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Monday, November 16, 2020

रत्नों के बारे में जानकारी एवं उनका प्रभाव



रत्नों के बारे में जानकारी एवं उनका प्रभाव


रत्नों के बारे में जानकारी एवं उनका प्रभाव :-प्राचीनकाल से मानव पत्थरों का उपयोग अपने औजारों के रूप में करता रहा है। जब प्राचीनकाल में मनुष्य की दृष्टि रंग-बिरंगे पत्थर पर पड़ी तो वें उन्हें गहनों के रुप मे उपयोग करने लगे। फिर बादमे इन रंग-बिरंगे पत्थरों को प्रमुख मानकर उन्हें रत्न की उपाधि से जानने लगे।


 कुल 84 रत्न ही प्रमुख माने गये है, इनमें से कुछ रत्न कीमती या प्राप्त नहीं है। प्राप्त रत्नों में से कुछ रत्नों को मुख्य रत्न माना जाता है, वे नौ है जो दिखने में सुंदर होने के साथ विशेष प्रभाव वाले हैं। उनमें यह प्रभाव उनसे निकलने वाली किरणों से होता है जो सूर्य किरणों के पड़ने से बदलती है।ज्योतिष शास्त्र में रत्नों का गुणगान का विवरण मिलता हैं।इन मुख्य रत्नों के अलावा कुछ उपरत्न भी प्रभावशाली माने जाते है 


ज्योतिष के अनुसार राशि और ग्रह-नक्षत्र के अनुकूल रत्न धारण करने से शारीरिक, मानसिक अनुकूलता प्राप्त होने के साथ भविष्य की सुंदर राय खुलती है। आयुर्वेद में रत्नों की भस्मों के द्वारा रोग निवारण में किया जाता है। 


उतपत्ति रत्नों की:- निम्नलिखित कथाओं में बताया गया है:


प्रथम कथा:-राक्षसराज बलि को मारने के लिए भगवान विष्णु जी ने वामन अवतार लेकर बलि राक्षसराज का घमंड चूर किया था। ब्राह्मण रूप धारण भगवान विष्णु जी ने वचन स्वरूप बलिराज से दक्षिणा में तीन पग जमीन मांगी। तो बलिराज ने वचन स्वरुप विष्णु जी को  तीन पग जमीन नहीं दे सके। भगवान विष्णु जी ने विराट रुप धारण करके एक पग में पृथ्वी को, दूसरे पग में आकाश को नाप लिया और तीसरे पग को बलिराज ने अपने सिर पर भगवान विष्णु जी को रखने के लिये कहा और विष्णुजी ने अपने चरण स्पर्श से राक्षसराज बलि का सारा शरीर रत्नों का बन गया,तब देवराज इंद्र ने उस पर वज्र का चोट की इस प्रकार टूटकर बिखरे हुए बलि के रत्नमय खण्डों को भगवान शिव ने अपने त्रिशूल में धारण कर लिया और उसमें नवग्रह और बारह राशियों का प्रभुत्व का आधार करके पृथ्वी पर गिरा दिया। पृथ्वी पर गिराये गये इन खण्डों से ही विभिन्न रत्नों की खाने पृथ्वी के गर्भ  में बन गयी।


दूसरी कथा:-देवता और असुरों ने समुद्र मंथन करके 14 रत्नों की प्राप्ति की,उनमे से लक्ष्मी जी,उच्चैश्रवा,ऐरावत आदि के कौस्तुभ मणि को शिव जी ने अपने कण्ठ में ग्रहण किया। इससे निकले अमृत के लिए देवता और राक्षसों के बीच युद्ध होवा। असुरगण अमृत कलश को लेकर भाग गये। इस प्रकार युद्ध में से अमृत कलश में से कुछ बूंदे छीना-झपटी में जहाँ-जहाँ पर गिरी वहा सूर्य की किरणों के द्वारा सोखकर वे अमृतकण प्रकृति  की रेत में मिलने से विविध प्रकार से रत्नों में बदल गयी।


रत्नों का ज्योतिषीय दृष्टि से महत्त्व:-  


1. माणिक्य रत्न:- सूर्य रत्न,अंग्रेजी नाम रूबी। लाल केशरिया रंग का होता है।


राशि वालों के लिए पहनना:-सिंह राशि को पूर्णफल और मेष, मिथुन,कर्क, कन्या,वृश्चिक राशि को सामान्य शुभफल हैं।


