अचला सप्तमी (सूर्य सप्तमी) व्रत विधि, कथा और फायदे (Method, story and benefits of Achala Saptami Vrat (Surya Saptami):-माघ महीने के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि के दिन को जो व्रत किया जाता है,उस व्रत को अचला सप्तमी व्रत कहते है।भगवान भास्कर जी के दिन प्रधानता होने से अचला सातम, माघी शुक्ला सप्तमी, सौर सप्तमी, अर्क, रथ सूर्य या भानु सप्तमी भी कहते हैं।
अचला सप्तमी तिथि के व्रत की विधि:-भगवान सूर्य जी का दिन होने से उनको खुश करने के लिए पूजन करना चाहिए, जो इस तरह है-
◆मनुष्य को प्रातःकाल उठकर अपनी दैनिक क्रिया को पूरा करने के बाद स्नानादि से निवृत होकर सूर्य भगवान के नाम का जाप करना चाहिए।
◆इस दिन सूर्य भगवान को अर्ध्य देकर सूर्य की ओर मुख करके स्तुति करनी चाहिये।
◆एक भुक्त होकर सूर्यनारायण का भी पूजन करना चाहिए।
◆मनुष्य को व्रत के दिन नदी अथवा जलाशय में स्नान करना चाहिए।
◆नदी या जलाशय में दीपदान करना चाहिए।
◆गुरु को वस्त्र,तिल,गो और दक्षिणा देकर तथा सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मणों को भोजन करवाना चाहिए।
◆उसके बाद खुद भोजन करना चाहिए।
◆इस दिन नमक रहित भोजन करना चाहिए।
◆पूरे दिन-रात में केवल एक बार ही भोजन करना चाहिए।
◆यदि ज्यादा भूख लगने पर फलों को आहार के रूप में ग्रहण करना चाहिए।
◆अचला सप्तमी व्रत करने वाले को सभी रविवार व्रत के फल प्राप्त होते है।
◆इससे शारीरिक चर्म रोग आदि विकार नहीं होते है।बालक जन्म काल में मूक और पंगु होते है तो भगवान सूर्य के प्रकाश से इन दोषों को दूर किया जा सकता है।
सूर्य सप्तमी के व्रत की पौराणिक कथा:-पुराने जमाने में मगध नाम का एक राज्य था।उस राज्य में एक बहुत सुंदर और देह से रूपवती वैश्या रहती थी। उसका नाम इंदुमती था।वह वैश्या अपने सुंदर देह से सबको अपनी तरफ खींच लेती थी और प्रेम जाल में फंसा लेती थी,जो एक बार उसके रूप यौवन पर मोहित हो जाता था। वह उसको कभी नहीं भूल पाता।इस तरह इंदुमती वैश्या दूसरे मर्दों को अपने रूप यौवन में फंसाकर अपना जीवन जी रही थी।
इस तरह काफी समय ऐसा ही चलता रहा।एक दिन वह सुबह बैठी-बैठी जगत् की नश्वरता के बारे में वह मन ही मन में इस तरह सोचने लगी।कि देखो यह विषय रूपी जगत् सागर कैसा भयंकर हैं,जिसमें डूबते हुए जीव जन्म-मरण जैसे जल-जंतुओं से पीड़ित होते हुए भी किसी तरह से पार उतर नहीं पाते।
ब्रह्माजी के द्वारा रचित यह प्राणी समुदाय अपने किये गए कामरूपी ईंधन और कालरूपी ज्वाला में दग्ध कर दिया जाता है। जिस दिन पूजा-पाठ, स्नान, दान, तप, पितृ तर्पण आदि नहीं किया जाता हैं। वह समय व्यर्थ जाता है।
पुत्र, पुत्री, औरत, मकान, क्षेत्र तथा रुपये-पैसों आदि की चिंता में मनुष्य की सारी उम्र बीत जाती है और काल(मृत्यु) न जाने कब आकर प्राणी के जीव को दबोच लेता है।
