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Wednesday, May 12, 2021

करवा चौथ व्रत पूजन विधि, कथा, उद्यापन और महत्व (Karva Chauth worship method, story, Udayapan and importance)


करवा चौथ व्रत पूजन विधि, कथा, उद्यापन और महत्व (Karva Chauth worship method, story, Udayapan and importance):-कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष में आने वाली चतुर्थी तिथि को करवा चौथ या करक चतुर्थी कहा जाता हैं। इस दिन सौभाग्यवती औरतों के लिए भगवान गणपतिजी की पूजा-अर्चना करने का शास्त्र सम्मत बताया गया है। 



करवा चौथ पूजन विधि की सामग्री:-करवा चौथ पूजन में निम्नांकित सामग्री की आवश्यकता होती है जो इस तरह है- कुंकुम, मेहन्दी, मौली, गेहूं का आका, पानी का कलश, काचरा, फली, बेर, सिंघाड़ा, दूब, पुष्प, गुड़, साबूत सुपारी, मिट्टी की कुलड़ी या स्टील का लोटा पानी से भरकर उसके मुहं पर लाल कपड़े से मौली लगाकर बांधते है, उसे ही करवा कहते है। इसी करवे का पानी सास-बहू को पिलाती हैं। पिलाते समय सास कहती है कि "जलद्यायी" फिर बहू कहती है" जलद्यायी पर सुहाग नहीं द्यायी" ऐसा सात बार बुक से पानी पिलाते समय बोलते है। एक पाटे पर गजानन्दजी व चौथ माता को विराजमान करना चाहिए। उनके पाटे पर अगरबत्ती और दीपक जलाना चाहिए। फिर सभी पूजा सामग्री लेकर पूजा करना चाहिए। करवां चौथ की कहानी कहना चाहिए और सुनना चाहिए।



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चौथ माता का गीत गाना चाहिए-

छींक ने मनाऊं माता, चौथ ने मनाऊं मारी माय,


सुनील जी, रोहितजी ने टूटी हेत सू ऐ माय,


ओरा ने बार तीवार, सोना री गड़ाऊं ऐ माता,


रुपे री गड़ाऊं, थारो ए पर्चोमाता मैंर सुनियों मोरी माय।



जिस लड़की के शादी की पहली करवां चौथ होती हैं, उसके ससुराल बेटी व सास के बेस व करवे के साथ में तेरह गिलास भेजते हैं।



करवा चौथ व्रत पूजन की विधि:-भारतीय वैदिक धर्मग्रन्थों में कोई भी कार्य करने से पूर्व गणेशजी पूजा का विधान बताया गया है, क्योंकि सभी देवों से प्राप्त आशीर्वाद के रूप में उनकी पूजा का वरदान मिला हुआ है और गणेश को सभी देवों में अनादि देव का पद प्राप्त है।



◆सबसे पहले गणेशजी की पूजा करनी चाहिए। यहां तक कि भगवान शिवजी-पार्वतीजी ने भी अपने विवाह के समय में गणेशजी की सबसे पहले पूजा की थी। महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी अपने महाकाव्य में इस प्रसंग का उल्लेख किया है जो इस तरह- 


मुनि अनुशासन गनपतिहिं, पूजे शम्भु भवानि।


अस सुनि संशय करिय नही, सुर अनादि जिय जानि।



गणेशजी को सभी के विघ्नों का हरने वाला कहा जाता है इसलिए कोई भी कार्य को सफल करने के लिये गणेश की पूजा सर्वप्रथम की जाती है जिससे कार्य में व्यधान नही आवें।


◆करवां चौथ को करने वाली व्रती औरतों को अपनी दैनिकचर्या से निवृत होकर स्नानादि करके 


◆साफ-सुधरे कपड़ो को पहनकर गणेशजी का ध्यान अपने मन को स्थिर करते हुए करना चाहिए और मन में व्रत को पूरी श्रद्धा से करने का संकल्प लेना चाहिए। संकल्प करते समय बोलना चाहिए कि हे गणेशजी मैं आपका नाम लेकर व्रत कर रही हूं आज व्रत के पूरे समय में मैं बिना कुछ भी खाए बिना किसी फल को ग्रहण किये मैं आपके व्रत को पूरा करूंगी। जब तक चन्द्रमाजी के दर्शन नहीं हो जाते तब तक मैं बिना जल के व्रत करूंगी।



