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Thursday, August 12, 2021

दुर्गा माता की आरती अर्थ सहित(Durga Mata Aarti With Meaning)


दुर्गा माता की आरती अर्थ सहित(Durga Mata Aarti With Meaning):-दुर्गा माताजी को नवदुर्गा के रूपों में पूजा जाता है, नवरात्रि में माता दुर्गाजी के नवरुपों की पूजा-अर्चना की जाती है। दुष्टों और अत्याचारियों का अंत करने के लिए माता दुर्गाजी का जन्म हुआ था। दैत्यों ने जब तीनों लोकों में हाहाकार मचा देने पर ब्रह्माजी के पास समस्त देवताओं के जाने पर ब्रह्माजी ने उपाय बताया कि इन दैत्यों का अंत एक नवयौवना ही कर सकती है तब सभी देवताओं के तेज से अलौकित नवयौवना का जन्म हुआ था, उस नवयौवना को सभी देवताओं ने अपने अस्त्र-शस्त्र एवं अपनी शक्तियां देकर उनसे दैत्यों का अंत करवाया था। माता दुर्गा ने अपने नव स्वरूपों को धारण करके दैत्यों का संहार किया था। इसलिए माता का नाम आदिशक्ति और नवदुर्गा पड़ा था।




Durga Mata Aarti With Meaning




दुर्गा माता की आरती अर्थ सहित:-दुर्गा माता की आरती को मनुष्य को अपने जीवनकाल में नियमित रूप करते रहना चाहिए। माता दुर्गाजी जगत की पालनहार है, सब पर अपनी दया दृष्टि रखने वाली है। इसलिए माता दुर्गाजी की आरती को उसके भावों को जानते हुए करनी चाहिए जो कि आरती के भाव इस तरह है:


जय अम्बे गौरी, मैया जय मंगल मूर्ति, मैया जय श्यामा गौरी।


तुमको निशदिन सेवत ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवजी।।


अर्थात्:-हे दुर्गा माता! आपके नाम असंख्य है आपको आपके भक्त अलग-अलग नामों से पुकारते है, जैसे अम्बे मां, गौरी माता, मंगल मूर्ति माता, श्यामा गौरी माता आदि है। हे माताजी आपका विष्णुजी, ब्रह्माजी और शिवजी हमेशा ध्यान धरते है और आपकी नियमित सेवा में हाजिर रहते हैं। 



मांग सिन्दूर विराजते, टीको मृगमद को।


उज्जवल से दोउ नयना, चन्द्र बदन नीको।।



अर्थात्:-हे दुर्गा माता! आपके मांग में सिन्दूर लगा रहता है, तिलक के रूप में कस्तूरी से किया होता हैं, आपके स्वच्छ एवं बिना किसी विकार की दो आँखें और आपका शरीर चन्दन की खुशबू की तरह महकता हैं।



कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।


रक्त पुष्प की गल माला, कण्ठन पर साजै।।



अर्थात्:-हे दुर्गा माता! आपका शरीर सोने की चमक की तरह चमकता है, आपके वस्त्र गेरुआ रंग के धारण करती हैं, गले में कनेर के फूल की माला को पहनने वाली एवं कण्ठ पर शोभा बढ़ाती हैं।



 

केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी।


सुर-नर-मुनिजन सेवत, तिनके दुःख हारी।।


अर्थात्:-हे दुर्गा माता!आप सिंह पर सवार रहने वाली है, हाथ में असि अर्थात् तलवार एवं नारियल की तरह बना पात्र अर्थात् कपाल को धारण करती हो, आपका ध्यान देवता, मनुष्य और ऋषि-मुनि आदि करते है आपका गुणगान करते है, जो भक्त आपकी भक्ति करते हैं उनके आप दुःख का हरण कर लेती हो।



कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।


कोटिक चन्द्र दिवाकर, राजत सम ज्योति।।



अर्थात्:-हे दुर्गा माता! आप घने जंगल में कानों में कुण्डल अर्थात् बाली या कड़ा को पहनने हुए विचरण करती हो तब आपका स्वरूप बहुत शोभायमान दिखाई पड़ता हैं, आपकी नाक के आगे के भाग में मोती को धारण किये हुए हो, आपको असंख्य चन्द्रमा की शीतल चांदनी एवं सूर्य की तेज किरणों से भी बढ़कर आपकी ज्योति होती हैं।



