गणेश चतुर्थी व्रत पूजा एवं उद्यापन विधि(Ganesh Chaturthi Vrat Puja and Udyapan Vidhi):-भाद्रपद महीने की शुक्लपक्ष की चौथ को गणेश चतुर्थी या कलंक चतुर्थी या पत्थर चौथ कहा जाता हैं। यह पर्व आनन्द और खुशी के रूप में मनाया जाता हैं, जो कि गणेश चतुर्थी तिथि से शुरू होकर चतुर्दशी तिथि को ही इस पर्व का समापन होता हैं। चतुर्दशी तिथि को गणेश जी की प्रतिमा को विसर्जित किया जाता है और ऐसा कहा जाता है, की हे गणपति जी! आप अगले वर्ष जल्दी आना। इस तिथि के दिन ही गणपति जी जन्म लिया था। इस तरह गणपति जी को ही चतुर्थी तिथि स्वामी के रूप में माना जाता है और चतुर्थी तिथि उनको बहुत प्रिय होती है। इस दिन सिद्धि विनायक व्रत का व्रत करना चाहिए। जो मनुष्य गणेश चतुर्थी तिथि के व्रत को करता हैं उसको समस्त तरह के सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।गली-गली में गणेश भगवान की मूर्ति को मोहल्ले के बीच की जगह पर स्थापित करते है। चतुर्दशी तिथि के समय तक उनका पूजन किया जाता है। इस तरह गली-गली और मोहल्ले में स्त्रियों, पुरुष और बच्चे डांडिया नृत्य दस दिन तक करते है। दस दिन तक रात्रिकाल में जागरण और भगवान गणेशजी के गुणों का गुणगान होता हैं। इस तरह दश दिन तक यह पर्व में प्रतियोगिताएं रखकर बच्चों को प्रोत्साहित कर पुरस्कार का भी वितरण किया जाता हैं।
सूतजी ने समस्त तरह से गणपतिजी के उद्यापन एवं पूजन की विधि बताने के बाद में जब समस्त शौनकादि ऋषियों को बहुत खुशी हुई।
अलग-अलग ऋषियों के अनुसार गणेश चतुर्थी व्रत का काल सीमा एक वर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तक बताया गया हैं।
कलंक चौथ या गणेश चतुर्थी के व्रत करने की विधि:-सभी तरह के पुराणों में गणेश चतुर्थी के व्रत की विधि बताई गई है और इन विधि के तरीकों से गणेश जी पूजा-आराधना करनी चाहिए।
गणेश चतुर्थी व्रत की उद्यापन विधि:-गणेश चतुर्थी के व्रत की समय सीमा सवा वर्ष पूर्ण होने पर उस व्रत का विधिपूर्वक उद्यापन करना चाहिए, उसकी विधि इस तरह है:
संकल्प करना:-गणेश चतुर्थी के व्रत को शुरू करने से पहले 'गणपतिप्रीतये संकष्टचतुर्थीव्रतं करिष्ये'-इस तरह संकल्प करके ही व्रत की शुरुआत करनी चाहिए।
◆सबसे पहले मनुष्य को प्रातःकाल जल्दी उठना चाहिए।
◆उसके बाद में अपनी रोजमर्रा की जिन्दगी के समस्त कार्य करके स्नानादि करना चाहिए।
◆फिर स्वच्छ वस्त्र को पहनना चाहिए।
◆फिर उद्यापन के दिन मनुष्य को अपने घर के पूजा स्थल की जगह पर अच्छी तरह सफाई करनी चाहिए।
◆उसके बाद में अपने भवन में पूजाघर की जगह पर भगवान श्रीगणेशजी की मूर्ति को एक स्वच्छ जगह पर स्थापित करना चाहिए।
◆एक लकड़ी का बाजोट पर स्वच्छ वस्त्र जिनमें लाल, पिला या हरा होना चाहिए। उस वस्त्र को पाट अर्थात् उस बाजोट पर बिछाना देना होता हैं।
◆तांबे से बने कलश या मिट्टी से निमिर्त कलश को शुद्ध जल से भरकर उस बाजोट पर गेहूं की ढेरी बनाकर उस ढेरी पर स्थापित करना चाहिए।
