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Tuesday, August 24, 2021

गोगा नवमी कब मनाई जाती है, कैसे करें पूजन विधि एवं महत्व(When is Goga Navami celebrated, how to puja, vidhi and importance)



गोगा नवमी कब मनाई जाती है, कैसे करें पूजन, विधि एवं महत्व(When is Goga Navami celebrated, how to puja, vidhi and importance):-भाद्रपद महीने के कृष्णपक्ष की नवमी तिथि को गोगाजी का जन्म होने से गोगानवमी को गोगाजी के जन्मदिन के रूप में मनाते है। गोगाजी को नागों के देवता के रूप में पूजा जाता है, इसलिए इस दिन नागदेवता की पूजा की जाती है, जिससे नागदेवता से जीवनकाल में मनुष्य की सुरक्षा हो सकें। गोगाजी की पूजा श्रावण मास के शुक्लपक्ष की पूर्णिमा तिथि से शुरू होकर नौ दिन अर्थात् भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की नवमी तिथि तक होती है, इसलिए इस दिन की तिथि को गोगानवमी कहा जाता हैं। इस पर्व को अनेक राज्यों में अपने-अपने तरीके मनाते है, जिनमें मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ आदि राज्य के लोग भी इस त्योहार को धूमधाम से पूरी उत्साह और आनन्द लेते हुए मनाते हैं।

गोगानवमी पर्व को राजस्थान राज्य में बहुत ही धूमधाम पूर्वक मनाया जाता है। समस्त मारवाड़ के लोग इस त्योहार को अपनी श्रद्धाभावना से मनाते है। जो कि गोगाजी के त्याग के रूप में मनाया जाता हैं। राजस्थान के पांच लोकदेवताओं में गोगाजी भी एक लोकदेवता के रूप है, गोगाजी की याद में गोगानवमी का त्यौहार मनाया जाता हैं। हिन्दू लोग इनको "नागराज" का अवतार और मुस्लिम लोग इनको "गोगापीर" के अवतार के रुप में पूजा करते हैं। राजस्थान के मध्ययुगीन लोकदेवताओं में प्रथम स्थान इनका ही हैं। गोगाजी को जाहरपीर भी कहा जाता है। इनका समय ग्यारहवी शताब्दी के पूर्वार्द्ध को माना जाता हैं। 



गोगानवमी के मनाने का समय:-गोगानवमी 31 सितम्बर 2021 के दिन मनाया जाएगा। इस दिन मंगलवार का दिवस हैं।

नवमी तिथि का समय:-नवमी तिथि का प्रारम्भ समय 30 सितम्बर 2021 में 25:59:02 से शुरू होकर 31 सितम्बर 2021 के दिन 28:22:50 तक रहेगी।


पूजन के शुभ चौघड़िया:-जो इस तरह है:

चर का चौघड़िया:-प्रातःकाल 09:10 से 10:46 तक रहेगा, जो कि शुभ कार्य को करने के लिए शुभ रहेगा।

लाभ का चौघड़िया:-प्रातःकाल 10:46 से 12:21 तक रहेगा, जो कि शुभ  कार्य को करने के लिए शुभ रहेगा।

अमृत का चौघड़िया:-दोपहर 12:21 से 13:56 तक रहेगा जो कि शुभ कार्य को करने के लिए शुभ रहेगा।

शुभ का चौघड़िया:-दोपहर 15:32 से 17:07 तक रहेगा जो कि शुभ कार्य को करने के लिए शुभ रहेगा।

लाभ का चौघड़िया:-रात्रिकाल 20:07 से 21:32 तक रहेगा जो कि शुभ कार्य को करने के शुभ रहेगा।



गोगाजी का जीवन परिचय:-गोगाजी का जन्म भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की नवमी तिथि को चुरू जिले के ददरेवा गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम जेवर जी ताहड़ और माता का नाम बाछल था। जो कि क्षत्रिय चौहान राजपूत थे। इनके गुरु का नाम गोरखनाथ था। इन्होंने अपने गुरु से अच्छी शिक्षा ग्रहण की थी। इनकी पत्नी का नाम केलम था, जो कि कोलुमण्ड के बुड़ा जी राठौड़ की पुत्री थी। इस तरह अपने मौसेरे भाई अरजन-सुरजन से जमीन विवाद को लेकर झगड़ा चल रहा था। मौसेरे भाई अरजन-सुरजन ने महमूद गजनी से मिलकर उनको मारने की योजना बनाई और योजना स्वरूप गोगाजी की गायों को घेर लिया था। जब गोगाजी को मालूम पड़ा तो वे अपनी घोड़ी केसर कालमी या गोगा बापा पर अपने भाला को लेकर युद्ध करने के जाते है। 

टॉड के अनुसार:-गोगाजी के साथ 47 पुत्रों एवं 60 भतीजों के साथ सतलज नदी पार करते हुए महमूद गजनी से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त होते है। रणकपुर प्रशस्ति व दयालदास री ख्यात में गोगाजी तथा महमूद गजनवी के युद्ध का वर्णन मिलता हैं।

उनका सिर जिस स्थान पर गिरता है, उस स्थान को सिद्ध मेड़ी या शीर्ष मेड़ी कहा जाता हैं, जो कि ददरेवा स्थान पर घिरता है।

