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Monday, September 27, 2021

व्यभिचारिणी योग या चरित्रहीन योग कब बनता है?(When does Vyabhicharini yoga or characterless yoga formed?)

                   

व्यभिचारिणी योग या चरित्रहीन योग कब बनता है?(When does Vyabhicharini yoga or characterless yoga formed?):-आज का युग या प्राचीनकाल का समय हो आदमी या औरत में कामवासना पर वश नहीं चलता है। इसके चलते हुए अपने मन पर नियंत्रण नहीं करते हुए वे गलत कदम उठा लेते है जिसके फलस्वरूप जब जानकारी मिलती है तब उनका जीवनकाल बिगड़ जाता है और सामाजिक जीवन में बदनामी भी होती हैं। आज के युग जब जातक या जातिका किसी को देखते है तब उनकी तरफ आकर्षित हो जाते है जिसके फलस्वरूप अपना सबकुछ एक दूसरे को न्यौछावर करने को तत्पर रहते है, वे सामाजिक रीतियों को भूल जाते है। इस तरह वे अपना चरित्रहनन कर देते है, जिनमें कोई तो अपना चरित्र हनन शादी से पूर्व कर देते है और कुछ तो अपना चरित्रहनन शादी होने के बाद भी करते है।




When does Vyabhicharini yoga or characterless yoga formed?




व्यभिचारी या चरित्रहीन का अर्थ:-जब आदमी, बालक एवं बालिका या औरत के द्वारा अपनी कामवासना से वशीभूत होकर अपना सबकुछ दूसरों को अर्पण कर देना होता है और इसमें अपने पुरुषत्व या स्त्रीतत्व का हनन करके अपने साथी को धोखा देना होता है, जब इस तरह का कदम उठाते है तब उनको सामाजिक जीवन में बदनामी का डर नहीं रहता है। इस तरह से बनने योग को व्यभिचारी या चरित्रहीन योग कहते हैं।



व्यभिचारी या चरित्रहीन योग के फलस्वरूप जातक या जातिका का दूसरों के प्रति आकर्षण का भाव जागृत होकर उनकी तरफ अपने मन को झुका देना होता हैं। ये व्यभिचारी या चरित्रहीन का योग मंगल ग्रह एवं शुक्र ग्रह के कारण बनता है, जिसके फलस्वरूप जातक या जातिका को मालूम नहीं रहता कि वे क्या करने जा रहे है जब उनको पता चलता है तब बहुत देर हो जाती है। शुक्र ग्रह को कामवासना का माना जाता है और मंगल ग्रह को रक्त एवं उत्तेजना का माना जाता है, जब इन दोनों ग्रह का सम्बन्ध बनता है चाहे एक साथ बैठना या एक-दुसरे पर परस्पर देखते है तब यह योग विशेष कर फलीभूत होता हैं।आदमी या औरत के चरित्र के बारे में जन्मपत्रिका के द्वारा पता लगाया जा सकता है कि अमुक औरत या अमुक आदमी चरित्रवान होगा या नहीं। जब भी लड़की या लड़के की जन्मकुंडली का मिलान करते समय दोनों की कुंडली में ग्रहों की स्थिति के आधार पर उनके चरित्र का आकलन करना चाहिए।



व्यभिचारिणी योग या चरित्रहनन बनने वाले योगों की जानकारी:-जन्मपत्रिका को किसी जानकार ज्योतिष से विश्लेषण कराके अपने साथी के चरित्र की जानकारी प्राप्त की जा सकती है या शादी से पूर्व लड़के या लड़की जन्मकुंडली मिलान के समय इस बात ध्यान रखना चाहिए। अन्यथा बादमें दोनों का जीवन नरक के समान हो जाता है, इसलिए ज्योतिष शास्त्र में वर्णित कुछ योगों के बारे में बताया गया है जो इस तरह हैं:



◆जब जन्मकुंडली के सातवें घर में राहु एवं सूर्य का सम्बंध बनता है तब चरित्रहनन या व्यभिचारी का योग बनता हैं या सातवें घर में दशम घर का स्वामी होने पर या दशमें घर में सातवें घर का स्वामी के बैठने पर यह औरत या आदमी को व्यभिचारी बना सकता है।


