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Friday, September 24, 2021

कुंडली और ग्रह दशा(Horoscope and planetary Dasha):-

                 





कुंडली और ग्रह दशा(Horoscope and planetary Dasha):-नभमंडल में अनेक तरह के बहुत से चमकते हुए तारोओ का समूह अलग-अलग दिखाई देता हैं, ज्योतिष शास्त्र विज्ञान में नौ ग्रह माने गए हैं उनमें से सात ग्रह और दो ग्रह जो कि ग्रहों की छाया के रूप में वर्णन मिलता हैं, जो कि मनुष्य जीवन पर प्रभाव डालते हुए जन्म के समय उदित लग्न के अनुसार अपनी स्थिति के अनुरूप नतीजे देने वाले होते है।


ज्योतिष शास्त्र के फलकथन के आधार मनुष्य के पूरे जीवनकाल में इन नव ग्रहों का का अच्छा एवं बुरा असर अवश्य ही पड़ता हैं। जन्मकुंडली में अच्छे एवं बुरे ग्रहों हालात के अनुसार ही मानव जीवन में सभी तरह के कष्ट एवं सुख, प्रसन्नता, किसी भी तरह गम का होना, जीवनकाल में कामयाबी एवं नाकामयाबी का पता चलता है। सभी तरह के अनुभवों का एहसास इन सभी नवग्रहों का उदित राशि के अनुसार नतीजे प्राप्त होते हैं। समस्त में उत्पन्न सभी तरह की वस्तुओं चाहे वे सजीव हो या निर्जीव हो, जैसे पृथ्वी पर उत्पन्न पेड़-पौधे हो, चाहे सभी तरह के आकाश में स्थित नव ग्रह हो, जीव-जंतु एवं चाहे निर्जीव धातु-अधातु हो इन सब पर निश्चित ही असर जरूर होता हैं। इस तरह से एक दूसरों को अपनी ऊर्जा या गति से प्रभावित करके उन पर अपना असर डालते हैं। 


नवग्रह तो केवल आकाशमण्डल के कुछ हिस्सों में होते है, लेकिन सम्पूर्ण नभमण्डल भी इन से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता है। इस तरह हम कह सकते है कि आकाश मण्डल के नवग्रहों से सभी पर निश्चित असर होता है तो मानव जाति क्या है? जब किसी भी मनुष्य या सजीव की शारीरिक एवं मन की क्रियाएं की ताकत भी अपने गलत धारणाओं और गलत खान-पान से विचलित होकर डगमगा जाती है तो अवश्य ग्रहों का मानव जीवन पर प्रभाव पड़ता हैं। इस तरह कोई भी इन नवग्रहों के असर से कैसे कोई बच सकता है?जब मनुष्य के शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है तब उन मनुष्य को अधिक तपन, अधिक सर्दी, वर्षा के पानी, अधिक तेज आवाज एवं कम सभी तरह की गतिविधियों को सहन नहीं कर पाते है। 

जब मनुष्य का शरीर सभी तरह शक्तिशाली होकर उसका शरीर में स्थित रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होने पर वह सभी तरह की परेशानियों और सभी तरह की बीमारियों को सहन करने की ताकत रखता हैं। जब मनुष्य सभी तरह से प्रकृति के अनुरूप अपने शरीर को ढाल कर प्रकृति के अनुरूप ही खान-पान, अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए योग एवं ध्यान साधना को करते है जिससे उनका मन में किसी तरह की चिंता नहीं रहती है तब उस मनुष्य पर किसी भी तरह के ग्रहों का क्या असर होगा? जब मनुष्य सभी तरह से चिंता से मुक्त होता है तब उस मनुष्य को किसी भी तरह के ग्रह से कोई मतलब नहीं होता है, वह यह जानने की भी कोशिश नहीं करता है कि उसको किस तरह के ग्रह की दशा चल रही है या उसकी जन्मकुंडली में कौनसे ग्रह की महादशा या अंतर्दशा चल रही है या वर्तमान कौनसे ग्रह चल रहे। इस तरह से मन से जो मनुष्य प्रबल होता है उसको किसी भी तरह की चिंता नहीं सताती है। लेकिन ग्रह अपनी दशा में निश्चित ही अपना अच्छा या बुरा फल प्रदान करते ही है।




