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Friday, April 2, 2021

शीतला अष्टमी पूजन विधि,कथा और महत्व(Sheetla Ashtami Poojan Method, Story and Importance)



शीतला अष्टमी पूजन विधि,कथा और महत्व (Sheetla Ashtami Poojan Method, Story and Importance):-शीतला अष्टमी पूजन चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को किया जाता है। चैत्र कृष्ण अष्टमी को बासोड़ा के रूप भी जाना जाता हैं। इस दिन माता शीतलाजी को खुश करने के लिए बासी बना हुआ भोजन को ग्रहण करते है, जिससे माता शीतला जी की अनुकृपा प्रसाद के रूप में मिल सके। 

शीतला माता की सवारी गधा होता हैं तथा मन्दिर का पुजारी कुम्हार होता है। बाँझ स्त्रियां सन्तान प्राप्ति के लिये माता की पूजा करती है। माता के मंदिर को सुहाग मन्दिर भी कहते हैं। इनका मेला शीतला अष्टमी को भरता है, जो गधों के लिए प्रसिद्ध हैं।

शीतला माता को महामाई या चेचक की देवी या बच्चों की संरक्षिका या सेढ़ल माता के उपनाम से जानते हैं।

शरीर की गर्मी कम हो सके और शरीर में शीतलता की प्राप्ति हो सके। कहीं-कहीं तो सप्तमी तिथि को भी माता जी पूजन कर देते है।कहीं-कहीं पर अधिक दिनों तक बासी भोजन को ग्रहण किया जाता हैं।

शीतला अष्टमी  पूजन विधि:-शीतला अष्टमी के दिन  गर्म वस्तुओं का उपयोग नहीं करना चाहिए। 

◆औरतों घर में तरह-तरह के व्यंजन बनाती हैं, जो कि अष्टमी पूजन से पूर्व करती है।

◆सबसे पहले सूर्य उदय होने पर उठकर अपनी दैनिकचर्या को पूरा करना चाहिए। 

◆उसके बाद स्नानादि से निवृत होकर माता शीतला जी को याद करना चाहिए। 

◆इस दिन कोई भी आदमी या स्त्री गर्म जल से स्नान नहीं करना चाहिए। 

◆गर्म भोजन को भी ग्रहण नहीं करके ठंडे भोजन को ग्रहण करते है।

◆शीतला माता की षोडशोपचार पूजा करनी चाहिए। 

◆भोग के रूप में छाछ की बनी राबड़ी, पँचकुठा और करबा, मीठे चावल,आठ रोटी या पुड़ी आदि का भोग लगाया जाता है।

◆कच्चा दूध,दही आदि से पूजन करना चाहिए।

◆आठे से बनाया हुआ दीपक, माताजी के वस्त्र आदि सामग्री होती है।

◆शीतला माता की कहानी या कथा भी सुनकर औरते रात्रि को दीपक को प्रज्वलित करती है।

◆माता शीतला जी से अरदास भी करती है।

◆शीतला माता का गीत भी औरतें गाती है।


शीतला माता की शीतला अष्टमी की पौराणिक कथा या कहानी:-शील और ओरी दोनों बहनें थी। होली का अंतिम दिन आते ही दोनों बहनें बोली- हम शहर चलकर देखें कि लोग हमारा कितना मान-सम्मान करते हैं। अपनी मान्यता को देखने के लिये दोनों बहनें शहर में आकर सबसे पहले वे दरबार में गई तो वहां पर नौकर-चाकर काम कर रहे थे। 

दोनों बहनों ने उनको जाकर बोला-की हमें कुछ न कुछ देवो। तब नौकर-चाकर ने कहा- हमारे पास तो केवल घोड़ा के लिये दाना उबल रहा हैं। उन्होंने गर्म-गर्म दाना दोनों बहनों को देने पर वह जल गई। जिससे उनके हाथ में फफोला(छाले) हो गये। इस कारण दोनों बहनों ने श्राप दे दिया कि सातवें दिन ही आपकी नगरी में आग लग जायेगी। ऐसा कहकर दोनों बहनें वहां से चली गयी। इसके पश्चात एक सेठ के घर आकर बोली -मुझे कुछ ठण्डी-ठण्डी खानें के लिये देवो। तभी उनकी छोटी बहू बोली- मेरे सासुजी तो बाहर गये हुए हैं। फिर भी वह डरती-डरती मुश्किल से एक-एक कटोरी करबो लेकर आई तो दोनों बहने बोलने-लगी कि थोड़ा-सा और करबा लाओ व जितना भी है वह सभी डाल देवो और उस पर सीधा ढ़क्कन ढ़क दो। 

