विश्वकर्मा जी की आरती अर्थ सहित (Vishwakarma ji ki Aarti with meaning):-धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार सभी देवी-देवताओं के जितने भी अस्त्र-शस्त्र हैं उनका निर्माण श्री विश्वकर्मा जी करते है। भगवान श्री विश्वकर्मा जी को वास्तुकार या सभी तरह के निर्माण का जनक माना जाता है। क्योंकि वास्तुकार श्री विश्वकर्मा जी पूजा के बिना किसी तरह का निर्माण कार्य नहीं किया जा सकता है। धार्मिक ग्रन्थों के अनुसार सभी देवी-देवताओं के निवास स्थान एवं अस्त्र-शस्त्र आदि को बनाने का काम श्री विश्वकर्मा जी सौंपा गया था, जिससे सभी देवी-देवताओं को जब आयुध की आवश्यकता पड़ती तब वे निर्माण कर देते थे।
विश्वकर्मा जी की उत्पत्ति:-पुराणों के मतानुसार जब सृष्टि की उत्पत्ति हुई तब सबसे पहले श्री हरि का प्रार्दुभाव हुआ उसके उनकी कुक्षि से एक कमल की डंडी पर बैठे ब्रह्माजी के जन्म हुआ था, ब्रह्म देव के पुत्र के रुप में वास्तुदेव का जन्म हुआ उनकी माता नाम धर्मवस्तु था। वास्तु देव की पत्नी अंगिरसी से वास्तुदेव का पुत्र हुआ जिनका नाम श्री विश्वकर्मा रखा था जो कि सफल वास्तुकार बना था। इसलिए सभी तरह के निर्माण कार्यों का दायित्व श्रीविश्वकर्माजी के हाथ में सौंपा गया था। इसलिए इनकी आरती करके इनको खुश करना चाहिए जिससे निर्माण कार्य में किसी तरह की कोई बाधा नहीं आवे और निर्माण कार्य सही तरीके से सम्पन्न हो जावे।
अथ आरती श्री विश्वकर्मा जी की अर्थ सहित:-श्री विश्वकर्माजी की आरती का भावार्थ् जो इस तरह है:
ओउम् जय श्री विश्वकर्मा, प्रभु जय श्री विश्वकर्मा।
सकल सृष्टि के कर्ता, रक्षक श्रुति धर्मा।।
भावार्थ्:-हे श्रीविश्वकर्माजी! जय श्री विश्वकर्माजी, आप की जय हो प्रभु। आप तो सम्पूर्ण सृष्टि के निर्माण करता हो, आप ही रक्षक हो और धर्म के पालक हो।
आदि सृष्टि में विधि को, श्रुति उपदेश दिया।
जीव मात्र का जग में, ज्ञान विकास किया।।
भावार्थ्:-हे श्रीविश्वकर्माजी! आपने आदि सृष्टि में निर्माण का कार्य किया, अपने निर्माण कार्य के उपदेश दिया था। अपने जीव मात्र के लिए इस जगत में ज्ञान दिया और विकास के कार्य किये थे।
ऋषि अंङ्गिरा ने तप से, शान्ति नहीं पाई।
ध्यान किया जब प्रभु का, सकल सिद्ध आई।।
भावार्थ्:-हे श्रीविश्वकर्माजी! जब ऋषि अंगिरा जी अपनी तपस्या की थी तब उनको अपनी तपस्या से शांति नहीं मिली थी। तब उन्होंने श्रीविश्वकर्माजी प्रभु जी का ध्यान किया था। तब उनको सिद्धि की प्राप्ति हुई थी
रोग ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लीना।
संकट-मोचन बन कर, दूर दुःख कीना।।
भावार्थ्:-हे श्रीविश्वकर्माजी! जब आपकी शरण में बीमारी से ग्रसित राजा आये तब अपने उस रोग से पीड़ित राजा के रोग को हर लिया था। उस राजा के सभी तरह के संकटो को हर कर उसके दुःख को दूर किया था।
जब रथकार दम्पत्ति, तुम्हरी टेर करी।
सुनकर दिन प्रार्थना, विपत्ति हरी सगरी।।
भावार्थ्:-हे श्रीविश्वकर्माजी! जब रथकार अर्थात् रथ बनाने वाले कारीगर पति-पत्नी ने जब आपसे अरदास की तब अपने उनकी अरदास को सुनकर उनकी मुशीबतों को हर लिया था। उनको सभी तरह के कष्टों से मुक्त कराया था।
एकानन चतुरानन, पंचानन राजे।
द्विभुज, चतुर्भुज, दसभुज, सकल रुप साजे।।
भावार्थ्:-हे श्रीविश्वकर्माजी! आप एक मुंह, चार मुंह और पांच मुख वाले हो, आपके दो भुजाएं, चार भुजाएं और दश भुजाएं होती है, जिससे आप अपने शरीर पर धारण किये हुए हो।
