देवझूलनी एकादशी व्रत विधि, कथा और महत्व (Devjhulani Ekadashi fasting method, story and importance):-भाद्रपद शुक्लपक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी भी कहते है।भगवान की प्रतिमा या मूर्ति को नदी या तालाब में स्नान कराकर फिर से स्थापित किया जाता है, इसलिए इस एकादशी को देवझूलनी एकादशी कहते है।
देवझूलनी एकादशी व्रत विधि:-इस दिन सभी मंदिर के देवता को असवारी (पालकी) में बैठाकर तालाब में स्नान कराकर लाते हैं।इसे रेवाड़ी निकलना भी कहते है।
◆इस व्रत करने वालो को प्रातःकाल जल्दी उठकर अपनी दैनिकचर्या से निवृत होकर स्वच्छ कपड़े पहनना चाहिए।
◆देवझूलनी एकादशी के दिन मनुष्य को ब्रह्ममुहूर्त में उठकर व्रत को करने का मन ही मन में संकल्प करना चाहिए और पूजा भी करनी चाहिए।
◆रात के समय में भगवान विष्णुजी की प्रतिमा या मूर्ति के सामने गीत, नृत्य, कथा आदि का कीर्तन करते हुए रात्रि को बिताना चाहिए।
◆देवझूलनी एकादशी के दिन अनार, फूल, धूप आदि से भगवान श्रीविष्णुजी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
◆भगवान श्रीविष्णुजी को अर्ध्य अर्पण करना चाहिए।इसका फल तीर्थ और दान आदि से करोड़ गुना अधिक होता हैं।
◆जो गुलाब के फूल से बकुल और अशोक के फूलों से, सफेद और लाल कनेर के फूलों से, दूर्वादल से, शमीपत्र से, चम्पक पुष्प से भगवान श्रीविष्णुजी की पूजा-अर्चना करते हैं,वे आवागमन के चक्र से छूट जाते है।इस तरह रात्रि में भगवान की पूजा करके प्रातःकाल स्नान के बाद भगवान से प्रार्थना करनी चाहिए।
◆उसके बाद अपने गुरु देव की पूजा करनी चाहिए और सदाचारी और पवित्र ब्राह्मणों को अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा देकर सन्तुष्ट करके अपना व्रत को छोड़ना चाहिए।
◆इस दिन यशोदा माता को जलवा पूजाते हैं।
◆गौ त्रिरात के वास इस दिन से करते हैं।
◆एकादशी से वास शुरू करके पूनम को पारना करते है।
देवझूलनी एकादशी व्रत की पौराणिक कथा:-पुराने समय एक राजा एक राज्य पर शासन करता था।उस राजा के राज्य में सभी प्रजा सुखी थी।उसके राज्य में एकादशी को कोई भी अन्न नहीं बेचता था।सभी फलाहार करते थे।एक बार भगवान ने राजा की परीक्षा लेनी चाही।भगवान ने एक सुन्दरी का रूप धारण किया तथा सड़क पर बैठ गए।तभी राजा उधर से निकला और सुन्दरी को देखकर चकित रह गया।
उसने पूछा-हे सुन्दरी! तुम कौन हो और इस तरह यहां क्यों बैठी हो?तब सुंदर स्त्री बने भगवान बोले-मैं निराश्रिता हूँ।नगर में मेरा कोई जाना-पहचाना नहीं हैं।किससे सहायता मांगू?राजा उसके रूप पर मोहित हो गया था। वह बोला-तुम मेरे महल में चलकर मेरी रानी बनकर रहो।
