राहु कवचं स्तोत्रं अर्थ सहित एवं लाभ(Rahu Kavacham Stotra with meaning and benefits):-राहु दैत्य जाति कुल के शुद्र जाति में देवी सिंहिका माता एवं पिता प्रेषित के घर जन्म लिया था। राहु देव के द्वारा अमृतपान करने से अमृतत्व की प्राप्ति हुई थी। लेकिन अमृत की बूंदों को ग्रहण करने पर भगवान विष्णु जी के सुदर्शन चक्र के प्रहार से दो भागों में बंट गए थे। सिर का भाग राहु ग्रह के रूप में अमर हुआ था। सूर्य देव एवं चन्द्रदेव के द्वारा भेद बताने से इनकी शत्रुता होती है, जिसके कारण समय-समय पर इनको ग्रसित करके उन पर ग्रहण लगाते है। इस तरह सूर्यदेव एवं चन्द्रदेव होते हुए भी इनको पीड़ा देते है, तो जब जन्मकुंडली में इनका प्रभाव बुरा होता है, क्यों नहीं बुरा प्रभाव देंगे? राहुदेव दूसरों के साथ अपनी माया के द्वारा छल करने वाले, दूसरों के विषय में बुरा बोलने वाले एवं सही बात नहीं बोलने का स्वभाव रखते हैं।
◆राहु अशुभ ग्रहों जैसे मंगल, शनि आदि के उत्प्रेरक का कार्य करता हैं। जब शनि के साथ बैठकर शनि के प्रभाव को दोगुना कर देता है।
◆राहु को अहंकार का अधिष्ठाता माना गया है। 'मदमत राहु' समय आने पर सूर्य को भी ग्रस लेता है या उसके शुभत्व को भी नष्ट कर देता हैं।
◆राहु अकस्मात अप्रत्याशित नतीजों को देने वाला छाया ग्रह हैं, पापग्रह होने के कारण पापग्रहों के प्रभाव में बढ़ोतरी करता है।
◆मनुष्य को बहुत ही गुस्सा दिलाता है, वाणी से कड़वे वचनों को बुलवाता है, देश-विदेश में घूमने वाला बनाता है, चोर, दुष्ट, कामुक आदि बनाता है।
◆जब दूषित होता है, तब पारिवारिक जीवन में कटुता, कलह, क्लेश आदि पैदा करता हैं।
◆अलगाव एवं तलाक की परिस्थितियों को उत्पन्न कर देता हैं।
◆भौतिक उपलब्धियों यथा जमीन-जायदाद, मकान, दुकान से दूर कर देता हैं। इनका क्रय-विक्रय करता है और साथ ही प्रतिष्ठा को गिराता है। स्वास्थ्य में कमजोरी लाता हैं। चर्म रोग उत्पन्न करता है।
राहु देव के राहु कवचं स्त्रोतं के वांचन करने की विधि:-राहु देव के राहु कवचं स्तोत्रं के वांचन करने से पहले राहु देव को खुश करने के लिए उनकी विधि के अनुसार पूजन शुरु करना चाहिए, जो इस तरह से पूजन करना चाहिए।
◆राहु कवचं स्तोत्रं के मन्त्रों का पाठ करना होता है, उस दिन मनुष्य को सवेरे जल्दी उठकर जीवनचर्या जैसे-स्नानादि के कार्य को पूरा करना चाहिए।
◆उसके बाद में अच्छे एवं शुद्ध नये कपड़ों को पहनना चाहिए।
◆अपने पूजा करने की जगह को शुद्ध एवं पवित्र जल से शुद्ध करना चाहिए।
