अहोई अष्टमी व्रत कथा, पूजन, उजमणा विधि और आरती(Ahoi Ashtami Vrat Katha, Pujan, Uzamana Vidhi and Aarti):-या
अहोई माता की व्रत कथा, पूजन, उजमणा विधि और आरती(Ahoi Mata's fast story, worship, Uzamana Vidhi and Aarti):-अहोई अशोकाष्टमी व्रत प्रायः कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को उसी वार में किया जाता हैं, जिस वार की दीपावली होती है।उस दिन स्त्रियां पुत्रों की आरोग्यता और दीर्घायु प्राप्ति के लिये अहोई माता का चित्र दीवार पर बनाकर पूजन किया करती है,जिससे अहोई माता की अनुकृपा व्रत करने वाली स्त्रियों के पुत्रों के ऊपर बनी रहे।
अहोई अष्टमी व्रत-विधि-विधान और पूजन:-अहोई अष्टमी व्रत को दिन भर बिना भोजन के किया जाता हैं। यह व्रत स्त्रियों के द्वारा किया जाता है, जिनके सन्तान नहीं होती है। बच्चों की माँ दिनभर व्रत को रखती है। जिस समय तारा मण्डल आकाश में उदय हो जायें। उस समय वहां पर जल का लोटा रखकर चांदी की स्याऊ और गुड़िया रखकर मौली नाल में पिरो लेवें। ततपश्चात रोली चावल से अहोई माता के सहित स्याऊ माता को अरचे और शीरा आदि का भोग लगाकर कहानी सुनना चाहिए।
अहोई अष्टमी व्रत की साहूकार-साहूकारनी की पहली कथा:-एक नगर था, उस नगर में एक साहूकार-साहूकारणी रहते थे।उन दोनों के सात पुत्र सन्तान के रूप में बेटे थे। एक दिन साहूकारणी खेत में मिट्टी खोद रही थी। खेत में ज्यों ही कुल्हाड़ी मारी ज्यों ही उसी ही के बच्चे कुल्हाड़ी की चोट से सदा के लिए सो गए। इसके बाद उसने कुल्हाड़ी को स्याहूं के खून से सना देखा तो उसे उसी के बच्चों के मर जाने का बड़ा दुःख हुआ।परन्तु वह विवश थी और यह काम उससे अनजाने में ही हो गया था।इसके बाद बिना मिट्टी लिए ही खेद करती हुई अपने घर आ गई। उधर जब से ही अपने घर में आई तो अपने बच्चों को मरा देखकर नाना प्रकार से विलाप करने लगी और ईश्वर से प्रार्थना की जिसने मेरे बच्चों को मारा है, उसे इसी प्रकार कष्ट होना चाहिये।ततपश्चात से ही के शाप से सेठानी के सातों लड़के एक साल के अंदर मर गए।इस प्रकार अपने बच्चों को असमय में काल के मुंह चले जाने पर सेठ-सेठानी इतने दुःखी हुए की उन्होंने किस तीर्थ पर जाकर अपने प्राणों को तज देना उचित समझा। इसके बाद वे घर बार छोड़कर पैदल ही किसी तीर्थ की ओर चल दिये और खाने-पीने की ओर कोई ध्यान न देकर जब तक उनमें कुछ भी शक्ति एवं साहस रहा, तब तक वह दोनों चलते रहे। जब वे दोनों पूर्णतया से थक गए तो अंत में मूर्छित होकर गिर पड़े।
