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Saturday, December 7, 2024

December 07, 2024

गार्डन लगाने के वास्तु नियम व वास्तु टिप्स से लगाये घर के गार्डन में पेड़-पौधे (Plant trees and plants in your home garden using Vastu rules and Vastu tips)

गार्डन लगाने के वास्तु नियम व वास्तु टिप्स से लगाये घर के गार्डन में पेड़-पौधे (Plant trees and plants in your home garden using Vastu rules and Vastu tips):-मनुष्य के जीवन को सभी तरह के सुख-आराम को प्रदान करने वाला उसका निवास स्थान होता हैं, जिसमें वह अपने पूरे दिन की थकावट से राहत पाता हैं। निवास स्थान की अंदरूनी साज-सज्जा एवं रंग-रोगन के अलावा पेड़-पौधों एवं गृहवाटिका का भी महत्वपूर्ण स्थान होता है। गृहवाटिका (गार्डन) लगाने से उसमें लगे हुए विभिन्न पेड़-पौधों से आवास स्थान की खूबसूरती में बढ़ोतरी, मन की सभी तरह परेशानियों से मुक्ति एवं आनंद की प्राप्ति, थकावट से राहत, उत्साह में बढ़ोतरी, कुदरती खूबसूरती, वातावरण की स्वच्छता और वास्तुदोषों के नाश आदि के फल मिलते हैं। मनुष्य की आंखों को हरियाली से भरे हुए पेड़-पौधे राहत एवं तन्दुरुस्ती के हिसाब से भी बहुत फायदेमंद प्रदान करते हैं। जिस तरह बहुत सारे भलाई कार्य करने, बहुत अधिक लोकहित सोच से हवन-पूजन करवाने अथवा तड़ाग खुदवाने या फिर देवताओं की पूजा-अर्चना से प्राप्त नहीं होते हैं, वह भलाई केवल एक पौधे को लगाने से सरलता से मिल जाती हैं। इस तरह एक वृक्ष लगाकर जीवधारी प्राणियों को नया जीवन मिलता हैं। वास्तुशास्त्र में भी वृक्षों का मनुष्य से गहरे संबंध के बारे में व्याख्या की गई हैं। जब भी अपने निवास स्थान की जगह पर पेड़-पौधों को लगाते समय वास्तु का भी ख्याल रखना चाहिए अन्यथा ये प्रदूषण दूर करने की अपेक्षा वास्तुदोष भी उत्पन्न करते हैं।




Plant trees and plants in your home garden using Vastu rules and Vastu tips




गृह वाटिका या बगीचा में पौधरोपण के नक्षत्र (Constellations for planting saplings in the home garden or garden):-जब भी गृहवाटिका में पेड़-पौधों को लगाने का ख्याल आने पर  नक्षत्रों का विचार अवश्य करना चाहिए जैसे- उत्तराभाद्रपद, उत्तराषाढ़ा, स्वाति, हस्त, रोहिणी और मूल आदि नक्षत्र पेड़-पौधों को लगाने में अच्छे होते हैं। इन नक्षत्रों के समय में लगाएं गए पेड़-पौधे जल्दी बढ़ोतरी करते हैं। 





घर में बगीचा या गार्डन कहां होना चाहिए और कौन दिशा सबसे अच्छी रहती हैं? (Where should be the garden or garden in the house and which direction is best?):-आवास में से गार्डन के लिए स्थान को निकालते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए।



१.आवास स्थान के बायीं ओर की जगह में ही बगीचा लगाना चाहिए।



२.जो मनुष्य अपने निवास की जगह से पूर्व, उत्तर, पश्चिम या ईशान दिशा में फूल-फल आदि के पेड़ से युक्त फुलबगिया बनाता है, वह मनुष्य हमेशा गायत्री से युक्त, धर्म एवं श्रद्धा से दोनों हाथों से देने वाला और लोकहित के विचार से हवन-पूजन युक्त शुभ काम को करने वाला होता हैं।



3.लेकिन जो मनुष्य अपने निवास की जगह से आग्नेय, दक्षिण, नैऋत्य या वायव्य में फूल-फल आदि के पेड़ से युक्त गार्डन बनाता है, वह मनुष्य हमेशा रुपये-पैसे की तंगी एवं नुकसान भोगने वाले, सन्तान के रूप में पुत्र उसके मान-सम्मान को ठेस पहुँचाने वाले तथा परलोक में निंदनीय लोकचर्चा प्राप्त होती है। वह मृत्यु को प्राप्त होता है। वह वंश-परम्परा आदि समाज में खराब चाल-चलन वाला और ओछा-दूसरे की बुराई करने वाला होता हैं। इसलिए निवास स्थान के नैऋत्यकोण अथवा अग्निकोण में गृहवाटिका नहीं लगानी चाहिए।




गार्डन में दिशा-विशेष में स्थित होने पर शुभ अथवा अशुभ फल:-कई वृक्ष ऐसे हैं, जो दिशा-विशेष में लगे होने पर शुभ अथवा अशुभ फल देने वाले हो जाते हैं, जैसे-



फसलों के लिए दिशाओं हेतु चुनाव:-जब भी कोई किसान या गृहवाटिका में अनाज और फल या फसलों या पेड़-पौधे को लगाना हो, तो उनको निम्नलिखित दिशाओं का चुनाव करके लगाने पर फायदा होता हैं।


 

1.नैर्ऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम दिशा) में:-जब बहुत वजन वाले बड़े फल या दाने वाली, गूढ़ बलदायक गुण वाले फसलों या पेड़-पौधे को लगाना हो, तो उनको नैर्ऋत्य कोण में लगाना चाहिए।



2.वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम दिशा) में:-जब लम्बे कद, लम्बाकार दानों या फलों, कम शाखाओं के फैलाव वाले, वायवीय गुणों वाले अनाज और फल या फसलों या पेड़-पौधे को लगाना हो, तो उनको वायव्य कोण में लगाना चाहिए।



3.आग्नेय कोण (दक्षिण-पूर्व दिशा):-जब गर्म, चरपरे, कम जल वाले, कड़वे, कटु भूख को बढ़ाने वाले मिर्च, अदरक आदि फसलों या पेड़-पौधे को लगाना हो, तो उनको आग्नेय कोण में लगाना चाहिए।



4.ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) में:-जब जलीय गुणों वाले (जल के अंश से युक्त रसवाले स्वादिष्ट) रसदार फल या फसलों या पेड़-पौधे को लगाना हो, तो उनको ईशान कोण में लगाना चाहिए।


 


गार्डन के लिए फल-फूल वाले पेड़-वृक्षों की दिशा का चुनाव:-शास्त्रों में पेड़-पौधों या वृक्षों को सही दिशा में लगाने को बहुत जरूरी बताया हैं, जिससे सही दिशा में लगे पेड़-पौधों का फायदा मिल सके। इसलिए निम्नलिखित तरह के अनाज और फल या फसलों या पेड़-पौधे को या वृक्षों को जब भी कोई किसान या गार्डन में लगाने वाला हो, तो उनकी आकृति को ध्यान रखते हुए सही दिशाओं का चुनाव करके लगाने पर फायदा होता हैं। 



1.पूर्व दिशा:-जब मनुष्य के निवास स्थान की पूर्व दिशा में पीपल का वृक्ष लगा होता हैं या लगाया जाता हैं, तब उससे मनुष्य के आवास में रहने वाले सदस्यों को हर समय खौफ सतता रहता हैं और समाज में निम्न आर्थिक जीवन स्तर से जीवन को जीने वाले होते हैं। लेकिन पूर्व दिशा में बरगद का वृक्ष लगा हुआ होता हैं, तो सभी तरह की मन की इच्छाओं की पूर्ति होती हैं।



2.पश्चिम दिशा:-जब मनुष्य के निवास स्थान की पश्चिम दिशा में वट का वृक्ष लगा होता हैं या लगाया जाता हैं, तब उससे मनुष्य के आवास में रहने वाले सदस्यों को राजकीय शासित सत्ता से संकट एवं तकलीफे औरत और खानदान की बरबादी होती हैं और आम, कैथ, अगस्त्य तथा निर्गुण्डी रुपये-पैसों एवं जमीन-जायदाद की बरबादी करवाते हैं। लेकिन पश्चिम दिशा में पीपल का वृक्ष लगा हुआ होता हैं, तो सभी तरह हितकारी और फलदायक होता हैं।




3.उत्तर दिशा:-जब मनुष्य के निवास स्थान की उत्तर दिशा में गूलर का वृक्ष लगा होता हैं या लगाया जाता हैं, तब उससे मनुष्य के आवास में रहने वाले सदस्यों को मन की कल्पना से उत्पन्न विचारों से कष्ट व झंझट और ऑंखों में होने वाले रोग से कष्ट होता हैं। लेकिन उत्तर दिशा में कैथ और पाकर (पाकड़) का वृक्ष लगा हुआ होता हैं, तो सभी तरह हितकारी और फलदायक होता हैं।




4.दक्षिण दिशा:-जब मनुष्य के निवास स्थान की दक्षिण दिशा में पाकर (पाकड़) का वृक्ष लगा होता हैं या लगाया जाता हैं, तब उससे मनुष्य के आवास में रहने वाले सदस्यों को व्याधि और सभी तरह से नाकामयाबी मिलती हैं। लेकिन उत्तर दिशा में गूलर और गुलाब का वृक्ष लगा हुआ होता हैं, तो सभी तरह हितकारी और फलदायक होता हैं।



5.आग्नेय कोण (दक्षिण-पूर्व दिशा):-जब मनुष्य के निवास स्थान की आग्नेय कोण (दक्षिण-पूर्व दिशा) में वट, पीपल, सेमल, पाकर तथा गूलर का वृक्ष लगा होता हैं या लगाया जाता हैं, तब उससे मनुष्य के आवास में रहने वाले सदस्यों को कष्ट और मरण के समान कष्ट होता हैं। लेकिन आग्नेय कोण में अनार का वृक्ष लगा हुआ होता हैं, तो सभी तरह हितकारी और फलदायक होता हैं।



6.नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम दिशा) में:-जब मनुष्य के निवास स्थान की नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम दिशा) में जामुन, कदम्ब और इमली वृक्ष लगा हुआ होता हैं, तो सभी तरह हितकारी और फलदायक होता हैं।



7.वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम दिशा) में:-जब मनुष्य के निवास स्थान की वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम दिशा) में बेल (बिल्व) वृक्ष लगा हुआ होता हैं, तो सभी तरह हितकारी और फलदायक होता हैं।



8.ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) में:-जब मनुष्य के निवास स्थान की ईशान कोण (उत्तर-पूर्व दिशा) में आँवला, कटहल एवं आम वृक्ष लगा हुआ होता हैं, तो सभी तरह हितकारी और फलदायक होता हैं।