◆इस व्रत में भगवान गणपति जी की मूर्ति को चांदी के बरक लगाकर उनकी मूर्ति का श्रृंगार करना चाहिए।
◆उसके उनकी विधिवत षोड़शोपचार से विधि करनी चाहिए।
◆उसके बाद में मोदक लड्डू का भोग लगाया जाता है।
◆फिर वापस मूर्ति के सम्मुख बैठकर मूर्ति के पास में दो औरतों और दो बालकों को बैठाना चाहिए।
◆उनकी विधिवत पूजा करनी चाहिए और उनसे आशीर्वाद को प्राप्त करे।
◆फिर वेद विधि के मतानुसार वेदी को बनाकर उस वेदी पर अष्टकमल तरह-तरह रंगों से बनाना चाहिए।
◆उसके बाद ब्राह्मण देव के अनुसार विधिवत हवन को करना चाहिए।
◆यह समस्त कार्य करते समय मन में किसी तरह की द्वेष की भावना नहीं होनी चाहिए। मन में विश्वास एवं श्रद्धा के भाव रखते हुए यह समस्त कार्य करने पर निश्चित ही मन इच्छित फल की प्राप्ति होती हैं।
◆फिर पूजा करने के बाद उनको अपने सामर्थ्य से बना हुआ भोजन उनको ग्रहण कराना चाहिए।
◆उसके बाद में रात्रि के समय में गणपति के गुणगान के लिए रात्रि जागरण भी करना चाहिए।
◆अगले दिन सुबह जल्दी उठकर स्नानादि से निवृत होकर गणपति जी का पूजन करना चाहिए
◆फिर समस्त ग्रह-गण को वापिस आने के लिए उनका विसर्जन करे।
◆भगवान गणपति जी को अपने निवास स्थल में अपने यहां हमेशा के लिए रहना का न्यौता देना चाहिए।
◆इस तरह से जो कोई मनुष्य इस बताये हुई विधि से पूजा करेगा उसको निश्चित ही समस्त कामों में सफलता मिलेगी और उसके सभी तरह के कार्य सिद्ध होंगे।
◆यह विधि सभी जाति के लोग जिनमें क्षत्रिय, वैश्य, ब्राह्मण और शूद्र सभी के लिए एक समान हैं, इसमें किसी तरह का कोई भी भेदभाव नहीं हैं।
नारदजी ने गणेश चतुर्थी व्रत की पूजा विधि और उद्यापन विधि की बताया:-नारदजी ने कहा की हे रुक्मणि जी! आपको मैं गणेश चतुर्थी व्रत की विधि बताता हूँ, जिसको करने से आपके समस्त दुःख का अंत हो जाएगा।
◆गणेश चतुर्थी के दिन श्री गणेशजी की पूजा करनी चाहिए।
◆गणेश चतुर्थी के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर अपनी दैनिकचर्या से निवृत होकर स्नानादि करके स्वच्छ वस्त्र को धारण करना चाहिए।
◆व्रत करने वालों को अपने मन में किसी तरह की दुर्भावना नहीं रखना चाहिए।
◆इस व्रत को करने वाले व्रती को अपने भोजन में नमक की थोड़ी सी भी मात्रा नहीं लेनी चाहिए।
◆भाद्रपद मास शुक्लपक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन गणपति जी की प्रतिमा बनाने के लिए शुद्ध जगह से लाई गई मिट्टी का उपयोग करना चाहिए।
◆भगवान श्रीगणेश जी की सोने की, चांदी की, तांबे की, मिट्टी या गोबर से मूर्ति बनवाकर या बनाकर मूर्ति को पूजा के रूप में उपयोग में लेना चाहिए।
◆प्रतिमा बनाने के बाद उस प्रतिमा को पीढ़े या बाजोट पर स्थापित करना चाहिए और साथ में उनके हथियार(आयुध) और उनकी सवारी मूषक को भी स्थापित करना चाहिए।
◆भगवान गणेश जी और माता गौरी को स्थापित करने के बाद में उनका पूजन करके उनको अपने भवन में पूरे वर्ष के लिए रखना चाहिए।
