अक्षय तृतीया अर्थ, मनाने का कारण, पूजा विधि और महत्व(Akshaya Tritiya meaning,Reasons to Celebrate, puja vidhi and importance):-वैशाख शुक्ल की तृतीया को अक्षय तृतीया या आखा तीज भी कहते है। यह अक्षय तृतीया तिथि ईश्वर तिथि हैं। यह अक्षय तिथि परशुरामजी का जन्म दिन होने के कारण इसे "परशुराम तिथि" भी कहते हैं।
अक्षय तृतीया के अर्थ:-त्रेतायुग का आरम्भ इसी आखातीज से हुआ है, जिससे इस तिथि को युग के आरम्भ की तिथि "युगादि तिथि" भी कहते हैं।
अक्षया तृतीया मनाने का कारण:-अक्षया तृतीया को मनाने के कारण निम्नलिखित है, जो इस तरह है:
परशुराम जयन्ती(वैशाख शुक्ल तृतीया):-भगवान परशुराम स्वयं भगवान के अंशावतार है। रात्रि के प्रथम प्रहर के उच्च के छः ग्रहों से युक्त मिथुन राशि पर राहु के स्थित रहते माता रेणुका के गर्भ से भगवान परशुराम का प्रादुर्भाव हुआ।
◆द्वापर युग का प्रारम्भ माना जाता है।
◆बीकानेर राज्य की स्थापना की गई।
आखातीज, बद्रीनारायण दर्शन तिथि:-इस तिथि को चारों धामों में से उल्लेखनीय एक धाम भगवान श्री बद्रीनारायण के पट खुलते हैं। दर्शनार्थियों एवं भक्तों की अपार भीड़ रहती हैं। भक्तों के द्वारा इस दिन किये गए पूण्य कार्य, त्याग, दान-दक्षिणा, जप-तप, हवन, गंगा स्नान आदि कार्य अक्षय की गिनती में आ जाते हैं।
अक्षय तृतीया को ही वृंदावन में श्री बिहारीजी के चरणों के दर्शन वर्ष में एक बार होते हैं। देश के कोने-कोने से श्रद्धालु भक्तजन चरण दर्शन के लिए वृंदावन पधारते है।
अक्षय तृतीया पूजन विधि:- अक्षय तृतीया या आखातीज के दिन स्नान, दान, जप, होम, तर्पण, स्वाध्याय आदि किए जाते हैं। इस दिन दान से मिलने वाले पूण्य को अक्षय मानते है। इसलिए इसका नाम अक्षय तृतीया है।
◆जो लोग इस दिन व्रत रखते हैं वे अपने समस्त सत्कर्मों का अक्षय फल प्राप्त करते हैं।
◆यदि यह तृतीया कृत्तिका नक्षत्र में हो, तो उत्तम मानी जाती हैं।
◆इस दिन अक्षत के द्वारा भगवान विष्णुजी की पूजा की जाती है। यहां पर गौर करने की बात है कि भगवान विष्णुजी के पूजन में अक्षत को निषिद्ध कहा गया हैं, परन्तु यही एक मात्र तिथि है, जब भगवान की अक्षत से पूजा करते है। वैसे भगवान विष्णुजी को सफेद तिल चढ़ाए जाते है।
◆इस दिन प्रातः अक्षतयुक्त जल से स्वयं स्नान कर व्रत रखें। ◆इस दिन ब्राह्मणों को दान दें तथा पूजा करें।
◆इसी दिन नर-नारायण, परशुराम और हयग्रीव अवतार होने के कारण इसका विशेष महत्त्व है।
◆प्रातःकाल स्नानादि कर 'मम खिल पापक्षय पूर्वक सकल शुभफल प्राप्त ये भगवत्प्रीती कामनया देव त्रय पूजनमहं करिष्ये' कहकर संकल्प लें तथा षोडशोपचार से पूजन करें।
◆इसी दिन भगवान परशुरामजी की जयन्ती भी मनाई जाती हैं।
◆इसी दिन महालक्ष्मी एवं नारायण की पूजा की जाती है
◆भगवान को पंचामृत से स्नान कराकर पुष्पमाला चढ़ाएं तथा नर-नारायण को गेहूँ के सत्तु, परशुरामजी को कमल ककड़ी और हयग्रीव को भीगी हुई चने की दाल का नैवेद्य चढ़ाएं।
◆दान में दूध के बने हुए प्रदार्थ, दही, चावल, जौ, गेहूं, चने का सत्तु, जलपूर्ण कलश, सोना-चांदी, कपड़े आदि दान में दें।
◆इस दिन गौरी पूजा भी की जाती है।
◆इस दिन ठाकुरजी के आले (अलमारी) में भगवान बद्रीनारायण जी की तस्वीर लगाकर मिश्री और भीगी हुई चने की दाल व बने हुए भोजन का भोग लगावें व तुलसी-दल चढ़ावें और भगवान को धूप-दीप करके पूजा करें।
◆इसी दिन बद्रीनाथजी के पट भी खुलते हैं, अतः घर में यदि इनकी तस्वीर हो, तो इनका भी पूजन करें।
◆इस दिन चौके में पक्की रसोई नहीं बनाएं और घर में पापड़ भी नहीं सेकें।
◆प्रातःकाल मूंग चावल की खिचड़ी बनाई जाती है। इसमें नमक नहीं डालना चाहिए।
◆इस दिन सभी घरों में प्रायः गेहूँ के खीच, बडीए की सब्जी व गुड़ से बनी राब तथा दो लोइये पर घी लगाकर दोनों एक साथ बेलने वाली रोटी (दुपडा रोटी) इस दिन बनाई जाती हैं।
◆गली-गली में दो लड़कियां आपस में दूल्हा-दुल्हन बनते हैं तथा दूल्हा-दुल्हन बने हुए सभी आस-पास के पड़ौस में जाकर उनके चरण स्पर्श करके आशीर्वाद लेते हैं।
अक्षय तृतीया राजस्थान के जीवन में खेती का महत्त्व:-तो है, पर साथ राजस्थान में वर्षा की कमी है। अतएव अक्षय तृतीया के दिन बाजरा, गेहूं, चना, तिल, जौ आदि सात अन्नों की पूजा कर शीघ्र ही वर्षा होने की कामना की जाती है।
◆कहीं-कहीं घरों के द्वार पर अनाज की बालों आदि के चित्र बनाये जाते हैं।
◆पूज्य प्रतीक सप्त अन्न और हल को माना जाता है।
अबूझ सावे या अक्षय तृतीया मुहूर्त:-अक्षय तृतीया के दिन कोई दूसरा मुहूर्त न देखकर स्वयं सिद्ध अभिजित शुभ मुहूर्त के कारण विवाहोत्सव आदि मांगलिक कार्य सम्पन्न किये जाते हैं। इस दिन शुभ कार्य के लिए इसे अबूझ मुहूर्त भी कहते हैं।
राजस्थान में जन्माष्टमी, फुलेरा दूज, बसन्त पंचमी और आखातीज को अबूझ मुहूर्त कहा जाता है। इन तिथियों को विवाहों के लिए मुहूर्त निकालने की आवश्यकता नहीं पड़ती है। राजस्थान में अधिक बाल विवाह आखातीज के अवसर पर होते हैं।