ध्यान धरे जब पद का, सकल सिद्धि आवे।
मन दुविधा मिट जावे, अटल शान्ति पावे।।
भावार्थ्:-जब श्रीविश्वकर्माजी के प्रति अपने मन को एकाचित्त करके उनका ध्यान करते है तब उस भक्त के सभी तरह मन की इच्छाओं की पूर्ति हो जाती है उसके सभी कार्य सिद्ध हो जाते हैं। उस भक्त के मन की सभी तरह की दुविधाएं समाप्त हो जाती है और उसको स्थिर शांति की प्राप्ति होती है।
'श्री विश्वकर्मा जी' की आरती, जो कोई नर गावे।
कहत सुनील जोशी, सुख सम्पत्ति पावे।।
भावार्थ्:-श्रीविश्वकर्माजी जी की आरती कोई भी भक्त अपने श्रद्धाभाव एवं विश्वास से गाता है, वह भक्त सुख-सम्पत्ति को प्राप्त करता हैं। सुनील जोशी ने इस तरह का बताया है।
।।इति आरती श्री विश्वकर्मा जी की।।
।।अथ आरती श्री विश्वकर्मा जी की।।
ओउम् जय श्री विश्वकर्मा, प्रभु जय श्री विश्वकर्मा।
सकल सृष्टि के कर्ता, रक्षक श्रुति धर्मा।।
आदि सृष्टि में विधि को, श्रुति उपदेश दिया।
जीव मात्र का जग में, ज्ञान विकास किया।।
ओउम् जय श्री विश्वकर्मा, प्रभु जय श्री विश्वकर्मा।
सकल सृष्टि के कर्ता, रक्षक श्रुति धर्मा।।
ऋषि अंङ्गिरा ने तप से, शान्ति नहीं पाई।
ध्यान किया जब प्रभु का, सकल सिद्ध आई।।
ओउम् जय श्री विश्वकर्मा, प्रभु जय श्री विश्वकर्मा।
सकल सृष्टि के कर्ता, रक्षक श्रुति धर्मा।।
रोग ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लीना।
संकट-मोचन बन कर, दूर दुःख कीना।।
ओउम् जय श्री विश्वकर्मा, प्रभु जय श्री विश्वकर्मा।
सकल सृष्टि के कर्ता, रक्षक श्रुति धर्मा।।
जब रथकार दम्पत्ति, तुम्हरी टेर करी।
सुनकर दिन प्रार्थना, विपत्ति हरी सगरी।।
ओउम् जय श्री विश्वकर्मा, प्रभु जय श्री विश्वकर्मा।
सकल सृष्टि के कर्ता, रक्षक श्रुति धर्मा।।
एकानन चतुरानन, पंचानन राजे।
द्विभुज, चतुर्भुज, दसभुज, सकल रुप साजे।।
ओउम् जय श्री विश्वकर्मा, प्रभु जय श्री विश्वकर्मा।
सकल सृष्टि के कर्ता, रक्षक श्रुति धर्मा।।
ध्यान धरे जब पद का, सकल सिद्धि आवे।
मन दुविधा मिट जावे, अटल शान्ति पावे।।
ओउम् जय श्री विश्वकर्मा, प्रभु जय श्री विश्वकर्मा।
सकल सृष्टि के कर्ता, रक्षक श्रुति धर्मा।।
'श्री विश्वकर्मा जी' की आरती, जो कोई नर गावे।
कहत सुनील जोशी, सुख सम्पत्ति पावे।।
ओउम् जय श्री विश्वकर्मा, प्रभु जय श्री विश्वकर्मा।
सकल सृष्टि के कर्ता, रक्षक श्रुति धर्मा।।
।।इति आरती श्री विश्वकर्मा जी की।।
।।अथ आरती श्री विश्वकर्मा जी की।।
प्रभु श्री विश्वकर्मा घर आवो प्रभु विश्वकर्मा।
सुदामा की विनय सुनी, और कंचन महल बनाये।
सकल पदारथ देकर प्रभु जी दुखियों के दुख टारे।।
प्रभु श्री विश्वकर्मा घर आवो प्रभु विश्वकर्मा।
सुदामा की विनय सुनी, और कंचन महल बनाये।
विनय करी भगवान कृष्ण के द्वारिकापुरी बनाओ।
ग्वाल बालों की रक्षा की प्रभु की लाज बचाओ।।
प्रभु श्री विश्वकर्मा घर आवो प्रभु विश्वकर्मा।
सुदामा की विनय सुनी, और कंचन महल बनाये।
रामचन्द्र ने पूजन की तब सेतु बांध रचि डारो।
सब सेना को पार किया प्रभु लंका विजय करावो।।
प्रभु श्री विश्वकर्मा घर आवो प्रभु विश्वकर्मा।
सुदामा की विनय सुनी, और कंचन महल बनाये।
श्री कृष्ण की विजय सुनो प्रभु आके दर्श दिखावो।
शिल्प विद्या का दो प्रकाश मेरा जीवन सफल बनावो।
प्रभु श्री विश्वकर्मा घर आवो प्रभु विश्वकर्मा।
सुदामा की विनय सुनी, और कंचन महल बनाये।
।।इति आरती श्री विश्वकर्मा जी की।।
।।जय बोलो वास्तुकार विश्वकर्माजी की जय हो।।
।।जय बोलो निर्माणकर्ता जी जय हो।।