◆फिर लकड़ी का एक बाजोठ लेकर उस पर लाल या पिला या नीले रंग का कपड़ा बिछाना चाहिए।
◆उस बाजोठ पर राहु देव की फोटू या मूर्ति को विराजमान करना चाहिए।
षोडशोपचारैंः पूजा कर्म:-इस तरह भगवान राहुदेव जी का षोडशोपचारैंः पूजा कर्म करना चाहिए
पादयो र्पाद्य समर्पयामि, हस्तयोः अर्ध्य समर्पयामि,
आचमनीयं समर्पयामि,पञ्चामृतं स्नानं समर्पयामि
शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि, वस्त्रं समर्पयामि,
यज्ञोपवीतं समर्पयामि, गन्धं समर्पयामि,
अक्षातन् समर्पयामि, अबीरं गुलालं च समर्पयामि,
पुष्पाणि समर्पयामि, दूर्वाड़्कुरान् समर्पयामि,
धूपं आघ्रापयामि, दीपं दर्शयामि, नैवेद्यं निवेदयामि,
ऋतुफलं समर्पयामि, आचमनं समर्पयामि,
ताम्बूलं पूगीफलं दक्षिणांं च समर्पयामि।।
राहु देव के लिए करन्यासः-जब राहुदेव के राहु कवचं स्तोत्रं के मन्त्रों का वांचन करना शुरू करते हैं, तब उनको स्मरण करने के लिए अपने दोनों हाथों को एक तरह की आकृति देकर उनकी अरदास करने के तरीकों को करन्यास कहते हैं। इस करन्यास में पांचों अंगुलियों, तर्जनी, मध्यमा, आनामिका, कनिष्ठिका अंगुली, अंगूठा और हथेली के बीच की जगह को इकट्ठा करके एक मुद्रा को बनाते हैं, उनसे प्रार्थना करतें हैं।
रां अङ्गुष्ठाभ्यां नमः।
अर्थात्:-राहुदेव आपके अंगूठे को छूते हुए नमस्कार करता हूँ।
रीं तर्जनीभ्यां नमः।
अर्थात्:-राहुदेव आपके तर्जनी अंगुली को छूते हुए नमस्कार करता हूँ।
रूं मध्यमाभ्यां नमः।
अर्थात्:-राहुदेव आपके मध्यमा अंगुली को छूते हुए नमस्कार करता हूँ।
रैं अनामिकाभ्यां नमः।
अर्थात्:-राहुदेव आपके अनामिका अंगुली को छूते हुए नमस्कार करता हूँ।
रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
अर्थात्:-राहुदेव आपके कनिष्ठिका अंगुली को छूते हुए नमस्कार करता हूँ।
रः करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।।
अर्थात्:-राहुदेव आपके हाथों की हथेली के मध्य भाग को छूते हुए नमस्कार करता हूँ।
अंगन्यासः-जब राहु देव के राहु कवचं स्तोत्रं का वांचन करते है, तब राहु देव के अंगों को राहुदेव का स्वरूप मानते हुए उनके अंगों को शुद्ध करते है, उसे अंगन्यास कहते हैं। इसलिए राहुदेव के अंगों शुद्ध मानते हुए उनके अंगों का छूते हुए मन्त्रों के द्वारा अंगन्यास करते हैं।
रां हृदयाय नमः।
अर्थात्:-हे राहुदेव! जब मनुष्य के द्वारा कमल के पुष्प की आकृति के समान शारीरिक एवं आध्यात्मिक भाव को जागृत करने के लिए बैठने के तरीका होता है, जिसमें एक पैर को इस तरह मोड़ा जाता है, जिसमें दूसरा पैर उस पैर पर आ जाता है, तब पैर के घुटने पर बायां हाथ रखकर "हृदयाय नमः" बोलते हुए दाएं हाथ के द्वारा पांचों अंगुलियों से पवित्र हृदय को छूते हुए नमस्कार करना चाहिए।
