Breaking

Thursday, December 16, 2021

हनुमान तांडव स्तोत्र अर्थ सहित एवं महत्त्व (Hanuman Tandav Stotram With Meaning and importance)


हनुमान तांडव स्तोत्र अर्थ सहित एवं महत्त्व (Hanuman Tandav Stotram With Meaning and importance):-लोकेश्वराख्यभट्टेन के द्वारा श्री हनुमत्ताण्डवं स्तोत्रम् की रचना की गई हैं। इस स्तोत्रम् में श्रीहनुमानजी के स्वरूप का वर्णन किया गया हैं, जिनमें उनके शरीर के बारे में, बल के बारे में एवं भगवान श्रीरामजी की सेवा के बारे में बताया गया हैं। श्रीहनुमानजी को किस तरह अपनी भक्ति से खुश करें। इसलिए मनुष्य को समस्त तरह के दुःखों से अंत पाना हो तो उनको इस स्तोत्रम् का पाठ नियमित रूप से करना चाहिए। भगवान श्रीरामचन्द्रजी के सेवकं श्रीहनुमानजी का हनुमत्ताण्डव स्तोत्रम् के वर्णित श्लोकों का वांचन हमेशा करते रहना चाहिए, जिससे श्रीरामचन्द्रजी एवं श्रीहनुमानजी की अनुकृपा मिल सके। वे अपने भक्त मनुष्य पर खुश होकर अपना आशीर्वाद दे सके।




Hanuman Tandav Stotram With Meaning and importance





अथ श्री हनुमत तांडव स्तोत्रम् अर्थ सहित:-लोकेश्वराख्यभट्टेन के द्वारा श्री हनुमत्ताण्डवं स्तोत्रम् के श्लोकों की रचना की हैं, इन स्तोत्रम् में दश श्लोकों के मन्त्रों को बताया हैं, जिसका वांचन करके मनुष्य अपनर जीवन में परेशानियों से मुक्ति मिल सके।



वन्दे सिन्दूरवर्णाभं लोहिताम्बरभूषितम्।


रक्ताङ्गरागशोभाढयं शोणापुच्छं कपीश्वरम्।।


भजे समीरनन्दनं, सुभक्तचित्तरञ्जनं, 


दिनेशरूपभक्षकं, समस्तभक्तरक्षकम्।


सुकण्ठकार्यसाधकं, विपक्षपक्षबाधकं,


समुद्रपारगामिनं, नमामि सिद्धकामिनम्।।१।।


अर्थात्:-हे श्रीहनुमानजी! आप सिंदूर वर्ण के एवं लाल रंग के वस्त्रों को धारण अपनी देह पर करते हो। आपको नमन करता हूँ। कपीश्वर आपके अंग रक्त की तरह लाल वर्ण के है आपकी पुच्छं शोणा की तरह हैं। पवनपुत्र आपको याद करता हूँ, मैं आपकी भक्ति अपने मन से करता हूँ और आपका गुणगान करता हूँ। आपको जब मनुष्य अपने अच्छे कर्मों के द्वारा याद करते हैं, तो आप उस मनुष्य के समस्त कार्यों को सफलता देते हो और विपक्ष वाले को बाधा उत्पन्न करते हों। समुद्र में गमन करने वाले और समस्त कार्यों में सिद्धि देने वाले श्री पवनपुत्र हनुमानजी को नतमस्तक होकर अभिवादन करता हूँ।



सुशङ्कितं सुकण्ठभुक्तवान् हि यो हितं 


वचस्त्वमाशु धैर्य्यमाश्रयात्र वो भयं कदापि न।


इति प्लवङ्गनाथभाषितं निशम्य वानराSधिनाथ 


आप शं तदा, स रामदूत आश्रयः।।२।।



अर्थात्:-हे श्रीहनुमानजी! आपको जब कोई मनुष्य शुद्ध एवं पवित्र भावना से स्मरण करते है तो उस मनुष्य के हित की रक्षा करते हो। जो मनुष्य आपकी आराधना अपने धैर्य को रखते हुए करते हो, तो उन मनुष्य को कभी डर नहीं सताता हैं। इस तरह प्लवङ्गनाथजी ने बताया हैं, आप भगवान रामजी के दूत हो। हे वानरा के स्वामी! मुझ पर आपकी अनुकृपा हमेशा बनी रही।