मात्रा या वजन:- 8-10 रत्ती, सोना-चांदी की अंगूठी में जड़वा कर पहनना चाहिए।


विधान या विधि:-रविवार को प्रातःऊँ.ह्रां ह्रीं ह्रौं स:सूर्याय नमः मन्त्र का जाप करके सूर्य को अर्ध्य देने के बाद अनामिका अंगुली में धारण करके गेहूं, ताम्रपत्र, लाल वस्त्र का दान करना चाहिए।


फायदा:-माणिक्य पहनने से गरीबी मिटती है, बेकार व्यक्ति को धंधा मिलता है।व्यापार में बढ़ोतरी होती है।अन्न-धन की कमी नहीं होती है व शरीर में ताजगी,ताकत,तेज की बढ़ोतरी होकर, खून का दोष ठीक होकर, खून की बढ़ोतरी होती है।


2.मोती:-चन्द्रमा का रत्न, अंग्रेजी में नाम पर्ल। ये 9-10 प्रकार का सफेद रंग का होता हैं।


राशि वालो के लिये पहनना:-कर्क,मिथुन, कन्या राशि वालों को पहनना शुभ होता है। ऐसे तो कोई भी पहन सकता है।


मात्रा या वजन:-7-8 रत्ती का, चांदी की अंगूठी में जड़वाकर पहनना चाहिए।


विधान या विधि:- सोमवार को को कच्चे दुग्ध में डालकर गंगाजल के पानी से धोकर ऊँ श्रां श्रीं श्रौं स:चन्द्रमसे नमः मन्त्र को जाप करके रोहिणी या स्वाति नक्षत्र में या सोमवार को चन्द्रोदय के समय दाहिने हाथ की कनिष्ठका अंगुली में पहनना चाहिए।


फायदा:-मोती को पहनने से मन की सारी चिंता व शंका मिट कर शान्ति मिलती है।प्यार की भावना बढ़ती है। वशीकरण में आकर्षण बढ़कर सहवास में रुचि बढ़कर सुख की प्राप्ति होती है। हस्तमैथून रोगी को फायदा हो सकता है।


3.मूँगा:-मंगल रत्न,अंग्रेजी में नाम कोरल।चमकीला लाल रंग का होता है।।

 

राशि वालो को पहनना:-मेष,वृश्चिक राशि वालों को अधिक शुभ व धनु,मकर,मीन,कुम्भ,वृषभ,तुला राशि वालों को ठीकठाक शुभ होता है।


मात्रा या वजन:- मूंगा 8-10 रत्ती से ऊपर ताँबा,सोना मिश्रित अंगूठी में जड़वाकर पहनना चाहिए।


समय:-मंगलवार को सूर्योदय से दोपहर ग्यारह बजे के बीच में धारण करना चाहिए।


विधान या विधि मन्त्र:-ऊँ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नमः मन्त्र का जाप करना चाहिए।


अंगुली:-आदमी दाहिने और औरतें बायें हाथ की अनामिका अंगुली में पहनना चाहिए।


फायदा:-बुरी नजर,जादूटोना,टोटकों का असर नहीं होता है।उदर रोग,गर्भपात, बच्चों का सूखा रोग,चेचक आदि बीमारी का भय मिटता है।


4.पन्ना:-अंग्रेजी में नाम एमराल्ड,बुध रत्न।ये एक चमकदार बहुत कीमती हरे रंग का होता है।


राशि वालों को पहनना:-मिथुन,कन्या,सिंह,तुला,वृषभ राशिं वालों को जल्दी फायदा करने वाला होता है। वैसे तो कोई भी पहन सकता है।


मात्रा या वजन:-6 से 8 रत्ती तक सोने की अंगूठी में,वैसे चांदी प्लेटिनम की अंगूठी में भी पहन सकते हैं।


विधान या विधि:-बुधवार को बुध की होरा में या बुधवार को सूर्योदय से 8 बजे तक दाहिने हाथ की कनिष्ठका अंगुली में ऊँ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नमः मन्त्र का जाप करके पहनना चाहिए।


