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Saturday, May 22, 2021

श्री राम स्तुति अर्थ सहित (Shri Ram stuti with meaning)


श्री राम स्तुति अर्थ सहित (Shri Ram stuti with meaning):-श्रीराम स्तुति में भगवान श्रीरामचन्द्रजी के बारे में उनके गुणों, स्वभाव, बन्धुओं की रक्षा करना, सभी पर अपनी समान दृष्टि भाव रखने की प्रवृति, सभी पर अपनी कृपा की छांव में रखने के प्रवृति, उनके शरीर के रूप-रंग, आकृति, स्वभाव, दैत्यों का संहार करने वाले, शरीर पर तरह-तरह के रत्नों से जड़ित आभूषणों को धारण किये और माता सीताजी गौरी मां की पूजा करके पूजा स्वरूप वरदान मिलने से खुश दिखाई देती हुई हैं। इसलिए श्रीराम स्तुति का स्तुतिगान करने से सभी तरह से भगवान रामजी के पूरे दर्शन की प्राप्ति होती है। मनुष्य को नियमित रूप से श्रीरामजी की स्तुति करनी चाहिए, जिससे मनुष्य को अपने जीवन में खुशहाली की प्राप्ति हो सके और इस भवसागर से आने-जाने से छुटकारा मिल सके।




Shri Ram stuti with meaning




                 ।।श्रीराम वन्दना।।


श्रीरामचन्द्र रघुपुङ्ग व राजवर्य राजेन्द्र राम रघुनायक राघवेश।


राजाधिराज रघुन्दन रामचन्द्र दासो अहमद्य भवतः शरणागतो अस्मि।।



              ।।अथ श्री राम स्तुति।।



श्री राम स्तुति श्रीरामचंद्र कृपालु, भजु मन हरण भव भय दारुणं।


नवकंज-लोचन, कंजमुख, कर-कंज पद कंजारुणं।।



कंदर्प अगणित अमित छबि, नवनील-नीरद सुंदरं।



पट पीत मानहु तड़ित रुचि शुचि नौमी जनक सुतावरं।।



भजु दीनबंधु दिनेश दानव-दैत्यवंश-निकन्दनं।


रघुनंद आनँदकंद कोशलचंद दशरथ-नन्दनं।।



सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं।


आजानुभुज शर-चाप-धर, संग्राम-जित-खरदूषणं।।



इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-रंजनं।


मम हृदय-कंज निवास कुरु, कामादि खल-दल-गंजनं।।



मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुन्दर साँवरो।


करुना निधान सुजान सीलू सनेहु जानत रावरो।।



एहि भाँति गौरी असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषीं अली।


तुलसी भवानिहि पूजि पुनि-पुनि मुदित मन मंदिर चली।।



सोरठा:-


जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।


मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे।।



            ।।इति श्रीराम स्तुति।।


   ।।बोलो सियावर रामचन्द्रजी की जय।।


        ।।बोलो सीताराम सीताराम।।



श्रीराम स्तुति अर्थ सहित:-श्रीराम स्तुति के बारे में पूरी जानकारी मिलती है, की इनका स्वभाव, रूप-रंग, असुर पर विजय और सीताजी के द्वारा पूजा करके खुशी आदि के बारे में पूरी जानकारी मिलती हैं।



श्री राम स्तुति श्रीरामचंद्र कृपालु भजु मन हरण भव भय दारुणं।


नवकंज-लोचन, कंजमुख, कर-कंज पद कंजारुणं।।



अर्थ:-हे मेरे अथिर मन तु सभी पर अपनी कृपा करने वाले और सब पर समान दृष्टि रखने वाले श्रीरामचन्द्र जी की भक्ति भाव और उनका गुणगान कर, वे जगत के आने-जाने की योनि के भयंकर कष्ट के डर निवारण करने वाले हैं, श्रीरामचन्द्रजी के चक्षु नये बने हुए पंकज पुष्प की तरह कोमल हैं, मुख-हस्त और उनके चरण भी लाल पंकज पुष्प के समान हैं।



