पद्मिनी एकादशी व्रत विधि, कथा और महत्व(Padmini Ekadashi fasting method, story and importance):-
(मल मास शुक्लपक्ष एकादशी)
धनंजय कौंतेय ने पूछा : -हे श्रीकेशवजी।आप से निवेदन करता हूँ कि आप अधिक(लौंद या मल या पुरुषोत्तम) महीने में आने वाली एकादशी के बारे में बताएं।मल महीने के शुक्लपक्ष की एकादशी को क्या नाम से जाना जाता हैं, एकादशी की व्रत की विधि-विधान क्या हैं, इस एकादशी के व्रत में कौनसे देवता की पूजा-अर्चना की जाती हैं और इस एकादशी के व्रत को करने से क्या-क्या फल की प्राप्ति होती हैं?
श्रीमुरलीधरजी ने कहा : हे धनंजय।मल महीने में आने वाली एकादशी अनेक तरह के पुण्यों के फलों को प्रदान करने वाली होती हैं,उस एकादशी को 'पद्मिनी'के नाम से जाना जाता है।इस मल मास की पद्मिनी एकादशी के व्रत को करने व्रती को विष्णुधाम की प्राप्ति होती है।पद्मिनी एकादशी के व्रत के प्रभाव से अनेक तरह के किये हुए पापों से मुक्ति मिलती है,जीवन की गति से मुक्ति मिलकर मोक्ष की प्राप्ति होती हैं और भगवान के प्रति भक्ति भाव को देने वाली होती हैं।
इसलिए धनंजय पद्मिनी एकादशी के फल और गुणों को ध्यानपूर्वक मन को एक जगह पर स्थिर करके सुनो:
पद्मिनी एकादशी व्रत करने की विधि-विधान के नियम:-
पद्मिनी एकादशी के व्रत को करने वालों को एक दिन पूर्व अर्थात् दशमी तिथि के दिन से व्रत को शुरू करना चाहिए।
एकादशी तिथि के दिन सवेरे जल्दी उठकर अपनी दैनिकचर्या को पूरा करके स्नानादि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र को पहनकर मन ही मन भगवान के गुणगान करना चाहिए।
उसके बाद पुण्य-पावन जगह पर जाना चाहिए।
उस समय गोबर,मृत्तिका,तिल, कुश और आमलकी चूर्ण से विधिपूर्वक स्नान करना चाहिए।
स्नान करने से पूर्व देह पर मिट्टी लगाते समय उस मिट्टी से अरदास करनी चाहिए :हे मृत्तिके। मैं तुमको नमस्कार करता हूँ।तुम्हारे स्पर्श से मेरी देह पवित्र हो।समस्त औषधियों से पैदा हुई और पृथ्वी को पवित्र करने वाली,तुम मुझे शुद्ध करो।ब्रह्मा के थूक से पैदा होने वाली।तुम मेरे शरीर को छूकर मुझे पवित्र करो।हे शंख चक्र गदाधारी देवों के देव। चक्रपाणि जी।आप मुझे स्नान करने की आज्ञा दीजिये।'
इसके बाद वरुण मन्त्र ऊँ वरूणाय नमः मन्त्र का जाप करते हुए पवित्र तीर्थों के अभाव में उनका स्मरण करते हुए किसी भी तालाब में स्नान करना चाहिए।
स्नान के बाद स्वच्छ और सुंदर वस्त्र को पहनकर संध्या को तर्पण करके मन्दिर में जाकर भगवान की धूप,दीप, नैवेद्य,फूल,केसर आदि से पूजा-आराधना करनी चाहिए।
उसकेबाद में भगवान के सामने नाच-गायन आदि करना चाहिए।
भक्तजनों के साथ भगवान के सम्मुख पुराण की कथा सुननी चाहिए।
अधिक महीने के शुक्लपक्ष की पद्मिनी एकादशी का व्रत बिना जल को पियें करना चाहिए।
यदि व्रत करने वाले व्रती को जल के बिना व्रत करने की शक्ति नहीं होने पर जल पी सकते है या ज्यादा भूख सहन नहीं होने पर थोड़ा आहार ग्रहण करते हुए व्रत करना चाहिए।