घर में बगीचा या गार्डन लगाते समय विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए:- 



1.यदि निवास स्थान की जगह के पास में कोई अनिष्टकारी पेड़-वृक्ष लगे हो और उन पेड़-वृक्ष को वहां से काटने में बाधा आ रही हो, तो उन अनिष्टकारी पेड़-वृक्ष और निवास स्थान की जगह के बीच में हितकारी या मंगलकारी पेड़-वृक्ष को लगा देना चाहिए।




2.यदि मनुष्य के आवास के नजदीक पीपल का वृक्ष लगा हो, तो उस पीपल के वृक्ष की नियमित रूप से विनय, श्रद्धा और समपर्ण की सोच से जल, फूल, फल, अक्षत आदि चढाकर पूजा एवं देखभाल करते रहना चाहिए।



3.यदि किसी वृक्ष, मन्दिर आदि की अनुकरण रूपी प्रतिकृति दिन के दूसरे और तीसरे पहर (सूर्योदय से लेकर तीन-तीन घण्टे का एक पहर) में निवास स्थान पर पड़ती हैं, तो उस निवास स्थान के सदस्य हमेशा तकलीफ और व्याधि से पीड़ित रहते हैं।




4.अक्सर नगरों में जमीन का भाग कम होता हैं, अतः आवास स्थान में वट, पीपल, गूलर, आम, नारियल आदि बड़े वृक्षों का लगाना अच्छा नहीं होता है। यह वृक्ष आकार में बहुत बड़े और फैलने वाले होते हैं एवं इसी कारण इनकी जड़ें भी जमीन के बहुत गहराई तक जाती हैं।



5.जमीन के छोटे भाग पर जब इन बड़े आकार एवं गहराई तक फैलने वाले वृक्ष को लगाया जाता हैं, तो इनके जड़ें गहराई में जाने पर आवास की दीवारों में दरज उत्पन्न होने लगती हैं, जिससे आवास को नुकसान की संभावना हो सकती हैं। इस तरह उपरोक्त सभी तरह बड़े आकार वाले वृक्ष अमंगलकारी होते हैं, लेकिन भूमि का टुकड़ा ज्यादा होने पर या जोतने-बोने की जमीन वाले कृषिक्षेत्र आदि में इन्हें लगाया जा सकता हैं।



6.बहुत सारे मनुष्य अपने आवास में किचन गार्डन लगाने लग गए हैं, इस तरह आवास में किचन गार्डन लगाने में किसी विशेष वास्तु सहमति के कायदे नहीं हैं।



7.निवास स्थान की छत पर भी यदि पौधे लगाए जा रहे हैं, तो कोई विशेष नियम नहीं है। बस यह ध्यान रखना चाहिए कि काँटेदार पौधे नहीं हों।



8.जब आवास स्थान में कैक्टस जैसे रेतीली भूमि में उगने वाले रेगिस्तानी पौधे उगाये जाते हैं, तब उस आवास के सदस्यों में बेचैनी, दुश्मनों के द्वारा परेशानी और रुपये-पैसों का नुकसान होता रहता हैं।



9.लॉन या दूब लगाना:-जब निवास स्थान की जगह में खुला घासयुक्त मैदान वाला लॉन या दूब को लगाना हो, तो आवास के पूर्वी अथवा उत्तरी दिशा में हितकारी रहता हैं।



10.यदि आवास के पूर्व दिशा में बड़े एवं फैलाव वाले वृक्षों का न होना या कम होना हितकारी होता हैं। यदि उन वृक्षों को नहीं काट पाने की स्थिति में आवास के उत्तर दिशा की ओर उनके बुरे प्रभावों को ठीक तरह करने के लिए आंवला, अमलतास, हरश्रृंगार, तुलसी, वन तुलसी आदि पौधों में से कोई भी एक पौधों को लगाया जा सकता है।



11.जब वृक्षों में किसी भी कारण से कम फल लगे या नहीं लगते हो, तब उड़द, मूंग, यव, तिल और कुलथी को एक साथ मिलाकर उनको पानी में डालकर उस पानी से उन वृक्षों को जल देना चाहिए।



12.शयनागार में:-मनुष्य अपने दिन भर की थकावट से अपने शरीर को राहत देने के लिए अपने निवास स्थान में  सोने के कक्ष का सहारा लेता है, जिससे उसके शरीर में पूरे दिन की नष्ट हुई ऊर्जा सोकर मिल सके। उस जगह पर भी पौधे लगाने की राह नहीं दे सकते हैं, क्योंकि रात्रिकाल में पेड़-पौधे या वृक्ष अपनी क्रियाविधि को चलाने के लिए कार्बनडाई ऑक्साइड को छोड़ते हैं और स्वयं ऑक्सीजन को उपयोग करते हैं, जिससे शयनागार के पास रहने से मनुष्य को शुद्ध ऑक्सीजन नहीं मिल पाती हैं और कार्बनडाई ऑक्साइड को ग्रहण करना पड़ता हैं जिससे मनुष्य की तन्दुरुस्ती बिगड़ने लगती है और कई रोगों का घर मनुष्य शरीर बन जाता हैं।



13.पुष्प वाले पौधे:-आवास में पुष्प वाले पौधे, मनीप्लान्ट अथवा तड़क-भड़कदार वाले शोभाकारी सजावटी, दीवार, पेड़ आदि पर फैलने वाले बिना तने की लता या बेलों को लगाना भी फलदायक होता है। मनी प्लान्ट अर्थात् रुपयों-पैसों को अपनी तरफ खींचकर धनवान वाला पौधा को हमेशा ईशान कोण या उत्तर दिशा में ही लगाना चाहिए।



14.कंटीले एवं दूध वाले वृक्ष:-वास्तु के अनुसार कंटीले एवं दूध वाले वृक्ष आवास के गार्डन में नहीं लगाने चाहिए।



आसन्नाः कन्टकिनो रिपू भयदाः क्षीरिणोSर्थनाशाय।


फलिनः प्रजाक्षय करा दारूण्यपि वर्जये देषाम्।। 


(बृहत्संहिता 53/86)


अर्थात्:-


काँटें वाले वृक्ष:-आवास के नजदीक टहनियों में सुई के आकार कंटक वाले वृक्ष जैसे-बेर, बबूल, गुलाब, कैक्टस को लगाने से आवास के लोगों हर समय दुश्मनों के द्वारा नुकसान पहुँचाने का डर सताता रहता हैं।




15.सफेद गाढ़े तरल युक्त दूध वाले वृक्ष या पेड़:-पत्तियों या डंठलों में स्थित सफेद तरल वाले पेड़ या वृक्ष को भी अपने आशियाना में नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि इन पेड़ या वृक्ष की टहनियों या डंठलों या पत्तियों से निकलने वाला सफेद तरल पदार्थ बहुत ही विष से युक्त होता हैं और नेत्रों के लिए हानिकारक होते हुए जलन सहित पीड़ा देने वाला होता हैं। जो वृक्ष ज्यादा सफेद गाढ़े तरल युक्त दूध वाले हो, उनको लगाने से आवास वाले लोगों को रुपये-पैसों का नुकसान करवाते हैं, जिससे हर समय आर्थिक तंगी के हालात बने रहते हैं।




16.फलदार वृक्षों:-फलदार वृक्षों को अपने निवास स्थान में खुली रखी हुई जगह जिसका उपयोग अपने निवास स्थान के कामों में किया जाता हैं, उस जगह पर फलदार वृक्षों को लगाना अनिष्टकारी शास्त्रों में वर्णित किया गया हैं। क्योंकि इस स्थान में लगे हुए फलदार वृक्षों के फल को तोड़ने के लिए बच्चे वृक्ष पर चढ़कर गिरने का डर रहता हैं जिससे उनको चोट लग सकती हैं और फल तोड़ने के चक्कर में शिला का प्रयोग कर सकते हैं, जिससे निवास स्थान के दरवाजों या खिड़की आदि की जगहों पर लगे दर्पण या आईना को शिला मारकर तोड़ सकते हैं। जो वृक्ष फल वाले हो, उनको लगाने से आवास के लोगों को सन्तान और स्त्री सुख का नुकसान होता हैं। इन फल वाले वृक्षों की काष्ठ को आवास में नहीं लगाना चाहिए। यदि उपरोक्त वृक्षों को काटना संभव नहीं हो, तो इन वृक्षों और आवास के बीच में हितकारी वृक्ष को लगा देना चाहिए।



17.बेल बिना तना वाली लताएं:-जो जमीन, दीवार, पेड़ आदि पर फैलकर बिना तने की लताओं को अपने निवास स्थान के नजदीक नहीं लगाने की राय दी जाती हैं, क्योंकि ये लताएं जब फैलती हुई निवास स्थान की कई जगहों को अपना सहारा बनाकर निवास स्थान पर मकड़ी के झाले की तरह छा जाती हैं, जिससे इन फैली हुई लताओं के शेयर भुजंग, वृश्चिक, मूषक और जो पूरे शरीर को जमीन पर टेढ़ा-मेढ़ा करते हुए खिसकने वाले सरीसृपों या कीड़े-मकोड़े आदि विष से युक्त जीवात्मा निवास स्थान में प्रवेश कर जाते हैं, जिससे उनके स्पर्श से खाने-पीने की चीजों की दूषित हो जाती है और उनके द्वारा काटने से मानव शरीर में विष के संचार से मृत्यु तक का डर रहता हैं, इसलिए अपने निवास स्थान की जगह पर बेल को नहीं लगाना चाहिए।





18.बड़े और बहुत विस्तृत वृक्षों को:-बड़े-ऊँचे और बहुत फैलाव वाले वृक्षों को लगाने के विषय में शास्त्रों में वर्णन मिलता हैं कि इस तरह के वृक्षों को सदैव दक्षिण दिशा या पश्चिम दिशा या दक्षिण-पश्चिम दिशा में से कोई भी दिशा जो आशियाने में फैले हुए जगह के अनुसार लगाना चाहिए। जिससे कि इन वृक्षों के द्वारा मनुष्य निवास स्थान पर मध्याह्न के समय पड़ने वाली सूर्य की तेज अग्नि के समान गर्मी और नुकसानदायक रश्मियों का प्रभाव मानव शरीर पर नहीं पड़ सके। क्योंकि जब पूर्व दिशा में बड़े पेड़ होंगे तो पौ फटने के समय सूर्य की आने वाली किरणें जो जोश एवं बल देने वाली, निश्चत एवं स्थिर स्वरूप और वास्तुदोषों को दूर करने वाली होती है, वे ठीक से नहीं आ पावेगी। जबकि पश्चिम दिशा में बड़े पेड़ होने पर संध्या के समय की नकारात्मक ऊर्जा एवं बुरे असर से रक्षा करेगी।




