देवशयनी एकादशी(आषाढ़ी एकादशी) व्रत विधि के नियम,कथा और महत्व (Devshayani Ekadashi (Ashadhi Ekadashi) fasting rules, story and importance):-हिन्दु पुराणों के मतानुसार ऐसा विवरण मिलता है,की देवशयनी एकादशी के दिन से भगवान विष्णुजी चार महीने के समय तक बलिद्वार पाताल लोक में रहने के जाते है।राजा बलि के राज्य पाताललोक में चार महीने तक रहते है और चार मास तक रहने के बाद कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को वापस आना होता है।इसी कारण इसे हरिशयनी एकादशी तथा कार्तिक वाली एकादशी को "प्रबोधिनी एकादशी"के नाम से जाना जाता है।
आषाढ़ मास से कार्तिक मास के समय को "चातुर्मास"कहते है।इन चार महीनों में भगवान विष्णुजी क्षीर सागर की अनंत शैय्या पर शयन करते है।इसलिये खेती के काम के अलावा समस्त अच्छे काम बंद रहते हैं।धार्मिक दृष्टि से यह चार माह भगवान विष्णुजी का"निंद्राकाल" माना जाता हैं।इन दिनों में तपस्वी(साधु)एक स्थान पर रहकर तप कार्य करते है।गुजरात, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश में देवशयनी एकादशी को आषाढ़ी एकादशी भी कहते है।इस दिन पुष्कर में जाकर ब्रह्माजी के दर्शन और उनकी पूजा-अर्चना करने का बहुत ही महत्व बताया गया है।
धर्मराज ने श्रीमध्वजी से पूछा:हे भगवान केशवजी।कौनसी एकादशी आषाढ़ महीने के शुक्लपक्ष में आती हैं?उस एकादशी को किस नाम से जाना जाता है और उस एकादशी की क्या विधि है?आप से निवेदन करता हूँ,की आप मुझे बताये।
भगवान श्रीमाधव जी ने कहा:हे राजन् धर्मराज।आषाढ़ महीने में आने वाली एकादशी को 'शयनी'नाम से जाना जाता है।मैं इस 'शयनी'के बारे में विस्तारपूर्वक बताता हूँ।'शयनी एकादशी'महान कल्याणकारी, स्वर्ग और मोक्ष देने वाली,सब तरह के किये हुए बुरे पापों को नष्ट करने वाली और सबसे अच्छे व्रत वाली है।
आषाढ़ महीने के शुक्लपक्ष की'शयनी एकादशी के दिन जिन मनुष्य ने कमल फूल से कमललोचन भगवान श्रीहरि का पूजन और इस एकादशी का व्रत सबसे अच्छा व्रत किया है,उस मनुष्य ने तीनों लोकों और तीनों सनातन देवताओं का पूजन कर लिया है।
देवशयनी एकादशी के दिन मेरा एक स्वरूप पाताललोक के राजा बलि के यहां पर निवास करता है और दूसरा स्वरूप क्षीरसागर में शेषनाग की शैय्या पर तब तक शयन करता है,जब तक आगामी कार्तिक की एकादशी नहीं आ जाती, इसलिए आषाढ़ मास के शुक्लपक्ष की एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक मानव को अच्छी तरह से धार्मिक आचरण करते रहना चाहिए।जो मनुष्य इस व्रत का अनुष्ठान करता है,उसको उत्तम गति मिलती है और जीवन-मरण से मुक्ति मिल जाती है।
इस एकादशी के व्रत को पूरी श्रद्धा से अपनी पूरी कोशिश से करना चाहिए।भगवान श्रीविष्णुजी जो कि शंख,चक्र और गदा को धारण किये हुए होते है,उनकी पूजा पूरी विधि-विधान से करना चाहिए।इस तरह से इस एकादशी व्रत में भगवान विष्णुजी की पूजा करने से उस मनुष्य की पुण्य की गिनती स्वंय चार मुख वाले ब्रह्मदेव भी नहीं कर सकते है।
देवशयनी एकादशी व्रत की पौराणिक कथा:-एक बार देवऋषि नारदजी ने ब्रह्माजी से एक एकादशी के विषय में जानने की उत्सुकता प्रकट की।तब ब्रह्माजी ने उन्हें बताया-सतयुग में एक राजा था,उस राजा का नाम मान्धाता था,वह बहुत ही पराक्रमी और चक्रवती सम्राट था।मान्धाता राजा के राज्य में सभी प्रजा बहुत ही सुखी थी।किन्तु भविष्य में क्या हो जाए यह कोई नहीं जानता।अतः वे इस बात से अनजान थे कि उनके राज्य में शीघ्र ही भयंकर अकाल पड़ने वाला हैं।उनके राज्य में पूरे तीन वर्ष तक वर्षा नहीं हुई,जिसके कारण उस राज्य में भयंकर अकाल पड़ गया।इस दुर्भिक्ष(अकाल) में चारों ओर त्राहि-त्राहि मच गई।धर्म पक्ष के यज्ञ,हवन,पिण्डदान कथा-व्रत आदि सब में कमी हो गई।
