श्री बालकृष्णजी की आरती अर्थ सहित(Shri Balkrishna ji Aarti With Meaning):-श्रीबालकृष्णजी की भगवान कृष्ण के बाल्यकाल के रूप में पूजा की जाती है, भगवान श्रीकृष्णजी के बाल्यकाल का वर्णन इनकी आरती में मिलता है। भगवान के जन्म से लेकर उसके सभी तरह के किये गए चमत्कारों का वर्णन आरती में मिलता हैं।
श्री बालकृष्णजी की आरती अर्थ सहित:-भगवान श्रीबालकृष्णजी की आरती को करने से पूर्व आरती के शब्दों के बारे पहले जान लेना चाहिए, उसके बाद में आरती का वाचन करना चाहिए। आरती में जो भी विवरण दिया गया है वह उस भगवान के जीवनकाल का वर्णन होता है। भगवान श्रीबालकृष्णजी कृष्णजी के बाल्यकाल के रूप में उनके द्वारा किये कार्यों के बारे उनकी आरती में विवरण मिलता है।
आरती बालकृष्णजी कीजै।
अपनों जनम सुफल करि लीजै।
अर्थात्:-जो मनुष्य श्रीबालकृष्णजी की आरती को करता है, उस मनुष्य का जन्म सफल हो जाता है। जो कि जन्म-मरण के बंधन से मुक्त होकर सदगति को प्राप्त कर लेता है।
श्रीयशुदा को परम् दुलारौ।
बाबा की अंखियन कौ तारो।।
अर्थात्:-श्रीबालकृष्णजी को श्रीयशोदा माता बहुत स्नेह करती है और उनको अपने हृदय से भी बढ़कर वात्सल्य करती है। श्रीनन्दबाबा तो अपनी आंखें उनको दूर तक नहीं जाने देने वाले होते है, वे अपना सबकुछ श्रीबालकृष्णजी पर न्यौछावर करने को तैयार रहते हैं।
गोपिन के प्राणन को प्यारौ।
इन पैं प्राण निछावरि कीजै।
अर्थात्:-श्रीबालकृष्णजी को समस्त गोपिया स्नेह करती हैं व अपने प्राणों की जितनी चिंता नहीं करती है उससे बढ़कर श्रीबालकृष्णजी की चिंता करती रहती हैं और श्रीबालकृष्णजी पर अपने प्राणों को न्यौछावर करने को तत्पर रहती हैं।
बलदाऊ कौ छोटो भैया।
कनुआँ कहि कहि बोलत मैया।
अर्थात्:-श्रीबालकृष्णजी बलरामजी की छोटे भाई है और श्रीकृष्णजी बलरामजी को अपनी मधुर वाणी से भाई-भाई कहते रहते हैं।
परम मुदित मन लेत वलैया।
यह छबि नयननि में सरि लीजै।
अर्थात्:-श्रीबालकृष्णजी की अद्भुत छवि होती है, जो कोई मनुष्य उनके बाल्यकाल की छवि के दर्शन कर लेते है उनका जीवन सफल हो जाता है। उनकी छवि बहुत निराली है हर कोई उनकी छवि को अपने आंखों में रखना चाहते है।
श्री राधावर सुघर कन्हैया।
ब्रजनन कौ नवनीत खवैया।
अर्थात्:-श्रीबालकृष्णजी के साथ जब राधाजी उनके नजदीक घर से उनके साथ खेलने आती हैं, तो उनको कन्हैया कहकर पुकारती है, बज्रवासीयों के घर से अपने मित्रों के साथ उनके घर का माखन खाते है और खिलाते हैं।
देखत ही मन नयन चुरैया।
अपनौ सरबस इनकूं दिजे।
अर्थात्:-श्रीबालकृष्णजी के रूप में कृष्णजी सबको देखकर अपने आप को छुपाने की कोशिश करते है, जब इनके दर्शन हो जाते है तब देखने वाले उनको अपना सबकुछ देने को तैयार हो जाते हैं।
तोतरि बोलनि मधुर सुहावै।
सखन मधुर खेलत सुख पावै।
अर्थात्:-जब बाल्यकाल में श्रीबालकृष्णजी अपनी तुतलाती वाणी से जब बोलते है तब उनकी वह तुतलाती वाणी बहुत मीठी लगती हैं। समस्त उनके मित्र गन उनके साथ खेल को खेल कर सुख की अनुभूति करते हैं।
सोई सुकृती जो इनकू ध्यावै।।
अब इनकूं अपनो करि लीजै।
अर्थात्:-जो मनुष्य श्रीबालकृष्णजी के बाल्य रूप को धारण करके उनकी पूजा बाल्य रूप में करता हैं, वह उनका प्यारा हो जाता है और श्रीबालकृष्णजी उसके हो जाते हैं।
।।अथ श्री बालकृष्णजी की आरती ।।
आरती बालकृष्णजी कीजै
अपनों जनम सुफल करि लीजै।
श्रीयशुदा को परम् दुलारौ।
बाबा की अंखियन कौ तारो।।
आरती बालकृष्णजी कीजै
अपनों जनम सुफल करि लीजै।
गोपिन के प्राणन को प्यारौ।
इन पैं प्राण निछावरि कीजै।
आरति बालकृष्ण की कीजै।।
अपनों जनम सुफल करि लीजै।
बलदाऊ कौ छोटो भैया।
कनुआँ कहि कहि बोलत मैया।
परम मुदित मन लेत वलैया।
यह छबि नयननि में सरि लीजै।
आरती बालकृष्णजी कीजै।
अपनों जनम सुफल करि लीजै।
श्री राधावर सुघर कन्हैया।
ब्रजनन कौ नवनीत खवैया।
देखत ही मन नयन चुरैया।
अपनौ सरबस इनकूं दिजे।
आरती बालकृष्णजी कीजै।
अपनों जनम सुफल करि लीजै।
तोतरि बोलनि मधुर सुहावै।
सखन मधुर खेलत सुख पावै।
सोई सुकृती जो इनकू ध्यावै।।
अब इनकूं अपनो करि लीजै।
आरती बालकृष्णजी कीजै।।
अपनों जनम सुफल करि लीजै।
।।इति श्रीबालकृष्णजी की आरती।।
।।जय बोलो बालगोपाल जी जय हो।।
।।जय बोलो बालकन्हिया की जय।।