◆व्रत के दिन शाम के समय में घर की दीवार को गोबर से लीपकर उसके ऊपर गेरू की स्याही बनाकर उससे गणेशजी, माता पार्वतीजी, भगवान शिवजी और कार्तिकेयजी आदि देवों की प्रतिमा बनानी चाहिए।



◆उस दीवार पर एक वटवृक्ष या बरगद के पेड़, मनुष्य की आकृति भी बनानी चाहिए। उस मनुष्य की आकृति में हाथ में छलनी भी होनी चाहिए।



◆पास में उदित होते हुए चन्द्रमाजी की आकृति को भी दीवार बनाना चाहिए। 



◆दीवार के चित्रित आकृतियों के नीचे दो करवों में पानी भरकर रखना चाहिए।



◆उन करवों के गले पर नारा लपेटकर सिंदूर से रंगना चाहिए पूजा करते समय और उन करवों की टोंटी में सरई की सींक भी लगानी चाहिए।



◆उसके बाद में करवें के ऊपर चावल से भरा कटोरा रखकर उसमें सुपारी रखनी चाहिए।



◆नैवेद्य के रूप में चावल का बना हुआ लड्डू या शकरपिण्डी रखना चाहिए।



◆इसके अलावा प्रतिमा के पास थाली में पुड़ी, खीर आदि नैवेद्य के रूप में भोग के रुप में अर्पण करने चाहिए।



◆इन सबके अलावा मौसम के अनुसार सिंघाड़ा, केला, नारंगी, गन्ना आदि पांच तरह के फल जो भी मिल जावे उनको पूजा में भोग के रूप में लेना चाहिए। इन सभी वस्तुओं से पूजा करने के बाद में अपनी श्रद्धापूर्वक और भक्तिपूर्वक कथा को ध्यानपूर्वक सुनना चाहिए। 



◆कथा के अंत में, पूर्व से स्थापित उन करवों को दायिनी और से बायी तरफ एवं बायीं ओर रखना चाहिए। करवों को जगह बदलते समय 



◆दाहिनी तरफ घुमाकर ही रखना चाहिए। इस तरह करवों को अपनी जगह से दूसरी तरफ के बदलाव को सामान्य भाषा में " करवा फेरना" कहा जाता है।



इस प्रकार से पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने से व्रती के ऊपर गणेशजी की अनुकृपा बनी रहती है मन की इच्छाओं की पूर्ति भी होती हैं। व्रत करने वाली औरतों को अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होती है।



करवां चौथ व्रत कथा:-एक साहूकार के साथ बेटे और एक बेटी थी। सातों भाइयों को बहिन प्यारी लगती थी। आपस में बहुत स्नेह रखते थे। बहिन ससुराल गई तो कार्तिक लगते ही चौथ आई। तब बहिन पीयर आई। बहिन ने करवां चौथ का व्रत किया। सभी भाई-बहिन के बिना भोजन नहीं करते थे। उस दिन बहिन के व्रत था। सभी भाइयों ने कहा- कि बहिन खाना खा लें। 



बहिन बोली- कि आज मेरे व्रत है। चन्द्रमा को अर्ध्य देकर ही भोजन करूंगी। भाई ने सोचा कि बहिन पूरे दिन भूखी कैसे रहेगी? तब भाइयों ने डुंगर ऊपर जाकर घास जलायी और भाई आग के आगे चालनी ढ़क दी। 


भाई बोले- कि बहिन आकर चांद देख ले और अर्ध्य दे दे। बहिन ने अपनी भाभीयों को आवाज दी।



