर में मेष, मिथुन, तुला, धनु, कुंभ आदि राशि में राहु पापग्रहों से पीड़ित हो तो और राहु की दशा शुरू होने पर निम्नलिखित अशुभ योग फल मिलता हैं। 



◆मनुष्य को किसी अनहोनी आफत को झेलना पड़ता हैं, जिससे जन-धन का नुकसान हो सकता हैं।


◆मनुष्य के जीविका निर्वाह के साधन में हानि होती हैं।



◆मनुष्य जिस संस्था या कार्यालय में निश्चित वेतन के रूप में कार्य करता हैं, उस स्थान को छोड़ना पड़ता हैं।




◆मनुष्य अपने जीवनकाल में लालच में आकर कई बार जातक रेस,बाजार की तेजी-मंदी के अनुमान के आधार पर अधिक फायदे के लिए शेयर बाजार में सट्टा लगा देते हैं, जिससे उनको नुकसान भोगना पड़ता हैं, जिसके कारण मनुष्य अपने निवास स्थान के सुख-शांति को बरबाद करता है।



◆मनुष्य को अपनी सन्तान में से किसी एक कन्या को भी बहुत तकलीफ को भोगना पड़ता हैं।



◆जहरीला और मांसाहारी जीव जो बिलों आदि में रहते हैं, जैसे-भुजंग, बिच्छू आदि के काट खाते हैं, जिससे पीड़ा होती हैं।



9.नवम भाव:-जब जन्मकुण्डली के नवम घर में वृषभ, कर्क, सिंह, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन आदि राशि में राहु  किसी शुभ ग्रहों या शुभ योग में होता हैं और राहु की दशा शुभ मानी जाती हैं, तब निम्नलिखित शुभ फल मिलता हैं। 



◆जब मनुष्य अपनी संतान को अध्ययन और शिक्षा से प्राप्त ज्ञान के लिए पाठशाला में अच्छे मुहूर्त में बच्चे को भेजते हैं, उस समय उस बच्चे की जन्मकुंडली में राहु की दशा चलती हैं, तब उस बच्चे को पुस्तक या शिक्षक के द्वारा प्राप्त होने वाले चारित्रिक और मानसिक शक्तियों के विकास की दक्षता में बाधाएँ आती हैं।  



◆इस तरह राहु की शुभ होते हुए भी शिक्षा में बच्चे के बाधाएँ आती हैं, इसलिए इस दशा में ध्यान रखना चाहिए।



◆वृषभ, कर्क, सिंह, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन आदि राशियों में राहु होवे तो शुभ परिणाम मिलते हैं।



जब जन्मकुण्डली के नवम घर में मेष, मिथुन, तुला, धनु, कुंभ आदि राशि में राहु हो तो और राहु की दशा शुरू होने पर निम्नलिखित अशुभ योग फल मिलता हैं। 



◆मनुष्य के जीवन में बहुत ही तकलीफे आती हैं।



◆मनुष्य को अपने जीविका निर्वाह के धंधे में नाकामयाबी मिलती हैं।



◆रोजगार के साधन को बार-बार बदलना पड़ता हैं।



◆मनुष्य के जीवनकाल के प्रत्येक क्षेत्र के प्रत्येक कार्य में बाधाएँ आती रहती हैं।



◆मनुष्य को अपनी भार्या एवं सन्तान पुत्र-पुत्री से दूर रहना पड़ता हैं।



◆मनुष्य को बिना मतलब के खर्चों को सहन करना पड़ता हैं।

 

◆मनुष्य को किसी संस्था या कार्यालय में निश्चित कार्य के लिए निश्चित वेतन या राशि मिलने की जगह को बार-बार बदलना पड़ता हैं, जिससे मानसिक वेदना होती हैं।



◆मनुष्य को पिता का सुख अल्प मिलता हैं और अंत में पिता की मृत्यु के दुःख को भोगना पड़ता हैं।