सुन्दरी बोली-मैं तुम्हारी बात नहीं मानूंगी।लेकिन तुम्हें राज्य का अधिकार मुझे सौंपना होगा।राज्य पर पूर्ण अधिकार होगा।मैं जो भी बनाऊंगी, तुम्हें खाना होगा।राजा उसके रूप पर मोहित था। अतः उसने उसकी सभी शर्तें स्वीकार कर ली।अगले दिन एकादशी थी।रानी ने हुक्म दिया कि बाजारों में अन्य दिनों की तरह ही अन्न बेचा जाए।उसने घर में मांस-मछली आदि पकवाए तथा परोसकर राजा को खाने को कहा।यह सब देखकर राजा बोला-रानी! आज एकादशी हैं।मैं तो फलाहार ही करूँगा।तब रानी ने शर्त की याद दिलवाई और बोली या तो खाना खाओ,नहीं तो मैं बड़े राजकुमार का सिर काट लूंगी।
राजा ने अपनी स्थिति बड़ी रानी से कही तो वह बोली-महाराज! धर्म मत छोड़ो।बड़े राजकुमार का सिर दे दो।पुत्र तो फिर मिल जाएगा,लेकिन धर्म नहीं मिलेगा।इस दौरान बड़ा राजकुमार खेलकर आ गया।मां की आंखों में आंसु देखकर वह रोने का कारण पूछने लगा तो मां ने उसे सारी वस्तु स्थिति बता दी।
तब वह बोला- मैं सिर देने के लिये तैयार हूँ।पिताजी के धर्म की रक्षा जरूर होगी।राजा दुःखी मन से राजकुमार का सिर देने को तैयार हुआ तो रानी के रूप में भगवान श्रीविष्णुजी प्रकट होकर सच्ची बात बतायी-राजन्!तुम इस कठिन परीक्षा में पास हुए।
भगवान ने प्रसन्न मन से उससे वर मांगने को कहा तो राजा बोला-आपका दिया हुआ सब कुछ है।हमारा उद्धार करें। उसी समय वहां एक विमान उतरा।राजा अपना रानी पुत्र को सौंप दिया और विमान में बैठकर परमधाम को चले गये।
देवझूलनी एकादशी व्रत का महत्व:-जो मनुष्य 'देवझूलनी एकादशी के दिन विधिपूर्वक व्रत करते है, उन्हें अनन्त सुख मिलता है और अंत में मृत्यु के बाद स्वर्गलोग की प्राप्ति होती है।
◆जिस वस्तु का त्रिलोक में मिलना संभव नहीं हैं, वही वस्तु एकादशी के व्रत से मिल जाती है।
◆इस एकादशी के व्रत को करने से व्रत के असरस्वरूप पहले जन्म में किये गये अनेक तरह के बुरे कर्म से मुक्ति मिल जाती है और बुरे कार्य खत्म हो जाते है।
◆जो मनुष्य इस एकादशी के दिन श्रद्धापूर्वक थोड़ा भी पुण्य का कार्य करता है,उनका वह पुण्य पर्वत की तरह स्थिर हो जाता है।उस व्रत करने वाले के पितृ विष्णुधाम को प्राप्त हो जाते है।
◆ब्रह्महत्या आदि जघन्य महान पाप कर्म भी इस एकादशी के दिन रात के समय में जागरण करने से भी नष्ट हो जाते है।
◆मनुष्य को भगवान की खुशी के लिए इस एकादशी का व्रत को जरूर करना चाहिए।
◆जो मनुष्य इस एकादशी का व्रत करता है उस मनुष्य को यह एकादशी अपने प्रभाव से धनवान,योगी, तपस्वी तथा इन्द्रियों को जीतने वाला बना देती है,क्योंकि यह एकादशी भगवान श्रीविष्णुजी को बहुत प्यारी होती है।
◆इस एकादशी के दिन जो मनुष्य भगवान की प्राप्ति के लिए दान, तप, होम, यज्ञ (भगवान्नामजप भी परम यज्ञ है। 'यज्ञानां जपयज्ञोअस्मि'। यज्ञों में जपयज्ञ मेरा ही स्वरूप हैं।'-श्रीमद्भगवद्गीता) आदि करते हैं,उन्हें अक्षय पुण्य मिलता हैं।