फायदा:-इसे पहनने से धन की बढ़ोतरी, धंधा, रोजी-रोटी में बरकत होने से मन खुश एवं बुद्धि तेज होती है। गुर्दे की बीमारी,ऊपरी हवा,संग्रहणी आदि कोई भी बीमारियों को नहीं होने देते हैं। यादास्त शक्ति तेज होती हैं।


5.पुखराज:-अंग्रेजी में नाम यैलो सैफायर, बृहस्पति रत्न।चमकीला पीले रंग का होता हैं।


राशि वालों को पहनना:-धनु,मीन,कर्क राशि वालों को उत्तम व शुभ होता है व मेष,सिंह,वृश्चिक,कुम्भ राशि वालों को भी शुभ होता है।


मात्रा या वजन:- पुखराज को 4 रत्ती से कम नहीं होना चाहिए और शुद्ध सोने की अंगूठी बनवाकर पहनना चाहिए।


विधान या विधि:-गुरुवार को सांय सिद्ध योग में या गुरु पुष्य योग में दाहिने हाथ की तर्जनी अंगुली में ऊँ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरुवे नमः मन्त्र का जाप करके पहनना चाहिए।


फायदा:-इसे पहनने से सन्तान,परिवार की बढ़ोतरी,विद्या,व्यापार की बढ़ोतरी,चर्म बीमारी,वीर्य-दोष,मानसिक शान्तिदायक,पीलिया,नकसीर एवं पित्तज बीमारी आदि को खत्म होता है। लड़कियों का विवाह में देरी होने पर पुखराज को पहनने पर जल्दी विवाह होता है।


6.शुक्र:-अंग्रेजी में नाम डायमंड,शुक्र रत्न जो बहुत ही कीमती होता है। उपरत्न में पुखराज पहन सकते हैं।


राशि वालों को पहनना:-वृषभ,तुला,मीन राशि वालों के लिए उत्तम व शुभ होता है और मिथुन,कन्या,मेष,वृश्चिक,धनु राशि वालों को भी शुभ होता है।


मात्रा या वजन:- एक रत्ती  वाला हीरा,सोने से बनी अंगूठी में बनाकर पहनना चाहिए।


विधान या विधि:- शुक्ल पक्ष की पंचमी,दशमी,पूर्णमासी, शुक्रवार के दिन कच्चे दुग्ध में डालकर गंगाजल से धोकर ऊँ द्रां द्रीं द्रौं स:शुक्राय नमः मन्त्र का जाप करके अनामिका में पहनना चाहिए।


फायदा:-हीरा पहनने वालों को भूत-प्रेत, दुश्मन,चोर-डाकू,पुलिस का भय नहीं रहता एवं बिजली के करंट का डर नही रहता है। वीर्य या शुक्र धातु की बढ़ोतरी होती है।कैंसर बीमारी में भी उपयोगी है।


7.नीलम:-अंग्रेजी में नाम ब्लू सैफायर, शनि रत्न होता है। जो नीले रंग का चमकदार होता है।


राशि वालों को पहनना:-अनुकूल होने पर कोई भी पहन सकता है।


मात्रा या वजन:-कम से कम 4 रत्ती का होना चाहिए व सोने में या पंचधातु की अंगूठी में बनाकर पहनना चाहिए।


विधान या विधि:- दोपहर 12 बजे दाहिनी हाथ की मध्यमा अंगुली में शनिवार को मकर,कुम्भ,तुला लग्न में ऊँ प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नमः मन्त्र का जाप करके पहनना चाहिए।


फायदा:-इसको पहनने से गरीबी खत्म होकर धनवान बनाकर मनोकामना को पूरा करने वाले होता है। गठिया, मिर्गी, हिचकी में भी उपयोगी है। यदि शुक्रवार के दिन शाम को एरण्ड की जड़ का ताजा छोटा टुकड़ा लाकर बर्तन में कच्चे दुग्ध के अंदर दाल के शनिवार को दोपहर 12 बजे को ऊँ प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नमः मन्त्र का जाप करके नीले रंग के कोरे कपड़े की करतन में बांधकर दाहिनी भुजा पर बांधना चाहिए।