10.दशम भाव:-जब जन्मकुण्डली के दशम घर में वृषभ, कर्क, सिंह, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन आदि राशि में राहु किसी शुभ योग में होता हैं और राहु की दशा शुभ मानी जाती हैं, तब निम्नलिखित शुभ फल मिलता हैं। 



◆मनुष्य को रुपये-पैसे सहित भौतिक सुख-सुविधा आदि को पाने वाले होते हैं। 



◆मनुष्य अपनी जीविकोपार्जन के लिए कमाने के लिए बड़ा धन्धा करते हैं।


◆मनुष्य राजनीतिक दल का प्रमुख कार्यकर्ता या मनोभावों को व्यक्त करने के लिए आंगिक चेष्टाएँ और उनका कलात्मक प्रदर्शन करने वाले अदाकार और उच्च पद पर नियुक्ति को पाने वाले होते हैं। 



◆मनुष्य को कचहरी के मामलों में जीत हासिल होती हैं। 



◆मनुष्य समाज से संबंध रखने वाले या राजनैतिक कार्य में बहुत नाम कमाते हुए शोहरत को हासिल करने वाले होते हैं।
 


◆मनुष्य कई बार अपना सबकुछ त्याग कर संन्यास आश्रम का पालन करने वाले बनते देखे हैं।



◆मनुष्य अगर किसी कारण शादी करके अपने बाल-बच्चे के साथ जीवन यापन करते रहने पर भी ईश्वर, परलोक आदि के संबंध में श्रद्धा और विश्वास के साथ भक्ति भाव रखते हुए आचरण को करते हुए बहुत आगे बढ़ जाते हैं।



जब जन्मकुण्डली के दशम घर में मेष, मिथुन, तुला, धनु, कुंभ आदि राशि में राहु हो तो और राहु की दशा शुरू होने पर निम्नलिखित अशुभ योग फल मिलता हैं। 

◆मनुष्य को अपने माता-पिता में किसी की मरण के दुःख को सहन करना पड़ता हैं।



◆मनुष्य के द्वारा पहले से इकट्ठा के रुपये-पैसे बिना वजह ही नष्ट हो जाता है।


◆मनुष्य को जीविकोपार्जन के पेशे में नुकसान की संभावना बनती हैं।


◆मनुष्य को अपने पुत्रों के आपसी अनबन को सहन करना पड़ता है एवं बहुत तकलीफ को भोगना पड़ता हैं, जिससे मनुष्य अपने मन में बहुत विधि विरुद्ध या अनैतिक कार्य रूपी कसूर करने की अवस्था में बढ़ोतरी होती हैं। 



11.एकादश भाव:-जब जन्मकुण्डली के एकादश घर में वृषभ, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन आदि स्त्री राशि में राहु किसी शुभ या अशुभ ग्रह के साथ योग में होता हैं, तब निम्नलिखित शुभ फल मिलता हैं। 



◆मनुष्य जनता के द्वारा चुनाव से चयनित होकर संसद के निचले सदन एवं जनप्रतिनिधियों की सभा के रूप में सदस्य बनता है।



◆मनुष्य पुस्तक या शिक्षक के माध्यम से चारित्रिक और मानसिक शक्तियों के विकास से सम्बंधित ज्ञान को  प्राप्त करके उच्च शिक्षण संस्था या महाविद्यालय, विभिन्न विषयों का अध्ययन-अनुसंधान करके एवं परीक्षा देकर उपाधि को ग्रहण उस विश्वविद्यालय में प्रेसिडेण्ट बनता हैं।


◆मनुष्य को अचानक ही फायदा मिलता हैं, जो उसने सोचा भी नहीं होता हैं।



◆मनुष्य के द्वारा दूसरों को दिया गए रुपये-पैसे नहीं मिलने वाले भी प्राप्त हो जाते हैं।



◆मनुष्य शोहरत रूपी कार्य  को करने वाले होते हैं।



◆संतान की प्राप्ति के योग शादी के बहुत समय बाद होता हैं। 


जब जन्मकुण्डली के एकादश घर में मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु, कुंभ आदि पुरुष राशि में राहु हो तो निम्नलिखित अशुभ योग फल मिलता हैं। 


