Breaking

Friday, July 23, 2021

शीतला चालीसा(Sheetla chalisa)

                 


शीतला चालीसा(Sheetla chalisa):-माता शीतला के मंदिर में शीतला माता को गदर्भ की सवारी पर सवार होते हुए दिखाया जाता हैं, शीतला माता की पूजा करने का दायित्व कुम्हार जाति के लोग अपने ऊपर लेकर अपनी कुल की देवी मानते हैं, माता के मन्दिर को सुहाग मन्दिर के रूप में जाना जाता है। शीतला माता को महामाई या चेचक की देवी या बच्चों की संरक्षिका या सेढ़ल माता आदि दूसरे रूपों में भी लोग जानते हैं। माता शीतला का प्रमुख पर्व शीतला अष्टमी का होता हैं, जो की चैत्र मास के अंधेरे पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता हैं। जिसे बासोड़ा कहते हैं, जिसमें शीतला माता का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए ठंडा भोजन ग्रहण किया जाता हैं।

माता की सवारी का मेला भी भरा जाता हैं, जिसे गर्दभ का मेला कहते है।

माता शीतला जी अनुकृपा पाने के लिए उनकी पूजा-अर्चना करनी चाहिए, जिससे माता की कृपा बनी रहे।

जिन औरतों को सन्तान की प्राप्ति नहीं हो रही हैं उनको माता शीतला की शीतला चालीसा का पाठ करना चाहिए।

माता की पूजा-चालीसा करने से शीतलता की प्राप्त होती है जिससे मनुष्य के शरीर में ठंडाई मिल जाती है तथा शरीर के सम्बन्धित बीमारियों से मुक्ति मिल जाती हैं।

माता शीतला की चालीसा को पढ़ने पर सभी तरह के कष्टों से मुक्ति मिलकर सभी तरह मिल रही मुश्किलें खत्म हो जाती हैं, इसलिए मनुष्य को माता शीतला की चालीसा का पाठ करना चाहिए।

 

शीतला माता स्तुति मंत्र:-

शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत् पिता।

शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः।।


।।श्री शीतला चालीसा।।


        ।।चौपाई।।

जय जय श्री शीतला भवानी।

जय जग जननि सकल गुणधानी।।

गृह गृह शक्ति तुम्हारी राजती।

पूरन शरन चंद्रसा साजती।।


विस्फोटक सी जलत शरीरा।

शीतल करत हरत सब पीड़ा।।

मात शीतला तव शुभनामा।

सबके काहे आवही कामा।।


शोक हरी शंकरी भवानी।

बाल प्राण रक्षी सुखदानी।।

सूचि बार्जनी कलश कर राजै।

मस्तक तेज सूर्य सम साजै।।


चौसट योगिन संग दे दावै।

पीड़ा ताल मृदंग बजावै।।

नंदिनाथ भय रो चिकरावै।

सहस शेष शिर पार ना पावै।।


धन्य धन्य भात्री महारानी।

सुर नर मुनी सब सुयश बधानी।।

ज्वाला रूप महाबल कारी।

दैत्य एक विश्फोटक भारी।।


हर हर प्रविशत कोई दान क्षत।

रोग रूप धरी बालक भक्षक।।

हाहाकार मचो जग भारी।

सत्यो ना जब कोई संकट कारी।।


तब मैंय्या धरि अद्भुत रूपा।

कर गई रिपुसही आंधीनी सूपा।।

विस्फोटक हि पकड़ी करी लीन्हो।

मुसल प्रमाण बहु बिधि कीन्हो।।


बहु प्रकार बल बीनती कीन्हा।

मैय्या नहीं फल कछु मैं कीन्हा।।

अब नही मातु काहू गृह जै हो।

जह अपवित्र वही घर रहि हो।।


पूजन पाठ मातु जब करी है।

भय आनंद सकल दुःख हरी है।।

अब भगतन शीतल भय जै हे।

विस्फोटक भय घोर न सै हे।।


श्री शीतल ही बचे कल्याना।

बचन सत्य भाषे भगवाना।।

कलश शीतलाका करवावै।

वृजसे विधीवत पाठ करावै।।


विस्फोटक भय गृह गृह भाई।

भजे तेरी सह यही उपाई।।

तुमही शीतला जगकी माता।

तुमही पिता जग के सुखदाता।।


तुमही जगका अतिसुख सेवी।

नमो नमामी शीतले देवी।।

नमो सूर्य करवी दुख हरणी।

नमो नमो जग तारिणी धरणी।।


नमो नमो ग्रहोंके बंदिनी।

दुख दारिद्रा निस निखंदिनी।।

श्री शीतला शेखला बहला।

गुणकी गुणकी मातृ मंगला।।


मात शीतला तुम धनुधारी।

शोभित पंचनाम असवारी।।

राघव खर बैसाख सुनंदन।

कर भग दुरवा कंत निकंदन।।


सुनी रत संग शीतला माई।

चाही सकल सुख दूर धुराई।।

कलका गन गंगा किछु होई।

जाकर मंत्र ना औषधी कोई।।


हेत मातजी का आराधन।

और नही है कोई साधन।।

निश्चय मातु शरण जो आवै।

निर्भय ईप्सित सो फल पावै।।


कोढी निर्मल काया धारे।

अंधा कृत नित दृष्टी विहारे।।

बंधा नारी पुत्रको पावे।

जन्म दरिद्र धनी हो जावे।।


सुंदरदास नाम गुण गावत।

लक्ष्य मूलको छंद बनावत।।

या दे कोई करे यदी शंका।

जग दे मैंय्या काही डंका।।


कहत राम सुंदर प्रभुदासा।

तट प्रयागसे पूरब पासा।।

ग्राम तिवारी पूर मम बासा।

प्रगरा ग्राम निकट दुर वासा।।


अब विलंब भय मोही पुकारत।

मातृ कृपाकी बाट निहारत।।

बड़ा द्वार सब आस लगाई।

अब सुधि लेत शीतला माई।।


यह चालीसा शीतला पाठ करे जो कोय।

सपनेउ दुःख व्यापे नही नित सब मंगल होय।।


बुझे सहस्र विक्रमी शुक्ल भाल भल किंतू।

जग जननी का ये चरित रचित भक्ति रस बिंतू।।


॥ इति श्री शीतला चालीसा॥ 

।।जय शीतला माता की जय।।