19.छोटे वृक्षों या पेड़-पौधों:-छोटे पेड़-पौधों या वृक्षों को हमेशा उत्तर दिशा या पूर्व दिशा या उत्तर-पूर्व या ईशान कोण में लगाने की राह शास्त्रों में वर्णित किया गया हैं, जिससे निवास स्थान पर सूर्य की किरणें सही तरीके से बिना किसी व्यधान से प्रवेश कर सके और सूर्य की गर्मी के द्वारा संचलन करने की शक्ति मानव को मिल सके और शरीर को आवश्यक सोलह विटामिनों में से विटामिन ए व विटामिन डी आदि की उचित मात्रा मिल सके और मनुष्य के शरीर की पुष्टि बनी रह सकें।  




लेकिन कुछ आचार्यों के अनुसार:-वास्तुशास्त्र के कुछ वास्तुशास्त्रियों के अनुसार गुलाब एवं सफेद आक लगाना नुकसान दायक नहीं होता हैं, बल्कि इनको लगाना फायदेमन्द होता हैं।




शास्त्रानुसार भवन के नजदीक वृक्ष होने का शुभाशुभ निर्णय:-निम्नलिखित रूप से लेना चाहिए।



कौनसे अशुभ पेड़ या वृक्ष नहीं लगाये:-मनुष्य को अपने घर के पास निम्नलिखित वृक्ष या पेड़ जैसे-पाकर, गूलर, आम, नीम, बहेड़ा, पीपल, अगस्त्य, बेर, निर्गुण्डी, इमली, कदम्ब, केला, नींबू, अनार, खजूर, बेल आदि को नहीं लगाना चाहिए, अन्यथा अमंगलकारी और नुकसान होता हैं।


 

वास्तु सौख्यम् 39 के अनुसार:-


मालती मल्लिकां मोचां चिच्चां श्वेतां पराजिताम्।


वास्तुन्यां रोपयेद्यस्तु स शस्त्रेण निहन्यते।।



1.अर्थात्:-जब अपने आवास के गार्डन की जमीन में मालती, मल्लिका, मोचा (कपास), इमली, श्वेता (विष्णुक्रान्ता) और अपराजिता आदि पेड़-पौधों को लगाता हैं, वह मनुष्य किसी हथियार के आघात से मृत्यु को प्राप्त करता हैं। 




बदरी कदली चैव दाड़िमी बीजपूरिका।


प्ररोहन्ति गृहे यत्र तद्गृहं न प्ररोहति।। (समरांगण सूत्रधार 38/131)


2.अर्थात्:-जब किसी भी निवास स्थान की जगह पर जब कदली (केला), बदरी (बेर) एवं बांझ अनार आदि बिना बोये उग जाते हैं या बोये जाते हैं, जिससे उस निवास स्थान में रहने वाले सदस्यों के जीवन में बढ़ोतरी नहीं होती हैं। आवास की सरहद में कदली (केला), बदरी (बेर) एवं बांझ अनार के वृक्ष पड़ता है। बेर का वृक्ष ज्यादा दुश्मनी करवाता हैं। 



अश्वत्थं च कदम्बं च कदली बीज पूरकम्।


गृहे यस्य प्ररोहन्ति सगृही न प्ररोहति।। (बृहद्दैवज्ञ.87/9)



3.अर्थात्:-जब किसी भी निवास स्थान की जगह पर जब पीपल, कदम्ब, केला, बीजू नींबू आदि बिना बोये उग जाते हैं या बोये जाते हैं, जिससे उस निवास स्थान में रहने वाले सदस्यों की बढ़ोतरी नहीं होती हैं। 




4.जब आवास स्थान की हद में पलाश, कंचन, अर्जुन, करंज और लश्वेमांतक नामक वृक्षों में से कोई भी वृक्ष होता है, उस आवास स्थान में हमेशा बेचैनी बनी रहती है।




5.पीपल का वृक्ष:-जब आवास स्थान के पास या हद में पीपल का वृक्ष उगा हो, तो उस निवास स्थान के लोगों का वंश आगे नहीं बढ़ता हैं, क्योंकि पीपल के वृक्ष पर पितृगणों, साँपों और आत्माओं का निवास होता है। 



6.शमी का वृक्ष:-जब आवास स्थान के पास या हद में शमी का वृक्ष उगा हो, तो उस निवास स्थान के लोगों पर बुरी शक्तियों का असर होने लगता हैं। 



7.कीकर का वृक्ष:-जब आवास स्थान के पास या हद में कीकर के वृक्ष उगा हो, तो उस निवास स्थान के लोगों पर नकारात्मक शक्ति अपने असर में ले लेती हैं।



8.इमली का वृक्ष:-जब आवास स्थान के पास या हद में पीपल के वृक्ष उगा हो, तो उस निवास स्थान के लोगों का वंश आगे नहीं बढ़ता और शारीरिक व मानसिक व्याधि से ग्रसित रहते हैं, क्योंकि शमी, कीकर और इमली के वृक्षों में भी बुरी आत्माओं का निवास माना जाता है, अतः इन्हें घर में नहीं लगाना चाहिए।


9.चंदन का पेड़:-जब आवास स्थान के पास या हद में चंदन का पेड़ उगा हो, तो उस निवास स्थान के लोगों को हर समय भय बना रहता हैं। क्योंकि चंदन के वृक्ष से सर्प आकर्षित होते हैं। अतः इन्हें घर में नहीं लगाना चाहिए।



10.नीम का वृक्ष:-जब आवास स्थान के पास या हद में नीम का वृक्ष उगा हो, तो उस निवास स्थान के लोगों को हर समय बिना मतलब के क्लेश बना रहता और आवास को नुकसान हो सकता हैं। क्योंकि नीम की जड़े जमीन में गहराई तक जाती हैं, अतः इन्हें घर में नहीं लगाना चाहिए।



11.नारियल के वृक्ष:-जब आवास स्थान के पास या हद में नारियल का वृक्ष उगा हो, तो उस निवास स्थान के लोगों में बिना मतलब एक-दूसरे से श्रेष्ठ होने की और दूसरों को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति बनती हैं। क्योंकि नारियल का वृक्ष की ऊँचाई बहुत ज्यादा होती हैं और हितकारी भी नहीं होते हैं, अतः इन्हें शहरी घर में नहीं लगाना चाहिए।



कौनसे शुभ पेड़ या वृक्ष गार्डन में लगाये:-मनुष्य को अपने आवास में पेड़-वृक्ष जैसे-अशोक, पुन्नाग, मौलसिरी, शमी, चम्पा, अर्जुन, कटहल, केतकी, चमेली, पाटल, नारियल, नागकेशर, अड़हुल, महुआ, वट, सेमल, बकुल, शाल आदि को लगाना हितकारी रहता हैं।



1.अशोक का वृक्ष:-मनुष्य को अपने आवास में अशोक का वृक्ष लगाने पर सभी तरह के आत्मीय दुःख से उपजी वेदना से मुक्ति मिलती हैं और तकदीर का साथ मिलता हैं। यदि आवास स्थान की जमीन का भाग छोटा हैं, तो उसे घर के बाहर भी इसे लगाया जा सकता है।



2.वट या बरगद के वृक्षों:-जो मनुष्य को अपने निवास स्थान से खुली जगह में दो बड़ के वृक्षों का लगाना चाहिए, उस मनुष्य के सभी तरह के धर्म व नीति के खिलाफ किये बुरे अपराधों की माफी मिल जाती हैं। 



3.पलाश या ढाक के वृक्षों:-जो मनुष्य अपने आवास की हद से दूर पलाश के वृक्षों का लगाता है, उन दम्पत्तियों को कहना मानने वाला, सुंदर, सुशील और सभी तरह से आराम प्रदान करने वाला गुणवान पुत्र की प्राप्ति होती हैं। 




4.पारस का वृक्ष:-जो मनुष्य अपने आवास में पीपल से थोड़ा भिन्न छोटा पारस के वृक्ष का लगाता है, उन मनुष्य को जमीन-जायदाद की प्राप्ति होती हैं।



5.पीपल का वृक्ष:-जो मनुष्य अपने आवास की हद से दूर पीपल के वृक्ष को लगाता है, उन मनुष्य को सभी तरह आराम सहित वैभव की प्राप्ति होती हैं।



6.बिल्ब का वृक्ष:-जो मनुष्य को अपने निवास स्थान से खुली जगह में बिल्ब का एक वृक्ष लगाते हैं, उस मनुष्य को धन-संपत्ति की प्राप्ति होती हैं, क्योंकि बिल्व वृक्ष में लक्ष्मी जी का वास्तविक रूप से वास रहता हैं।



7.आँवला का पेड़:-जो मनुष्य अपने आवास की हद से दूर या किसी भी जगह पर आमलक के पेड़ को लगाता है, उस मनुष्य को जमीन-जायदाद, दौलत और सभी तरह की परेशानियों से मुक्ति मिल जाती हैं।



8.श्वेतार्क का पेड़:-जो मनुष्य अपने आवास की हद से दूर या किसी भी जगह पर श्वेतार्क के पेड़ को लगाता है, उस मनुष्य को गणेश एवं शिवजी की अनुकृपा से सोना-चाँदी और अन्य बहुमूल्य धातुएँ सहित द्रव्य की प्राप्ति होती हैं। 



9.केले का पेड़:-जो मनुष्य अपने आवास में या किसी भी जगह पर केले के पेड़ को लगाता है, उस मनुष्य पर भगवान सत्यनारायण जी की अनुकृपा सहित लक्ष्मीजी की कृपा भी मिल जाती हैं। 



10.गूलर का पौधा:-जो मनुष्य अपने आवास में या किसी भी जगह पर गूलर का पौधा को लगाता है, उस मनुष्य को चन्द्रमा ग्रह से मिलने वाली पीड़ा से मुक्ति मिल जाती हैं। ।



11.निर्गुडी का पौधा:-जिस आवास की हद में निर्गुडी का पौधा का लगा होता हैं, उस आवास में हमेशा वैयक्तिक जीवन में सुख-शांति बनी रहती हैं।


 

12.दूसरे पौधे:-मनुष्य को आवास की हद से दूर अंगूर, पनस, पाकड़ तथा महुआ के पौधों को लगाना भी हितकारी होता हैं।

 


13.पुष्पदार पौधों में:-मनुष्य को आवास की हद से दूर या आवास स्थान में चंपा, गुलाब, चमेली, केतकी पुष्पदार के पौधों को लगाना भी हितकारी होता हैं।