2.कुंडली जाने नौकरी के योग:-पेशे या व्यवसाय, सभी जगह पर ख्याति, बिजली, स्थिति, अधिकार, सम्मान, सफलता, स्थिति, घुटनों, चरित्र, कर्म, जीवन, पिता, वरिष्ठ अधिकारियों, व्यापार में स्वयं और वरिष्ठ अधिकारियों, सफलता के बीच संबंध, पदोन्नति, सरकार से मान्यता राज्य, व्यापार, नौकरी, प्रशासनिक स्तर, मान-सम्मान, सफलता, सार्वजनिक जीवन, घुटने, संसद, विदेश व्यापार, आयात-निर्यात, विद्रोह आदि की जानकारी प्राप्त होती है।

दूसरा हाउस:-कारक धन, परिवार, भाषण, दाहिनी आंख, नाखून, जीभ, नाक, दांत, महत्वाकांक्षा, भोजन, कल्पना, धोखाधड़ी आभूषण, कुटुंब, वाणी विचार, धन की बचत, सौभाग्य, लाभ-हानि, आभूषण, दृष्टि, दाहिनी आँख, स्मरण शक्ति, नाक, ठुड्डी, दाँत, कला, सुख, गला, कान, सूर्य :आत्मा, स्वास्थ्य, पिता, शक्ति, रॉयल्टी, सत्ता, शोहरत, नाम, साहस, विरासत, चिकित्सा, प्रतिष्ठा, ताकत, , ज्ञान इच्छाशक्ति, ऊर्जा, सौभाग्य आदि होते है।


3.जन्मकुंडली से फलादेश किस तरह करे:-जन्मकुंडली को अच्छी तरह देखने के बाद उस जन्मकुंडली में स्थित ग्रहों का पूर्ण अवलोकन करना चाहिए। एकदम कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए।
◆जो ग्रह अपनी उच्च, अपनी या अपने मित्र ग्रह की राशि में हो - शुभ फलदायक होगा। 

◆इसके विपरीत नीच राशि में या अपने शत्रु की राशि में ग्रह अशुभफल दायक होगा। 

◆जो ग्रह अपनी राशि पर दृष्टि डालता है, वह शुभ फल देता है। 

◆त्रिकोण भाव (1,5,9) के स्वामी सदा शुभ फल देते हैं। 

◆क्रूर भावों (3, 6, 11) के स्वामी सदा अशुभ फल देते हैं। 

◆दुष्ट स्थानों (6, 8, 12) में ग्रह अशुभ फल देते हैं। 

◆शुभ ग्रह केन्द्र (1, 4, 7, 10) में शुभफल देते हैं, पाप ग्रह केन्द्र में अशुभ फल देते हैं। 

◆बुध, राहु और केतु जिस ग्रह के साथ होते हैं, वैसा ही फल देते हैं। 

◆सूर्य के निकट ग्रह अस्त हो जाते हैं और अशुभ फल देते हैं। 

 
सूर्य ग्रह के खराब हालत को सुधारना:-जन्मकुंडली में सूर्य को राजा की पदवी से नवाजा गया है, इसलिए सूर्य ग्रह के बुरे प्रभाव को कम करने के लिए निम्नलिखित समाधान करने चाहिए, जो इस तरह है-
◆आदित्य ह्रदय स्तोत्र का पाठ करे 3 बार सूर्य के सामने 

◆ॐ घृणी सूर्याय नमः का कम से कम 108 बार जप कर ले। 

◆गायत्री मन्त्र का जप कर ले। 

◆घर की पूर्व दिशा से रौशनी आयेगी तो अच्छा रहेगा । 

◆घर में तुलसी का पौधा जरूर लगा दे। 

◆पिता की सेवा। 

◆शराब और मांसाहार न खिलाये।

◆शिवजी, पीपल के उपाय। 

◆ज्योतिषि को अपनी कुंडली दिखाइए।


4.प्रेम विवाह के बारे में कुंडली जानना की प्रेम विवाह कब होगा:-वैलेंटाइन डे को आज का युवा वर्ग प्रेम के इजहार के पर्व के रूप में मनाने लगा है। कुछ प्रेम के इजहार को विवाह में भी बदल लेते हैं। आपके भावी जीवन साथी की जन्म कुंडली में यदि आपके अनुकूल स्थितियां हों तो प्रेम विवाह के बाद दाम्पत्य जीवन पूर्ण सुखी व सफल रहता है और भाग्योन्नति होती है। 

