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Wednesday, March 31, 2021

होली पर्व विधि,पौराणिक कथा और महत्व(Holi festival method, mythology and importance)

             

होली पर्व विधि,पौराणिक कथा और महत्व(Holi festival method, mythology and importance):-होलिका दहन का त्यौहार फाल्गुन की पूर्णिमा को मनाया जाता हैं। यह हिंदुओं का बहुत बड़ा त्यौहार हैं। इस दिन सभी स्त्री-पुरुष और बच्चे होली का पूजन करते हैं। पूजन करने के बाद होलिका को जलाया जाता हैं। इस पर्व पर व्रत करना चाहिए।

होली के पर्व की कहानी या होली की कथा विष्णु पुराण के अनुसार:-एक समय पूर्व की बात है कि भारतवर्ष में हिरण्यकश्यप नाम का राक्षस राज्य करता था। उसके एक पुत्र था। जिसका नाम प्रहलाद था। प्रहलाद भगवान का परम प्रिय भक्त था। परन्तु उसका पिता भगवान को अपना शत्रु मानता था। वह अपने राज्य में ईश्वर का नाम लेने तक को मना करता था और जो कोई भगवान की भक्ति करते एवं भगवान का नाम लेते थे उनको वह कठोर दंड दिया करत था।हिरण्यकश्यप ने कठिन तपस्या ब्रह्माजी को खुश करने और अपने को अमर करने के लिए की थी।काफी वर्षो तक हिरण्यकश्यप ने ब्रह्माजी की तपस्या करता रहा।अंत में ब्रह्माजी खुश होकर हिरण्यकश्यप के सामने प्रकट हुए।ब्रह्माजी बोले : हे दैत्यराज ! मैं तुम्हारे द्वारा की गई कठोर तपस्या से खुश हूं। जो तुम मांगना चाहो वह मांग सकते हो।

तब हिरण्यकश्यप बोला : हे ब्रह्म देवजी ! आप मेरे द्वारा की गई तपस्या से खुश हो। तो मुझे अमरता वरदान देवे।

तब ब्रह्माजी बोले : हे दैत्यराज हिरण्यकश्यप ! इस अमरता के वरदान के अलावा कोई दूसरा वरदान मांगो।तब हिरण्यकश्यप बोला :हे ब्रह्मदेवजी ! आप मुझे अमरता वरदान नहीं दे सकते हो तो मुझे दूसरा वरदान दीजिये की मुझे कोई न तो नर मार सके, न हीं कोई देव-राक्षस एवं पशु मार सके, नहीं दिन में मार सके और नहीं रात में मार सके, नहीं पृथ्वी पर मार सके, नहीं आकाश में मार,नहीं घर में मार सके, नहीं बाहर, न अस्त्र से मार सके नहीं शस्त्र से मार सके। से।

तब ब्रह्माजी बोले :तथास्तु । इस तरह वरदान देकर ब्रह्मजी अन्तर्ध्यान हो गए। इस तरह का वरदान पाकर हिरण्यकश्यप अपने को अमर मानकर अपने राज्य में आ गया। अपने राज्य में सब जगह पर ढिंढोरा पिटवाया की किसी भी देव-देवी की पूजा-अर्चना नहीं करे और मेरी पूजा करे।मैं इस लोक का भगवान हूँ। इस तरह अपने राज्य में भगवान का नाम लेना भी उसने दोष घोषित कर दिया। 

हिरण्यकश्यप ने अपनी कठोर तपस्या से प्राप्त विपुल शक्ति का उपयोग करते हुए उसने इंद्रलोक पर आक्रमण कर दिया और इंद्रलोक को जीत कर उसका स्वामी बन गया। इन्द्रासन पर अपना अधिकार करके आनन्दपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगा।

भगवान विष्णुजी से विशेष विद्वेष रखता था।अपने आपको भगवान घोषित कर दिया।इसी प्रतिक्रिया स्वरूप उसके घर पर एक पुत्र रत्न हुआ उसका नाम प्रहलाद रखा गया।उस प्रहलाद में भगवान विष्णुजी के प्रति भक्ति की भावना जाग्रत हुई।

