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Thursday, October 21, 2021

गुरु चांडाल योग कैसे बनता है, इसका असर क्या होता है और निवारण के अचूक उपाय(How is Guru Chandal Yoga, what is the effect and the absolute measure of prevention)

                      





गुरु चांडाल योग कैसे बनता है, इसका असर क्या होता है और निवारण के अचूक उपाय(How is Guru Chandal Yoga, what is the effect and the absolute measure of prevention):-मनुष्य के जीवन के बारे में जानकारी प्राप्त करने का एक माध्यम जन्मकुंडली होती है, इसका अध्ययन करके मनुष्य अपने जीवनकाल के बारे में जान सकता है। उसके जीवनकाल पर किन बुरे ग्रहों का असर पड़ रहा है। हमारे ज्योतिष शास्त्र के जानकारों ने ग्रहों से बनने वाले योगों की रचना की थी। उन योगों में कुछ योग तो मनुष्य के जीवन में उन्नति दायक एवं कुछ योग मनुष्य के जीवन को पतन की और ले जाने वाले होते है, उन बुरे योगों में से ही एक योग चांडाल योग होता है।


चांडाल का मतलब:-जिसका अर्थ होता है, नीच प्रवृत्ति से बुरे कार्य को करना होता है, उसे चांडाल कहते हैं।


चांडाल योग की परिभाषा:-जब जन्मकुंडली में सात्विक ग्रह जीव के साथ पापी ग्रह सेंहिकीय या केतु ग्रह का सयोंग किसी भी भाव में एक साथ होता हैं।

जब एक अच्छे या शुभ ग्रह गुरु का जन्मकुंडली में राहु या केतु ग्रह के साथ एक भाव में बैठे होते है।

जब गुरु ग्रह का राहु ग्रह या केतु ग्रह के साथ एक-दूसरे को देखने पर भी चांडाल दोष बनता हैं।


चांडाल योग बनने पर पड़ने वाले असर:-मनुष्य की जन्मकुंडली में जब अच्छा चांडाल योग बनता है तब तो वह उन्नति करवाता है, जब बुरा चांडाल योग बनता है, तब पतन की ओर ले जाता है। मनुष्य के जीवन पर पड़ने वाले असर निम्नलिखित है:

◆जब जन्मकुंडली के किसी भी घर में गुरु का सयोंग राहु या केतु से होने पर मनुष्य सांसारिक भोग के प्रति अधिक आकर्षित होता हैं, मनुष्य अपने मन की समस्त कामनाओं की पूर्ति करने के लिए बिना किसी तरह के अच्छे एवं बुरे का विचार किये कार्य को पूरा करने में लगा रहता है, जिसके कारण वह अन्य मनुष्य में अपने आपको सबसे अधिक धनवान बना सके, इसके लिए वह गलत कार्य भी करने को तत्पर रहता हैं।

◆जब जन्मकुंडली के किसी भी घर में राहु या केतु ग्रह का मिलन या एक-दूसरे को परस्पर देखने पर भी इस योग के बनने से मनुष्य अपने अच्छे के बारे में विचार नहीं करके वह गलत कार्य में लगा रहता हैं, जिसके कारण गलत आचरणों को ग्रहण करके अपने सदाचार को भूल जाता है, वह अपने कार्य को सफल करने के लिए दुसरो का अहित भी कर देता है, जिसके कारण उसके आचरण में बदलाव आ जाते है, वह अपने आपको ही सर्वोपरि समझता है, धर्म-कर्म के विषयों में विचार नहीं करता है, दूसरों को धोखा देकर छल भी करने लगता हैं और दूसरों के प्रति दया भाव खत्म हो जाते है एवं दूसरों को कष्ट पहुंचाने लगता हैं।

◆चांडाल योग में केवल बुरे असर ही नहीं होते हैं, बल्कि कुछ ग्रहों की अच्छी स्थिति में होने मनुष्य को समस्त जगहों पर प्रसिद्घ करने में भी पीछे नहीं हटते हैं।