रीं शिरसे स्वाहा।
अर्थात्:-हे राहुदेव! आपके शिर तक मन्त्रों का सही तरह से मेरे द्वारा उच्चारण शब्द आप तक पहुंचे। इस तरह "शिरसे स्वाहा" मन्त्र को बोलते हुए शिर को छूना चाहिए।
रूं शिखायै वषट्।
अर्थात्:-हे राहुदेव! आप देवता के रूप में हो, इसलिए आप शिखा बन्धन करते हुए अग्नि देव को जागृत करने के लिए उच्चारण करता हूँ। "रूं शिखायै वषट्" मन्त्र के द्वारा शिखा को छूना चाहिए।
रैं कवचाय हुम्।
अर्थात्:-हे राहुदेव!आपके कवचं का बार-बार मैं उच्चारण करता हूँ। "रैं कवचाय हुम्" मन्त्र का उच्चारण करते हुए दोनों बाजुओं को दोनों हाथों के द्वारा छूना चाहिए।
रौं नेत्रत्रयाय वौषट्।
अर्थात्:-हे राहुदेव!आपके शिर तक मन्त्रों का सही तरह से मेरे द्वारा उच्चारण शब्द आप तक पहुंचे।रौं नेत्रत्रयाय वौषट् मन्त्र का उच्चारण करते हुए दाएं तरफ के चक्षु, बाएं तरफ के चक्षु एवं भाल के मध्य में स्थित तीसरे चक्षु को भी छूना चाहिए।
रंः अस्त्राय फट्।
अर्थात्:-हे राहुदेव! आपका तांत्रिक मंत्र जिसे अस्त्र मन्त्र भी कहा जाता है, उस अस्त्र मन्त्र का उपयोग पात्रो को धोने, मैल को साफ करने, सामने की तरफ फेंकना, आकाश में बाधा या नाश करने वाले और दूसरे ऐसे वाहन पर सवार होकर घूमते हो। रंः अस्त्राय फट्। मन्त्र को उच्चारण करते हुए 'फट्' की आवाज को दाएं हाथ के पंजे को बाएं हाथ के पंजे के साथ मिलाकर करना चाहिए।
भूभुर्वस्सुवरोमिति दिग्बंधः।।
अर्थात्:-हे राहुदेव! आपका दिग्बन्धन करते हैं।
अथ श्रीराहु कवचं स्त्रोतं अर्थ सहित:-अथ श्री राहु कवचं स्त्रोतं को मन में सच्ची आस्था भाव एवं विश्वास के साथ प्रतिदिन वांचन करने से ही राहु ग्रह से सम्बंधित बुरे प्रभावों का अंत होता हैं, राहु कवचं स्तोत्रं में राहु देव के बारे में उनके बारे में बताया गया हैं, जो इस प्रकार है:
अस्य श्रीराहुकवचस्तोत्रमंत्रस्य या कश्यप या चंद्रमा ऋषिः!
अनुष्टुप छन्दः! राहुर्देवता! रां बीजं! नमः शक्तिः!
स्वाहा कीलकम्! राहुप्रीत्यर्थं जपे विनियोगः।।
अर्थात्:-श्री राहु कवच स्तोत्रं मन्त्र की रचना श्री चन्द्रमा ऋषि वर ने की थी और राहु देवता हैं, अनुष्टुप छंद हैं, रां बीजं हैं, नमः शक्ति स्वरूप हैं और स्वाहा कीलक हैं तथा श्रीराहुदेव जी की पीड़ा के निवारण लिए राहु कवच स्त्रोतं के जप में विनियोग किया जाता हैं।
अर्थ ध्यानम्-
ऊँ कयिनश्चित्रः अर्धकायं.
