माता-पिता की कुंडली से जानें सन्तान के रहस्य (Know the secrets of the child from the horoscope of the parents):-हमारे ऋषि-मुनियों के शोध के फलस्वरूप जन्मकुंडली का निर्माण हुआ है, जिसमें मनुष्य के जीवन के भूत, भविष्य और वर्तमान को जानने में सहायता मिलती है। मनुष्य अपने जीवन काल को पूर्व में ही जान सकता हैं कि उसे किस जीवन को चलाना है, किस तरह अपना विकास कर ऊचांई पहुंचना है। इसलिए जन्मकुंडली का मनुष्य जीवन में महत्वपूर्ण स्थान हैं। इसी तरह माता-पिता की जन्मकुंडली के द्वारा भी माता-पिता जान सकते है उनको किस तरह की संतान की प्राप्ति होगी और उनका ख्याल कैसे रहेगी। इस तरह जन्मकुंडली एक आईना है जो आगे का प्रतिबिंब को बता सकता है उस प्रतिबिंब को जानना भी जरूरी है।
१.माता-पिता की कुंडली और संतान:-पूर्व जन्म तथा वर्तमान जन्म में जातक द्वारा किए गए कर्मों के फल से जातक के भाग्य का निर्माण होता है परंतु जातक के भाग्य निर्माण में जातक के अलावा अन्य लोगों के कर्मों का भी योगदान रहता है। प्राय: लोग इस ओर ध्यान नहीं देते।
कहा जाता है कि बाढ़हि पुत्र पिता के धर्मा। पूर्वजों के कर्म भी उनकी संतानों के भाग्य को प्रभावित करते हैं। दशरथ ने श्रवण कुमार को बाण मारा जिसके फलस्वरूप माता-पिता के शाप के कारण पुत्र वियोग से मृत्यु का कर्मफल भोगना पड़ा। किंतु इसका परिणाम तो उनके पुत्रों, पुत्रवधू समेत पूरे राजपरिवार यहां तक कि अयोध्या की प्रजा को भी भोगना पड़ा।
कहा जाता है कि संगति गुण अनेक फल। घुन गेहूं की संगति करता है। गेहूं की नियति चक्की में पिसना है। गेहूं से संगति करने के कारण ही घुन को भी चक्की में पिसना पड़ता है। देखा जाता है कि किसी जातक के पीड़ित होने पर उसके संबंधी तथा मित्र भी पीड़ित होते हैं। इस दृष्टि से सज्जनों का संग साथ शुभ फल और अपराधियों दुष्टों का संगसाथ अशुभ फल की पूर्व सूचना है। किसी भी अपराधी से संपर्क उसका आतिथ्य या उपहार स्वीकार करना भयंकर दुर्भाग्य विपत्ति को आमंत्रण देना है।
अत: यश-अपयश, उचित-अनुचित का हर समय विचार करके ही कोई काम करना चाहिए, क्योंकि इन्हीं से सुखद-दुखद स्थितियां बनती हैं।
माता-पिता की कुंडली से उनकी संतानों पुत्र-पुत्री के भाग्य के रहस्य प्रकट होते हैं। अत: कुंडली देखते समय इन बातों का ध्यान रखना चाहिए।
२.भगवान श्रीकृष्ण जी की कुंडली की विवेचना:-द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण ने भाद्रपद की अष्टमी बुधवार रोहिणी नक्षत्र में अवतार लिया। भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी महान लीलाआें के माध्यम से समाज को बताया कि महान व्यक्तियोंं को न केवल कठिनाइयों को बर्दाश्त करना पड़ता है, बल्कि उनसे प्यार भी करना पड़ता है।
भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत में अपने विराट स्वरूप का दर्शन कराते हुए अर्जुन को दिव्य ज्ञान देते हुए संदेश दिया कि शांति का मार्ग ही प्रगति एवं समृद्धि का रास्ता है जबकि युद्ध का मार्ग सीधे श्मशान ले जाता है। भगवान श्रीकृष्ण की कुंडली में पूर्ण पुरुष कृष्ण योगी और पंचम भाव में स्थित उच्च के बुद्ध ने जहां उन्हें वाकचातुर्य, विविध, कलाविद् बनाया, वहीं बिना हथियार से वाकचातुर्य से कठिन से कठिन कार्य भी सिद्ध किए तथा स्वगृही बृहस्पति ने आय भाव में, नवम भाव में स्थित उच्च के मंगल ने और शत्रु भाव में स्थित उच्च के शनि ने वीराग्रणी और परम पराक्रमी बनाया।
