आरती श्री नर्मदा जी की(Aarti of Shri Narmada ji):-माता नर्मदा को भी गंगा माता की तरह जीव जाति के पापों को हरण करने वाली माना गया है। नर्मदा माता की उत्पत्ति के विषय में हिन्दू धर्म ग्रन्थों में अनेक तरह के अलग-अलग मत प्रचलन में हैं, जिनमें एक यह हैं कि जब भगवान भोलेनाथ जी अपनी तपस्या में मग्न थे, तब उनके स्वेद से एक दिव्य एवं बहुत अनेक तरह के रूप-लावण्य से परिपूर्ण कन्या की उत्पत्ति हुई उस उत्पन्न कन्या के सौंदर्य एवं अद्भुत रूप को देखकर एवं उस कन्या के विचित्र क्रियाकलाप को देखकर उसको पूछा तुम कौन हो तब उस कन्या ने जवाव दिया हैं। तात श्री मैं आपकी पुत्री हूँ तब भगवान शिव शंकर जी कहा है कि हे पुत्री तुम मेरे अंश रूप से प्रकट हुई हो और तुम्हारी विचित्र क्रियाकलापो से हमारे मन को मोह लिया हो इसलिए तुम्हारा नाम नर्मदा रखते है।
नर्मदा का अर्थ:-है, कि नर्म का अर्थ सुख या आनन्द देने वाली एवं दा का अर्थ है कि देने वाली अर्थात् जो किसी को भी अपने तरफ खीचकर उसको आनन्द देने वाली होता है। इस तरह नामकरण करने के बाद नर्मदा ने उत्तरवाहिनी गंगा के किनारे पर काशी के पंचकोशी स्थान में दस हजार सालो तक कठिन घोर तपस्या की थी। उन तपस्या के फलस्वरूप शिवजी एवं अन्य देवों ने अनेक तरह वरदान दिए जो किसी दूसरे पास नहीं है उन वरदानो में से एक वरदान स्वरूप मानव जाति के पापों का हरण करने के लिए उनको पृथ्वी पर अवतरित किया था। इसलिए नर्मदा माता मनुष्य लोगो के बुरे पापो का हरण करने वाली होती है। इसलिए मनुष्य को नियमित रूप उनकी आराधना के रूप में आरती करते रहना चाहिए। जिससे मनुष्य जाति के लोगो का उद्धार हो सके और मोक्ष गति को प्राप्त कर सके।
।।अथ आरती श्री नर्मदा जी।।
जय जगदम्बा जय नर्मदा भवानी।
निकसी जलधार जोरे पर्वत पाताल फोर।।
छटा छवि आनन्द वरन कवि सुर फनिन्द।
काटत जम द्वन्द फन्द देत रजधानी।।
जय जगदम्बा जय नर्मदा भवानी।
निकसी जलधार जोरे पर्वत पाताल फोर।।
भूषण वस्त्र शुभ विशाल चन्दन की खोर।
भाल मनो राव पर्वकाल तेज ओ बखानी।।
जय जगदम्बा जय नर्मदा भवानी।
निकसी जलधार जोरे पर्वत पाताल फोर।।
देत मुक्ति परमधाम गावत जो आठों याम।
दुविधा जात महाकाम ध्यावत जो प्राणी।।
जय जगदम्बा जय नर्मदा भवानी।
निकसी जलधार जोरे पर्वत पाताल फोर।।
ध्यावत अज सुर। सुरेश पावत नहीं पार।
गावत नारद गणेश पण्डित मुनि ज्ञानी।।
जय जगदम्बा जय नर्मदा भवानी।
निकसी जलधार जोरे पर्वत पाताल फोर।।
संयम सागर मझधर में जल उदधि अंहकारि।
उदर फारत निकारी धार ऊपर नित छहरानी।।
जय जगदम्बा जय नर्मदा भवानी।
निकसी जलधार जोरे पर्वत पाताल फोर।।
अष्ट भुजा बाल अखण्ड नव द्वीप।
नौ खण्ड महिमा मात तुम जानो।।
जय जगदम्बा जय नर्मदा भवानी।
निकसी जलधार जोरे पर्वत पाताल फोर।।
देके दर्शन प्रसाद रखो माता मर्जाद।
दास गंग करे आरती, वेद मति बखानी।।
जय जगदम्बा जय नर्मदा भवानी।
निकसी जलधार जोरे पर्वत पाताल फोर।।
।।इति आरती श्री नर्मदा जी की।।
।।अथ आरती श्री नर्मदा जी की।।
ओउम जय जगदा नन्दी, मैया जय आनन्द कन्दी।
ब्रह्मा हरी हर शंकर सेवा, शिव हरि शंकर रुद्री पालन्ती।।
ओउम जय जगदा नन्दी, मैया जय आनन्द कन्दी।
ब्रह्मा हरी हर शंकर सेवा, शिव हरि शंकर रुद्री पालन्ती।।
देवी नारद शारद तुम वरदायक, अभिनव पदचण्डी।
सुर नर मुनि जन सेवत, सुर नर मुनि शारद पदवन्ती।।
ओउम जय जगदा नन्दी, मैया जय आनन्द कन्दी।
ब्रह्मा हरी हर शंकर सेवा, शिव हरि शंकर रुद्री पालन्ती।।
देवी ध्रूमक वाहन राज, वीणा वाद यन्ती।
झुमकत झुमकत झुमकत झननन झननन रमती राजंती।।
ओउम जय जगदा नन्दी, मैया जय आनन्द कन्दी।
ब्रह्मा हरी हर शंकर सेवा, शिव हरि शंकर रुद्री पालन्ती।।
देवी बाजत ताल मृदंगा, सुर मंडल रमती।
तोड़ीतान् तोड़ीतान् तोड़ीतान् तुरड़ड़ तुरड़ड़ रमती सुरवन्ती।।
ओउम जय जगदा नन्दी, मैया जय आनन्द कन्दी।
ब्रह्मा हरी हर शंकर सेवा, शिव हरि शंकर रुद्री पालन्ती।।
देती सकल भुवन पर आप विराजित, निश दिन आनन्दी।
गावत गंगा शंकर सेवत रेवाशंकर, तुम भव मेटन्ती।।
ओउम जय जगदा नन्दी, मैया जय आनन्द कन्दी।
ब्रह्मा हरी हर शंकर सेवा, शिव हरि शंकर रुद्री पालन्ती।।
मैया जी को कंचन थाल विराजित, अगर कपूर बाती।
अमरकंठ में विराजित घाटनघाट, कोटि रत्न ज्योति।।
ओउम जय जगदा नन्दी, मैया जय आनन्द कन्दी।
ब्रह्मा हरी हर शंकर सेवा, शिव हरि शंकर रुद्री पालन्ती।।
मैया जी की आरती निशदिन पढ़ि गावें, हो सेवा जुग-जुग न गावें।
जगत शिवानन्द स्वामी जगत हरि, मनवांछित फल पावें।।
ओउम जय जगदा नन्दी, मैया जय आनन्द कन्दी।
ब्रह्मा हरी हर शंकर सेवा, शिव हरि शंकर रुद्री पालन्ती।।
।।इति आरती श्री नर्मदा जी की।।
।।जय बोलो नर्मदा माता की जय हो।।
।।जय बोलो पाप हरणी जी जय हो।।