जन्म कुंडली का अध्ययन(Study of horoscope):-हमारे प्राचीन समय से ही ग्रहों की खोज हमारे ऋषि-मुनियों ने की थी, नौ ग्रहों की अवधारणाओं को उन्होंने प्रतिपादन किया था। उन नौ ग्रहों को उनकी जगहों स्थापित किया था। उन नौ ग्रहों को अपने-अपने जगह पर क्या-क्या प्रभाव होता है? उनके लिए जन्मकुंडली की स्थापना की जिससे उस जन्मकुंडली में मनुष्य जीवन का हाल-चाल और उनके भविष्य का निर्धारण कर सके।
जन्मकुंडली का अध्ययन करने की रीति व परिचय:-जन्मकुंडली को पढ़ने के लिए कुछ बातों को ध्यान में रखा जाता है, आइए सबसे पहले उन बातो को आपके सामने रखने का प्रयास करें।
जन्मकुंडली बच्चे के जन्म के समय विशेष पर आकाश का एक नक्शा है।
जन्म कुंडली में एक समय विशेष पर ग्रहो की स्थिति तथा चाल का पता चलता है, जन्म कुंडली में बारह खाने बने होते हैं जिन्हें भाव कहा जाता है। जन्म कुण्डली अलग-अलग स्थानो पर अलग-अलग तरह से बनती है जैसे भारतीय पद्धति तथा पाश्चात्य पद्धति. भारतीय पद्धति में भी उत्तर भारतीय, दक्षिण भारतीय तथा पूर्वी भारत में बनी कुंडली भिन्न होती है।
जन्म कुंडली बनाने के लिए बारह राशियों का उपयोग होता है, जो मेष से मीन राशि तक होती हैं. बारह अलग भावों में बारह अलग-अलग राशियाँ आती है. एक भाव में एक राशि ही आती है, जन्म के समय भचक्र पर जो राशि उदय होती है वह कुंडली के पहले भाव में आती है।
अन्य राशियाँ फिर क्रम से विपरीत दिशा में चलती है। माना पहले भाव में मिथुन राशि आती है तो दूसरे भाव में कर्क राशि आएगी और इसी तरह से बाकी राशियाँ भी चलेगी. अंतिम और बारहवें भाव में वृष राशि आती है।
2.भावों के बारे में जानकारी:-जन्मकुंडली में भाव क्या होते हैं आइए उन्हेँ जानने का प्रयास करें। जन्म कुंडली में बारह भाव होते हैं और हर भाव में एक राशि होती है। कुँडली के सभी भाव जीवन के किसी ना किसी क्षेत्र से संबंधित होते हैं, इन भावों के शास्त्रो में जो नाम दिए गए हैं वैसे ही इनका काम भी होता है जैसे- पहला भाव तन, दूसरा धन, तीसरा सहोदर, चतुर्थ मातृ, पंचम पुत्र, छठा अरि, सप्तम रिपु, आठवाँ आयु, नवम धर्म, दशम कर्म, एकादश आय तो द्वादश व्यय भाव कहलाता है।
सभी बारह भावों को भिन्न काम मिले होते हैं, कुछ भाव अच्छे तो कुछ भाव बुरे भी होते हैं, जिस भाव में जो राशि होती है उसका स्वामी उस भाव का भावेश कहलाता है।
हर भाव में भिन्न राशि आती है लेकिन हर भाव का कारक निश्चित होता है।
बुरे भाव के स्वामी अच्छे भावों से संबंध बनाए तो अशुभ होते हैं और यह शुभ भावों को खराब भी कर देते हैं। अच्छे भाव के स्वामी अच्छे भाव से संबंध बनाए तो शुभ माने जाते हैं और व्यक्ति को जीवन में बहुत कुछ देने की क्षमता रखते हैं। किसी भाव के स्वामी का अपने भाव से पीछे जाना अच्छा नहीं होता है, इससे भाव के गुणो का ह्रास होता है. भाव स्वामी का अपने भाव से आगे जाना अच्छा होता है, इससे भाव के गुणो में वृद्धि होती है।
3.जन्मकुंडली में ग्रहों की स्थिति का अवलोकन करना:-जन्म कुंडली मैं सबसे आवश्यक ग्रहों की स्थिति है, आइए उसे जाने, ग्रह स्थिति का अध्ययन करना जन्म कुंडली का बहुत महत्वपूर्ण पहलू है।