8.गोमेद:-अंग्रेजी में नाम जिरकान,राहु रत्न है। जो चमकदार काले रंग का होता है।


राशिं वालों को पहनना:-वृषभ,मिथुन,कन्या,तुला,मकर एवं कुम्भ को पहनना उत्तम व शुभ होता है। वैसे कोई भी पहन सकते है।


मात्रा या वजन:-8 रत्ती वजन का,पंचधातु या लोहा,चांदी की अंगूठी में पहनना चाहिए।


विधान या विधि:-कच्चे दुग्ध में अंगूठी को डालकर व गंगाजल के जल से धोकर बुध,शुक्र या शनिवार को रात्रि में 8-9 बजे अनामिका में अंगुली में ऊँ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नमः मन्त्र का जाप करके पहनना चाहिए।


फायदा:-इस रत्न को पहनने से दुश्मनों का डर खत्म होता हैं। मुँह की चमक बढ़ती है।पथरी,ग्रन्थि,अर्श जैसे रोग नहीं होते है ,यदि होते हैं तो जल्दी समाप्त हो जाते है।


9.लहसुनिया:-अंग्रेजी में नाम कैट स आई,केतु का रत्न हैं।


रंग:-लहसुनिया कई रंगों का होता है।


राशिं वालों को पहनना:-ये धनु राशि वालों को उत्तम व शुभ होता है, मिथुन राशि वालों को नहीं पहनना चाहिए। वैसे किसी को भी पहन सकते है।


मात्रा या वजन:-इस रत्न को 10 रत्ती के वजन के अनुसार पंचधातु की अंगूठी में जड़वाकर पहनना चाहिए।


विधान या विधि:-बुधवार, शुक्रवार या शनिवार को अनामिका अंगुली में ऊँ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं स: केतवे नमः मन्त्र का जाप करके रात्रि को 8 से 9 बजे पहनना चाहिए।


फायदा:- चमड़ी की बीमारी, फोड़ा, फुंसी, दाद, नपुंसकता, संग्रहणी आदि बीमारियों में इसका उपयोग करने से बीमारीयां दूर हो जाती है। धन की सुरक्षा होती है। साक्षात्कार एवं विदेश गमन में सफलता मिलती हैं।


रत्नों की पहचान:-


1.माणिक्य:- माणिक्य को गाय के दुग्ध में डालने पर दूध का colour गुलाबी colour बन जाता है।


माणिक्य को कांच के गिलास में रखकर देखने पर गिलास में हल्की red किरणें निकलती हुए दिखाई देती हैं।


2.मोती:-  मिट्टी के बर्तन को गोमूत्र से भरकर उसमें मोती को रात भर रखने पर मोती नकली होगा तो टूट जायेगा।


मोती असली होने पर  कांच के गिलास में रखने पर उसमें से किरणें निकलती हुई दिखाई देती है।


असली मोती को जमें देशी गाय के घी में रखने पर वह पिघल जाता है।


3.मूंगा:- कागज या रुई पर मूंगे को तेज धूप में रखने पर कागज या रुई जल जाती हैं।


4.पन्ना:-असली पन्ना को टोर्च या तेज लैम्प की रोशनी पर डालने पर पन्ने का रंग गुलाबी हो जाता हैं। नकली पन्ने का रंग हरा दिखता है 


5.पुखराज:-पुखराज को सफेद कपड़े या सफेद कांच पर रखकर धूप में देखने पर कपड़े पर पीली झाई सी दिखाई देती है।


असली पुखराज को 24 घण्टे तक दूध में रखने पर पुखराज की चमक कम नहीं होती है। नकली पुखराज की चमक में फीकापन आ जाता है।


6.हीरा:-हीरे को गरम दूध में डालने पर जल्दी से ठंडा हो जाता है।


हीरे को पिघले घी में डालने पर घी जल्दी जमने लगता है।


हीरे को धूप में देखने पर उसमें से सतरंगी किरणें निकलती हुई दिखाई देती हैं।


7.नीलम:-नीलम को पानी से या दूध से भरे गिलास में डालने पर उसमें से नीली रोशनी या झाई दिखाई देती है।


8.गोमेद:- असली गोमेद को  गोमूत्र में चौबीस घण्टे रखने पर गोमूत्र का रंग बदल जाता है।