Breaking

Tuesday, October 12, 2021

बंधन योग कब बनता हैं?(When is Bandhan Yoga formed?)

                      




बंधन योग कब बनता हैं?(When is Bandhan Yoga formed?):-जन्मकुंडली एक तरह से मनुष्य के भूतकाल, वर्तमान और भविष्य काल के जीवनकाल का दर्शन करवाने का एक माध्यम होता हैं। हमारे प्राचीनकाल के ऋषि-मुनियों ने जो भी बताया है, उसका पहले उन्होंने परीक्षण किया था। उसके बाद में अपने शब्दों में इनका विश्लेषण किया था। जो कि बहुत ही सटीक बैठता है, उन्होंने मनुष्य के जीवन पर पड़ने वाले बुरे-अच्छे परिणामो को जाना था, उसके बाद में लागू किया था। 


प्राचीनकाल हो या आधुनिक युग हो, प्रत्येक मनुष्य दूसरे मनुष्य की उन्नति एवं समृद्धि से जलते है, जिसके फलस्वरूप उस मनुष्य के प्रति उनके मन में जलन एवं उस मनुष्य को किस तरह नीचा गिरना है, उसको नीचा गिराने के बारे में सोचते रहते है और उनके इस तरह के सोचने से एवं ईर्ष्या करते रहने से उस उन्नतिशील मनुष्य को बिना मतलब के ही कष्टों से गुजरना पड़ता हैं। आज के युग में मनुष्य सभी तरह के सुख एवं सुविधाओं और अधिक रुपये-पैसों की चाहत रखते हैं, लेकिन इन सबको प्राप्त करने के लिए मेहनत एवं अपने कार्य क्षमता की जरूरत होती हैं, इस तरह की कार्य क्षमता एवं मेहनत सभी तरह के मनुष्य में नहीं होती हैं। जो मनुष्य मेहनत करते हुए अच्छे मुकाम को हासिल कर लेते है, तब जो मनुष्य अपने मुकाम को हासिल नहीं कर पाते है, वे दूसरों के प्रति बुरी भावनाओं को जन्म दे देते हैं।


फिर वे उन उन्नतिशील मनुष्य के रास्ते को रोकने के लिए हर सम्भव कोशिश करते है, जिसके कारण उनमें जलन बढ़ती चली जाती हैं। वह उस मनुष्य को नीचा गिरने के लिए हर तरह के माध्यम अपनाता है, जिनमें कुछ गलत तरीके भी होते है, जिसके कारण उस प्रगतिशील मनुष्य के जीवन में उन्नति रुक जाती है, वह अपने ऊपर किसी तरह का दबाव महसूस करने लगता है, मेहनत करते रहने पर उसे असफलता हाथ आती है एवं वह निराश होकर कल्पना में खोया हुआ रहने लगता हैं। इस तरह से जलन एवं ईर्ष्या के कारण प्रगतिशील मनुष्य को औंधे मुँह गिरना पड़ता है। इस तरह की बंदिश को जानकर ज्योतिषी को जन्मकुंडली को दिखाकर जान सकते हैं, किस तरह से उसके जीवनकाल के विकास को बांध दिया। 


बंधन का अर्थ:-बंधन का अर्थ होता हैं, किसी दूसरे मनुष्य के द्वारा अन्य मनुष्य पर उस मनुष्य का नियंत्रण होंना एवं बांधे जाने से होता हैं।

बन्धन योग का मतलब:-जब मनुष्य की जन्मकुंडली के भावों के अनुसार एक भाव के आस-पास के भावों में कोई पापी ग्रह या शुभ ग्रहों के द्वारा अपने शुभ या पाप प्रभाव से उस भाव पर असर डालने से उस भाव पर एक तरह से बांध दिया जाता है, तब उसे बन्धन योग कहते हैं।

