सोम ग्रह के बारे में जानकारी और महत्व ज्योतिष शास्त्र में(Information and importance about the planet Mon in astrology):-पुराने जमाने में ऋषि-मुनियों ने जीवन की दैनिक चर्या में सोम को बहुत ही ज़्यादा महत्व दिया था,क्योंकि सोम की शीतल व मन को हरने वाली चाँदनी किरणों से मनुष्य को शीतलता मिलकर मन को शांति और सुख का आभास मिलता था। मन में शांति रहने से मनुष्य को सब तरह से आनन्द की प्राप्ति होती थी। फिर सोम को देव के रूप में भी अपनाया गया और ऋषि-मुनियों ने तरह-तरह से सोम के बारे में जानकारी प्राप्त की और सोम को आकाश गंगा में स्थान देकर ग्रह और देवता के रूप में जानने लगे थे। इस तरह से ऋषि-मुनियों ने सोम को ग्रह मानकर सोम के बारे में पूरी जानकारी दी।
1.सोम की पैदाइस की कथा:-अलग-अलग तरह से हमारे धर्म शास्त्रों के गर्न्थो में बताई गई है-
अग्नि पुराण के मतानुसार:-ब्रह्मा जी ने संसार की उत्पति के लिए मानसिक संकल्प से मानस पुत्रों को पैदा किया और उन पुत्रों में से एक मानस पुत्र ऋषि अत्रि की शादी ऋषि कर्दम की कन्या अनुसुइया से करने पर अनुसुइया और ऋषि कर्दम के तीन पुत्र दुर्वासा,दत्तात्रेय व सोम हुवे थे। सोम को ही चन्द्रमा के नाम से जानते है।
पद्म पुराण के मतानुसार:-ब्रह्मा जी अपने मानस पुत्र ऋषि अत्रि से संसार को बढ़ाने का आदेश दिया और ऋषि अत्रि ने अनुत्तर तप को लम्बे समय तक किया और एक दिन तप के प्रभाव से ऋषि अत्रि के नेत्रों से चमकती हुई बूंदे टपकी दिशाओं ने औरत शक्ल लेकर उन बूंदों को ग्रहण करने से उन दिशाओं के गर्भ ठहर गया और चमकते हुए तेज रूपी गर्भ को दिशाओं के द्वारा सम्भाल नहीं पाने कारण उनको उस गर्भ को छोड़ना पड़ा। उस छोड़े हुए गर्भ को ब्रह्मा जी ने उसका लालन-पालन करके उसका नाम सोम रखा जो कालांतर में चन्द्रमा के नाम से जाने जाते है।दिव्य तेज वाले सोम से धरती पर औषधियाँ पैदा होने से ब्रह्मा जी ने चन्द्र को नक्षत्र, वनस्पतियों, ब्राह्मण एवं तप आदि का मालिक बनाया।
स्कंद पुराण के मतानुसार:-जब देवताओं और राक्षसों ने मिलकर दुग्ध सागर में मदरांंचल पर्वत रखकर वासुकी नामक नाग को डोरी के रूप में प्रयोग किया और विष्णु जी ने कच्छप का अवतार लेकर दुग्ध सागर में बीचों बीच स्थित होकर मदरांचल पर्वत को अपने पीठ पर धारण करके देवताओं व राक्षसों ने वासुकी नाग को डोरी के रूप उपयोग करके मदरांचल पर्वत को मथा जिससे चौदह तरह के रत्नों की और अमृत कलश मिला था। इन चौदह रत्नों में से एक रत्न सोम भी था। संसार की भलाई के लिए भगवान भोलेनाथ ने गराहल विष को अपने कण्ठ में धारण किया और सोम को अपने माथे पर जगह दी।
स्कंद पुराण के महेश्वर खंड में ऋषि गर्गाचार्य ने दुग्ध सागर को मथने का समय निकलते समय कहा कि इस काल में सब तरह के ग्रह अपने पक्ष होने से सोम और गुरु का अच्छा योग बन रहा है जो सब तरह के कामों को सिद्ध करने के लिए अच्छा है। इस तरह से सोम का जन्म अलग समयों में और अलग तरह से बताया अनुसार होने सिद्ध होता है।
सोम की शादी:-दक्ष प्रजापति की नक्षत्रों के शक्लों वाली