◆जब जन्मकुंडली का विश्लेषण करते है, तब ग्रहों के हालात को पहले भलीभांति परखना चाहिए। जिससे जन्मकुंडली में ग्रहों की शुभता-अशुभता पता चल सके, ग्रहों की शुभता एवं अशुभता के अनुसार ही फलादेश करना चाहिए कि चांडाल दोष का किस तरह का असर पड़ेगा। बिना जन्मकुंडली में ग्रहों के हालात को जानें ही राहु या केतु के साथ गुरु ग्रह के सयोंग या एक-दूसरे पर देखे जाने के आधार पर फलादेश नहीं करना चाहिए। चन्द्रकुण्डली से, लग्नकुंडली से एवं नवमांश कुंडली और समस्त षोड़श वर्ग की कुंडलियों के आधार पर ही विश्लेषण करना चाहिए।

◆जब समस्त षोड़श वर्ग की कुंडलियों के आधार पर यदि ग्रहों की स्थिति कमजोर होने पर ही चांडाल योग के दुष्प्रभाव होते है। 

◆यदि गुरु पर सात्विक ग्रहों की दृष्टि होने पर राहु या केतु ग्रह की युति हो तब भी बुरे असर नहीं होते हैं।

◆जब जन्मकुंडली में गुरु ग्रह दूसरे बुरे ग्रहों से प्रभावित हो और राहु या केतु ग्रह के साथ होने पर निश्चित ही दुष्परिणाम को मनुष्य को भोगने पड़ते है। जिस भाव में यह योग बनेगा, उस भाव से मिलने वाले अच्छे परिणाम को कमजोर करके मनुष्य के जीवन को बर्बाद कर देगा।

◆चांडाल योग के कारण मनुष्य को सामाजिक जीवन, आर्थिक जीवन और धर्मिक जीवन में कष्ट के साथ दुःखो को भोगना पड़ता है।

गुरु ग्रह एवं केतु ग्रह अच्छी स्थिति में पर नतीजे:-जब जन्मकुंडली में अच्छी स्थिति में होकर गुरु एवं केतु का मिलन एक जगह पर होता है तब उस स्थिति में बने चांडाल योग के कारण मनुष्य सामाजिक एवं धर्म-कर्म के कार्यों में रुचि रखते हुए, अपने जीवन के उत्थान के लिए कोशिश करते है। मनुष्य अपना सम्पूर्ण को दूसरों की सेवा में लगा देते हैं।

गुरु ग्रह एवं राहु ग्रह अच्छी स्थिति में पर नतीजे:-जब जन्मकुंडली में अच्छी स्थिति में होकर गुरु एवं राहु का मिलन एक जगह पर होता है तब उस स्थिति में बने चांडाल योग के कारण मनुष्य अपने समस्त जीवननकाल में समस्त जगहों पर विकास ही करता है और सामाजिक जीवन और भौतिक जीवन में कामयाबी को प्राप्त करता हैं।


जब गुरु ग्रह शुभ होकर केतु या राहु ग्रह के साथ बैठने:-जब जन्मकुंडली में गुरु ग्रह शुभ होकर एवं केतु ग्रह भी शुभ हालात में होकर चांडाल योग बनता है, तब मनुष्य के अज्ञान को दूर कर सदमार्ग की ओर ले जाने वाले होता हैं, विद्या के सागर एवं ज्ञान के अधिष्ठाता गुरु ग्रह होते हैं, ज्योतिष शास्त्र में गुरु ग्रह को सबसे ज्यादा अच्छा या मंगलकारी ग्रह माना जाता है। गुरु ग्रह अपनों का हमेशा भला करने वाले एवं भला करने की कोशिश करते है। इस तरह द्विस्वभाव राशियों के स्वामी होने से उनके मिजाज में गतिशीलता और स्थिरता दोनों तरह के गुण पाए जाते है। गुरु अपने ज्ञान, अनुभव और गहन चिन्तन से मनुष्य को ज्ञानवान, बुद्धिमान, विद्वान, गुणवान, नीतिवान, दयावान, न्यायशील, यशस्वी व धनी बनाता हैं। हर तरह की समृद्धि को लाता हैं। भूमि, भवन, जीवनसाथी, पुत्र आदि सभी तरह के सुख प्रदान करता हैं। प्रसन्नचित एवं स्वस्थ रहने की दिशा दिखाता है। आध्यात्मिकता एवं धार्मिकता की ओर ले जाता हैं। शुभ भावस्थ गुरु मनुष्य को उच्च पद पर आसीन करवाता हैं और मान-सम्मान में बढ़ोतरी करवाता है। गुरु के प्रभाव से मनुष्य शिक्षक, प्रोफेसर, कैमिस्ट, डॉक्टर, वकील या जज, कैशियर, बैंकर, अधिकारी, राजदूत, नेता या मंत्री, धर्मोपदेशक या समाजसेवक या अच्छा पथप्रदर्शक हो सकता हैं। गुणवान एवं धनवान बनाता है। यश एवं गौरव दिलाता हैं।