माता के स्थान में स्थित स्वगृही सूर्य ने माता-पिता से दूर रखा। सप्तमेश मंगल और लग्र में स्थित उच्च के चन्द्र ने तथा स्वगृही शुक्र ने गोपी गण सेवित रसिक शिरोमणि और कलाप्रेमी सौन्दर्य-उपासक बनाया। लाभ घर के बृहस्पति, नवम भाव में उच्च के मंगल, छठे भाव में स्थित उच्च के शनि, पंचम भाव में स्थित उच्च के बुध और चतुर्थ भाव में स्थित उच्च के सूर्य ने महान पुरुष, शत्रुहन्ता, तत्वज्ञ, विजयी, जननायक और अमर र्कीतकारक बनाया।
इन्हीं ग्रहों के विराजमान होने के कारण तथा लग्र में उच्च के सूर्य के कारण चंचल नेत्र, समृद्धशाली, ऐश्वर्यवान एवं वैभवशाली चक्रवर्ती राज योग का निर्माण किया। भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत में अधर्म पर धर्म की विजय की पताका फहराई पांडव रूपी धर्म की रक्षा की एवं कौरव रूपी अधर्मियों का नाश किया।
३.कुंडली में ग्रह तथा वास्तु का समन्वय:-मानव सर्वश्रेष्ठ प्राणी है, अत: सुख शांतिपूर्वक रहने के लिए आवास में वास्तु की जरूरत होती है। नए घर के निर्माण के लिए भूमि चयन, भूमि परीक्षा, भूखंडों का आकार-प्रकार, भवन निर्माण विधि एवं पंच तत्वों पर आधारित कमरों का निर्माण इत्यादि बातों के बारे में जानकारी आवश्यक है।
जन्म कुंडली में चौथे भाव पर शुभ ग्रहों के अभाव व भावेश के बलाबल के आधार पर मकान सुख के बारे में जानकारी प्राप्त होती है तथा चौथे भाव भावेश अथवा इन पर दृष्टि डालने वाले ग्रहों अथवा चौथे भाव भावेश का स्वामी जिस नक्षत्र पर हो, उस नक्षत्र स्वामी की दशा-अंतर्दशा से मकान का सुख प्राप्त होता हैं।
मंत्र:-ओम नमो वैश्वानर वास्तु रुपाय भूपति एवं मे देहि काल स्वाहा।
भूखंड का आकार आयताकार, वर्गाकार, चतुष्कोण अथवा गोलाकार शुभ होता है। है।
भूमि परीक्षण के क्रम में भूखंड के मध्य में भूस्वामी अपने एक हाथ से लम्बा चौड़ा व गहरा गड्ढा खोदकर उसे उसी मिट्टी से भरने पर मिट्टी कम हो जाने से अशुभ लेकिन सम या मिट्टी शेष रहने में उत्तम जानें। दोष-निवारण के लिए उस गड्ढे में अन्य जगह से शुद्ध मिट्टी लाकर भर दें। खुदाई करने पर चूडिय़ां, ऐनक, सर्प, बिच्छू, अंडा, पुराना कोई वस्त्र या रूई निकले तो अशुभ जानें। निवारण के लिए उपरोक्त मंत्र को कागज में लिख कर सात बार पढ़कर पूर्व दिशा में जमीन में गाड़ दें।
४.कुंडली में जानिए आपकी पत्नी कैसी होगी?:-हर पुरुष की तमन्ना होती है कि उसे सुंदर पत्नी मिले। इसीलिए हर पुरुष अपनी होने वाली पत्नी के बारे में जानने के लिए उत्साहित रहता है लेकिन वह सोच नहीं पाता कि वह ऐसा कैसे करें?
ये सब जानने के लिए अपनाइए ये आसान सा तरीका। जी हां इस तरीके से आप खुद ही जान लेंगे कि आपकी पत्नी सुंदर होगी या सामन्य रुप रंग की। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार कुंडली का सातवां घर विवाह स्थान होता है। अगर कुण्डली में शुक्र पहले घर में बैठा हो या गुरू से सातवें घर में शुक्र बैठा है तो सुंदर पत्नी प्राप्त होती है।
सातवें घर में जो राशि है उस राशि के स्वामी ग्रह को शुक्र देख रहा हो या गुरू सातवें घर में बैठा है तो सुंदर जीवनसाथी प्राप्त होता है। कुंडली में अगर शुक्र सातवें घर में तुला, वृष या कर्क राशि में बैठा है तो आपकी पत्नी गोरे रंग की होगी और उसके नयन नक्श आकर्षक होंगे।
५.प्रॉपर्टी में निवेश और ग्रहों की चाल:-जमीन-जायदाद में निवेश करना आज के समय में फायदे का व्यापार साबित हो रहा है। प्रॉपर्टी में निवेश के ग्रह नक्षत्रों का संबंध ज्योतिष से बहुत गहरा होता है। किस व्यक्ति को प्रॉपर्टी में निवेश से फायदा होगा, इसका निर्धारण उसकी जन्मपत्री में इस व्यापार से संबंधित ग्रह व भाव के अवलोकन से हो सकता है। प्रॉपर्टी में निवेश करने से पहले इन ग्रहों को जान लेना जरूरी होता है।
