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Monday, December 14, 2020

वक्री और मार्गी ग्रहों का जन्मकुंडली में महत्व



वक्री और मार्गी ग्रहों का जन्मकुंडली में महत्व:-जब मनुष्य जन्मपत्रिका बनवाता है, तो उस जन्मपत्रिका में ग्रहों के मार्गी एवं वक्री शब्दों का प्रयोग किया हुआ मिलता है। पंचागों में भी ग्रहों के मार्गी व वक्री होने का विवरण मिलता है।


वक्री का अर्थ:- होता है कि, जो ग्रह सीधे-सीधे चलते हुए अचानक पीछे की ओर चलने लग जाते है, उसे वक्री कहते है।


जन्मपत्रिका में जो ग्रह वक्री होता है, उसके नीचे क्रॉस का निशान लगा देते है। कम्प्यूटर द्वारा बनी हुई जन्मपत्रिका में वक्री ग्रह के आगे 'R' यानी 'O'Retrograde शब्द का प्रयोग करते है।


फलित ज्योतिष में वक्री ग्रह के सम्बन्ध में नहीं कोई मुख्यतौर से चर्चा नहीं मिलती है और नहीं कोई इस विषय पर स्वतंत्र ग्रन्थ का विवरण मिलता है।


लेकिन पञ्चाङ्ग को बनाने वालों ने ग्रह को वक्री मानकर वक्री संकेतों का उपयोग किया है। अब प्रश्न यह है कि कोई ग्रह वक्री भी हो सकता है?


क्योंकि सभी ग्रह अपनी कक्षा में स्थित होकर सूर्य के चारों ओर चक्र को पूरा करते है। सूर्य को छोडकर किसी भी ग्रह का घूमने का काल एक समान नहीं होता और न ही उनकी गति एक जैसी होती है।


पञ्चाङ्ग के अंदर सभी ग्रहों की गति का विवरण मिल जाता है। यदि तेज गति से चलते हुए वाहन को एकदम ब्रेक लगाते है तो घर्षण के द्वारा जोर की आवाज आवेगी और दुर्घटना हो सकती है। ग्रहों की गति बहुत तेज होती है, यदि वह अचानक रुककर पीछे की ओर चलने लगे तो उसी समय समस्त सृष्टि ही प्रभावित होने लगती है।


ज्योतिषी लोग पंचागों व तंत्रियों में लिखते है कि अमुक ग्रह अमुक तारीख को वक्री होगा और अमुक तारीख को मार्गी होगा।


मार्गी का अर्थ:-होता है कि ग्रह का सीधा चलता रहना।


हमारे ऋषियों ने जब ग्रहों का अध्ययन किया होगा ,तो कई ग्रह पीछे की ओर जाते दिखाई दिए होंगे। आज भी अगर वेद यन्त्रों से हम ग्रहों को देखते है तो कई ग्रह पीछे की ओर जाते दिखाई देते है और इसी तरह से हम यह मान लेते है कि अमुक ग्रह वक्री हो गया।ऐसा दिखाई देना केवल हमारा दृष्टि भ्रम होता है। उदाहरण के लिए जब हम रेलगाड़ी से यात्रा करते हुए खिड़की से बाहर देखते हैं तो हमें पेड़ पौधे व अन्य वस्तुएं पीछे की ओर जाती हुई दिखाई देती हैं। इसी तरह जब प्लेटफार्म पर रुकी हुई रेलगाड़ी के डिब्बे में बैठे होते है और उसी समय समानान्तर पटरी पर कोई दूसरी रेलगाड़ी आती दिखाई देती है और जब हम खिड़की में से देखते है तो हमें हमारी ट्रेन चलती हुई दिखाई देती है, जबकि हमारी ट्रेन तो रुकी हुई होती है, इस तरह दिखाई देना केवल हमारा दृष्टि भ्रम ही होता है।


वास्तव में होता यह है कि जब पृथ्वी की गति अपनी धुरी पर अपने समान्तर चलने वाले ग्रह से तेज होती है, तब हमें समान्तर चलने वाला ग्रह पीछे की ओर जाता हुआ दिखाई पड़ता है और कह देते है कि अमुक ग्रह वक्री हो गया, किन्तु व्यवहारिक तौर पर ग्रह कभी विपरीत नहीं चलते है।


जब हम किसी ग्रह को वक्री कहते है, तब वास्तव में उस ग्रह की पृथ्वी की गति से तुलना में मन्द गति होने की सूचना देती है और उस स्थिति में उस ग्रह विशेष की ताकत कुछ कम मानी जाती है।


सूर्य और चन्द्रमा कभी वक्री नहीं होते है, क्योंकि इनकी गति हमेशा पृथ्वी की गति से तेज रहती है। बाकी सभी ग्रहों की चाल में बदलाव होता रहता है जिसके कारण से बाकी ग्रह कभी वक्री और कभी मार्गी होते रहते है।


वक्री ग्रह का जन्मपत्रिका में बहुत ही महत्व होता है व फलादेश में भी काफी बदलाव आ जाते है।


वास्तव में कोई ग्रह न तो कभी वक्री होता है न मार्गी होता है, यह सब उस ग्रह का चारों तरफ घूमने की चाल में बदलाव आने के कारण दिखाई देता है, उसी के आधार पर उनकी उपरोक्त व्याख्या कर दी जाती है।


जब मनुष्य या जीव-जन्तु अपनी सामान्य स्वभाव के अनुसार आचरण करते हुए अचानक असामान्य दशा में बदलाव किसी तरह से होता है तो उसके प्राकृतिक व्यवहार व आचरण आदि में परिवर्तन आ जाता है।


इसी तरह जब कोई ग्रह अपनी सामान्य गति से मन्द या तेज गति में होता है तो पृथ्वीवासियों पर इसका प्रभाव पड़ता है। इसलिए किसी ग्रह के वक्री होने पर ग्रह की सामान्य प्रकृति के अनुसार प्रभाव न पड़कर असामान्य प्रभाव पड़ता है, जिससे उसकी क्रियाएं भी असामान्य हो जाती है।


यह हम सब जानते है कि पृथ्वी पर मौसम में बदलाव होता रहता है। कभी गर्मी,कभी सर्दी,कभी बसन्त एवं कभी वर्षा होती है। यह सब बदलाव सूर्य के उत्तरायण व दक्षिणायन में होने पर होता है। पृथ्वी पर रहने वाले मनुष्य, जीव-जन्तु, पशु-पक्षी एवं समस्त वनस्पति मौसम के बदलाव से प्रभावित होते रहते है। अतः फलित करते समय गोचर ग्रहों की प्रकृति एवं वक्री ग्रहों की प्रकृति को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए।