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Friday, March 19, 2021

कामिका एकादशी(पवित्र एकादशी)व्रत विधि, कथा और महत्व(Kamika Ekadashi (Pavitra Ekadashi) fasting method, story and significance)




कामिका एकादशी(पवित्र एकादशी)व्रत विधि, कथा और महत्व(Kamika Ekadashi (Pavitra Ekadashi) fasting method, story and significance):-कामिका एकादशी श्रावण महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाया जाती हैं।

प्रातः स्नान आदि से निवृत होकर भगवान विष्णुजी की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान करवा कर धूप-दीप करके भोग लगाना चाहिये।

धर्मराज ने पूछा:हे माधवजी।आपको मैं नम निवेदन से प्रणाम करता हूँ।श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की कौन सी एकादशी आती है?आप से अरदास करता हूँ कि इस माह की एकादशी के बारे में मुझे पूर्ण विवरण देवे।

भगवान श्रीकेशवजी ने कहा:राजन्। आप सुनिये।मैं आपको एक पाप को नाश करने वाले उपाख्यान को बताता हूँ और आप मन लगाकर ध्यान से सुनिये।उस उपाख्यान को पुराने समय में नारदजी के द्वारा ब्रह्माजी से पूछने पर ब्रह्माजी ने बताया था,वह उपाख्यान में आपको बताता हूँ।

ब्रह्माजी से नारदजी के द्वारा पूछने पर:हे विधाता!हे प्रजापति।मैं आपके मधुर वाणी से जानने का इच्छुक हूँ कि श्रावण महीने के कृष्ण पक्ष में कौंनसी एकादशी आती है,उस एकादशी का क्या नाम है?उस एकादशी में किस देव या देवी की पूजा-अर्चना होती है और इस एकादशी को करने से क्या पुण्य फल की प्राप्ति होती है?इस एकादशी के बारे में मुझे पूरा समझाए।

विधाता जी बोले:नारद।तुम ध्यान से सुनना मैं तुम्हें सम्पूर्ण लोकों की अच्छाई की चाह से तुम्हारे द्वारा पूछने पर तुम्हें बता रहा हूँ।श्रावण महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को जो एकादशी आती है,उस एकादशी का नाम 'कामिका' हैं।'कामिका' का नाम मन में दोहराने से भी वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त हो जाता हैं, 

उस दिन केशवजी,चक्रपाणि जी,जनार्दनजी,दामोदरजी और गोविंदजी आदि नामों से भगवान का पूजन करना चाहिए और श्रीकेशवजी के पूजन से जो फल मिलता है।

वह ही सुरसरि,काशी,नेमिषारण्य तथा पुष्कर क्षेत्र में स्थित ब्रह्माजी आदि में भी प्राप्त नहीं होता है।सिंह राशि के बृहस्पति होने पर व्यतिपात और दण्डयोग में गोदावरी स्नान से जिस फल की प्राप्ति होती है,वही फल भगवान श्रीमाधव जी के पूजन से भी मिलता है।

जो समुद्र और वन सहित सम्पूर्ण भूमि का दान  करने वाला को जो फल मिलता है, केवल 'कामिका एकादशी'के व्रत को करके भी मिल सकता है,इस तरह दोनों में समान फल ही मिलता है।जो गर्भवती गाय के गर्भ के जन्म देने पर उस गाय को दूसरी वस्तुओं के साथ दान करता है,उस मानव को जिस फल की प्राप्ति होती है,वही'कामिका एकादशी का व्रत करने वाले को मिलता है।

जो मनुष्य श्रीमाधवजी का श्रवण महीने में पूजा-अर्चना करता है,उस मनुष्य के द्वारा की गई श्रावण महीने की पूजा से गन्धर्वो और नागों सहित सभी देवताओं की पूजा हो जाती है।अतः बुरे पापों से डरे हुए मानवों को अपने सामर्थ्य से पूरी कोशिश करते हुए'कामिका एकादशी'के दिन श्रीविष्णुजी का पूजा-आराधना करनी चाहिए।

जो पापरूपी कीचड़ से भरे हुए जगत् रूपी सागर में डूब रहे है,उन किये गए पाप रूपी कीचड़ से जीवन को मुक्त कराकर मोक्ष की चाह रखने वालों को 'कामिका एकादशी का व्रत सबसे अच्छा रहता है।जो फल अध्यात्म विधापरायण आदमियों को मिलता है,उसकी तुलना में केवल मात्र 'कामिका एकादशी व्रत को करके प्राप्त किया जा सकता है।

जो कामिका एकादशी का व्रत करने वाले व्रती को रात के जागरण करके नहीं तो कभी डरावने यमदूत के दर्शन होते है और नहीं कभी बुरी गति में जाना पड़ता हैं।मोती,वैदूर्य,मूंगे और लालमणि आदि से पूजा अर्चना से भगवान चक्रपाणि जी खुश नहीं होते है,जिस तरह तूलसी दल की पूजा करने पर होते है।जिस किसी ने तुलसी की मंजरियों से श्रीमाधव जी का पूजन कर लिया है,उसके जन्मभर के बुरे किये गये पापों से पक्का ही खत्म हो जाते है।