भाभीया बोली कि बाईसा यह तो चांद आपके लिए उगा है। हमारा चांद तो रात को उगेगा। बहिन ने चांद को अर्ध्य देकर भाइयों के साथ भोजन करने लगी। पहला गासिंया में बाल आया, दूसरा में सिवाल आया, तीसरा में तो बहिन के ससुराल से बुलावा आया कि बेटी को जल्दी भेजो। माँ पहनने के लिए कपड़े निकाले तो काले-सफेद कपड़े हाथ में आते हैं। माँ कैसे भी करके बेटी को एक सोने का टका पल्ले बांधकर विदा करती हैं और कहा कि रास्ते में जो भी मिले उन्हें पांव लगती जाना। जो भी तुझे अमर सुहाग का आशीर्वाद देवें उन्हें पांव लगकर सोने का टका(सिक्का) दे देना। वह तो रास्ते में सभी को पांव लगती गयी और सभी ने उसको आशीर्वाद दिया। लेकिन किसी ने भी आशीर्वाद में ऐसा नहीं कहा कि तेरा सुहाग अमर रहेगा।



ऐसा करते-करते वह ससुराल पहुँची तो पालने में जेठुती सो रही थी, तब वह उसे भी पांव लगती हैं, तो वह जल्दी से चाची को सुहाग अमर होने का आशीर्वाद दे दिया। काकी(बहिन) जल्दी से पांव लगकर सोने का सिक्का दे दिया अपने पल्ले के गांठ बांध दी और अंदर गई तो सासुजी ने और परिवार वालों को रोते-बिलखते देखा और अपने पति को लाश जैसे सोए हुए देखकर पति के चरणों में गिरकर बिलख-बिलख कर रोने लगी। सब लोग तो उन्हें दूर हटाकर उसके पति को ले जाने लगे। वह तो पति का पल्ला ही नहीं छोड़े और परिवार वालों से कहती है कि जंगल में झोपड़ी बना दो। मैं तो पति की सेवा करूंगी और इनके पास ही बैठी रहूंगी। लोगों ने समझाया कि मरा हुआ मुर्दा कभी जीवित होता हैं क्या? लेकिन वह मानी नहीं और पति के साथ जंगल में झोपड़ी में रहने लगी। जेठुती के साथ में सासुजी रोज रोटी भेज देती। 



ऐसे करते-करते थोड़े दिन बाद मार्गशीर्ष माह की चोथ आयी। गर्जती गाजती आयी, सात भाइयों की बहिन करवों ले। चालनी में चांद देखने वाली करवां ले। पति भुकालु करवों ले। जब वह बाहर आकर बोली- कि हे चौथ माता! मुझे क्षमा करो। मेरे से गलती हो गयी और चौथ माता के पांव पकड़ लिए। चौथ माता बोली- कि अगली चौथ माता से सुहाग मांग लेना वह मेरे से बड़ी है। ऐसे करते-करते चौथ माता और आई, उन्हें भी सभी की तरह पांव पकड़े। जब चौथ माता ने कहा- कि कार्तिक मास की चौथ माता तुझसे बहुत ही नाराज है। उनके पांव तुम छोड़ना नहीं। वहीं तुम्हें सुहाग देगी। बाद में कार्तिक मास की चोथ आई।



बहिन ने चौथ माता के पांव छोड़े भी नहीं। वह तो चौथ माता बहुत ही गर्जती-गाजती, गुस्से में आई और बहुत भला-बुरा कहा। लेकिन वह बहिन तो उन्हें जानें भी नहीं देवें और अपना सुहाग मांगती रही। आखिर में चौथ माता उस पर प्रसन्न हो गयी। आंखियां में काजल, नख से मेहन्दी, सिर से मैण और टिका से कुंकुं निकालकर हथेली में गीली करके उन्हें पति के ऊपर कुंकुं से छींटा दिया। उसका पति तो उठकर बैठ गया और कहने लगा कि मैं तो बहुत सो गया। फिर वह अपनी सारी बात उसको बताती है। वह भी चौथ माता से आशीर्वाद लेता है। चौथ माता जाती हुई झोंपड़ी को लात मारती है तो झोंपड़ी महल में बन जाती है और बाग-बगीचा हो जाते हैं। शाम को जेठुती जब रोटी लेकर आती है तो झोंपड़ी कहीं भी नजर नहीं आती है। बल्कि अन्दर से काका-काकी के बोलने की आवाज आ रही है।



वह घर जाकर कहती है तो घर पर किसी को भी विश्वास नहीं होता है। सभी लोग बातें बनाने लगे। इतने महीने हो गए कि जंगल में कोई रह सकता है क्या? किसी के साथ भाग गई होगी। फिर भी जेठुती के कहने से सभी लोग देखने गए। वहां पर झोंपड़ी की जगह महल हो गया। माँ कहती है कि यहीं मेरे बेटे-बहू हैं। सासुजी ने बहू से पूछा-कि ऐसा कैसे हो गया? 