बंदिश योग का मतलब:-जब मनुष्य के द्वारा अपने सोच-समझ पर एवं अपने विचारों किसी भी तरह से नियंत्रण नहीं होता है, तब उस योग को बंधन योग या बंदिश योग कहते हैं।

बंधन का मतलब:-,जब कोई मनुष्य यह अहसास करता है कि उसको किसी बांध दिया है, जिस तरह किसी जानवर को खूंटे से बांधने पर उस जानवर का कोई नियंत्रण नहीं होता है, जिसने उसे बांधा हैं, उसके अनुसार उसको चलना पड़ता है, तब उसे बंधन कहते हैं।



बन्धन या बंदिश योग के भेद:-बन्धन योग या बंदिश योग के धर्म शास्त्रों में अनेक तरह के प्रकार बताये गए, लेकिन मुख्य रूप से दो प्रकार होते है, जो इस तरह है:

1.पहला प्रकार बन्धन योग का क्षणिक तरह।

2.दूसरा प्रकार बन्धन योग का तात्कालिक तरह।

1.पहला प्रकार बन्धन योग का क्षणिक तरह:-इस तरह का प्रभाव कुछ समय में धीरे-धीरे शुरू होता है, उसके बाद में बन्धन का असर लंबे समय तक रहता है, जिसमें किसी मनुष्य की जलन या डाह के कारण निरन्तर प्रभावित करते हैं।

2.दूसरा प्रकार बन्धन योग का तात्कालिक तरह:-इस तरह के बन्धन में मनुष्य अल्प समय में उस मनुष्य के द्वारा किये गए कृत्य के कारण शीघ्र प्रभावित हो जाते है और उस मनुष्य पर तात्कालिक असर होना शुरू हो जाता है, जिसके के कारण कम समय में मनुष्य को समूल बर्बाद कर देते हैं।


जन्मकुंडली में ज्योतिषीय योगों की  स्थिति के अनुसार बन्धन या बंदिश योग की पहचान:-जन्मकुंडली में भावों के आस-पास के भावों में स्थित ग्रहों के हालात द्वारा या कुछ ग्रहों के प्रभाव से बन्धन योग का निर्माण होता है। कुछ जन्मकुंडली में ऐसे हालात बन जाते है जिसके फलस्वरूप जिस भाव पर किसी बुरे ग्रह के द्वारा उस भाव के आजु-बाजू दोनों तरफ से उस भाव पर अपना दबाव रखते है, जिससे मनुष्य के उस भाव से सम्बंधित नतीजों पर बुरा असर पड़ता है, मनुष्य क्या सोचता है और क्या हो जाता है? वह किसी दूसरे के बारे में अच्छा करने की कोशिश करता है, तब भी उस पर किसी तरह का लांछन लग जाता है। अपने मन के भावों को व्यक्त करने का प्रयाश करता है, लेकिन उन भावों को मन के अन्दर ही रखना पड़ता है, जिससे वह हताश हो जाता है, वह सोचता है कि इसे कैसे व्यक्त करू। उन भावों को व्यक्त करने के बारे में अंदर ही अंदर घुटता है। तब इस तरह के असर को बंदिश योग कहते हैं।

जन्मकुंडली के भावों के कमजोर हालात के कारण मनुष्य के जीवनकाल पर एक तरह से ग्रहण लग जाता है, जिससे मनुष्य जो भी करने की सोचता है तब उसके किसी भी कार्य में विघ्न आ जाता है और उसके सोचे हुए कार्य के विपरीत होता है, उसका मन विचलित रहता है, वह अपने ऊपर दूसरों का दबाव समझता है एवं उन दबावों से किसी भी से वह आजाद नहीं हो पाता हैं।



ज्योतिष शास्त्र में बंदिश योग से सम्बंधित कुछ योग:- बताये गए हैं, जो इस तरह हैं:

