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Saturday, March 20, 2021

पधा एकादशी(भाद्रपद शुक्लपक्ष) व्रत विधि,कथा और महत्व(Padha Ekadashi (Bhadrapad Shukla Paksha Padha Ekadashi) fasting method, story and significance)


पधा एकादशी(भाद्रपद शुक्लपक्ष) व्रत विधि,कथा और महत्व(Padha Ekadashi (Bhadrapad Shukla) fasting method, story and significance):-

धर्मराज ने जब पूछा:श्री मुरारी जी!आप मैं निवेदन कर रहा हूँ कि आप कृपया करके भाद्रपद महीने के शुक्लपक्ष कौनसी एकादशी आती हैं और उस एकादशी को किस नाम से जाना जाता है, उस एकादशी को कौनसे देवता की पूजा-आराधना होती है और उस एकादशी को किस विधि-विधान किया जाता है?


भगवान केशवजी ने कहा:राजन्।इस विषय में मैं तुमको एक आश्चर्यजनक कथा को सुनाता हूँ,तुम राजन् ध्यानपूर्वक सुनना।इस कथा को ब्रह्माजी ने महात्मा नारद जी को बताया था।

नारदजी ने कहा:चतुरानन!आपको नमस्कार करता हूँ! मैं भगवान पिताम्बरजी की पूजा-अर्चना के लिए आपके मधुर वाणी से जानना चाहता हूं की भाद्रपद महीने के शुक्लपक्ष में कौनसी एकादशी आती हैं और उस एकादशी की विधि क्या है?

ब्रह्माजी बोले:ऋषिश्रेष्ठ। तुमने बहुत ही अच्छी बात को पूछा है।क्यों न हो वैष्णव जो ठहरे।भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष में जो एकादशी आती हैं,उस एकादशी को 'पधा'के नाम से जाना जाता है।इस एकादशी के दिन हृषीकेश की पूजा करनी चाहिए।यह अच्छा व्रत जरूर करने योग्य होता है।

पधा एकादशी व्रत की पौराणिक कथा:-पुराने समय एक सूर्यवंशी राजा था,उस राजा का नाम मान्धाता था।मान्धाता राजा हमेशा सत्य को बोलने वाला,चक्रवर्ती और प्रतापी था।वह अपनी प्रजा को अपने पुत्रों के समान मानते हुए उनका धर्मपूर्वक पालन करते हुए ख्याल रखता था।राजा मान्धाता के राज्य में कभी भी अकाल की छाया नहीं पड़ती थी।

राजा मान्धाता को किसी तरह की कोई तरह की मानसिक चिंताएँ नहीं हुआ करती थी और राज्य में किसी तरह की कोई भी बीमारियों का प्रकोप भी नहीं हुआ करता था।राजा मान्धाता की प्रजा बिना किसी डर के और धन-धान्य से परिपूर्ण थी।राजा के कोषघर में अपने न्याय से कमाया हुआ धन ही संग्रह था।राजा के राज्य में सभी वर्णों और आश्रमों के लोग अपने अपने धर्म में लगे रहते थे।

मान्धाता राजा की राज्य की जमीन कामधेनु की तरह फल को देने वाली थी।उनके राज्यकाल में प्रजा को बहुत ही सुख प्राप्त होता था। 

एक समय किसी कर्म का फलभोग प्राप्त होने पर राजा के राज्य में तीन वर्षों तक वर्षा नहीं हुई।इससे उनकी प्रजा भूख से पीड़ित होकर खत्म होने लगी।तब सभी प्रजाजनों ने मिलकर राजा मान्धाता के पास जाकर बोले।

प्रजा ने राजा से कहा:नृपश्रेष्ठ।आपको प्रजा की बात को सुनना चाहिए।पुराणों में मनीषी पुरुषों ने जल को 'नार' कहा है।वह 'नार'ही भगवान का 'अयन' (निवास स्थान) है, इसलिए वे 'नारायण' कहलाते हैं।नारायणस्वरूप भगवान विष्णुजी सर्वत्र व्यापकरूप में विराजमान हैं। 