14.नीम का वृक्ष:-जो मनुष्य अपने आवास की हद से दूर या किसी भी जगह पर अर्थात् सड़क के किनारे या जहां पर वह पनप सके उस स्थान पर नीम का वृक्ष को लगाता है, उस मनुष्य को मंगल ग्रह से मिलने वाले कष्टों से मुक्ति, बढ़े हुए कर्ज और खून की बीमारियों से मुक्ति मिल जाती हैं। लेकिन कुछ आचार्यों ने कुछ दूसरे पेड़ जैसे-नीम, चंदन एवं नारियल को लगाना भी हितकारी बताया है।



15.तुलसी का पौधा:-मनुष्य को अपने निवास की जगह के ईशान या ब्रह्म स्थान तुलसी का पौधा लगाना चाहिए, जिससे मनुष्य को सुबह दर्शन करने से सोने के दान की तरह फल मिल जावें, रुपये-पैसों, पुत्र सन्तान की प्राप्ति, सभी तरह परोपकार के कार्यों का फल, ईश्वर भक्ति में रुचि और कल्याण की प्राप्ति हो सकें। लेकिन तुलसी के पौधे को दक्षिण दिशा में में नहीं लगाना चाहिए, अन्यथा मरने के समय यम दूतों के द्वारा दी जाने वाले कष्टों को झेलना पड़ता हैं।

 


विशेष:-जब परिस्थिति वश किसी वृक्ष को काटना पड़े, तो उस स्थिति में दूसरे दश वृक्षों को कहीं पर लगाना चाहिए और उनकी देखभाल सभी तरह जैसे-पानी, खाद, जानवरों आदि से करनी चाहिए। इस तरह से वृक्षों की सेवा करने से जो वृक्षों को काटने से हुए बुरे कर्मों के दोष से मुक्त हो जाता हैं। मनुष्य को बिना वजह वृक्षों को काटना और उनकी डालों, पल्लवों को तोड़ना अनुचित एवं निंदनीय कर्म माना गया है, क्योंकि वृक्षों में भी जीवनी शक्ति होती हैं, क्योंकि यह बात को वैज्ञानिकों ने भी वास्तविक रूप से बिना विवाद के सिद्ध कर चुके हैं कि सुख-दुख और गर्मी, सर्दी व बरसात जैसी सभी चारों तरफ के हालातों से वृक्षों पर असर होता हैं और वे भी सही तरह से अहसास करते हैं। इसी कारण से वृक्षों को काटने और उनको नुकसान पहुँचाने के बारे में भर्त्सना की गई हैं। यही कारण है कि धर्मशास्त्रों में वृक्षों को नष्ट करने की निंदा की गई हैं।



ऋग्वेद के अनुसार:-वृक्षों को दुःख, काटने आदि करने के बारे में निम्नलिखित रूप से ऋग्वेद में कहा गया है-


मा काकम्बीरमुद्वृहो वनस्पतिम् शस्तीर्वि हि नीनशः।


मोत सूरो अह एवा चन ग्रीवा अदद्यते वेः।।


अर्थात्:-जिस तरह अपनी ताकत के बल द्वारा कुटिल मनोवृत्ति वाला बाज पक्षी दूसरे कमजोर पक्षियों की गर्दन को मरोड़कर उन्हें तकलीफ सहित पीड़ा देता हैं, तुम भी उसी तरह मत बनो। इन वृक्षों को पीड़ा मत दो, उनको जड़ से उखाड़-पछाड़ मत करो। ये सभी संसार के पशु-पक्षियों और जीव-जंतुओं को शरण देते हैं।
















 







 




 





















 


















Monday, November 25, 2024

November 25, 2024

शनि की स्थिति को जानें मकान बनाने से पहले (Know the position of Saturn before building a house)

शनि की स्थिति को जानें मकान बनाने से पहले (Know the position of Saturn before building a house):-लाल किताब में वास्तु शास्त्र में पर्याप्त तर्क-वितर्क के बाद निश्चित सिद्धांतों का वर्णन करते हुए कहा गया है कि निवास स्थान बनाने से पहले जमीन का निरीक्षण-परीक्षण करना, भूमि के भाग को नापने या मापने की क्रिया, उसके रूप, आकार, आसपास के वातावरण आदि का ध्यान जरूर रखना चाहिए। 




Know the position of Saturn before building a house



◆विवाह आदि धार्मिक कार्यों में खोदी भूमि का प्रभाव:-यदि इंसान जिस निवास स्थान में रहता हैं, उस निवास स्थान के अंदर जाते समय यदि किसी हिस्से में जमीन के अंदर ऐसी मिट्टी जो सिर्फ शादी-विवाह के मौके पर खोदी जाती है और फिर बंद कर दी जाती है, उसमें जब भी अष्टम भाव के मंगल वाला बच्चा पैदा होगा, तो उसके खून के रिश्ते के लोगों को परेशानी उठानी पड़ सकती है। अतः आपके घर में यदि ऐसी कोई जगह हो, तो वहां की मिट्टी खोदकर उसे किसी नदी, नाले आदि में प्रवाहित कर दें। 





◆घर को मंदिर परिसर के समान मूर्तियों वाला बनाने पर प्रभाव:-जब इंसान अपने निवास स्थान को रहने के लिए बनाता हैं, हिन्दू धर्म के छत्तीस कोटि के देवी-देवताओं पर विश्वास एवं श्रद्धा भाव होने से वह अपने घर में मूर्तियां रखकर निवास स्थान की जगह को मंदिर जैसा बना लिया है, तो यह बुरा एवं जीवनकाल में उन्नति को रोकने वाला हो सकता है। ऐसे में आपके परिवार में संतानहीनता आ सकती हैं। क्योंकि हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं की मूर्तियों का वास्तविक स्थान मंदिरों एवं धर्मस्थलों में माना जाता हैं, जिससे इन स्थानों पर आने वाले अपने इष्टदेव की अरदास कर सके और उनका मन ईश्वर की भक्ति में डूब सके, इसलिए इन स्थानों में मूर्तियों को रखना शुभ माना जाता हैं।

 



◆जब इंसान के निवास स्थान में अधिक देवी-देवताओं की मूर्तियों स्थापित होती हैं, उस निवास स्थान में सातवें घर में बैठे बृहस्पति वाला कोई बच्चा जन्म लेता हैं, तब ठीक रहता हैं, अन्यथा नुकसान करवाता हैं। यह नियम देवी-देवता की कागज वाली तस्वीर पर लागू नहीं होता।




◆मकान प्रवेश के वक्त दाहिनी ओर समाप्त होने पर प्रभाव:-कई बार ऐसा होता है कि इंसान के निवास स्थान में अंदर की तरफ जाते समय दाहिनी तरफ में आखिर में जाकर मकान में मकान समाप्त हो जाता है, वहां अंधेरी कोठरी (घर के भीतर का छोटा कमरा) हुआ करती है, जिसमें जाने के लिए दरवाजे के अतिरिक्त कोई दूसरा रास्ता नहीं होता। इस अंधेरी कोठरी वाले छोटे कमरे में किसी भी तरह का उजाला एवं हवा के संचार का भी कोई माध्यम नहीं होता हैं। इस तरह बने हुए छोटे कमरे में प्रकाश को आने देने के लिए दीवार में ऊपर की ओर खुला झरोखा बना भी लिया जाता हैं, तो भी उस निवास स्थान में रहने वाले सदस्यों पर मुसीबतों का साया बना रहता हैं।




◆मकान की छत बदलने का प्रभाव:-इंसान को अपने निवास स्थान को ऊपर से ढकने वाली छाजन को बदलना हो, तो सबसे पहले इंसान को उस छत के ऊपर एक छत पहले बनानी चाहिए, उसके बाद में पुरानी छत को गिरना चाहिए।




◆कीमती वस्तुओं को सुरक्षित रखने पर बनाये हुए गड्ढों का प्रभाव:-कई इंसान अपने निवास स्थान में कीमती चीजें, जेवर, रुपया आदि को सुरक्षित रखने एवं दूसरों से चोरी के डर से अपने निवास स्थान में अपनी तय जगह पर स्वयं गड्ढा खोदकर उन कीमती वस्तुओं को उन गड्ढों में छिपा देते हैं।  यदि कारणवश ऐसे गड्ढ़े कीमती वस्तुओं या किसी भी तरह से खाली रह जाते हैं, तब इंसान की आमदनी पर असर डालते हैं, जिससे उनकी आमदनी में गिरावट आती हैं। यदि किसी कारणवश उन गड्ढों में से कीमती वस्तुओं को निकालने के बाद वापस नहीं रख पाने की स्थिति में उन गड्ढों में कम से कम बादाम, छुहारे आदि रख देने चाहिए।




◆मकान में कच्चा स्थान नहीं होने पर प्रभाव:-लाल किताब के अनुसार यदि जिस किसी इंसान के निवास स्थान की जगह का कोई भी भाग यदि बिल्कुल भी कच्चा नहीं होता हैं, तब उस निवास स्थान में रहने वाले परिवार के सदस्यों पर शुक्र का साया हट जाता हैं, क्योंकि निवास स्थान के कच्चे भाग का प्रतिनिधित्व शुक्र ग्रह को माना गया हैं, जब घर में कच्चा स्थान नहीं होगा तो शुक्र का भी निवास नहीं होगा, जिससे औरतों के मान-सम्मान, स्वास्थ्य और रुपये-पैसों सहित सुख-शांति आदि पर खराब असर पड़ सकता हैं, इसलिए ऐसे घरों में शुक्र की चीजें जैसे-गाय पालना, मनीप्लांट या आलू आदि के पौधे लगाना श्रेयस्कर रहता हैं।





◆नया मकान बनाने से पहले कुण्डली के घरों में शनि की स्थिति का प्रभाव:-इंसान को अपना निवास स्थान बनाने से पहले अपनी जन्मकुण्डली का विश्लेषण करवाना चाहिए, उस विश्लेषण के द्वारा शनि का हाल क्या हैं, शनि के भावों गत हाल को जानने के लिए निम्नलिखित तरीके या माध्यम हैं।



लाल किताब के अनुसार किसी जातक की कुंडली में शनि यदि मेष राशि में हो, तो भी उसका फल अशुभ होता हैं।




द्वादश भावों में शनि के होने पर मिलने वाले मकान से सम्बंधित शुभ-अशुभ फल:-कुण्डली के बारह भावों में शनि अलग-अलग फल देता है। अतः मकान के निर्माण से पहले इससे संबंधित फलों का ध्यान अवश्य रखना चाहिए। कहते हैं कि बारह भावों में से कुछ में शनि के होने से मकान बनाना बेहद शुभ तो कुछ में अशुभ फल देता हैं। हालांकि किसी और के बनाए हुए मकान को खरीदने पर यह बात लागू नहीं होती।