◆जब जन्मकुंडली में लग्न घर का मालिक ग्रह एवं छठे घर के मालिक ग्रह शनि ग्रह के साथ जब केंद्र भावों या त्रिकोण भावों में स्थित होते है, तब बन्धन योग बनता हैं।

◆बारहवें घर, त्रिकोण घरों (पहले घर, पांचवे घर, नवें घर)एवं दूसरे घर में जब पापग्रहों की संख्या में अधिक होते है, तब मनुष्य अपने आपको किसी के दबाव में अपने को महसूस करता हैं, जिसके कारण उसे बंधन योग का दंड भोगना पड़ता है।

◆प्रथम स्थिति में:-जब जन्मकुंडली के दूसरे भाव एवं द्वादश भाव में समान संख्या में ग्रहों के होने पर पहले भाव पर बंधन का प्रभाव पड़ेगा, जिसके कारण वह मनुष्य अपने शरीर से सही तरह से अपना कार्य को करने में असमर्थ हो जाता है, उसको यह अनुभव होता है कि वह कुछ नहीं कर सकता है, तब उसे अपने आपको किसी दूसरे से द्वारा बंधन में होने का अहसास होता हैं। जिसके फलस्वरूप उसका जीवनकाल उन ग्रहों के प्रभाव से हमेशा के लिए दबाव में बीतता है और अपने ऊपर किसी तरह का दबाव को महसूस करता हैं। 

उदाहरण स्वरूप:-जन्मकुंडली में पहले घर अर्थात् लग्न भाव के निकट के प्रतिवासी लग्न भाव के दाएं तरफ तो दूसरा घर एवं बायें तरफ के प्रतिवासी बारहवें घर में एक-एक या दो-दो या दो से अधिक एक प्रकृति के ग्रह बैठने पर उन ग्रहों का प्रभाव बीच घर पर पड़ेगा। इस तरह वह बीच का घर उनके दोनों के बीच में फस कर जैल की तरह दंड भोगेगा।


◆दूसरी स्थिति:-जब जन्मकुंडली के तीसरे भाव एवं एकादश भाव में समान संख्या में ग्रहों के होने पर बंधन का प्रभाव पड़ेगा, जिसके कारण वह मनुष्य अपने शरीर से सही तरह से अपना कार्य को करने में असमर्थ हो जाता है, उसको यह अनुभव होता है कि वह कुछ नहीं कर सकता है, तब उसे अपने आपको किसी दूसरे से द्वारा बंधन में होने का अहसास होता हैं। मनुष्य के जीवनकाल में रुपयों-पैसों को कमाने में एवं अपने भाईयों-बहिनों की तरफ से अपने ऊपर  बंदिश को मानता है।


◆तीसरी स्थिति:-जब जन्मकुंडली के चतुर्थ भाव एवं दशम भाव में समान संख्या में ग्रहों के होने पर बंधन का प्रभाव पड़ेगा, जिसके कारण वह मनुष्य अपने शरीर से सही तरह से अपना कार्य को करने में असमर्थ हो जाता है, उसको यह अनुभव होता है कि वह कुछ नहीं कर सकता है, तब उसे अपने आपको किसी दूसरे से द्वारा बंधन में होने का अहसास होता हैं। मनुष्य अपने आपको जैल में कैद की तरह हालात को समझता हैं।


◆चौथी स्थिति:-जब जन्मकुंडली के पंचम भाव एवं नवम भाव में समान संख्या में ग्रहों के होने पर बंधन का प्रभाव पड़ेगा, जिसके कारण वह मनुष्य अपने शरीर से सही तरह से अपना कार्य को करने में असमर्थ हो जाता है, उसको यह अनुभव होता है कि वह कुछ नहीं कर सकता है, तब उसे अपने आपको किसी दूसरे से द्वारा बंधन में होने का अहसास होता हैं।

