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Saturday, March 13, 2021

श्रावण मास के शुक्लपक्ष की पुत्रदा एकादशी व्रत विधि, कथा और महत्व (Putrada Ekadashi fasting method, story and importance of Shukla Paksha of Shravan month)



श्रावण मास के शुक्लपक्ष की पुत्रदा एकादशी व्रत विधि,  कथा और महत्व (Putrada Ekadashi fasting method, story and importance of Shukla Paksha of Shravan month):-श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में जो एकादशी आती हैं उस एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहते है। श्रावण के शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी तिथि के दिन किया जाने वाला व्रत विशेष कर सन्तान को पाने के लिए किया जाता है। श्रावण के शुक्ल पक्ष पुत्रदा एकादशी के व्रत करने से सन्तान की प्राप्ति होती है और सन्तान की रक्षा भी होती है।इस व्रत को रखने वाली निःसन्तान व्यक्ति को पुत्र रत्न की प्राप्ति होती हैं।

धर्मराज ने कहा:हे श्रीकेशवजी!आप मुझे श्रावण मास के शुक्लपक्ष में आने वाली एकादशी के बारे में बताये,उस एकादशी को किस नाम से जाना जाता है,उस एकादशी की क्या विधि और महात्म्य है?आप की मधुर वाणी से इस माह की एकादशी के बारे में पूर्ण जानकारी करावे।

भगवान श्रीमाधव जी ने कहा:राजन्।आपको एक कथा सुनाता हूँ, ध्यानपूर्वक सुनये।

पुत्रदा एकादशी व्रत की पौराणिक कथा:-पुराने समय की बात है।द्वापर युग के शुरुआत का समय था।एक राज्य था,उस राज्य का नाम महिष्मतीपुर था।उस महिष्मती पुर राज्य पर महीजित नाम राजा शासन करता था।महीजित राजा का राज्य में सुख-शांति थी,लेकिन राजा महीजित को कोई भी पुत्र सन्तान नहीं थी।राजा अपने राज्य के उत्तराधिकारी के विषय में सोचता रहता था,की उसका वंश कैसे आगे बढ़ेगा और महिष्मती राज्य का क्या होगा?

अपने पुत्र सन्तान की इच्छा के पूरा नहीं होने से राजा को राज्य में किसी भी तरह का सुखदायक नहीं प्रतीत होता था। राजा की उम्र अधिक होने से राजा अपनी बड़ी उम्र को देखकर बहुत ही चिंता करते थे।राजा ने अपने प्रजावर्ग में बैठकर इस तरह कहा:प्रजाजनों!इस जन्म में मुझसे कोई बड़ा पापकर्म तो नहीं हुआ है। 

मैनें अपने कोषघर के खजाने में किसी के साथ अन्याय करके धन को नहीं जमा किया है।ब्राह्मणों और देवताओं का धन भी मैंने कभी नहीं लिया है।प्रजा को अपने पुत्र की तरह मानते हुए मैंने पालन किया है।अपने धर्म से पृथ्वी लोक पर अधिकार जमाया हैं।दुष्टों को,चाहे वे मेरे बन्धु और पुत्रों के समान ही क्यों न रहे हो उनको सभी की तरह समान रूप से दण्डित किया है।

अच्छे और सभ्य पुरुषों का मैंने हमेशा सम्मान किया है और किसी के प्रति भी किसी तरह का कोई ईर्ष्या और द्वेष भाव नहीं रख है।फिर भी क्या कारण है,जो कि मेरे घर में आज तक पुत्र सन्तान की चाहत पूर्ण नहीं हुई है?आप सभी प्रजा जनों इस पर सोच-विचार करें।

राजा के इस तरह की बातें सुनकर सभी प्रजा के जनों ने और पुरोहितों के साथ ब्राह्मणों ने राजा की भलाई के बारे में गहराई से सोचते हुए वन की ओर प्रवेश किया।राजा की भलाई की चाहत रखने वाले सभी जनों  ने इधर-उधर फिरते हुए ऋषिसेवित आश्रमों की खोज करने लगे।इस तरह घूमते-फिरते हुए उन सभी को ऋषिश्रेष्ठ लोमशजी के दर्शन हो गए।

ऋषिश्रेष्ठ लोमशजी धर्म के तत्वज्ञ,सभी तरह के शास्त्रों के बहुत ही बड़े विद्वान, बड़ी उम्र वाले और महात्मा है।लोमशजी की देह लोभ से भरी हुई है।वे ब्रह्माजी के समान तेजवान है। एक एक कल्प बीतने पर उनके शरीर का एक-एक लोभ विशीर्ण होता है,टूटकर गिरता है,इसलिए उनका नाम लोमश हुआ हैं।वे महामुनि तीनों कालों की बातें जानते है।उन्हें देखकर सब जनों को बहुत ही ज्यादा खुशी हुई।जब सभी जनों को अपने नजदीक आते देखते है।

