Breaking

Saturday, February 6, 2021

अथ शनिदेवजी महाराज की आरती(Aarti of Athan Shanidevji Maharaj)

              



अथ शनिदेवजी महाराज की आरती(Aarti of Athan Shanidevji Maharaj):-श्री शनिदेवजी के पिता नवग्रहों के राजा भास्कर देव और छाया माता है।पिता और पुत्र के बीच मतभेद का भाव सदा-सदा रहता है।जब शनिदेवजी कि किसी के ऊपर अपनी प्रतिछाया और अपनी नजर दृष्टि डालते है,तो अगले वालों दुःखों के सागर में डूबना पड़ता है।ऐसे तो शनिदेवजी महाराज सभी पर समान भाव से अपनी दृष्टि रखते है।लेकिन जो कोई भी बुरी प्रवृत्ति और गलत विचारधारा रखते है,उनको कष्टों को भोगाते है।यहां तक देवों की भी नहीं छोड़ते है,भगवान शिवजी के ऊपर अपनी प्रतिछाया और दृष्टि के असर से शिवजी को अश्व के रूप में जीवन भोगना पड़ा था।शनिदेवजी कि दशा का प्रभाव अपने पिता को नहीं छोड़ा।इसलिए जिन लोगों पर शनिदेवजी महाराज की साढ़े सात की बड़ी पनोती और जिन लोगों पर ढाई वर्ष नैनी पनोती होती है और जन्मकुंडली में शनि ग्रह के बुरे प्रभाव होते है उन प्रभावों को कम करने के लिए शनिदेवजी महाराज की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। शनिदेवजी महाराज की कथा बांचनी चाहिए।और सब तरह के विधि-विधान के बाद उनको खुश करने के लिए उनकी आरती के रूप में महिमा का बखान करना चाहिए।मनुष्य को शनिवार के दिन और मंगलवार के दिन शनिदेवजी के बुरे असर के लिए आरती विशेष कर के करनी चाहिए।शनिदेवजी महाराज न्याय के देव माने गये है,देते है तो छप्पर फाड़ कर देते है,लेते है तो भकीर बनाकर ही छोड़ते है।इसलिए शनिदेवजी महाराज को अपनी गलतियों और उनकी कृपा दृष्टि के लिए उनको खुश करने के लिए आरती करके भूल की माफी मांगनी चाहिए।



।।अथ श्री शनिदेवजी की आरती।।


जय-जय रविनन्दन जय दुःख भजन।

जय-जय शनि हरे।।

जय भुजचारी,धरनकारी,दुष्ट दलन।।

जय-जय शनि हरे।।

तुम होत कुपित,नित करत दुखी,धनि को निर्धन।।

जय-जय शनि हरे।।

तुम धर अनुप यम का स्वरूप हो,कटत बन्धन।।

जय-जय शनि हरे।।

तब नाम जो दस तोहि करत सो बस,जो करे रटन।।

जय-जय शनि हरे।।

महिमा अपार जग में तुम्हारे,जपते देवतन।।

जय-जय शनि हरे।।

सब नैन कठिन नित बरे अग्नि,भैंसा वाहन।।

जय-जय शनि हरे।।

प्रभु तेज तुम्हारा अति हिंकरारा, जानत सब जन।।

जय-जय शनि हरे।।

प्रभु शनि दान से तुम महान,होते हो मगन।।

जय-जय शनि हरे।।

प्रभु उदित नारायण शीश,नवायन धरे चरण।।

जय-जय शनि हरे।।

    

       ।।इति श्री शनिदेवजी की आरती।।


      ।।अथ श्री शनिदेवजी की आरती।।


जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।

सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी।।

जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।

श्याम अंग वक्र-दृष्टि चतुर्भुजा धारी।

नीलाम्बर धार नाथ गज की असवारी।।

जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।

क्रीट मुकुट शीश सहज दिपत है लिलारी।

मुक्तन की माल गले शोभित बलिहारी।।

जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।

मोदक और मिष्ठान चढ़े,चढ़ती पान सुपारी।

लोहा,तिल, तेल,उड़द महिषी है अति प्यारी।।

जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।

देव दनुज ऋषि मुनि सुमिरन नर नारी।

विश्वनाथ धरत ध्यान हम हैं शरण तुम्हारी।।

जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी।

  

 ।।इति श्री शनिदेवजी की आरती।।


      ।।अथ श्री शनिदेवजी की आरती।।


चार भुजा वहि छाजै, गदा हस्त प्यारी।

जय जय श्री शनिदेवजी की..............

रवि नन्दन गज वन्दन, यम अग्रज देवा।

जय जय श्री शनिदेवजी की...............

कष्ट न सो नर पाते,करते तब सेना।

जय जय श्री शनिदेवजी की..............

तेज अपार तुम्हारा,स्वामी सहा नही जावे।

जय जय श्री शनिदेवजी की..............

तुम से विमुख जगत् में,सुख नहीं पावे।

जय जय श्री शनिदेवजी की..............

नमो नमः रविनन्दन,सब ग्रह सिरताजा।

जय जय श्री शनिदेवजी की..............

बंशीधर यश गावे राखियों प्रभु लाजा।

जय जय श्री शनिदेवजी की..............

सुखकर्ता दुःखहर्ता जग पालन करता।

जय जय श्री शनिदेवजी की..............


।।इति श्री शनिदेवजी की आरती।।

 

।।बोलो श्री शनिदेवजी महाराज की जय हो।।