◆जन्म कुंडली का पंचम भाव प्रणय संबंध और सप्तम भाव विवाह से संबंधित होता है। शुक्र सप्तम भाव का कारक है। अत: जब पंचमेश, सप्तमेश और शुक्र का शुभ संयोग होता है तो दोनों में घनिष्ठ स्नेह होता है। 

◆दोनों की राशियां एक दूसरे से समसप्तक हों या एक से अधिक ग्रह समसप्तक हों जैसे एक का चंद्रमा लग्न में तथा दूसरे का सप्तम भाव में हो। 

◆दोनों के शुभ ग्रह समान भाव में हों अर्थात एक की कुंडली में शुभ ग्रह यदि लग्न, पंचम, नवम या केंद्र में हों तथा दूसरे के भी इन्हीं भावों में हों। 

◆दोनों के लग्नेश और राशि स्वामी एक ही ग्रह हों। जैसे एक की राशि मीन हो और दूसरे की जन्म लग्न मीन होने पर दोनों का राशि स्वामी गुरु होगा। 

◆दोनों के लग्नेश, राशि स्वामी या सप्तमेश समान भाव में या एक दूसरे के सम-सप्तक होने पर रिश्तों में प्रगाढ़ता प्रदान करेंगे। 

◆दोनों की कुंडलियों के ग्रहों में समान दृष्टि संबंध हो। जैसे एक के गुरु चंद्र में दृष्टि संबंध हो तो दूसरे की कुंडली में भी यही ग्रह दृष्टि संबंध बनाएं। 

◆सप्तम एवं नवम भाव में राशि परिवर्तन हो तो शादी के बाद भाग्योदय होता है। सप्तमेश ग्यारहवें या द्वितीय भाव में स्थित हो तथा नवमांश कुंडली में भी सप्तमेश 2, 5 या 11वें भाव में हो तो ऐसी ग्रह स्थिति वाले जीवन साथी से आर्थिक लाभ होता है। 

◆उपरोक्त ग्रह स्थितियों में से जितनी अधिक ग्रह स्थितियां दोनों की कुंडलियों में पाई जाएंगी, उनमें उतना ही अधिक सामंजस्य होकर गृहस्थ जीवन सुखी रहेगा। 

◆इसी प्रकार कुछ विषम ग्रह स्थितियां दाम्पत्य जीवन को दुखदायी बना सकती हैं। अत: ऐसी ग्रह स्थितियों में दोनों की कुंडलियों का मिलान कराने के बाद ही विवाह करें। 

◆शनि, सूर्य, राहु, 12वें भाव का स्वामी (द्वादशेश) तथा राहु अधिष्ठित राशि का स्वामी (जैसे राहु मीन राशि में हो तो, मीन का स्वामी गुरु राहु अधिष्ठित राशि का स्वामी होगा) यह पांच ग्रह विच्छेदात्मक प्रवृति के होते हैं। इनमें से किन्हीं दो या अधिक ग्रहों का युति अथवा दृष्टि संबंध जन्म कुंडली के जिस भाव/भाव स्वामी से होता है तो उसे नुकसान पहुंचाते हैं। सप्तम भाव व उसके स्वामी को इन ग्रहों से प्रभावित करने पर दाम्पत्य में कटुता आती है। सप्तमेश जन्म लग्न से 6, 8, 12वें भाव में हो अथवा सप्तम भाव से 2, 6 या 12वें भाव में हो अथवा नीच, शत्रुक्षेत्रीय या अस्त हो तो वैवाहिक जीवन में तनाव पैदा होगा। 


5.कुंडली से जानना की ग्रह दोष के बारे में:-बजरंगबली की आराधना से आप खुशियों का वरदान पा सकते हैं। मंगलवार को बजरंगबली की पूजा के लिए बेहद उत्तम माना गया है। इसके साथ ही यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में कोई ग्रह दोष हो तो बजरंगबली की पूजा से वह भी दूर हो जाता है। बजरंगबली को प्रसन्न करने के लिए कई प्रकार के उपाय बताए गए हैं। 