उनकी यह दशा देखकर भगवान करुणासागर ने उनको मृत्यु से बचाने के लिए उनके पापों का अंत चाहा और इस अवसर पर आकाशवाणी हुई-हे सेठ! तेरी सेठानी ने अपने मिट्टी खोदते समय ध्यान न देकर ही अपने बच्चों को मार दिया था। उसके कारण तुम्हें अपने बच्चों का दुःख देखना पड़ा। यदि अब पुनः घर जाकर तुम मन लगाकर गऊ की सेवा करोगे और अहोई माता देवी का विधि-विधान से व्रत आरम्भ कर प्राणियों पर दया रखते हुए स्वप्न में भी किसी को कष्ट नहीं डोज तो तुम्हें भगवान की कृपा से पुनः सन्तान सुख प्राप्त होगा। इस प्रकार की आकाशवाणी सुनकर सेठ-सेठानी कुछ आशावान हो गए। फिर भगवती देवी का स्मरण करते हुए अपने घर चले आए। इसके बाद श्रद्धा भक्ति से न केवल अहोई माता के व्रत के साथ गऊ माता की सेवा करना आरंभ कर दिया। अपितु सभी जीवों पर दया भाव रखते हुए क्रोध और द्वेष का परित्याग कर दिया। ऐसा करने के पश्चात भगवान की कृपा से सेठ-सेठानी के पुनः सातों पुत्र वाले होकर और अगणित पौत्रों के सहित संसार में नाना प्रकार के सुखों को भोगने के बाद स्वर्ग को चले गए।
अहोई अष्टमी व्रत की कथा से शिक्षा एवं महत्व:-बहुत ही सोच-विचार के बाद भली प्रकार निरीक्षण करने पर ही कार्य आरंभ करना चाहिए और अनजाने में किसी भी प्राणी की हिंसा नहीं करना चाहिए। गऊ माता की सेवा के साथ-साथ ही अहोई माता अजन्मा देवी भगवती की पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने पर अवश्य सन्तान सुख के साथ-साथ धन-वैभव लक्ष्मी, शान्ति प्राप्त होती हैं।
अहोई अष्टमी व्रत पूजन विधि-विधान:-यह व्रत कार्तिक कृष्ण अष्टमी को किया जाता हैं। जिस वार की दीपावली होती है,अहोई अष्टमी भी उसी वार की होती है। इस व्रत को वे स्त्रियां करती हैं, जिनके सन्तान नहीं होती है। बच्चों की माँ को दिनभर व्रत रखना चाहिए। सायंकाल पर अष्ट-कोष्ट की अहोई की पुतली रंग भरकर बनाये तथा उसका पूजन करना चाहिए।
◆पूजन करने के बाद सूर्यास्त के बाद अर्थात तारे निकलने पर एक लोटे में जल भरकर एक पाटे पर कलश के भाँति रखकर पूजा करनी चाहिए।
◆अहोई माता का पूजन करके मातायें कहानी सुननी चाहिए।
◆पूजा के लिए माताऐं पहले एक चांदी की अहोई बनायें, जिसे स्याऊ भी कहते हैं और उसमें चांदी के दाने "माती बनवा लेना चाहिए" इस प्रकार गले में जिसमें पहनने के हार में पेंडल लगा होता हैं, उसी भाँति चांदी की अहोई डलवा लेना चाहिए।
◆डोरे में चांदी के पाने डलवा लें। फिर अहोई माता को रोली, कुंकुम, चावल, दूध एवं भात से पूजा करनी चाहिए।
◆जल से भरे लोटे पर स्वास्तिक बनाना चाहिए।
◆एक कटोरी में हलवा और रुपये वायना निकाल के रखना चाहिए।
◆सात दाने गेहूँ के लेकर कहानी को सुनना चाहिए।
◆कहानी सुनने के बाद अहोई स्याऊ की माला को गले में पहन लेना चाहिए।
◆जो वायना निकाल कर रखा था, उसे सासुजी को पांव लगकर देना चाहिए।
◆इसके बाद चन्द्रमा को अर्ध्य देकर स्वयं भोजन को करना चाहिए।
◆दीपावली के बाद किसी शुभ दिन अहोई को गले से उतार कर उसका गुड़ से भोग लगाना चाहिए और जल के छींटे देकर सिर झुकाकर रख देना चाहिए।
◆जितने बेटे हो उतनी बार तथा जितने बेटों के विवाह हो गया हो, उतनी बार चांदी के दो-दो दाने अहोई में डालते रहना चाहिए।
