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Friday, July 16, 2021

शंख बजाने के फायदे एवं नियम(Benefits and rules of blowing conch)

               


शंख बजाने के फायदे एवं नियम(Benefits and rules of blowing conch):-हमारे हिन्दू धर्म गर्न्थो की रचना करने से पूर्व हमारे ऋषि-मुनियों ने इनमें शामिल किए गए प्रत्येक विषय पर जिन पर चिन्तन व मनन करने के बाद उनको मनुष्य के जीवन पर लागू करके जानने की कोशिश की इनका समस्त तरह पर जीवों पर क्या-क्या प्रभाव पड़ता है और उनका क्या-क्या फायदा होता हैं। उन विषयों में समुद्र से उत्पन्न शंख उनमें से एक हैं, जो समुद्र मंथन के समय चौदह रत्नों में से ही प्राप्त हुआ था उस शंख को भगवान विष्णुजी ने वरण किया था इसलिए उनको उचित स्थान मिलने से उस शंख को ईश्वर के प्रतिनिधि के रूप में पूजा में स्थान मिला था जो की आजकल भी चल रहा है।

हमारी कोई पूजा व कथा वाचन शंख बजाने के बिना पूर्ण नहीं हो सकती हैं, इनको पूजा में वहीं स्थान दिया गया है, जो ईश्वर को दिया गया है। क्योंकि यह सब ईश्वर के प्रतिनिधित्व माने गए है।

शंख बजाने के लाभ हिन्दू धार्मिक गर्न्थो के अनुसार पूजा, कथा वार्ता एवं आरती आदि धार्मिक अनुष्ठान में अवश्य ही शंख को बजाया जाता हैं।

शंख को बजाने के लाभ:-शंख को बजाने से अनेक तरह के फायदे मिलते है जो इस तरह

1.शंखेन हत्वा रक्षांसि(अर्थववेद 4/10/2)

अर्थात्:-शंख को बजाकर समस्त दैत्यों को मारकर संसार के समस्त तरह के जीवों की रक्षा करता है।

2.अवरस्पराय शंखध्वम्(यजुर्वेद 30/19)

अर्थात्:-समस्त तरह के दुश्मनों के हृदय दहलाने के लिए शंख को फूंकने वाला व्यक्ति अपेक्षित है

3.यस्तु शंखध्वनि कुर्यात्पूजाकाले विशेषतः।

विमुक्तः सर्वपापेन विष्णुना सह मोदते।।(रणवीर भक्ति रत्नाकर स्कान्दे)

अर्थात्:-पूजा करते समय जो मनुष्य अपने मुंह की फूंक से शंख को बजाते हुए उससे ध्वनि की तरंगों को उत्पन्न करता हैं उसके सभी तरह के किये हुए बुरे कर्मों के पापों से मुक्ति मिल कर उसके पाप खत्म हो जाते हैं और वह मनुष्य श्रीचक्रपाणी केशवजी के निकट रहते हुए उनके चरण कमलों की सेवा करते हुए आनन्द से रहता है।

4.भारतीय वैज्ञानिक श्री जगदीश चंद्र बोस की तरह अनेक भारतीय वैज्ञानिकों ने अपने यंत्रों द्वारा स्पष्ट रूप सिद्ध किया है की एक बार शंख को मनुष्य अपने मुंह फूंक के द्वारा उस शंख को बजाते है तो उस मनुष्य के फूंक में जितनी तीव्रता होती है उतनी ही उसकी फूंक से शंख में तेज कम्पन तेज होगी और वह उतनी दूर तक उसकी कम्पन जाएंगी जिससे उसकि ध्वनि के वेग से जहाँ-जहाँ तक उसकी कम्पन जाएगी वहां पर स्थित हानिकारक जीवाणुओं व रोग को फैलाने वाले जीवाणुओं के दिल को दहलाते हुए उनके प्राण जीवन में संकट पैदा करके उनको मूर्छित करते हुए उसके प्राणों को भी हर लेती हैं। यदि यह प्रक्रिया लगातार एक ही वेग से लगातार होती रहती है तो वायुमंडल में उपस्थित सभी तरह के हानिकारक कीटाणुओं से मुक्ति मिलकर समस्त जीवों के लिए एक वरदान बन जाती है।