◆इनके अध्ययन के बिना कुंडली का कोई आधार ही नहीं है।
◆पहले यह देखें कि किस भाव में कौन सा ग्रह गया है, उसे नोट कर लें।
◆फिर देखें कि ग्रह जिस राशि में स्थित है उसके साथ ग्रह का कैसा व्यवहार है।
◆जन्म कुंडली में ग्रह मित्र राशि में है या शत्रु राशि में स्थित है, यह एक अन्य महत्वपूर्ण पहलू है इसे नोट करें।
◆ग्रह उच्च, नीच, मूल त्रिकोण या स्वराशि में है, यह देखें और नोट करें।
◆जन्म कुंडली के अन्य कौन से ग्रहों से संबंध बन रहे है इसे भी देखें।
◆जिनसे ग्रह का संबंध बन रहा है वह शुभ हैं या अशुभ हैं, यह जांचे।
◆जन्म कुंडली में ग्रह किसी तरह के योग में शामिल है या नहीं, जैसे राजयोग, धनयोग, अरिष्ट योग आदि अन्य बहुत से योग हैं।
4.जन्मकुंडली का फलकथन करते समय:-फलकथन की चर्चा करते हैं, भाव तथा ग्रह के अध्ययन के बाद जन्म् कुंडली के फलित करने का प्रयास करें।
◆पहले भाव से लेकर बारहवें भाव तक के फलों को देखें कि कौन सा भाव क्या देने में सक्षम है।
◆कौन सा भाव क्या देता है और वह कब अपना फल देगा यह जानने का प्रयास गौर से करें।
◆भाव, भावेश तथा कारक तीनो की कुंडली में स्थिति का अवलोकन करना आवश्यक होता है।
◆जन्म कुंडली में तीनो बली हैं तो जीवन में चीजें बहुत अच्छी होगी।
◆तीन में से दो बली हैं तब कुछ कम मिलने की संभावना बनती है लेकिन फिर भी अच्छी होगी।
◆यदि तीनो ही कमजोर हैं तब शुभ फल नहीं मिलते हैं और परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
5.दशा का अध्ययन भी जरूरी:-अभी तक बताई सभी बातों के बाद दशा की भूमिका आती है, बिना अनुकूल दशा कै कुछ नहीं मिलता है।
◆आइए इसे समझने का प्रयास करें. सबसे पहले यह देखें कि जन्म कुंडली में किस ग्रह की दशा चल रही है और वह ग्रह किसी तरह का कोई योग तो नहीं बना रहा है।
◆जिस ग्रह की दशा चल रही है वह किस भाव का स्वामी है और कहाँ स्थित है, यह जांचे. कुंडली में महादशा नाथ और अन्तर्दशानाथ आपस में मित्रता का भाव रखते है या शत्रुता का भाव रखते हैं यह देखें।
◆कुंडली के अध्ययन के समय महादशानाथ से अन्तर्दशानाथ किस भाव में स्थित है अर्थात जिस भाव में महादशानाथ स्थित है, उससे कितने भाव अन्तर्दशानाथ स्थित है, यह देखें।
◆महादशानाथ बली है या निर्बल है इसे देखें. महादशानाथ का जन्म और नवांश कुंडली दोनो में अध्ययन करें कि दोनो में ही बली है या एक मे बली तो दूसरे में निर्बल तो नहीं है यह देखें।
6.गोचर का अध्ययन करते समय:-सभी बातो के बाद आइए अब ग्रहो के गोचर की बात करें।
◆दशा के अध्ययन के साथ गोचर महत्वपूर्ण होता है। ◆कुंडली की अनुकूल दशा के साथ ग्रहों का अनुकूल गोचर भी आवश्यक है तभी शुभ फल मिलते हैं।
◆किसी भी महत्वपूर्ण घटना के लिए शनि तथा गुरु का दोहरा गोचर जरुरी है।
◆जन्म कुंडली में यदि दशा नहीं होगी और गोचर होगा तो अनुकूल फलों की प्राप्ति नहीं होती है, क्योकि अकेला गोचर किसी तरह का फल देने में सक्षम नहीं होता है।