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Tuesday, November 9, 2021

सूर्य षष्ठी व्रत कब हैं? जानें पूजा विधि, कथा और महत्व (When is Surya Shashthi Vrat? Know Puja vidhi, katha and importance)






सूर्य षष्ठी व्रत कब हैं? जानें पूजा विधि, कथा और महत्व (When is Surya Shashthi Vrat? Know Puja vidhi, katha and importance):-सूर्य षष्ठी व्रत कार्तिक शुक्ल षष्ठी को किए जाने वाले इस व्रत को 'डोली छठ" भी कहते हैं। यह व्रत पुत्र होने पर किया जाता हैं। इसे करने वाली स्त्रियां सदैव पति-पुत्र, धन-धान्य तथा सुख-समृद्धि से परिपूर्ण रहती हैं और संसार के समस्त सुख भोगकर परम् गति को प्राप्त होती हैं। यह व्रत बड़े नियम तथा निष्ठा से किया जाता हैं। इस व्रत को अत्यंत भक्ति-भाव, श्रद्धा एवं उल्लास से मनाया जाता हैं। इस व्रत के सूर्योदय के बाद व्रतियों के पैर छूने और उनके गीले वस्त्र धोने वालों में होड़ लगती हैं। इस व्रत में प्रसाद को मांगकर खाने की रीत भी हैं।


सूर्य षष्ठी व्रत की पूजा विधि:-सूर्य षष्ठी तीन दिन का पर्व होता हैं।

◆इसमें तीन दिन के कठोर उपवास का विधान हैं। 

◆पहले दिन व्रत को रखना चाहिए और व्रत के निमित गुड़ की बनी हुई खीर एवं रोटी को बनाकर रात्रिकाल में भोजन के रूप में ग्रहण करना चाहिए।

◆सूर्य षष्ठी के व्रत के पहले दिन बिना किसी तरह का आहार ग्रहण नहीं करना चाहिए। यहां तक बिना जल के भी पूरा दिन व्यतीत करना चाहिए।

◆सूर्य षष्ठी को बिना जल रहती है। 

◆रात्रिकाल में प्रसाद ग्रहण करने के बाद से लेकर अगला पूरा दिन पूरी रात के बाद सुबह भोर में उगते हुए सूर्य भगवान को दूसरी बार अर्ध्य देने के बाद ही प्रसाद को ग्रहण करना चाहिए। यह व्रत बहुत ही कठिन होता हैं।

◆सूर्य षष्ठी का व्रत करने वाले व्रती को पहले दिन व्रत को करना चाहिए। 

◆फिर रात्रिकाल में गुड़ से बनी हुई खीर को रोटी के साथ खाना चाहिए।

◆दूसरे दिन प्रातःकाल स्त्रियां नदी या तालाब पर जाकर स्नान करती हुई गीत गाती हैं।

◆फिर दूसरे दिन सायंकाल के समय गंगाजी का घाट की जगह हो तो ठीक अन्यथा किसी भी नदी, तालाब, झील आदि जगहों पर अपने परिवार के सदस्यों के साथ इकट्ठा होकर जाना चाहिए।

◆जब सूर्य अस्त होता दिखाई पड़ता है, तब सूर्यदेव को पहला अर्ध्य देना चाहिए।

◆षष्ठी को अस्त होते हुए सूर्य को विधिपूर्वक पूजा करके अर्ध्य दिया जाता है। 

◆सूर्योदयों होते ही अर्ध्य देकर जल ग्रहण करके व्रत को समाप्त करती हैं।

◆उसके बाद में अपने निवास की जगह पर आकर सूर्यदेव की विधिवत पूजा-अर्चना करनी चाहिए।