शनि के पहले घर में होने पर:-जब इंसान की जन्मकुण्डली के पहले घर में शनि बैठा होने पर जब इंसान अपना मकान स्वयं बनाता हैं, तब मकान बनाने के बाद उस इंसान को रुपये-पैसों की तंगी का सामना करना पड़ सकता हैं। शनि के कमजोर होने के कारण इंसान को दूसरे के आगे हाथ फैलाने से दिनों-दिन उधारी होती जाती हैं और आखिर में एकदम बुरे हालात एवं गरीबी उसे घेर लेती हैं। लेकिन शनि के शुभ होने यानी मकर, कुंभ या तुला राशि में, प्रथम भाव में होने एवं सप्तम व दशम भाव के खाली होने पर अशुभ फल नहीं मिलता।




शनि के दूजे घर में होने पर:-जब इंसान की जन्मकुण्डली के दूजे घर में शनि बैठा होने पर इंसान को मकान बनाने की ओर प्रेरित करता हैं, इंसान को यह बात ध्यान रखनी चाहिए, की मकान जैसा भी बने, बनने देना चाहिए, इसके बनने से शनि शुभ हो जाता है और जातक की आर्थिक स्थिति मजबूत हो जाती है।




शनि के तीजे घर में होने पर:-जब इंसान की जन्मकुण्डली के तीजे घर में शनि बैठा होने पर इंसान के द्वारा स्वयं का मकान बनाना शुभ नहीं होता। ऐसे में तीन कुत्ते पालें। इससे मकान हर हाल में बनता ही है।




शनि के चौथे घर में होने पर:-जब इंसान की जन्मकुण्डली के चौथे घर में शनि बैठा होने पर इंसान जब अपना नवीन निवास स्थान को बनाता हैं, तब चौथे घर से सम्बन्धित रिश्तेदारों के कारक जैसे-सास, माता आदि के जीवन पर बुरा असर पड़ता हैं।




शनि यदि पांचवें घर में होने पर:-जब इंसान की जन्मकुण्डली के पांचवें घर में शनि बैठा होने पर इंसान के द्वारा बनाए मकान का बुरा असर उसके पुत्र-पुत्री के जीवन पर पड़ सकता है, लेकिन औलाद द्वारा बनाया गया मकान उसके लिए शुभ फलदायी रहेगा। ऐसा इंसान यदि मकान बनाना चाहे, तो शनि से संबंधित चीजें जैसे-भैंस आदि दान कर या जिंदा छोड़कर मकान की नींव रखें। ऐसे इंसानों के लिए अड़तालीस साल की उम्र के बाद ही मकान बनाना शुभ रहता हैं।





शनि यदि छठे घर में होने पर:-जब इंसान की जन्मकुण्डली के छठे घर में शनि बैठा होने पर इंसान के द्वारा उनतालीस वर्ष की उम्र के बाद मकान बनाना शुभ रहता है। इससे पहले मकान बनाने पर बेटियों के रिश्तेदारों पर बुरा असर पड़ सकता है।



शनि यदि सातवें घर में होने पर:-जब इंसान की जन्मकुण्डली के सातवें घर में शनि बैठा होने पर इंसान को बना-बनाया मकान मिलने की संभावना ज्यादा होती है। ऐसा मकान जातक को शुभ फल देता हैं।




शनि यदि आठवें घर में होने पर:-कुण्डली के आठवें घर में बैठा शनि मकान के लिए अशुभ माना जाता है। ऐसे इंसान के मकान का निर्माण शुरू होते ही, उसके परिवार में मौतें हो सकती हैं।




शनि यदि नवें घर में स्थित होने पर:-जब इंसान की जन्मकुण्डली के नवें घर में शनि बैठा होने पर इंसान की पत्नी के पेट में बच्चा होता हैं, उस समय यदि मकान बनाने का काम शुरू करवा देता हैं, तब उस मकान के निर्माण के कारण उस इंसान की मौत का कारण बन सकता हैं।



शनि यदि दशवें घर में होने पर:-जब इंसान की जन्मकुण्डली के दशवें घर में शनि बैठा होने पर इंसान जब तक मकान नहीं बनाता, तब तक उसे आमदनी होती रहेगी, लेकिन मकान बनाते ही उसकी आमदनी रुक सकती है। ऐसा इंसान यदि अपने चाचा से रुपये-पैसों को उधार लेकर मकान बनाए, तो लाभ मिल सकता है।




शनि यदि ग्याहरवें घर में होने पर:-जब इंसान की जन्मकुण्डली के ग्याहरवें घर में शनि बैठे होते हैं, तब इंसान  स्वयं के निवास स्थान के लिए बहुत हाथ-पैर मारते हैं, लेकिन मकान नहीं बना पाते हैं, जब वे अपनी उम्र के ढलान वाली स्थिति में होते हैं तब मकान का सुख मिलता हैं। इस तरह से पचपन वर्ष की उम्र होने पर के बाद अपना स्वयं का मकान बना पाता हैं।



यदि इंसान के द्वारा लंबे समय इन्तजार करने के बाद मकान बनाता हैं, वह मकान यदि दक्षिणी द्वार वाला हुआ, तो मानव को बीमारी की हालत में लंबे समय तक बिस्तर पर रहना पड़ सकता हैं।




शनि यदि बारहवें घर में होने पर:-जब इंसान की जन्मकुण्डली के बारहवें घर में शनि बैठे होते हैं, तब इंसान किसी भी तरह से मेहनत नहीं करने पर भी उसका निवास स्थान खुद ब खुद बन जाता है और वह बना हुआ मकान इंसान के जीवन में खुशहाली को भर देता हैं और सभी तरह के सुख-आरमों को दिलवाता हैं। 



जब शनि के साथ यदि सूर्य भी बारहवें घर में आ जाते हैं, तब भी किसी तरह का अशुभ प्रभाव नहीं पड़ता हैं और शुभ फल की प्राप्ति होती रहती हैं।

 




Friday, October 11, 2024

October 11, 2024

नीच भंग राजयोग के नियम एवं फायदे(Neechbhang Rajyoga ke niyam and benefits)

नीचभंग राजयोग के नियम एवं फायदे(Neechbhang Rajyoga ke niyam and benefits):-ज्योतिष शास्त्र में प्राचीन काल के ऋषि-मुनियों के द्वारा इंसान के जीवन पर ग्रहों के द्वारा कैसा असर पड़ता हैं, उन सबकी जानकारी अपने अनुभवों एवं ज्ञान के माध्यम से निकाली थी। उनके अनुसार ज्योतिष शास्त्र की जन्मकुण्डली में ग्रहों के मेल, दृष्टि एवं राशि परिवर्तन आदि के द्वारा बहुत सारे योगों का निर्माण होता हैं, इन ज्योतिषीय योगों में कुछ बुरे योग और कुछ अच्छे योग भी बनते हैं, जिनमें एक नीचभंग नामक राजयोग भी हैं, ऐसे तो जब कोई भी ग्रह अपनी राशि को छोड़कर नीच राशि में विराजमान हो जाते हैं, तब उसे नीच ग्रह कहा जाता हैं, इस तरह नीच राशि में ग्रह के जाने से उसके आचरण, व्यवहार, कर्म, गुण आदि के विचार से निम्न उस भाव के फल को कम कर देते हैं, इसलिए ज्योतिष शास्त्र में नीच ग्रह को बुरा माना जाता है। लेकिन ज्योतिष शास्त्र के नीचभंग जब अपना नीचतत्व प्रभाव त्याग देता हैं तब वह राजयोग के समान फल देने लगता हैं। नीचभंग राजयोग इंसान को अपने जीवन में किसी भी तरह से काबिल बना देता हैं, जिससे उसके जीवन में किसी के आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं पड़ती हैं, वह निरन्तर अपनी काबिलियत के दम से आगे की ओर बढ़ता जाता हैं, अपने पुरुषार्थ के बल एवं किस्मत के द्वारा हर क्षेत्र में अपनी विजय पताका को गाड़ता जाता हैं और अपने जीवन में आने वाली मुश्किलों से छुटकारा पाता रहता हैं, इस तरह नीचभंग राजयोग एक उत्तम राजयोग होता हैं, जिस किसी की जन्मकुण्डली में बनता हैं, उसकी तो चांदी हो जाती हैं। ग्रहों की उच्च व नीच राशियाँ:-नीचभंग राजयोग के बारे में जानने से पूर्व ग्रहों की उच्च और नीच राशियों के बारे में भी जानना जरूरी होता हैं, प्रत्येक ग्रह की उच्च एवं नीच राशियां होती हैं। इनमें भी इनके परमोच्च एवं परम् नीच बिन्दु होते हैं। ये दोनों बिन्दु परस्पर 180° दूर होते हैं। किसी ग्रह का उच्च बल वह है जो उसे अपनी उच्च राशि में स्थित होने अथवा समीप होने के कारण प्राप्त होता हैं। इसलिए ग्रहों की उच्च एवं नीच राशियाँ निम्नलिखित हैं।





Neechbhang Rajyoga ke niyam and benefits





उच्च राशि में स्थित ग्रह का अर्थ:-जब ग्रह अपने पर्याप्त रूप से बड़े क्षेत्र में घिरा हुआ होकर चारों तरफ भ्रमण राह पर अपनी गति के द्वारा पृथ्वी ग्रह के एक बार सबसे अधिक पास में आ जाते हैं, तब उनको अधिक बल की प्राप्ति होती हैं।पृथ्वी पर ग्रह का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता हैं। इसी कारण उच्च राशि बिन्दु पर स्थित ग्रहों को बली माना गया हैं। इस तरह ग्रह के द्वारा एक राशि में जितने अंशों तक के मान को भोगेगा वह उच्च राशि भोगांश या परमोच्चांश अवस्था में कहलाता है।





नीच राशि में स्थित ग्रह का अर्थ:-जब ग्रह अपने पर्याप्त रूप से बड़े क्षेत्र में घिरा हुआ होकर चारों तरफ भ्रमण राह पर अपनी गति के द्वारा पृथ्वी ग्रह के एक बार सबसे अधिक दूर चले जाते हैं, तब उनको बहुत ही कम बल की प्राप्ति होती हैं।पृथ्वी पर ग्रह का न्यूनतम प्रभाव पड़ता हैं। इसी कारण नीच राशि बिन्दु पर स्थित ग्रह निर्बल माना गया हैं। इस तरह ये दोनों परस्पर एक दूसरे से विपरीत होते हैं। उस उच्च भोगांश से विपरीत अर्थात् 180° पर या उस भाव से सातवें भाव की राशि में ग्रह स्थित होने पर उतने ही अंशों तक के मान को भोगेगा, तब उसे परम् नीच या परम् नीचांश अवस्था कहा जाता हैं।




ज्योतिष शास्त्र में नौ एवं बारह राशियों का निर्धारण किया गया हैं, इन नौ ग्रहों को बारह राशियों में उच्च एवं नीच राशि का स्थान दिया गया हैं।




