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Thursday, August 19, 2021

सूर्यदेव की आरती अर्थ सहित(Surya Dev ki Aarti With meaning)


 

सूर्यदेव की आरती अर्थ सहित(Surya Dev ki Aarti With meaning):-संसार में रोशनी देने वाले होते है और समस्त तरह के अंधेरे को समाप्त करने वाले होते है। समस्त जीवों को अंधेरे से निकाल कर उजाला अर्थात् अपने तेज की गर्मी को देने वाले होते है। उनके द्वारा ही समस्त तीनों में प्रकाश की उष्ण किरणों से प्रकाशित होता है। इसलिए उनके बारे जानना भी जरूरी होता है।

भगवान सूर्यनारायण की उत्पत्ति:-सूर्य भगवान के जन्म के विषय कई तरह के आख्यान मिलते है। हिन्दुधर्म एक ऐसा धर्म में जिसमें सभी के प्रति सभी तरह की जानकारी का समावेश का विवरण होता है, हमारे पौराणिक वेदों में बहुमूल्य रत्नों के समान ज्ञान का भण्डार पड़ा है। उनमें एक पौराणिक मान्यता है कि समस्त जगत में उस समय अंधेरा ही अंधेरा था, तब पुष्पासन पर विराजित होकर श्री चतुरानन प्रकट हुए थे, उनके मुख मण्डल से सबसे पहले एक अद्भुत शब्द निकाला था वह शब्द "ऊँ" था जिससे भास्कर के उत्पन्न स्वरूप का एक बहुत न्यून स्वरूप था। उसके बाद ब्रह्मदेव के चार मुख से चार तरह के वेदों की उत्पत्ति हुई थी जो कि क्रमशः ऋग्वेद, साम, अर्थव और यजुर्वेद के नाम से जाने गए थे। जो कि उस "ऊँ" शब्द के उच्चारण से सम्मिलित हो गए जिनमें एक तरह उष्णता का प्रतीक भानु था।तब ब्रह्मदेव ने अरदास की हे भानु! तुम्हारी उष्णता बहुत ही तेज है इसको तुम एक जगह पर स्थिर कर दो। तब भानु ने अपनी उष्णता को बहुत कम जगह पर इकट्ठा कर दिया था ब्रह्मदेव से मरीचि नाम एक पुत्र की पैदाइश हुई, उनसे एक ऋषि कश्यप नाम के पुत्र हुआ उसका लग्न अदिति नामक एक सुंदर कन्या से हुआ था। इस तरह अदिति ने कठिन तप एवं जप करके भानुदेव को खुश किया, जिसके फलस्वरूप भानुदेव ने अपनी एक रोशनी की उष्णता उसके गर्भ में डाल दी। लगातार अदिति कठिन तप और जप कर रही थी। तब कश्यप ऋषि ने सपनी भार्या को बहुत कठोरता से वचन कहने पर अदिति ने अपने गर्भस्थ शिशु को बाहर निकाल दिया, जिसके फलस्वरूप उस गर्भ से निकले बालक में बहुत उष्णता थी। इस तरह भगवान भानुदेव का जन्म हुआ था। समस्त जगत को उजाला देने वाले देव भानुदेव की हमेशा आरती करनी चाहिए जिससे उनकी तेज किरणों का दर्शन हो सके और शरीर के हानिकारक जीवाणुओं से मुक्ति मिल सके।


।।अथ श्री सूर्यनारायण जी की आरती।।

ऊँ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान।

जगत के नेत्र स्वरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा।।

धरत सब ही तव ध्यान, ऊँ जय सूर्य भगवान।।

सारथी अरुण हैं प्रभु तुम, श्वेत कमलधारी।

तुम चार भुजाधारी।।

अश्व हैं सात तुम्हारे, कोटी किरण पसारे।

तुम हो देव महान।।

ऊषाकाल में जब तुम, उदयाचल आते।

सब तब दर्शन पाते।।

फैलाते उजियारा, जागता तब जग सारा।

करे सब तब गुणगान।।

संध्या में भुवनेश्वर अस्ताचल जाते।

गोधन तब घर आते।।

गोधुली बेला में, हर घर हर आंगन में।

हो तब महिमा गान।।

देव दनुज नर नारी, ऋषि मुनिवर भजते।

आदित्य हृदय जपते।।

स्त्रोत ये मंगलकारी, इसकी है रचना न्यारी।

दे नव जीवनकाल।।

तुम हो त्रिकाल रचियता, तुम जग के आधार।

महिमा तब अपरम्पार।।

प्राणों का सिंचन करके भक्तों को अपने देते।

बल बुद्धि और ज्ञान।।

भूचर जल चर खेचर, सब के हो प्राण तुम्हीं।

सब जीवों के प्राण तुम्हीं।।

वेद पुराण बखाने, धर्म सभी तुम्हें माने।

तुम ही सर्व शक्तिमान।।

पूजन करती दिशाएं, पूजे दश दिक्पाल।

तुम भुवनों के प्रतिपाल।।

ऋतुएं तुम्हारी दासी, तुम शाश्वत अविनाशी।

शुभकारी अंशुमान।।

ऊँ जय सूर्य भगवान, जय हो दिनकर भगवान।

जगत के नेत्र स्वरूपा, तुम हो त्रिगुण स्वरूपा।।

धरत सब ही तव ध्यान, ऊँ जय सूर्य भगवान।।

।।इति श्री सूर्यनारायण देव जी की आरती।।


।।अथ श्री सूर्यनारायणदेव जी की आरती।।

जय जय जय रविदेव, जय जय जय रविदेव।

रजनीपति मदहारी, शतदल जीवनदाता।।

षटपत मन मुदकारी, हे दिनमणि!ताता।

जग के हे रविदेव, जय जय जय रविदेव।

नभमण्डल के वासी, ज्योति प्रकाशक देवा।

निज जनहित सुखरासी, तेरी हमसब सेवा।

करते हैं रविदेव, जय जय जय रविदेव।

कनक बदन मन मोहित, रुचिर प्रभा प्यारी।

निज मंडल से मंडित, अजर अमर छविधारी।

हे सुरवर रविदेव जय जय जय रविदेव।

।।इति श्री सूर्यनारायण देव जी की आरती।।

।।जय बोलो अदिति एवं कश्यप पुत्र की जय हो।।

।।जय बोलो जगत प्रकाशक की जय हो।।