वे ही मेघस्वरूप होकर वर्षा करते हैं, वर्षा से अन्न पैदा होता है और अन्न से प्रजा जीवन धारण करती है।नृपश्रेष्ठ।इस समय अन्न के बिना प्रजा का नाश हो रहा है, अतः ऐसा कोई उपाय कीजिये,जिससे हमारे योगक्षेम का निर्वाह हो।

राजा बोले:आप लोगों का कहना एकदम ठीक हैं,क्योंकि अन्न को ब्रह्म कहा गया है।अन्न से ही संसार जीवन धारण करता है।लोक में बहुधा ऐसा सुना जाता है तथा पुराण में भी बहुत विस्तार के साथ ऐसा वर्णन है कि राजाओं के अत्याचार से प्रजा को पीड़ा होती है,लेकिन जब मैं बुद्धि से विचार करता हूँ तो मुझे अपना किया हुआ कोई अपराध नहीं दिखायी देता।

फिर भी मैं प्रजा का हित करने के लिए पूर्ण प्रयत्न करूँगा ऐसा निश्चय करके राजा मान्धाता इने गिने व्यक्तियों को साथ ले,विधाता को प्रणाम करके सघन वन की ओर चल दिये।

वहाँ जाकर मुख्य-मुख्य मुनियों और तपस्वियों के आश्रमों पर घूमते फिरे।एक दिन उन सबके फिरते हुए अंगिरा ऋषि को देखा।अंगिरा ऋषि को देखते ही राजा मान्धाता खुश होकर अपने रथ वाहन से नीचे उतरते है और ऋषिवर की तरफ चल पड़ते है और अपनी इन्द्रियों को नियंत्रण करते हुए ऋषिवर अंगिरा को अपने दोनों हाथों को जोड़कर नमस्कार करते है और उनके चरणों को प्रणाम करते हुए छूते है।

तब ऋषिवर अंगिरा राजा मान्धाता को 'स्वस्ति'कहते हुए राजा का अभिवादन को स्वीकार करते है।राजा से अपने राज्य के सातों अंगों की कुशलक्षेम पूछते है।राजा ने अपनी कुशलक्षेम बताकर मुनि के शरीर की निरोगता के बारे में पूछते है।मुनिवर अंगिरा को बैठने के लिए आसन देते है और अर्ध्य को देते हैं।राजा आसन पर बैठकर और अर्ध्य को ग्रहण करने के बाद मुनिवर अंगिरा के पास बैठते है तब अंगिरा ऋषि राजा से पूछते है कि राजन् कैसे आना हुआ।

राजा मान्धाता बोलते:हे मुनिश्रेष्ठ अंगिरा जी।मैं धर्म के अनुसार अपनी राज्य की प्रजा का पालन कर रहा था।तो काफी समय तक तो मेरे राज्य में ठीक स्थिति रही थी लेकिन अचानक मेरे राज्य में बारिश नहीं हुई जिससे मेरी प्रजाजनों को बहुत ही तकलीफ हो रही है।इस स्थिति के होने का क्या कारण है जिससे मेरे राज्य में बारिश नहीं हो रही हैं।इस बात को मैं और मेरी प्रजाजन नहीं जानते है।इस विषय की जानकारी के लिए आपके पास आया हूँ।

ऋषिश्रेष्ठ अंगिरा जी ने कहा:हे राजन् मान्धाता।सब युगों में सबसे अच्छा युग जो चल रहा है वह सतयुग है।इस युग में समस्त मनुष्य ईश्वर के चिन्तन में लगे रहते है और इस युग के समय में धर्म अपने चारों चरणों से युक्त होता हैं।इस सतयुग में केवल ब्राह्मण ही तपस्वी होते है और दूसरे लोग नहीं होते है।

लेकिन राजन्।तुम्हारे राज्य में एक शुद्र जाति का शुद्र तपस्या कर रहा है,जिसके कारण तुम्हारे राज्य में बारिश नहीं हो रही हैं।तुम राज्य उस शुद्र की तपस्या को नष्ट करने का उपाय करो,जिससे तुम्हारे राज्य इंद्र देव बारिश करके तुम्हारे राज्य के अकाल को समाप्त कर देवें।