सूर्य ग्रह:-सूर्य ग्रह मेष राशि में दश अंश तक उच्च राशि का एवं तुला राशि में दश अंश तक नीच राशि का माना जाता हैं।



 

चन्द्रमा ग्रह:-चन्द्रमा ग्रह वृषभ राशि में तीन अंश तक उच्च राशि का एवं वृश्चिक राशि में तीन अंश तक नीच राशि का माना जाता हैं।



मंगल ग्रह:-मंगल ग्रह मकर राशि में अठाईस अंश तक उच्च राशि का एवं कर्क राशि में अठाईस अंश तक नीच राशि का माना जाता हैं।


बुध ग्रह:-बुध ग्रह कन्या राशि में पन्द्रहरा अंश तक उच्च राशि का एवं मीन राशि में पन्द्रहरा अंश तक नीच राशि का माना जाता हैं।



गुरु ग्रह:-गुरु ग्रह कर्क राशि में पाँच अंश तक उच्च राशि का एवं मकर राशि में पाँच अंश तक नीच राशि का माना जाता हैं।



शुक्र ग्रह:-शुक्र ग्रह मीन राशि में सत्ताईस अंश तक उच्च राशि का एवं कन्या राशि में सत्ताईस अंश तक नीच राशि का माना जाता हैं।



शनि ग्रह:-शनि ग्रह तुला राशि में बीस अंश तक उच्च राशि का एवं मेष राशि में बीस अंश तक नीच राशि का माना जाता हैं।



राहु ग्रह:-राहु ग्रह मिथुन या वृषभ राशि में उच्च राशि का एवं धनु या वृश्चिक राशि में नीच राशि का माना जाता हैं।



केतु ग्रह:-केतु ग्रह वृश्चिक या धनु राशि में उच्च राशि का एवं वृषभ या मिथुन राशि में नीच राशि का माना जाता हैं।



नीचभंग राजयोग क्या हैं? (What are Neech Bhang Raja Yogas?):-ज्योतिष शास्त्र के द्वारा बनाई गई जन्म पत्रिका में ग्रह का नीच राशि में होना, सूर्य के प्रभाव में पास आकर ग्रह अस्त हो जाने से या ग्रहों का छठे, आठवें, बारहवें भाव में स्थित होने को बहुत बुरा एवं अनिष्टकारी माना जाता है। इन हालात में बैठ जाने से ग्रह जिस भाव के स्वामी या कारक होते हैं, अपने भाव संबंधी बातों में कमी लाता है।




जब भी नीच ग्रह का बुरापन दूर हो जाये तो नीच ग्रह निश्चित ही अच्छे नतीजे देते है। इसी प्रकिया को 'नीचभंग' कहा गया है और उससे सुखद राजयोग को पाना संभव है।




नीचभंग राजयोग का अर्थ:-जब कोई भी जन्मकुण्डली में किसी भी भाव में स्थित राशि में नीच ग्रह बैठा हो, उस ग्रह का बुरा असर समाप्त हो जावे और वह राजयोग की तरह फल प्रदान करने लगे तो उसे नीचभंग राजयोग कहते हैं।



कैसे बनता हैं नीच भंग राजयोग?(How Neech Bhang Raja Yoga is formed):-नीचभंग राजयोग की स्थिति शास्त्रवेत्ताओं ने केवल चन्द्रकुण्डली में देखने का ही उल्लेख किया है। लेकिन जन्मकुण्डली में कभी-कभी विशेष परिस्थितियों में वही ग्रह राजयोगप्रद हो जाता हैं। नीचभंग राजयोग निम्नलिखित स्थितियों में बनता हैं।




नीचङ्गतो जन्मनि यो ग्रहः स्यात्तद्राशिनाथोSपि तदुच्चनाथः।


स चन्द्रलग्नाद्यदि केन्द्रवर्ती राजा भवेद्धार्मिकचक्रवर्ती।। (जातक पारिजात ७/१३)



नीचस्थितो जन्मनि यो ग्रहः स्यात्तद्राशिनाथोSपि तदुच्चनाथः।

स चन्द्रलग्नाद्यदि केन्द्रवर्ती राजा भवेद्धार्मिकचक्रवर्ती।।

 (फलदीपिका ७/२६)


नीचस्थितो जन्मनि यो ग्रहः स्यात्तद्राशिनाथोSपि तदुच्चनाथः।

स चेद्विलग्नाद्यदि केन्द्रवर्ती राजा भवेद्धार्मिकचक्रवर्ती।। (सर्वार्थचिन्तामणि, नवमोSध्याय, श्लोक १३)



अर्थात्:-जन्म के समय जो ग्रह नीच राशि में स्थित हैं, उस नीच राशि का स्वामी और नीच राशिस्थ ग्रह की उच्च राशि का स्वामी लग्न या चन्द्रमा से केन्द्र में स्थित होता हैं, तब जातक धार्मिक चक्रवर्ती राजा होता हैं।




◆यदि कोई ग्रह नीच राशि में हो तथा इन स्थितियों जैसे-सूर्य के प्रभाव में पास आकर ग्रह अस्त हो जाने से या ग्रहों का छठे, आठवें, बारहवें भाव आदि में हो, तो उस ग्रह का नीच भंग होने से वह अच्छे नतीजे देता है।



◆चन्द्रमा से गिनने पर पहले, चौथे, सातवें, दशवें घर में नीच राशि का स्वामी हो या नीच राशि में बैठा हो और उस ग्रह का उच्च राशि स्वामी चन्द्रमा से पहले, चौथे, सातवें, दशवें घर में हो।



◆ग्रह नीच राशि में हो और उस राशि का या उस ग्रह की उच्च राशि का स्वामी जन्म लग्न से पहले, चौथे, सातवें, दशवें घर में हो या ग्रह नीच राशि में हो और उस नीच राशि का स्वामी एवं उस नीचस्थ ग्रह की उच्च राशि का स्वामी दोनों एक दूसरे से परस्पर पहले, चौथे, सातवें, दशवें घर में हो।



◆ग्रह जिस राशि में नीच का है, उस नीच राशि का स्वामी अपनी राशि में स्थित उस ग्रह को पूर्ण दृष्टि से देखे तो ग्रह का नीच भंग होकर उत्तम राजयोग की सृष्टि करता है। 



◆यदि जब लग्नकुंडली में भी ढूढ़ने पर अधिकांश नीच ग्रहों का नीचत्व भंग हो जाता है। नीचभंग राजयोग के बारे में अनेक तरह के मतमतान्तर होने से केवल चन्द्र कुंडली से विवेचना करते हैं।




◆जब भी चन्द्रकुण्डली के केन्द्र (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम व दशम भाव) या त्रिकोण भाव (पंचम व नवम भाव) में कोई नीच राशि का ग्रह होने पर नीचत्व भंग के लिए उसके राशि मालिक की स्थिति के बारे में सोचना चाहिए।




◆जब भी नीच राशि का ग्रह जिस किसी भाव में बैठा हो और उस भाव के राशि मालिक ग्रह केन्द्र (प्रथम ,चतुर्थ, सप्तम व दशम भाव) या त्रिकोण भाव (पंचम व नवम भाव) में उच्च राशि में होने पर नीच ग्रह का नीचत्व भंग होना माना जाता है, क्योंकि इस तरह की हाल में नीच राशि के ग्रह अपना नकारात्मक असर नष्ट होकर वह अपने राशि मालिक के उच्चत्व को ले लेगा इस तरह के हाल को नीच भंग होगा।




◆नीच ग्रह का राजयोग के समान सुखद श्रेष्ठत्व में बदलाव होंने वाले घटनाक्रम को तो नहीं बदलता, लेकिन उसके नतीजे अच्छे होने से जुड़ जाते है।




◆इस तरह से बदलाव का यश किसको दिया जाए उच्चस्थ ग्रह के उच्चत्व को या नीच ग्रह की ग्रहणशीलता को। 




◆जिस तरह कोई गरीब मनुष्य अपने हालात से उठ कर राजयोग भोगने के हालात में पहुंच जाए, तो इस तरह के बदलाव को सम्मान सहित राजयोग को मानना ही होगा और कारण नीचभंग होगा। ऐसे में राजयोग वाली कुंडली के ग्रहबलों का अवलोकन कर उनके मालिकों के हाल को समझना भी जरूरी होता है।




◆यह भी देखना होता है कि कुंडली में नीच ग्रह और नीच ग्रह स्थिति राशि का मालिक ग्रह कहां पर बैठा है और नीचभंग का कारण जो भी है, उन दोनों ही ग्रहों की दशा-अन्तर्दशा का असर भी समझना होगा। इसी से यह अनुमान होगा कि कौनसा ग्रह अच्छा असर दे रहा है और किसे दे रहा है जैसे-यह असर सूर्य की स्वराशि सिंह को मिलेगा या सूर्य की नीच राशि तुला को, तुला राशि का मालिक ग्रह शुक्र है? यह शुक्र यदि कुंडली के केंद्र (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम) भाव में बसा हुवा हो, तो सूर्य का नीचत्व भंग होना माना जायेगा।




◆दूसरी हालत में यह कि नीचभंग करने वाले शुक्र ग्रह की उच्च राशि के हालत पर राशि मालिक शनि है, क्योंकि शनि तुला में उच्च राशि का होता है। इस तरह शनि केन्द्र (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम व दशम भाव) या त्रिकोण भाव (पंचम व नवम भाव) में ठहर जाये तो नीचभंग हो जाता है।




◆तीसरी हालत में जो कोई भी नीच ग्रह खुद जिस राशि में उच्च राशि का होता है जैसे-सूर्य, मेष राशि में होता है, तो उसका राशि मालिक ग्रह मंगल कहीं केंद्र (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम व दशम भाव) या त्रिकोण भाव (पंचम व नवम भाव) में उच्च राशि का हो जाए तो भी सूर्य के नीचभंग के हालात बनेंगे।



नवमांश कुंडली में नीच भंग राजयोग:-यह नीच ग्रह सूर्य उच्च राशि का होकर ठहरा हुआ हो या फिर नीच ग्रह किसी दूसरे नीच ग्रह से देखा जा रहा हो अथवा नीच ग्रह का राशि मालिक शुक्र ग्रह वहां केन्द्र (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम व दशम भाव) या त्रिकोण भाव (पंचम व नवम भाव) में ठहरा हो, तो भी नीचभंग माना जाता है।




◆नीच ग्रह की नवमांश राशि का मालिक ग्रह कुंडली के केंद्र (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम व दशम भाव) या त्रिकोण भाव (पंचम व नवम भाव) में चर राशि मेष, कर्क, तुला व मकर होकर ठहरा हो तो भी नीचभंग बन जाता है।