।।इति ध्यानम्।।
ध्यानम्:-श्री राहु कवचं स्त्रोतं को वांचन करने से पहले राहु देव के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव रखना चाहिए। उनके प्रति मन में पूरी तरह अच्छी धारण रखते हुए उनसे मन ही मन में अरदास करनी चाहिए, की राहु देव आपको में मन से याद करता हूँ, आप पर मेरी पूर्ण श्रद्धा है। इसलिए आपका ध्यान करता हूँ।
प्रणमामि सदा राहुं शूर्पाकारं किरीटिन्।
सैन्हिकेयं करालास्यं भूतालोकानाम भयप्रदम्।।1।।
अर्थात्:-हे राहुदेव! आप शुर्प के आकार के मुकुट को धारण करने वाले होते हो और आपकी सेंहिकीय माता एवं प्रेषित पिता हैं।आपके नाममात्र से भी डर लगता हैं। आपको मैं प्रणाम करता हूँ।
नीलांबरः शिरः पातु ललाटं लोकवन्दितः।
चक्षुषी पातु मे राहुः श्रोत्रे त्वर्ध शरीरवान्।।2।।
नासिकां मे ते करालस्यः धूम्रवर्णः शूलपाणिर्मुखं मम।
जिह्वा में सिंहिकासूनुः कंठें में कठिनांघ्रीकः।।3।।
भुजंगेशो भुजौ पातु निलमाल्याम्बरः करौ।
पातु वक्षस्थलं मंत्रीः पातु कुक्षिं विधुंतुदः।।4।।
कटिं में विकटः पातु ऊरु मे सुरपूजितः।
स्वर्भानुः र्जानुनी पातु जंघे मे पातु जाड्यहा।।5।।
गुल्फौ ग्रहाधिपः पातु पादौ मे भीषणाकृतिः।
सर्वाण्यंगानि में पातु नीलश्चंदनभूषण:।।6।।
राहोरिदं कवचमीप्सितसिद्धिदं भक्तया पठत्यनुदिनं नियतः शुचिः सन्।
प्राप्नोति कीर्तिमतुलां श्रियमृद्धिमायु:-आरोग्यमात्मविजयं च हि तत्प्रसादात्।।7।।
।।इति श्रीपद्ममे राहुकवचं सम्पूर्णम्।।
।।इति श्रीमहाभारते धृतराष्ट्रसंजयसंवादे द्रोणपर्वणि राहुकवचं संपूर्णं।।
राहु कवचं स्तोत्रं के वांचन करने से मिलने वाले फायदे:-ज्योतिष शास्त्र में मनुष्य के जीवन को प्रभावित करने वाले बुरे ग्रहों एवं बुरी दशाओं से मुक्ति के कई तरह साधन बताये हैं, जिस तरह की बाधाओं हो उसी तरह के साधन शास्त्रों में वर्णित हैं।
◆उनमें से राहु ग्रह के बुरे असर को कम करने के लिए वैदिक धर्म शास्त्रों एवं तंत्र शास्त्रों में तरह-तरह के साधन बताये गए हैं, उन साधनों में से राहु ग्रह के असर को कम करने के लिए मन्त्रों का जाप, कवचं को धारण करना, स्तोत्रं का वांचन एवं दान देने होता हैं।
◆राहु ग्रह 3, 6, 10, 11 भावों में होने पर अच्छे फल भी देता हैं।
◆अनेक तरह के अरिष्टों एवं आपदाओं के नाश करता हैं।
◆दशम भाव में होने पर नेतृत्वशक्ति प्रदान करता हैं।
◆उच्चाधिकारी बनाता हैं। प्रोन्नति करता हैं।
◆द्वितीय भाव में होने पर धन को दिलवाता है और कई से भी अकस्मात धन की प्राप्ति करवाता हैं।
◆राहु मनुष्य को राजपत्रित अधिकारी, इन्जीनियर, सर्जन, अधिष्ठित राशि के स्वामी अनुसार कर्मचारी या व्यापारी बनाने में सहयोग करता हैं। सुख-सुविधायें प्रदान करता हैं।
◆मनुष्य को पापी ग्रह राहु की दशा एवं महादशा से बचने के लिए राहु कवचं स्तोत्रं का वांचन हमेशा करते रहना चाहिए।
◆मनुष्य के जीवन में आ रही बाधाओं से मुक्ति के लिए इस कवचं स्तोत्रं का वांचन करना चाहिए।
◆राहु कवचं स्तोत्रं एक तरह से राहु ग्रह के बुरे प्रभाव को कम करने का उत्तम एवं कठिनता से प्राप्त होने वाला या अति प्रशस्त युक्ति हैं, इस कवचं का वांचन करने से मनुष्य के जीवनकाल में मानसिक अशांति को शांत कर देता हैं।
◆मनुष्य के दाम्पत्य जीवन एवं पारिवारिक जीवन के माहौल को ठीक करने का साधन हैं।
◆राहु ग्रह से मिलने वाले बुरे असर के कारण जीवन में आने वाले संकष्टो से मुक्ति मिलती हैं।