◆सोम देव अर्थात् चन्द्रमा देवजी की पूजा को करना चाहिए।
◆सबसे पहले एक लकड़ी के बाजोट को लेकर उसको साफ करना चाहिए, उस पर स्वच्छ लाल या केसरिया या हरे रंग का वस्त्र बिछाना चाहिए।
◆उसके बाद में उस लकड़ी के बाजोट अर्थात् पाट या चौकी पर जल से भरा तांबे का या मिट्टी का कलश को स्थापित करना चाहिए।
◆उस स्थान पर ब्राह्मण के द्वारा वरुण देवजी को, नव ग्रहों को एवं गणपति जी की प्रतिमा को स्थापित करना चाहिए।
◆फिर एक थाली में सवाया नैवेद्य के रूप में मोदक के लड़डू, गुड़, फूल, इत्तर, अबीर, गुलाल, केसर, कुंकुम, मौली और विशेषकर दूर्वा आदि सामग्री से समस्त पाट पर स्थापित देवों का विधिवत पूजन करना चाहिए।
◆गणपति जी को स्थापित करने के बाद में उनकी षोडशोपचार से विधि-विधान से गणपति जी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
◆उसके बाद में गणपति जी का विधिवत पूजन करना चाहिए।
षोडशोपचारैंः पूजा कर्म:-इस तरह भगवान गणेशजी का षोडशोपचारैंः पूजा कर्म करना चाहिए
पादयो र्पाद्य समर्पयामि, हस्तयोः अर्ध्य समर्पयामि,
आचमनीयं समर्पयामि, पञ्चामृतं स्नानं समर्पयामि
शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि, वस्त्रं समर्पयामि,
यज्ञोपवीतं समर्पयामि, गन्धं समर्पयामि,
अक्षातन् समर्पयामि, अबीरं गुलालं च समर्पयामि,
पुष्पाणि समर्पयामि, दूर्वाड़्कुरान् समर्पयामि,
धूपं आघ्रापयामि, दीपं दर्शयामि,
नैवेद्यं निवेदयामि, ऋतुफलं समर्पयामि,
आचमनं समर्पयामि,
ताम्बूलं पूगीफलं दक्षिणांं च समर्पयामि।।
◆भगवान गणपति जी को कच्चा दुग्ध, पंचामृत, गंगा-जल से स्नान कराकर वस्त्र अर्पण करना चाहिए।
◆भगवान गणपतिजी को मोदक के लड्डू, गुड़ व तिल से बने लड्डू, दूर्वा घास और लाल रंग के फूल बहुत ही प्रिय होते हैं।
◆पूजा करने के बाद में गुड़ से तैयार तिल के लड्डू और इक्कीस मोदक को नैवेद्य के रूप में भोग के रूप में अर्पण करना चाहिए।
◆हरी दूर्वा के इक्कीस अंकुर लेकर निम्न दस नामों पर चढ़ाने चाहिए।
◆गणेशजी के बारह या इक्कीस या एक सौ एक नामों से पूजा अर्चना करने से फायदा होता है।
◆गणपति जी की पूजा करने के बाद में अथर्वशीर्ष पाठ का वांचन करने से फायदा होता हैं।
◆गणपति जी की पूजा करने के बाद में गणेश चतुर्थी के दिन को एक उत्सव की तरह मनाना चाहिए।
◆फिर गणेशजी की पूजा करने के बाद में बाल चन्द्रदेव की भी विधिवत पूजा करनी चाहिए।
◆दिनभर व्रती रहने के बाद में चन्द्रमाजी को दुग्ध से अर्ध देना चाहिए।
◆चन्द्रमाजी को दूध से अर्ध्य अर्पण करके उनकी विधिवत पूजा करनी चाहिए, जो इस तरह हैं:
'गणेशाय नमस्तुभ्यं सर्वसिद्धि प्रदायक।
संकष्टहर में देव गृहाणर्ध्यं नमोस्तुते।।
कृष्णपक्षे चतुर्थ्यां तु सम्पूजित विधूदये।
क्षिप्रं प्रसीद देवेश गृहार्धं नमोस्तुते।।'
◆इसमें व्रत का संकल्प लेकर व्रत को करने वाले को सुबह से लेकर जब तक चन्द्रमाजी का उदय नहीं होता है, तब तक नियम के अनुसार रहना चाहिए।