एक बार हिरण्यकश्यप जब अपने पुत्र की शिक्षा के बारे में जानने के लिए उसके गुरुकुल में गया तब उसने गुरुकुल में अपने पुत्र की भगवान विष्णुजी के प्रति भक्ति भावना की जानकारी प्राप्त हुई।उसने अपने पुत्र को भगवान की भक्ति नहीं करने को कहा और उसने कहा कि मेरी भक्ति किया करे।

इस लोक का मैं ही भगवान हूँ।उसने अपने पुत्र को ईश्वर का नाम लेने का मन किया।लेकिन बहुत समझाने पर भी प्रहलाद नहीं माना और उसके मन से ईश्वर की भक्ति को नहीं निकाल सका।इस तरह समझाने पर प्रहलाद नहीं माना तो हिरण्यकश्यप बहुत ही क्रोधित होकर उसने प्रहलाद को सर्पो की अंधेरी कोठरी में बंद करवा दिया।

प्रहलाद को हिरण्यकश्यप ने ऊँचे पहाड़ से भी गिराया गया।हाथी के सामने भी डलवाया गया।लेकिन विष्णुजी के परम् भक्त का बाल भी बांका नहीं हुआ और हर बार बच गया।उसने अपनी भक्ति लगातार चालू रखी।इस तरह उसकी भक्ति को देखकर हिरण्यकश्यप को बहुत ही गुस्सा आ रहा था और अपने पुत्र ईश्वर भक्ति को छुड़ाने का बहुत प्रयत्न किया लेकिन प्रहलाद भक्ति छोड़ने को तैयार नहीं था।इस हिरण्यकश्यप परेशान होकर अपने गुस्से के स्वरूप उसने आदेश दिया कि मेरी बहिन होलिका को बुलाओ।जब उसकी बहिन होलिका आ गई तो अपनी बहिन सब बातों से अवगत कराया।

तब हिरण्यकश्यप ने अपनी बहिन को कहा कि तुम प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर जलती हुई अग्नि में बैठ जाओ, जिससे प्रहलाद जल कर मर जाएगा। उसकी बहिन होलिका को ऐसा वरदन मिला हुआ था। कि अग्नि उसको जला नहीं सकती।आखिर में अपने भाई हिरण्यकश्यप के आदेश से उसकी बहिन होलिका ने प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि बैठ गई, प्रहलाद भगवान को लगातार याद करता रहा, लेकिन प्रहलाद का बाल भी बांका नहीं हुआ और होलिका जलकर भस्म हो गई। 

भगवान की कृपा से अग्नि प्रहलाद के लिए बर्फ के सामान शीतल हो गई। तभी से होलिका जलायी जाती हैं।हे भगवान !जैसे तुमने भक्त प्रहलाद की रक्षा की वैसे ही सब की करना।जब हिरण्यकश्यप को मालूम होता कि प्रहलाद तो बच गया और उसकी बहिन होलिका जलकर भस्म हो गई तो अंत में निराश होकर हिरण्यकश्यप क्रोधित होकर प्रहलाद को एक लोहे के खम्भे से बांध दिया और कहा कि-तेरा भगवान कहा हैं, जिसकी तू हमेशा रट लगाए रहता है ? 'प्रहलाद ने बिना किसी तरह के डरते हुए जवाब दिया - 'सभी जगह तो है भगवान।' 

उसके पिता ने कहा- 'क्या इस खम्भे में भी है ?यदि है तो मैं अभी तलवार से तुम्हारे दो टुकड़े करता हूँ, देखें वह तुम्हे कैसे बचाता है ?'यह कहकर जैसे ही हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को मारने के लिए तलवार उठाई भगवान श्रीविष्णुजी ने खम्भे को फाड़ते हुए नृसिंह रूप में अवतरित हुए और अपनी जांघो पर बैठाकर हिरण्यकश्यप का नखों से पेट फाड़कर वध कर दिया और प्रहलाद की रक्षा की थी।उस समय न तो रात थी, नहीं दिन था, नहीं देव थे, नहीं कोई राक्षस थे। नये रूप से हिरण्यकश्यप का वध किया और ब्रह्माजी के वरदान की भी रक्षा की थी।

