छोटी तीज(श्रावण शुक्ल तृतीया) व्रत विधि, कथा और महत्त्व(Chhoti Teej (Shravan Shukla Tritiya) vrat vidhi, katha and significance):-श्रावण शुक्ला तीज को छोटी तीज मनाई जाती है और बड़ी तीज भादवे महीनें में। छोटी तीज ही अधिक प्रसिद्ध है। यह त्यौहार नीरस ग्रीष्म ऋतु के बाद आने वाले त्योहारों की कड़ी का पहला त्यौहार है। इसलिए कहा गया है- 'तीज जैहारां बावड़ी ले डूबी गणगौर' अर्थात तीज त्योहारों को लेकर आती हैं जिनको गणगौर अपने साथ वापस ले जाती है। तीज के त्यौहार में मुख्यतयः बालिकाओं का सिंझारा (श्रृंगार) किया जाता है। 'आज सिंझारा तड़के तीज, छोरियां ने लेगी पीर' उक्ति भी बालिकाएं कहती है।
हाथों-पैरों पर मेहन्दी मांढी जाती है। विवाहित बालिकाओं के ससुराल से सिंझारा, वस्त्र आदि भेंट स्वरूप उनके माता-पिता भेजते हैं। तीज के त्योहार पर लड़की अपने पिता के घर जाती है। इस दिन विवाहित स्त्रियाँ व्रत रखती हैं। यह सौभाग्य का व्रत माना जाता हैं। दिन भर निर्जल व्रत कर सायंकाल शिव व पार्वती की पूजा करने के बाद रात्रि में चन्द्र दर्शन करके भोजन करती हैं। इस अवसर पर स्त्रियां श्रृंगार रस प्रधान गीतों को गाती हैं और नृत्य करती है। झूले पर झूलने वाली स्त्रियां एक-दूसरे से अपने पति का नाम पूछती हैं और जब तक वे अपने पति का नाम नहीं बतातीं, उन्हें बहुत परेशान करती हैं। इस त्योहार के दिन किसी सरोवर के पास मेला भरता है। इसमें झूला डाला जाता है। सभी लोग उस पर झूलते हैं। गणगौर की प्रतिमा भी कहीं-कहीं निकाली जाती हैं। राजस्थान में तीज त्यौहार गुलाबी नगर जयपुर में प्रमुख रूप से मनाया जाता हैं। यहां तीज माता की सवारी निकाली जाती हैं। इस सवारी में सबसे आगे सजे हुए हाथी-घोड़े, बीच में तीज माता व अंत में महिलाएँ होती है। कोने- कोने से आने वाले राजस्थानी लोक गीतों की झंडी लगा देते हैं जिनका विदेशी पर्यटक घण्टों ठहरकर आनन्द उठाते हैं। तीज के साथ ही लोकगीत का यह मुखड़ा बार-बार आता है। ' तीज की सवारी, पिया घणी लागै प्यारी'
श्रावण शुक्ल तृतीया को महिलाएं अखण्ड सौभाग्य के लिए तथा कन्याएं अच्छे वर की कामना के लिए यह व्रत करती हैं।
तीज का त्योहार श्रृंगारिक त्योहार है, जिस दिन शिव-पार्वती की पूजा होती है।
श्रावण शुक्ल तृतीया पूज्य प्रतीक सुहाग पिटारी एवं नवग्रह इसे श्रावणी तीज, हरतालिका तीज या छोटी तीज या हरियाली तीज भी कहते है। राज्य में तीज से त्यौहारों का आगमन होता है। लड़कियों का सिंजारा पर्व मनाया जाता है। जयपुर एवं शेखावटी की तीज सवारी प्रसिद्ध है।
देवी पार्वती के प्रतीक रूप में तीज की पूजा की जाती है। 'श्रृंगारिक त्योहार' के नाम से प्रसिद्ध तीज विवाहित स्त्रियों का सर्वप्रिय त्योहार है। तीज का त्योहार विवाह के पश्चात मायके में मनाने की परम्परा है। लोकमान्यता है कि विवाह के पश्चात सास और बहू पहले सावन में साथ नहीं रहती है अन्यथा जीवन में गृह-कलह बना रहता है।
श्रावण मास का सिंजारा:-बीज के दिन श्रावण का सिंजारा आता है। इस दिन जिस लड़की की सगाई की हुई हो तो ससुराल से साड़ी, गहना, श्रृंगार का सामान, मिठाई, फ्रूट आते हैं। लड़की एक दिन पहले ही हाथों में मेहन्दी रचाती है और तीज के दिन मन्दिर में गहने, कपड़े पहनकर भगवान के दर्शन करने जाती हैं। सुहागन महिलाऐं भी मंदिर जाकर इच्छानुसार व्रत करती हैं और महिलाऐं बायणा निकालकर सासुजी को पैर लगकर बायणा देती है।