उनका धड़ गिरा है, उस स्थान को गोगामेड़ी कहते है, वह स्थान नोहर हनुमानगढ़ में है। इस तरह अपने त्याग से गायों की रक्षा की थी। उनके वीरगति के बाद उनकी पत्नी केलम सती हो जाती है। इस तरह राजस्थान में इनके मेले लगते है, जिनमें गोगामेड़ी जो कि नोहर हनुमानगढ़ में इनकी समाधि है, वहां पर प्रतिवर्ष भाद्रपद कृष्णपक्ष की नवमी को मेला लगता हैं। इस जगह पर मन्दिर का निर्माण फिरोज शाह तुगलक ने करवाया था, जिसके द्वार पर बिस्मिल्लाह अंकित हैं।

गोगामेड़ी का वर्तमान स्वरूप महाराजा गंगासिंह ने करवाया था।

गोगामेड़ी में गोरख तालाब स्थित हैं। इस स्थान पर ग्यारह महीने तक पुजारी चायल मुसलमान होते है तथा भाद्रपद महीने में पुजारी हिंदु होते हैं। इनका स्थान खेजड़ी वृक्ष के नीचे माना जाता हैं, गोगाजी के भक्त डेरु वाद्य यंत्र का प्रयोग करते हैं, इनकी पूजा सांपो के देवता के रूप में कई जाती हैं।

गोगाजी की ओल्डी या झोपड़ी सांचोर में स्थित हैं, जिसकी स्थापना पाटन के दो भाइयों के द्वारा की गई थी तथा कोरियां गांव के राजाराम कुम्हार ने यहाँ पर मन्दिर बनवाया था।

राजस्थान का किसान हल जोतने से पूर्व गोगाजी के नाम की राखी हल और हाली को बांधते है, जिसे गोगराखडी कहा जाता हैं।

गोगाजी की सत्रहवीं पीढ़ी के कायम सिंह को जबरदस्ती से मुसलमान बनाया गया था। कायमसिंह के वंशज आज भी कायमखानी मुसलमान कहलाते हैं।


गोगाजी की गोगानवमी पर पूजा विधि:-गोगानवमी के दिन गोगाजी की पूजा को पूर्णरूप से पूरी विधि-विधान से करना चाहिए। जो इस तरह है:

◆गोगानवमी के दिन प्रातःकाल जल्दी उठना चाहिए। 

◆उसके बाद अपनी दैनिकचर्या से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्रों को धारण करना चाहिए।

◆इस दिन दिवार को गेरू से रंग करके रोली से गोगाजी की तस्वीर को बनानी चाहिए।

◆गोगाजी की तस्वीर के रूप अपने मुख्य दरवाजे के बारह भी बनानी चाहिए।

◆घरों में गोगाजी की पूजा के समय मिट्टी का घोड़ा कुम्हार जाति के लोग से लेना चाहिए, जिससे गोगाजी का पूजन कर सकें।

◆गोगाजी की मिट्टी से बनी प्रतिमा जिसमें घोड़े पर सवार हाथ में भाला लिए हुए और जिह्वा को सर्प से दंशित हुए होनी चाहिए।

◆उसके बाद में घर के पणिहारी पर उनकी प्रतिमा को स्वच्छ करके स्थापित करना चाहिए।

◆फिर घर के बने व्यंजन में मालपुआ, खीर, कच्चा गाय का दूध, राखी, चने की भीगी हुई दाल, कंकु, अबीर, फूल, पानी से भरे तांबे के कलश या अन्य धातु का लौठा, रोली, मौली, अक्षत, भिगे हुए मोठ-बाजरा  और गुलाल आदि सामग्री को थाली में सजाना चाहिए। 

◆सबसे पहले गोगाजी को स्वच्छ जल से स्नान करना चाहिए।

◆फिर उनको वस्त्र अर्पण करना चाहिए। उसके बाद में अबीर, गुलाल, कंकू और पुष्प को अर्पण करके उनके और उनके वाहन गोगबप्पा को तिलक करना चाहिए।

◆फिर उनके राखी को बांधना चाहिए और जो नागदेवता और जो गोगबप्पा घोड़ी है उनको भी राखी बांधनी चाहिए। फिर उनको भोग के रूप में मालपुआ, खीर अर्पण करते है। 

◆उनके वाहन गोगबप्पा को भीगे चने की दाल और नागदेवता को कच्चे दूध को अर्पण करते है। फिर धूपदान करते है।

◆कुछ मान्यताओं के अनुसार बहिनें जब भाइयों को श्रावण पूर्णिमा को जो राखी बांधती है उस राखी को गोगानवमी पर गोगाजी की पूजा करके उनको अर्पण कर देती हैं।

◆जिस मिठाई से बायना निकालते हैं, उस मिठाई के साथ अपनी श्रद्धानुसार अपने सामर्थ्य के अनुसार रुपया रखना चाहिए।

◆उस रखे हुए मिठाई के ऊपर रुपया वाले बायना को अपनी सासुजी के पैर को छूकर उनसे आशीर्वाद लेना चाहिए।

◆उसके बाद में वह बायना उनको देना चाहिए।

◆उसके बाद में नाग पंचमी की कहानी को कहना या सुनना चाहिए।