◆जब सूर्य ग्रह जन्मकुंडली में चन्द्रमा ग्रह से सातवे स्थान पर होता है तथा शुक्र ग्रह जो कि काम शक्ति का प्रतीक दशवें घर में बैठा होता है तब व्यभिचारी योग को बना देता है, जिससे औरत या आदमी का चरित्र का हनन करवा देता है।


◆जब जन्मपत्रिका में वृषभ राशि या तुला राशि यदि दशवें घर में होती है उस दशवीं राशि में बुध ग्रह, शुक्र ग्रह और शनि ग्रह का मेलजोल हो जाता है तब भी व्यभिचारी योग बन जाता है जिससे चरित्र हनन हो जाता हैं।


◆जब षष्ठम घर, आठवें घर, बारहवें घर में जब छठे घर का स्वामी आकर बैठ जाता है तब भी व्यभिचारी योग का निर्माण होता हैं।


◆जब राहु ग्रह या केतु ग्रह का मेलजोल सातवें घर के स्वामी ग्रह के साथ होता है और उन पर पापी ग्रह के द्वारा देखा जाता है तब वह चरित्र को बहुत ही बिगाड़ देता है जिससे सामाजिक जीवन में बदनामी को भी भोगना पड़ता है।


◆जब जन्मपत्रिका के सातवें घर में सूर्य ग्रह, चन्द्रमा ग्रह, मंगल ग्रह एक साथ विराजमान होते है तब भी इस योग का निर्माण हो जाता हैं।


◆जब तीसरे घर या चौथे घर में दूसरे घर का स्वामी आकर बैठ जाता है तब भी यह योग बनता हैं।


◆जब दूसरे घर या बारहवें घर में जब सातवें घर के स्वामी ग्रह के आकर बैठने पर योग बनेगा।


◆जब आठवें घर अर्थात् आयु स्थान के स्वामी ग्रह का मेलजोल नवमें घर अर्थात् भाग्य स्थान के साथ होता है साथ ही इन भावों में चन्द्रमा एवं शनि ग्रह का एक साथ बैठने पर योग बनता है।


◆जब सातवें घर या पत्नी भाव में बुध ग्रह अकेला बैठा होता है, शुक्र ग्रह और गुरु ग्रह बुरे ग्रह के साथ मेलजोल करते हुए दूसरे घर, छठे या रोग के घर में या सातवें घर में बैठे होते है तब बुरे योग से मनुष्य को व्यभिचारी बनना पड़ता हैं। 


◆जब दूसरे घर या धन भाव के स्वामी का तीसरे घर में बैठ जाता है एवं बारहवें घर के स्वामी, नवमें घर का स्वामी पर गुरु ग्रह के द्वारा देखा जाता है तब यह योग बनता हैं।


◆जब सातवें घर के स्वामी एवं ग्याहरवें घर के स्वामी का मिलन होता है या एक-दूसरे में परस्पर देखते है या दोनों की स्थिति अच्छी होती है जो कि त्रिकोण 1,5,9 घर में बैठे होते है। तब आदमी या औरत का दूसरे बहुत अधिक से सम्बंध बनता है।


◆लग्न के मालिक-सातवें घर के मालिक की युति हो या दोनों का परस्पर एक दूसरे को देखने का सम्बंध हो तो मनुष्य बहुत अधिक ओरतों के साथ सम्बन्ध बनाता है।


◆जब नीच राशि या दुश्मन की राशि में सातवें घर के स्वामी बैठे होते है।


◆जब जन्मपत्री के पहले घर या शरीर भाव में सातवें घर का स्वामी अस्त होकर बैठ जाता है।


◆जब पहले घर, दूसरे घर एवं सातवें घर पर पापी ग्रहों का प्रभाव होता है तब भी व्यभिचारी का योग बनता हैं।


◆जब सातवें घर एवं आठवें घर में पापी ग्रह का असर होता है और मंगल ग्रह बारहवें घर में बैठता है तब आदमी या औरत व्यभिचारी होकर दो जनों से सम्बन्ध बनाते हैं।


◆जब चन्द्रमा ग्रह का मेलजोल मंगल ग्रह के साथ एक जगह पर होता हैं एवं एक-दूसरे को अपनी दृष्टि के द्वारा देखते है तो आदमी या औरत व्यभिचारी होकर अनेक जनों के साथ अपना रिश्ता रखती हैं।