◆पंचमी स्थिति:-जब जन्मकुंडली के षष्ठम भाव एवं अष्टम भाव में समान संख्या में ग्रहों के होने पर सप्तम भाव पर बंधन का प्रभाव पड़ेगा, जिसके कारण वह मनुष्य अपने शरीर से सही तरह से अपना कार्य को करने में असमर्थ हो जाता है, सातवें घर पर असर होने पर दाम्पत्य जीवन में उसे बहुत ही कठिनायों का सामना करना पड़ता है और दाम्पत्य जीवन में दबा हुआ महसूस करता हैं। यह अनुभव होता है कि वह कुछ नहीं कर सकता है, तब उसे अपने आपको किसी दूसरे से द्वारा बंधन में होने का अहसास होता हैं। मनुष्य स्वयं को कैदी कि तरह अपना जीवनकाल व्यतीत करता हैं। 

उदाहरण स्वरूप:-जन्मकुंडली में माता का घर अर्थात् चौथे भाव के निकट के प्रतिवासी चौथे भाव के दाएं तरफ तो पांचवा घर एवं तीसरे घर के प्रतिवासी बारहवें घर में एक-एक या दो-दो या दो से अधिक एक प्रकृति के ग्रह बैठने पर उन ग्रहों का प्रभाव बीच घर पर पड़ेगा। इस तरह वह बीच का घर उनके दोनों के बीच में फस कर जैल की तरह दंड भोगेगा।

◆जब जन्मकुंडली में मेष राशि लग्न में स्थित होती है तथा पापी ग्रह दूसरे, पांचवे, नवें एवं बारहवें घर होने पर बन्धन योग बनेगा।

◆जब जन्मकुंडली में वृषभ राशि लग्न में स्थित होती है तथा पापी ग्रह दूसरे, पांचवे, नवें एवं बारहवें घर होने पर बन्धन योग बनेगा।

◆जब जन्मकुंडली में धनु राशि लग्न में स्थित होती है तथा पापी ग्रह दूसरे, पांचवे, नवें एवं बारहवें घर रज्जू बन्धन योग बनता हैं।

◆जब जन्मकुंडली में वृश्चिक राशि लग्न में स्थित होती है तथा पापी ग्रह दूसरे, पांचवे, नवें एवं बारहवें घर भू-गृह एवं तहखाना का बन्धन योग बनेगा।

◆जब जन्मकुंडली में मेष राशि लग्न में स्थित होती है तथा पापी ग्रह दूसरे, पांचवे, नवें एवं बारहवें घर निगड बन्धन या जंजीरों से बन्धन योग बनेगा।

◆जब जन्मकुंडली में मिथुन राशि लग्न में स्थित होती है तथा पापी ग्रह दूसरे, पांचवे, नवें एवं बारहवें घर रज्जूनिगड बन्धन या जंजीरों से बन्धन योग बनेगा।

◆जब जन्मकुंडली में कन्या राशि लग्न में स्थित होती है तथा पापी ग्रह दूसरे, पांचवे, नवें एवं बारहवें घर निगड बन्धन या जंजीरों से बन्धन योग बनेगा।

◆जब जन्मकुंडली में तुला राशि लग्न में स्थित होती है तथा पापी ग्रह दूसरे, पांचवे, नवें एवं बारहवें घर निगड बन्धन या जंजीरों से बन्धन योग बनेगा।

◆जब जन्मकुंडली में कर्क राशि लग्न में स्थित होती है तथा पापी ग्रह दूसरे, पांचवे, नवें एवं बारहवें घर दुर्ग में प्रवेश बन्धन रहित होता।

◆जब जन्मकुंडली में मकर राशि लग्न में स्थित होती है तथा पापी ग्रह दूसरे, पांचवे, नवें एवं बारहवें घर दुर्ग में प्रवेश बन्धन रहित होता।

◆जब जन्मकुंडली में मीन राशि लग्न में स्थित होती है तथा पापी ग्रह दूसरे, पांचवे, नवें एवं बारहवें घर दुर्ग में प्रवेश बन्धन रहित होता।