जब गुरु ग्रह अशुभ होकर केतु या राहु ग्रह के साथ बैठने:-निर्बल या कमजोर होने पर, दूषित एवं अकेला गुरु 2, 5, 6, 7, 8, 12 भावों में होने पर मनुष्य को स्वार्थी, लोभी, क्रूर, आक्रामक एवं अविश्वसनीय बनाता हैं। जिसके कारण मनुष्य दुःखी रहता हैं। शरीर में चिंतावश कमजोरी आती हैं और स्वास्थ्य में गिरावट आ जाती हैं, जिससे शरीर में कई तरह की व्याधियों जैसे-रक्त, जिगर, शिराओं, धमनियों, जंघाओं को प्रभावित करता हैं। किन्तु 2, 5 भावों में अकेला गुरु हानिकर होता हैं। भाव के फल को नष्ट करता हैं। जीवनसाथी, पुत्र आदि सुख से वंचित करता हैं। उच्चविद्या में अवरोध लाता है और धन की हानि करता हैं।


जब गुरु ग्रह शुभ होकर केतु या राहु ग्रह के साथ बैठने:-राहु जिस भाव में बैठता है, उस भाव में स्थित ग्रह अनुसार या ग्रह नहीं होने पर वह राशि स्वामी के अनुसार फल देता है, क्योकि की राह का स्वयं का कोई फल नहीं होता हैं। राहु के साथ बैठा ग्रह या राहु की जिन ग्रहों पर दृष्टि होती है, वे सभी राहु से प्रभावित होकर विच्छेदात्मक अर्थात् हानिकर फल देते है, जिससे मनुष्य हमेशा तकलीफ में रहते हुए परेशान होकर दुःखी रहता हैं। राहु अशुभ ग्रहों जैसे मंगल, शनि आदि के उत्प्रेरक का कार्य करता हैं। जब शनि के साथ बैठकर शनि के प्रभाव को दोगुना कर देता है। राहु को अहंकार का अधिष्ठाता माना गया है। 'मदमत राहु' समय आने पर सूर्य को भी ग्रस लेता है या उसके शुभत्व को भी नष्ट कर देता हैं। राहु अकस्मात अप्रत्याशित नतीजों को देने वाला छाया ग्रह हैं, पापग्रह होने के कारण पापग्रहों के प्रभाव में बढ़ोतरी करता है। मनुष्य को बहुत ही गुस्सा दिलाता है, वाणी से कड़वे वचनों को बुलवाता है, देश-विदेश में घूमने वाला बनाता है, चोर, दुष्ट, कामुक आदि बनाता है। जब दूषित होता है, तब पारिवारिक जीवन में कटुता, कलह, क्लेश आदि पैदा करता हैं। अलगाव एवं तलाक की परिस्थितियों को उत्पन्न कर देता हैं। भौतिक उपलब्धियों यथा जमीन-जायदाद, मकान, दुकान से दूर कर देता हैं। इनका क्रय-विक्रय करता है और साथ ही प्रतिष्ठा को गिराता है। स्वास्थ्य में कमजोरी लाता हैं। चर्म रोग उत्पन्न करता है। यह 3, 6, 10, 11 भावों में होने पर अच्छे फल भी देता हैं। अनेक तरह के अरिष्टोंएवं आपदाओं के नाश करता हैं। दशम भाव में होने पर नेतृत्वशक्ति प्रदान करता हैं। उच्चाधिकारी बनाता हैं। प्रोन्नति करता हैं। द्वितीय भाव में होने पर धन को दिलवाता है और कई से भी अकस्मात धन की प्राप्ति करवाता हैं। राहु मनुष्य को राजपत्रित अधिकारी, इन्जीनियर, सर्जन, अधिष्ठित राशि के स्वामी अनुसार कर्मचारी या व्यापारी बनाने में सहयोग करता हैं। सुख-सुविधायें प्रदान करता हैं।


