Breaking

Saturday, September 18, 2021

श्री खाटू श्याम जी की आरती अर्थ सहित(Aarti of Shri khatu Shyam ji with meaning)


श्री खाटू श्याम जी की आरती अर्थ सहित(Aarti of Shri khatu Shyam ji with meaning):-श्री खाटू श्यामजी को श्रीकृष्ण जी के रूप में मानकर ही उनकी पूजा अर्चना की जाती है। श्री खाटू श्यामजी के नाम मात्र से सभी तरह के कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। इसलिए जिस तरह अपने सिर का बलिदान करके अपना उद्धार हुआ था। भगवान श्रीकृष्ण जी के नाम से सदा-सदा के लिए अमरत्व की प्राप्ति की थी। इसलिए उनकी आरती करके उनको गुणों का गुणगान करने से सभी तरह के संकटो से मुक्ति मिल जाती हैं।




Aarti of Shri khatu Shyam ji with meaning




महाभारत के प्रसंग के अनुसार श्री खाटू श्यामजी की उत्पत्ति की जानकारी:-श्री खाटूश्यामजी के बारे में महाभारत में जानकारी प्राप्त होती है, पांडवो में से मझले पांडव भीम और हिडिंबा के पुत्र घटोत्कच हुए थे। इस तरह घटोत्कच के एक पुत्र हुआ था, उसका नाम बर्बरीक था। जो कि घटोत्कच से भी ज्यादा बलवान और अपने रूपो को बदल देने की शक्ति अपार थी। अपनी मायावी शक्तियों के बल पर सबको भर्मित कर देने वाले थे। देवी की अपार श्रद्धा से उसने देवी की उपासना की और बहुत अलौकिक विशिख को प्राप्त किया था। इस तरह महाभारत के युद्ध को देखने की इच्छा से जब जाने लगे तब श्रीकृष्ण उनसे ब्राह्मण भरकर दान मांगा, की तुम अपना सिर को अर्पण कर दो तब बर्बरीक ने अपना सिर को अर्पण कर दिया था। इस तरह श्रीकृष्णजी ने कटे हुए सिर को आशीर्वाद देकर कहा कि कलयुग में तुम्हारी पूजा होगी, वह भी मेरे स्वरूप के रूप में होगी। इस तरह श्री खाटू श्यामजी की पूजा श्रीकृष्णजी के नाम से की जाती है। 





श्री खाटू श्याम जी की आरती अर्थ सहित:-श्री खाटू श्यामजी को श्रीकृष्णजी के रूप में पूजन किया जाता है, इसलिए उनकी आरती को करने से पूर्व उनके आरती के शब्दों के अर्थ को जानकर आरती को सही रूप में करने पर फल प्राप्त होता है, आरती के भावों का फल इस तरह है:





ऊँ जय श्रीश्याम हरे, प्रभु जय श्रीश्याम हरे।


निज भक्तन के तुमने पूरण काम करे।।



अर्थात्:-श्रीश्यामजी आपकी जय-जयकार हो, हे ईश्वर आप ही इस जगत को चलाने वाले हो, श्रीश्यामजी की जय हो, आपने अपने भक्तों के सभी कार्यों को पूर्ण किया है। आपकी जय हो।




गल पुष्पों की माला, सिर पर मुकुट धरे।


पीत बसन पीताम्बर, कुण्डल कर्ण पड़े।



अर्थात्:-श्रीश्यामजी के गले फूलों की माला पहने हुए और सिर पर अनेक रत्नों से जड़ित मुकुट को धारण किये हुए हेब, पीले रंग के वस्त्रों को धारण किये हए हैं और कानों में कुण्डल की शोभा ओर भी होती हैं।




रत्नसिंहासन राजत, सेवक भक्त खड़े।


खेवत धूप अग्नि पर, दीपक ज्योति जरे।।



अर्थात्:-श्रीश्यामजी का अनेक तरह के रत्नों एव सोने से बना सिहांसन पर विराजित होते है, उनके भक्त उनके द्वार में खड़े होकर उनसे अरदास करते हैं और धूपबत्ती की अगरबती और दीपक की ज्योति से सारा द्वार प्रकाशमान होता हैं।