◆मनुष्य को अपनी मन की कामना के अनुसार से पूजा करनी चाहिए।

◆सूर्य षष्ठी व्रत में प्रसाद के लिए गन्ना आदि ऋतुफल होना जरूरी होता है।

◆आटे एवं गुड़ से शुद्ध घी में बने हुए 'ठेकुआ' का होना भी जरूरी हैं।

◆ठेकुआ पर लकड़ी के सांचे से सूर्यदेव के रथ का चक्र भी अंकित करना चाहिए।

◆पूजा के लिए मिट्टी के बड़े ढ़कने में चावल के आटे व गेहूं के आटे से बने विविध प्रकार के पकवानों से एवं ऋतुनुसार फलों द्वारा भरकर रखते हैं।

◆फिर उन मिट्टी के ढकनो पर दिया रखकर प्रज्वलित करते हैं।

◆छठ माता के गीत गाना चाहिए।

◆रातभर जागरण होता है। 

◆बहुत से लोग सायंकाल को अर्ध्य देने के बाद से लेकर सुबह निकलने तक उगते सूर्यदेव को अर्ध्य देने तक पानी में ही हाथ जोड़े खड़े रहते हैं।

◆सुबह का अर्ध्य देने के बाद तथा छठी माता का प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रत का समापन होता हैं।

◆इस व्रत को करने वाली स्त्री पंचमी के दिन एक बार नमक रहित भोजन करती है।

◆सात्विक रहते हुए जो यह व्रत करने वाले होते है उनको कार्तिक मास में सात्विकता का पालन करना चाहिए। मासांहार को घर के किसी सदस्य के द्वारा ग्रहण नहीं करना चाहिए।


सूर्य षष्ठी व्रत की पौराणिक कथा:-एक वृद्धा के कोई सन्तान नहीं थी। कार्तिक शुक्ल सप्तमी के दिन उसने संकल्प किया कि यदि उसके पुत्र होगा तो वह व्रत करेगी। सूर्य भगवान की कृपा से वह पुत्रवती हुई। लेकिन उसने व्रत नहीं किया। लड़के का विवाह हो गया। विवाह के लौटते समय वर-वधू ने एक जंगल में डेरा डाल दिया। तब वधू ने वहां पालकी में अपने पति को मरा पाया। वह विलाप करने लगी। उसका विलाप सुनकर एक वृद्धा उसके पास आकर बोली-मैं छठ माता हूँ। तुम्हारी सास सदैव फुसलाती रही है। उसने संकल्प करके भी मेरी पूजा व व्रत नहीं किया। किन्तु तुम्हारा विलाप सुनकर मैं तुम्हारे पति को जीवित कर देती हूँ। घर जाकर अपनी सास से इस विषय में बात करना। वह जीवित हो उठा। वधू ने घर जाकर सास से सारी बात कही। सास ने भूल स्वीकार कर ली और उस दिन के बाद सूर्य षष्ठी का व्रत करने लगी। तभी से इस व्रत का प्रचलन हुआ, जो आज तक चला आ रहा है।



सूर्य षष्ठी व्रत के महत्व:-सूर्य षष्ठी व्रत सूर्यदेव एवं षष्ठीदेवी का व्रत होता हैं, जो मनुष्य इस व्रत को करते है, उनको निम्नलिखित महत्व होते है:

◆सूर्यदेव का यह व्रत करने से व्रती को जीवन काल में आ रही समस्त बाधाओं से मुक्ति मिल जाती हैं।

◆मनुष्य के समस्त तरह के शारीरिक एवं मानसिक दुःखो का निवारण हो जाता हैं।

◆मनुष्य को होने वाली शारीरिक व्याधि जैसे-कोढ़ तथा सफेद दाग जैसी बीमारियों का समाधान हो जाता हैं।

◆जो औरतें जिनके पुत्र सन्तान नहीं होती है, वे यदि इस व्रत को करती है, तो पुत्र सन्तान की प्राप्ति हो जाती हैं।

◆जो व्रती यह व्रत करता है, उस व्रती को समस्त तरह के सुख-ऐश्वर्य एवं समस्त इच्छाओं की प्राप्ति हो जाती हैं।