सताईस लड़कियों से हुवा इनमें से रोहिणी से सोम को ज्यादा लगाव होता है,क्योंकि रोहिणी शक्ल वाले नक्षत्र में सोम का अधिक समय बीतता है और अपनी पत्नियों के रूप में सताईस नक्षत्रों में सोम एक पत्नी रूपी नक्षत्र में दिन बिताते है और पूरे सताईस नक्षत्रों को भोगते हुए अपना एक चक्र का चन्द्र महीना पूरा करते है।
2.सोम ग्रह का स्वरूप:-सोम ग्रह मिजाज से शांत,सफेद रंग का देह से इकहरा होते है।
सोम ग्रह
3.सोम ग्रह को मजबूत करने के उपाय:-सोम ग्रह नहीं किसी ग्रह से दुश्मनी का रिश्ता रखता है और भौम, जीव,भृगु और मन्द के साथ समानता का रिश्ता रखता है। सोम ग्रह उत्तर-पश्चिम दिशाओं के मालिक होते है और इनका रत्न मोती जो दूध के समान उज्ज्वल व चमकीला सफेद का चांदी की धातु में पहनने से मनुष्य को फायदा मिलता है। सोम ग्रह के अंक शास्त्रों में अच्छे अंक2,11 व 20 होते है।
4.सोम ग्रह का मानव जीवन में महत्त्व:-वैदिक ज्योतिष विज्ञान में सोम के द्वारा मनुष्य जीवन के जन्म से लेकर शादी तक और मरण तक विभिन्न जगहों के बारे में जानने के लिए कुंडली में लग्न कुंडली के बराबर महत्व दिया जाता है और चन्द्रकुण्डली से मनुष्य जीवन के बारे में जानकारी मिलती है,अतः चन्द्रमा की हालत को पूरी तरह से गौर रूप से पठन करना जरूरी होता है। उदाहरण के लिए किसी व्यक्ति के जन्म के समय चन्द्रमा जिस नक्षत्र में स्थित हों, उसी नक्षत्र को उस व्यक्ति का जन्म नक्षत्र माना जाता है जिसके साथ उसके जीवन के कई महत्त्वपूर्ण तथ्य जुड़े होते हैं जैसे कि व्यक्ति का नाम भी उसके जन्म नक्षत्र के अक्षर के अनुसार ही रखा जाता है।
भारतीय ज्योतिष पर आधारित दैनिक, साप्ताहिक तथा मासिक भविष्य फल भी व्यक्ति की जन्म के समय की चन्द्र राशि के आधार पर ही बताए जाते हैं। किसी व्यक्ति के जन्म के समय चन्द्रमा जिस राशि में स्थित होते हैं, वह राशि उस व्यक्ति की चन्द्र राशि कहलाती है। भारतीय ज्योतिष में शादी संबंधित वर-वधू के आपस में तालमेल को मिलाने के लिए भी चन्द्रमा की हालत को देखा जाता है।
लड़की व लड़के की कुंडली मिलान की प्रणाली में आम तौर पर गुण मिलान को ही सबसे अधिक महत्त्व दिया जाता है जो कि पूर्णतया वर-वधू की कुंडलियों में चन्द्रमा की स्थिति के आधारित होता है।
वैदिक ज्योतिष के एक मत के अनुसार विवाह दो मनों का पारस्परिक मेल होता है तथा चन्द्रमा प्रत्येक व्यक्ति के मन का सीधा कारक होने के कारण इस मेल को देखने के लिए सबसे महत्वपूर्ण माने जाते हैं।
इसके अतिरिक्त भारतीय ज्योतिष में प्रचलित गंड मूल दोष भी चन्द्रमा की कुंडली में स्थिति से ही देखा जाता है तथा वैदिक ज्योतिष के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में प्रभाव डालने वालीं विंशोत्तरी दशाएं भी व्यक्ति की जन्म कुंडली में चन्द्रमा की स्थिति के अनुसार ही देखीं जातीं हैं। इस प्रकार चन्द्रमा का भारतीय ज्योतिष के अनेक क्षेत्रों में बहुत महत्त्व है तथा कुंडली में इस ग्रह की स्थिति को भली-भांति समझना आवश्यक है।