रात्रिकाल में जागते हुए भगवान का गुणगान करते हुए नाच-गायन करना चाहिए।
हर प्रहर में व्रत करने वाले व्रती को भगवान या महादेवजी की पूजा करनी चाहिए।
पहले प्रहर में भगवान को नारियल, दूसर प्रहर में बिल्वफल, तीसरे प्रहर में सीताफल और चौथे प्रहर में सुपारी, नारंगी आदि फल को अर्पित करना चाहिए।
इससे पूर्व पहले प्रहर में अग्नि होम,दूसरे प्रहर में वाजपेय यज्ञ, तीसरे प्रहर में अश्वमेघ यज्ञ का और चौथे प्रहर में राजसूय यज्ञ का फल प्राप्त होता हैं।
इस व्रत से बढ़कर जगत् में कोई भी यज्ञ, तप,दान या पुण्य नहीं होता हैं।
एकादशी के व्रत से एकादशी व्रत को करने वाले व्रती को सभी तीर्थों और यज्ञों का फल प्राप्त होता हैं।
इस प्रकार सूर्य के उदय होने तक जागते हुए जागरण करना चाहिए।
उसके बाद प्रातःकाल अपनी दैनिकचर्या स्नानादि से निवृत होकर ब्राह्मणों को भोजन करना चाहिए।
इस तरह जो कोई भी मनुष्य इस विधि-विधानपूर्वक भगवान की पूजा करते हुए व्रत को करता है,उस मनुष्य का जन्म सफल हो जाता है और वें इस लोक में अनेक तरह के सुखों को भोगकर अन्त में भगवान विष्णुजी के विष्णुधाम को प्राप्त करता हैं।हे धनंजय।मैंने तुम्हें एकादशी के व्रत का पूरा विधि-विधान बता दिया हैं।
अब जो 'पद्मिनी एकादशी' का भक्तिपूर्वक व्रत कर चुके है,उनकी कथा कहता हूँ, तुम मन को एक जगह केंद्रित करके ध्यानपूर्वक सुनो।यह सुन्दर कथा ऋषिवर पुलस्त्यजी ने नारदजी को सुनाई थी।
पद्मिनी एकादशी व्रत की पौराणिक पुलस्त्यजी के द्वारा सुनाई हुए कथा:-एक समय पूर्व में कार्तवीर्य ने रावण को अपने बन्दीगृह में कैद कर लिया।उसे मुनिवर पुलस्त्यजी ने कार्तवीर्य से विनय करके छुड़ाया।
इस घटना को सुनने के बाद नारदजी ने पुलस्त्यजी से पूछा: 'हे ऋषिवर। उस मायावी रावण को जिसने समस्त देवताओं सहित इंद्रदेव को भी जीत लिया था,कार्तवीर्य ने किस तरह जीत,सो आप से निवेदन करता हूँ कि आप मुझे विस्तारपूर्वक समझाइये।
इस पर ऋषिवर पुलस्त्यजी ने कहा : 'हे नारदजी। पहले कीर्तिवीर्य नाम का एक राजा राज्य करता था।उस राजा के सौ स्त्रीयाँ थीं।उन सभी पत्नियों से राजा कीर्त्तवीर्य को उसके राज्य को सँभालने के योग्य कोई पुत्र सन्तान नहीं हुआ।तब राजा किर्त्तवीर्य ने सम्मानपूर्वक ज्ञानी ब्राह्मण पण्डितों को बुलवाया और पुत्र प्राप्त करने के लिए उन ब्राह्मण पण्डितों से उपाय पूछा।
तब पण्डितों ने राजा को कहा : हे राजन्।आपको पुत्र प्राप्ति के लिए पुत्र कामेष्ठी यज्ञ को करना चाहिए, जिससे आपको पुत्र की प्राप्ति अवश्य होगी।इस पर राजा ने अपने सेवकों को आदेश देककर पुत्र कामेष्ठी यज्ञ की तैयारी शुरू करवाई।नियत तिथि के दिन पुत्र कामेष्ठी यज्ञ को किया गया,जब यज्ञ पूरा हुआ तब भी राजा को इस यज्ञ से भी पुत्र प्राप्ति नहीं हुई और निराशा हाथ लगी।