शुम्भ निशम्भु विदारे, महिषासुर घाती।


धूम्र विलोचन नयना, निशदिन मदमाती।।



अर्थात्:-हे दुर्गा माता! अपने दैत्य शुंभ-निशुंभ को अपने तेज प्रहार से वध किया था। दैत्य महिषासुर को भी आपने उसके किये गए अत्याचारों को उसका वध करके तीनों लोकों का उद्धार किया था। आपकी नेत्रों में धुंए की तरह ध्रूम निकलती है और आप सदैव अपने मद में व्यस्त रहने वाली होती हो।



चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे।


मधु-कैटभ दोऊ मारे, सुर-भयहीन करे।।


अर्थात्:-हे दुर्गा माता! आपने चुण्ड-मुण्ड नामक दैत्य का संहार किया था, रक्त बीज से उत्पन्न होने वाले रक्तबीज का भी आपने अंत किया था। मधु-कैटभ नामक दो दैत्य भाइयों का भी आपने वध करके तीनों लोकों का उद्धार किया था। आपने तीनों लोकों में दैत्यो के डर को नष्ट किया था।



ब्राह्मणी रुद्राणी, तुम कमला रानी।


आगम-निगम बखानी, तुम शिव पटरानी।।


अर्थात्:-हे दुर्गा माता! आप तो ब्राह्मणी अर्थात् ब्रह्म देव की भार्या हो, शिवजी की भार्या के रूप रुद्राणी हो और श्रीविष्णुजी की आप कमला अर्थात् उनकी भार्या का रूप भी हो। आपका तो तन्त्रों शास्त्रों में और वेदों में भी बखान होता है। आप तो भगवान शिवजी मुख्य रानी अर्थात् भार्या हो।



चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरों।


बाजत ताल मृदंग, और बाजत डमरू।।



अर्थात्:-हे दुर्गा माता! आपकी तो चौंसठ योगिनी भी आपका कल्याण के बारे में गुणगान करती है, भगवान भैरो जी भी आपके आगे नाचते हैं। आपके द्वार में ढोल-नगाड़े बजते है और डमरू भी बजते है।



तुम ही जगत की माता, तुम ही हो भर्ता।


भक्तन की दुःख हर्ता, सुख सम्पत्ति कर्ता।।



अर्थात्:-हे दुर्गा माता! आप ही इस संसार का पालन-पोषण करने वाली माता हो, आप ही इन तीनों लोकों का भरण-पोषण करने वाली हो, आप भक्तों के दुःखों का हरण करने वाली हो और अपने भक्तों को सुख-सम्पत्ति देने वाली हो।



भुजा चार अति शोभित, वर-मुद्रा धारी।


मनवांछित फल पावत, सेवत नर-नारी।।


अर्थात्:-हे दुर्गा माता! आपकी चार भुजा बहुत ही सुंदर और शोभा देने वाली है, आपके हाथ की हथेली ऊपर की ओर होती है जो की आप अपना आशीर्वाद देते हुए होती है, आपकी जो कोई भक्ति करता है उसको आप उसकी मन की समस्त कामनाओं को पूरा करती हैं और आपकी पूजा अर्चना स्त्री-पुरुष सभी करते हैं।



कंचन थाल विराजित, अगर कपूर बाती।


श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रत्न ज्योति।।


अर्थात्:-हे दुर्गा माता! आपकी आरती करते समय सोने का थाल का उपयोग लिया जाता है, अगर, कपूर एवं फुलबात्ति से आपकी आरती उतारी जाती हैं। आप श्रीमालकेतु अर्थात् अरावली पर्वत का भाग जो कि चाँदी की तरह चमक देने वाला होता हैं उसमें आप निवास करती है और करोड़ो रत्नों के प्रकाश से भी बढ़कर आपके आरती का प्रकाश होता हैं।



अम्बे जी की आरती, जो कोई नर गावे।


कहत सुनील जोशी, सुख सम्पत्ति पावे।।


अर्थात्:-हे दुर्गा माता! आपकी आरती को जो कोई भक्त अपनी भक्तिभाव से एवं श्रद्धाभाव से गाता है, उस पर आपकी कृपा दृष्टि बनी रहती है और उसको आप सुख-सम्पत्ति देती है। ऐसा सुनील जोशी ने बताया है कि माता की आरती करनी से सभी तरह के ऐश्वर्य एवं सौभाग्य की प्राप्ति होती है। 