◆धन का संचय न हो पा रहा हो अथवा घर में बरकत न हो पा रही हो तो लाल चंदन, लाल गुलाब के फूलों एवं रोली को लाल कपड़े में बांध कर एक सप्ताह के लिए घर पर बने बजरंगबली के मंदिर में रख दें। एक सप्ताह पश्चात उस कपड़े को घर की तथा दुकान की तिजोरी में रख दें। 

◆हनुमान चालिसा का पाठ करने से मन को शांति प्राप्त होती है और मानसिक तनाव दूर होता है। 

◆ज्योतिष के मतानुसार बजरंगबली के भक्तों को शनि की साढ़सती और ढैय्या में अशुभ प्रभाव नहीं झेलने पड़ते। बजरंगबली का नाम सिमरण करने मात्र से आप जीवन में आ रही तमाम समस्याओं से मुक्ति पा सकते हैं। 

◆बजरंगबली को सिंदूर और चमेली का तेल अर्पण करने से वह बहुत प्रसन्न होते हैं और शीघ्र ही अपने भक्तों की इच्छाओं को पूर्ण करते हैं। 

◆मंगलवार के दिन पीपल के पेड़ से 11 पत्ते तोड़ कर उन्हें शुद्ध जल से साफ करें। कुमकुम, अष्टगंध और चंदन मिलाएं। किसी बारीक तीले से श्री राम का नाम उन पत्तों पर लिखें। नाम लिखते समय हनुमान चालिसा का पाठ करें। इसके बाद श्रीराम नाम लिखे हुए इन पत्तों की एक माला बनाएं और बजरंगबली के मंदिर में जाकर बजरंगबली को पहनाएं। ऐसा करने से जीवन में आने वाली समस्त समस्याओं का समाधान होगा। 


6.जन्मकुंडली में बृहस्पति ग्रह के बुरे प्रभाव में होने पर:-महिलाओं का जीवन उनके पति बच्चों और घर -गृहस्थी में सिमटा होता है। जन्म कुंडली में बृहस्पति खराब हो तो वह महिला को स्वार्थी, लोभी और क्रूर विचार धारा की बना देता है। दाम्पत्य जीवन में दुखों का समावेश होता है और संतान की ओर से भी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। पेट और आंतों के रोग हो जाते हैं। 
◆अगर जन्म- कुंडली में बृहस्पति शुभ प्रभाव दे तो महिला धार्मिक, न्याय प्रिय, ज्ञानवान, पति प्रिया और उत्तम संतान वाली होती है। ऐसी महिलाएं विद्वान होने के साथ -साथ बेहद विनम्र भी होती है। 

◆कुछ कुंडलियों में बृहस्पति शुभ होने पर भी उग्र रूप धारण कर लेता है तो स्त्री में विनम्रता की जगह अहंकार भर जाता है। वह अपने समक्ष सभी को तुच्छ समझती है क्योंकि बृहस्पति के शुभ होने पर उसमें ज्ञान की सीमा नहीं रहती। वह सिर्फ अपनी ही बात पर विश्वास करती है।अपने इसी व्यवहार के कारण वह घर और आस-पास के वातावरण से कटने लगती है और धीरे- धीरे अवसाद की और घिरने लग जाती है क्योंकि उसे खुद ही मालूम नहीं होता की उसके साथ ऐसा क्यों हो रहा है 

◆यही अहंकार उस में मोटापे का कारण भी बन जाता है। वैसे तो अन्य ग्रहों के अशुभ प्रभाव से भी मोटापा आता है मगर बृहस्पति के अशुभ प्रभाव से मोटापा अलग ही पहचान में आता है यह शरीर में थुल थूला पन अधिक लाता है क्योंकि की बृहस्पति शरीर में मेद कारक भी है तो मोटापा आना स्वाभाविक ही है। 