◆मनुष्य के पुत्रों के लिए बुरा फल प्रदान करने के योग होता हैं।


◆मनुष्य की किसी एक संतान के साथ हादसा के योग बन सकते हैं। 


◆संतान की उन्नति में रुकावट के ऊपर रकावट आने लगती हैं, जिससे उसको कामयाबी नही मिल पाती हैं।


 
◆मित्रों के द्वारा मनुष्य के साथ में स्वार्थ के वश आश्वासन देकर अपनी बात से मुकरने के सम्बंधित अनैतिक आचरण कक सहन करना पड़ता हैं।


 
◆मनुष्य के दोस्त भी छोटी या निम्न जाति वाला ही होता है या कोई दाढ़ी वाले या मुस्लिम धर्म के मनुष्य साथ दोस्ती होती हैं। 



◆मनुष्य को अपने करीबी दोस्तों से दूर रहना चाहिए।



◆मनुष्य को अपने जीविकोपार्जन के साधन में नुकसान की प्राप्ति होती हैं।



◆मनुष्य के द्वारा जीविका निर्वाह के साधन में किसी के साथ मिलकर कार्य या धंधा करने के कारण रुपये-पैसे डूब जाते हैं, जिसके कारण रुपये-पैसे का ऋण बढ़ जाता हैं और ऋण उतार नहीं पाने के कारण कंगाल हो जाता हैं। 



12.व्यय भाव:-जब जन्मकुण्डली के बारहवें घर में वृषभ, कर्क, सिंह, कन्या, वृश्चिक, मकर और मीन राशि में राहु शुभ होने की अवस्था में होता हैं, तब निम्नलिखित शुभ फल मिलता हैं। 




◆मनुष्य को अपनी जीविका निर्वाह के साधन के स्वरूप में अपने जन्म स्थान को छोड़कर दूसरे देश को जाना एवं दूसरे देश में रहते हुए खूब अपने जन्म स्थान एवं अपना नाम की प्रसिद्धि को प्राप्त करते हैं साथ बहुत रुपये-पैसे एवं सुख-संपदा को भी प्राप्त करने वाले होते हैं।


 
◆जीविका निर्वाह के पेशे के साथ-साथ किसी ट्रस्ट में औपचारिक रूप से नियुक्ति को प्राप्त करके उसका स्वामी बन कर अपनी शोहरत की बढ़ोतरी प्राप्त करने वाले होते हैं।


 
◆जीवन के प्रत्येक क्षेत्र के कार्यों में कामयाबी को हासिल करते हैं।


जब जन्मकुण्डली के बारहवें घर में मेष, मिथुन, तुला, कुंभ राशि में राहु होने की अवस्था में होता हैं और राहु की दशा चलने लगती हैं, तब निम्नलिखित अशुभ फल मिलता हैं। 



◆मनुष्य के उपयोग या व्यवहार में आने वाले कार्य में रुकावट आने लगती हैं।



◆मनुष्य को बेकार ही खर्चा होने लगता हैं।


 
◆मनुष्य के रुपये-पैसे जो सही या ठीक जगह नहीं होती हैं, उन जगहों पर खर्च होने लगते हैं।


 
◆मनुष्य को बार-बार निश्चित कार्य करने पर मिलने वाली निश्चित राशि की जगह को बदलना पड़ता हैं। 



◆मनुष्य को कई जीविका निर्वाह के साधन बदलने के कारण रुपये-पैसे डूब जाते हैं, जिसके कारण रुपये-पैसे को दूसरे से उधार लेने पड़ते हैं और ऋण के रुपये-पैसे नहीं चुका पाने से कंगाल हो जाता हैं।  




महान ज्योतिषाचार्य पाराशर के अनुसार ने राहु की महादशा:-को तीन भागों में बदलाव करके लिखित रूप से बताया हैं, जो इस तरह हैं।