चन्द्रमा एक शीत और नम ग्रह हैं तथा ज्योतिष की गणनाओं के लिए इन्हें स्त्री ग्रह माना जाता है। चन्द्रमा प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली में मुख्य रूप से माता तथा मन के कारक माने जाते हैं और क्योंकि माता तथा मन दोनों ही किसी भी व्यक्ति के जीवन में विशेष महत्त्व रखते हैं, इसलिए कुंडली में चन्द्रमा की स्थिति कुंडली धारक के लिए अति महत्त्वपूर्ण होती है। माता तथा मन के अतिरिक्त चन्द्रमा रानियों, जन-संपर्क के क्षेत्र में काम करने वाले अधिकारियों, परा-शक्तियों के माध्यम से लोगों का उपचार करने वाले व्यक्तियों, चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े व्यक्तियों, होटल व्यवसाय तथा इससे जुड़े व्यक्तियों तथा सुविधा और ऐशवर्य से जुडे ऐसे दूसरे क्षेत्रों तथा व्यक्तियों, सागरों तथा संसार में उपस्थित पानी की छोटी-बड़ी सभी इकाईयों तथा इनके साथ जुड़े व्यवसायों और उन व्यवसायों को करने वाले लोगों के भी कारक होते हैं।
किसी व्यक्ति की कुंडली से उसके चरित्र को देखते समय चन्द्रमा की स्थिति अति महत्त्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि चन्द्रमा सीधे तौर से प्रत्येक व्यक्ति के मन तथा भावनाओं को नियंत्रित करते हैं। चन्द्रमा वृष राशि में स्थित होकर सर्वाधिक बलशाली हो जाते हैं तथा इस राशि में स्थित चन्द्रमा को उच्च का चन्द्रमा कहा जाता है। वृष के अतिरिक्त चन्द्रमा कर्क राशि में स्थित होने से भी बलवान हो जाते हैं जो कि चन्द्रमा की अपनी राशि है। चन्द्रमा के कुंडली में बलशाली होने पर तथा भली प्रकार से स्थित होने पर कुंडली धारक स्वभाव से मृदु, संवेदनशील, भावुक तथा अपने आस-पास के लोगों से स्नेह रखने वाला होता है। ऐसे लोगों को आम तौर पर अपने जीवन में सुख-सुविधाएं प्राप्त करने के लिए अधिक प्रयास नहीं करने पड़ते तथा इन्हें बिना प्रयासों के ही सुख-सुविधाएं ठीक उसी प्रकार प्राप्त होती रहतीं हैं जिस प्रकार किसी राजा की रानी को केवल अपने रानी होने के आधार पर ही संसार के समस्त ऐश्वर्य प्राप्त हो जाते हैं।
चन्द्रमा एक शीत और नम ग्रह हैं तथा ज्योतिष की गणनाओं के लिए इन्हें स्त्री ग्रह माना जाता है। चन्द्रमा प्रत्येक व्यक्ति की कुंडली में मुख्य रूप से माता तथा मन के कारक माने जाते हैं और क्योंकि माता तथा मन दोनों ही किसी भी व्यक्ति के जीवन में विशेष महत्त्व रखते हैं, इसलिए कुंडली में चन्द्रमा की स्थिति कुंडली धारक के लिए अति महत्त्वपूर्ण होती है। माता तथा मन के अतिरिक्त चन्द्रमा रानियों, जन-संपर्क के क्षेत्र में काम करने वाले अधिकारियों, परा-शक्तियों के माध्यम से लोगों का उपचार करने वाले व्यक्तियों, चिकित्सा क्षेत्र से जुड़े व्यक्तियों, होटल व्यवसाय तथा इससे जुड़े व्यक्तियों तथा सुविधा और ऐशवर्य से जुडे ऐसे दूसरे क्षेत्रों तथा व्यक्तियों, सागरों तथा संसार में उपस्थित पानी की छोटी-बड़ी सभी इकाईयों तथा इनके साथ जुड़े व्यवसायों और उन व्यवसायों को करने वाले लोगों के भी कारक होते हैं।
