बृहस्पति स्तोत्रं अर्थ सहित एवं फायदे(Brihaspati Stotra with meaning and benefits):-बृहस्पति स्त्रोतं के मन्त्रों का जाप मनुष्य के द्वारा करने पर गुरु ग्रह के बुरे असर को कम करने एवं श्रीबृहस्पति देव को खुश करने के मदद मिलती हैं। जिस तरह अपने इष्ट के प्रति श्रद्धाभाव एवं विश्वास रखते हुए उनकी अरदास करते हैं, उसी तरह देवताओं के गुरु बृहस्पति देव को उनकी पूजा-अर्चना करके खुश करना चाहिए। जिससे गुरु ग्रह के कमजोर स्थिति में होने के प्रभाव को कम किया जा सके। गुरु ग्रह के सूर्य, चन्द्र एवं मंगल मित्र ग्रह हैं। शनि समभाव वाला ग्रह हैं। गुरुवार या बृहस्पतिवार इसका अपना शुभवार हैं।
जब गुरु ग्रह जन्मकुंडली में कमजोर होने पर मिलने वाले नतीजे:-जब जन्मकुंडली में गुरु ग्रह कमजोर होता है, तब मनुष्य के जीवन को निम्नलिखित तरह से प्रभावित करता है:
◆निर्बल या कमजोर होने पर, दूषित एवं अकेला गुरु 2, 5, 6, 7, 8, 12 भावों में होने पर मनुष्य को स्वार्थी बना देता है और को स्वयं के फायदे के अलावा किसी से कोई मतलब नहीं होता हैं।
◆मनुष्य का स्वभाव में तीक्ष्णता आ जाती है और वह थोड़ी-थोड़ी बातों से शीघ्र उत्तेजित हो जाता है।
◆मनुष्य अपने मतलब के लिए दूसरों के साथ विश्वासघात भी कर देता है।
◆जब जन्मकुंडली में गुरु ग्रह के कमजोर होने पर मनुष्य का शरीर सूखने लगता है, वह केवल हाड़-मांस का पिंजड़ा शेष रहता हैं और कई तरह की व्याधियों से घिर जाता हैं।
◆मनुष्य के शरीर में खून की कमी होकर रक्त विकार हो जाता है, जिससे जिगर, शिराओं एवंधमनियों के द्वारा रक्त का संचार ठीक तरह नहीं हो पाता है और जंघाओं में कमजोर आ जाती हैं।
◆जब जन्मकुंडली के पांचवे घर एवं दूसरे घर में गुरु ग्रह अकेला बैठा होता है, तब तो ओर भी नुकसान दायक बन जाता है।
◆मनुष्य के पारिवारिक जीवन में उथल-पुथल शुरू कर देता है, जिससे पति-पत्नी के बीच बिना मतलब के झगड़े शुरू होकर घर में अशांति की स्थिति बन जाती हैं।
◆मनुष्य विद्या में होशियार होने पर भी उसको विद्या प्राप्त करने में रुकावटों का सामना करना पड़ता है।
◆जब गुरु ग्रह बुरे ग्रहों के साथ बैठकर या दृष्टि सम्बन्ध बनाते है, तब गुरु ग्रह निर्बल हो जाते है और अपना पूर्ण शुभ नतीजे नहीं दे पाते है। जब गुरु ग्रह की महादशा और अन्तर्दशा आने पर तो ओर भी नुकसान शुरू कर देते है, जिससे मनुष्य का मन जीवन से उठ जाता हैं।
◆इन सब तरह के बुरे प्रभावों से बचने के लिए एवं गुरु ग्रह को मजबूती देने के लिए बृहस्पति देव जी के बृहस्पति स्तोत्रं के मन्त्रों का पाठन शुरू करना चाहिए, जिससे बृहस्पति देव को खुश किया जा सके और उनका आशीर्वाद प्राप्त कर सके।