 
दशादौ दुःखमाप्नोति दशामध्ये सुंख यशः।

दशान्ते स्थाननांश च गुरुपुत्रादिनाशम्।।

विनश्येद दारपुत्राणां कृत्सितान्नं य भोजनम्।

दशादौ देहपीड़ा च धनधान्यविनाशकृत्।

दशान्ते कष्टमाप्नोति स्थानम्रंशो मनोव्यथा।।103।।


अर्थात्:-राहु की दशा मनुष्य के जीवन काल में तीन चरण की आती हैं, जो इस तरह होती हैं।


प्रथम चरण:-जब राहु की दशा पहले चरण में शुरू होती हैं, तब मनुष्य के जीवनकाल को दुःख देने वाली होती हैं और जीवन में पीड़ा प्राप्त होती हैं।


मध्यमा चरण:-जब राहु की दशा मध्यमा चरण में शुरू होती हैं, तब मनुष्य के जीवनकाल में सभी तरह के सुख और प्रसिद्धि देने वाली होती हैं।


अंतिम चरण:-जब राहु की दशा अंतिम चरण में शुरू होती हैं, तब मनुष्य के जीवनकाल में स्थान का नाश करने वाली होती हैं।

राहु की दशा का प्रभाव मेरे जीवन में:-राहु की दशा का प्रभाव भी इसी तरह हुआ था।


प्रथम चरण:-जब राहु की दशा पहले चरण में शुरू होती हैं, तब मेरे जीवनकाल को दुःख एवं अच्छा भोजन तक नहीं मिला।


◆कोर्ट-कचहरी के बिना मतलब के चक्कर काटते-काटते मेरे जूते घिस गए। मुझे राहत नहीं मिली।



◆मुझे शारीरिक रूप से बहुत ही कष्ट हुआ और रुपये-पैसे कज बहुत बर्बादी हुई।



मध्यमा चरण:-जब राहु की दशा मध्यमा चरण में शुरू हुई तब मैंने बहुत ही अपनी मेहनत के बल पर रुपये-पैसे को कमाया था।


◆मैंने जिस भी जीविकोपार्जन के धंधे में रुपये-पैसे डाले, उस जीविका निर्वाह के पेशे में बहुत ही प्रगति प्राप्त की थी


अंतिम चरण:-जब राहु की दशा अंतिम चरण में शुरू हुई तब मुझे बहुत ही संघर्ष करना पड़ा और मेरे प्रत्येक कार्य में किसी भी तरह से फायदा नहीं हुआ बल्कि मुझे नुकसान ही उठाना पड़ा।


◆मुझे अपने निवास स्थान को छोड़कर दूर देश में जाना पड़ा।


◆मुझे राहु की अंतिम चरण में रुपये-पैसों की बहुत हानि उठानी पड़ी।

 
◆राहु की दशा में मनुष्य के नजदीकी रिश्तेदार जैसे-मां-पिता-पत्नी-भाई बन्धुओं आदि का साथ नहीं मिलता हैं एवं मनुष्य निराश हो जाता हैं और मेहनत करने पर भी फल नहीं मिलता हैं।


◆अपने नजदीक के सदस्य भी पराए के तरह बर्ताव करते हैं, जिससे किसी भी कार्य को करने में उत्साह खत्म हो जाता हैं।




◆जब तक राहु की दशा शुरू होती हैं, यदि राहु की दशा स्थायी रूप से एक जगह पर टिकी नहीं रहती हैं, तब मनुष्य को जीविकोपार्जन के साधन को बार-बार बदलना पड़ता हैं और जीविकोपार्जन के साधन में स्थिरता नहीं रख पाते हैं।
 

◆मनुष्य के पहले अपनी मेहनत से इकट्ठा किये हुए रुपये-पैसे को खत्म करवा देता हैं, जिससे दूसरों के आगे हाथ फैलाना पड़ता हैं और कर्जा दिनों-दिन मस्तिष्क पर बढ़ता जाता हैं


◆मनुष्य के जीवनकाल में राहु अपना प्रभाव 36 से 42 वर्ष की उम्र पर मुख्य रूप से बुरा परिणाम देता हैं।
 
'अस्तु'
धन्यवाद्