छोटी तीज की कथा:-भगवान शंकर ने पार्वती को उनके पहले जन्म का स्मरण कराते हुए इस प्रकार कहा कि– 'हे पार्वती तुमने मुझे पति रूप में पाने के लिए एक बार गंगा किनारे बहुत ही कठिन तपस्या की थी। इस प्रकार तुमको कष्ट सहते देखकर तुम्हारे पिता हिमालय को बड़ा दुःख हुआ।'
उसी समय तपस्या के समय नारद मुनि ने तुम्हें देखा और तुम्हारे पिता हिमालय से कहा कि- 'भगवान विष्णु आपकी कन्या से विवाह करना चाहते है।'
नारद की इस बनावटी बात को पिता ने सच मानते हुए यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। इतनी बातचीत कर नारद विष्णु लोक चले गए और भगवान विष्णु से बोले कि- 'मैंने हिमालय की पुत्री पार्वती के साथ आपका विवाह निश्चित किया हैं। आप इसे स्वीकार करें।'
इधर नारदजी के चले जाने के पश्चात जब हिमालय ने तुमसे से कहा कि- 'मैंने तुम्हारा विवाह श्री विष्णुजी भगवान के साथ निश्चय किया है, तो यह अनहोनी बात सुनकर तुम्हें अत्यंत दुःख हुआ और तुम विलाप करने लगी।' पिता के पीठ फेरते ही तुमको अत्यंत व्याकुल और विलाप करते देख एक सखी ने तुमसे तुम्हारे दुःख का कारण पूछा।
जब तुमने अपनी सखी को समस्त वृत्तान्त सुनाया, तो सखी बोली कि 'तुम्हें प्राण त्यागने की कोई आवश्यकता नहीं हैं। मैं तुमको ऐसी जगह ले चलूंगी जहां आपके पिता जी भी आप को नहीं ढूंढ पाएंगे। ऐसी सलाह देकर सखी तुमको सघन वन में ले गई। तुम्हारे पिता ने तुम्हें बहुत खोजा। तुम्हें कहीं न पाकर और विष्णुजी के साथ तुम्हारा विवाह का वचन भंग होने की चिंता से वे मूर्च्छित हो गए।
इधर तुम सखी सहित नदी के किनारे एक गुफा में प्रवेश कर मेरे नाम की तपस्या करने लगी। श्रावण शुक्ल पक्ष की तृतीया को उपवास रखकर शिवलिंग की स्थापना कर पूजन एवं रात्रि जागरण करने लगी। 'हे प्रिय! तुम्हारे व्रत और तपस्या से मैं अति प्रसन्न हुआ और मैंने तुमसे कहा वरदान मांगो'। तब तुमने कहा कि 'यदि आप प्रसन्न हैं, तो मुझे अपनी अर्द्धाङ्गिनी बनाना स्वीकार करें।'
इस पर मैं तुम्हें वरदान देकर कैलास चला गया। सवेरा होते ही तुमने पूजन सामग्री नदी में विसर्जित की, स्नान किया और सखी समेत पारण किया। हिमालय स्वयं तुमको खोजते हुए वहां आ पहुंचे। तब तुमने अपने पिता को घर छोड़ने का कारण बताते हुए कहा कि- 'आप शिवजी के साथ मेरा विवाह करने का वचन दें, अन्यथा मैं घर नहीं चलूंगी' तुम्हारे मान-सम्मान की पूर्ति के लिए हिमालय राजा ने तुम्हारा विवाह शास्त्र-विधि से मेरे साथ सम्पन्न किया। भगवान शंकर ने पार्वती को बताया कि जो स्त्री इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करेगी, उसे तुम्हारे समान ही अचल सुहाग मिलेगा।
छोटी तीज का महत्व:-छोटी तीज करने से जिनकी शादी में होती है, उनकी शादी जल्दी होती है।
◆व्रत करने वाली व्रती को अचल सुहाग की प्राप्ति होती है, उनकी गृहस्थी सुख-शांति से व्यतीत होती हैं और पति का भरपूर प्यार प्राप्त होता है।
◆श्रावण शुक्ल तृतीया को महिलाएं अखण्ड सौभाग्य के लिए तथा कन्याएं अच्छे वर की कामना के लिए यह व्रत करती हैं।