◆बृहस्पति स्त्रोतं का वांचन मनुष्य को हमेशा सही समय पर करने से बहुत ही फायदे मिलते हैं।
बृहस्पति देव के बृहस्पति स्त्रोतं के वांचन करने का तरीका:-बृहस्पति स्तोत्रं के मन्त्रों के पाठन शुरू करते समय सही विधि से उनके स्तोत्रं के मन्त्रों को पढ़ने से पहले रीति जानकारी लेनी चाहिए। बृहस्पति स्तोत्रं वांचन की विधि इस तरह हैं:
◆किसी माह के शुक्लपक्ष के गुरुवार को बृहस्पति स्तोत्रं के मन्त्रों का वांचन शुरू करना चाहिए।
◆अपने इष्ट देव को साक्षी मानते हुए मन ही मन में संकल्प करना चाहिए कि मैं ग्यारहा, इक्कीस या इकतीस या इक्यावन गुरुवार तक नियमित रूप से बृहस्पति स्तोत्रं के मन्त्रों को नियमित रूप से पढूंगा।
◆किसी शुभ समय में बृहस्पति स्तोत्रं को शुरू करने के दिन सवेरे जल्दी उठकर स्नानादि करके नये पीले रंग के कपड़ो को पहनना चाहिए।
◆पूजा करने की जगह की सफाई करके एक लकड़ी के बाजोठ पर पीले रंग का कपड़ा बिछाकर उस पर बृहस्पति देव की प्रतिमा या फोटो को उस बाजोठ स्थापित करनी चाहिए।
◆षोडशोपचार कर्म विधि से बृहस्पति देव की पूजा-अर्चना करके उनको पीले रंग के पुष्प और पीले रंग की मिठाई को चढ़ाना चाहिए।
◆बृहस्पति स्तोत्रं के मन्त्रों को पढ़ते समय में किसी तरह के बुरे विकार नहीं आने चाहिए।
◆बृहस्पति देव की आरती करनी चाहिए।
◆पूर्ण रूप से विश्वास के साथ शुरू करना चाहिए।
◆बृहस्पति स्त्रोतं के मन्त्रों का पाठन शुरू करना चाहिए।◆उसके बाद गुरु ग्रह के स्वामी बृहस्पति देव एवं अपने गुरुदेव को मन ही मन याद करते हुए उनका आशीर्वाद पाने के लिए वंदना करनी चाहिए।
अथ श्रीबृहस्पति स्तोत्रं अर्थ सहित:-श्रीबृहस्पति स्तोत्रं अर्थ सहित विवेचन इस तरह हैं:
अस्य श्री बृहस्पतिस्तोत्रस्य गृत्समद ऋषि:,
अनुष्टुप् छन्द:,बृहस्पतिर्देवता,
बृहस्पति प्रीत्यर्थं जपे विनियोग:।
श्रीबृहस्पति देव का विनियोग अर्थात्:-श्रीबृहस्पति स्तोत्रं मन्त्र की रचना श्री गृत्समद ऋषिवर ने की थी, अनुष्टुप् छंद है एवं बृहस्पति देवता हैं। । श्रीबृहस्पति जी की प्रसन्नता के लिए एवं कष्टों से मुक्ति हेतु श्रीबृहस्पति स्तोत्रं के जप में विनियोग किया जाता हैं।
ध्यानम्:-श्री बृहस्पति स्त्रोतं के मन्त्रों के उच्चारण करने से पहले मनुष्य को बृहस्पति देव को मन ही मन में याद करते हुए उनका आशीष प्राप्त करने हेतु उनका ध्यान करना चाहिए।
गुरुर्बृहस्पतिर्जीव: सुराचार्यो विदां वरः।
वागीशो धिषणो दीर्घश्मश्रुः पीताम्बरो युवा।।।1।
सुधादृष्टिर्ग्रहाधीशो ग्रहपीडापहारकः।
दयाकरः सौम्यमूर्तिः सुरार्च्यः कुड्मलद्युतिः।।2।।