राजा को सभी तरह से निराशा मिलने से राजा बहुत ही चिंतित हो गए।जिस तरह दुःखी मनुष्य को भोग नीरस मालूम पड़ते है,उसी तरह राजा किर्त्तवीर्य को अपना राज्य पुत्र के बिना दुःखमय प्रतीत होता था।अंत में राजा निराश होकर तप के द्वारा सिद्धियों को प्राप्त करने के लिए वन को चले गए,जिससे तप के फल से उनको पुत्र की प्राप्ति हो जावे।
राजा हरिश्चंद्र की पुत्री जो कि राजा किर्त्तवीर्य की पत्नी थी,वह भी अपने सभी सोने व हीरे-जेवरातों के आभूषण और अच्छे-अच्छे वस्त्रों को त्यागकर अपने पति के साथ गन्धमादन पर्वत पर चली गयी।उस जगह पर इन दोनों ने दश हजार वर्ष तक तपस्या की परंतु सिद्धि प्राप्त न हो सकी।राजा के शरीर में केवल मात्र हड्डिया ही शेष रह गयी थी।
यह देखकर प्रमदा ने विनय सहित महासती अनसुइया से पूछा : मेरे पतिदेव को तपस्या करते हुए दस हजार वर्ष बीत गए,परन्तु अभी तक भगवान खुश नहीं हुए हैं,जिससे मुझे पुत्र की प्राप्ति हो सके।इसका क्या कारण हैं?
इस पर अनसुइया ने कहा :कि अधिक (लौंद या मल) मास में जो कि छत्तीस महीने के बाद आता हैं,उसमें दो एकादशी होती हैं।इसमें शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम 'पद्मिनी और कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम 'परमा' हैं।उसके व्रत और जागरण करने से भगवान तुम्हें अवश्य ही पुत्र की प्राप्ति होगी।इसके बाद अनसुइया ने व्रत की विधि को बतलायी।रानी प्रमदा ने अनसुइया के द्वारा बताई गई विधु के अनुसार के पद्मिनी एकादशी का व्रत किया और रात्रि में जागरण किया।इस व्रत के प्रभाव से भगवान उस पर बहुत ही खुश हुए और वरदान माँगने को कहा।
रानी प्रमदा ने भगवान से कहा :हे देव। आप यदि मेरे द्वारा किये गए व्रत से खुश है और मुझे वरदान देना चाहते होतो आप यह वरदान मेरे पति को दीजिये।
प्रमदा की बात को सुनकर भगवान विष्णुजी बोले : 'हे प्रमदे !मल मास (लौंद) मुझे बहुत ही प्रिय हैं।उसमें भी एकादशी तिथि मुझे सबसे अधिक प्रिय है। इस एकादशी का व्रत और रात्रि जागरण तुमने विधिपूर्वक किया,इसलिए मैं तुम पर अत्यंत खुश हूँ।'इतना कहकर भगवान विष्णुजी राजा से बोले : 'हे राजेन्द्र !तुम अपनी इच्छा के अनुसार वर माँगों।क्योंकि तुम्हारी पत्नी ने एकादशी के व्रत को करके मुझे खुश किया हैं।
भगवान विष्णुजी की मधुर वाणी को सुनकर राजा किर्त्तवीर्य बोला : 'हे भगवन् !आप मुझे सबसे श्रेष्ठ,सबके द्वारा पूजित तथा आपके अलावा देव,दांव,मनुष्य आदि से अजेय उत्तम पुत्र दीजिये।इसके बाद भगवान विष्णुजी ने तथास्तु कहकर अंतर्धान हो गए।उसके बाद ये दोनों अपने राज्य को वापस आ गये।उन्हीं के यहाँ कार्तवीर्य उत्पन्न हुए थे।वे भगवान के अतिरिक्त सबसे अजेय थे।इन्होंने रावण को जीत लिया था।यह सब 'पद्मिनी एकादशी के व्रत के प्रभाव से हुआ था। इतना कहकर पुलस्त्यजी वहाँ से चले गये।
भगवान श्रीमाधव जी कहा ने:हे पाण्डुनन्दन अर्जुन ! यह मैनें अधिक (लौंद या मल या पुरुषोत्तम) मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का व्रत कहा हैं।जो मनुष्य इस एकादशी के व्रत को करता हैं,वह विष्णुधाम को जाता हैं।