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Saturday, January 9, 2021

पंचक का असर और पांच पुतलिकाओं का दाह संस्कार का विधि-विधान(The effect of the quintet and the law of cremation of five effigie)


पंचक का असर और पांच पुतलिकाओं का दाह संस्कार का विधि-विधान(The effect of the quintet and the law of cremation of five effigie):-पुराने समय से ही भास्कर एवं सोम के देव के रूप में जाना जाता है और उनकी आराधना की जाती थी। इस तरह से आकाश मण्डल में चमचमाते हुए बहुत ही सारे अनगनित सितारे दिखाई देते है,उनमें से नव ग्रहों को और पृथ्वी को उपग्रह की संज्ञा दी गयी है। इन नव ग्रहों में से सोम को 27 नक्षत्रों का मालिक माना गया है। 

हिंन्दुस्तान में कई ऋषि-मुनियों ने जन्म लिया था। इन ऋषि-मुनियों में अपने भारत देश में अनेक तरह का योगदान दिया था। आज भी भारत देश में योगदान दे रहे है। इनके द्वारा ही धर्म की रक्षा हो रही है।

इनमे से कुछ नक्षत्रों में मनुष्य की मृत्यु होने पर ऋषि-मुनियों ने इन नक्षत्रों के बुरे असर को कम करने और उनका असर मरने वाले मनुष्य के वंश पर नहीं पड़े इसके लिए उन्होंने इन बुरे नक्षत्रों में मरे मनुष्य के पीछे कुछ विधि-विधान बताये है।पंचक विषय में मनुष्यों में अनेक तरह की भ्रांतियां है। कुछ को यह भ्रांति है कि पंचक अच्छे कामों में मना है। कुछेक यह कहकर की पंचक में आरम्भ किया गया काम पांच बार करना पड़ता है। 

पंचक का मतलब:-जब चन्द्रमा कुंभ राशि और मीन में होता है,तो पंचक होता है।

पंचक का शाब्दिक अर्थ:-पांच नक्षत्रों के समूह को पंचक कहते हैं। सम्पूर्ण नक्षत्र मण्डल 27 नक्षत्रों(अभिजीत सहित 28) के योग से बना है। नक्षत्र मण्डल का आरम्भ अश्विनी से प्रारम्भ होकर रेवती पर समाप्त होता है।

पंचक का अर्थ-: नक्षत्र मण्डल के अंतिम छोर के धनिष्ठा का उत्तरार्ध, शतभिषा,पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद एवं रेवती इन पाँच नक्षत्रों को पंचक कहते हैं।

पंचक में निषिद्ध कर्मों को निरूपित करते हुए बताया गया हैं

"धनिष्ठापञ्चके त्याज्य स्तृणकाष्ठादिसङ्ग्रह:।

त्याज्या दक्षिणदिग्यात्रा गृहाणाम छादनम तथा।।"(शीघ्रबोध 2|77)

अर्थात पंचक में तृण-काष्ठादि का संचय,दक्षिण दिशा की यात्रा, गृह छाना, प्रेतदाह तथा शय्या का बीनना ये कार्य निषिद्ध बताये गये हैं।

पंचकशान्ति-: चंद्रमा कुंभ और मीन राशि में हो तो अर्थात धनिष्ठा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद तथा रेवती इन पाँच नक्षत्रों में मृत्यु होने पर दोष निवारणार्थ शांति करने के विधान को पंचक शान्ति कहते है।

निर्णयसिन्धु और धर्मसिंधु के आधार पर-: विशेष बाते बताई गयी है-

★कि यदि मृत्यु पंचक के पूर्व हो गयी हो और दाह पंचक में होना हो, तो पुत्तलदाह का विधान करें, शान्ति करने की आवश्यकता नहीं रहती।

★यदि पंचक में मृत्यु हो गयी हो और दाह पंचक के बाद हुआ हो तो पंचक शान्ति कर्म करना चाहिये।

★यदि मृत्यु एवं दाहकर्म भी पंचक में हो,तो पुत्तलदाह और शान्ति दोनों कर्म करना चाहिए। क्योंकि इसका प्रभाव पारिवारिक लोगों पर पड़ता हैं।

★पंचक शान्ति सूतकान्त में बारहवें दिन, तेरहवें दिन धनिष्ठा आदि पाँच नक्षत्रों में करनी चाहिये।

पंचक में मरने पर शव के साथ आटे की या कुशा की पांच पुतलिकाओं का दाह संस्कार विधि-विधान-:है, जो इस प्रकार है- पंचक, त्रिपुष्कर एवं भरणी नक्षत्र मरने वाले अपने वंशजों को मार डालने वाले होते है। इस स्थिति में अनिष्ट के निवारण के लिये कुशों की पाँच प्रतिमा (पुत्तल) बनाकर सूत्र वेष्टितकर जौ के आटे की पीठी से उसका लेपन कर उन प्रतिमाओं के साथ शव का दाह करना चाहिए। पुत्तलों के नाम प्रेतवाह,प्रेतसखा,प्रेतप,प्रेतभूमिप तथा प्रेतहर्ता आदि है।

पुत्तलें को जलाने का संकल्प-:अद्य... शर्मा /वर्मा /गुप्तोअहम् ......गोत्रस्य (.....गोत्राया:) .......प्रेतस्य (......प्रेताया) धनिष्ठादिपञ्चकजनितवंशानिष्ट परिहार्थ पञ्चकविधिं करिष्ये। बोलना चाहिए।

पाँचों पुत्तलो का पूजन विधि-:प्रेतवाहाय नमः,प्रेतसखाय नमः,प्रेतपाय नमः,प्रेतभूमिपाय नमः,प्रेतहर्त्रे नमः। इमानि गन्धाक्षतपुष्पधूपदीपादि वस्तूनि युष्मभ्यं मया दीयन्ते युष्माकमुपतिष्ठन्ताम्। इस प्रकार बोलकर पाँचों प्रेतों को गन्ध,अक्षत,पुष्प,धूप,तथा दीप आदि वस्तुएँ प्रदान कर उनका पूजन करना चाहिये।

पूजन के बाद प्रेतवाह पहले पुतले को शव के सिर पर रखकर प्रेतवाह स्वाहा, प्रेतसखाय दूूसरे पुतले को नेत्रों पर रखकर प्रेतसखाय स्वाहा, प्रेतपाय तीसरे पुतले को बायीं कोख पर रखकर प्रेतपाय स्वाहा, प्रेतभुमिपाय चतुर्थ पुतले को नाभि पर रखकर प्रेतभूमिपाय स्वाहा और प्रेतहर्त्रे पाँचवे पुतले को पैरों पर रख कर प्रेतहर्त्रे स्वाहा बोलकर घी की आहुति देनी चाहिये। इसके बाद शव का दहन् करना चाहिए।


पंचक में कुशा या आटे के पांच पुतलिकाओं का दाह संस्कार का महत्व:-

भारतीय संस्कृति में तरह-तरह धर्म होने से मनुष्य का मरण होने पर उनके पीछे अनेक तरह के विधि-विधान किया जाता है।

पंचक या पिचक में मनुष्य की मरण होने पर उनके पीछे कोई उनके वंश का कोई मनुष्य की मौत नहीं होवे, इसलिए धर्मशास्त्रों में पिचक पर मरण होने पर उस शव के दाह के साथ पांच पुतलिकाओं को भी जलाते है।