श्री शनिचालिसा(Shri Shanichalisa):-सूर्य पुत्र एवं छाया पुत्र श्री शनिदेवजी को प्रणाम करता हूँ।श्री शनिदेवजी आप की दृष्टि समस्त संसार के प्राणियों एवं समस्त लोकों के देवताओं पर हैं। आप की दृष्टि से कोई नहीं बच सका। भगवान शिवजी को भी आपने अपनी शनि की साढ़े-साती में जंगल में घोड़ा बनने पर विवश कर दिया था। राजा विक्रमादित्य को भी आपने तेली के घर पर बैल हांकने वाला बना दिया था। श्री शनिदेवजी न्याय के देवता होते है जो प्राणी अपने कर्मों के द्वारा न्याय पर चलता है सबके प्रति समान दृष्टि रखता है उस पर श्री शनिदेवजी अपना आशीर्वाद प्रदान कर देता है, जो मनुष्य गलत विचारधारा एवं दूसरों का अहित सोचता है उस पर श्री शनिदेवजी अपनी दशा-अन्तर्दशा में उसको कष्टों को भोगाते हैं। जब कभी श्री शनिदेवजी की दशा-अन्तर्दशा मनुष्य के जीवन पर आती है तो अच्छे कार्यों को करने वाले को राजा और बुरे कार्यों करने वालों को रंक बना देते हैं। श्री शनिदेवजी अपने पैरों से लँगड़े होने के कारण शनिदेवजी की गति बहुत ही धीमी होती हैं।
शनि ग्रह की गति एक राशि को पार करने में ढ़ाई साल का समय लगता हैं, समस्त बारह राशियों को पार करने में तीस वर्ष का समय लगता हैं।
जब कभी भी श्री शनिदेवजी की दशा-अन्तर्दशा चल रही होती है, जिस पर चल रही होती हैं उनको कोर्ट-कचहरी, बदनामी और दुर्घटना का योग बन जाता है।
इसके लिए मनुष्य को शनिदेवजी की आराधना करनी चाहिए।
मनुष्य को अपनी दृष्टि को गलत जगह पर नहीं रखना चाहिए।
स्त्रियों का सम्मान करना चाहिए।
माता-पिता, बहिन-भाई और वृद्ध जनों का ख्याल रखना चाहिए।
जिन मनुष्य पर शनिदेवजी की साढ़े-साती एवं ढैय्या चल रही होती हैं, उन मनुष्यों को श्री शनिदेवजी की चालीसा का पाठ करना चाहिए।
शनिवार को एवं मंगलवार को उपवास करना चाहिए।
भगवान श्री बजरंगीबली की पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
शनिवार को पीपल के वृक्ष के नीचे सरसो का दिया शाम के समय में करने से फायदा मिलता है।
शनिवार के दिन सूखे नारियल की गिरी में छेद करके अपने हाथ से गेहूं के आटे को सेककर उसमें थोड़ी शक्कर व तेल मिलाकर उस सीके व मिश्रित आटे को उस सूखे नारियल की गिरी में डालकर किसी एकांत स्थान पर जहां पर किसी मनुष्य का आवागमन ज्यादा नहीं होता हैं उस स्थान पर पेड़ के नीचे जहां पर चींटिया ज्यादा होती है उस स्थान पर एक सामान्य गड्डा खोदकर उस नारियल को दबाना चाहिए। जैसे-जैसे उस नारियल को जीव खाएंगे उसी तरह ही मनुष्यों के कष्ट कम होंगे।
इन सभी के साथ-साथ श्री शनिदेवजी की चालीसा का पाठ भी हमेशा करते रहने पर मनुष्य को फायदा मिलता है।
।।अथ श्री शनिदेव चालीसा।।
।।दोहा।।
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल।
दीनन के दुख दूर करि, कीजै नाथ निहाल॥
जय जय श्री शनिदेव प्रभु, सुनहु विनय महाराज।