उस समय माताजी बोले- की तुम्हारे नगर में सातवें दिन आग लग जायेगी, किन्तु तुम्हारा घर बच जायेगा। तब छोटी बहू बोली ! मेरे घर के साथ-साथ मेरे पड़ौसी का भी घर रखो। क्योंकि मेरी साख कौन भरेगा? तब माताजी ने एक कोरो करवो देकर कहा कि तेरे और पड़ौसी के घर का आगे कार(रेखा) खींच दी हैं। 

फिर दोनों बहना बोली-की मेरे माथे से जुऐं निकालो, पर तुम डरना मत। हम शील और आरी दोनों बहनें हैं। हम दोनों के आगे-पीछे दोनों जगह आंखें हैं। छोटी बहू बोली- मेरी नगरी में आग तो लगेगी। लेकिन कोई आकर पूछेंगे तो मैं उन्हें क्या बताऊं? आप जहाँ विराजते हैं वहां का स्थान मुझे बता दो। 

तब दोनों बहना बोली-मैं खोखले पीपल में बैठी हूँ, ऐसा कहकर वह चली जाती प। जैसे ही सातवें दिन आग लगती है तो सारी नगरी जल जाती है। तब राजा बोलता है कि हमारी नगरी कैसे जल गयी। देखकर आओ को कोई घर बचा है क्या? तब एक नाई कहा कि हां एक घर बचा है। 

तब राजा उसके पास गया और कहा-कि ए बाई तुम क्या कामण-डुमण जानती हो, जिससे तुम्हारा घर बच गया।तब छोटी बहू बोली! शील और ओरी दो बहनें आई थी। तब उनको घोड़ी का गर्म-गर्म दाना डालने से वह जल गयी। उनके हाथ में छाला(फोड़े-फुंसी) हो गये। 

जिससे वे गुस्सा में आकर श्राप दे दिया कि तुम्हारी नगरी में आग लग जायेगी। फिर मेरे आयी, तब मैंने उन्हें ठण्डा-ठण्डा जल देकर ठण्डा किया और पड़ौसी का भी घर रखा। अब वे दोनों बहना खोखले पीपल में बैठी हैं। राजा वहां गया और उनसे माफी मांगी और पांव पकड़ कर कहा- माताजी हम से गलती हो गयी, आप हमें क्षमा कर दो। 

तब माताजी ने कहा- कि आप माताजी के नाम का स्थान बनाकर मेरी वहां स्थापना करो और नगरी में कहलाओ की होली के बाद माताजी का दिन आवे तब ठण्डा खाओ। हो सके तो आठ बार खाओ, चार बार खाओ, दो बार खाओ, लेकिन बच्चों की माँ को तो एक बार जरूर-जरूर ठण्डा भोजन करना हैं। माताजी सभी पर प्रसन्न हो गये। जो भी व्यक्ति माताजी की इस कहानी को कहते समय, सुनते समय या बीच-बीच में हुंकारा देते हैं उन सभी को माताजी ठण्डा झोला देते हैं।

शीतला अष्टमी का महत्व:- चैत्र कृष्ण अष्टमी के शीतला माता जी का दिन होने से माता जी को प्रसन्न करते है।

◆माता शीतला की कृपा से चेचक बीमारी से मुक्ति मिलती है।

◆औरतों के पुत्र सन्तान की उम्र बढ़ती है।

◆औरतों को पुत्र सन्तान की प्राप्ति होती है। 

◆शरीर के गर्म ताप से ठंडाई की प्राप्ति होती है।