◆जब पहले घर या शरीर भाव में कोई भी ग्रह अपनी उच्च राशि का होकर बैठ जाता है तब व्यभिचारी बना देता है जिससे अनेक के साथ सम्बन्ध बनाते हैं।


◆जब मंगल ग्रह का मेलजोल शुक्र ग्रह के साथ बैठने से या एक-दूसरे की परस्पर दृष्टि होने पर अपने मित्र के साथ सम्बन्ध बनता है और उसके साथ अपनी कामपिपासा को शांत करते हैं।


◆जब जन्मपत्रिका नवम घर के मालिक मंगल या शुक्र हो जाते है तो आदमी या औरत का सम्बन्ध अपने देवर या देवरानी के साथ या सालीके साथ बनते है लेकिन इस योग के बनने के लिए बारहवें घर या भोग भाव से होने पर निश्चित हो जाता है। क्योंकि बारहवें भाव को भोग एवं शय्या सुख का भाव माना जाता है। बिना शय्या सुख के बिना दो के बीच कैसे किसी तरह का रिश्ता बन सकता है। 


◆नवम घर के मालिक मंगल या शुक्र होकर उन पर शनि ग्रह का मेलजोल हो जाता है या देखे जाने पर जो सम्बन्ध बनेगा वह अपने से अधिक उम्र के जन से बनेगा।


◆इसी तरह इस योग में राहु या केतु का मेलजोल हो जाता है या इनकी दृष्टि पड़ने पर नीच या निम्न जाति के लोगों के बीच रिश्ता कायम होता हैं।


◆इसी योग में जब सूर्य ग्रह का मेलजोल या देखे जाने पर व्यभिचारी का योग किसी बड़े पद वाले या वाली से बनता हैं।


◆जब बुध या शनि ग्रह के साथ एक जगह पर मंगल एवं शुक्र का एक साथ बैठने पर जो योग बनेगा वह समलैंगिक होता है, इस तरह का योग तब ही बनेगा जब शुक्र ग्रह एवं केतु ग्रह होगा। यभयोग तभी नष्ट हो सकता है जब कोई भी इनमें एक ग्रह वक्री होगा एवं वक्री ग्रह की स्थिति कमजोर होने पर ही बनता हैं।


◆अवैध सम्बन्ध के बारे जानकारी या जानकारी नहीं मिलना


◆जब मंगल ग्रह का मेलजोल शुक्र के साथ होता है और गुरु ग्रह के द्वारा देखने पर बनता है जिसमें इस अनैतिक रिश्ता को किसी को भी पता नहीं चलता है और लंबे समय तक बना रहता हैं। क्योंकि गुरु ग्रह को देवता के गुरु होते है और वे सही व गलत के भेद जनते है और उनका पड़ उच्च होता हैं जिससे वे किसी को भेद नहीं बताकर अपने अंदर ही रखते है जिससे किसी को पता नहीं चलता हैं।


◆जन्मकुंडली में गुरु ग्रह जिस किसी भी घर के मालिक होते है उस घर से सम्बंधित जीव को इस बात का पता रहेगा एवं यह जानकारी उस जीव तक ही सीमित रहेगी। इसी तरह चौथे घर में बनने पर भी पर यह गुप्त रीति से बना रहेगा किसी को मालूम नहीं पड़ेगा, क्योकिं चतुर्थ घर भूमि का भाव होता है जो कि नीचे या गहराई का होता है जिससे गहराई को खोजने पर पता चले या नहीं चले यह निश्चित नहीं होता हैं।


◆जब नवमांश कुंडली को देखते है तो उसमें यदि मंगल ग्रह एवं शुक्र ग्रह का मेलजोल किसी भी राशि में किसी भी एक भाव में होता है तब कृष्ण योग या व्यभिचारी योग बनता हैं।


◆हमारे ऋषि-मुनियों ने मंगल ग्रह एवं शुक्र ग्रह के आधार पर ही क्यों व्यभिचारी योग को माना है इसका कारण है कि शुक्र ग्रह को प्यार का एवं आकर्षण का कारक माना है और मंगल ग्रह को उत्तेजना का कारक माना है जब प्यार एवं उत्तेजना का मिलन होता है तब ही तो वासना की उत्पत्ति होकर ही एक दुज़रे के प्रति आकर्षण जागृत होता है जिससे अपने मन पर नियंत्रण नहीं हो पाता है तब व्यभिचारी योग बनता हैं।



