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Wednesday, June 16, 2021

श्री हनुमान रक्षा स्तोत्र अर्थ सहित (Shri Hanuman Raksha stotram with meaning)


श्री हनुमान रक्षा स्तोत्र अर्थ सहित(Shri Hanuman Raksha stotram with meaning):-श्रीराम भक्त हनुमान का रक्षा स्तोत्रं का बहुत ही महत्व बताया गया है जो इस तरह है, जो मनुष्य अपने जीवन मे परेशानियों से घिरा हुआ होता है, जिसके जीवन में बिना कारण मुसीबते आती रहती है, जो मंगल ग्रह, राहु, केतु और शनि ग्रह की दशा, महादशा और अन्तर्दशा में इन ग्रहों के अशुभ प्रभाव में होने या इन ग्रहों का कमजोर होने से इनके द्वारा मनुष्य को अपने जीवन में शारिरिक, मानसिक और अनेक तरह की चिंताओं के सामना करना पड़ता है, जिससे मनुष्य के जीने की चाहत कम हो जाती है। उन मनुष्यों को नियमित रूप श्री हनुमान जी का रक्षा स्तोत्रं का जाप करना चाहिए। जो मनुष्य नियमित रूप से जाप नहीं कर सकते है वे मनुष्य केवल मंगलवार या शनिवार को जाप कर सकते है।




Shri Hanuman Raksha stotram with meaning





श्रीहनुमान जी का हनुमत् रक्षा स्तोत्रम् की जाप की विधि:-जो मनुष्य इस स्तोत्रं का जाप करना चाहते है, हनुमत् रक्षा स्तोत्रं की जाप करनी की विधि निम्नाकिंत है-




◆मनुष्य को प्रातःकाल जल्दी उठकर ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए मन में पूर्ण आस्था भाव रखते हुए संकल्प लेना चाहिए। 




◆मनुष्य को स्नानादि से निवृत होकर अपने पूजा स्थल को स्वच्छ करके एक बाजोट पर स्वच्छ लाल कपड़ा बिछाकर उस पर श्रीराम जी की फोटू या प्रतिमा को स्थापित करना चाहिए।

 



◆जिसमें श्रीरामजी के चरणों के पास बैठे हनुमानजी प्रतिमा हो या फोटो हो।




◆उसके बाद चमेली का तेल दीपक में भरकर चार फुलबाती बनाकर दीपक व धूपबत्ती को प्रज्वलित करना चाहिए।




◆फिर मन में अपनी इच्छा के अनुसार अपने सभी तरह की बाधाओं की मुक्ति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। उसके बाद श्रीरामजी की षोड़श तरह से पूजा करनी चाहिए।





षोडशोपचारैंः पूजा कर्म:-इस तरह भगवान रामजी एवं हनुमानजी का षोडशोपचारैंः पूजा कर्म करना चाहिए-




पादयो र्पाद्य समर्पयामि, हस्तयोः अर्ध्य समर्पयामि,


आचमनीयं समर्पयामि, पञ्चामृतं स्नानं समर्पयामि



शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि, वस्त्रं समर्पयामि,


यज्ञोपवीतं समर्पयामि, गन्धं समर्पयामि,



अक्षातन् समर्पयामि, अबीरं गुलालं च समर्पयामि,


पुष्पाणि समर्पयामि, दूर्वाड़्कुरान् समर्पयामि,



धूपं आघ्रापयामि, दीपं दर्शयामि, 


नैवेद्यं निवेदयामि, ऋतुफलं समर्पयामि, 



आचमनं समर्पयामि, ताम्बूलं पूगीफलं


दक्षिणांं च समर्पयामि।।




◆उसके बाद हनुमानजी की षोड़श तरह की पूजा करनी चाहिए।




◆फिर श्री हनुमान जी का हनुमत् रक्षा स्तोत्रम् का पाठ करना चाहिए।



◆उसके बाद भगवान से अपनी तरफ से पूजा में किसी तरह की भूल के लिए क्षमा याचना करनी चाहिए।




      ।।अथ श्री हनुमत् रक्षा स्तोत्रं।।


वामे करे वैरिभिदं वहन्तं शैलं परे शृङ्खलहारटङ्कम्।


ददानमच्छाच्छ सुवर्णं भजे ज्वलत्कुण्डलमाञ्जनेयम्।।



पद्मरागमणिकुण्डलत्विषा पाटलीकृतकपोलमस्तकम्।


दिव्यहेमकदलीवनान्तरे भावयामि पवमाननन्दनम्।।



उद्यदादित्यसङ्काशमुदारभुजविक्रमम्।


कन्दर्पकोटिलावण्यं सर्वविद्याविशारदम्।।



श्रीरामहृदयानन्दं भक्तकल्पमहीरूहम्।


अभयं वरदं दोभर्यां कलये मारूतात्मजम्।।



वामहस्ते महाकृच्छ्रदशास्यकरमर्दनम्।


उद्यद्वीक्षणकोदण्डं हनुमन्तं विचिन्तयेत्।।



स्फटिकाभं स्वर्णकान्तिं द्विभुजं च कृताञ्जलिम्।


कुण्डलद्वयसशोभिमुखाम्भोजं हरिं भजे।।



      ।।इति श्रीहनुमत् रक्षा स्तोत्रं।।



    ।।बोलो सियावर रामचन्द्रजी की जय।।



    ।।जय बोलो पवनपुत्र हनुमानजी की जय।।