मोदक खीर चूरमा, सुवर्ण थाल भरे।


सेवक भोग लगावत, सिर पर चंवर ढुरे।।



अर्थात्:-श्रीश्यामजी को मोदक के लड्डू, दूध से बनी खीर को जब सोने के धातु के बने थाल में रखकर जब पूजा के दौरान उनको सेवक या पुजारी भोग को अर्पण करता है, तब सिर पर उनके कलँगी की तरह सुंदर आभायुक्त दिखाई पड़ते हैं।



झांझ, नगारा और घड़ियाल, शंक मृदंग घुरे।


भक्त आरती गावें, जय जयकार करे।।



अर्थात्:-श्रीश्यामजी की आरती करते समय भक्तों के द्वारा श्रीश्यामजी के मंदिर के स्थान पर झांझ, नगाड़ा और घड़ियाल, शंख और मृदंग को बजाते हुए उनकी ध्वनि को चारों तरफ फैलाते है और श्रीश्यामजी के नाम की जय-जयकार के शब्दों से चारों ओर श्रीश्यामजी-श्रीश्यामजी ही सुनाई पड़ता है।



जो ध्यावे फल पावे सब दुःख से उबरे।


सेवक जब निज मुख से, श्रीश्याम श्याम उचरे।।



अर्थात्:-जो मनुष्य श्रीश्याम जी का ध्यान धरता है, तो श्रीश्याम जी उसके सभी तरह के कष्टों को हरण कर लेते हैं और उसको सभी तरह के सुखों की प्राप्ति करवाते है। जब कोई भी भक्त अपने मुख से बार-बार श्रीश्यामजी का उच्चारण करता रहता है, तो श्रीश्यामजी उसको सभी तरह के सुख-समृद्धि को प्रदान कर देते हैं।




श्रीश्याम बिहारीजी की आरती, जो कोई नर गावे।


गावत दाससुनील, मन वान्छित फल पावे।।


अर्थात्:-श्रीश्याम बिहारीजी की आरती जो को मनुष्य अपने पूर्ण विश्वास और श्रद्धा भाव से गाता हैं, उसको सभी तरह की मन कामनाओ की पूर्ति होती है, इसी तरह सेवक सुनील जोशी भी श्रीश्याम बिहारीजी आरती को गाता है।





।।अथ आरती श्री खाटू श्याम जी की।।


ऊँ जय श्रीश्याम हरे, प्रभु जय श्रीश्याम हरे।


निज भक्तन के तुमने पूरण काम करे।।


गल पुष्पों की माला, सिर पर मुकुट धरे।


पीत बसन पीताम्बर, कुण्डल कर्ण पड़े।।


ऊँ जय श्रीश्याम हरे, प्रभु जय श्रीश्याम हरे।


निज भक्तन के तुमने पूरण काम करे।।


रत्नसिंहासन राजत, सेवक भक्त खड़े।


खेवत धूप अग्नि पर, दीपक ज्योति जरे।।


ऊँ जय श्रीश्याम हरे, प्रभु जय श्रीश्याम हरे।


निज भक्तन के तुमने पूरण काम करे।।


मोदक खीर चूरमा, सुवर्ण थाल भरे।


सेवक भोग लगावत, सिर पर चंवर ढुरे।।


ऊँ जय श्रीश्याम हरे, प्रभु जय श्रीश्याम हरे।


निज भक्तन के तुमने पूरण काम करे।।


झांझ, नगारा और घड़ियाल, शंक मृदंग घुरे।


भक्त आरती गावें, जय जयकार करे।।


ऊँ जय श्रीश्याम हरे, प्रभु जय श्रीश्याम हरे।


निज भक्तन के तुमने पूरण काम करे।।


जो ध्यावे फल पावे सब दुःख से उबरे।


सेवक जब निज मुख से, श्रीश्याम श्याम उचरे।।


ऊँ जय श्रीश्याम हरे, प्रभु जय श्रीश्याम हरे।


निज भक्तन के तुमने पूरण काम करे।।


श्रीश्याम बिहारीजी की आरती, जो कोई नर गावे।


गावत दाससुनील, मन वान्छित फल पावे।।


ऊँ जय श्रीश्याम हरे, प्रभु जय श्रीश्याम हरे।


निज भक्तन के तुमने पूरण काम करे।।



।।इति आरती श्री श्याम जी की।।


।।जय बोलो खाटू श्याम जी की जय हो।।


।।जय बोलो बंशीधर की जय हो।।