'नक्षत्र का मतलब'-: जिनकी जगह एक जगह पर ही ठीके रहते है, वे नक्षत्र कहलाते हैं।
'ग्रह का मतलब':- जो पूर्व की अभिमुख चलते हुए दिखाई देते है और जो प्रत्येक नक्षत्रों का भोग करते हैं, वे ग्रह कहलाते हैं।
राशि चक्र के सत्ताईस विभाग अश्विन्यादि नक्षत्रों के स्थान और 12 भाग मेषादि 12 राशियों के रूप में जाने जाते हैं।
भारतीय फलित ज्योतिष के ग्रह और राशि (नक्षत्र) ही मूल आधार हैं, जिन पर अन्य सभी अवधारणाएँ यथा; भाव, भावेश, लग्न, जन्मराशि, विविध वर्ग, योग, दशा इत्यादि निर्भर हैं।
मुख्य रूप से ग्रह -नौ ग्रह है,जो मुख्यतया निम्न है-
1 रवि ग्रह।
2 सोम ग्रह।
3 भौम ग्रह।
4 सौम्य ग्रह।
5 जीव ग्रह।
6 भृगु ग्रह।
7 मन्द ग्रह।
8 सैन्हिकीय ग्रह।
9 शिखी ग्रह हैं।
आधुनिक ज्योतिष में यूरेनस, नेप्च्यून और प्लूटो की भी ग्रहों के अंतर्गत गणना की जाती है।
आधुनिक खगोल विज्ञान में सौम्य, भृगु, पृथ्वी, भौम, जीव, मन्द, यूरेनस, और नेप्च्यून को ही ग्रह माना जाता है। उनकी दृष्टि में रवि तारा है,सोम पृथ्वी का उपग्रह है, सैन्हिकीय और शिखी पातबिन्दु हैं और प्लूटो वामनग्रह है।
ग्रहों का वर्गीकरण:-भारतीय वैदिक ज्योतिष में ग्रहों को तीन आधार पर वर्गीकृत किया जाता है-
1 संख्या के आधार पर वर्गीकरण।
2 रोशनी के आधार पर वर्गीकरण।
3 अच्छे-बुरे प्रभाव के आधार पर वर्गीकरण।
1. संख्या के आधार पर ग्रहों का वर्गीकरण:-तीन समुहों में किया गया है
(1) सातग्रह :-रवि,सोम,भौम, सौम्य, जीव,भृगु और मन्द को इकट्ठे रूप को 'सप्तग्रह' कहा जाता है। ज्योतिष में सप्तग्रहों का द्वादश राशियों पर स्वामित्व होने से प्रधानता मानी गई है।
(2) नवग्रह :- सप्तग्रहो में यदि राहु और केतु को सम्मिलित कर लिया जाए, तो वे सामूहिक रूप से 'नवग्रह'कहा जाता है।
(3) द्वादशग्रह :- नवग्रहों में यदि यूरेनस, नेप्च्यून और प्लूटो को सम्मिलित कर लिया जाए, तो उन्हें सामूहिक रूप से 'द्वादशग्रह' कहा जाता है। इनका प्रचलन आधुनिक ज्योतिष में मिलता है।
2. प्रकाश के आधार पर ग्रहों का वर्गीकरण-:भारतीय ज्योतिष में उन्हें तीन वर्गों में वर्गीकृत किया गया है
(1)प्रकाशक ग्रह :-रवि और सोम ग्रह को को'प्रकाशक ग्रह 'कहा जाता हैं ।प्रकाशक ग्रहों में रवि ग्रह से रोशनी के रूप में धूप और सोम ग्रह की शीतल किरणों की चाँदनी के रूप में पृथ्वी पर आता है।
(2) ताराग्रह :- सातग्रहों में रवि ग्रह और सोम ग्रह अर्थात प्रकाशक ग्रहों को छोड़कर भौम ग्रह,सौम्य ग्रह,जीव ग्रह,भृगु ग्रह और मन्द ग्रह इन बचे हुए पांच ग्रहों को 'ताराग्रह' कहा जाता है।ये तारे के समान दिखाई देते हैं, लेकिन चलायमान हैं।इनकी संख्या पांच होने के कारण उन्हें 'पंचतारा' ग्रह भी कहते हैं।
(3) तमोग्रह :-सेंहिकीय और शिखि ग्रह को 'तमोग्रह' या 'तम: स्वरूप' कहा जाता है।इनसे प्रकाश उत्सर्जित नहीं होता है।ये पृथ्वी और चन्द्रमा की परिक्रमा पथ के कटान बिंदु हैं।
3. शुभाशुभता के आधार पर ग्रहों का वर्गीकरण :-
जन्मकुंडली में कतिपय ग्रह शुभ फलदायी होते हैं और कतिपय ग्रह अशुभ फलदायी होते हैं।
'शुभग्रह' या 'सौम्यग्रह'-:जो ग्रह शुभफल प्रदान करते हैं उन्हें 'शुभग्रह' या 'सौम्यग्रह' कहते हैं।
'अशुभग्रह', 'पापग्रह' या 'क्रूरग्रह'-:जो ग्रह अशुभफल प्रदान करते हैं, उन्हें 'अशुभग्रह', 'पापग्रह' या 'क्रुरग्रह' कहते हैं।
शुभाशुभ ग्रहों के निर्धारण के सिद्धांत:-निम्नलिखित सिद्धान्त हैं:
1. नैसर्गिक शुभाशुभग्रह :- नैसर्गिक रूप से कुछ ग्रह शुभ फलदायी और कुछ ग्रह अशुभ फलदायी होते हैं। इसी कारण उन्हें शुभग्रह और अशुभग्रह कहा जाता है।ये निम्नानुसार हैं:
(1) शुभग्रह :-बृहस्पति(जीव) ग्रह एवं भृगु ग्रह नैसर्गिक रूप से शुभग्रह माने जाते हैं ।
चन्द्रमा(सोम) 'मध्यमग्रह' अर्थात शुभ और अशुभ दोनों हैं। कलाओं से युक्त चन्द्रमा शुभग्रह माना जाता है।
बुध या सौम्य 'उदासीनग्रह' है।इस प्रकार पूर्ण चन्द्रमा, पापग्रहों से रहित सौम्य, जीव और भृगु ग्रह 'उत्तरार्द्ध बली शुभग्रह' होते हैं।
(2) अशुभग्रह, पापग्रह या क्रूरग्रह :- रवि, मन्द और नैसर्गिक रूप से 'क्रूरग्रह' हैं। क्षीण चन्द्रमा और पापग्रहों से युत बुध को भी पाप या क्रूरग्रह माना जाता है।इन ग्रहों में क्षीण चन्द्रमा, पापग्रहों से युत बुध, सूर्य, शनि और मंगल उत्तरोत्तर बली क्रूर या पापग्रह होते हैं। राहु और केतु भी क्रूर और पापग्रह हैं।
भावेश के आधार पर शुभाशुभ ग्रह :- ग्रह यदि शुभ भाव का स्वामी है तो वह 'शुभ भावेश' और अशुभ भाव का स्वामी है तो 'अशुभ भावेश' कहलाते हैं।सामान्य तो लग्न और त्रिकोण भाव के स्वामी भावेश और त्रिषडाय भावों के स्वामी अशुभ भावेश कहलाते हैं।