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Tuesday, November 17, 2020

पुरानी परम्पराओं का ज्योतिषीय उपयोगिता

 


पुरानी परम्पराओं का ज्योतिषीय उपयोगिता:- हिंदुस्तान की पुरानी परम्पराओं के मूल में न् केवल विशाल जीवन के दर्शन होते है, बल्कि सबके सुख व कल्याण की भावना है। हमारे पूर्वजों ने अपने जीवन की दैनिक दिनचर्या में भी कुछ ऐसे सार को शामिल किया था,जो जीवन को ग्रहों के खराब फल से बचा सकें।हिंदुस्तान की पुरानी परम्पराओं के मूल में न् केवल विशाल जीवन के दर्शन होते है, बल्कि सबके सुख व कल्याण की भावना है। हमारे पूर्वजों ने अपने जीवन की दैनिक दिनचर्या में भी कुछ ऐसे सार को शामिल किया था,जो जीवन को ग्रहों के खराब फल से बचा सकें।


रवि:-पुराने जमाने में लोग रवि के उगने से पहले नदी के तट पर जाते थे और नहाने के बाद में ध्यान के बाद में अपनी कटी तक जल में ऊबे रहते थे। फिर रवि को तांबे के लौठे या हाथ से जल को चढ़ाते थे। इससे रवि ग्रह का खराब प्रभाव को अपने पक्ष में करते थे। इसी प्रकार लुगाया या औरतें भी हमेशा सुबह जल्दी उठती थी। फिर पत्थर की चक्की में गेंहू पिसती थी तो रवि ग्रह के खराब फल से छुटकारा मिलने का उपाय हो जाता था।


चन्द्र:-वर्षा के पानी को इकट्ठा करने सुविधा, सावन के महीने में हमेशा भोलेनाथ की पूजा और आराधना करना, मां-मौसी या विधवा महिला के हमेशा पैर को छूने से चन्द्रमा के खराब फल कम हो जाता हैं।


भौम:-भौम के खराब फल को खून का दान देकर कम किया जा सकता है। घर से निकलने के समान पर कलेवा या टिफिन साथ लेकर निकलने से, इक्कट्ठे परिवार में साथ रहने से और सोने के समय पर अपने सिर के नीचे सिरहाने पर पानी रखकर सोने से मंगल या भौम के खराब फल का असर कम हो जाता है।


बुध:-बुध के खराब फल को कम करने के लिए पुराने जमाने मे लोगों के द्वारा प्रत्येक सुबह चिड़ियों को साबुत मूंग की गली दाल डालने,चिड़ियों के लिए पीने का पानी की सुविधा करने,हिजड़ों को चूड़ियां व श्रृंगार के सजने-सँवरने का दान देने और लड़कियों को अपने सामर्थ्य के अनुसार घर पर भोजन कराने से बुध का खराब फल कम होता था।


राहु:-के लिए ग्रहण काल में , उत्सवों-त्योहारों पर दान देने और मंदिर में पानी या सुखा नारियल चढ़ाने से राहु के खराब फल कम होता हैं।


केतु:-के लिए हमेशा खाना खाने से पहले कोई भी व्यक्ति अपनी थाली में से एक कौर कुत्ते को खिलाने के लिए निकलता था और दूसरों की औरतों के प्रति गलत भावन को अपने मन के अंदर नहीं लाता था तो केतु का कोप उसके जीवन में अपनी खराब दृष्टि डालने से हिचकता था।


इस प्रकार जो हमारी पुरानी परंपराएं समाज के लिए, विज्ञान के लिए और पराविज्ञान की दृष्टि से जीवन को उसकी सम्पूर्णता को देती है और व्यक्तियों को सत्यम-शिवम-सुंदरम का पुजारी बनाती हैं।


आवश्यकता इस बात की है कि हम इन पुरानी परम्पराओं का पूर्ण ज्ञान कर इनको वैज्ञानिक विचारपूर्ण समझ सकें और समझा सकें।