◆ऐसा करने से अहोई देवी प्रसन्न होकर बच्चों की दीर्घायु करके घर में नित नये मंगल करती रहती है। उस दिन पंडितों को पेठा व दान करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती हैं।
अहोई अष्टमी व्रत के उजमणा की विधि:-जिस स्त्री के बेटा हुआ हो अथवा बेटे का विवाह हुआ हो तो उसे अहोई माता का उजमणा करना चाहिए।
◆एक थाली में सात जगह चार-चार पुड़िया रखकर उन पर थोड़ा हलवा रखना चाहिए।
◆इसके साथ ही एक पीली साड़ी, ब्लाउज उस पर अपने सामर्थ्य के अनुसार रुपये रखकर हाथ में पानी लेकर थाली के चारों तरफ हाथ फेर कर श्रद्धापूर्वक सासुजी के पांव छूकर वह सभी सामान सासुजी को देना चाहिए।
◆हलवा-पुड़ी का वायना अपने परिवार की सवासनी, बहिन-बेटी को देना चाहिए।
अहोई माता की दूसरी कथा:-यह व्रत प्रायः जिस वार दीपावली आती हैं,उसी वार को व्रत करना चाहिए।इस व्रत में घर में लक्ष्मी और पुत्रों की दीर्घ आयु के लिये किया जाता हैं।
अहोई अष्टमी व्रत की विधि:-चांदी की अहोई बनाते हैं।दो मोती-चांदी के डाल कर उस दिन लड़के की माँ गले में पहनती हैं।
◆हलवा-पुड़ी बनाकर उस हलवे-पुड़ी से पूजन करना चाहिए।
◆रात को तारा देखकर भोजन को ग्रहण करना चाहिए।
◆लड़के की शादी पर उजमणा करना चाहिए।
अहोई अष्टमी व्रत की सेठ-सेठानी की दूसरी कथा:-एक नगर में एक सेठ-सेठानी रहते थे।उनके सात बेटे-बहू थे और एक बेटी थी। दीपावली से पहले कार्तिक कृष्ण अष्टमी को इकलौती ननद अपनी सातों भाभीयों के साथ मिट्टी खोदने गई। मिट्टी खोदते समय ननद के हाथ से स्याऊ के बच्चे मर गये।
जब स्याऊ माता बोली-मैं तेरी कोख बांधूगी। जब ननद अपनी भाभीयों को कहा: कि मेरे बदले में आप कोई कोख बन्धालो।बड़ी वाली छः भाभीयों ने मना कर दिया। सबसे छोटी वाली ने अपनी कोख बंधवा ली। छोटी भाभी के बच्चे होते ही सात दिन के अंदर मर जाते थे।
एक दिन वह पंडित को बुलाकर पूछा:कि मेरे संतान सात दिन के अन्दर क्यों मर जाती हैं? जब पंडितजी ने कहा: कि तुम काली गाय की सेवा करो। काली गाय स्याऊ माता की सहेली हैं। छोटी बहू रोज काली गाय की सेवा करती थी और सारा काम करके सो जाती थी। जब गाय माता ने सोचा कि आजकल मेरी इतनी साफ-सफाई और सेवा कौन कर रही हैं? एक दिन जल्दी उठे तो छोटी बहू ने सभी काम करते हुए देख लेती हैं। जब बहू को बोला कि मैं तेरी सेवा से प्रसन्न हूँ।बोल तेरी क्या इच्छा हैं? जब बहू बोली-स्याऊ माता आपकी सहेली है।उसके पास मेरी कोख बांधी हुई है। जो मेरी कोख खोलवा दो। जब वह सात समुद्र पार अपनी सहेली के पास ले चली। रास्ते में धूप पड़ने लगी तो एक पेड़ के नीचे बैठ गयी। पेड़ के अंदर गरुड़ पक्षी के बच्चे थे। जो उनको सांप डसने लगा। जब बहू सांप को मारकर मिट्टी के नीचे दबा दिया। गरुड़ पक्षी ने आकर खून देखा तो बहू को आकर मारने लगे।
जब बहू बोली: कि मैंने सांप आपके बीच को बचाया हैं।आपके बच्चे को सांप डसने लगा तो मैंने सांप को मार डाला, जिससे खून का दाग हैं। जब गरुड़ पक्षनी बोली:कि मांग क्या मांगती हैं?