◆फिर एक तांबे के लोटे में लाल रंग का चन्दन या रक्त चंदन, कुश, दूर्वा, पुष्प, चावल, शमीपत्ते, दही,और पानी को इकट्ठा करके मन्त्रों का जप करते हुए चन्द्रमाजी को अर्ध्य देना चाहिए।
"गगनार्णवमाणिक्य चन्द्रदाक्षायणीपते।
गृहाणार्घ्यं मया दत्तं गणेशप्रतिरूपक।।
अर्थात:-गगनरूपी समुद्र के माणिक्य, दक्ष कन्या रोहिणी के प्रतिरूप चन्द्रमा! मैं आपको अपने मन से अर्ध्य अर्पण कर रहा हूँ, उस दूध अर्ध्य को ग्रहण करे।'
◆इस तरह यह विधि हमेशा दश दिवस तक लगातार करते रहना चाहिए।
◆रात्रिकाल में भगवान गणपति जी के गुणगान करने के लिए भजन कीर्तन करके उनको खुश करने की कोशिश करते रहना चाहिए।
◆गणपतिजी के स्तोत्रों से गणपति जी का नित्य पूजन करके पाठ का वांचन करते रहना चाहिए।
◆संकट नाशन गणेश स्तोत्र का ग्यारह पाठ को पढ़ना चाहिए।
◆हर दश दिन तक गणपति जी की आरती को उतारना चाहिए।
◆जो भी ब्राह्मण देव इस पूजा का कार्य कर रहे हैं उनको हर दश दिन पूजा करने के बाद में अपने सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा देकर सन्तुष्ट करना चाहिए।
◆उसके बाद में उन बारह ब्राह्मणों को अपने सामर्थ्य के अनुसार रुपये-पैसों की दक्षिणा और उचित वस्त्र का दान करना चाहिए।
◆जब तक किसी भी को उसकी पूजा करने के बाद दक्षिणा नहीं मिलती है, तो उस पूजा का कोई महत्व नहीं होता हैं।
◆ब्राह्मण को दक्षिणा किसी भी दूसरे व्यक्ति से मांगकर नहीं देनी चाहिए।
◆इस तरह इस पूजा विधि को अपनाते हुए दश दिवस तक करते रहने पर अवश्य ही फल की प्राप्ति होती हैं।
◆इसके बाद हर महीने में आने वाली चतुर्थी तिथि के व्रत को एक वर्ष तक करते रहना चाहिए।
◆फिर अपने व्रत का समय पूर्ण होने पर उस व्रत का उद्यापन करना चाहिए।
◆इस तरह से व्रत को करने से अवश्य ही मनुष्य के सभी संकष्ट मिट जाते है और उसकी मन की समस्त कामनाओं को गणपति जी पूर्ण कर देते हैं।
◆उसके बाद चतुर्दशी तिथि को गणेशजी की प्रतिमा या मूर्ति को किसी पवित्र नदी या सरोवर में स्नान कराकर उनका विसर्जन कर देते हैं।
।।अथ श्री गणपति भगवान जी आरती की।।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
धूप चढ़े खील चढ़े और चढ़े मेवा।
लड्डुअन का भोग लगे, सन्त करें सेवा।।
जय गणेश,जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
एकदन्त दयावन्त,चार भुजा धारी।
मस्तक सिन्दूर सोहे, मूसे की सवारी।।
जय गणेश,जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
अन्धन को आँख देत, कोढ़िन को काया।
बाँझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
पान चढ़े,फूल चढ़े और चढ़े मेवा।
सूर श्याम शरण आये सुफल कीजे सेवा।।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
दीनन की लाज राखो शम्भु-सुत वारी।
कामना को पूरा करो जग बलिहारी।।
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।
।।इति श्री गणपति जी की आरती।।
।।जय बोलो गणपति बापा की जय हो।।