किसी व्यक्ति की कुंडली से उसके चरित्र को देखते समय चन्द्रमा की स्थिति अति महत्त्वपूर्ण हो जाती है क्योंकि चन्द्रमा सीधे तौर से प्रत्येक व्यक्ति के मन तथा भावनाओं को नियंत्रित करते हैं। चन्द्रमा वृष राशि में स्थित होकर सर्वाधिक बलशाली हो जाते हैं तथा इस राशि में स्थित चन्द्रमा को उच्च का चन्द्रमा कहा जाता है। वृष के अतिरिक्त चन्द्रमा कर्क राशि में स्थित होने से भी बलवान हो जाते हैं जो कि चन्द्रमा की अपनी राशि है। चन्द्रमा के कुंडली में बलशाली होने पर तथा भली प्रकार से स्थित होने पर कुंडली धारक स्वभाव से मृदु, संवेदनशील, भावुक तथा अपने आस-पास के लोगों से स्नेह रखने वाला होता है। ऐसे लोगों को आम तौर पर अपने जीवन में सुख-सुविधाएं प्राप्त करने के लिए अधिक प्रयास नहीं करने पड़ते तथा इन्हें बिना प्रयासों के ही सुख-सुविधाएं ठीक उसी प्रकार प्राप्त होती रहतीं हैं जिस प्रकार किसी राजा की रानी को केवल अपने रानी होने के आधार पर ही संसार के समस्त ऐश्वर्य प्राप्त हो जाते हैं।
क्योंकि चन्द्रमा मन और भावनाओं पर नियत्रण रखते हैं, इसलिए चन्द्रमा के प्रबल प्रभाव में आने वाले जातक आम तौर पर भावुक होने के कारण आसानी से ही आहत भी हो जाते हैं। स्वभाव से ऐसे लोग चंचल तथा संवेदनशील होते हैं तथा अपने प्रियजनों का बहुत ध्यान रखते हैं और उनसे भी ऐसी ही अपेक्षा रखते हैं तथा इस अपेक्षा के पूर्ण न होने की हालत में शीघ्र ही आहत हो जाते हैं। किन्तु अपने प्रियजनों के द्वारा आहत होने के बाद भी ऐसे लोग शीघ्र ही सबकुछ भुला कर फिर से अपने सामान्य व्यवहार में लग जाते हैं। चन्द्रमा के प्रबल प्रभाव वाले जातक कलात्मक क्षेत्रों में विशेष रूचि रखते हैं तथा इन क्षेत्रों में सफलता भी प्राप्त करते हैं। किसी कुंडली में चन्द्रमा का विशेष शुभ प्रभाव जातक को ज्योतिषि, आध्यात्मिक रूप से विकसित व्यक्ति तथा परा शक्तियों का ज्ञाता भी बना सकता है।
चन्द्रमा मनुष्य के शरीर में कफ प्रवृति तथा जल तत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा शरीर के अंदर द्रव्यों की मात्रा, बल तथा बहाव को नियंत्रित करते हैं। चन्द्रमा के प्रबल प्रभाव वाले जातक सामान्य से अधिक वजनी हो सकते हैं जिसका कारण मुख्य तौर पर चन्द्रमा का जल तत्व पर नियंत्रण होना ही होता है जिसके कारण ऐसे जातकों में सामान्य से अधिक निद्रा लेने की प्रवृति बन जाती है तथा कुछेक जातकों को काम कम करने की आदत होने से या अवसर ही कम मिलने के कारण भी उनके शरीर में चर्बी की मात्रा बढ़ जाती है। ऐसे जातकों को आम तौर पर कफ तथा शरीर के द्रव्यों से संबंधित रोग या मानसिक परेशानियों से सम्बन्धित रोग ही लगते हैं।
कुंडली में चन्द्रमा के बलहीन होने पर अथवा किसी बुरे ग्रह के प्रभाव में आकर दूषित होने पर जातक की मानसिक शांति पर विपरीत प्रभाव पड़ता है तथा उसे मिलने वाली सुख-सुविधाओं में भी कमी आ जाती है। चन्द्रमा वृश्चिक राशि में स्थित होकर बलहीन हो जाते हैं तथा इसके अतिरिक्त कुंडली में अपनी स्थिति विशेष और अशुभ ग्रहों के प्रभाव के कारण भी चन्द्रमा बलहीन हो जाते हैं। किसी कुंडली में अशुभ राहु तथा केतु का प्रबल प्रभाव चन्द्रमा को बुरी तरह से दूषित कर सकता है तथा कुंडली धारक को मानसिक रोगों से पीडि़त भी कर सकता है। चन्द्रमा पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव जातक को अनिद्रा तथा बेचैनी जैसी समस्याओं से भी पीडि़त कर सकता है जिसके कारण जातक को नींद आने में बहुत कठिनाई होती है। इसके अतिरिक्त चन्द्रमा की बलहीनता अथवा चन्द्रमा पर अशुभ ग्रहों के प्रभाव के कारण विभिन्न प्रकार के जातकों को उनकी जन्म कुंडली में चन्द्रमा के अधिकार में आने वाले क्षेत्रों से संबंधित समस्याएं आ सकती हैं।