जब गुरु ग्रह अशुभ होकर केतु ग्रह के साथ बैठने:-केतु भी राहु के समान ही एक छाया ग्रह हैं, इसे देख नहीं सकते हैं। केवल उसका अनुभव कर सकते हैं। केतु को 'कुजवत् केतु' कहा गया हैं। इसका अर्थ हैं कि केतु मंगल ग्रह के समान ही कार्य करते हुए फल को देता हैं। केतु का भी जिस ग्रह के साथ के साथ बैठता हैं, उसके अनुसार या फिर जिस राशि में बैठता हैं, उस राशि के स्वामी के अनुसार फल देता हैं। किसी स्वराशि ग्रह के साथ बैठा होता हैं तो उसके बल को चौगुना करता हैं। मंगल के साथ होने पर मंगल का बल एवं फल दोगुना होता हैं। शनि के साथ बैठने पर विच्छेदात्मक भूमिका निभाता हैं और विघटन लाता हैं। जिससे मनुष्य को दुःखी कर देता हैं।

प्रभाव:-केतु ग्रह छाया ग्रह होने से मनुष्य के जीवन में सही रास्ते को दिखाने में एक मार्गदर्शक होते हैं। केतु ग्रह का असर मनुष्य के जीवन पर पड़ने पर मनुष्य के मस्तिष्क को कष्ट पहुंचाने लगता हैं और जिससे मनुष्य के मन में बिना मतलब के दुःख देने वाले नकारात्मक विचारों का जन्म हो जाता है और मनुष्य के व्यवहार में परिवर्तन होने लगते है, उसकी बातों मूर्ख की तरह होती है। जिससे दूसरे मनुष्य उसको पागल कहना शुरू कर देते हैं और उसको अपने पराये के बारे में ज्ञान नहीं रहता हैं। इस तरह के हालात होने से मुलबातो को जानने के लिए इधर-उधर भटकने लगता हैं। अध्यात्मिकता की ओर मनुष्य को ले जाने का कार्य केतु ग्रह से ही होता हैं। जिससे मनुष्य सही-निर्णय नहीं ले पाने के कारण उसे लगता कि वह ईश्वर की आराधना करके अपनी आत्मा को किस तरह मोक्ष की ओर ले जावूं। जिससे वह अपनी समस्याओं के मूल की खोज करते हुए उस समस्याओं से मुक्ति का उपाय खोजने लगता है और विचार करता है कि सामाजिक जीवन को किस तरह अपना नाम को प्रसिद्धि दिलवा सकता है और जिससे अपने जीवन को सुख प्रदान करके सुख को प्राप्त कर सकूं।

शुभ फल के भाव:-जन्मकुंडली के तीसरे भाव, षष्ठम भाव, दशम भाव एवं ग्याहरवें भाव में केतु ग्रह जब बैठे होते है, तब अपना शुभ या अच्छा फल ही देते हैं।

मनुष्य को अपने कर्मों के आधार पर उच्च पद को दिलवाने में सहायता करते हैं।

पुलिस या फौजी अफसर, अच्छा खिलाड़ी, इंजीनियर, बुखार, चोट, घाव, बहरापन, तोतलापन आदि व्याधियों को भी उत्पन्न करते हैं।

जब केतु ग्रह अशुभ भाव में या अशुभ राशि में बैठे होते हैं, तब मनुष्य के जीवन में सभी तरह के रास्तों को बन्द करवाकर उस मनुष्य के जीवन में निराशा उत्पन्न करके हताश कर देते हैं।


चांडाल योग के असर को कम करने के उपाय:-जब चांडाल योग की स्थिति जन्मकुंडली में बनते है, तब उसके बुरे असर को कम करने के बहुत सारे ज्योतिषीय उपाय बताया गए है, उनमें कुछ इस तरह है। जिनको अपनाकर मनुष्य अपने जीवन में पड़ रहे बुरे असर से मुक्त हो सकते है:

◆जब जन्मकुंडली को किसी जानकार ज्योतिषी को दिखाते है, तब जानकार ज्योतिषी जन्मकुंडली में गुरु ग्रह की स्थिति एवं राहु ग्रह की स्थिति का अवलोकन करके बताता है। उस कुण्डली में गुरु ग्रह को मजबूत करना है या राहु ग्रह को मजबूत करना है। उनके बताए अनुसार ही उपाय को करने से फायदा मिलता हैं। 