सुदीर्घबाहुलोचनेन, पुच्छगुच्छशोभिना, 


भुजद्वयेन सोदरीं निजांसयुग्ममास्थितौ।


कृतो हि कोसलाधिपौ, कपीशराजसन्निधौ, 


विदहजेशलक्ष्मणौ, स मे शिवं करोत्वरम।।३।।



सुशब्दशास्त्रपारगं, विलोक्य रामचन्द्रमाः, 


कपीश नाथसेवकं, समस्तनीतिमार्गगम्।


प्रशस्य लक्ष्मणं प्रति, प्रलम्बबाहुभूषितः 


कपीन्द्रसख्यमाकरोत्, स्वकार्यसाधकः प्रभु।।४।।


प्रचण्डवेगधारिणं, नगेन्द्रगर्वहारिणं,


फणीशमातृगर्वहृद्दृशास्यवासनाशकृत्।


विभीषणेन सख्यकृद्विदेह जातितापहृत्,


सुकण्ठकार्यसाधकं, नमामि यातुधतकम्।।५।।



नमामि पुष्पमौलिनं, सुवर्णवर्णधारिणं 


गदायुधेन भूषितं, किरीटकुण्डलान्वितम्।


सुपुच्छगुच्छतुच्छलङ्कदाहकं सुनायकं 


विपक्षपक्षराक्षसेन्द्र-सर्ववंशनाशकम्।।६।।


रघुत्तमस्य सेवकं नमामि लक्ष्मणप्रियं 


दिनेशवंशभूषणस्य मुद्रिकाप्रदर्शकम्।


विदेहजातिशोकतापहारिणम् प्रहारिणम्


सुसूक्ष्मरूपधारिणं नमामि दीर्घरूपिणम्।।७।।


अर्थात्:-हे श्रीहनुमानजी! आप भगवान श्रीरामचन्द्रजी के सेवकं हो और लक्ष्मणजी को भी बहुत प्रिय हो। सूर्य की तरह आपका तेज गहना होता हैं, अंगूठी को दिखाकर कहते हो कि अंगूठी मेरे लिए तुच्छ हैं। विदेह जाति के शोक को हरने वाली हो और दुष्टों पर प्रहार करने वाले हो। जब आप छोटे रूप को धारण करते हो फिर अपने विशाल रूप को धारण करने वाले हो। हे हनुमानजी आपको मैं नतमस्तक होकर नमन करता हूँ।



नभस्वदात्मजेन भास्वता त्वया कृता 


महासहा यता यया द्वयोर्हितं हृभूत्स्वकृत्यतः।


सुकण्ठ आप तारकां रघूत्तमो विदेहजां 


निपात्य वालिनं प्रभुस्ततो दशाननं खलम्।।८।।



इमं स्तवं कुजेsह्नि यः पठेत्सुचेतसा 


नरः कपीशनाथसेवको भुनक्तिसर्वसम्पदः।


प्लवङ्गराजसत्कृपाकताक्षभाजनस्सदा न 


शत्रुतो भयं भवेत्कदापि तस्य नुस्त्विह।।९।।


अर्थात्:-हे श्रीहनुमानजी! जो कोई मनुष्य आपके इस स्तोत्रम् के मन्त्रों को पढ़ता हैं, तो मनुष्य के स्वामी आप समस्त तरह के सुख एवं सम्पदा प्रदान करते हो। आप उस मनुष्य पर राजा की कृपा दृष्टि करवाकर उसकी रक्षा हमेशा करते हो। मनुष्य के दुश्मनों के डर का शमन करते हो।



नेत्राङ्गनन्दधरणीवत्सरेsनङ्गवासरे।


लोकेश्वराख्यभट्टेन हनुमत्ताण्डवं कृतम्।।१०।।


अर्थात्:-लोकेश्वराख्यभट्टेन ने हनुमत्ताण्डवं स्तोत्रम् में श्री हनुमानजी की अरदास करते हुए कहते हैं, की हे पवनपुत्र हनुमानजी आप का निवास मेरे समस्त शरीर पर हो, आपको मैं अपने नेत्रों की दृष्टि से देखना चाहता हूँ। आप मेरे नेत्रों में निवास करे।



          ।।इति श्री हनुमत्ताण्डव स्तोत्रम्।।


     ।।जय बोलो सियावर रामचन्द्रजी की जय हो।।


        ।।जय बोलो पवनपुत्र हनुमानजी की जय।।



श्री हनुमत ताण्डव स्तोत्रम् के महत्त्व:-भगवान श्रीरामचन्द्रजी के सेवकं श्रीहनुमानजी का हनुमत्ताण्डव स्तोत्रम् के वर्णित श्लोकों का वांचन हमेशा करते रहना चाहिए, जिससे श्रीरामचन्द्रजी एवं श्रीहनुमानजी की अनुकृपा मिल सके। 



◆मनुष्य को श्रीहनुमानजी को खुश करने के लिए इस स्तोत्रम् कस वांचन करना चाहिए जिससे वे अपने भक्त मनुष्य पर खुश हो जावे और उनका आशीर्वाद मिल सके।