◆नीच ग्रह का मालिक ग्रह केन्द्र (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम व दशम भाव) या त्रिकोण भाव (पंचम व नवम भाव) में उच्च राशि ग्रहों के होने पर सूर्य मेष, चन्द्रमा वृषभ, मंगल मकर, बुध कन्या, गुरु कर्क, शुक्र मीन एवं शनि तुला का होकर ठहरा होवे तो भी नीचभंग योग बनता है।




◆नीचभंग का राशि मालिक ग्रह केंद्र (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम व दशम भाव) या त्रिकोण भाव (पंचम व नवम भाव) में बैठकर नीचभंग तो करता ही है। साथ नीचभंग की राशि में भी जो ग्रह उच्च राशि का होता है।



◆नीचराशिस्थ ग्रह खुद जिस राशि में उच्च का होता है, उसका मालिक भी केंद्र (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम व दशम भाव) या त्रिकोण भाव (पंचम व नवम भाव) में बैठकर नीचभंग की प्रक्रिया में साथ देता है।



◆यदि उच्च राशि का मालिकग्रह एवं नीच राशि का मालिक ग्रह केंद्र (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम व दशम भाव) में बैठकर एक-दूसरे के आमने-सामने होने पर भी नीचभंग होता है।



◆यदि जो कोई भी अच्छे भाव में नीच राशि का मालिक ग्रह और उच्च राशि का मालिक ग्रह बैठे हो और उनसे देखे जा रहे होने पर भी नीचभंग राजयोग होता है।




◆यदि नीच ग्रह के राशि के मालिक ग्रह या नीचराशि का ग्रह जिस किसी भी राशि में उच्च राशि का होने पर और उसका राशि मालिक ग्रह केंद्र (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम व दशम भाव) या त्रिकोण भाव (पंचम व नवम भाव) में होने पर भी नीचभंग राजयोग बनता है।




◆सम्बन्धित नीच राशि का ग्रह सूर्य जिसकी अपनी उच्च राशि मेष का मालिक ग्रह मंगल यदि चन्द्रकुण्डली के केंद्र (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम व दशम भाव) या त्रिकोण भाव (पंचम व नवम भाव) में मकर राशि में उच्च राशि का हो जाये तो भी नीचभंग सबसे अच्छा राजयोग बनता है।




उपरोक्त तरह से हर कोई ग्रह जो कही पर भी नीच राशि का हो और उसकी खुद की उच्चता की राशि का मालिक ग्रह केंद्र (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम व दशम भाव) या त्रिकोण भाव (पंचम व नवम भाव) में उच्च राशि का होकर बैठे तो, अच्छा नीचभंग राजयोग के हालात को बनाने के समर्थ होता है।



◆उच्चनाथों के क्रम में सूर्य का उच्चनाथ मंगल होता है।


◆उच्चनाथों के क्रम में चन्द्रमा का उच्च नाथ शुक्र ग्रह होता है।


◆उच्चनाथों के क्रम में गुरु ग्रह का उच्च नाथ चन्द्रमा ग्रह होता है।


◆उच्चनाथों के क्रम में शुक्र ग्रह का उच्च नाथ ग्रह गुरु ग्रह होता है।


◆उच्चनाथों के क्रम में शनि ग्रह का उच्च नाथ ग्रह शुक्र ग्रह होता है।



◆ग्रहों के नीचत्व के साथ उसके उच्च नाथ व उसकी राशि के मालिक की उच्चता और उस राशि के मालिक की राशि में उच्चस्थ होने वाले ग्रह की केंद्र (प्रथम, चतुर्थ, सप्तम व दशम भाव) या त्रिकोण भाव (पंचम व नवम भाव) में भी ढूढ़े।



इस तरह के हालात को चन्द्र कुंडली के अलावा लग्नकुंडली में भी जांच कर अपने अनुभवों को समृद्ध करना चाहिए।



नीचभंग राजयोग के नतीजे या फल (Results or results of Neechbhang Raja Yoga):-जब किसी भी इंसान की जन्मकुण्डली में नीचभंग राजयोग बनता हैं, तो निम्नलिखित अच्छे नतीजे प्राप्त होते हैं।




◆इंसान का नाम एवं शोहरत संसार के प्रत्येक कोने में फैलता हैं।


◆इंसान रुपये-पैसों, जमीन-जायदाद से पूरी तरह सम्पन्न होता हैं।


◆इंसान के पास अपार वैभव सम्पदा होती हैं।


◆इंसान का यश चारों ओर फैलता हैं।


◆इंसान के द्वारा किसी दूसरे की मदद करने पर उसका अहसान जीवन भर मानते हुए बड़ाई करते हैं।


◆इंसान का सामाजिक एवं धार्मिक जीवन में गुणगान होता हैं।



◆इंसान अपने जीवन काल में भौतिक सुख-सुविधाओं को भोगते हुए पूर्ण ऐशोआराम को प्राप्त करने वाला होता हैं।



◆नीचभंग राजयोग मनुष्य की जन्मकुंडली में बनने से मनुष्य राजयोग की तरह सब प्रकार के सुख को पाने वाला होता है।


◆मनुष्य जीवन में किसी बड़े सम्मानित पद की गरिमा को बढ़ाते हैं।


◆मनुष्य को जीवनकाल में सभी तरह से एवं सभी क्षेत्रों में तृप्ति मिल जाती हैं।



◆मनुष्य मद में मस्त हाथी की तरह एकछत्र होकर अपने जीवन को भोगता हैं।



उदाहरणस्वरूप:-एक जातक की जन्मकुंडली के आधार पर नीचभंग राजयोग का विश्लेषण करने पर इस योग के बारे में जान सकते हैं, जो जातक का जन्म विवरण निम्नलिखित हैं।



जातक का जन्म दिन या तारीख:-11-10-1942।

समय:-शाम के 4:00 बजे।

स्थान:-दिल्ली।


जातक की जन्मकुंडली में ग्रह स्थिति:-जातक का लग्न कुंभ राशि में केतु, चौथे भाव में वृषभ राशि का शनि, छठे भाव में कर्क राशि का गुरु, सातवें भाव में सिंह राशि का राहु, आठवें भाव में कन्या राशि के सूर्य, मंगल, बुध व शुक्र और नवें भाव में तुला राशि का चन्द्रमा स्थित हैं। 




जातक की जन्मकुंडली के चौथे भाव के स्वामी एवं नवें भाव के स्वामी शुक्र अपनी नीच राशि कन्या में आठवें भाव में बैठे हैं।



जातक को सभी तरह के ऐशोआराम एवं सुख-सुविधाओं से रहित, किस्मत का साथ न मिलना और जन सामान्य में पैठ नहीं होना आदि नतीजों की प्राप्ति होने चाहिए थी।




लेकिन शुक्र की उच्च मीन राशि का स्वामी बृहस्पति चन्द्र से दशम् स्थान अर्थात् केन्द्र में होकर नीच भंग राजयोग की सृष्टि कर रहा है।




नीचभंग राजयोग से जीवन में मिली अपार ख्याति:-जिससे जातक धनवान, रुपये-पैसों से युक्त लक्ष्मीजी की अनुकृपा, किसी भी विषय को तत्काल समझ लेने की बौद्धिक शक्ति से सम्पन्न एवं समस्त जगत में जन साधारण को पसंद आने वाला हैं। जन साधारण भी जातक के अच्छे गुणों को आदर की दृष्टि से देखने वाले एवं मोम संग्रहालय में भी जातक का प्रतिरूप विदेश में स्थान पा चुका हैं।


Neech bhang raj yog

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सूर्य का नीच भंग कैसे होता हैं


Monday, September 16, 2024

September 16, 2024

विश्वनाथाष्टकम् स्तोत्रं अर्थ सहित और लाभ (Vishwanathashtakam Stotram with meaning and benefits)

विश्वनाथाष्टकम् स्तोत्रं अर्थ सहित और लाभ(Vishwanathashtakam Stotram with meaning and benefits):-श्रीकाशीविश्वनाथाष्टकं स्तोत्रं को महान ऋषिवर श्रीमहर्षि व्यासजी ने रचना की थी। इस स्तोत्रं में आठ श्लोकों की एक माला में पिरोया गया हैं। इन आठ श्लोकों की माला के द्वारा श्रीभूतभावन भोलेनाथजी के गुणों के गुणगान के बारे में जानकारी बताई गई हैं, जिससे मनुष्य इस स्तोत्रं का वांचन या श्रवण करके भोलेनाथजी को खुश कर सके और उनकी अनुकृपा प्राप्त हो सके। इस स्तोत्रं के अतुलीय प्रभाव से मनुष्य का जीवन ऊंचाइयों की बुलन्दी पर चढ़ पावे।



Vishwanath Ashtakam Stotram with meaning and benefits



अथ श्रीकाशीविश्वनाथाष्टकम् स्तोत्रम् अर्थ सहित:-श्रीकाशी विश्वनाथाष्टकं स्तोत्रं का वांचन करने से पूर्व इसके श्लोकों के अर्थ को जान लेना चाहिए, जिससे इस स्तोत्रं के श्लोकों में वर्णित महत्त्व को समझा जा सके। इसलिए मैं अपनी भाषा में इस स्तोत्रं का अर्थ सहित विवेचन कर रहा हूँ, आप इस तरह अर्थ को जानकर इस स्तोत्रं से मिलने वाले लाभ को प्राप्त करें-




गङ्गातरंगरमणीयजटाकलापं


गौरीनिरन्तरविभूषितवामभागम्।


नारायणप्रियमनंगमदापहारं


वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्।।१।।


अर्थात्:-हे काशीविश्वनाथ जी! आपके गुथे एवं लिपटे हुए बालों की लटों में गङ्गा के पानी की लहर या हिलोर करती हुई बहुत ही सुंदर शोभायमान होती हैं। गौरी हमेशा बाएं भाग की तरफ शोभित होती हैं। जो भगवान नारायण को प्यारे होते हैं, पूर्ण भरी हुई वाराणसी नगरी के स्वामी हैं, देवता और भक्त के बीच में एक घनिष्ठ सम्बन्ध को रखने वाले विश्व के स्वामी शिवजी हैं। 


 

वाचामगोचरनेकगुणस्वरुपं


वागीशविष्णुसुरसेवितपादपीठम्।


वामेनविग्रहवरेणकलत्रवन्तं


वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्।।२।।


अर्थात्:-हे काशीविश्वनाथ जी! आपकी वाणी में मधुरता हैं, जिनका स्वरूप अनेक तरह के अच्छे या भलाई को करने के लिए तत्पर रहता हैं, जो बोलने में चतुर हैं, आपका स्थान उच्च हैं, पीठ पर आसीन उनके चरणों की सेवा विष्णु भगवान आदि देवता भी करते हैं, आपके बाएँ भाग में आपकी भार्या का स्वरूप होता हैं। पूर्ण भरी हुई वाराणसी नगरी के स्वामी हैं, देवता और भक्त के बीच में एक घनिष्ठ सम्बन्ध को रखने वाले विश्व के स्वामी शिवजी हैं। 