जन्म कुंडली के चतुर्थ भाव से जमीन-जायदाद तथा भू-सम्पत्ति के बारे में विचार किया जाता है। यदि चतुर्थ भाव तथा उसका स्वामी ग्रह शुुभ राशि में, शुभ ग्रह या अपने स्वामी से युत या दृष्ट हो, किसी पाप ग्रह से युत या दृष्ट न हो तो, जमीन संबंधी व्यापार से शुभ फलों की प्राप्ति होती है। भूमि का कारक ग्रह मंगल है। अत: कुंडली में चतुर्थ भाव, चतुर्थेश तथा मंगल की शुभ स्थिति से भूमि संबंधी व्यापार से फायदा होगा।
भूमि के व्यापार में जमीन का क्रय-विक्रय करना, प्रॉपर्टी में निवेश कर लाभ में बेचना, दलाली के रूप में काम करना तथा कॅालोनाइजर के रूप में स्कीम काटकर बेचना इत्यादि शामिल है, ऐसे सभी व्यापार का उद्देेश्य आय बढ़ाकर धन कमाना होता है। अत: भूमि से संबंधित ग्रहों का शुभ संयोग कुंडली के धन (द्वितीय) तथा आय (एकादश) भाव से भी होना आवश्यक है।
चतुर्थ भाव का स्वामी एवं मंगल उच्च, स्वग्रही अथवा मूल त्रिकोण का होकर शुभ युति में हो तथा धनेश, लाभेश से संबंध बनाए तो प्रॉपर्टी के कारोबार से उत्तम फलों की प्राप्ति होती है। इसी प्रकार चतुर्थ भाव का स्वामी धनेश, लाभेश, लग्न अथवा दशम भाव के स्वामी से राशि परिवर्तन करे तो, उस व्यक्ति को भूमि के क्रय-विक्रय से धन लाभ होता है।
७. कुंडली और भाग्य उदय :- व्यक्ति जीवन में सफल हो तो जीवन में खुशियां अपने आप आ ही जाती हैं लेकिन असफल होने पर सारे सुख-साधन व्यर्थ और जीवन नीरस लगने लगता है। जीवन में ऊर्जा आत्मविश्वास बनकर हमारे व्यक्तित्व में झलकती है तो सफलता बनकर करियर में। जितना हमारे व्यवक्तिगत गुण और संस्कार महत्व रखते हैं, उतना ही महत्व रखता है हमारा भाग्य और हमारे आसपास के वातावरण में मौजूद अदृश्य ऊर्जाशक्तियां ।
हकीकत में धन ध+न का रहस्य वे ही समझ पाएं है जो ध यानी भाग्य और न यानी जोखिम दोंनो को साथ लेकर चलते रहे हैं। जन्म कुंडली में जिस स्थान पर धनु और वृश्चिक राशियां होंगी उसी स्थान से धन कमाने के रास्ते खुलेंगे। जब जोखिम है तो भाग्य को आगे आना ही है, जब तक जोखिम नहीं है तब तक भाग्य भी नहीं है।
गुरु सोना है तो मंगल पीतल अब होता यह है की ऐसी अवस्था में जब भी मंगल और गुरु की युति हो जाती है तो पीतल सोने की चमक को दबाने लगता है। सोने में मिलावट होनी शुरू हो जाती है अर्थात काबिल होते हुए भी आपकी क्षमताओं का उचित मूल्यांकन नहीं होता। आपसे कम गुणी लोग आपको ओवरटेक करके आगे निकल जाते हैं और धन कहां से बचना है जब व्यय के रूप में मंगल व रोग के रूप में शुक्र लग्न में बनने वाले धनपति योग को तबाह करने पर तुल जाते हैं तो पैसा आने से पहले उसके जाने का रास्ता तैयार रहता है।
ऐसी अवस्था में किसी वशिष्ट विद्वान के परामर्श से सवा सात रत्ती का पुखराज धारण करें। प्रतिदिन माथे पर चन्दन का तिलक लगाएं, शुक्र को हावी न होने दें अर्थात महंगी बेकार की वस्तुएं न खरीदें, खाने पीने, पार्टी दावत व महंगे परिधानों पर बेकार खर्च न करें।
कुंडली में लग्न से नवां भाव भाग्य स्थान होता है। भाग्य स्थान से नवां भाव अर्थात भाग्य का भी भाग्य स्थान पंचम भाव होता है। द्वितीय व एकादश धन को कण्ट्रोल करने वाले भाव होते हैं। तृतीय भाव पराक्रम का भाव है.अततः कुंडली में जब भी गोचरवश पंचम भाव से धनेश, आएश, भाग्येश व पराक्रमेश का सम्बन्ध बनेगा वो ही समय आपके जीवन का शानदार समय बनकर आएगा। ये सम्बन्ध चाहे ग्रहों की युति से बने चाहे आपसी दृष्टि से बनें।