यह प्रक्रिया को समस्त विज्ञान को जानने वाले मानते है कि सूर्य की तेज व तीव्र किरणें शब्द की प्रगति में बाधा पहुंचाती हैं।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से:- वैज्ञानिको ने पाया कि शंख की जब फूंक से बजाया जाता हैं तब उसमें से जो ध्वनि या कम्पन पैदा होती है उस ध्वनि या कम्पन का प्रभाव वायुमण्डलीय हानिकारक जीवाणुओ व वाइरस से फैलने वाली संक्रामक को काफी हद तक कम किया जा सकता है, उस ध्वनि से उन सभी हानिकारक जीवाणुओं व वाइरस का खात्मा हो सकता है। जब शंख को प्रति सेंकड सताईस घनफुट वायु शक्ति के साथ बहुत तेजी से बजाया जाता हैं तब शंख बारह सौ फुट की दूरी तक के जीवाणुओं को नष्ट करने की क्षमता होती है और छब्बीस सौ फुट तक के जन्तु शंख की कम्पन से बेहोश हो जाते है।

5.हिन्दू धर्म ग्रन्थों के अनुसार प्रातःकाल व सायंकाल के समय ही अक्सर शंख को बजाया जाता हैं, जिससे शंख को बजाना से उत्पन्न ध्वनि की तरंगों का पूर्णरूप से फायदा मनुष्य व समस्त जीवों को मिल सके।

6.जो व्यक्ति बोल नहीं सकता है व बोलते समय जिव्हा से उच्चारण करते समय हकलाने लगता है उनको हमेशा शंख से उत्पन्न शब्द को सुनने पर वह एक औषधि के समान ही कार्य करती है।

7.वायुमण्डलीय शुद्ध ऑक्सीजन मिलती है, जिससे मनुष्य का रक्त संचार ठीक तरह से काम करता है और मनुष्य को मस्तिष्क सम्बन्धित विकारों से मुक्ति मिलती हैं।

8.जीवाणुओं के अलावा ज्वर, पेट के कीड़े, गर्मी से होने वाला हैजा, गर्दन को तोड़ने के समान ज्वर आदि भी कुछ दूरी तक मरते है।

9.ध्वनि विस्तारक जगह के आजु-बाजू की जगह निश्चित ही ठीक हो जाती हैं।

10.शंख को बजाने से मनुष्य को शारीरिक व मानसिक बीमारियों के कष्टों से मुक्ति मिल जाती हैं

11.शंख के कम्पन से मन को शांति मिलकर अच्छी तरह से निद्रा आने लगती है।

12.जो मनुष्य हमेशा शंख को अपने मुंह की ध्वनि से फूंक मारकर बजाते हैं उनको कभी भी फेफड़ों के रोग नहीं होते हैं।

13.दमा, उरुक्षत, कास, सर्दी, प्लीहा, यकृत और इन्फ्लुएंजा जैसे रोगों के पूर्वरूप में शंखध्वनि से फायदा प्राप्त होता हैं। इसलिए ही देवालय में, कथावाचन आदि जगहों में जहाँ पर ज्यादा लोगों का जमाव होता हैं और उनके मुख से निकलने वाले श्वास से वायुमण्डल दूषित होने का पर्याप्त अवसर हो ऐसे स्थानों में शंख बजाकर पहले ही वायुमण्डल को शुद्ध बनाना जरूरी होता है 

14.शंख का उपयोग अनेक तरह की आयुर्वेद ओषधियों को बनाने में किया जाता हैं।


शंख बजाने के नियम:-शंख को बजाने से पूर्व बजाने वालों को शंख के नियमों को भी जानना जरूरी है जो इस तरह है:

1.शंख को भगवान श्रीविष्णु व लक्ष्मी के प्रतीक के रूप में माना जाता है इसलिए उनको ईश्वर की तरह ही ध्यान रखना व सम्मान देना चाहिए।

2.शंख को समुद्र से प्राप्त करने के बाद उनका अभिषेक करना चाहिए।

3.शंख को हमेशा उचित व पवित्र जगह पर ही रखना चाहिए।

4.शंख को अपवित्र होने पर नहीं छूना चाहिए।

5.शंख किसी भी तरह से खण्डित नहीं होना चाहिए।

6.शंख को अनावश्यक नहीं बजाना चाहिए।

7.शंख को हमेशा प्रातःकाल और सायंकाल के समय ही बजाना चाहिए

8.शंख को बजाने के बाद शुद्ध जल से धोना चाहिए।

9.शंख को बजाने से पूर्व ईश्वर से उनकी अनुमति लेकर व शंख को प्रणाम करते हुए बजाना चाहिए।

10.शंख को नियमित रूप एक ही समय के अनुसार बजाना चाहिए।

शंख को बजाने की संख्या:-हमारे धर्म ग्रन्थों में शंख को कितने बार बजाना चाहिए अलग-अलग तरह के आख्यान मिलता है, जो इस तरह है:

1.पूजा करने से पूर्व शंख को तीन की आवृत्ति में बजाना चाहिए।

2.शंख को लगातार पूजा के समय चौदह बार बजाया जाता हैं।

3.शंख को कथावचन के समय लगातार एक लय से बजाना चाहिए