भूताधिपं भुजगभूषणभूषितांगं


व्याघ्राजिनांबरधरं जटिलं त्रिनेत्रम्।


पाशांकुशाभयवरप्रदशूलपाणिं


वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्।।३।।


अर्थात्:-हे काशीविश्वनाथ जी! आप भूत-पिशाच के स्वामी हैं, आप अपनी भुजा को फेरकर गले में आभूषण के रूप में नाग को धारण करने वाले हैं, आपकी समस्त देह के अंग अलंकृत होते हैं, बाघ की चर्म को अपने शरीर पर धारण करने वाले एवं आसन के रूप में उपयोग में लेने वाले हैं, आप कठिन दुर्बोध तीन नेत्रों के स्वामी हैं, पूर्ण भरी हुई वाराणसी नगरी के स्वामी हैं, देवता और भक्त के बीच में एक घनिष्ठ सम्बन्ध को रखने वाले विश्व के स्वामी शिवजी हैं। 



शीतांशुशोभितकिरीटविराजमानं


भालेक्षणानलविशोषितपंचबाणम्।


नागाधिपारचितभासुरकर्णपुरं


वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्।।४।।


अर्थात्:-हे काशीविश्वनाथ जी! आपके मुकुट से शीतल किरणों के द्वारा समस्त जगह पर प्रकाशमान होता हैं, जिससे उनकी छवि बहुत ही शोभायमान होती हैं, जिनके भाल पर त्रिशूल का चिह्न रखने वाले एवं अग्नि की तेज ज्वाला से युक्त पंच बाणों से विशोषित हैं। हे नागों के स्वामी! कर्णपुर नामक नगर में वास करने वाले हैं, आप बहुत ही पवित्रता से उज्ज्वल हैं, पूर्ण भरी हुई वाराणसी नगरी के स्वामी हैं, देवता और भक्त के बीच में एक घनिष्ठ सम्बन्ध को रखने वाले विश्व के स्वामी शिवजी हैं। 



पंचाननं दुरितमत्तमतदङ्गजानां


नागान्तकं दनुजपुंगवपन्नागानाम्।


दावानलं मरणशोकजराटवीनां


वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्।।५।।


अर्थात्:-हे विश्वनाथ जी! आप पांच मुख वाले देव को उनके द्वारा अविवेकी या पाप कर्म करने पर दंडित करने वाले हैं, दनु के गर्भ से उत्पन्न दानव के भय से मुक्त करने के लिए गले में नागों को धारण करते हुए बैल या साँड़ की सवारी करके मुक्त करवाने वाले हो, दावाग्नि के तीव्र ज्वाला के दुःख से होने वाले मरण से बचाव करने वाले हो। पूर्ण भरी हुई वाराणसी नगरी के स्वामी हैं, देवता और भक्त के बीच में एक घनिष्ठ सम्बन्ध को रखने वाले विश्व के स्वामी शिवजी हैं। 



तेजोमयं सगुणनिर्गुणमद्वितीयं


आनन्दकन्दमपराजितमप्रमेयम्।


नागात्मकं सकलनिष्कलमात्मरुपं


वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्।।६।।


अर्थात्:-हे विश्वनाथ जी! आप तेज या शक्ति से युक्त हो अच्छे गुणों के साथ गुणों से रहित दूसरे रूप को भी रखने वाले हो। जिस तरह से गूदेदार एवं बिना रेशे की जड़ होती हैं, उसी तरह का स्वरूप धारण करते हुए खुशी से युक्त हों। आप नागों से युक्त होकर समस्त जगहों पर कलारहित स्वयं में रमण करने वाले हो। पूर्ण भरी हुई वाराणसी नगरी के स्वामी हैं, देवता और भक्त के बीच में एक घनिष्ठ सम्बन्ध को रखने वाले विश्व के स्वामी शिवजी आप हो।



रागादिदोषरहितं स्वजनानुरागं


वैराग्यशान्तिनिलयं गिरिजासहायम्।


माधुर्यधैर्यसुभंग गरलाभिरामं


वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्।।७।।


अर्थात्:-हे काशीविश्वनाथ जी! आपमें सबके प्रति किसी भी तरह दोष नहीं रखते हुए एवं बिना किसी तरह का भेदभाव नहीं रखते हुएअपने भक्त लोगों से प्रेम करते हो, हिमालय पर्वतराज की तनुजा की सहायता करने वाले या साथी एवं विरक्ति के लिए मन की स्थिरता को पाने के लिए एकांत वासी जगह पर वास करने वाले हो, आप अपने चित्त की दृढ़ता या स्थिरता या धीरता को मधुर भाव से शोभा से युक्त ग्रहण करने वाले हो, विष या हलाहल को भी आप अपने गले में ग्रहण करने वाले मोहक स्वरूप वाले हो। पूर्ण भरी हुई वाराणसी नगरी के स्वामी हैं, देवता और भक्त के बीच में एक घनिष्ठ सम्बन्ध को रखने वाले विश्व के स्वामी शिवजी आप हो।



आशां विहाय परिहृत्य परस्य निन्दां


पापे रतिं च सुनिवार्य मनः समाधौ।


आदाय हृत्कमलमध्यगतं परेशं


वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम्।।८।।


अर्थात्:-हे काशीविश्वनाथ जी! आप पर जो कोई भी विश्वास रखते हुए अपनी चाहत को त्याग कर आपसे उम्मीद करते हैं, उनकी उम्मीद को पूर्ण करने वाले हो, दूसरों की बुराई या झूठ मुठ दोष निकलना, धर्म एवं नीति विरुद्ध किया जाने वाले आचरण में रत होने के भाव रखते हैं, उनके मन में समस्त विकारों का अंत करके उनकी आत्मा की तृप्ति करते हुए आनन्द प्रदान कर देते हो, आप उस भक्त के मन को ब्रह्म पर केंद्रित करके उसमें किसी से कुछ लेने या ग्रहण करने का भाव को जागृत कर देते हो, आप सबसे श्रेष्ठ प्रभुओं के प्रभु का नाम सबका और सबसे बढ़कर स्वामी हो। पूर्ण भरी हुई वाराणसी नगरी के स्वामी हैं, देवता और भक्त के बीच में एक घनिष्ठ सम्बन्ध को रखने वाले विश्व के स्वामी शिवजी आप हो।



श्रीविश्वनाथाष्टकं स्तोत्रम् फलश्रुति:-श्रीविश्वनाथाष्टकं स्तोत्रम् फलश्रुति में स्तोत्रम् के वांचन करने से मिलने वाले लाभ के बारे में जानकारी मिलती हैं, जिससे मनुष्य इस स्तोत्रम् का वांचन करके या दूसरों के द्वारा सुनकर इस स्तोत्रम् के लाभों को पा सके।



वाराणसीपुरपतेः स्तवनं शिवस्य


व्याख्यातमष्टकमिदं पठते मनुष्यः।


विद्यां श्रियं विपुलसौख्यमनन्तकीर्तिं


सम्प्राप्य देहविलये लभते च मोक्षम्।।


अर्थात्:-जो कोई मनुष्य श्रीविश्वनाथाष्टकं स्तोत्रं को विश्वास के साथ एवं मन में किसी तरह के बुरे विकारों नहीं रखते हुए जो भी भक्तिभाव को रखते हुए शिवजी के स्वरूप के गुणगान को श्रवण करते है या वांचन करते हैं, उन भक्त मनुष्य को अपने जीवनकाल में उच्च ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है और वह मनुष्य विद्वान बन जाते हैं। बहुत सारे रुपये-पैसों को अर्जित करके धनवान बन जाते हैं, उन मनुष्य का नाम समस्त जगहों पर फैल जाता हैं एवं समस्त प्रकार के सुख-समृद्धि से जीवन को जीते हुए व्यतीत करते हैं। फिर आखिर में जन्म-मृत्यु के बंधन से मुक्त होकर मोक्षधाम को पा लेते हैं।



विश्वनाथाष्टकमिदं यः पठेच्छिवसन्निधौ।


शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते।।


अर्थात्:-श्रीविश्वनाथाष्टकं स्तोत्रं को जो मनुष्य पढ़ते हैं, वे मनुष्य शिवलोक में शिवजी के साथ रहते हुए उनके चरण कमलों की सेवा करने का मौका मिलता हैं।



 ।।इति श्रीमहर्षिव्यासप्रणीतं श्रीविश्वनाथाष्टकं सम्पूर्णम्।।



अथ श्रीकाशी विश्वनाथाष्टकम् स्तोत्रम् के वांचन से मिलने वाले लाभ एवं महत्त्व (Benefits and importance of reading Sri Kashi Vishwanath Ashtakam Stotram):-श्रीकाशी विश्वनाथाष्टकम् स्तोत्रम् के श्लोकों को उच्चारण करते रहने पर मनुष्य को बहुत सारे लाभ प्राप्त होते हैं, जो इस तरह हैं-



◆उच्चज्ञान की प्राप्ति हेतु:-शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रवृत्तिधारी को अपने ज्ञान के क्षेत्र में बढ़ोतरी होती हैं और वे सब तरह से विद्वान बन जाते हैं।



◆धनवान बनने हेतु:-जो मनुष्य इस स्तोत्रम् के श्लोकों का वांचन करते हैं, वे अधिक रुपयों-पैसों को कमाकर धनवान बन जाते हैं।



◆प्रसिद्धि को पाने हेतु:-मनुष्य की चाहत होती हैं, की उसकी प्रसिद्धि चारों तरफ हो जावे, इसके लिए मनुष्य को इस स्तोत्रम् का वांचन करना चाहिए।



◆समस्त जीवनकाल की जरूरत को पूरा करने हेतु:-मनुष्य के जीवनकाल में अनेक तरह की भौतिक एवं शारिरिक आवश्यकताओं होती हैं। इन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मनुष्य दिन-रात मेहनत करते हैं, तब भी वे जरूरतें पूर्ण नहीं हो पाती हैं। तब उन मनुष्य को नियमित रूप से श्रीकाशी विश्वनाथाष्टकम् स्तोत्रम् के श्लोकों का पाठन शुरू कर देना चाहिए, जिससे विश्वनाथ जी का आशीर्वाद मिल जाता हैं।



◆मोक्षधाम को पाने हेतु:-मनुष्य का लक्ष्य होता हैं कि जन्म-मरण के बंधन से छुटकारा मिल जावें, तो मनुष्य को इस स्तोत्रम् के श्लोकों का वांचन शुरू कर देना चाहिए, जिससे जगत में आने व जाने से छुटकारा मिल जावें और उस मनुष्य का उद्धार हो जावें।