या दृष्टा निखिलाघसंघशमनी स्पृष्टा वपुष्पावनी रोगाणाम भिवन्दिता

निरसनी सिकतान्तकत्रासिनी।

प्रत्यासतिविधायिनी भगवतः कृष्णस्य संरोपिता

न्यस्ता तच्चरणे विमुक्तिफलदा तस्यै तुलस्यै नमः।। 

'जो देखने से ही सम्पूर्ण बुरे किये गए पापों के समूहों को समाप्त कर देती है,छूने पर ही पूरी देह को पावन कर देती है,नमस्कार करने से देह के सभी बीमारियों को खत्म कर देती है,पानी के द्वारा सींचन करने मात्र से ही यमराज जी को डर पहुँचाती है,आरोपित करने से ही भगवान श्रीमाधव जी के पास में ले जाती है और ईश्वर के चरणों में चढ़ने पर मोक्ष के रूप में फल देती हैं,उस तुलसीदेवी को प्रणाम हैं।

जो रात के समय में दीपदान कामिका एकादशी के व्रत को करते है,उसके द्वारा किये गए पुण्य के फलों को चित्रगुप्तजी भी नहीं बता सकते है।श्रीकेशवजी के सामने की तरफ दिया इस एकादशी व्रत में जलने क् विधान माना गया है, जो दीपक को श्रीकेशवजी के सामने की जलाते है,तो दीपक को जलाने वाले के पितर स्वर्गलोग में रहते हुए अमृत का पान करते हुए सन्तुष्ट हो जाते है।

जो मनुष्य घृत या तिल के तेल से भगवान के सम्मुख दीपक को जलाते है,तो दीपक को सम्मुख जलाने वालों को अपनी देह को जन्म-मरण के मोह-माया से छूटने पर करोड़ो दीपकों से पूजित होकर स्वर्गलोग की प्राप्ति होती हैं। 


कामिका एकादशी व्रत की पौराणिक कथा:-पुराने जमाने में एक गांव में एक ठाकुर रहता था,वह स्वभाव से बहुत ही क्रोधी था।उसके गुस्से से सब गांव के लोग डरते थे।एक दिन उस गुस्सेल ठाकुर की भिड़न्त एक ब्राह्मण से हो गयी।इस भिड़न्त में ब्राह्मण मारा गया।इस पर ठाकुर साहब ने ब्राह्मण की तेरहवीं करनी चाही।लेकिन सब ब्राह्मणों ने भोजन करने से मना कर दिया।तब उन्होनें सभी ब्राह्मणों से निवेदन किया कि हे महात्माओं!मेरा पाप कैसे दूर हो सकता हैं?तब महात्माओं ने उसे कामिका एकादशी के व्रत करने के बारे में कहा:तब ठाकुर ने पूरा विधि-विधान पूछा।तब महात्माओं ने उस ठाकुर को पूरा विधि-विधान कामिका एकादशी व्रत का बताया और आज्ञा दी कि तुम यह व्रत करो।

ठाकुर ने पूरे व्रत का विधि-विधान जान करके उस कामिका एकादशी के व्रत को वैसा ही किया जैसा उन महात्माओं ने बताया था।रात के समय भगवान की मूर्ति के सामने जाकर सो गया,जब वह सो रहा था,तब सपने में भगवान ने कहा कि ठाकुर तेरा सब पाप दूर हो गया है। अब तुम ब्राह्मण की तेरहवीं कर सकते हो।तेरे घर सूतक नष्ट हो गया है।ठाकुर ब्राह्मण की तेरहवीं करके ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त हो गया।

कामिका एकादशी व्रत का महत्व भगवान श्रीमाधव जी कहते है:हे धर्मराज कुंतीपुत्र!मैंने तुमको पूरा विवरण तुम्हारे सामने अपनी वाणी से बताया हूँ, जो कि 'कामिका एकादशी का गुणगान था।'कामिका एकादशी का व्रत सभी तरह के बुरे पापों को नष्ट करने वाली होती हैं,इसलिए मनुष्यों को इस व्रत को अवश्य करना चाहिए।

यह व्रत मनुष्य को स्वर्गलोक और बड़े-बड़े पुण्यफल के समान फल देने वाला है।जो अपने मन से पूरी समर्पण भाव से इस एकादशी के व्रत के गुणगान के महत्व को सुनता है,वह मनुष्य सभी तरह के पापों से मुक्ति पाकर जन्म-मरण के चक्कर से आजाद होकर श्रीविष्णुजी के धाम को प्राप्त कर लेता है।