ज्योतिष शास्त्र में बंदिश योग से सम्बंधित कुछ योग के पड़ने वाले असर:-बताये गए हैं, जो इस तरह हैं:

◆जन्मकुंडली के केंद्र भावों के इस तरह के प्रभाव पड़ते है, तब केंद्र भावों पर बुरे प्रभाव का असर शीघ्र हो जाता है, उस भाव के अनुसार उस भाव को नष्ट कर देते हैं।

◆जब जन्मकुंडली में शरीर भाव के दोनों तरफ अच्छे एवं शुभ ग्रह होने पर उसको फायदा मिलता हैं।

◆जब जन्मकुंडली के शरीर भाव के दोनों तरफ बुरे एवं पापी ग्रहों का असर पड़ता है तब मनुष्य का जीवनकाल में दुःख के सागर में डूबता हुआ रहता है। जिसके फलस्वरूप उसको मानसिक चिंतन ज्यादा होने से मानसिक रोगी बन जाता है, वह अपने मन को सही जगह पर नहीं रखकर कल्पना में खोया रहेगा और बिना मतलब के वह हर समय आँखे लाल रंग की रहेगी। उसको छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा अधिक आएगा। 

◆जब जन्मकुंडली के पहले घर पर अच्छे ग्रहों का असर होने पर एवं पहले घर का एवं पहले घर के मालिक भी जब मजबूत स्थिति में होते हैं, तब मनुष्य को अपने ऊपर किसी दूसरे के दबाव का अहसास होता है, लेकिन यह दबाव को वह सहन कर सकता है, जिसके फलस्वरूप अपने शरीर पर नियंत्रण रखते हुए वह शांत रहेगा और अपने मन में ही किसी बात को दबा देगा। जब किसी तरह के महत्त्वपूर्ण विषय के बारे में निर्णय के वक्त अपने मन को एक जगह पर केंद्रित करते हुए समय ज्यादा लगाएगा। लेकिन सही एवं अपने पक्ष का निर्णय ले पायेगा।

◆चतुर्थ भाव पर बन्धन योग के असर में होने पर इस भाव से सम्बंधित कारक जैसे-माता, भूमि, जायदाद, खेती एवं वाहन सुख आदि सुखों को नष्ट हो जाते हैं।

◆सप्तम भाव पर बन्धन योग का असर होने पर इस भाव से सम्बंधित कारक जैसे-पत्नी या पति, साझेदारी, जननांग रोग, कामशक्ति आदि पर असर करके इन सबको नष्ट कर देते है।

◆दशम भाव पर बन्धन योग का असर होने पर इस भाव से सम्बंधित कारक जैसे-राजकीय सेवा, नोकरी, पिता के साथ सम्बन्ध आदि पर असर करके इन सबको नष्ट कर देते है।

◆पंचम भाव बन्धन योग का असर होने पर इस भाव से सम्बंधित कारक जैसे-सन्तान योग, विद्या, बुद्धि, ज्ञान, प्रेम आदि पर असर करके इन सबको नष्ट कर देते है।

◆नवम भाव बन्धन योग का असर होने पर इस भाव से सम्बंधित कारक जैसे-भाग्य, उच्च शिक्षा, धर्म-कर्म आदि पर असर करके इन सबको नष्ट कर देते है।



उपाय:-भगवान पवनपुत्र हनुमान जी की पूजा-अर्चना करने से फायदा मिलता हैं। क्योकि किसी भी तरह की डाह एवं जलन और बुरे कार्यों के प्रभाव का एकमात्र समाधान हनुमानजी की उपासना करना होता है।

◆जिस भगवान पर मनुष्य को ज्यादा आस्था एवं विश्वास हो, उन मनुष्य को अपने भगवान की पूजा करते रहने पर बन्धन योग का असर कम हो जाता हैं।