जब मुसीबत पड़ी हो तो धार्मिक कार्यों में प्राणी की रुचि खान रह जाती हैं?प्रजा ने राजा के पास जाकर अपनी वेदना की दुहाई दी।राजा तो इस स्थिति को लेकर पहले से दुःखी थे।वे सोचने लगे कि आखिर मैंने ऐसा कौनसा पाप कर्म किया है,जिसका दंड मुझे और मेरी प्रजा को अकाल के रूप में मिल रहा है?फिर इस कष्ट से मुक्ति पाने का कोई साधन करने के उद्देश्य से राजा सेना लेकर जंगल की ओर चल दिए।वहां विचरण करते-करते एक दिन वे ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम में पहुंचे और उन्हें साष्टांग प्रणाम किया।ऋषिवरने आशीर्वचन उपरान्त कुशल क्षेम पूछा।फिर जंगल में विचरने तक हाथ जोड़कर कहा-महात्मन सभी तरह से धर्म का पालन करता हुआ भी मैं अपने राज्य में दुर्भिक्ष का दृश्य देख रहा हूँ।आखिर किस कारण से ऐसा हो रहा है।कृपया इसका समाधान करें।यह सुनकर महर्षि अंगिरा ने कहा-राजन!सब योगों से उत्तम यह सतयुग है।इसमें छोटे पाप का भी बड़ा दंड मिलता है।इसमें धर्म अपने चारों चरणों में व्याप्त रहता है।ब्राह्मण के अतिरिक्त किसी अन्य जाति को तप करने का अधिकार नहीं है।जबकि आपके राज्य में यह शुद्ध तपस्या कर रहा है।यही कारण है कि आपके राज्य में वर्षा नहीं ही रही हैं।जब तक वह काल को प्राप्त नहीं होगा।तब तक यह दुर्भिक्ष शांत नहीं होगा।दुर्भिक्ष की शांति उसे मारने से संभव है।किन्तु राजा हृदय एक निरपराध शुद्ध तपस्वी का शमन करने नो तैयार नहीं हुआ।
उन्होनें कहा-हे देव!मैं उस निरपराध को मार दूं।यह बात मेरा मन स्वीकार नहीं कर रहा है।कृपा करके आप कोई और उपाय बताए।
अंगिरा ने कहा-आषाढ़ माह शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करें।इस व्रत के प्रभाव से अवश्य वर्षा होगी।राजा अपने राज्य की राजधानी लौट आए और चारों वर्णों सहित पदमा एकादशी का विधिपूर्वक व्रत किया।पदमा एकादशी के व्रत के प्रभाव से उनके राज्य में मूसलाधार वर्षा हुई और पूरा राज्य धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया।
देवशयनी एकादशी व्रत का महत्व एवं नियम:-राजन् धर्मराज। जो मनुष्य इस सभी तरह के पापों को हरने वाली,भोग और मोक्ष को देने वाली शयनी एकादशी का व्रत को पालन करता है,वह जाति में निम्न समझे जाने वाली चाण्डाल जाति का मनुष्य भी इस जगत् में सदा मेरा प्यारा होता है।
जो मनुष्य दीपदान,पलाश के पान पर खाना और व्रत को करते हुए चौमासा को बिताते है,वे सभी मेरे को प्यारे होते है।चौमासा में भगवान चक्रपाणि जी अपनी निंद्रा में रहते है,इसलिए मनुष्य को जमीन पर चौमासा में सोना चाहिए।
सावन में साग,भादों में दही,क्वार में दुग्ध और कार्तिक मास में दाल को छोड़ देने से फायदा होता है।
जो मनुष्य चौमासे के महीने में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करता है,तो उस मनुष्य को उत्तम गति मिलती है।
राजन्। 'शयनी एकादशी के दिन व्रत करने से ही मानव के सभी तरह के किये गए बुरे पापों से मुक्ति मिल जाती हैं,इसलिए हमेसा व्रत को करते रहना चाहिए।
शयनी और 'बोधिनी'के बीच में जो कृष्णपक्ष की एकादशियाँ आती है,वे एकादशियाँ गृहस्थ जीवन को जीने वाले के लिए बहुत ही योग्य होती है-दूसरे मे सन की कर्षनपक्षीय एकादशी गृहस्थ जीवन को जीने वालों के लिए ठीक नहीं रहती है।शुक्लपक्ष की सब एकादशी करनी चाहिए।