बहू बोली- मैं तो चौथ माता के पांव पकड़कर बैठ गई। चौथ माता मुझ पर प्रसन्न होकर मेरा सुहाग वापिस दे दिया कि विवाह की हुई बहू-बेटी को करवां चौथ का व्रत करना चाहिए और कहानी-कथा सुनकर शाम को चन्द्रमा को अर्ध्य देकर फिर व्रत खोलें।



कथा को सुनने के बाद चन्द्रोदय होने पर चन्द्र देवजी को जल से अर्ध्य देना चाहिए। अर्ध्य-दान के समय में "ऊँ चन्द्राय नमः" मन्त्र का जाप करते हुए करना चाहिए। इसके बाद में मन ही मन में "ऊँ चन्द्राय नमः" मन्त्र का जाप करतेहुए चार बार परिक्रमा करनी चाहिए। 




उसके बाद चन्द्रमाजी को विन्रम भाव से पूरी श्रद्धाभाव से झुकते हुए नमस्कार करना चाहिए।



फिर सभी घर के लोगों को भोजन कराकर फिर भोजन को ग्रहण करना चाहिए।



पूजा के रूप में उपयोग की गई पूजा सामग्री जो बच जाती है उस पूजा सामग्री नैवेद्य आदि को ब्राह्मणों को दान के रूप में देना चाहिए। 



इस तरह से श्रद्धापूर्वक और भक्तिपूर्वक जो औरतें करवां चतुर्थी का व्रत करती है उसकी सभी तरह की मन की इच्छाओं की पूर्ति होती है और उन औरतों का सुहाग लम्बे समय तक जीवित रहता है। हे चौथ माता! जैसे उसकी बहू-बेटी को सुहाग दिया, रक्षा की। वैसी ही सभी के सुहाग व बेटे की रक्षा करना। कहानी कहने वाले, सुनने वाले को व हुंकारा देने वाले को सभी परिवार को सुख देना।




करवां-चौथ उद्यापन विधि:-कोई भी व्रत तभी सफल होता है जब अपनी मुराद पूरी होने पर उस व्रत का उद्यापन करते है, इसलिए व्रत का उद्यापन करना चाहिए।



◆जो व्रत जिस तिथि मास और पक्ष में आता है, उसी मास के पक्ष की तिथि पर व्रत का उद्यापन करना चाहिए।



◆जब भी व्रत का उद्यापन करना हो जिस वर्ष में अपनी मुराद पूर्ण होने पर उस वर्ष की कार्तिक पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन व्रत के पूर्ण होने के बाद एक थाली में कुमकुम से रँजित कर चार-चार की संख्या में पूड़ी और उस पर शक्कर रखकर तरह स्थानों पर लगा देना चाहिए और उस पर एक नवीन साड़ी, ब्लाउज, दक्षिणा आदि को रखकर अपनी सासुजी को देना चाहिए और सासुजी का आशीर्वाद को प्राप्त करना चाहिए।



◆सभी तरह के क्रियाकलापों को करने के बाद ही खुद भोजन को ग्रहण करना चाहिए। इस तरह से करने पर व्रत करने वाली औरतों का सैभाग्य अक्षय बना रहता है।जिन सौभाग्यवती औरतों के सासुजी नहीं होने पर वे इन सभी वस्तुओं को किसी सधवा ब्राह्मणी को दान के रूप में देनी चाहिए।




करवा चौथ व्रत का महत्व:-करवा चौथ व्रत बहुत महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है। 


◆सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए जीवन देने के समान पर्व होता है।



◆करवा चौथ के व्रत को करने वाली सौभाग्यवती स्त्रियों को अमर सुहाग की प्राप्ति होती है।



◆व्रत के प्रभाव स्वरूप सौभाग्यवती स्त्रियों के पति को काल भी ग्रास नहीं कर पाता है और पति के स्वास्थ्य व दीर्घ आयु की प्राप्ति होती है।