◆कमजोर बृहस्पति हो तो पुखराज रत्न धारण किया जा सकता है मगर किसी ज्योतिष की राय ले कर। गुरुवार का व्रत करें, सोने का धारण करें, पीले रंग के वस्त्र पहनें और पीले भोजन का ही सेवन करें। एक चपाती पर एक चुटकी हल्दी लगाकर खाने से भी बृहस्पति अनुकूल होता है। 

◆उग्र बृहस्पति को शांत करने के लिए बृहस्पति वार का व्रत करना, पीले रंग और पीले रंग के भोजन से परहेज करना चाहिए बल्कि उसका दान करना चाहिए। केले के वृक्ष की पूजा करें और विष्णु भगवान् को केले का भोग लगाएं और छोटे बच्चों, मंदिरों में केले का दान और गाय को केला खिलाना चाहिए। 

◆अगर दाम्पत्य जीवन कष्टमय हो तो हर बृहस्पति वार को एक चपाती पर आटे की लोई में थोड़ी सी हल्दी ,देसी घी और चने की दाल ( सभी एक चुटकी मात्र ही ) रख कर गाय को खिलाएं। कई बार पति-पत्नी अगल -अलग जगह नौकरी करते हैं और चाह कर भी एक जगह नहीं रह पाते तो पति -पत्नी दोनों को ही बृहस्पति को चपाती पर गुड की डली रख कर गाय को खिलानी चाहिए और सबसे बड़ी बात यह के झूठ से जितना परहेज किया जाय, बुजुर्गों और अपने गुरु, शिक्षकों के प्रति जितना सम्मान किया जायेगा उतना ही बृहस्पति अनुकूल होता जायेगा। 


7.द्वादश लग्नों के लिए राजयोग ग्रह:-कुछ ग्रह लग्न कुंडली में अपनी स्थिति के अनुसार शुभ योग बनाते हैं जो व्यक्ति को धन, यश, मान, प्रतिष्ठा सारे सुख देते हैं। 

विभिन्न लग्नों के लिए राजयोगकारी ग्रह निम्न हैं। 

1.मेष लग्न के लिए गुरु राजयोग कारक होता है। 

2.वृषभ और तुला लग्न के लिए शनि राजयोग कारक होता है। 

3.कर्क लग्न और सिंह लग्न के लिए मंगल राजयोग कारक होता है। 

4. मिथुन लग्न के लिए शुक्र अच्छा फल देता है। 

5.कन्या लग्न के लिए शुक्र नवमेश होकर अच्छा फल देता है। 

6.वृश्चिक लग्न के लिए चंद्रमा अच्छा फल देता है। 

7.धनु लग्न के लिए मंगल राजयोग कारक है। 

8.मीन लग्न के लिए चंद्रमा व मंगल शुभ फल देते हैं। 

9.मकर लग्न के लिए शुक्र योगकारक होता है। 

10.कुंभ लग्न के लिए शुक्र और बुध अच्छा फल देते हैं। 

◆जो ग्रह एक साथ केंद्र व त्रिकोण के अधिपति होते हैं, वे राजयोगकारी होते हैं। ऐसा न होने पर पंचम व नवम के स्वामित्वों की गणना की जाती है। 

◆यदि कुंडली में ये ग्रह अशुभ स्थानों में हो, नीच के हो, पाप प्रभाव में हो तो उनके लिए उचित उपाय करना चाहिए।


8.ग्रहों का फल देने का उचित समय:-ग्रह अपनी दशा अन्तर्दशा में तो अपना फल देते ही हैं बल्कि कुछ और भी जीवन में ऐसे मौके आते हैं जब ग्रह अपना पूरा प्रभाव व्यक्ति के जीवन पर डालते हैं। जितना कुछ मेरे मस्तिष्क में है, वह सब तो मैं व्यक्त नहीं कर सकता परन्तु आवश्यक नियम इस प्रकार हैं। जब आप बीमार होते हैं उस समय सूर्य का प्रभाव आप पर होता है।
◆सूर्य यदि अच्छा हो तो बीमारी की अवस्था में भी आपका मनोबल बना रहता है इसके विपरीत यदि सूर्य अच्छा न हो तो जरा सा स्वास्थ्य खराब होने के बाद आपको जीवन से निराशा होने लगती है। इस समय सूर्य का पूर्ण प्रभाव आप पर होता है।