कंदर्प अगणित अमित छबि, नवनील-नीरद सुंदरं।


पट पीत मानहु तड़ित रुचि शुचि नौमी जनक सुतावरं।।



अर्थ:-श्रीरामचन्द्रजी के शरीर की सुंदरता की छवि अगणित सुंदर एवं आकर्षक मन को मोहित करने वाले कामदेवों से भी ज्यादा है। श्रीरामचन्द्रजी की देह नए गहरे आसमानी रंग के या नील कमल के पौधे के रंग के जल से पुरीपूर्ण बादल रूप के समान सुंदर रंग है, पीले आकाश जैसा बादल रूप शरीरों में मानों तड़ित के समान चमक रहा है, ऐसे पवित्र जानकी के पति श्रीरामजी को मैं नमस्कार करता हूँ। 



भजु दीनबंधु दिनेश दानव-दैत्यवंश-निकन्दनं।


रघुनंद आनँदकंद कोशलचंद दशरथ-नन्दनं।।



अर्थ:- हे मेरे चित से भटके हुए मन, दिनों के बन्धु, भास्कर की अग्नि के समान तेजस्वी, राक्षस एवं दानवों के वंश का पूरी तरह नाश करने वाले, आनँदकंद, कौशल देशरूपी आकाश में निर्मल सोम के समान श्री दशरथ नंदन श्रीराम जी का भजन कर।



सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारू अंग विभूषणं।


आजानुभुज शर-चाप-धर, संग्राम-जित-खरदूषणं।।



अर्थ:-भिन्न-भिन्न तरह के रत्नो से जड़ा हुआ मुकुट पर जो मस्तक पर धारण किये हुए हैं, जिनके कानों में कुंडल धारण किये हैं, सुन्दर तिलक भाल पर सुशोभित हो रहा है और शरीर के सभी अंगों पर आभूषण से सजित है, जो कि बहुत ही मन को आकर्षित करने वाला रूप हैं। भुजाएँ घुटनों तक लम्बी है, हाथों में धनुष-बाण को लिए हुए हैं, खर-दूषण दैत्य को संग्राम में पराजित करके विजय प्राप्त की है, उन श्रीरामजी को में वंदन करता हूँ।



इति वदति तुलसीदास शंकर-शेष-मुनि-मन-रंजनं।


मम हृदय-कंज निवास कुरु, कामादि खल-दल-गंजनं।।



अर्थ:-जो मुनियों, शेष और भोलेनाथ के मन को खुश करने वाले हैं, काम, क्रोध, लोभादि शत्रुओं को नष्ट करके अच्छे भाव को जाग्रत करने वाले हैं, तुलसीदासजी अरदास करते हैं, की वे श्री रघुनाथजी मेरे हृदयकमल में हमेशा रहे।  



मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुन्दर साँवरो।


करुना निधान सुजान सीलू सनेहु जानत रावरो।।



अर्थ:-जिसमें तुम्हारा मन आकर्षित हो गया एवं उसकी छवि तुम्हारे मन के हृदय में घर कर चुकी हैं, वही स्वभाव से सुंदर सांवला वर(श्रीरामचंद्रजी) तुमको प्राप्त होंगे। वह दया के सागर और सुजान अर्थात सभी तरह को जानने व सभी जगह पर निवास करने वाले हैं, तुम्हारे शील या मर्यादा और प्रेम-अनुराग को को जानने वाले है।



एहि भाँति गौरी असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषीं अली।


तुलसी भवानिहि पूजि पुनि-पुनि मुदित मन मंदिर चली।।



अर्थ:-इस तरह श्रीगौरी जी का आशीर्वाद सुनकर जानकीजी सहित समस्त सखियाँ हृदय में हर्षित हुई। तुलसीदासजी कहते हैं-सीताजी मन से बहुत खुश होती है, क्योंकि माता भवानीजी को बार-बार पूजकर खुशी के साथ अपने राजमहल की ओर चल पड़ती हैं।



सोरठा:-


जानि गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।


मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे।।



अर्थ:-गौरी जी को अनुकूल जानकर सीताजी के हृदय में जो खुशी हुई उसको व्यक्त नहीं कि जा सकती हैं, जो उनको खुशी हुई उनके लिए तो सबकुछ उन्होंने प्राप्त कर लिया हैं। सुन्दर मंगलों के मूल उनके बायें अंग भी फड़कने लगे थे, उनको अपने मन की कामना की सिद्धि का संकेत मिल रहा था।


        

              ।।इति श्रीराम स्तुति।।



     ।।बोलो सियावर रामचन्द्रजी की जय।।



        ।।बोलो सीताराम सीताराम।।