       ।।अथ आरती श्री दुर्गा माताजी की।।


जय अम्बे गौरी, मैया जय मंगल मूर्ति, मैया जय श्यामा गौरी।


तुमको निशदिन सेवत ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवजी।।


मांग सिन्दूर विराजते, टीको मृगमद को।


उज्जवल से दोउ नयना, चन्द्र बदन नीको।।


जय अम्बे गौरी, मैया जय मंगल मूर्ति, मैया जय श्यामा गौरी।


तुमको निशदिन सेवत ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवजी।।


कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै।


रक्त पुष्प की गल माला, कण्ठन पर साजै।।


जय अम्बे गौरी, मैया जय मंगल मूर्ति, मैया जय श्यामा गौरी।


तुमको निशदिन सेवत ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवजी।।


केहरि वाहन राजत, खड्ग खप्पर धारी।


सुर-नर-मुनिजन सेवत, तिनके दुःख हारी।।


जय अम्बे गौरी, मैया जय मंगल मूर्ति, मैया जय श्यामा गौरी।


तुमको निशदिन सेवत ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवजी।।


कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती।


कोटिक चन्द्र दिवाकर, राजत सम ज्योति।।


जय अम्बे गौरी, मैया जय मंगल मूर्ति, मैया जय श्यामा गौरी।


तुमको निशदिन सेवत ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवजी।।


शुम्भ निशम्भु विदारे, महिषासुर घाती।


धूम्र विलोचन नयना, निशदिन मदमाती।।


जय अम्बे गौरी, मैया जय मंगल मूर्ति, मैया जय श्यामा गौरी।


तुमको निशदिन सेवत ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवजी।।


चण्ड-मुण्ड संहारे, शोणित बीज हरे।


मधु-कैटभ दोऊ मारे, सुर-भयहीन करे।।


जय अम्बे गौरी, मैया जय मंगल मूर्ति, मैया जय श्यामा गौरी।


तुमको निशदिन सेवत ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवजी।।


ब्राह्मणी रुद्राणी, तुम कमला रानी।


आगम-निगम बखानी, तुम शिव पटरानी।।


जय अम्बे गौरी, मैया जय मंगल मूर्ति, मैया जय श्यामा गौरी।


तुमको निशदिन सेवत ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवजी।।


चौंसठ योगिनी मंगल गावत, नृत्य करत भैरों।


बाजत ताल मृदंग, और बाजत डमरू।।


जय अम्बे गौरी, मैया जय मंगल मूर्ति, मैया जय श्यामा गौरी।


तुमको निशदिन सेवत ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवजी।।


तुम ही जगत की माता, तुम ही हो भर्ता।


भक्तन की दुःख हर्ता, सुख सम्पत्ति कर्ता।।


जय अम्बे गौरी, मैया जय मंगल मूर्ति, मैया जय श्यामा गौरी।


तुमको निशदिन सेवत ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवजी।।


भुजा चार अति शोभित, वर-मुद्रा धारी।


मनवांछित फल पावत, सेवत नर-नारी।।


जय अम्बे गौरी, मैया जय मंगल मूर्ति, मैया जय श्यामा गौरी।


तुमको निशदिन सेवत ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवजी।।


कंचन थाल विराजित, अगर कपूर बाती।


श्रीमालकेतु में राजत, कोटि रत्न ज्योति।।


जय अम्बे गौरी, मैया जय मंगल मूर्ति, मैया जय श्यामा गौरी।


तुमको निशदिन सेवत ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवजी।।


अम्बे जी की आरती, जो कोई नर गावे।


कहत सुनील जोशी, सुख सम्पत्ति पावे।।


जय अम्बे गौरी, मैया जय मंगल मूर्ति, मैया जय श्यामा गौरी।


तुमको निशदिन सेवत ध्यावत, हरि ब्रह्मा शिवजी।।


     ।।इति आरती श्री दुर्गा माता की।।


     ।।जय बोलो अम्बे माता की जय।।


    ।।जय बोलो नवदुर्गा जी की जय हो।।