करहु कृपा हे रवि तनय, राखहु जन की लाज॥
जयति जयति शनिदेव दयाला।
करत सदा भक्तन प्रतिपाला॥
चारि भुजा, तनु श्याम विराजै।
माथे रतन मुकुट छबि छाजै॥
परम विशाल मनोहर भाला।
टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला॥
कुण्डल श्रवण चमाचम चमके।
हिय माल मुक्तन मणि दमके॥
कर में गदा त्रिशूल कुठारा।
पल बिच करैं अरिहिं संहारा॥
पिंगल, कृष्णो, छाया नन्दन।
यम, कोणस्थ, रौद्र, दुखभंजन॥
सौरी, मन्द, शनी, दश नामा।
भानु पुत्र पूजहिं सब कामा॥
जा पर प्रभु प्रसन्न ह्वैं जाहीं।
रंकहुँ राव करैं क्षण माहीं॥
पर्वतहू तृण होई निहारत।
तृणहू को पर्वत करि डारत॥
राज मिलत बन रामहिं दीन्हयो।
कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो॥
बनहूँ में मृग कपट दिखाई।
मातु जानकी गई चुराई॥
लखनहिं शक्ति विकल करिडारा।
मचिगा दल में हाहाकारा॥
रावण की गति-मति बौराई।
रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई॥
दियो कीट करि कंचन लंका।
बजि बजरंग बीर की डंका॥
नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा।
चित्र मयूर निगलि गै हारा॥
हार नौलखा लाग्यो चोरी।
हाथ पैर डरवायो तोरी॥
भारी दशा निकृष्ट दिखायो।
तेलिहिं घर कोल्हू चलवायो॥
विनय राग दीपक महं कीन्हयों।
तब प्रसन्न प्रभु ह्वै सुख दीन्हयों॥
हरिश्चन्द्र नृप नारि बिकानी।
आपहुं भरे डोम घर पानी॥
तैसे नल पर दशा सिरानी।
भूंजी-मीन कूद गई पानी॥
श्री शंकरहिं गह्यो जब जाई।
पारवती को सती कराई॥
तनिक विलोकत ही करि रीसा।
नभ उड़ि गयो गौरिसुत सीसा॥
पाण्डव पर भै दशा तुम्हारी।
बची द्रौपदी होति उघारी॥
कौरव के भी गति मति मारयो।
युद्ध महाभारत करि डारयो॥
रवि कहँ मुख महँ धरि तत्काला।
लेकर कूदि परयो पाताला॥
शेष देव-लखि विनती लाई।
रवि को मुख ते दियो छुड़ाई॥
वाहन प्रभु के सात सुजाना।
जग दिग्गज गर्दभ मृग स्वाना॥
जम्बुक सिंह आदि नख धारी।
सो फल ज्योतिष कहत पुकारी॥
गज वाहन लक्ष्मी गृह आवैं।
हय ते सुख सम्पति उपजावैं॥
गर्दभ हानि करै बहु काजा।
सिंह सिद्धकर राज समाजा॥
जम्बुक बुद्धि नष्ट कर डारै।
मृग दे कष्ट प्राण संहारै॥
जब आवहिं प्रभु स्वान सवारी।
चोरी आदि होय डर भारी॥
तैसहि चारि चरण यह नामा।
स्वर्ण लौह चाँदी अरु तामा॥
लौह चरण पर जब प्रभु आवैं।
धन जन सम्पत्ति नष्ट करावैं॥
समता ताम्र रजत शुभकारी।
स्वर्ण सर्व सर्व सुख मंगल भारी॥
जो यह शनि चरित्र नित गावै।
कबहुं न दशा निकृष्ट सतावै॥
अद्भुत नाथ दिखावैं लीला।
करैं शत्रु के नशि बलि ढीला॥
जो पण्डित सुयोग्य बुलवाई।
विधिवत शनि ग्रह शांति कराई॥
पीपल जल शनि दिवस चढ़ावत।
दीप दान दै बहु सुख पावत॥
कहत राम सुन्दर प्रभु दासा।
शनि सुमिरत सुख होत प्रकाशा॥
दोहा:-
पाठ शनिश्चर देव को, की हों 'भक्त' तैयार।
करत पाठ चालीस दिन, हो भवसागर पार॥
।।इति श्री शनिदेवजी की शनिचालीचा।।
।।जय बोलो श्री शनिदेवजी की जय।।