राजा मान्धाता बोले:हे मुनिश्रेष्ठ।जो शुद्र तपस्या कर रहा है उसने कोई अपराध तो नहीं किया है और वह तपस्या में लगा हुआ,इसलिए मैं उस शुद्र का बुरा कैसे कर सकता हूँ।आप कृपा करके मुझे कोई दूसरा धर्म और नीतिगत रास्ता बताये जिससे मेरे राज्य में बारिश हो सके।

ऋषिवर अंगीरा जी ने कहा:हे राजन् मांधाता।ऐसा तुम नहीं कर सकते हो तो तुमको एक उपाय बताता हूँ तुम एकादशी तिथि का व्रत करो।भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष तिथि में आने वाली एकादशी को तुम व्रत करो।इस एकादशी को सभी 'पधा'के नाम से जानते है।इस एकादशी के व्रत से अवश्य ही तुम्हारे राज्य बारिश होगी।राजन्।तुम अपने परिजनों और अपनी समस्त प्रजाजनों के साथ इस एकादशी का व्रत पूरी तरह विधिपूर्वक करो।

ऋषिश्रेष्ठ अंगिरा जी की बातें सुनकर राजा मान्धाता अपने राज्य वापस लौट कर आ जाते है।फिर अपनी राज सभा में बैठकर अपनी सभी मंत्रियों के साथ वार्तालाप करके अपने राज्य में सभी प्रजाजनों को सूचना दिलवाते है कि भाद्रपद शुक्लपक्ष की 'पधा एकादशी का व्रत करना है।

इस तरह राजा अपने परिजनों के साथ समस्त प्रजाजनों के साथ व्रत को पूर्ण विधि-विधान से करते है तो एकादशी व्रत के प्रभाव के फलस्वरूप राजा के राज्य में भरपूर बारिश होती है।पूरी धरती माता वर्षा के जल से परिपूर्ण हो जाती हैं और खेतों में सूखी हुई वनस्पति फिर हरि-भरी हो जाती हैं।

इस तरह एकादशी व्रत से सभी प्रजा के जनों का कष्ट मिट जाता है और समस्त राज्य में फिर से खुशहाली हो जाती है।इस तरह हर एकादशी को अपने परिजनों और प्रजाजनों के साथ व्रत करते हुए सुख से अपने राज्य में शासन करते हुए अंतिम समय में एकादशी व्रत के फलस्वरूप उनको वैंकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है।

भगवान श्री माधवजी कहते हैं:हे राजन धर्मराज!इस व्रत को करने वालों को सब तरह का सुख मिलता है,इसलिए इस सबसे अच्छे एकादशी व्रत का अनुष्ठान जरूर करना चाहिए।'पधा एकादशी व्रत के दिन एक घड़ा लेकर उसमें पानी भरकर उसको कपड़े से पूरी तरह ढकना चाहिए, उस ढ़के हुए कपड़े के साथ दही और चावल को किसी ब्राह्मण को दान देने से फायदा मिलता है,उस ब्राह्मण का आशीर्वाद मिलता है ,उस ब्राह्मण को छाता और पदत्राण भी देने से व्रत करने वाले के सभी कष्ट मिट जाते है।दान देते समय सभी वस्तुओं को देने के वक्त निम्नांकित मंत्र को मन ही मन दोहराते हुए दान की सभी वस्तुओं को देना फल ज्यादा मिलता है।

नमो नमस्ते गोविन्द बुधश्रवणसंज्ञक।

अघौघसंक्षयं कृत्वा सर्वसौख्यप्रदो भव।

भुक्ति मुक्तिप्रदश्चैव लोकानांं सुखदायकः।। 

प्रश्च'बुधवार और श्रवण नक्षत्र के संयोग से युक्त द्वादशी के दिन बुद्धश्रवण नाम धारण करने वाले भगवान केशवजी आपको प्रणाम है,प्रणाम है!मेरी पापराशि को समाप्त करके आप मुझे समस्त तरह के सुख देवे।आप पुण्यात्मा जनों को भोग और मोक्ष देने वाले और सुखदायक है।'

राजन्!इसके पढ़ने और सुनने से मानव के सभी तरह के किये गए बुरे पापों से मुक्ति मिल जाती हैं।