◆जन्मकुण्डली एवं ग्रह गोचर में भौम ग्रह, सेंहिकीय एवं शिखी आदि ग्रहों के बुरे पड़ने वाले प्रभावों से मुक्ति पाने हेतु मनुष्य को नियमित रूप से स्तोत्रम् का वांचन करना चाहिए।



◆इस स्तोत्र का पाठन करने से मनुष्य का जीवन सही तरीके से बिना मुसीबतों से चलता हैं।



◆जो मनुष्य प्रतिदिन श्री हनुमत्ताण्डव स्तोत्रम् में वर्णित श्लोकों का वांचन करते हैं, उनको अनावश्यक डर, भूत पिशाच, व्याधियों और अकारण होने दुर्घटना आदि का डर रहता हैं, वह दूर हो जाता हैं। 



◆जिससे मनुष्य का जीवन अच्छी तरह चलते हुए समस्त तरह की मुश्किलों से रक्षा होती हैं।



 ।।अथ श्री हनुमत तांडव स्तोत्रम्।।



वन्दे सिन्दूरवर्णाभं लोहिताम्बरभूषितम्।


रक्ताङ्गरागशोभाढयं शोणापुच्छं कपीश्वरम्।।


भजे समीरनन्दनं, सुभक्तचित्तरञ्जनं, 


दिनेशरूपभक्षकं, समस्तभक्तरक्षकम्।


सुकण्ठकार्यसाधकं, विपक्षपक्षबाधकं,


समुद्रपारगामिनं, नमामि सिद्धकामिनम्।।१।।


सुशङ्कितं सुकण्ठभुक्तवान् हि यो हितं 


वचस्त्वमाशु धैर्य्यमाश्रयात्र वो भयं कदापि न।


इति प्लवङ्गनाथभाषितं निशम्य वानराSधिनाथ 


आप शं तदा, स रामदूत आश्रयः।।२।।



सुदीर्घबाहुलोचनेन, पुच्छगुच्छशोभिना, 


भुजद्वयेन सोदरीं निजांसयुग्ममास्थितौ।


कृतो हि कोसलाधिपौ, कपीशराजसन्निधौ, 


विदहजेशलक्ष्मणौ, स मे शिवं करोत्वरम।।३।।



सुशब्दशास्त्रपारगं, विलोक्य रामचन्द्रमाः, 


कपीश नाथसेवकं, समस्तनीतिमार्गगम्।


प्रशस्य लक्ष्मणं प्रति, प्रलम्बबाहुभूषितः 


कपीन्द्रसख्यमाकरोत्, स्वकार्यसाधकः प्रभु।।४।।



प्रचण्डवेगधारिणं, नगेन्द्रगर्वहारिणं,


फणीशमातृगर्वहृद्दृशास्यवासनाशकृत्।


विभीषणेन सख्यकृद्विदेह जातितापहृत्,


सुकण्ठकार्यसाधकं, नमामि यातुधतकम्।।५।।



नमामि पुष्पमौलिनं, सुवर्णवर्णधारिणं 


गदायुधेन भूषितं, किरीटकुण्डलान्वितम्।


सुपुच्छगुच्छतुच्छलङ्कदाहकं सुनायकं 


विपक्षपक्षराक्षसेन्द्र-सर्ववंशनाशकम्।।६।।



रघुत्तमस्य सेवकं नमामि लक्ष्मणप्रियं 


दिनेशवंशभूषणस्य मुद्रिकाप्रदर्शकम्।


विदेहजातिशोकतापहारिणम् प्रहारिणम्


सुसूक्ष्मरूपधारिणं नमामि दीर्घरूपिणम्।।७।।



नभस्वदात्मजेन भास्वता त्वया कृता 


महासहा यता यया द्वयोर्हितं हृभूत्स्वकृत्यतः।


सुकण्ठ आप तारकां रघूत्तमो विदेहजां 


निपात्य वालिनं प्रभुस्ततो दशाननं खलम्।।८।।



इमं स्तवं कुजेsह्नि यः पठेत्सुचेतसा 


नरः कपीशनाथसेवको भुनक्तिसर्वसम्पदः।


प्लवङ्गराजसत्कृपाकताक्षभाजनस्सदा न 


शत्रुतो भयं भवेत्कदापि तस्य नुस्त्विह।।९।।



नेत्राङ्गनन्दधरणीवत्सरेsनङ्गवासरे।


लोकेश्वराख्यभट्टेन हनुमत्ताण्डवं कृतम्।।१०।।



     ।।इति श्री हनुमत्ताण्डव स्तोत्रम्।।


 ।।जय बोलो सियावर रामचन्द्रजी की जय हो।।


   ।।जय बोलो पवनपुत्र हनुमानजी की जय।।