वैष्णो माता की आरती अर्थ सहित(Vaishno Mata Aarti With Meaning):-माता वैष्णो की महिमा अपरम्पार है। माता वैष्णो के जन्म के बारे में अनेक तरह की कथाएं प्रचलित है, उनमें से एक कथा के अनुसार माता वैष्णो का जन्म भगवान श्रीहरि के अंश से माना जाता है, जिनमें यह बताया गया है कि माता का जन्म श्रीविष्णुजी के अंश स्वरूप हुआ है जिनमें पापो के बढ़ने से उनको नष्ट करने के लिए ही हुआ था। माता वैष्णो देवी की आरती नियमित रूप से करनी चाहिए जिससे उनकी अनुकृपा प्राप्त हो सके। माता की जो कोई भक्त श्रद्धाभाव से आरती करते है उन पर माता अपनी दृष्टि रखते हुए सभी तरह के आरती करने वाले के कष्टों को हरण कर लेती हैं।
वैष्णों माता की आरती अर्थ सहित:-वैष्णों माता को पर्वतवासिनी के रूप जाना जाता हैं, माता आपके को कोई भी पार नहीं कर सकता हैं। भक्त पान, सुपारी, ध्वजा और सुपारी की भेंट आपको अर्पण करते हैं, सोवा चोला को धारण किये हुए सभी अंग सुशोभित होते है, मस्तक पर केसर का तिलक को जनाने वाली है। हे माता! आपके दर्शन के लिए नंगे पैर से मुस्लिम सम्राट अकबर आपके द्वार पर आया था एवं आपके द्वार पर सोने का छत्र को अर्पण किया था। ऊँचे पर्वत विंध्य पर तो मन्दिर बनाया और अपना महल को आपसे नीचे की तरफ बनाया था।
आपको धूप, दिप से आपकी आरती करते है और नैवेद्य के रूप में मोहन भोग का भोग आपको लगाने वाली हैं। जो कोई भक्त आपके प्रति विश्वास भाव, श्रद्धा भाव रखते हुए ध्यानपूर्वक आपकी आराधना करता है और आपके गुणगान करता है उसके आप सभी तरह के पापों को हर लेती है और भवसागर को पार करवा देती हैं।
दोहा:-वैष्णों की आरती, पढ़ै सुनै जो कोय।
विनती कुलपति मिश्र की, सुख-सम्पति सब होय।।
।।अथ श्री वैष्णों माता की आरती।।
आरती माता वैष्णो देवी की। आरती माता वैष्णो देवी की।।
हे मात मेरी, हे मात मेरी, कैसी यह देर लगाई हे दुर्गे।
भवसागर में गिर पड़ा हूँ, काम आदि ग्रह में घिरा पड़ा हूँ।
मोह आदि जाल में जकड़ा पड़ा हूँ।।
हे मात मेरी, हे मात मेरी, कैसी यह देर लगाई हे दुर्गे।
न मुझमें बल है न मुझमें विद्या, मुझमें भक्ति न मुझमें शक्ति।
शरण तुम्हारी गिर पड़ा हूँ।।
हे मात मेरी, हे मात मेरी, कैसी यह देर लगाई हे दुर्गे।
न कोई मेरा कुटुम्ब साथी, ना ही मेरा शरीर साथी...
आप ही उबारो पकड़ के बाँहिं।।
हे मात मेरी, हे मात मेरी, कैसी यह देर लगाई हे दुर्गे।
चरण कमल को नौका बनाकर, मैं पार हूँगा खुशी मनाकर।
यमदूतों को मार भगाकर।।
हे मात मेरी, हे मात मेरी, कैसी यह देर लगाई हे दुर्गे।
सदा ही तेरे गुणों को गाऊँ, सदा ही तेरे स्वरूप को ध्याऊँ।
नित प्रति तेरे गुणों को गाऊँ।।
हे मात मेरी, हे मात मेरी, कैसी यह देर लगाई हे दुर्गे।
न मैं किसी का न कोई मेरा, छाया है चारों तरफ अन्धेरा।
पकड़ के ज्योति दिखा दो रास्ता।।
हे मात मेरी, हे मात मेरी, कैसी यह देर लगाई हे दुर्गे।
शरण पड़े हैं हम तुम्हारी करो यह नैया पार हमारी।
कैसी यह देर लगाई है दुर्ग।।
हे मात मेरी, हे मात मेरी, कैसी यह देर लगाई हे दुर्गे।
।।इति श्री वैष्णो माता की आरती।।
।।अथ आरती श्री वैष्णो देवी की।।
सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी कोई तेरा पार न पाया,
पान सुपारी ध्वजा नारियल ले तेरी भेंट चढ़ाया।।
सुवा चोला तेरे अंग विराजै केसर तिलक लगाया,
ब्रह्मा वेद पढ़े तेरे द्वारे शंकर ध्यान लगाया।।
सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी कोई तेरा पार न पाया,
पान सुपारी ध्वजा नारियल ले तेरी भेंट चढ़ाया।।
नंगे पग से तेरे सम्मुख अकबर आया,
सोने का छत्र चढ़ाया।।
सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी कोई तेरा पार न पाया,
पान सुपारी ध्वजा नारियल ले तेरी भेंट चढ़ाया।।
ऊँचे पर्वत बन्या शिवाला नीचे महल बनाया,
सतयुग द्वापर त्रेता मध्ये कलयुग राज बसाया।।
सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी कोई तेरा पार न पाया,
पान सुपारी ध्वजा नारियल ले तेरी भेंट चढ़ाया।।
धूप दीप नैवेद्य आरती मोहन भोग लगाया,
ध्यानु भक्त मैया तेरा गुन गावे, मनवांछित फल पाया।।
सुन मेरी देवी पर्वतवासिनी कोई तेरा पार न पाया,
पान सुपारी ध्वजा नारियल ले तेरी भेंट चढ़ाया।।
।।इति श्री वैष्णो माता की आरती।।
।।जय बोलो माता वैष्णो जी की जय हो।।