◆जब जन्मकुंडली में शुक्र ग्रह सब तरह से मजबूत होता है तो वह जिस किसी से प्रेम करते है तब उनका प्यार बिना किस तरह के स्वार्थ से नहीं होता है और उस प्रेम में समर्पण का भाव होता है उसमें किसी तरह का कोई छल-कपट नहीं होता है।



◆जब पांचवे घर, सातवें घर, ग्यारहवें घर और बारहवें घर का मेलजोल होता है या किसी भी घर के मालिक या एक-दूसरे से किसी तरह से युति या दृष्टि सम्बन्ध बनता है तो कृष्ण योग अच्छा योग बन जाता है उसका महत्त्व भी बढ़ जाता हैं।


◆जब जन्मकुंडली के पांचवे घर जो कि प्यार का भाव, आठवें घर जो को किसी की प्रतिष्ठा को हानि का होता है और बारहवें घर जो कि विषय-वासना में डूबा रखने के लिए शय्या सुख की ओर ले जाने वाला होता है। इस तरह इन तीनों घरों का आपस में मेलजोल या दृष्टि सम्बन्ध बनने पर उस रिश्ते से सामाजिक जीवन में बदनामी होती हैं। इसी योग में जब शरीर भाव या लग्नभाव, प्रेम भाव या पंचम भाव, रोग भाव या षष्ठम भाव, बदनामी भाव या अष्टम भाव एवं शय्या भाव या बारहवें भाव एवं शनि के साथ युति होती है तो इस सम्बंध के कारण कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटने पड़ सकते हैं।



◆जब बलवान शुक्र ग्रह पहले घर में स्थित होता और सातवें घर को अपनी पूर्ण दृष्टि से देखता है और सातवें घर एवं दूसरे घर का मालिक ग्रह शनि ग्रह होता है उन पर जब पापी ग्रहों का असर हो जाता है, जिससे उनमें निर्बलता आ जाती है तब अधिक औरत या आदमी से सम्बन्ध बनता हैं।



◆जब चन्द्रमा ग्रह से पत्नी भाव से तीसरे घर में बैठा होता है तब औरत या आदमी का अनैतिक सम्बन्ध बनते हैं।


◆जब जन्मकुंडली के दूजे घर में एवं सातवें घर में बुरे ग्रह बैठ जाते है एवं इनके मालिक ग्रह कमजोर हो जाते है तब आदमी की पहली पत्नी या औरत के पहले पति की मृत्यु होने पर अनैतिक सम्बन्ध बनते हैं।


◆जब जन्मपत्रिका के सातवें घर में और आठवें घर में बुरे ग्रह बैठ जाते है, मंगल ग्रह बारहवें घर में बैठा हो और सातवें घर के स्वामी की अपने घर पर पूर्ण दृष्टि नहीं होती है तब आदमी की पहली पत्नी की मृत्यु या औरत के पहले पति की मृत्यु होने पर अपना सम्बन्ध दूसरे से बनाते हैं।


◆जब सातवें घर के मालिक अपनी नीच राशि में जाकर बैठ जाते हैं तो आदमी का या औरत का दो-दो से सम्बन्ध बनता हैं।


◆जब सातवें घर के मालिक, जब किसी बुरे ग्रह के साथ बैठकर बुरे ग्रह की राशि में बैठते है एवं जन्मांग या नवांश का सातवां घर शनि या बुध की राशि में होने पर भी दो-दो से सम्बन्ध बनते हैं।


◆जब शुक्र ग्रह एवं भौम ग्रह सातवें घर में बैठे होते हो या फिर मन्द ग्रह सातवें घर में और पहले घर का मालिक ग्रह आठवें घर में बैठ जाता है तब तीन-तीन से सम्बन्ध बनते हैं।


◆जब सातवें घर में बुरे ग्रह बैठे होने पर दूजे घर का मालिक भी बुरे ग्रह के साथ में बैठ जाता हैं और पहले घर का मालिक ग्रह आठवें घर में होने पर दो-दो से सम्बन्ध बनते हैं।