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Sunday, October 24, 2021

विधवा योग कुंडली में कैसे बनता है(How Widow Yoga is formed in Kundli)

                  




विधवा योग कुंडली में कैसे बनता है(How Widow Yoga is formed in Kundli):-जन्मकुंडली मनुष्य के जीवनकाल को बताने वाले एक आईना की तरह होती है, जिसमें मनुष्य को उसके भूत काल,भविष्य काल और वर्तमान काल के दर्शन होते है। इस तरह हमारे ऋषि-मुनियों के गहन शोध के बाद मनुष्य के जीवनकाल के अच्छे एवं बुरे योगों का निर्माण किया था। उन योगों में से एक योग वैध्वय योग होता है, जिसके कारण स्त्री का जीवन नरकमयी बन जाता हैं, इस तरह स्त्री के जीवनकाल पर वैधव्य योग के फलस्वरूप ग्रहण लग जाता है और उसके जीवन काल की गति रुक जाती है। जिसके कारण स्त्री को बहुत तरह के संकटो का सामना अपने जीवनकाल में करना पड़ता है, इस तरह वैधव्य योग स्त्री के लिए यमराज अर्थात् काल के समान होता है जिससे स्त्री को अपने शेष जीवनकाल के समय हर तरह प्रतिक्षण दुःखों को भोगना पड़ता है, इस तरह एक बहुत घातक योग स्त्री के लिए होता है।

विधवा योग का मतलब:-जब किसी स्त्री की शादी किसी पुरुष के साथ होती है, तब स्त्री के पति का स्त्री से पूर्व उसके पतिदेव का स्वर्गलोक में गमन करने से होता है, जिसके फलस्वरूप उस स्त्री को जीवन में बहुत ही सारी तकलीफों का सामना करना पड़ता है, उस योग को विधवा योग कहते हैं।

विधूर योग का मतलब:-जब किसी पुरुष की शादी किसी औरत के साथ होती है, तब आदमी के पत्नी का आदमी से पूर्व उसके अर्द्धांगिनी का स्वर्गलोक में गमन करने से होता है, जिसके फलस्वरूप उस आदमी को जीवन में अपनी पत्नी के बिना बहुत ही सारी तकलीफों का सामना करना पड़ता है, उस योग को विधूर योग कहते हैं।

प्राचीनकाल के समय मनुष्य जीवन में स्त्री के लिए पति के होने की बहुत ही अहमयित को समझा जाता था। उस स्त्री के लिए उसके पति के जीवित होने पर तो उसको मानो स्वर्गलोक ही मिल गया हो ऐसा था। क्योंकि प्राचीनकाल के समय में स्त्रियों की दशा बहुत ही दयनीय थी। उस समय उनको रहन-सहन एवं खान-पान के लिए बहुत ही तरसना पड़ता था। जिस तरह पशु की भांति उनको समझा जाता है, उन पर बहुत सारे प्रतिबन्ध थे। लेकिन आज के परिवेश में बहुत ही परिवर्तन हो गए है, आज के युग में भी स्त्री के लिए पति का महत्व है। लेकिन प्राचीनकाल की तुलना आज स्थिति बहुत ही अच्छी हो गई है। स्त्रियों के लिए पति ही सर्वोपरि होता है। इसलिए हर स्त्री चाहती है कि उसका सुहाग अमर रहे, वह कभी भी विधवा नहीं होवे। शादी करने से पूर्व जन्मकुंडली का मिलान करते समय लड़के व लड़की की कुंडली में ग्रहों के योगों का विवेचन अच्छी तरह करना चाहिए। क्योंकि गुण मिलान में गुण मिल जाते है लेकिन ग्रहों की स्थिति खराब होने पर लग्न नहीं करवाना चाहिए। क्योंकि जन्मपत्रिका में ग्रहों की स्थिति के अनुसार बहुत सारे अच्छे एवं बुरे योग बनते है, जिनमें एक योग विधवा या विधुर योग होता है। जिस कुंडली में इस तरह के योग बनने पर जानकर व्यक्ति को उस स्थिति में उस लड़की या लड़के के साथ लग्न नहीं करवाना चाहिए।

विधवा योग या विधूर योग जन्मकुंडली में बनने वाले योग:-जन्मकुंडली में बनने वाले योगों को देखकर जान सकते हैं कि विधवा योग या विधूर योग बन रहा है के नहीं, इसके लिए निम्नलिखित योगों को देखना चाहिए। जो इस तरह है:

1.यदि किसी भी लड़के या लड़की की जन्मकुंडली में आठवें घर या बारहवें घर में भौम ग्रह विराजमान और साथ ही पहले घर में राहु ग्रह हो तो यह योग विधवा या विधुर योग बन सकता हैं।

2.जब जन्मकुंडली के जन्मलग्न में सातवें या आठवें घर में रवि ग्रह, भौम ग्रह, मन्द ग्रह और राहु ग्रह विराजमान होने पर भी यह योग बनता हैं।