इसी इंदुमती वैश्या सोचती-विचारती हुई महर्षि वशिष्ठजी:- के आश्रम में गई। उन्हें प्रणाम करके हाथ जोड़कर कहने लगी कि भगवन्! मैंने न तो कभी कोई दान दिया और न पाप, तप, व्रत, उपवास आदि सत्कर्मों का अनुष्ठान ही किया तथा न शिव, विष्णु आदि किन्हीं देवताओं की आराधना की। अब मैं इस भयंकर जगत् से भयभीत होकर आपकी शरण में आयी हूँ। आप मुझे ऐसा व्रत बतलाए,जिससे मेरा उद्धार हो जाए।
वशिष्ठजी बोले-वरानने! तुम माघ मास के शुक्ल पक्ष को नदी अथवा जलाशय पर स्नान करके दीपदान करो।जिसके जल किसी ने स्नान करके हिलाया नहीं हो, क्योंकि जल मल को प्रक्षलित कर देता हैं।बाद में यथा शक्ति दान करो।इससे तुम्हारा कल्याण होगा।
गुरु के ऐसे वचन सुनकर इंदुमती घर लौट आई और उनके द्वारा बतायी गयी विधि के अनुसार उसने स्नान-ध्यान आदि कर्मों को सम्पन्न किया।सप्तमी के दिन स्नान के प्रभाव से बहुत दिनों तक सांसारिक सुखों का उपयोग करती हुई देह त्याग के पश्चात् देवराज इंद्र की सभी अप्सराओं में प्रधान नायिका के पद पर अधिष्ठित हुई।
यह अचला सप्तमी सभी पापों का प्रशमन करने वाली तथा सुख-सौभाग्य की वृद्धि करने वाली है जो कोई इसे श्रद्धा-भक्ति से करेगा अथवा सुनेगा। जो लोगों का इस महात्म्य का उपदेश करेगा, वह उत्तम लोक को अवश्य प्राप्त करेगा।
अचला सप्तमी व्रत करने के फायदे:-अचला सप्तमी तिथि भगवान सूर्य देव को समर्पण होने से उनकी पूजा करके उनको खुश करने से मनुष्य को सब तरह के अच्छे नतीजे मिलते है।
◆अचला सप्तमी व्रत करने वाले को पूरे वर्ष भर के रविवार के व्रत करने का पुण्य मिलता है।
◆इस व्रत को करने से शरीर की चमड़ी खराब नहीं होती है और चमड़ी से सम्बंधित बीमारी के दोष ठीक हो जाते है।
◆बालक जन्म के समय बोल नहीं पाते है और चल नहीं पाते है।इसलिए मनुष्य को अपनी सन्तान के सही तरह से बोलने और सही तरीके से चल सके इसके इस व्रत को करने से सूर्य देव की रोशनी से बालक या बालिका को बोली और चलने के सम्बंध के दोष से मुक्ति मिल जाती है।
◆इस व्रत को करने से व्रती को देह की सुंदरता,अच्छी किस्मत और उसकी देह को अच्छी गति मिलती है।
◆जिन मनुष्य को अपनी राजकीय सेवा को पाना होता है,उनको इस व्रत के करने से फायदा मिलता है।
◆मनुष्य के द्वारा यह व्रत करने मनुष्य को प्रसिद्धि मिलकर उसका रुतबा बढ़ता है।
◆इस व्रत को करने से आँखों से सम्बंधित रोगों से मुक्ति मिलती है।
◆इस व्रत को करने से नौकरी मिलने से सम्बंधित परेशानी से आजादी मिलती है और नौकरी मिल सकती है।
◆इस व्रत को करने से मनुष्य को अच्छे लोक में जगह मिलती है।
◆इस व्रत को करने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है,जिससे मनुष्य को पितरों के सम्बंधित मिल रहे कष्टों से आजादी प्राप्त होती है।