जब होलिका ने वरदान के रूप में मिली शक्ति का गलत उपयोग किया,तो वरदान श्राप में बदल गया।रंगों वाली होली (धुलंडी) के एक दिन पहले होलिका का दहन होता है।

होलिका दहन से हमें यह शिक्षा:- मिलती है कि हमेशा बुराई पर अच्छाई की जीत होती है।हिरण्यकश्यप की बहिन होलिका का दहन बिहार राज्य की भूमि में हुआ था।जनश्रुति के अनुसार तब से हर साल होलिका दहन की परंपरा की शुरुआत हुई।

जनश्रुति की मान्यता के अनुसार:- बिहार राज्य के पूर्णिया जिले के बनमनखी प्रखंड के सिकलीगढ़ की जगह पर होलिका ने भगवान श्रीविष्णुजी के परम भक्त प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर दहकती हुई अग्नि की ज्वाला के मध्य में बैठी थी।

इस तरह भगवान नृसिंह जी का अवतरण हुआ था,जिससे हिरण्यकश्यप का अंत हुआ था।

धर्मकथाओं के अनुसार:- हिरण्यकश्यप का सिकलीगढ़ किला था।इस जगह पर ही भगवान ने अपने परम भक्त की रक्षा के लिए खम्भे से भगवान नृसिंह के रूप में अवतरित हुए थे।

भगवान नृसिंह जी के अवतार से जुड़ा खम्भा:-जिसको माणिक्य स्तम्भ के नाम से जाना जाता है जो को वर्तमान समय में भी स्थित हैं।इस स्तम्भ को कहीं बार तोड़ने की कोशिश की गई लेकिन स्तम्भ टूटा नहीं लेकिन झुक जरूर गया।

दूसरी कथाएं:-होली के पर्व को नवान्नेष्टि यज्ञ के रुप में हमारे वैदिक समय कहा जाता है।

पुराणों के मतानुसार कथा :-धार्मिक पुराणों के अनुसार भगवान शिवजी ने अपने गुस्से से कामदेव को अपनी नेत्र की ज्योति से भस्म कर दिया था, तब से होली दहन की परम्परा शुरू हुई थी।


होली की पूजा विधि और सामग्री:-सबसे पहले जमीन पर थोड़े गोबर और जल से चौका लगा लेवें।

◆चौका लगाने के बाद एक सीधी लकड़ी(डंडा) के चारों ओर गूलरी(बड़कुल्ला) की माला लगा देवें।

◆उन मालाओं के आसपास गोबर की ढ़ाल, तलवार, खिलौना आदि रख देवें। 

◆होली के दिन सुबह स्नान आदि से निवृत्त होना चाहिए।

◆उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके ही पूजन करना चाहिए।

◆होलिका पूजन के काल में निम्नलिखित मन्त्र को बोलना चाहिए और इस मंत्र से एक माला, तीन माला या फिर पांच माला के रूप में विषम संख्या में करना चाहिए।

"अहकूटा भयत्रस्तैः कृत्वा त्वं होलि बालिशैं

अतस्वां पूजयिष्यामि भूति-भूति प्रदायिनीमः"

◆पहले हनुमानजी, भैरूजी आदि देवताओं की पूजा करनी चाहिए।

◆फिर उन पर जल, रोली, मौली, चावल, फूल, प्रसाद, गुलाल, चन्दन, नारियल आदि चढ़ावें।

दीपक से आरती करके दंडवत करें।

◆फिर भगवान नृसिंह जी को याद करना चाहिए, उनको मौली, रोली, चावल, फूल आदि को अर्पण करना चाहिए।

◆फिर भक्त प्रहलाद को याद करना चाहिए, उनको मौली, रोली, चावल, फूल आदि को अर्पण करना चाहिए।

◆जिन देवताओं को मानते हो उनकी पूजा करनी चाहिए।

◆होलिका के रूप में रोपे हुए डांडे के चारों ओर एक या तीन या पांच या सात परिक्रमा करते-करते कच्चे सूत को लपेटना चाहिए, यह सब होलिका दहन से पूर्व में करनी चाहिए।