3.जब चन्द्रकुण्डली में चन्द्र लग्न से भी से सातवें या आठवें घर में रवि ग्रह, भौम ग्रह, मन्द ग्रह और राहु ग्रह विराजमान होने पर भी यह योग बनता हैं।

4.जब जन्मकुंडली के सातवें भाव के स्वामी भौम ग्रह हो उस पर किसी पापी ग्रह या अशुभ ग्रह के द्वारा देखा जाने पर भी यह योग बनता हैं।

5.यदि भौम ग्रह जन्मकुंडली के सातवें घर में हो उस भौम ग्रह के साथ में कोई भी पापी ग्रह या अशुभ ग्रह जैसे मन्द ग्रह, राहु ग्रह या केतु ग्रह का सम्बंध होने पर भी यह योग बनता हैं।

6.यदि जन्मकुंडली के सातवें घर का स्वामी पापी ग्रह के द्वारा देखा जावे या सातवें घर के स्वामी का पापी ग्रह जैसे मन्द ग्रह, राहु ग्रह या केतु ग्रह का सम्बंध होने पर और आठवें घर का स्वामी यदि सातवें घर में होने पर भी यह योग बनता हैं।

7.यदि छठे घर एवं सातवें घर में बुरे या अशुभ ग्रह बैठे हो या सातवां घर अशुभ ग्रह के द्वारा बने पापकर्त्री प्रभाव में हो और सातवें घर पर किसी भी अच्छे ग्रह चन्द्रमा, बुध या गुरु या भृगु ग्रह का कोई भी तरह का प्रभाव नहीं होने पर भी विधुर या विधवा योग बनता हैं।

8.जब जन्मकुंडली के सातवें घर का स्वामी एवं आठवें घर का स्वामी आठवें घर में स्थित हो तो उन दोनों घरों में स्वामी ग्रहों पर यदि बुरे रवि ग्रह, भौम ग्रह, मन्द ग्रह, राहु ग्रह या केतु ग्रह का प्रभाव होने से भी यह योग बनता हैं।

9.यदि जन्मकुंडली में मन्द ग्रह के द्वारा सातवें घर के स्वामी भौम ग्रह हो उसको देखा जाने पर भी यह योग फलीभूत होता हैं।

10.जब जन्मकुंडली छठे घर में सोम ग्रह एवं भौम ग्रह, राहु ग्रह सातवें घर में होने पर और आठवें घर में मन्द ग्रह होने पर भी यह योग बनता है।

11.जब जन्मकुंडली के सातवें घर की राशि का और आठवें घर की राशि में स्थित ग्रहों का एक दूसरे में बदलाव होने पर भी यह विधुर या विधवा योग बन सकता हैं।

12.जब जन्मकुंडली के आठवें घर के स्वामी का नवमांश कुंडली में बुरे ग्रहों के साथ या बुरे ग्रहों के द्वारा देखा जाने पर बुरी स्थिति में होने से भी यह योग बन सकता हैं।

 13.किसी की भी जन्मपत्रिका के सातवें घर के मालिक ग्रह और आठवें घर के मालिक ग्रह का साथ में बारहवें घर में बैठने पर और सातवें घर पर बुरे ग्रह के द्वारा देखा जाने पर या सातवें घर पर बुरे ग्रह के बैठने पर भी यह योग बन सकता हैं।  

14.जब जन्मकुंडली के लग्न भाव के स्वामी ग्रह और आठवें घर के स्वामी ग्रह का एक साथ बारहवें घर में बैठने पर और साथ ही आठवें घर पर किसी भी बुरे ग्रह जैसे मन्द ग्रह, राहु ग्रह, भौम ग्रह, रवि ग्रह और केतु ग्रह के द्वारा अपनी पूर्ण दृष्टि से देखने पर भी विधवा योग बनता हैं।

15.जब जन्मपत्रिका में जीव ग्रह एवं भृगु ग्रह का मिलन एक ही घर में होने पर साथ जीव ग्रह के अंशों से भृगु ग्रह के अंश कम हो तो विधूर योग बन सकता है।

16.जब बारहवें घर का स्वामी ग्रह सातवें घर में स्थित हो, सातवें घर का स्वामी ग्रह आठवें घर अथवा बारहवें घर में स्थित हो साथ ही छठे घर के स्वामी ग्रह का सातवें घर में बैठने पर भी विधवा योग बनता हैं।

17.जब जन्मकुंडली के सातवें घर पर बुरे व नीच ग्रह के द्वारा बुरा प्रभाव होने पर और सातवें घर के स्वामी का रवि ग्रह के प्रभाव के फलस्वरूप ज्योतिहीन अर्थात् अस्त होने पर भी विधूर योग बनता हैं।

18.इन सब योगों के द्वारा जान सकते है कि विधवा योग या विधूर योग बन रहा है या नहीं।