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Tuesday, September 14, 2021

गऊ तेला एकादशी व्रत कथा एवं महत्व(Gau Tela Ekadashi vrat ki katha & importance)

                    





गऊ तेला एकादशी व्रत कथा एवं महत्व(Gau Tela Ekadashi vrat ki katha & importance):-भाद्रपद मास शुक्लपक्ष एकादशी गऊ तेला को यह त्योहार मनाया जाता हैं। इस कहानी में कामधेनु ने गऊ माता बहुला का रूप रखकर नन्द बाबा की गौशाला में रहकर उसकी शोभा बढ़ाने लगी। श्रीकृष्णजी भगवान का कामधेनु से सहज स्नेह था। बालकृष्ण को देखते ही बहुला के स्तन से दूध की धारा फूट पड़ती हैं और कृष्ण भगवान इस धारा को अपने होठों से लगाकर अमृत पान करते हैं। इसमें गाय को कामधेनु एवं सिंह को श्रीकृष्ण बताया गया हैं। इस दिन पुत्रवती महिला पुत्र रक्षा के लिए व्रत करती हैं।



गऊ तेला व्रत करने की पूजा विधि:-गऊ तेला व्रत गाय माता के धर्म और भगवान विष्णु के प्रति अपनी निष्ठा के वचन स्वरूप अपने प्राणों की भी परवाह नहीं करना होता हैं। कि जब किसी देव और धर्म का वचन दे दिया जाता है तब उस वचन की लाज रखने के लिए अपने प्राणों तक न्यौछावर कर देना चाहिए।

◆गऊ तेला भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की एकादशी तिथि से करते है। 

◆ग्याहरस, बारहस, तेरहस तक का वास एवं चौदहस को फलाहार करते हैं, पूर्णिमा तिथि के दिन जोड़ा-जोड़ी से ब्राह्मण को भोजन करवाकर उनको यथाशक्ति के अनुसार दान-दक्षिणा देना चाहिए। 

◆उसके बाद में अपने स्वामी को भोजन करना चाहिए। इसके बाद में स्वयं व्रत की पारणा करनी चाहिए।

◆गाय माता की पूजा करनी चाहिए एवं व्रत करने वाले को व्रत के पारणा के दिन गाय के दूध से बनी हुई कोई भी वस्तु को नहीं ग्रहण करना चाहिए।

◆पूजन असली गाय की ही करनी चाहिए और श्रद्धानुसार चांदी की बनी हुई गाय की मूर्ति को दान में देना चाहिए।

◆गाय के चरी या बाल्टी, तगारी(कुंडा) चारे के लिए, चारे के लिए रुपये, गाय की डोरी, डोरी में बांधने के लिए घन्टी, गाय की ओढ़नी, ब्लाउज व बछड़े के भी काजल, जल का कलश, आटे के पांच फल भी बनाना चाहिए।

◆इस तरह तीन दिन तक यह व्रत करने वालों को तीनों दिन मंदिर में जोत के दर्शन करने के जाना चाहिए और दर्शन करना चाहिए।

◆ससुराल से एवं पीहर से गोद भरने के लिए पताशे, मिठाई एवं फल आते हैं।

◆परिवार की महिलाऐं भी सामान्य गोद भरती हैं।

गऊ तेला व्रत की पौराणिक कथा:-एक बार एक गाय घास चरती-चरती जंगल में थोड़ी दूर निकल जाती हैं। जंगल में उसे एक बाघ (सिंह) मिलता हैं। उसने गाय को देखा और उसे खाने का प्रयाश किया। तब गाय ने उससे विनती की। हे वनराज! आज तुम मुझे मत खा। मेरा बच्चा सुबह से भूखा हैं। मैं उसे दूध पिला आऊं। फिर कल सवेरे मैं यहां आ जाऊंगी, तब मुझे खा लेना। सिंह ने कहा-मृत्युपॉश में फंसे हुए जीव को छोड़ देने पर उसके वापिस लौट आने पर क्या विश्वास? गाय ने जब सत्य और धर्म की शपथ ली और कहां वाचा-वाचा विष्णु वाचा अगर मैं वापिस नहीं आऊं तो धोबी के कुंड में सुकु। गाय की यह बात सुनकर सिंह ने गाय की बात पर विश्वास कर लिया और गाय अपने बछड़े को कहती है कि उठ मारा बाछड़िया चुंग ले नी दूध, वचना री बांधी पाछी जावसु, बच्चे को दूध पिलाती-पिलाती गाय के आंखों में पानी आ गया। आंसु के टपके बछड़े की पीठ पर गिरे तो बछड़े ने माँ से पूछा कि तुम क्यों रो रही हो और माँ तुम किसके वन में चरने के लिए गई, जो वचन का दूध में नहीं पीऊं। मैं तो आपके आवे चलूं और गाय अपनी मालकिन को बछड़े के लिए जिम्मेदारी देते हुए कहती हैं कि वारे धणियारी तुम सुन ले मेरी बात, सर्दी में मेरे बछड़े को एकदम अन्दर (ओरे) कमरे में बांधना, चौमासे में चौबारे में बंधना, गर्मी में बाहर दरवाजे पर बांधना मेरे बछड़े को आराम से रखना। उधर गाय बछड़े के पास पहुँची। माँ बोली-बीटा! सवेरे तो मुझे मरना हैं। मैं एक बाघ को सुबह आने का वचन देकर आई हूँ। उस कारण थोड़ा दुःख हो रहा हैं। जब बछड़े ने कहा- माँ में भी आपके साथ चलूँगा। गाय के मना करने पर भी बछड़ा माना नहीं। दूसरे दिन माँ-बेटे दोनों जंगल में जहां बाघ को वचन दिया वहां पहुँच गए। बछड़े को जैसे ही साथमें देखा बाघ ने कहा-आज तो दो शिकार साथ में आ रहे हैं। लेकिन बछड़े ने बाघ को देखते कहा-मामाजी पहले मेरे को खाओ (आओ मारा मामोसा भक लो भाणेज पछे भकजो मारी मावड़ी) जब बाघ ने कहा- तुमने तो मुझे मामा कहा हैं। तुम्हारे को कैसे खाऊं? तुम तो मेरे भानजे हुए और गाय मेरी बहिन हुई। फि बाघ ने दोनों को घास खाने को दी और गाय को बहिन मानकर चुन्दड़ी ओढ़ाई। स्वर्ग से विमान आये। गाय, बाघ और बछड़ा तीनों ही बैकुण्ठ में गए। खोटी की खरी अधूरी की पूरी जानना।


गऊ तेला एकादशी व्रत का महत्व:-गऊ तेला एकादशी व्रत को करने से व्रती को बहुत सारे फल की प्राप्ति होती है, जो इस तरह हैं:

◆गऊ तेला एकादशी व्रत करने से पुण्यः की प्राप्ति होती हैं

◆इस व्रत को पुत्रवती महिला पुत्र रक्षा के लिए व्रत करती हैं।

◆इस व्रत को करने से जिनके सन्तान नहीं होती है उनको सन्तान की प्राप्ति होती हैं।

◆इस व्रत को करने वाले व्रती को स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है।

◆इस व्रत के प्रभाव से स्त्रियों को अपने पुत्रों से स्नेह की प्राप्ति होती है और वे अपनी माता का जीवनभर अच्छी तरह ध्यान रखकर उनकी सेवा करते हैं