◆फिर थोड़े से तेल को सब बच्चों का हाथ लगाकर किसी चौराहे पर भैरूजी के नाम से एक ईंट पर चढ़ाना चाहिए।

◆जो पूजन का समय निश्चित हो उस समय जल, मौली, रोली, चावल, फूल, गुलाल, गुड़ आदि से पूजन करने के बाद ढ़ाल, तलवार अपने घर में रख लेवें।

◆चार जल माला(गूलरी की माला) अपने घर में रख हनुमानजी, शीतला माता तथा घर के नाम की उठाकर अलग रख देवें।

◆यदि आपके यहां घर में होली न जलती हो तो सब और होली घर में ही जलाते हो तो माला, ईख, पूजा की समस्त सामग्री, कच्ची सूत की कुकड़ी, जल का लोटा, नारियल, बूट(कच्चे गेहूँ की डाली), पापड़ आदि सामान गांव या शहर की होली जिस स्थान पर जलती हो वहां ले जावें।

◆वहां जाकर ठंडी होली का पूजन करें। 

◆फूल, माला, नारियल आदि चढा देवें।

◆परिक्रमा विषम संख्या में करनी चाहिए।

◆गेहूँ की डाली(बूट) आदि होली जलाने पर भून लेवें और सभी में बाँटकर खा लेवें।उसे घर वापिस ले आवें।

◆यदि घर पर होली जलावें तो गांव या शहर वाली होली में से ही अग्नि लाकर घर कि होली जलावें।

◆फिर घर आकर पुरुष अपने घर की होली पूजन करने के बाद जलावें। घर की होली में अग्नि लगाते ही उस डंडे या लकड़ी को बाहर निकाल लेवें। इस डंडे को भक्त प्रहलाद मानते हैं। 

◆स्त्रियां होली जलते ही एक घंटी से सात बार जल का अर्ध्य देकर रोली चावल चढ़ावें। 

◆फिर होली के गीत तथा बाधाऐं गाऐं। पुरुष घर की होली में बूट और जौ की बाल, पापड़ आदि भूनकर तथा उन्हें आपस में बांटकर खा लेवें। 

◆होली पूजन के बाद बच्चे तथा पुरुष रोली से तिलक लगावें। फिर सबके रोली से तिलक लगाना चाहिए

◆छोटे अपने सभी बड़ों के पैर छुकर आशीर्वाद लेवें। ◆यह ध्यान रहे कि जिस लड़की का विवाह जिस साल हुआ हो वह उस साल अपनी ससुराल की जलती हुई होली को न देखे। यदि हो सके तो अपने मायके चली जाऐं।


धार्मिक शास्त्रों के अनुसार:- फाल्गुन मास के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि में प्रदोषकाल में ही होलिका दहन करना चाहिए।

हिंदु धर्मिक गर्न्थो के मतानुसार:- होलिका दहन, होलिका दीपक और छोटी होली के नाम से भी जाना जाता हैं।होलिका का दहन पूर्णिमा तिथि में सूर्य अस्त के बाद प्रदोष काल में करना चाहिए।

◆माघ पूर्णिमा तिथि के दिन ही गांव के बाहर की जगह पर 'एरंड' या गूलर वृक्ष की टहनी को गाड़ देना चाहिए।उस टहनी पर लकड़ियाँ, सूखे हुए उपले, खरपतवार आदि से एकत्र करना चाहिए।

◆होलिका का दहन सूर्यास्त के बादमें प्रदोष काल में उचित मुहूर्त में आग को जलाना चाहिए।

◆आग जलते ही जो डंडा है, उस डंडे को आग से बाहर निकाल लेना चाहिए, क्योकिं यह डंडा प्रहलाद का प्रतीक चिन्ह होता है।

◆तन्त्र साधना को रात्रि के समय होलिका दहन की रात्रि में करना धर्म शास्त्रों में महत्वपूर्ण माना है और रात्रि तंत्र साधना व लक्ष्मी जी को पाने के लिए स्वयं पर किये गए तंत्र-मंत्र की रक्षा के लिए सबसे उत्तम माना जाता हैं