लोकपूज्यो लोकगुरुः नीतिज्ञो नीतिकारकः।
तारापतिश्चाङ्गिरसो वेदवेद्यः पितामहः।।3।।
भक्त्या बृहस्पतिं स्मृत्वा नामान्येतानि यः पठेत्।
अरोगी बलवान् श्रीमान् पुत्रवान् स भवेन्नरः।।4।।
जीवेत् वर्षशतं मर्त्यः पापं नश्यति नश्यति।
यः पूजयेत् गुरुदिने पीतगन्धाक्षताम्बरैः।।5।।
पुष्पदीपोपहारैश्च पूजयित्वा बृहस्पतिम्।
ब्रह्मणान् भोजयित्वा च पीडाशान्तिर्भवेत् गुरोः।।6।।
अर्थात्:-हे बृहस्पति देवजी! आपको पुष्प अर्पण करते हुए दिप को प्रज्वलित करते हुए आपकी पूजा-अर्चना करते हैं। ब्राह्मण देव आपके स्तोत्रं को भोज पत्र पर लिखते है और गुरु ग्रह से सम्बंधित पीड़ा को दूर कीजिए।
।।इति श्री स्कन्दपुराणे बृहस्पतिस्तोत्रं सम्पूर्णम्।।
बृहस्पति स्त्रोतं के वांचन से मिलने वाले फायदे:-जब जन्मकुंडली में गुरु ग्रह कमजोर स्थिति में होता है, तब बृहस्पति स्तोत्रं के वांचन करके उसके अशुभ प्रभाव को करके निम्नलिखित फायदों को प्राप्त कर सकते हैं, जो इस तरह हैं:
◆मनुष्य के जीवन में बुलन्दी को छूता हैं।
◆गुरु अपने ज्ञान, अनुभव और गहन चिन्तन से मनुष्य को ज्ञानवान, बुद्धिमान, विद्वान, नीतिवान, दयावान, न्यायशील एवं यशस्वी आदि गुणों में बढ़ोतरी करता हैं।
◆मनुष्य के द्वारा नियमित रूप से बृहस्पति कवचं स्त्रोतं के वांचन करते रहने पर हर तरह की समृद्धि को प्राप्त करता हैं।
◆मनुष्य को भूमि एवं भवन की प्राप्ति करवाता हैं।
◆इस कवचं स्त्रोतं के वांचन से जीवनसाथी का सुख एवं साथ मिलता है, जिससे पारिवारिक जीवन सुखमय रहता हैं।
◆सन्तान के रूप में पुत्र रत्न की प्राप्ति होती हैं, जो कि आगे चलकर माता-पिता को सभी तरह के सुख प्रदान करता हैं।
◆मनुष्य के द्वारा इस स्तोत्रं का वांचन करते रहने पर उसको प्रसन्नचित एवं स्वस्थ रहने की दिशा दिखाता है।
◆मनुष्य को आध्यात्मिकता एवं धार्मिकता की ओर ले जाता हैं।
◆शुभ भावस्थ गुरु मनुष्य को उच्च पद पर आसीन करवाता हैं और नौकरी में प्रमोशन करवाता हैं।
◆मनुष्य को हर क्षेत्र में मान-सम्मान में बढ़ोतरी करवाता है।
◆गुरु के प्रभाव से मनुष्य शिक्षक, प्रोफेसर, कैमिस्ट, डॉक्टर, वकील या जज, कैशियर, बैंकर, अधिकारी, राजदूत, नेता या मंत्री, धर्मोपदेशक या समाजसेवक या अच्छा पथप्रदर्शक हो सकता हैं।
◆मनुष्य को समस्त तरह से गुणवान बनाता हैं।
◆मनुष्य का यश एवं गौरव दिलाकर चारों ओर फैलाता हैं।
◆मनुष्य की आर्थिक स्थिति को ठीक करके धनवान बनाता है।
◆गुरु ग्रह पर पड़ने वाले अशुभ एवं पापी ग्रहों के असर को कम करवाता है, इसलिए इस कवचं स्त्रोतं का वांचन करना चाहिए।
◆गुरु ग्रह की कमजोर महादशा एवं अन्तर्दशा के प्रभाव को कम करता है।