लोमशजी ने कहा:'तुम सब जन किसलिए यहाँ पर आए हो?अपने आने का क्या प्रयोजन बताओ।तुम लोगों के लिए जो मेरे से भलाई होगी मैं उस को जरूर करूँगा।'

प्रजाजनों ने कहा:ब्रह्मन। महिष्मती नगर के राजा का महीजित नाम है,हम उनकी प्रजा है,राजा के अभी तक कोई पुत्र सन्तान नहीं हुई है।राजा महीजित हम सब प्रजा का ख्याल अपने पुत्र की तरह रखा और हमारा पालन कर रहे है।राजा महीजित को पुत्रहीन देख,उनके दुःख से दुःखित हो हम सबने तपस्या करने का पक्का निर्णय करके यहाँ पर आये है।

द्विजोत्तम।राजा के भाग्य से इस समय हमें आपका दर्शन हो गये है।महापुरुषों के दर्शन से ही मनुष्यों के समस्त काम सिद्ध हो जाते है।मुनिवर।आप से हम सब निवेदन करते है कि आप हमें कोई रास्ता बताये जिससे राजा महीजित को पुत्र रत्न की प्राप्ति हो जाये और उनका जो दुःख है,वह मिट जाये।उन सब प्रजाजनों की बाते सुनकर महर्षि लोमश दो घड़ी के लिए अपने ध्यान में मग्न हो गये।

उसके बाद राजा के पूर्व जन्म का वृतांत जानकर उन्होंने कहा: 'प्रजावृन्द!आप सभी को जो मैंने राजा महीजित के पूर्व जन्म के हाल को देखा हैं,उसको आप ध्यान से सुनिए।राजा महीजित पूर्वजन्म में मनुष्यों का रक्त चूसने वाला धनहीन वैश्य था।वह वैश्य गाँव-गाँव घूमकर व्यापार करता था।एक दिन ज्येष्ठ के शुक्लपक्ष में दशमी तिथि, जब दोपहर का सूर्य तप रहा था,वह किसी गाँव की सीमा में एक जलाशय पर पहुँचा।

पानी से भरी हुई बाबली देखकर वैश्य ने वहाँ जल पीने का विचार किया।इतने में वहाँ अपने बछड़े के साथ एक गाय भी आ पहुँची।वह प्यास से व्याकुल और सूर्य की गर्मी से गला सुख रहा था।अपनी प्यास बुजाने के लिए बिना पानी के तड़फ रहा था।

अतःबावली में जाकर पानी पीने लगा।वैश्य ने पानी पीती हुई गाय को हॉककर दूर हटा दिया और खुद पानी पीने लगा।उसी पाप काम के कारण राजा इस जन्म में पुत्रहीन हुए हैं।किसी जन्म के पुण्य से राजा को इस जन्म में निष्कण्टक राज्य की प्राप्ति हुई हैं।' 

प्रजाजनों ने कहा:मुनिवर!पुराणों में उल्लेख है कि प्रायश्चितरूप  पुण्य से पाप से पाप से पाप नष्ट होते है,अतः ऐसे पुण्यकर्म का उपदेश कीजिये,जिससे उस पाप का नाश हो जाय।

लोमशजी ने कहा:प्रजाजनों।श्रावण महीने के शुक्लपक्ष में आने वाली एकादशी होती है,उस एकादशी को'पुत्रदा' को नाम से जाना जाता हैं।वह मन की इच्छा के अनुसार फल देने वाली होती है।तुम इसी एकादशी को व्रत करो। यह सुनकर प्रजाजनों ने मुनिवर को नमस्कार किया और नगर में आकर पुत्रदा एकादशी'के व्रत का अनुष्ठान किया।

उन्होंने विधिपूर्वक जागरण भी किया और उसका निर्मल पुण्य राजा को अर्पण कर दिया।उसके बाद व्रत के पुण्य के फलस्वरूप राजा की रानी ने गर्भधारण किया और प्रसव समय आने पर एक सुंदर पुत्र को जन्म दिया।इस पुत्रदा एकादशी के महात्म्य को सुनने मात्र से भी सभी तरह के पापों से मुक्ति मिल जाती हैं तथा इहलोक में सुख पाकर परलोक में स्वर्गीय गति को प्राप्त होता हैं।


श्रावण माह की शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी व्रत का महत्व:- श्रावण माह की शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी व्रत करने से जिस मनुष्य दम्पति को सन्तान नहीं होती है उनको यह व्रत करने से सन्तान पुत्र की प्राप्ति होती है। मनुष्य दम्पति को पूरी श्रद्धा से श्रावण माह की शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी व्रत को करना चाहिए। 

भगवान श्रीपीताम्बरजी की पूजा करते है,उनको अपनी चाहत पूरी होती है।

श्रावण माह की शुक्ल पक्ष की पुत्रदा एकादशी व्रत को करने वालों अवश्य पुत्र सन्तान देते है।