◆होली के दिन कुछ मुख्य प्रयोग होली के दहन की रात्रि में तंत्र शास्त्र के प्रयोग करके अपनी मन चाही हुई कामना को प्राप्त कर सकते है।तंत्र साधना की चार रात्रियों में से एक रात्रि होलिका दहन की रात्रि को भी माना जाता है।


होलिका दहन के समय जलती हुई अग्नि ज्वाला की लौ के संकेत:-ऐसा माना जाता है कि होलिका दहन के समय जलती होलिका की अग्नि की ज्वाला की लौ से कई तरह के संकेत की प्राप्ति होती है।

◆जब पूर्व दिशा की:- ओर होलिका की लौ उठती है तो वह बहुत कल्याण करने वाली होती है।

◆जब दक्षिण दिशा:- की ओर होलिका की लौ उठती है तो वह पशुओं को कष्ट देने वाली होती है।

◆जब उत्तर दिशा:- की ओर होलिका की लौ उठती है तो वह वर्षा होने के संकेत देने वाली होती है।

◆जब पश्चिम दिशा:- की ओर होलिका की लौ उठती है तो वह सामान्य होती है।


होलिका दहन में आहुतियाँ:- देना भी ज्यादा महत्व का होता है। होलिका में नारियल, कच्चे आम, भुट्टे या सात तरह के धान, शक्कर से बनाये हुए खिलौने, नई फसल का थोड़ा भाग गेंहूँ, उड़द, मूंग, चना, जौ, धान और मसूर आदि की आहुति भी दी जाती है।

होली के दिन उजमणा की विधि:-यदि कोई लड़का हुए या लड़के के विवाह होने का उजमणा करना हो तो वह होली के दिन उजमणा करना चाहिए।

◆उजमणा में एक थाली में तेरह जगह चार-चार पुड़ी और हलवा रखना चाहिए।

◆उन पर अपने सामर्थ्य और श्रद्धानुसार रुपये और कपड़े(साड़ी) तथा तेरह गोबर की सुपारी माला को रखना चाहिए।

फिर उन पर हाथ फेरकर अपनी सासुजी के चरण स्पर्श करके हर्षित होते हुए देना चाहिए।

◆सुपारी की माला अपने घर में टांगना चाहिए।

◆इस दिन अच्छे-अच्छे भोजन, मिठाई, नमकीन आदि पकवान बनाना चाहिए।

◆फिर थोड़ा-सा सभी सामान एक थाली में देवताओं के नाम का निकालकर ब्राह्मणी को देना चाहिए।

◆भगवान को भोग लगाकर स्वयं भोजन करना चाहिए।

             ।।होली के गीत।।

जा सांवरियां के संग, रंग मैं कैसे होली खेलूं री।

कोरे-कोरे कलश भराये, जा मैं घोरी हैं ये रंग।।

जा सांवरियां के संग, रंग मैं कैसे होली खेलूं री।

भर पिचकारी सन्मुख मारी, चोली हो गई तंग।।

जा सांवरियां के संग, रंग मैं कैसे होली खेलूं री।

ढ़ोलक बाजै, मंजीर बाजै और बाजै मृदंग,

कान्हाजी की बंशी बाजै, राधाजी के संग।।

जा सांवरियां के संग, रंग मैं कैसे होली खेलूं री।

लहंगा त्यारो, घूम-घुमारौ, चाली हैं पचरंग,

खसम तुम्हारे बड़े निखट्टू चलौ हमारे संग।।

जा सांवरियां के संग, रंग मैं कैसे होली खेलूं री।

सालऊ भीज, दुसालऊ भीजै और भीजै पचरंग,

सांवरियां कौ का बिगड़ैगो, कारी कामर संग।।

जा सांवरियां के संग, रंग मैं कैसे होली खेलूं री।

रंग में कैसी होली खेलूंरी जा सांवरियां के संग।।

जा सांवरियां के संग, रंग मैं कैसे होली खेलूं री