◆जब जन्मकुंडली में गुरु ग्रह अपनी ही राशि अर्थात् धनु राशि या मीन राशि में होने या अपने मित्र की राशि में होने पर या गुरु ग्रह अपनी उच्च राशि में होने पर राहु ग्रह को मजबूत करना होता है, क्योंकि गुरु ग्रह तो पहले से ही मजबूत स्थिति में तब राहु ग्रह को मजबूत करने पर ही गुरु ग्रह अपना अच्छा असर दे पावेगा।

◆राहु ग्रह के मन्त्रों का जाप किसी ब्राह्मण से करना चाहिए।

◆राहु ग्रह से सम्बंधित हवन-यज्ञ करने पर भी फायदा मिलता हैं।

◆राहु ग्रह को मजबूत करने के लिए मनुष्य को राहु ग्रह से सम्बंधित वस्तुओं का दान किसी निर्धन मनुष्य को देना चाहिए।

◆जब जन्मकुंडली में गुरु ग्रह के दुश्मन राशि (शुक्र या राहु या केतु ग्रह) में बनता है, तब राहु ग्रह एवं गुरु ग्रह दोनों के मजबूत करने पर ही फायदा होगा।सूर्य, चन्द्र, मंगल इसके मित्र ग्रह हैं। शनि समभाव वाला ग्रह हैं। 

◆गुरुवार या बृहस्पतिवार इसका अपना शुभवार हैं।

◆राहु ग्रह एवं गुरु ग्रह को मजबूत करने के लिए राहु ग्रह एवं गुरु ग्रह के मन्त्रों का जाप किसी योग्य ब्राह्मण से करना चाहिए।

◆राहु ग्रह एवं गुरु ग्रह को मजबूत करने के लिए राहु ग्रह एवं गुरु ग्रह की पूजा-अर्चना किसी योग्य ब्राह्मण से करना चाहिए।

◆राहु ग्रह एवं गुरु ग्रह से सम्बंधित हवन-यज्ञ करने पर भी फायदा मिलता हैं।

◆राहु ग्रह को मजबूत करने के लिए मनुष्य को राहु ग्रह एवं गुरु ग्रह से सम्बंधित वस्तुओं का दान किसी निर्धन मनुष्य को देना चाहिए।

◆जब जन्मकुंडली में चांडाल योग बन रहा होता है, तब उसके असर को कम करने का सबसे अच्छा उपाय है, की भगवान भोलेनाथजी की शरण में चले जावो। अर्थात् भगवान भोलेनाथजी की पूजा-आराधना शुरू कर देने पर अच्छे नतीजे मिलते हैं।

◆गुरु ग्रह को मजबूत करने के लिए गुरु ग्रह के मन्त्रों का जाप अपने इच्छानुसार करना चाहिए।

◆मनुष्य को अपने गुरु की सेवा सच्चे मन से करने पर फायदा मिलता हैं।

◆मनुष्य को श्रीविष्णु भगवान के विष्णु सहस्त्र नाम स्तोत्रं का वांचन करने पर फायदा मिलता हैं।

◆मनुष्य को भैरवजी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। भैरव जी की भैरव स्तोत्रं एवं भैरव चालीसा का वांचन करने पर भी फायदा प्राप्त होता हैं।

◆मनुष्य को अपने अधोवस्त्र के रूप में पीले रंग की बनियान को या पीला रंग का रुमाल उपयोग में लेना चाहिए।

◆मनुष्य को अपने मस्तिष्क पर हरिद्रा एवं केसर को मिश्रण करके तिलक को लगाने पर भी गुरु ग्रह को मजबूत होता हैं।

◆मनुष्य को मद्यपान एवं नशीली वस्तुओं का परिहार करना चाहिए। जिससे मनुष्य में बुरे विचारों से नकारात्मक भाव जागृत नहीं हो पावे। 

◆गुरुवार एवं शनिवार के दिन मांसाहार का सेवन नहीं करना चाहिए। मनुष्य को किसी भी जीव-जंतुओं की हत्या नहीं करनी चाहिए।

◆मनुष्य को गुरुवार के दिन किसी भी बूढे आदमी या औरत की सेवा सच्चे मन से करने पर फायदा मिलता हैं।

◆मनुष्य को पीपल के वृक्ष को गुरुवार के दिन लगा सकते हो तब निश्चित ही लगाना चाहिए। यदि पीपल का वृक्ष नहीं लगा सकते हो तब गुरुवार के दिन पीपल के वृक्ष को जल से सिंचन करना एवं सेवा करने पर फायदा मिलता हैं।