5.सोम का जन्मकुंडली में अच्छे और बुरे हालात के नतीजे :-
सोम ग्रह के अच्छे नतीजे और अच्छे हालात:- सोम ग्रह की राशि कर्क होने से जल में रुचि वाले मनुष्य होते है। सोम ग्रह अपनी स्वयं की कर्क राशि में, अपने मित्र सूर्य, बुध की राशि मे,अपनी वृषभ उच्च राशि में,षड़बली,सोमवार,राशि के अंत में, रात के समय मे,चोथे घर मे,दक्षिणायन में और अच्छे ग्रहों के साथ होने पर व अच्छे ग्रहों के द्वारा देखे जाने पर मजबूत और अच्छे नतीजे देने वाले होते है। सोम के बली और मजबूत हालात में होने से मनुष्य अपने मन से सभी तरह के कामों को करकर कामयाब होता है और हर वक्त खुश रहने वाला होता है। मनुष्य सोम ग्रह की अच्छी हालात में होने किसी भी जगह पर अच्छा मान-सम्मान को प्राप्त करके ऊंचे पद को पाता है और अपने पद में विकास भी करता है,जल से उत्पन्न होने वाली वस्तुओं,बहने वाले पर्दाथों व सफेद वस्तुओं का धंधा करने पर कामयाब होते हैं।
सोम के बुरे नतीजे और कमजोर हालात:-सोम ग्रह का अपनी नीच राशि वृश्चिक राशि में ,अपने शत्रु के साथ व शत्रु की राशि में, राशियो के शुरू में,बुरे ग्रहों के द्वारा देखे जाने पर,दिन के समय,दशवें घर मे,उत्तरायण में और कलाओं के कमजोर होने पर बुरे नतीजे मनुष्य को अपने जीवन काल मे मिलते है।
सोम के खराब व कमजोर होने से मनुष्य मन से कम नहीं कर पाते है,जिससे उनको कोई भी काम मे कामयाबी नहीं मिलती है।
6.सोम ग्रह के नतीजे मनुष्य की देह पर:-मनुष्य की देह में बाईं नेत्र, गाल, मांस, रक्त बलगम, वायु, स्त्री में दाईं नेत्र, पेट, भोजन नली, गर्भाशय, अण्डाशय, मूत्राशय. चन्द्र कुण्डली में कमजोर या पिडित हो, तो व्यक्ति को ह्रदय रोग, फेफडे, दमा, अतिसार, दस्त गुर्दा, बहुमूत्र, पीलिया, गर्भाशय के रोग, माहवारी में अनियमितता, चर्म रोग, रक्त की कमी, नाडी मण्डल, निद्रा, खुजली, रक्त दूषित होना, फफोले, ज्वर, तपेदिक, अपच, बलगम, जुकाम, सूजन, जल से भय, गले की समस्याएं, उदर-पीडा, फेफडों में सूजन, क्षयरोग. चन्द्र प्रभावित व्यक्ति बार-बार विचार बदलने वाला होता है.
7.सोम के खराब होने पर असर को कम करने के लिए दिये जाने वाले दान :-सोम स्वंय शीतल एवं
शांत मिजाज के होने से सोम की हालात में सुधार करने व उनके खराब असर को कम करने के लिए मनुष्य को अक्षत,दुग्ध, धातु में चांदी,सफेद कपड़े,सफेद पुष्प, चन्दन और मिश्री आदि चीजों को सोमवार को शाम के समय मे देने से फायदा मिलता है और मनुष्य के मन मे शांति मिलती है।
जिस किसी भी लड़की या औरत और लड़के या आदमी की जन्मकुंडली में सोम ग्रह जो स्त्री का कारक व स्त्री गन प्रधान होकर यदि कमजोर हो तो मनुष्य को अपनी पत्नी,बहिन, नानी,दादी,सास और बड़ी उम्र वाली औरतों को सम्मान देकर सुभ आशीर्वाद लेने चाहिए जिससे सोम के खराब नतीजे से छुटकारा मिले।