बहू बोली-मुझे सात समुद्र पार स्याऊ माता के पास पहुंचा दो। गरुड़ आपके पंख पर बैठाकर सात समुद्र पार दोनों को पहुंचा देते हैं। इधर गाय स्याऊ माता सहेली को देखकर बोली:बहुत दिनों से मेरी याद आई है।
स्याऊ माता बोली:कि मेरे सिर में जुऐं पड़ गयी है। जब गाय माता बोली:कि मेरे साथ बणीये के बेटे की बहू हैं, यह जुऐं निकाल देगी। बेटे की बहू ने सारी जुऐं निकाल दी। जब स्याऊ माता उस प्रसन्न हो गयी। तुमने मेरा साफ किया है, तेरे सात बेटे-बहू होंगे।
जब बहू बोली:मेरे तो एक भी बेटा जीवित नहीं है, तो सात बेटे-बहू कहां से होंगे।
स्याऊ माता बोली:क्यों नहीं जीवित रहते हैं? जब बहू बोली: की मुझे वचन दो तो बताऊं। स्याऊ माता उसको वचन दे देती हैं।
सेठ की बहू बोली:की मेरी कोख तो आपके पास बंधी पड़ी हैं। स्याऊ माता बोली: कि तुमने तो मुझे ठग लिया है। तेरी कोख खोलती तो नहीं, लेकिन अब खोलनी पड़ेगी। जा अब तेरे घर तुझे सात बेटे-बहुऐं मिलेगी। तुम जाकर स्याऊ माता का उजमणा करना। बहू घर आवे तो देखे की सात बेटे-बहूऐं बैठी हैं।वह खुश हो गयी। बहू ने सात अहोई बनाई। सात उजमणा किये। सात कढ़ाई की। सात जगह सात-सात पुड़ी-हलवा रखा।
उधर देरानी-जेठानीयां अपने बच्चे से कहा:कि जल्दी-जल्दी भोजन करके झूठा कर लेते हैं। धोक दे दो। अभी चाची के रोने की आवाज आने लग जायेगी।
चाची के घर से जब कोई आवाज नहीं आई तो अपने बच्चे को कहा:कि जा देखकर आ। आज चाची क्यों नहीं रो रही हैं?
तब बच्चे आकर बोले:कि चाची के तो अहोई बना रहे हैं।खूब उजमणा हो रहा हैं। जब सभी देवरानी-जेठानीयां दौड़ती हुई उसके पास गई और पूछने लगी कि तुमने कोख कैसे छुड़वाई। बहू ने सारी आप बीती बतायी।
सभी घर वाले स्याऊ माता को प्रणाम किया और कहा:कि हे स्याऊ माता! छोटी बहू की कोख खोली जैसी सभी बहू, बेटियों की कोख खोलना।
कहने वालों की, हुंकारा भरने वालों की भी जय।
"स्याऊ माता की जय।"
।।अथ श्री अहोई माता जी की आरती।।
जय अहोई माता जय अहोई माता।
तुमको निशदिन सेवत हरि विष्णु विधाता।।
जय अहोई माता जय अहोई माता।
तुमको निशदिन सेवत हरि विष्णु विधाता।।
ब्राह्मणी रुद्राणी कमला तू ही जग दाता।
सूर्य चन्द्रमा ध्यावत नारद ऋषि गाता।।
जय अहोई माता जय अहोई माता।
तुमको निशदिन सेवत हरि विष्णु विधाता।।
माता रूप निरंजन सुख सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता।।
जय अहोई माता जय अहोई माता।
तुमको निशदिन सेवत हरि विष्णु विधाता।।
तू ही है पाताल बसन्ती तू ही है सुखदाता।
कर्म प्रभाव प्रकाशक जगनिधि की त्राता।।
जय अहोई माता जय अहोई माता।
तुमको निशदिन सेवत हरि विष्णु विधाता।।
जिस घर थारो वासो बाहि में गुण आता।
कर सके सोई कर ले मन नहीं घबराता।।
जय अहोई माता जय अहोई माता।
तुमको निशदिन सेवत हरि विष्णु विधाता।।
तुम बिन सुख न होवे पुत्र न कोई पाता।
खान-पान को वैभव तुम बिन नहीं आता।।
जय अहोई माता जय अहोई माता।
तुमको निशदिन सेवत हरि विष्णु विधाता।
शुभ गुण सुन्दर वक्ता क्षीर निधि जाता।
रतन चतुर्दिश तो कूं कोई नहीं पाता।।
जय अहोई माता जय अहोई माता।
तुमको निशदिन सेवत हरि विष्णु विधाता।।
श्री अहोई मां की आरती जो कोई गाता।
उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता।
जय अहोई माता जय अहोई माता।
तुमको निशदिन सेवत हरि विष्णु विधाता।।
जय अहोई माता जय अहोई माता।
तुमको निशदिन सेवत हरि विष्णु विधाता।।
।।इति श्री अहोई माता की आरती।।
।।जय बोलो अहोई माता की जय।।